प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक)
पिछली सभा में हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों से संबंधित पंद्रहवीं मद की अपनी संगति समाप्त की थी। इन पंद्रह मदों के बारे में संगति करने के बाद क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और सारों का सारांश निकाला है? क्या तुम्हारे पास उनके बारे में कोई बुनियादी अवधारणा और समझ है? क्या तुम लोग उन व्यक्तियों को पहचान सकते हो, जिनमें मसीह-विरोधियों का सार है? (मैं अपेक्षाकृत स्पष्ट मामलों को पहचान सकता हूँ, लेकिन मुझे अभी भी अपेक्षाकृत चालाक और कपटी लोगों को पहचानने में कठिनाई होती है।) आज, आओ दो पहलुओं से मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों का सारांश निकालते हैं : पहला, मसीह-विरोधियों का चरित्र, और दूसरा, उनका स्वभाव सार। क्या इन दो पहलुओं से मसीह-विरोधियों को पहचानना आसान है? (बिल्कुल।) अगर हम कम संगति करते हैं और कई उदाहरण नहीं देते, तो शायद तुम लोग उन्हें पहचानने में सक्षम न हो पाओ; अगर हम ज्यादा संगति करते हैं, तो शायद तुम लोग समझ पाओ, लेकिन इन्हें दुष्टता करते देखकर तुम्हें उनकी तुलना मसीह-विरोधियों से करने में शायद अभी भी कठिनाई हो। मसीह-विरोधियों के प्रकृति-सार का सारांश निकालने और उन्हें इन दो पहलुओं से पहचानने से तुम्हें यह और ज्यादा स्पष्ट हो सकता है।
I. मसीह-विरोधियों का चरित्र
पहला पहलू मसीह-विरोधियों का चरित्र है। खासकर, यह पहलू इस बात से संबंधित है कि मसीह-विरोधियों में किस तरह की मानवता होती है। मानवता में क्या शामिल है? इसमें जमीर, विवेक, ईमानदारी, गरिमा और इंसानी अच्छाई-बुराई शामिल है। मसीह-विरोधियों के चरित्र को पहचानने में उनकी मानवता के विभिन्न पहलू शामिल हैं। आओ, पहले सामान्य मानवता में मौजूद सामान्य अभिव्यक्तियों की चर्चा करते हैं, या उन गुणों की, जो सामान्य मानवता में होने चाहिए। मुझे बताओ, इस श्रेणी में कौन-सी विशिष्ट विषयवस्तु आती है? (ईमानदारी और दयालुता।) और क्या? (सम्मान की भावना।) ईमानदारी और सम्मान की भावना रखना दोनों आवश्यक हैं। (साथ ही, दूसरों के प्रति प्रेम, सहनशीलता, विचारशीलता और क्षमाशीलता दिखाना।) ये भी आवश्यक हैं। आओ, इन सबका सारांश निकालते हैं। सबसे पहला, सामान्य मानवता में ईमानदारी का गुण होता है—क्या यह सकारात्मक है? (बिल्कुल।) इसके अतिरिक्त, इसमें दयालुता और सच्चाई होती है, और सच्चाई और ईमानदारी के बीच मात्रा के संदर्भ में फर्क होता है। क्या तुम लोगों को लगता है कि करुणा ऐसी चीज है, जिसे व्यक्ति के चरित्र में शामिल किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) क्या करुणा को दयालुता के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है? (बिल्कुल।) दयालु हृदय वाले व्यक्ति में निश्चित रूप से करुणा होगी। फिर सादगी और सम्मान की भावना है। सम्मान की भावना में गरिमा, आत्म-ज्ञान और विवेक शामिल हैं। अगला बिंदु है खरापन। खरेपन की क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? इनमें न्याय की भावना, बुराई से नफरत, दुष्टता से घृणा और सकारात्मक चीजों से लगाव शामिल है। अगर व्यक्ति में सिर्फ खरापन है, तो यह पर्याप्त नहीं है; अगर उनमें सहनशीलता और धैर्य की कमी है, वे लोगों की अवस्थाओं या परिस्थितियों पर विचार किए बिना रुखाई से बोलते हैं, तो यह ठीक नहीं है, और उनके चरित्र में कुछ चीजों की कमी है। सहिष्णुता और धैर्य भी हैं, जो दोनों ही दयालुता की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं और निश्चित रूप से एक लक्षण माने जा सकते हैं। ये वे लक्षण हैं, जो सामान्य मानवता में होने चाहिए : ईमानदारी, दयालुता, सच्चाई, सादगी, सम्मान की भावना, खरापन, और सहिष्णुता और धैर्य—कुल मिलाकर सात लक्षण। सामान्य मानवता में मौजूद रहने वाले इन लक्षणों का उपयोग यह मापने के लिए किया जा सकता है कि किसी व्यक्ति में सामान्य मानवता है या नहीं। लेकिन आज की संगति उन लक्षणों की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में नहीं हैं जो सामान्य मानवता में होनी चाहिए, न ही इसका विषय यह है कि वे लक्षण किन व्यक्तियों में होते हैं। इसके बजाय, हम “मसीह-विरोधियों का चरित्र वास्तव में क्या होता है” विषय पर संगति करने जा रहे हैं। अभी-अभी उल्लिखित सामान्य चरित्र के विभिन्न पहलुओं की तुलना में, क्या मसीह-विरोधियों में इनमें से कोई लक्षण होते हैं, या उनमें इनमें से कौन-से लक्षण होते हैं? (उनमें इनमें से कोई लक्षण नहीं होते।) चूँकि तुम्हारे मन में मसीह-विरोधियों के बारे में ऐसी छवि है, तो आओ इस बात का सारांश निकालते हैं कि मसीह-विरोधियों के चरित्र में वे कौन-से तत्त्व होते हैं जिनके कारण लोग उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत करते हैं, और यह दिखाते हैं कि इन व्यक्तियों में बुरी मानवता है, उनमें सामान्य मानवता का अभाव है और उनमें मसीह-विरोधियों वाली मानवता है। अगर किसी में पहले सारांशित की गई सामान्य मानवता की कई अभिव्यक्तियों में से एक-दो अभिव्यक्तियाँ हैं, तो उसमें कुछ सामान्य मानवता हो सकती है। अगर उसमें वे सभी हैं, तो उसमें सबसे सामान्य मानवता है। लेकिन मसीह-विरोधियों में इनमें से कोई लक्षण नहीं होते, तो उनकी मानवता में वास्तव में क्या होता है? आओ, पहले इस पहलू पर संगति करते हैं।
क. आदतन झूठे
सामान्य चरित्र में निहित पहला लक्षण ईमानदारी है। क्या मसीह-विरोधियों के चरित्र में ईमानदारी शामिल है? जाहिर है, मसीह-विरोधियों में ईमानदार मानवता नहीं होती; उनकी मानवता निश्चित रूप से ईमानदारी के विपरीत होती है। तो, मसीह-विरोधियों की मानवता में ईमानदारी के विपरीत, असामान्य मानवता के कौन-से तत्त्व मौजूद होते हैं? (वे अक्सर झूठ बोलते हैं और लोगों को धोखा देते हैं।) क्या हम कह सकते हैं कि अक्सर झूठ बोलना आदतन झूठ बोलने के समान है? क्या यह सारांश ज्यादा विशिष्ट नहीं है? अगर हम कहते हैं कि यह व्यक्ति हमेशा झूठ बोलता है या बहुत सच्चा नहीं है, तो इसमें मात्रा की कमी है। अगर हम उनके चरित्र का वर्णन करने के लिए “झूठ से भरा” जैसी अभिव्यक्तियों का उपयोग करते हैं, तो यह पर्याप्त रूप से औपचारिक नहीं है। इसलिए, उनका वर्णन करने और यह व्यक्त करने के लिए कि मसीह-विरोधियों की मानवता ईमानदार नहीं है, “आदतन झूठे” होने का उपयोग करना ज्यादा उपयुक्त है। “आदतन झूठे” होना पहला लक्षण है—ऐसी चीज जो मसीह-विरोधियों की मानवता में अक्सर अभिव्यक्त और प्रकट होती है। यह लोगों के सामने आने वाला सबसे आम, आसानी से देखा जा सकने वाला और आसानी से पहचाना जा सकने वाला लक्षण होना चाहिए। अब, क्या आदतन झूठ बोलने की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ संगति करने के लायक हैं? (बिल्कुल।)
मसीह-विरोधियों की मानवता बेईमान होती है, जिसका अर्थ है कि वे जरा भी सच्चे नहीं होते। वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह मिलावटी होता है और उसमें उनके इरादे और मकसद शामिल रहते हैं, और इस सबमें छिपी होती हैं उनकी घृणित और अकथनीय चालें और षड्यंत्र। इसलिए मसीह-विरोधियों के शब्द और कार्य अत्यधिक दूषित और झूठ से भरे होते हैं। चाहे वे कितना भी बोलें, यह जानना असंभव होता है कि उनकी कौन-सी बात सच्ची है और कौन-सी झूठी, कौन-सी सही है और कौन-सी गलत। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे बेईमान होते हैं और उनके दिमाग बेहद जटिल होते हैं, कपटी साजिशों से भरे और चालों से ओतप्रोत होते हैं। वे एक भी सीधी बात नहीं कहते। वे एक को एक, दो को दो, हाँ को हाँ और ना को ना नहीं कहते। इसके बजाय, सभी मामलों में वे गोलमोल बातें करते हैं और चीजों के बारे में अपने दिमाग में कई बार सोचते हैं, परिणामों के बारे में सोच-विचार करते हैं, हर कोण से गुण और कमियाँ तोलते हैं। फिर, वे जो कुछ कहना चाहते हैं, उसे भाषा का उपयोग करके बदल देते हैं, जिससे वे जो कुछ कहते हैं, वह काफी बोझिल लगता है। ईमानदार लोग उनकी बातें कभी समझ नहीं पाते और वे उनसे आसानी से धोखा खा जाते हैं और ठगे जाते हैं, और जो भी ऐसे लोगों से बोलता और बात करता है, उसका यह अनुभव थका देने वाला और दुष्कर होता है। वे कभी एक को एक और दो को दो नहीं कहते, वे कभी नहीं बताते कि वे क्या सोच रहे हैं, और वे चीजों का वैसा वर्णन नहीं करते जैसी वे होती हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं, वह अथाह होता है, और उनके कार्यों के लक्ष्य और इरादे बहुत जटिल होते हैं। अगर सच बाहर आ जाता है—अगर दूसरे लोग उनकी असलियत जान जाते हैं और उन्हें समझ लेते हैं—तो वे इससे निपटने के लिए तुरंत एक और झूठ गढ़ लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अक्सर झूठ बोलते हैं और झूठ बोलने के बाद उन्हें झूठ कायम रखने के लिए और ज्यादा झूठ बोलने पड़ते हैं। वे अपने इरादे छिपाने के लिए दूसरों को धोखा देते हैं, और अपने झूठ की मदद के लिए तमाम तरह के हीले-हवाले और बहाने गढ़ते हैं, ताकि लोगों के लिए यह बताना बहुत मुश्किल हो जाए कि क्या सच है और क्या नहीं, और लोगों को पता ही नहीं चलता कि वे कब सच्चे होते हैं, और इसका तो बिल्कुल भी पता नहीं चलता कि वे कब झूठ बोल रहे होते हैं। जब वे झूठ बोलते हैं, तो शरमाते या हिचकते नहीं, मानो सच बोल रहे हों। क्या इसका मतलब यह नहीं कि आदतन झूठ बोलते हैं? उदाहरण के लिए, कभी-कभी मसीह-विरोधी सतही तौर पर दूसरों के प्रति अच्छे, ख्याल रखने वाले और गर्मजोशी से बोलते प्रतीत होते हैं, जो दयालु और प्रेरक लगता है। लेकिन जब वे इस तरह बोलते हैं, तब भी कोई नहीं बता सकता कि वे ईमानदार हैं या नहीं, और वे ईमानदार थे या नहीं, इस बात के प्रकट होने के लिए हमेशा कुछ दिनों बाद होने वाली घटनाओं की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता होती है। मसीह-विरोधी हमेशा कुछ निश्चित इरादों और लक्ष्यों के साथ बोलते हैं, और कोई यह पता नहीं लगा सकता कि वास्तव में वे क्या चाहते हैं। ऐसे लोग आदतन झूठ बोलते हैं, जो अपने किसी भी झूठ के परिणाम के बारे में जरा भी नहीं सोचते। अगर उनका झूठ उन्हें लाभ पहुँचाता है और दूसरों की आँखों में धूल झोंकने में सक्षम रहता है, अगर वह उनके लक्ष्य प्राप्त कर सकता है, तो वे उसके परिणामों की परवाह नहीं करते। जैसे ही वे उजागर होते हैं, वे बात छिपाना, झूठ बोलना, छल करना जारी रखते हैं। जिस सिद्धांत और तरीके से ये लोग आचरण करते हैं और दुनिया से बरताव करते हैं, वह लोगों को झूठ बोलकर बरगलाना है। वे दोमुँहे होते हैं और अपने श्रोताओं के अनुरूप बोलते हैं; स्थिति जिस भी भूमिका की माँग करती है, वे उसे निभाते हैं। वे मधुरभाषी और चालाक होते हैं, उनके मुँह झूठ से भरे होते हैं, और वे भरोसे के लायक नहीं होते। जो भी कुछ समय के लिए उनके संपर्क में आता है, वह गुमराह या परेशान हो जाता है और उसे पोषण, सहायता या सीख नहीं मिल पाती। ऐसे लोगों के मुँह से निकले शब्द गंदे हों या अच्छे, तर्कसंगत हों या बेतुके, मानवता के अनुकूल हों या प्रतिकूल, अशिष्ट हों या सभ्य, वे सब अनिवार्य रूप से मिथ्या, मिलावटी शब्द और झूठ होते हैं।
मसीह-विरोधियों के वर्ग में आदतन झूठ बोलना उनके मुख्य लक्षणों में से एक है। उनकी भाषा से, उनके बोलने के तरीके से, उनकी अभिव्यक्ति के तरीके से, उनके शब्दों के अर्थ और उनके पीछे के इरादे से व्यक्ति यह देखता है कि इन लोगों में सामान्य मानवता नहीं है, उनमें ईमानदार लोगों की मानवता के मानक नहीं हैं। मसीह-विरोधी आदतन झूठ बोलते हैं। उनके झूठ और छल अधिकांश लोगों की तुलना में बहुत ज्यादा गंभीर होते हैं; यह कोई साधारण भ्रष्ट स्वभाव नहीं है, बल्कि पहले ही जमीर और विवेक की हानि और मानवता का पूर्ण अभाव बन चुका है। सार में, ये लोग राक्षस हैं; राक्षस अक्सर इसी तरह से झूठ बोलते और लोगों को धोखा देते हैं, उनका कहा कुछ भी सच नहीं होता। जब अधिकांश लोग झूठ बोलते हैं, तो उन्हें झूठ गढ़ना पड़ता है, उन्हें उस पर सावधानीपूर्वक विचार करना पड़ता है; लेकिन मसीह-विरोधियों को कुछ भी गढ़ने या उस पर विचार करने की जरूरत नहीं होती : वे अपना मुँह खोलते हैं और झूठ बाहर आ जाता है—और इससे पहले कि तुम इसे समझो, तुम धोखा खा चुके होते हो। उनके झूठ और धोखे ऐसे होते हैं कि मंद प्रतिक्रिया देने वाले लोगों को चीजें समझने में दो-तीन दिन लग सकते हैं; तब जाकर उन्हें एहसास होता है कि इस व्यक्ति का क्या मतलब था। जो लोग सत्य नहीं समझते, वे पहचानने में असमर्थ होते हैं। मसीह-विरोधी आदतन झूठ बोलते हैं : तुम उनके इस चरित्र के बारे में क्या सोचते हो? स्पष्ट रूप से यह ऐसी चीज नहीं है, जो सामान्य मानवता का हिस्सा हो। क्या इसमें कुछ राक्षसी नहीं है? सटीक रूप से कहें तो, यह एक राक्षसी प्रकृति है। आदतन झूठ बोलना, झूठी बातें करना और लोगों को धोखा देना : काम करने के ये तरीके स्कूल में सीखे गए होते हैं या उनके परिवार के प्रभाव का नतीजा होते हैं? इनमें से कुछ नहीं होता। ये चीजें उनकी जन्मजात प्रकृति होती हैं, वे इन चीजों के साथ पैदा हुए होते हैं। जब माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं, तो कोई भी अपने बच्चे को छोटी उम्र से झूठ बोलना और धोखा देना नहीं सिखाता, न ही कोई उन्हें झूठ बोलने या धोखा देने के लिए मजबूर करता है, फिर भी ऐसे बच्चे होते हैं जो बड़े होने पर झूठ के अलावा कुछ नहीं बोलते, वे चाहे जो भी झूठ बोलें, उनके माथे पर शिकन तक नहीं आती, और स्वयं द्वारा बोले गए झूठ के बारे में अपने जमीर में कभी पछतावा, पीड़ा या बेचैनी महसूस नहीं करते; इसके बजाय, ये बच्चे खुद को बहुत चतुर, अत्यधिक बुद्धिमान समझते हैं, वे खुश, गर्वित और गुप्त रूप से प्रसन्न महसूस करते हैं कि वे झूठ और अन्य युक्तियों का उपयोग करके दूसरों को मूर्ख बनाने और धोखा देने में सक्षम हैं। यह उनकी जन्मजात प्रकृति है। मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ऐसे ही हैं। आदतन झूठ बोलना उनका प्रकृति-सार है। हालाँकि वे अक्सर सभाओं में भाग लेते हैं और उपदेश और संगति सुनते हैं, लेकिन मसीह-विरोधी कभी आत्मचिंतन या खुद को जानने की कोशिश नहीं करते, और चाहे उन्होंने दूसरों को धोखा देने के लिए कितने भी झूठ बोले हों, उनका जमीर उन्हें नहीं धिक्कारता, और समाधान के लिए सत्य खोजने की सक्रिय रूप से कोशिश तो वे बिल्कुल नहीं करते—जो साबित करता है कि सार में मसीह-विरोधी छद्म-विश्वासी होते हैं। चाहे वे लोगों को कितने भी धर्म-सिद्धांतों पर भाषण देने में सक्षम हों, वे उन धर्म-सिद्धांतों को खुद पर कभी लागू नहीं करते, वे आत्म-विश्लेषण कभी नहीं करते, और चाहे वे कितने भी झूठ बोलें या कितने भी लोगों को धोखा दें, वे इसके बारे में कभी खुलकर नहीं बोलते, बल्कि इसके बजाय ढोंग और दिखावा करते हैं, और दूसरों के सामने यह स्वीकारने का साहस नहीं करते कि वे धोखेबाज लोग हैं। इसके अलावा, वे जब भी जरूरत महसूस करते हैं, झूठ बोलकर लोगों को धोखा देते रहते हैं। क्या यह उनकी प्रकृति नहीं है? यह उनकी प्रकृति है और इसे बदलने का कोई उपाय नहीं है। यह प्रकृति सामान्य मानवता की अभिव्यक्ति नहीं है; सही तरह से कहें तो, यह एक राक्षसी प्रकृति है, यह शैतान का स्वभाव है, ऐसे लोग शैतान हैं, वे देहधारी राक्षस हैं।
मसीह-विरोधियों के चरित्र की पहली अभिव्यक्ति आदतन झूठ बोलना है, जिसे हम राक्षसी प्रकृति की श्रेणी में रखेंगे। इस राक्षसी प्रकृति की अभिव्यक्ति यह है कि चाहे जब भी हो या जहाँ भी हो, चाहे जो भी अवसर हो या वे जिसके भी साथ बातचीत करें, ऐसे लोग जो शब्द कहते हैं वे साँप और राक्षसों के शब्दों के समान होते हैं—वे भरोसे के लायक नहीं होते। ऐसे लोगों के साथ विशेष रूप से सतर्क और विवेकशील होना चाहिए, राक्षसों के शब्दों पर फौरन विश्वास नहीं करना चाहिए। उनके आदतन झूठ बोलने की विशिष्ट अभिव्यक्ति यह है कि वे आसानी से झूठ बोल लेते हैं; उनकी कही हुई बातें विचार-विमर्श, विश्लेषण या विवेकशीलता का सामना नहीं कर सकतीं। वे किसी भी समय झूठ बोल सकते हैं, और वे मानते हैं कि वे सभी मामलों में कोई सच नहीं बोल सकते, कि वे जो कुछ भी कहते हैं वह झूठ ही होना चाहिए। यहाँ तक कि अगर तुम उनसे उनकी उम्र के बारे में पूछते हो, तो भी वे इस पर विचार करते हैं और यह सोचते हैं, “मेरी उम्र के बारे में पूछने से उनका क्या मतलब है? अगर मैं कहूँ कि मैं बूढ़ा हूँ, तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखेंगे और विकसित नहीं करेंगे? अगर मैं कहूँ कि मैं जवान हूँ, तो क्या वे मुझे नीची नजर से देखकर कहेंगे कि मेरे पास अनुभव की कमी है? मुझे क्या जवाब देना चाहिए?” इतने सरल मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और तुम्हें सच बताने से मना कर सकते हैं, यहाँ तक कि पलटकर तुम्हीं से सवाल पूछ सकते हैं, “तुम्हें क्या लगता है?” तुम कहते हो, “पचास साल?” “तकरीबन।” “पैंतालीस?” “तुम करीब हो।” क्या वे तुम्हें सही जवाब देते हैं? उनके जवाबों से क्या तुम जान पाते हो कि उनकी उम्र कितनी है? (नहीं।) यह आदतन झूठ बोलना है।
मसीह-विरोधियों की आदतन झूठ बोलने की एक और अभिव्यक्ति है, यानी वे गवाही देते समय भी झूठ बोलते हैं। झूठी गवाही देना एक शापित कार्य है, जो परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचाता है। गवाही देने के मामले में भी वे मनगढ़ंत बातें करने, झूठ बोलने और छल करने की हिम्मत करते हैं, जो वास्तव में परिणामों के प्रति उनकी लापरवाही भरी उपेक्षा और उनकी न बदलने वाली प्रकृति दर्शाता है! जब वे देखते हैं कि दूसरे लोग अनुभव और समझ के आधार पर गवाही देते हैं जबकि वे नहीं दे सकते, तो वे उनकी नकल करते हैं, दूसरे लोग जो कहते हैं वही कहते हैं और दूसरों के अनुभवों को अपना बताकर पेश करते हैं। अगर वे कोई ऐसी चीज नहीं समझते जिसे दूसरे लोग समझते हैं, तो वे दावा करते हैं कि वे समझते हैं। अगर उनके पास ऐसे अनुभव, समझ और प्रबुद्धता नहीं होती, तो वे जोर देते हैं कि उनके पास वे हैं। अगर परमेश्वर ने उन्हें अनुशासित नहीं किया होता, तो भी वे जोर देते हैं कि उसने उन्हें अनुशासित किया है। इस मामले में भी वे झूठ बोल सकते हैं और जालसाजी कर सकते हैं, इसके परिणाम कितने गंभीर होंगे, इसकी न तो उन्हें चिंता है, न इसमें उन्हें दिलचस्पी है। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? इतना ही नहीं, इस तरह के लोग किसी को भी धोखा दे देंगे। कुछ लोग सोच सकते हैं, “जो भी हो, मसीह-विरोधी फिर भी इंसान हैं : क्या वे अपने सबसे करीबी लोगों, अपनी मदद करने वालों या अपनी मुश्किलें बाँटने वालों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे? क्या वे परिवार के सदस्यों को धोखा देने से परहेज नहीं करेंगे?” वे आदतन झूठ बोलते हैं, यह कहने का मतलब यह है कि वे किसी को भी धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि अपने माता-पिता, बच्चों और निश्चित रूप से अपने भाई-बहनों को भी। बड़े और छोटे दोनों मामलों में वे लोगों को धोखा दे सकते हैं, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ उन्हें सच बोलना चाहिए, जहाँ सच बोलने का कोई परिणाम नहीं होगा या उन पर किसी भी तरह से असर नहीं पड़ेगा, और जहाँ बुद्धि का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है। वे ऐसे छोटे-छोटे मामले सुलझाने के लिए भी लोगों को धोखा देते हैं और झूठ का इस्तेमाल करते हैं, जहाँ बाहरी लोगों को झूठ बोलना जरूरी नहीं लगता, जहाँ उनके लिए सीधे-सीधे सच बोलना आसान होता है, बिल्कुल भी परेशानी नहीं होती। क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? आदतन झूठ बोलने को दानवों और शैतान की मुख्य अभिव्यक्तियों में से एक कहा जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य से क्या हम यह नहीं कह सकते कि मसीह-विरोधियों की मानवता न सिर्फ बेईमान होती है, बल्कि आदतन झूठ बोलने से भी पहचानी जाती है, जो उसे गैर-भरोसेमंद बनाता है? (हाँ, हम कह सकते हैं।) अगर ऐसे व्यक्ति कोई गलत काम करते हैं, फिर भाई-बहनों द्वारा काट-छाँट और आलोचना किए जाने के बाद आँसू बहाते हैं, सतही तौर पर परमेश्वर के ऋणी होने का दावा करते हैं और भविष्य में पश्चात्ताप करने का वादा करते हैं, तो क्या तुम उन पर विश्वास करने की हिम्मत करोगे? (नहीं।) क्यों नहीं? सबसे अकाट्य सबूत यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं! भले ही वे बाहरी तौर पर पश्चात्ताप करें, फूट-फूटकर रोएँ, अपनी छाती पीटें और कसम खाएँ, उन पर विश्वास मत करना, क्योंकि वे मगरमच्छ के आँसू बहा रहे होते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए आँसू बहा रहे होते हैं। वे जो दुख और पश्चात्ताप भरे शब्द बोलते हैं, वे दिल से नहीं निकलते; वे कपटी तरीकों से लोगों का विश्वास जीतने के लिए सोची गई तिकड़मी चालें होती हैं। लोगों के सामने वे फूट-फूटकर रोते हैं, भूल स्वीकारते हैं, कसम खाते हैं, और अपनी स्थिति जाहिर करते हैं। लेकिन जिनके निजी तौर पर उनके साथ अच्छे संबंध होते हैं, जिन पर वे अपेक्षाकृत भरोसा करते हैं, वे एक अलग ही कहानी बताते हैं। सार्वजनिक रूप से भूल स्वीकारना और अपने तौर-तरीके बदलने की कसम खाना ऊपर से तो वास्तविक लग सकता है, लेकिन पर्दे के पीछे वे जो कहते हैं, वह साबित करता है कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह सच नहीं था, बल्कि झूठ था, जिसे ज्यादा लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए कहा गया था। पर्दे के पीछे वे क्या कहेंगे? क्या वे स्वीकारेंगे कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह झूठ था? नहीं, वे नहीं स्वीकारेंगे। वे नकारात्मकता फैलाएँगे, तर्क पेश करेंगे और खुद को सही ठहराएँगे। यह खुद को सही ठहराना और तर्क-वितर्क करना इस बात की पुष्टि करता है कि उनकी स्वीकारोक्तियाँ, पश्चात्ताप और कसमें सब झूठी थीं, जिनका उद्देश्य लोगों को धोखा देना था। क्या ऐसे व्यक्तियों पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? यहाँ तक कि वे स्वीकारोक्तियाँ भी गढ़ सकते हैं, झूठे आँसू बहाकर अपने तरीके बदलने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं, यहाँ तक कि उनकी कसम भी झूठ होती है। क्या यह राक्षसी प्रकृति नहीं है? अगर वे यही कहें, “मैं सिर्फ इतना ही समझता हूँ; बाकी मैं नहीं जानता, और धीरे-धीरे समझ हासिल करने के लिए मैं परमेश्वर की प्रबुद्धता खोजता हूँ और भाई-बहनों की मदद की आशा करता हूँ,” तो यह एक ईमानदार रवैया और कथन होगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे सच्चे शब्द बिल्कुल नहीं बोल सकते। उन्हें लगता है कि, “सच बोलने से लोग मेरा अपमान करेंगे : मैं अपना सम्मान खो दूँगा और अपमानित महसूस करूँगा—क्या मेरी प्रतिष्ठा पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाएगी? मैं कौन हूँ? क्या मैं हार मान सकता हूँ? अगर मैं समझ नहीं पाता, तो भी मुझे बहुत अच्छी तरह से समझने का दिखावा करना चाहिए; मुझे लोगों को धोखा देकर पहले उनके दिलों में अपनी स्थिति मजबूत करनी चाहिए।” क्या यह मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस स्रोत और तरीके से मसीह-विरोधी बोलते हैं, साथ ही जो शब्द वे बोलते हैं, उससे यह स्पष्ट है कि ऐसे लोग कभी ईमानदार नहीं होंगे; यह उनके बस की बात नहीं है। चूँकि आदतन झूठ बोलना उनके चरित्र में निहित है, इसलिए वे लोगों को धोखा देना चाहते हैं और हर चीज में मामले छिपाना चाहते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई सही तथ्यों या वास्तविक स्थिति को जाने या देखे। उनका अंतरतम अस्तित्व बहुत अंधकारमय होता है। मसीह-विरोधियों के चरित्र के इस पहलू को विश्वसनीय रूप से मानवता की कमी और राक्षसी प्रकृति होने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। झूठ उनकी जुबान से बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलता है, इस हद तक कि नींद में बोलने पर भी वे कोई बात सच नहीं बोलते—वह सब छल होता है, झूठ होता है। यह आदतन झूठ बोलना है।
मसीह-विरोधियों के चरित्र में ईमानदारी नहीं होती। यहाँ तक कि जब वे बोल नहीं रहे होते, तब भी वे अपने दिल में यही सोच रहे होते हैं कि लोगों को कैसे धोखा दें, उनकी आँखों में कैसे धूल झोंकें और उन्हें कैसे गुमराह करें—किसे गुमराह करें, जब वे उसे गुमराह करना चाहें तब क्या कहें, बातचीत शुरू करने के लिए कौन-से तरीके इस्तेमाल करें और लोगों को विश्वास दिलाने के लिए कौन-से उदाहरण इस्तेमाल करें। वे चाहे जो भी कहें या सोचें, उनके दिल में ईमानदार रवैया, ईमानदार राय या ईमानदार विचार नहीं होते। उनके जीवन का हर पल, हर सेकंड लोगों को धोखा देने और उनके साथ खिलवाड़ करने की चाहत में ही व्यतीत होता है। हर सेकंड और पल वे इसी बारे में सोचते रहते हैं कि दूसरों को कैसे धोखा दिया जाए, कैसे उन्हें गुमराह किया जाए और कैसे उनकी आँखों में धूल झोंकी जाए, ये विचार उनके पूरे दिलो-दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं। क्या यह उनकी प्रकृति नहीं है? क्या इस तरह के लोग उपदेश सुनकर या परमेश्वर के वचन पढ़कर सत्य समझ सकते हैं? अगर वे समझ भी लें, तो भी क्या वे उसे अभ्यास में ला सकते हैं? (नहीं।) उनके अंतरतम हृदयों और चरित्र से आँकते हुए, ऐसे व्यक्ति निश्चित रूप से उद्धार प्राप्त नहीं करते, क्योंकि अपने मन और आंतरिक दुनिया में वे जिससे भी प्रेम करते हैं और जिसके बारे में भी सोचते हैं, उन सब में राक्षसी प्रकृति समाई होती है, जो सत्य और सकारात्मक चीजों के विरुद्ध होता है, जिसका एक भी हिस्सा सराहनीय नहीं होता। तो, क्या मसीह-विरोधियों की मानवता में आदतन झूठ बोलने का लक्षण निश्चित है? (बिल्कुल।) जो लोग आदतन झूठ बोलते हैं, वे किसी सत्य का अभ्यास नहीं करते। इसके क्या परिणाम होते हैं? जो व्यक्ति किसी सत्य का अभ्यास नहीं करता, उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं? क्या वह लापरवाही से काम कर सकता है? क्या वह स्वेच्छाचारी और खुद में एक कानून हो सकता है? क्या वह स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकता है? क्या वह चढ़ावे बरबाद कर सकता है? क्या वह लोगों को गुमराह कर सकता है? क्या वह लोगों के दिल जीत सकता है? वह ये सब कर सकता है। वह ठेठ मसीह-विरोधी है—वह आदतन झूठ बोलता है। जब तथ्य उजागर होते हैं, तो चाहे जितनी भी जोड़ी आँखें उसे देख रही हों, चाहे जितने भी लोग सामूहिक रूप से उसकी गवाही देकर उसे उजागर करें, वह इसे स्वीकारने से मना कर देता है। अंत में, वह तुमसे निपटने के लिए एक रणनीति का सहारा लेते हुए यह दावा करता है कि वह भूल गया है और अनभिज्ञता का ढोंग करता है। इस बिंदु पर, इस स्थिति में, वह एक भी सच्चा शब्द नहीं बोल सकता, न ही वह यह कहते हुए हामी में सिर हिलाते हुए इसे स्वीकार सकता है, “वह मैं ही था, मैं गलत था, मैं अगली बार बदल जाऊँगा, और निश्चित रूप से फिर से वही गलती नहीं करूँगा।” यह एक मसीह-विरोधी है, जो कभी अपराध स्वीकार नहीं करता, कभी किसी भी समय एक सच्चा शब्द नहीं बोलता। क्या ऐसी मानवता वाले लोग बचाए जा सकते हैं? क्या वे सत्य प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। अगर वे सत्य समझते भी हों, तो भी उसे प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि वे सत्य को नकारते, उसका प्रतिरोध और विरोध करते हैं। ईमानदारी से बोलने और अपनी गलतियाँ स्वीकारने के सबसे बुनियादी स्तर पर वे इस सबसे सरल सत्य का अभ्यास तक नहीं कर सकते या इसे अमल में नहीं ला सकते। उनसे अपनी हैसियत छोड़ने, अपनी संभावनाएँ और नियति छोड़ने और अपने इरादे छोड़ने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? क्या वे उन्हें छोड़कर उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं? वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकते। अगर वे एक सच्ची बात तक नहीं कह सकते, तो उनसे इससे ज्यादा कठिन काम करने की उम्मीद करना और भी ज्यादा अयथार्थपरक है।
क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं, जो आदतन झूठ बोलते हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “मेरा अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति से सामना नहीं हुआ है जो आदतन झूठ बोलता हो, लेकिन मुझे लगता है कि मैं खुद ऐसा हो सकता हूँ।” मैं तुम्हें सच बता दूँ; तुम एक खतरनाक स्थिति में हो। क्या आदतन झूठ बोलने वाले लोगों में मानवता का कोई अंश बचा रहता है? क्या वे राक्षसों से अलग होते हैं? क्या तुम लोगों में से कोई आदतन झूठ बोलता है? मान लो, चाहे जो भी परिवेश या पृष्ठभूमि हो, चाहे कुछ भी हो जाए, झूठ बोलना किसी व्यक्ति के लिए बहुत सहज है, झूठ बोलते हुए उसका चेहरा लाल नहीं होता या उसका दिल तेजी से नहीं धड़कता, और वह झूठ से सब-कुछ सँभाल सकता और हल कर सकता है। आचरण करते हुए और दुनिया से निपटते हुए, और जीवन के हर पहलू में, अगर बोलने का अवसर मिलता है, तो वह जो कुछ भी कहता है वह झूठ होता है, उसका एक भी वाक्य सच नहीं होता। इन सबमें इरादे और उद्देश्य होते हैं और शैतान की साजिशें भी इनमें शामिल होती हैं। यह कोई ईमानदार व्यक्ति नहीं है। किसी भी स्थिति में, यहाँ तक कि जब व्यक्ति के सिर पर तलवार लटक रही हो तब भी, झूठ बोलने में सक्षम होना—क्या यह व्यक्ति आशा से परे नहीं है? मसीह-विरोधियों में आदतन झूठ बोलने की विभिन्न अभिव्यक्तियों से आँके तो, उनके झूठ बहुत ज्यादा हैं। उनके भाषण का उद्देश्य लोगों को धोखा देना, उन्हें गुमराह करना और उनकी आँखों में धूल झोंकना है। उनके तमाम शब्द शैतान की योजनाओं और इरादों से भरे होते हैं, जिनमें सामान्य मानवता से संबंधित ईमानदारी की कोई अभिव्यक्ति नहीं होती। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों में उस ईमानदारी के लक्षण का पूरी तरह से अभाव होता है, जो सामान्य मानवता का एक हिस्सा है। जिन लोगों में ईमानदारी नहीं होती और जो आदतन झूठ बोलने में सक्षम होते हैं, उन्हें राक्षसी प्रकृति वाले लोगों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है—वे राक्षस हैं। ऐसे लोगों को आसानी से बचाया नहीं जा सकता, क्योंकि वे सत्य नहीं स्वीकारते और उसे स्वीकारना उन्हें चुनौतीपूर्ण लगता है।
ख. कपट और निर्दयता
आदतन झूठ बोलने के अलावा मसीह-विरोधियों में और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? हमने अभी-अभी सामान्य मानवता में दयालुता और ईमानदारी के आवश्यक गुणों के बारे में संगति की, और यह बिल्कुल स्पष्ट है कि मसीह-विरोधियों में इन गुणों का पूरी तरह से अभाव होता है। सामान्य मानवता में जो कुछ भी निहित होता है, वह मसीह-विरोधियों में निश्चित रूप से अनुपस्थित रहता है; उनमें सिर्फ सामान्य मानवता की विपरीत चीजें, नकारात्मक चीजें होती हैं। तो, दयालुता और ईमानदारी के विपरीत क्या है? (कपट और निर्दयता।) बिल्कुल, तुमने बहुत सही कहा है—वह कपट और निर्दयता ही है। मसीह-विरोधियों में दयालुता और ईमानदारी जैसे लक्षणों का अभाव होता है, और इसके बजाय, उनमें दयालुता और ईमानदारी के विपरीत कपटी और निर्दयी होने के तत्त्व होते हैं। क्या कपटी और निर्दयी होने और उस आदतन झूठ बोलने के बीच कोई संबंध है, जिसके बारे में हमने पहले चर्चा की थी? (हाँ, है।) उनके बीच एक निश्चित संबंध है। मसीह-विरोधी अपना कपट और निर्दयता कैसे अभिव्यक्त करते हैं? (झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने की अपनी क्षमता में।) झूठ गढ़ने और दूसरों को फँसाने में आदतन झूठ बोलना और कपटी और निर्दयी होना दोनों शामिल हैं; ये दोनों लक्षण आपस में घनिष्ठता से जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे कोई दुष्कर्म करते हैं और जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते, तो वे एक मायावी रूप रचते हैं, झूठ बोलते हैं और लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि यह किसी और का काम था, उनका नहीं। वे दोष किसी और पर मढ़ देते हैं, जिससे परिणाम उसे भुगतने पड़ते हैं। यह न सिर्फ दुष्टतापूर्ण और घिनौना है, बल्कि उससे भी ज्यादा कपटपूर्ण और निर्दयी है। मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (वे लोगों को सता सकते हैं, उन पर हमला कर सकते हैं और उनसे बदला ले सकते हैं।) लोगों को सताने में सक्षम होना निर्दयी होना है। जो कोई उनकी हैसियत, प्रतिष्ठा या ख्याति के लिए खतरा पैदा करता है, या जो कोई उनके प्रतिकूल होता है, वे उस पर हमला कर उससे बदला लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देंगे। कभी-कभी वे लोगों को नुकसान पहुँचाने के लिए दूसरों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं—यह कपट और निर्दयता है। संक्षेप में, “कपटी और निर्दयी” वाक्यांश यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होते हैं। जिस तरह से वे लोगों के साथ व्यवहार और बातचीत करते हैं, वह जमीर पर आधारित नहीं होता, और वे उनके साथ समान स्तर पर सद्भाव में नहीं रहते हैं; इसके बजाय, वे अपने उपयोग के लिए हर मोड़ पर दूसरों का शोषण और नियंत्रण कर उन्हें प्रभावित करना चाहते हैं। दूसरों के साथ बातचीत करने का उनका तरीका सामान्य या सीधा नहीं होता; इसके बजाय, वे लोगों को गुमराह करने, उनका शोषण करने और उनकी जानकारी के बिना सूक्ष्म रूप से उनका अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने के लिए निश्चित साधनों और तरीकों का उपयोग करते हैं। दूसरों से पेश आते समय, चाहे उनका व्यवहार सतह पर अच्छा प्रतीत हो या बुरा, इसमें कोई ईमानदारी तो बिल्कुल नहीं होती। वे उन लोगों के करीब जाते हैं जिन्हें वे उपयोगी पाते हैं और उन लोगों से खुद को दूर रखते हैं जिन्हें वे बेकार समझते हैं और उन पर कोई ध्यान नहीं देते। यहाँ तक कि अपेक्षाकृत भोले या कमजोर व्यक्तियों को भी गुमराह करने और फँसाने के लिए वे विभिन्न साधनों और तरीकों का उपयोग करने के उपाय सोचते हैं, जिससे वे उनके लिए उपयोगी बन जाते हैं। लेकिन जब लोग कमजोर होते हैं, कठिनाई में होते हैं या उन्हें मदद की जरूरत होती है, तो मसीह-विरोधी बस आँखें मूँद लेते हैं और उनके प्रति उदासीन हो जाते हैं। वे कभी ऐसे लोगों के प्रति प्रेम नहीं दिखाते या उन्हें मदद की पेशकश नहीं करते; इसके विपरीत, वे उन्हें धौंस देने, गुमराह करने, यहाँ तक कि उनका और भी ज्यादा शोषण करने के तरीके सोचने लगते हैं। अगर वे उनका शोषण करने में असमर्थ रहते हैं, तो वे उन्हें तिलांजलि दे देते हैं और उनके प्रति कोई प्रेम या सहानुभूति नहीं दिखाते—क्या इसमें दया का कोई निशान है? क्या यह दुर्भावना की अभिव्यक्ति नहीं है? जिस पद्धति और फलसफे के साथ मसीह-विरोधी लोगों के साथ बातचीत करते हैं, वह लोगों का शोषण करने और उन्हें धोखा देने के लिए साजिशों और रणनीतियों का उपयोग करना है, जिससे लोग उन्हें समझने में असमर्थ हो जाते हैं, फिर भी उनके लिए कठिन परिश्रम करने को तैयार रहते हैं और हमेशा उनके इशारे पर काम करते हैं। जो उन्हें पहचान जाते हैं और अब उनसे और शोषित नहीं होते, उन लोगों को वे धमका और सता सकते हैं। यहाँ तक कि वे यूँ ही उन लोगों को दोषी भी ठहरा सकते हैं, जिससे भाई-बहन उन्हें छोड़ देते हैं, और फिर वे उन लोगों को निकाल या हटा देते हैं। संक्षेप में, मसीह-विरोधी कपटी और निर्दयी होते हैं, उनमें दया और ईमानदारी बिल्कुल नहीं होती। वे कभी दूसरों की वास्तविक रूप से मदद नहीं करते, जब दूसरे मुश्किलों का सामना करते हैं तो वे कोई सहानुभूति या प्रेम नहीं दिखाते। अपने मेलजोल में वे अपने फायदे और लाभ के लिए षड्यंत्र करते हैं। कठिनाई में चाहे जो भी उनके पास आए या उनकी मदद माँगे, वे हमेशा उस व्यक्ति के बारे में हिसाब-किताब लगाते रहते हैं और अपने दिल में सोचते हैं : “अगर मैं इस व्यक्ति की मदद करता हूँ, तो भविष्य में मुझे इससे क्या लाभ मिल सकता है? क्या यह मेरी मदद कर सकता है? क्या यह मेरे काम आ सकता है? मैं इससे क्या हासिल कर सकता हूँ?” क्या हमेशा इन मामलों के बारे में सोचना उनका स्वार्थी और नीच होना नहीं है? (बिल्कुल है।) कलीसिया के चुनावों में, मसीह-विरोधी कौन-से तरीके अपनाएँगे? (वे दूसरों को नीचा दिखाएँगे और खुद को ऊँचा उठाएँगे, और अपने से बेहतर लोगों को नीचे गिराएँगे।) दूसरों को नीचा दिखाना और खुद को ऊँचा उठाना भी कपटी और निर्दयी होना है। मसीह-विरोधी सम्मान पाने और वोट हासिल करने के लिए लोगों को अपने साथ मिलाकर अपने योगदानों के बारे में शेखी बघारने के लिए उन पर छोटे-मोटे उपकार भी कर सकते हैं। और क्या? (वे उम्मीदवारों का निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रूप से मूल्यांकन नहीं कर सकते; वे उसमें अपना पक्षपात और पूर्वाग्रह शामिल करेंगे।) इसमें दूसरों को बदनाम करने के लिए झूठ गढ़ना शामिल है। मसीह-विरोधियों के कपटी और निर्दयी होने की कई विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में पहले संगति की जा चुकी है। कपटी का अर्थ है ढेर सारे षड्यंत्र रचना और आचरण करने, दुनिया से निपटने और कुछ भी करने के उनका सिद्धांत है रणनीति पर निर्भर रहना—ईमानदारी से रहित, झूठ और चालाकी के साथ। निर्दयता मुख्य रूप से उनके कार्य करने के तरीकों में निर्दयता और क्रूरता से संबंधित है, वे कोई दया नहीं दिखाते, उनमें इंसानी भावना की कमी होती है, वे दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं और किसी को भी चोट पहुँचाने की कीमत पर अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए तैयार रहते हैं—यह निर्दयता है, और यह इंसानी दयालुता के सीधे विपरीत है। अगर व्यक्ति की मानवता में दयालुता होती है, तो साधारण मामलों से सामना होने पर वह जहाँ संभव होगा वहाँ दूसरों के प्रति उदार होगा और लोगों को क्षमा कर देगा। ऐसा व्यक्ति दूसरे लोगों की समस्याओं और दोषों के प्रति सहिष्णु होता है, मीनमेख नहीं निकालता, और जब भी संभव हो काम चला लेता है। इसके अतिरिक्त, वह दयालु होता है और जब भी दूसरों को कठिनाइयों से गुजरते देखता है, तो मदद करने के लिए तैयार रहता है, दूसरों की मदद करने में आनंद पाता है और दूसरों की शिक्षा को व्यक्तिगत जिम्मेदारी मानता है—यह दयालुता है। क्या मसीह-विरोधियों में यह लक्षण होता है? (नहीं।) वे मानते हैं, “अगर तुम कठिनाई में हो और मैं तुम्हारी मदद करता हूँ, तो तुम्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। अगर मैं तुम्हें लाभ देता हूँ, तो मुझे इससे क्या मिलेगा? अगर मैं तुम्हारे साथ सहानुभूति रखूँ, तो मेरे साथ कौन सहानुभूति रखेगा? अगर मैं तुम्हारी मदद करूँ, तो क्या तुम मेरी अच्छाई याद रखोगे? अगर तुम मुझसे यह कह रहे हो कि मैं तुम्हारी मदद करने के लिए खुद को बलिदान कर दूँ, तो तुम सपना देख रहे हो! हमारे बीच क्या रिश्ता है? तुम मुझे क्या लाभ दे सकते हो? क्या तुमने पहले कभी मेरी मदद की है? तुम कौन हो? क्या तुम मदद करने लायक हो? अगर तुम राजा की बेटी या किसी अमीर आदमी के बेटे होते, तो शायद तुम्हारी मदद करने से मुझे कुछ यश या लाभ मिलता। लेकिन तुम उनमें से कुछ नहीं हो। मैं तुम्हारी मदद क्यों करूँ? तुम्हारी मदद करने से मुझे क्या लाभ है?” किसी को कठिनाई में देखकर, किसी को कमजोर या मदद की जरूरत में देखकर वे ऐसा ही सोचते हैं। क्या यह दयालुता है? जब ये लोग किसी को कमजोर अवस्था में देखते हैं, तो न सिर्फ उसका मजाक उड़ाते और उपहास करते हैं, बल्कि अपने दिल में हिसाब-किताब भी लगाते रहते हैं। कुछ लोग तो इसे खुद को आकर्षक रूप में प्रदर्शित करने या उस व्यक्ति का दिल जीतने के अवसर के रूप में भी देखते हैं। इनमें से कुछ भी दयालुता नहीं है। मसीह-विरोधी अक्सर खुद को आकर्षक रूप में प्रदर्शित करने के लिए ऐसे मौकों का लाभ उठाते हैं। वे तब तक काम नहीं करेंगे जब तक कि उसमें लाभ शामिल न हो, जब तक उनका कोई उद्देश्य और प्रेरणा न हो। अगर वे किसी की मदद करते हैं, तो वे उसे अपना सहयोगी बनाना चाहते हैं। अगर वे दो लोगों की मदद करते हैं और उनके साथ सहानुभूति रखते हैं, तो वे सहयोगियों का जोड़ा पाना चाहते हैं, दो विश्वस्त व्यक्ति पाना चाहते हैं। वरना वे एक उँगली भी नहीं उठाएँगे और निश्चित रूप से उन लोगों के प्रति प्रेम नहीं दिखाएँगे, जिन्हें मदद की जरूरत है।
मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की प्राथमिक अभिव्यक्ति यह है कि वे जो कुछ भी करते हैं, उसका एक खास तौर से स्पष्ट उद्देश्य होता है। सबसे पहले वे अपने हितों के बारे में सोचते हैं; और उनके तरीके घृणित, असभ्य, घटिया, नीच और संदिग्ध होते हैं। जिस तरह से वे काम करते हैं और जिस तरह से और जिन सिद्धांतों के अनुसार वे लोगों से व्यवहार करते हैं, उनमें कोई ईमानदारी नहीं होती। जिस तरह से वे लोगों से व्यवहार करते हैं, वह उनका फायदा उठाना और उनके साथ खिलवाड़ करना है, और जब लोग उनके लिए लाभदायक मूल्य के नहीं रह जाते, तो वे उन्हें फेंक देते हैं। अगर तुम उनके लिए लाभदायक मूल्य रखते हो, तो वे तुम्हारी परवाह करने का दिखावा करते हैं : “क्या हाल है? कोई कठिनाई तो नहीं हो रही? मैं तुम्हारी कठिनाइयाँ हल करने में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। अगर तुम्हें कोई समस्या है, तो मुझे बताओ। मैं तुम्हारे लिए हाजिर हूँ। हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमारे बीच इतना अच्छा रिश्ता है!” वे बहुत ध्यान देने वाले लगते हैं। फिर भी अगर ऐसा दिन आ जाए जब उनके लिए तुम्हारा कोई लाभदायक मूल्य न रहे, तो वे तुम्हें छोड़ देंगे, वे तुम्हें एक तरफ फेंक देंगे और तुम्हें अनदेखा कर देंगे, मानो वे तुमसे पहले कभी मिले तक न हों। जब तुम वास्तव में किसी समस्या में होते हो और मदद के लिए उनका मुँह जोहते हो, तो अचानक उनका रवैया बदल जाता है, उनके शब्द अब उतने अच्छे नहीं रहते जितने तब होते थे जब उन्होंने पहली बार तुम्हारी मदद करने का वादा किया था—और ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनके लिए तुम्हारा कोई उपयोगी मूल्य नहीं रहता। नतीजतन, वे तुम पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। और इतना ही नहीं : अगर उन्हें पता चलता है कि तुमने कुछ गलत किया है या उन्हें कुछ ऐसा मिल जाता है जिसका वे लाभ उठा सकते हैं, तो वे रुखाई से तुम्हारे दोष निकालने लगते हैं, यहाँ तक कि तुम्हारी निंदा भी कर सकते हैं। तुम इस तरीके के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह दयालुता और ईमानदारी की अभिव्यक्ति है? जब मसीह-विरोधी दूसरों के प्रति अपने व्यवहार में ऐसा कपट और निर्दयता प्रकट करते हैं, तो क्या इसमें मानवता का कोई निशान शामिल रहता है? क्या उनमें लोगों के प्रति थोड़ी-सी भी ईमानदारी होती है? बिल्कुल नहीं। जो कुछ भी वे करते हैं, अपने लाभ, गौरव और प्रतिष्ठा के लिए करते हैं, दूसरों के बीच खुद को हैसियत और प्रसिद्धि दिलाने के लिए करते हैं। जिस किसी से भी वे मिलते हैं, अगर वे उसका फायदा उठा सकते हैं तो जरूर उठाएँगे। जिनसे वे फायदा नहीं उठा सकते, उनका तिरस्कार करते हैं और उन पर ध्यान नहीं देते; यहाँ तक कि अगर तुम उनसे संपर्क करने का बीड़ा भी उठाते हो, तो भी वे तुम्हें अनदेखा करते हैं और तुम्हारी ओर देखते तक नहीं। लेकिन अगर कोई ऐसा दिन आता है, जब उन्हें तुम्हारी जरूरत होती है, तो तुम्हारे प्रति उनका रवैया अचानक बदल जाता है और वे बहुत ही ध्यान रखने वाले और मिलनसार हो जाते हैं, जिससे तुम हैरान रह जाते हो। तुम्हारे प्रति उनका रवैया क्यों बदल गया है? (क्योंकि अब तुम उनके लिए लाभदायक मूल्य के हो।) यह सही है : जब वे देखते हैं कि तुम्हारा लाभदायक मूल्य है, तो उनका रवैया बदल जाता है। क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं? जब ये लोग दूसरों से मिलते-जुलते हैं, तो यह आसानी से पता नहीं चलता कि वे कोई स्पष्ट रूप से बुरा काम कर रहे हैं। उनकी दैनिक अभिव्यक्तियों, भाषण और व्यवहार से भी कोई स्पष्ट समस्या नहीं दिखती। लेकिन अगर तुम ध्यान से देखो कि वे लोगों के साथ कैसे मिलते-जुलते हैं, खास तौर पर वे अपने सबसे करीबी और सबसे प्रिय लोगों के साथ कैसे मिलते-जुलते हैं, अगर तुम देखो कि वे दूसरों का कैसे शोषण करते हैं और बाद में उनके साथ कैसे व्यवहार करते हैं, तो इससे तुम मसीह-विरोधियों के दूसरों के साथ मेलजोल में उनके इरादे, रवैये और तरीके देख सकते हो। वे सब सिर्फ निजी लाभ खोजते हैं, शैतान के फलसफे के अनुसार जीते हैं और किसी भी सामान्य मानवता से रहित होते हैं।
मसीह-विरोधियों की मानवता में कपट और निर्दयता जैसे लक्षण होते हैं। क्या वे उन लोगों के साथ मिलजुलकर रह सकते हैं, जो लोगों और चीजों के साथ अपने व्यवहार में ईमानदार, दयालु और सच्चे होते हैं? क्या वे ऐसे लोगों के करीब आने के इच्छुक होते हैं? (नहीं, वे इसके इच्छुक नहीं होते।) वे इन लोगों को कैसे देखते हैं? वे कहते हैं, “ये तमाम लोग बड़े मूर्ख हैं और ये कुछ ज्यादा ही सीधा-सीधा बोलते हैं। तुम्हें बोलने से पहले सावधानी से सोचना चाहिए—तुम इतनी सच्चाई से क्यों बोलते हो? तुम्हारी बोलचाल हमेशा इतनी स्पष्ट क्यों होती है?” ये लोग मसीह-विरोधियों के लिए दयनीय रूप से मूर्ख होते हैं और मसीह-विरोधी इन्हें हीन समझते हैं। जब ये लोग किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो दयालु है और लोगों के साथ ईमानदारी से पेश आता है, तो ये लोग उस समय वास्तव में उस व्यक्ति की मदद करते हैं, जब वह कठिनाइयों का अनुभव करता है और उसे मदद की जरूरत होती है, और ये लोग उस व्यक्ति की भलाई की आशा करते हैं और उसे लाभ, सहायता और शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं—मसीह-विरोधी इन लोगों को मूर्ख और मूढ़ समझते हैं। मसीह-विरोधी यह नहीं मानते कि मानवता के ये सकारात्मक तत्त्व अच्छी या सुंदर चीजें हैं, जो लोगों में होनी चाहिए। इसके बजाय, अपने दिलों में वे सामान्य मानवता के लिए आवश्यक इन गुणों के प्रति घृणा, विकर्षण और तिरस्कार महसूस करते हैं। वे ईमानदार लोगों को मूर्ख कहते हैं; वे दयालु लोगों को भी मूर्ख ही कहते हैं, और ईमानदार लोगों को तो और भी ज्यादा मूर्ख कहते हैं। जो लोग सापेक्ष ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं और जो सापेक्ष ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, जिनका दिल दयालु होता है और जो कभी दूसरों को चोट या नुकसान नहीं पहुँचाते, जो दूसरों से प्रेम करते हैं और उनके प्रति सहानुभूति रखते हैं, जो दूसरों की मदद करने के लिए अपने लाभ त्याग सकते हैं और अपनी कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं, जो कमजोर और मदद की जरूरत महसूस करने वाले लोगों को देखकर दायित्वपूर्ण और जिम्मेदार महसूस करते हैं—मसीह-विरोधी उन लोगों का अपने दिल की गहराई में और भी ज्यादा तिरस्कार करते हैं। उन लोगों के संबंध में, जो परमेश्वर में अपने विश्वास में अपेक्षाकृत ईमानदार हैं, जिनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, जो सभी चीजों में परमेश्वर की जाँच स्वीकारते हैं, जो अपने कर्तव्य ईमानदारी, निष्ठा और जिम्मेदारी के साथ निभाने में सक्षम हैं, और जो अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से लेते हैं—मसीह-विरोधी अपने दिलों की गहराई में ऐसे व्यक्तियों से घृणा और उनका तिरस्कार करते हैं, उनसे स्पष्ट रूप से बचते हैं और बाहरी तौर पर उनसे दूर रहते हैं। मसीह-विरोधियों की नजर में ये तमाम सकारात्मक तत्त्व, जो सामान्य मानवता के लिए आवश्यक हैं, कोई सकारात्मक चीजें नहीं हैं : वे प्रशंसा करने या बढ़ावा देने योग्य नहीं हैं। इसके बजाय, मसीह-विरोधी मानते हैं कि उनकी साजिशें, रणनीतियाँ, लोगों से निपटने के आंतरिक तरीके और क्रूरता सराहनीय हैं। चाहे वे कुछ भी करें, हर समय वे अपने मन में अपने तरीकों और साजिशों पर विचार और उनका परिष्कार कर रहे होते हैं। मामला जिस भी पैमाने का हो, वे मानते हैं कि इसी तरह से कार्य करना सार्थक और आवश्यक है; वरना इससे उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान और क्षति होगी। मसीह-विरोधियों की मानवता में इन तत्त्वों की मौजूदगी देखते हुए, क्या वे सत्य स्वीकार सकते हैं? क्या वे सत्य का अभ्यास कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। चाहे तुम ईमानदारी, दयालुता और अन्य सकारात्मक चीजों पर कितना भी जोर दो, लोगों में इन पहलुओं का होना और इस सकारात्मक मानवता के अनुसार लोगों के साथ पेश आना, अपने कर्तव्यों के साथ पेश आना और विभिन्न मामलों से निपटना, इन चीजों के प्रति मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में अस्वीकृति, तिरस्कार और शत्रुता रहती है। क्यों? क्योंकि मसीह-विरोधी इन सकारात्मक चीजों से पूरी तरह रहित होते हैं; उनके सार में कपट और निर्दयता का चरित्र होता है, जो दानवी प्रकृति से संबंधित होता है। क्या इस चरित्र और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित ईमानदार, दयालु और निष्कपट होने के बीच कोई दूरी है? इन दोनों के बीच न सिर्फ दूरी है, बल्कि वे एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं—ये दो चरित्र प्रकृति में अलग हैं। क्या मसीह-विरोधियों के कपट और निर्दयता की कोई अभिव्यक्ति और प्रकाशन सामान्य मानवता के अनुरूप है? क्या यह सत्य के अनुरूप है? बिल्कुल नहीं; ये सब शैतान की साजिशें और षडयंत्र हैं। शैतान की साजिशों और षडयंत्रों द्वारा अभिव्यक्त प्रकृति वास्तव में कपट और निर्दयता है, ऐसे तत्त्व जो परमेश्वर द्वारा अपेक्षित सामान्य मानवता में मौजूद नहीं होने चाहिए। कपट और निर्दयता की उन विभिन्न अभिव्यक्तियों के आधार पर, जिनके बारे में संगति की गई है, विचार करो कि क्या तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हैं जिनमें ऐसी मानवता है। ऐसे कपटी और निर्दयी चरित्र वाले मसीह-विरोधी निस्संदेह कार्रवाई करने में सक्षम होंगे। उनके कार्यकलाप दूसरों के लिए दृश्य, श्रव्य और सुगम्य होंगे। अगर वे सुगम्य हैं, तो लोगों को उनके बारे में समझ होनी चाहिए और उन्हें ऐसे व्यक्तियों को पहचानने और समझने में सक्षम होना चाहिए। मसीह-विरोधियों का कपटी और निर्दयी चरित्र एक बहुत ही सामान्य और स्पष्ट अभिव्यक्ति होनी चाहिए। यह कोई छिपा हुआ भाव, सोच या इरादा नहीं है, बल्कि उनकी प्रकाशित मानवता और उनके कार्यकलापों के तरीके, साधन और रणनीतियाँ हैं। लोगों को इस पहलू को समझने में सक्षम होना चाहिए।
ग. गौरव की भावना से रहित और शर्म से बेपरवाह
सामान्य मानवता में सरलता होती है, लेकिन क्या मसीह-विरोधी सरल लोग हैं? जाहिर है, नहीं। जिस कपट, निर्दयता और आदतन झूठ बोलने के बारे में हमने अभी संगति की, वह सरलता के विपरीत है। सरलता को समझना आसान है, इसलिए हम इस पर संगति नहीं करेंगे। आओ, गौरव की भावना होने के बारे में संगति करें। गौरव की भावना होना ऐसी चीज है, जो सामान्य मानवता में मौजूद होनी चाहिए; इसका मतलब है विवेक होना। गौरव की भावना होने का विपरीत शब्द क्या है? (शर्म से बेपरवाह।) शर्म से बेपरवाह होने का मतलब है निर्लज्ज होना। दूसरे शब्दों में, इसे गौरव की भावना के अभाव के रूप में सारांशित किया जा सकता है। मसीह-विरोधी कौन-से कार्य करते हैं और उनकी कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ या अभ्यास यह दिखाते हैं कि उनमें गौरव की भावना का अभाव है और वे शर्म से बेपरवाह हैं? मसीह-विरोधी खुलेआम परमेश्वर से हैसियत के लिए होड़ करते हैं, जिसमें गौरव की भावना का अभाव होता है और जो शर्म से बेपरवाह होता है। सिर्फ मसीह-विरोधी ही परमेश्वर से हैसियत और उसके चुने हुए लोगों के लिए खुलेआम झगड़ सकते हैं। चाहे लोग इच्छुक हों या नहीं, मसीह-विरोधी उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं। चाहे उनमें क्षमता हो नहीं, मसीह-विरोधी हैसियत के लिए प्रयास करना चाहते हैं, और उसे प्राप्त करने के बाद वे कलीसिया पर आश्रित होकर जीते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों से लेकर खाते-पीते हैं, खुद कुछ न करके परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपना भरण-पोषण करने देते हैं। वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बिल्कुल भी जीवन प्रदान नहीं करते और फिर भी उन्हें अपनी शक्ति के अधीन करना चाहते हैं, उन्हें अपनी बात सुनने, अपनी सेवा करने और अपने लिए कठिन परिश्रम करने पर मजबूर करना चाहते हैं, और लोगों के दिलों में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करना चाहते हैं। अगर तुम दूसरों के बारे में अच्छा बोलते हो, अगर तुम परमेश्वर की महान दयालुता, अनुग्रह, आशीषों और सर्वशक्तिमत्ता की प्रशंसा करते हो, तो वे दुखी और अप्रसन्न महसूस करते हैं। वे हमेशा चाहते हैं कि तुम उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें करो, अपने दिल में उनके लिए जगह बनाओ, उनका आदर-सम्मान करो और इसमें कोई मिलावट नहीं होनी चाहिए। तुम जो कुछ भी करो, वह उनके लिए और उन्हें ध्यान में रखते हुए होना चाहिए। तुम्हें उनके विचारों और भावनाओं को ध्यान में रखते हुए हर मोड़ पर, अपनी हर कथनी और करनी में उन्हें सबसे आगे रखना चाहिए। क्या यह गौरव की भावना का अभाव और शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या मसीह-विरोधी इसी तरह से काम नहीं करते? (हाँ, करते हैं।) और क्या अभिव्यक्तियाँ हैं? वे परमेश्वर के चढ़ावे चुराते और बरबाद करते हैं, परमेश्वर के चढ़ावे खुद हड़प लेते हैं। यह भी गौरव की भावना का अभाव और शर्म से बेपरवाह होना है—यह बहुत स्पष्ट है!
चढ़ावों की चोरी की बात करें तो एक खास घटना हुई। कुछ भाई-बहनों ने कुछ चीजों का चढ़ावा दिया, जो एक खास कलीसिया को दे दी गईं और चढ़ावों की सुरक्षा के प्रभारी व्यक्ति ने गौर किया कि दो बोतलों पर यह सूचित करने वाला लेबल नहीं है कि वे ऊपर वाले के लिए हैं और उन पर कोई विशिष्ट निर्देश नहीं हैं। यह न जानते हुए कि वे क्या हैं, इस व्यक्ति ने उन्हें बिना अनुमति के रख लिया और ऊपर वाले को नहीं दिया। बाद में, जब मैंने पूछा कि क्या उसके पास वे चीजें हैं, तो उसने कहा कि उसके पास दो बोतलें हैं। मैंने पूछा कि उसके पास पहले से तैयार बोतलें कहाँ से आईं, तो उसने स्थिति समझाई, “चूँकि इन दो बोतलों पर कोई लेबल नहीं था कि वे क्या हैं या वे ऊपर वाले के लिए हैं, इसलिए हमने उन्हें यहाँ रख लिया। अगर उन पर लेबल लगा होता कि वे हमारे काम की हैं, तो हम उन्हें रखते और इस्तेमाल करते। अगर उन्हें बेचा जा सकता, तो हम उन्हें बेचते।” तुम लोगों को क्या लगता है कि यहाँ क्या समस्या है? कुछ मूल्यवान चीजें विभिन्न स्थानों से यहाँ स्थानांतरित की जाती हैं, कुछ पर निर्देश होते हैं और कई पर निर्देश या लेबल नहीं होते। सामान्य परिस्थितियों में, अगर तुम लोग तर्कसंगत विश्लेषण करो, तो ये चीजें किसे दी जानी चाहिए? (ये चढ़ावे के रूप में परमेश्वर को दी जानी चाहिए।) सामान्य विवेक वाले लोगों को इसी तरह से सोचना चाहिए। लेकिन किसी ने कहा, “इन चीजों पर यह लेबल नहीं लगाया गया है कि वे ऊपर वाले के लिए हैं।” अव्यक्त रूप से, उस व्यक्ति के कहने का यह मतलब था, “वे तुम्हारे लिए नहीं हैं। उनका तुमसे क्या लेना-देना है? चूँकि उन पर तुम्हारे लिए होने का लेबल नहीं लगा है, इसलिए मुझे उन्हें रखने का अधिकार है। मैं उन्हें तुम्हें नहीं दूँगा। अगर मैं उन्हें बेचना चाहूँगा, तो मैं उन्हें बेचूँगा। अगर मैं उनका उपयोग करना चाहूँगा, तो मैं उनका उपयोग करूँगा। अगर मैं उनका उपयोग करना या उन्हें बेचना नहीं चाहूँगा, तो मैं उन्हें वहीं छोड़ दूँगा और बरबाद कर दूँगा!” यह प्रभारी व्यक्ति का दृष्टिकोण था। तुम इस दृष्टिकोण के बारे में क्या सोचते हो? क्या ऐसे लोग हैं जो इन मूल्यवान वस्तुओं को बहुत दूर से कलीसिया में लाते हैं या उन्हें व्यक्तियों को दे देते हैं, बिना यह बताए कि वे किसके लिए हैं? (नहीं।) कलीसिया, परमेश्वर के घर या भाई-बहनों को मूल्यवान वस्तुएँ देने के लिए कौन प्रेम का इतना बड़ा भंडार प्रदर्शित करेगा? आज तक मैंने इतना अधिक प्रेम दिखाने वाला व्यक्ति नहीं देखा, या किसी को ऐसा चढ़ावा या दान देते नहीं देखा। साधारण और सस्ती वस्तुओं के लिए भी तुम्हें दाम चुकाना पड़ता है। तो क्या कोई ऐसा है जो ये मूल्यवान वस्तुएँ यों ही मुफ्त में दे दे? (नहीं।) हालाँकि जिन लोगों ने ये वस्तुएँ भेजी थीं, उन्होंने यह नहीं बताया कि वे किसके लिए हैं, लोगों को पता होना चाहिए कि उन्हें कौन प्राप्त करने वाला है; यह वह विवेक है जो मानवता में मौजूद होना चाहिए। प्रभारी व्यक्ति को इस मामले को कैसे सँभालना चाहिए? उसे इन वस्तुओं को कैसे सँभालना चाहिए चाहिए? कम से कम उसे ऊपर वाले से पूछना चाहिए, “क्या तुम्हें ये वस्तुएँ चाहिए? अगर नहीं, तो हम उन्हें कैसे सँभालें?” बस इन दो सवालों के साथ ही समस्या हल हो सकती थी; ये दो सवाल संकेत दे देते कि व्यक्ति के चरित्र में सामान्य तार्किकता है। लेकिन चढ़ावे की सुरक्षा का प्रभारी व्यक्ति ये दो सरल सवाल भी नहीं पूछ सका, न ही उसके पास वह सबसे आवश्यक तार्किकता थी जो एक व्यक्ति के पास होना चाहिए। उसने कैसे मान लिया कि ये चीजें कलीसिया के लिए हैं? यहाँ तक कि उसने एक कथन और जोड़ा : “उन पर यह लेबल नहीं था कि वे ऊपर वाले के लिए हैं।” क्या यह समस्या नहीं है? “यह लेबल नहीं था कि वे ऊपर वाले के लिए हैं” इसका क्या मतलब है? उसने यह कथन क्यों जोड़ा? (परमेश्वर के चढ़ावों को यों ही बरबाद करने का कारण खोजने के लिए।) बिल्कुल यही बात है। क्या ऐसा करने वाले व्यक्ति की मानवता में वास्तव में गौरव की भावना हो सकती है? स्पष्ट रूप से नहीं। इस चरित्र से रहित व्यक्ति में कैसी मानवता होती है? क्या यह गौरव की भावना का अभाव नहीं है? क्या वह वास्तव में नहीं जानता था कि ये चढ़ावे हैं? वह जानता था कि ये चढ़ावे हैं, लेकिन चूँकि उसकी मानवता में गौरव की भावना का अभाव था, इसलिए वह ऐसे शर्म से बेपरवाह शब्द बोल सकता था, और बाद में वह स्वाभाविक रूप से और यों ही चढ़ावों का आनंद ले सकता था, उन्हें जब्त और बरबाद कर सकता था, उन्हें अपना बता सकता था। सिर्फ मसीह-विरोधी मानवता वाले लोग ही इस तरह की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं।
मसीह-विरोधियों में जमीर और विवेक की कमी होती है; वे और कैसे अभिव्यक्त करते हैं कि उनमें गौरव की भावना नहीं है और वे शर्म से बेपरवाह हैं? जब वे कुछ गलत करते हैं, तो वे पश्चात्ताप महसूस करना नहीं जानते और उनके दिल में कोई अपराध-बोध नहीं होता। वे इस बात पर विचार नहीं करते कि सुधार या पश्चात्ताप कैसे करें, यहाँ तक कि वे यह भी मानते हैं कि उनके कार्य उचित हैं। जब उन्हें काट-छाँट किए जाने या बदले जाने का सामना करना पड़ता है, तो वे महसूस करते हैं कि उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार किया गया है। वे लगातार बहस और कुतर्क करते हैं—यह गौरव की भावना का अभाव है। वे कोई वास्तविक काम नहीं करते; हर मोड़ पर वे दूसरों को भाषण देते हैं और खोखले सिद्धांतों से लोगों को गुमराह करते हैं, जिससे दूसरे सोचते हैं कि वे आध्यात्मिक हैं और सत्य समझते हैं। वे अक्सर इस बात की डींग भी हाँकते हैं कि उन्होंने कितना काम किया है और कितना कष्ट सहा है और कहते हैं कि वे परमेश्वर के अनुग्रह और भाई-बहनों के स्वागत और देखभाल का आनंद लेने के योग्य हैं, और इन सबके कारण कलीसिया पर आश्रित होकर जीते हैं और स्वादिष्ट चीजें खाना-पीना और विशेष व्यवहार का आनंद लेना भी चाहते हैं। यह गौरव की भावना से रहित और शर्म से बेपरवाह होना है। इसके अलावा, स्पष्ट रूप से कमजोर क्षमता होने, सत्य न समझने और अभ्यास के सिद्धांत खोजने में असमर्थ होने के साथ-साथ प्रत्येक काम करने में असमर्थ होने के बावजूद वे हर चीज में सक्षम और अच्छे होने की डींग हाँकते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? स्पष्ट रूप से कुछ न होने के बावजूद वे सब-कुछ जानने का दिखावा करते हैं, ताकि लोग उनका आदर-सम्मान करें। अगर किसी को कोई समस्या है लेकिन वह उनकी सलाह नहीं माँगता, और इसके बजाय दूसरे लोगों से पूछता है, तो वे क्रोधित, ईर्ष्यालु और नाराज हो जाते हैं और उस व्यक्ति को सताने का हर संभव तरीका खोजते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? यह स्पष्ट है कि वे अक्सर झूठ बोलते हैं, उनमें कई भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, लेकिन वे दिखावा करते हैं कि उनमें भ्रष्ट स्वभाव नहीं हैं, परमेश्वर उन पर अनुग्रह करता है और उनसे प्रेम करता है; हर मोड़ पर वे दिखावा करते हैं कि वे कष्ट सहने में बहुत सक्षम हैं, समर्पण कर सकते हैं, सत्य और काट-छाँट स्वीकार सकते हैं, कड़ी मेहनत या आलोचना से नहीं डरते और कभी शिकायत नहीं करते—लेकिन वास्तव में वे आक्रोश से भरे रहते हैं। किसी भी समझ के बारे में संगति करने या किसी भी सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से बात करने में उनकी स्पष्ट अक्षमता के बावजूद और अनुभवजन्य गवाही न होने पर भी वे ढोंग और पाखंड में लिप्त रहते हैं, अपने आत्म-ज्ञान के बारे में खोखली बातें करते हैं ताकि लोग उन्हें बहुत आध्यात्मिक और बहुत ज्यादा समझ रखने वाला समझें। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? उनमें स्पष्ट रूप से कई समस्याएँ और बुरी मानवता होती है, वे बिना किसी निष्ठा के अपना कर्तव्य निभाते हैं और वे जो भी काम करते हैं उसमें सिर्फ अपनी बुद्धि और चतुराई पर भरोसा करते हैं, सत्य बिल्कुल नहीं खोजते, फिर भी वे मानते हैं कि वे दायित्व उठाते हैं, बहुत आध्यात्मिक हैं और उनमें क्षमता है और वे अधिकांश लोगों से श्रेष्ठ हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या ये मसीह-विरोधियों में मानवता न होने की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? क्या वे अक्सर ऐसी चीजें प्रकट नहीं करते? स्पष्ट रूप से, उनमें सत्य-सिद्धांतों की समझ की कमी होती है, और चाहे वे कोई भी काम करें, उन्हें अभ्यास का कोई सिद्धांत नहीं मिल पाता, लेकिन वे खोज या संगति करने से इनकार करते हैं; वे काम करवाने के लिए अपनी चतुराई, अनुभव और बुद्धि पर ही भरोसा करते हैं। यहाँ तक कि वे अगुआ बनना चाहते हैं, दूसरों को निर्देश देना चाहते हैं, और चाहते हैं कि हर व्यक्ति उनकी बात सुने, और जब कोई उनकी बात नहीं सुनता तो वे क्रोधित और पागल हो जाते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? चूँकि उनमें महत्वाकांक्षाएँ, गुण और थोड़ी चतुराई होती है, इसलिए वे परमेश्वर के घर में हमेशा अलग दिखना चाहते हैं, और चाहते हैं कि परमेश्वर का घर उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर रखे और उनका विकास करे। अगर उनका विकास नहीं किया जाता, तो वे परेशान और नाराज हो जाते हैं और शिकायत करते हैं कि परमेश्वर का घर अन्यायी है, वह प्रतिभाशाली लोगों को नहीं पहचान सकता और परमेश्वर के घर में कोई प्रतिभा का अच्छा पारखी नहीं है जो उनकी असाधारण क्षमताओं का पता लगा सके। अगर उनका विकास नहीं किया जाता तो वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते, कठिनाइयाँ नहीं सहना चाहते या कीमत नहीं चुकाना चाहते; इसके बजाय, वे काम से बचने के लिए अपनी चालाकी का इस्तेमाल करना चाहते हैं। अपने दिलों में वे आशा करते हैं कि परमेश्वर के घर में कोई उन्हें सम्मान देगा और उन्हें ऊपर उठाएगा, जिससे वे दूसरों से आगे निकल जाएँ और यहाँ अपनी महान योजनाएँ पूरी कर सकें। क्या ये महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ नहीं हैं? क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? क्या यह मसीह-विरोधियों की सबसे आम अभिव्यक्ति नहीं है? अगर तुममें वास्तव में योग्यताएँ हैं तो तुम्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और परमेश्वर के चुने हुए लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हारा सम्मान करेंगे। अगर तुम्हारे पास कुछ भी सत्य नहीं है और फिर भी तुम हमेशा दूसरों से अलग दिखना चाहते हो, तो यह विवेक का अत्यधिक अभाव है! अगर तुम्हारी भी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ हैं और तुम हमेशा भरसक प्रयास करना चाहते हो, तो तुम्हारा गिरना तय है। समाज में एक निश्चित हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के बाद कुछ लोग अपनी शान बघारना चाहते हैं, अपनी चलाना चाहते हैं और परमेश्वर में विश्वास करने और उसके घर में प्रवेश करने के बाद सभी को अपनी आज्ञाओं पर ध्यान देने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। वे अपनी योग्यताओं और साख का प्रदर्शन करना चाहते हैं, वे सभी को अपने से नीचे मानते हैं और सोचते हैं कि सभी को उनकी शक्ति के अधीन होना चाहिए। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? बिल्कुल है। जब कुछ लोग परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते हुए कुछ परिणाम प्राप्त कर लेते हैं और थोड़े योगदान दे देते हैं, तो वे हमेशा चाहते हैं कि भाई-बहन उनके साथ एल्डरों, उच्च पदस्थ व्यक्तियों और विशेष हस्तियों की तरह बहुत सम्मान से पेश आएँ। वे यह भी चाहते हैं कि लोग उनका सम्मान करें, उनका अनुगमन करें और उनकी बात सुनें। वे कलीसिया में अग्रणी हस्ती बनने की आकांक्षा रखते हैं; वे हर बात में फैसला लेना चाहते हैं, निर्णय देना चाहते हैं और सभी मामलों में अपनी चलाना चाहते हैं। अगर कोई उनका कहा नहीं सुनता या अपनाता, तो वे अपना पद छोड़ना चाहते हैं और बाकी सभी को कमजोर बनाना और उन पर हँसना चाहते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? शर्म से बेपरवाह होने के अलावा वे विशेष रूप से दुर्भावनापूर्ण होते हैं—ये मसीह-विरोधी हैं।
मसीह-विरोधियों के चरित्र में शर्म से बेपरवाह होने की यह अभिव्यक्ति बहुत प्रचलित है। अधिकांश लोग इसे कुछ हद तक प्रदर्शित करते हैं, लेकिन मसीह-विरोधियों में न सिर्फ यह अभिव्यक्ति होती है, बल्कि वे कभी यह नहीं पहचानते कि यह प्रकृति में कितनी गंभीर है, न ही वे पश्चात्ताप करते हैं, न इसे जानने की कोशिश या इसके खिलाफ विद्रोह करते हैं। इसके बजाय, वे इसे स्वाभाविक मानते हैं, जो उनके द्वारा सत्य को स्वीकार करने से इनकार करना है। चाहे उनका व्यवहार कितना भी शर्म से बेपरवाह, विवेकरहित, घिनौना और घृणित क्यों न हो, वे फिर भी मानते हैं कि वह स्वाभाविक और न्यायोचित है। वे उसे तर्कसंगत मानते हैं, और यह भी मानते हैं कि वे अपने गुणों और योग्यताओं के कारण अगुआई करने के योग्य हैं और उन्हें अपनी वरिष्ठता का दावा करना चाहिए और दूसरों को उनके योगदान के कारण उनकी बात सुननी चाहिए, और वे इसे शर्म से बेपरवाह होना नहीं मानते। क्या वे आशा से परे नहीं हैं? यह सामान्य मानवता नहीं है; यह मसीह-विरोधियों का चरित्र है। साधारण भ्रष्ट लोगों में ये अभिव्यक्तियाँ और विचार कम या अधिक हो सकते हैं और गंभीरता की अलग-अलग मात्रा में हो सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के वचन पढ़ने और सत्य स्वीकारने और समझने के जरिये वे पहचान लेते हैं कि ये ऐसी चीजें नहीं हैं जो सामान्य मानवता में होनी चाहिए। वे यह भी जान जाते हैं कि जब ऐसे खयाल, विचार, योजनाएँ या तर्कहीन माँगें उठती हैं तो उन्हें उनके खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, उन्हें छोड़ देना चाहिए, उन्हें उलट देना चाहिए, पश्चात्ताप करना सीखना चाहिए, सत्य स्वीकारना चाहिए और सत्य के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। मसीह-विरोधियों और सामान्य भ्रष्ट व्यक्तियों के बीच क्या अंतर है? यह इस तथ्य में निहित है कि मसीह-विरोधी कभी यह नहीं मानेंगे कि उनके खयाल, विचार और इच्छाएँ गलत हैं, परमेश्वर द्वारा निंदित और घृणित हैं, या यह कि वे नकारात्मक चीजें हैं जो शैतान से संबंधित हैं। नतीजतन, वे इन विचारों या विश्वासों को कभी नहीं छोड़ते। इसके बजाय, वे इन पर दृढ़ रहते हैं, वे इनके खिलाफ विद्रोह नहीं करते और वे निश्चित रूप से जो सही और सकारात्मक होता है उसे नहीं स्वीकारते, और इसे वह अभ्यास बनने देते हैं जो उनमें होना चाहिए और वे सिद्धांत बनने देते हैं जिनका उन्हें पालन करना चाहिए। मसीह-विरोधियों और सामान्य भ्रष्ट व्यक्तियों के बीच यही अंतर है। आसपास देखो : जो कोई भी शर्म से बेपरवाह है लेकिन कभी इसे पहचान नहीं पाता या इसके बारे में कोई जागरूकता तक नहीं रखता, वह एक ठेठ मसीह-विरोधी है।
मसीह-विरोधियों में एक और विशिष्ट लक्षण होता है, जिसे लोग आसानी से पहचान सकते हैं : उनमें शर्म की भावना नहीं होती। जैसा कि बाइबल में लिखा है, “दुष्ट मनुष्य कठोर मुख का होता है” (नीतिवचन 21:29)—सिर्फ मसीह-विरोधी ही वास्तव में बुरे लोग होते हैं। मसीह-विरोधी बेशर्म होते हैं; चाहे वे कितनी भी ऐसी चीजें करें जो शर्म से बेपरवाह हों, लोगों की भावनाओं के प्रति कितनी भी असंवेदनशील और सत्य के कितनी भी विपरीत हों, वे इसके बारे में नहीं जानते, न ही वे इसे पहचानते हैं। जो सही या सकारात्मक होता है, वे उसे स्वीकार नहीं करते और अपने गलत दृष्टिकोण और अभ्यास नहीं छोड़ते; इसके बजाय, वे अंत तक उन पर दृढ़ रहते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे ही होते हैं। तुम लोग किस स्थिति में हो? जब तुम्हारी ये अनुचित माँगें, बेशर्म विचार, इरादे और खयाल होते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, तो क्या तुम जानते हो कि ये परमेश्वर के लिए घृणित हैं और इसलिए तुम इनके खिलाफ विद्रोह कर इन्हें छोड़ने में सक्षम रहते हो? या सत्य सुनने के बाद तुम उन्हें छोड़ने से इनकार कर देते हो, उन पर अड़े रहते हो और सोचते हो कि तुम सही हो? (जब मैं उनके बारे में जान जाता हूँ तो मैं उन्हें परमेश्वर के वचनों से जोड़ सकता हूँ और महसूस करता हूँ कि ये विचार बहुत ही घृणित और शर्म से बेपरवाह हैं, और मैं प्रार्थना करने और उनके खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम रहता हूँ।) जो लोग सचेत रूप से प्रार्थना कर सकते हैं और उनके खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं, वे मसीह-विरोधी नहीं होते; जो लोग कभी प्रार्थना या अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करते, बल्कि अपने ही विचारों का अनुगमन करते हैं, अपने दिलों में परमेश्वर का विरोध करते हैं और सत्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, वे ठेठ मसीह-विरोधी होते हैं। उन्होंने जो चीजें की हैं वे चाहे कितनी भी बेशर्मी की हों, वे उन्हें स्वीकारने या मानने से इनकार करते हैं। क्या यह स्पष्ट नहीं है कि ये वे लोग हैं जो सकारात्मक चीजों को स्वीकार नहीं करते, लेकिन नकारात्मक और दुष्ट चीजों से प्रेम करते हैं? क्या तुम लोग यह पहचानने में असमर्थ हो कि तुम किस श्रेणी में आते हो, या क्या तुम्हारे मन में कभी ऐसे विचार नहीं आए जो शर्म से बेपरवाह हों? (मेरे मन में ये विचार आए हैं और इनके बारे में जानने के बाद मैं परमेश्वर से प्रार्थना कर इनके खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम रहा हूँ। कभी-कभी मैं इनके बारे में नहीं जान पाया, मैंने बिना यह समझे काम किया या बोला है कि ये शर्म से बेपरवाह हैं और इसे बाद में तभी जान पाया जब मुझे उजागर किया गया, तब मैं प्रार्थना कर इनके खिलाफ विद्रोह करने में सक्षम हुआ।) अगर तुम नहीं जानते कि ये चीजें बेशर्मी की हैं, तो यह कोई मुद्दा नहीं है; अगर तुम जानते हो, फिर भी तुम सत्य नहीं स्वीकारते या अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करते, तो यह एक गंभीर समस्या है। ज्यादातर समय तुम लोग सुन्न रहते हो, इसके और परमेश्वर के वचन के बीच संबंध जोड़ने में असमर्थ रहते हो और इस बात से अनजान रहते हो कि तुम्हारी समस्या क्या है। लेकिन जब तुम इसके बारे में जान जाते हो तो तुम तुरंत अपने दिल में दोषी और फटकारा गया महसूस करते हो और किसी से भी मिलने में बहुत शर्मिंदा महसूस करते हो, और खुद को तुच्छ, नीच और खराब निष्ठा वाला समझते हो, और इसलिए तुम खुद से घृणा और जुगुप्सा महसूस करते हो, फिर विचार करते हो कि कैसे बदलें और इन चीजों को छोड़ दें, यह एक सामान्य स्थिति है। अगर तुम अवगत होने के बाद अपने खिलाफ विद्रोह कर सकते हो, तो तुम्हारे उद्धार की आशा है। अगर तुम अवगत हो जाते हो और फिर भी अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करते, तो तुम्हारे उद्धार की कोई आशा नहीं है। किसी व्यक्ति को बचाया जा सकता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह सत्य को स्वीकार सकता है या नहीं। कुछ लोग कह सकते हैं, “मैं सुन्न और मंदबुद्धि हूँ, मेरी काबिलियत कमजोर है, लेकिन अगर मैं जो सुनता हूँ उसे थोड़ा-बहुत समझता हूँ, तो मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास कर सकता हूँ और अपने खिलाफ विद्रोह कर सकता हूँ।” ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है। चाहे किसी की काबिलियत कितनी भी अच्छी हो या वह कितना भी सत्य समझता हो, अगर वह अपने खिलाफ विद्रोह नहीं करता, अगर वह सत्य का अभ्यास न करने या उसे न स्वीकारने पर जोर देता है और अपने दिल में उसका प्रतिरोध और विरोध करता है, तो उसका काम तमाम है—वह आशा से परे हैं। शर्म से बेपरवाह होना भी मसीह-विरोधियों के चरित्र का एक विशिष्ट लक्षण है। देखो कि क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं और फिर अपनी जाँच कर यह तय करो कि क्या तुम इस श्रेणी में आते हो—क्या तुम हमेशा यह समझते हो कि तुम पूर्ण और महान हो, क्या तुम हमेशा खुद को उद्धारकर्ता मानते हो, क्या तुम हमेशा अन्य सभी से ऊपर रहने की आकांक्षा रखते हो, क्या तुम किसी भी समूह में दूसरों के साथ अपनी तुलना करके यह देखने के लिए उत्सुक रहते हो कि तुम उनसे कितने ऊँचे ठहरते हो, और चाहे तुम अंततः अन्य लोगों से आगे निकल सको या नहीं, फिर भी क्या तुम उत्कृष्ट बनना चाहते हो और दूसरों से उच्च सम्मान प्राप्त करना चाहते हो, भीड़ से अलग दिखना चाहते हो और समूह का खास सदस्य बनना चाहते हो। तुम्हें क्या खास बनाता है? क्या तुम्हारे सिर पर सींग उग रहे हैं या तुम्हारी तीन आँखें हैं या तीन सिर और छह भुजाएँ हैं? तुममें कुछ भी तो खास नहीं है, फिर तुम्हें हमेशा ऐसा क्यों लगता है कि तुम सबसे अलग और अद्वितीय हो? यह शर्म से बेपरवाह होना है। एक ओर, तुम्हारी शारीरिक जन्मजात क्षमताओं के बारे में कुछ खास नहीं है, और दूसरी ओर, तुम्हारी काबिलियत के बारे में कुछ खास नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम, अन्य लोगों की तरह, भ्रष्ट स्वभावों से भरे हुए हो, तुममें सत्य की समझ की कमी है और तुम शैतान की किस्म के हो जो परमेश्वर का विरोध करता है। तुम्हारे पास डींगें हाँकने के लिए क्या है? स्पष्ट रूप से तुम्हारे पास डींगें हाँकने के लायक कुछ नहीं है। जो थोड़े-से कौशल, योग्यताएँ, गुण और प्रतिभाएँ तुम्हारे पास हैं, वे उल्लेखनीय नहीं हैं, क्योंकि वे सामान्य मानवता का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं और सकारात्मक चीजों से असंबंधित हैं। फिर भी, तुम उन चीजों को सामने लाने पर जोर देते हो जो उल्लेखनीय नहीं हैं, उन्हें अपने सम्मान के पदकों की तरह मानते हो, उन्हें हर जगह अपनी शान और पूँजी के रूप में दिखाते हो, ताकि लोगों से सम्मान और श्रद्धा प्राप्त कर सको, यहाँ तक कि दूसरे लोगों से अपना भरण-पोषण करवाने और दूसरों के सम्मान और अनुकूल व्यवहार का आनंद लेने के लिए उनका पूँजी कि तरह इस्तेमाल करते हो। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? असामान्य मानवता और विवेक से उत्पन्न ये तर्कहीन माँगें, विचार, इरादे, भाव और ऐसी अन्य चीजें शर्म से बेपरवाह होने की अभिव्यक्तियाँ हैं। अगर शर्म से बेपरवाह होने की ये अभिव्यक्तियाँ किसी की मानवता पर हावी हो जाती हैं और उनका एक प्रमुख लक्षण बन जाती हैं, जो उन्हें सत्य स्वीकारने और समझने से रोकती हैं, तो यह मसीह-विरोधियों का एक विशिष्ट लक्षण है।
कुछ लोग भाई-बहनों के लिए स्वादिष्ट, उच्च गुणवत्ता वाली और फैशनेबल चीजें खरीदने के लिए चढ़ावे खर्च करते हैं और दावा करते हैं कि वे ऐसा उनका खयाल रखते हुए कर रहे हैं, ताकि वे परमेश्वर के घर में खुशी से और चिंतामुक्त रह सकें और फिर परमेश्वर के प्रेम के लिए आभारी हो सकें। तुम इस विचार के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह काफी मानवीय है? (नहीं, ऐसा नहीं है। वे परमेश्वर के चढ़ावों को अपने पैसे की तरह मानते हैं, चढ़ावों का इस्तेमाल परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार सामान्य और उचित तरीके से करने के बजाय उन्हें अपनी इच्छानुसार खर्च करते हैं।) यह मानवता की कौन-सी समस्या है? (शर्म से बेपरवाह होना।) ऐसे व्यक्ति हैसियत प्राप्त करते ही ठेठ मसीह-विरोधी बन जाते हैं। वे दूसरों को खुश करने के लिए चढ़ावों का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं, “भाई-बहनों के पास कपड़े नहीं हैं और वे कठिन जीवन जीते हैं। उन्हें कई कठिनाइयाँ हैं और कोई इसकी परवाह नहीं करता। मैंने इस पर गौर किया है और मैं इसकी जिम्मेदारी लूँगा। भाई-बहनों के लिए चीजों को सुविधाजनक बनाने के लिए, उन्हें परमेश्वर के घर में रहते हुए उसकी गर्मजोशी, महान प्रेम और अनुग्रह का अनुभव करने में सक्षम बनाने के लिए परमेश्वर के घर को उनके जीवन का हर पहलू संतुष्ट करने के लिए कुछ पैसे खर्च करने की आवश्यकता है। इसलिए मुझे इस पर कुछ और विचार करने और इस बात पर ध्यान से विचार करने की जरूरत है कि भाई-बहनों को किस चीज की कमी है या उन्हें किस चीज की जरूरत है। पानी गर्म रखने वाले कप खरीदे जाने चाहिए, ताकि भाई-बहनों के लिए पानी पीना और बाहर जाते समय उन्हें ले जाना सुविधाजनक हो। भाई-बहनों के लिए कुर्सियाँ खरीदी जानी चाहिए : कुर्सियों में नरम गद्दियाँ होनी चाहिए, ताकि लंबे समय तक बैठने से उनकी पीठ में दर्द न हो। इन कुर्सियों पर बैठना सुविधाजनक होना चाहिए और उनकी ऊँचाई और कोण सही होना चाहिए और वे नरम होनी चाहिए। लागत चाहे कुछ भी हो, हमें भाई-बहनों के लिए खूब पैसा खर्च करना चाहिए, क्योंकि वे परमेश्वर के घर के स्तंभ हैं और परमेश्वर के घर के कार्य के विस्तार के लिए पूँजी और मुख्य आधार हैं। इसलिए, भाई-बहनों की अच्छी देखभाल करने से परमेश्वर के घर का कार्य बेहतर होता है।” यह सुनकर अधिकांश भाई-बहन फूट-फूटकर रोने लगते हैं, कृतज्ञता से अभिभूत हो जाते हैं और चिल्लाते रहते हैं कि यह परमेश्वर का महान प्रेम है। इस मामले को सँभालने वाले लोग यह सुनकर अंदर से उत्साहित महसूस करते हैं और सोचते हैं, “आखिरकार, ऐसे लोग हैं जो मेरे दिल को समझते हैं।” यह क्या है? (शर्म से बेपरवाह होना।) भाई-बहनों को ऐसे बड़े लाभ प्रदान करना शर्म से बेपरवाह होना कैसे माना जा सकता है? क्या यह बदनाम करना है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) लोगों के दिल जीतने के लिए वे परमेश्वर के घर के धन का उपयोग करके यह उदारता दिखाते हैं और भाई-बहनों के प्रति विचारशीलता और प्रेमपूर्ण देखभाल दिखाने का ढोंग करते हैं। उनका असली उद्देश्य क्या है? इसे हल्के ढंग से कहें तो, यह भाई-बहनों के साथ इन लाभों का आनंद लेना है। गंभीरता से कहें तो, यह लोगों को खुश करने के लिए होता है और इससे वे यह सुनिश्चित करते हैं कि लोग उन्हें हमेशा याद रखें, अपने दिलों में जगह दें और याद करें कि वे कितने अच्छे थे। अगर उन्हें अपना पैसा खर्च करना होता, तब भी क्या वे भाई-बहनों के साथ इसी तरह पेश आते? (बिल्कुल नहीं।) उनके असली रंग सामने आ जाते और वे लोगों के साथ इस तरह से पेश न आते। उनके द्वारा परमेश्वर के चढ़ावों का अपनी इच्छा के अनुसार लापरवाही से इस्तेमाल करने से आँकते हुए, वे ऐसे लोग हैं जिनमें ईमानदारी और नैतिक मानकों की कमी है, वे नीच और बेशर्म लोग हैं। क्या वे वास्तव में अन्य लोगों के साथ दयालुता से पेश आ सकते हैं? वे किस तरह के व्यक्ति हैं? (वे मसीह-विरोधी हैं, जो शर्म से बेपरवाह हैं।) मसीह-विरोधियों के इस शर्म से बेपरवाह होने में कुछ कपट और निर्दयता भी होती है जो उनकी मानवता में अभिव्यक्त होती है—वे अपने व्यक्तिगत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए झूठ का इस्तेमाल करते हैं। उनके मुँह से निकले कौन-से शब्द सच होते हैं? हालाँकि वे लोगों के प्रति बहुत विचारशील, वास्तव में उनसे प्रेम करने वाले और उनके लिए बहुत-कुछ सोचने वाले लगते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे वे वास्तव में दुर्भावनापूर्ण इरादे रखते हैं। वे खुद कोई कीमत नहीं चुकाते; वे चढ़ावे खर्च करते हैं, और अंत में, यह परमेश्वर का घर है जो नुकसान उठाता है, जबकि खुद वे लाभ उठाते हैं। मसीह-विरोधी यही करते हैं—न सिर्फ वे शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि वे कपटी और निर्दयी भी होते हैं। वे आदतन झूठे होते हैं, वे जहाँ भी जाते हैं, लोगों से झूठ बोलते और उन्हें धोखा देते हैं, एक भी सच्चा शब्द नहीं बोलते। यह अकेली बात ही अपने आप में घिनौनी है, ऊपर से वे निष्कपट, दयालु, दूसरों के प्रति अच्छे, प्रेमपूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण होने, किसी के भी प्रति कठोरहृदय न होने या खुद को धमकाने वालों से बदला लेने में असमर्थ होने की डींग भी हाँकते हैं। वे यहाँ तक डींग हाँकते हैं कि वे पूर्ण और सभ्य व्यक्ति हैं और अपनी छवि और लोगों के दिलों में जगह बनाना चाहते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति है; उनकी मानवता ऐसी चीजों से भरी होती है।
जो लोग बेलगाम होकर बुरी चीजें करते हैं और शर्म से बेपरवाह होते हैं, लोग उन्हें कुछ हद तक पहचान सकते हैं, लेकिन यह पहचानना आसान नहीं कि मसीह-विरोधी शर्म से बेपरवाह होते हैं। मैंने एक मसीह-विरोधी की शर्म से बेपरवाह होने की एक खास अभिव्यक्ति देखी है : वह अक्सर जंगली और ढिठाई भरा व्यवहार करता था, आदतन झूठ बोलता था, और उसके बोलने का तरीका सुनियोजित था जो संगठित और सुव्यवस्थित था। लेकिन जब कामों को सँभालने की बात आती थी, तो वह जो काम शुरू करता था उसे पूरा नहीं कर पाता था, वह बेलगाम होकर बुरी चीजें करता था और सिद्धांतों से दिवालिया था। कुछ समय तक परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने के बाद उसने जो कुछ भी किया वह गलत हो गया, और उसने जो कुछ भी किया वह अच्छा नहीं था। सबसे नाजुक समस्या यह थी कि वह अभी भी लोगों को गुमराह करना चाहता था, उनके दिलों में एक अच्छी छाप छोड़ना चाहता था और हर मोड़ पर यह पूछता था कि दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं और उसे उच्च सम्मान दिया जाता है या नहीं। आखिरकार जब यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने कर्तव्यों में लगातार गलतियाँ कर रहा है और कुछ भी अच्छी तरह से नहीं कर सकता, तो परमेश्वर के घर ने उसे चलता कर दिया। वह न सिर्फ इन स्पष्ट अभिव्यक्तियों को पहचानने में विफल रहा, बल्कि जब उसे चलता किया गया तो उसने खास तौर पर मासूमियत का दिखावा भी किया। इस मासूमियत के दिखावे का क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि उसने अन्य बुरे कामों के अलावा कभी अपने पिछले बुरे काम स्वीकार नहीं किए—अपने झूठ, छल-कपट और दूसरे लोगों को गुमराह करने के साथ-साथ कैसे उसने एक स्वतंत्र राज्य बनाया और कलीसिया को अपने परिवार के नियंत्रण में लाया, बेलगाम होकर बुरी चीजें कीं और सिद्धांतों के बिना कार्य किया, कभी सत्य नहीं खोजा, यहाँ तक कि जो चाहा वह किया—और वह अपने इन बुरे कामों को पहचानने में बिल्कुल भी सक्षम नहीं था। इसके विपरीत, वह मानता था कि उसने इतने सालों तक परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभाया है, उसने इतना कष्ट सहा है, इतनी बड़ी कीमत चुकाई है, इतना लंबा समय बिताया है और अपनी इतनी ऊर्जा दी है, और फिर भी, अंत में वह उस बिंदु पर पहुँच गया जहाँ वह कुख्यात हो गया और हर किसी ने उसे नीची निगाह से देखा, जहाँ कोई भी उस पर दया नहीं करता था या उससे सहानुभूति नहीं रखता था और कोई भी उसके लिए नहीं बोलता था। क्या यह मासूमियत का दिखावा नहीं है? मासूमियत का यह दिखावा किस तरह की मानवता की अभिव्यक्ति है? (विवेकहीन और शर्म से बेपरवाह होने की।) बिल्कुल सही। उसने जो कुछ किया उसे और जो कर्तव्य उसे निभाने चाहिए थे उन्हें उसने अपनी योग्यता माना। उसने अपने द्वारा किए गए किसी भी ऐसे काम को पूरी तरह से नकार दिया, जो सत्य-सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था या जो बाधक या गड़बड़ी पैदा करने वाला था, और अंत में, उसने मासूमियत का दिखावा किया। यह शर्म से बेपरवाह होना है और वह एक ठेठ मसीह-विरोधी है। क्या तुम लोगों ने कभी ऐसे व्यक्तियों का सामना किया है? चाहे तुम उन्हें जिस भी काम का प्रभारी बनाओ या उन्हें जो भी काम दो, वे सेना की भर्ती करना, एक स्वतंत्र राज्य स्थापित करना और दूसरों को सुर्खियों से दूर रखना चाहते हैं, ताकि खुद वे सुर्खियों में रह सकें। वे सभी से आगे निकलना चाहते हैं, वे किसी से भी जो कुछ भी कहते हैं वह सच नहीं होता, वे अपने श्रोताओं को उलझन में डाल देते हैं कि उनके कौन-से कथन सच हैं और कौन-से झूठे। जब अंततः उन्हें चलता किया जाता है तो वे खुद को खास तौर से मासूम समझते हैं और उम्मीद करते हैं कि कोई उनका बचाव करेगा। क्या तुम लोगों को लगता है कि कोई उनका बचाव करेगा? (नहीं, कोई उनका बचाव नहीं करेगा।) अगर कोई करेगा, तो वह वास्तविक तथ्यों से अनभिज्ञ होगा, मूर्ख होगा, उनके द्वारा गुमराह किया गया व्यक्ति होगा या उनके जैसा ही व्यक्ति होगा।
घ. स्वार्थी और नीच
मसीह-विरोधियों में कोई जमीर, विवेक या मानवता नहीं होती। वे न केवल शर्म से बेपरवाह होते हैं, बल्कि उनकी एक और खासियत भी होती है : वे असाधारण रूप से स्वार्थी और नीच होते हैं। उनके “स्वार्थ और नीचता” का शाब्दिक अर्थ समझना कठिन नहीं है : उन्हें अपने हित के अलावा कुछ नहीं सूझता। अपने हितों से संबंधित किसी भी चीज पर उनका पूरा ध्यान रहता है, वे उसके लिए कष्ट उठाएँगे, कीमत चुकाएँगे, उसमें खुद को तल्लीन और समर्पित कर देंगे। जिन चीजों का उनके अपने हितों से कोई लेना-देना नहीं होता, वे उनकी ओर से आँखें मूँद लेंगे और उन पर कोई ध्यान नहीं देंगे; दूसरे लोग जो चाहें सो कर सकते हैं—मसीह-विरोधियों को इस बात की कोई परवाह नहीं होती कि कोई विघ्न-बाधा पैदा तो नहीं कर रहा, उन्हें इन बातों से कोई सरोकार नहीं होता। युक्तिपूर्वक कहें तो, वे अपने काम से काम रखते हैं। लेकिन यह कहना ज्यादा सही है कि इस तरह का व्यक्ति नीच, अधम और दयनीय होता है; हम उन्हें “स्वार्थी और नीच” के रूप में परिभाषित करते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थपरता और नीचता कैसे प्रकट होती हैं? उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को जिससे लाभ होता है, वे उसके लिए जो भी जरूरी होता है उसे करने या बोलने के प्रयास करते हैं और वे स्वेच्छा से हर पीड़ा सहन करते हैं। लेकिन जहाँ बात परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कार्य से संबंधित होती है, या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन के विकास को लाभ पहुंचाने वाले कार्यों से संबंधित होती है, वे पूरी तरह इसे अनदेखा करते हैं। यहाँ तक कि जब बुरे लोग विघ्न-बाधा डाल रहे होते हैं, सभी प्रकार की बुराई कर रहे होते हैं और इसके फलस्वरूप कलीसिया के कार्य को बुरी तरह प्रभावित कर रहे होते हैं, तब भी वे उसके प्रति आवेगहीन और उदासीन बने रहते हैं, जैसे उनका उससे कोई लेना-देना ही न हो। और अगर कोई किसी बुरे व्यक्ति के बुरे कर्मों के बारे में जान जाता है और इसकी रिपोर्ट कर देता है, तो वे कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं देखा और अज्ञानता का ढोंग करने लगते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी रिपोर्ट करता है और यह उजागर करता है कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और सिर्फ प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत का अनुसरण करते हैं, तो वे आगबबूला हो जाते हैं। यह तय करने के लिए आनन-फानन में बैठकें बुलाई जाती हैं कि क्या उत्तर दिया जाए, यह पता लगाने के लिए जाँच की जाती है कि किसने गुपचुप यह काम किया, सरगना कौन था और कौन शामिल था। जब तक वे इसकी तह तक नहीं पहुँच जाते और मामला शांत नहीं हो जाता, तब तक उनका खाना-पीना हराम रहता है—उन्हें केवल तभी खुशी मिलती है जब वे अपनी रिपोर्ट करने वाले सभी लोगों को धराशायी कर देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? क्या वे कलीसिया का काम कर रहे हैं? वे अपने सामर्थ्य और रुतबे के लिए काम कर रहे हैं, और कुछ नहीं। वे अपना कारोबार चला रहे हैं। मसीह-विरोधी व्यक्ति चाहे जो भी कार्य करें, वे कभी परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते। वह केवल इस बात पर विचार करता है कि कहीं उसके हित तो प्रभावित नहीं हो रहे, वह केवल अपने सामने के उस छोटे-से काम के बारे में सोचता है, जिससे उसे फायदा होता है। उसकी नजर में, कलीसिया का प्राथमिक कार्य बस वही है, जिसे वह अपने खाली समय में करता है। वह उसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेता। वह केवल तभी हरकत में आता है जब उसे काम करने के लिए कोंचा जाता है, केवल वही करता है जो वह करना पसंद करता है, और केवल वही काम करता है जो उसकी हैसियत और सत्ता बनाए रखने के लिए होता है। उसकी नजर में, परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित कोई भी कार्य, सुसमाचार फैलाने का कार्य, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन-प्रवेश महत्वपूर्ण नहीं हैं। चाहे अन्य लोगों को अपने काम में जो भी कठिनाइयाँ आ रही हों, उन्होंने जिन भी मुद्दों को पहचाना और रिपोर्ट किया हो, उनके शब्द कितने भी ईमानदार हों, मसीह-विरोधी उन पर कोई ध्यान नहीं देते, वे उनमें शामिल नहीं होते, मानो इन मामलों से उनका कोई लेना-देना ही न हो। कलीसिया के काम में उभरने वाली समस्याएँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, वे पूरी तरह से उदासीन रहते हैं। अगर कोई समस्या उनके ठीक सामने भी हो, तब भी वे उस पर लापरवाही से ही ध्यान देते हैं। जब ऊपर वाला सीधे उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें किसी समस्या को सुलझाने का आदेश देता है, तभी वे बेमन से थोड़ा-बहुत काम करके ऊपर वाले को दिखाते हैं; उसके तुरंत बाद वे फिर अपने धंधे में लग जाते हैं। जब कलीसिया के काम की बात आती है, व्यापक संदर्भ की महत्वपूर्ण चीजों की बात आती है, तो वे इन चीजों में रुचि नहीं लेते और इनकी उपेक्षा करते हैं। जिन समस्याओं का उन्हें पता लग जाता है, उन्हें भी वे नजरअंदाज कर देते हैं और समस्याओं के बारे में पूछने पर लापरवाही से जवाब देते हैं या आगा-पीछा करते हैं, और बहुत ही बेमन से उस समस्या की तरफ ध्यान देते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? इसके अलावा, मसीह-विरोधी चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल यही सोचते हैं कि क्या इससे वे सुर्ख़ियों में आ पाएँगे; अगर उससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, तो वे यह जानने के लिए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाते हैं कि उस काम को कैसे करना है, कैसे अंजाम देना है; उन्हें केवल एक ही फिक्र रहती है कि क्या इससे वे औरों से अलग नजर आएँगे। वे चाहे कुछ भी करें या सोचें, वे केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत से सरोकार रखते हैं। वे चाहे कोई भी काम कर रहे हों, वे केवल इसी स्पर्धा में लगे रहते हैं कि कौन बड़ा है या कौन छोटा, कौन जीत रहा है और कौन हार रहा है, किसकी ज्यादा प्रतिष्ठा है। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि कितने लोग उनकी आराधना और सम्मान करते हैं, कितने लोग उनका आज्ञापालन करते हैं और कितने लोग उनके अनुयायी हैं। वे कभी सत्य पर संगति या वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं करते। वे कभी विचार नहीं करते कि अपना काम करते समय सिद्धांत के अनुसार चीजें कैसे करें, न ही वे इस बात पर विचार करते हैं कि क्या वे निष्ठावान रहे हैं, क्या उन्होंने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी हैं, क्या उनके काम में कोई विचलन या चूक हुई है या अगर कोई समस्या मौजूद है, तो वे यह तो बिल्कुल नहीं सोचते कि परमेश्वर क्या चाहता है और परमेश्वर के इरादे क्या हैं। वे इन सब चीजों पर रत्ती भर भी ध्यान नहीं देते। वे केवल प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के लिए, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और जरूरतें पूरी करने का प्रयास करने के लिए कार्य करते हैं। यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति है, है न? यह पूरी तरह से उजागर कर देता है कि उनके हृदय किस तरह उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और बेहूदा माँगों से भरे होते हैं; उनका हर काम उनकी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से नियंत्रित होता है। वे चाहे कोई भी काम करें, उनकी महत्वाकांक्षाएँ, इच्छाएँ और बेहूदा माँगें ही उनकी प्रेरणा और स्रोत होता है। यह स्वार्थ और नीचता की विशिष्ट अभिव्यक्ति है।
कुछ अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करते; ऊपर वाले को रिपोर्ट करने के लिए और काट-छाँट और बर्खास्तगी से बचने के लिए और अपनी हैसियत सुरक्षित करने के लिए वे एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भाई-बहनों को उन्हें सेवा प्रदान करने के लिए मजबूर करते हैं। अपने काम में वे सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, सत्य-सिद्धांतों पर संगति नहीं करते, वास्तविक मुद्दे हल नहीं करते, प्रेमपूर्ण हृदय से दूसरों की मदद नहीं करते या अन्य लोगों की कठिनाइयों पर विचार नहीं करते और कभी उन वास्तविक कठिनाइयों का समाधान नहीं करते जिनका सामना लोग अपने कर्तव्य निभाते समय और अपने जीवन-प्रवेश में करते हैं। वे ऐसे किसी व्यक्ति का समर्थन नहीं करते, जो नकारात्मक होता है। दमन और फटकार के अलावा वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और अपने नारे लगाते हैं। उनका उद्देश्य क्या होता है? वे परमेश्वर के बोझ के बारे में विचारशील नहीं होते, बल्कि वे खुद को सुशोभित करने और अपनी हैसियत सुरक्षित करने के लिए भाई-बहनों द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों के परिणाम का लाभ उठाना चाहते हैं। अगर भाई-बहन कर्तव्य निभाने में अच्छे परिणाम दिखाते हैं, तो वे प्रसन्न होते हैं। वे ऊपर वाले के सामने उनका श्रेय लेते हैं, मन ही मन अपने गुणों की प्रशंसा करते हैं और सोचते हैं कि उन्होंने अपने कर्तव्य काफी अच्छे से निभाए हैं। इसके अलावा, वे इस काम को करते समय आने वाली कई कठिनाइयों के बारे में ऊपर वाले को बताते हैं कि कैसे परमेश्वर ने उनके लिए एक रास्ता खोला, कैसे उन्होंने भाई-बहनों को मिलकर कड़ी मेहनत करने और इन कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए प्रेरित किया, कैसे उन्होंने इस काम को पूरा करने में उनकी मदद की, कैसे उन्होंने सिद्धांतों का पालन किया और कैसे उन्होंने बुरे लोगों को बाहर निकाला। अपने काम में उन्होंने जो कीमत चुकाई और जो योगदान दिया, उस पर प्रकाश डालने का भी वे खास ध्यान रखते हैं, जिससे ऊपर वाला जान जाए कि उनके प्रयासों के कारण ही काम अच्छी तरह से हुआ। अव्यक्त रूप से वे ऊपर वाले को बताते हैं, “मेरी अगुआई अपने नाम के अनुरूप है और तुम लोगों ने मुझे अगुआ के रूप में चुनकर सही चुनाव किया है।” क्या यह स्वार्थी और नीच होने की अभिव्यक्ति नहीं है? जो लोग स्वार्थी और नीच होने की मानवता अभिव्यक्त करते हैं, उनके पास अक्सर कुछ जुमले होते हैं। उदाहरण के लिए, जब उनके लिए कलीसिया की अगुआई करने की व्यवस्था की जाती है, तो वे हमेशा कहते हैं, “मेरी कलीसिया में हमारा कलीसियाई जीवन बहुत अच्छा, बहुत शानदार है। मेरे भाई-बहनों के पास एक अद्भुत और गहन जीवन-प्रवेश है, सभी के पास जीवन-अनुभव हैं। देखो, वे परमेश्वर से कितना प्रेम करते हैं और हमारा काम कितनी अच्छी तरह से होता है।” ये मसीह-विरोधियों के जुमले हैं। उनके जुमलों से आँके तो, यह स्पष्ट है कि वे अपनी जिम्मेदारी वाली कलीसिया के भाई-बहनों को अपनी भेड़ें समझते हैं और अपने नियंत्रण वाली कलीसिया की हर चीज को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। क्या यह शर्म से बेपरवाह होना नहीं है? यह शर्म से बेपरवाह होना क्यों है? स्वार्थ और नीचता की कोई भी अभिव्यक्ति शर्म से बेपरवाह होने से ही उपजती है। इसलिए, स्वार्थी और नीच होना शर्म से बेपरवाह होना है। स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्तियाँ दिखाने वाले ये लोग निश्चित रूप से शर्म से बेपरवाह होते हैं। अगुआई सौंपे जाने और कलीसिया के लिए जिम्मेदार होने पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अपने कर्तव्य निभाने के लिए अगुआई और विशिष्ट कार्य करते हुए वे इन चीजों को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। कोई भी दखल नहीं दे सकता; हर चीज में उन्हीं की चलती है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों, कलीसिया के काम और कलीसिया की सुविधाओं और संपत्ति को अपनी निजी संपत्ति मानते हैं। यह अपने आप में समस्याजनक है : उनका उद्देश्य परमेश्वर के घर की संपत्तियाँ जब्त करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर हावी होना है। इसके अलावा, वे इन चीजों को दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए पूँजी के रूप में देखते हैं, यहाँ तक कि वे परमेश्वर के घर के हितों से विश्वासघात करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने से भी नहीं कतराते। क्या तुम लोगों को लगता है कि मसीह-विरोधियों के पास जमीर और विवेक होता है? क्या उनके दिल में परमेश्वर के लिए जगह होती है? क्या उनके पास परमेश्वर का भय मानने और उसके प्रति समर्पण करने वाला दिल होता है? बिल्कुल नहीं। इसलिए मसीह-विरोधियों को शैतान के अनुचर या धरती पर दानव कहना किसी भी तरह से अतिशयोक्ति नहीं है। मसीह-विरोधियों के दिल में कोई परमेश्वर या कलीसिया नहीं होती और निश्चित रूप से उनके मन में परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए कोई सम्मान नहीं होता। मुझे बताओ, जहाँ भाई-बहन होते हैं, और जहाँ परमेश्वर काम करता है, ऐसे स्थान परमेश्वर का घर कैसे नहीं कहे जा सकते? किस प्रकार वे कलीसियाएँ नहीं हैं? लेकिन मसीह-विरोधी केवल अपने प्रभाव-क्षेत्र के भीतर की चीजों के बारे में ही सोचते हैं। वे अन्य जगहों की परवाह नहीं करते या उनसे सरोकार नहीं रखते। अगर उन्हें किसी समस्या का पता चल भी जाता है, तो भी वे परवाह नहीं करते। इससे भी बुरी बात यह है कि जब किसी स्थान पर कुछ गलत हो जाता है और कलीसिया के काम को नुकसान होता है, तो वे उस पर ध्यान नहीं देते। यह पूछे जाने पर कि वे इसे अनदेखा क्यों करते हैं, वे यह कहते हुए बेतुकी भ्रांतियाँ पेश करते हैं, “दूसरे के फटे में टांग मत अड़ाओ।” उनकी बातें तर्कसंगत लगती हैं, वे जो कुछ करते हैं उसमें वे सीमाओं को समझते प्रतीत होते हैं, और बाहर से ऐसा प्रतीत नहीं होता कि उनकी कोई समस्या है, लेकिन उनका सार क्या होता है? यह उनके स्वार्थ और नीचता का प्रकटीकरण है। वे केवल अपने लिए, केवल अपनी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत के लिए ही काम करते हैं। वे अपने कार्य बिल्कुल नहीं करते। यह मसीह-विरोधियों की एक और ठेठ विशेषता है—वे स्वार्थी और नीच होते हैं।
मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता का सार स्पष्ट है; उनकी इस तरह की अभिव्यक्तियाँ विशेष रूप से प्रमुख हैं। कलीसिया उन्हें एक काम सौंपती है, और अगर वह प्रसिद्धि और लाभ लाता है, और उन्हें अपना चेहरा दिखाने देता है, तो वे उसमें बहुत रुचि लेते हैं और उसे स्वीकारने को तैयार रहते हैं। अगर वह ऐसा कार्य है, जिससे सराहना नहीं मिलती या जिसमें लोगों को अपमानित करना शामिल है, या जिसमें उन्हें लोगों के बीच जाने का मौका नहीं मिलता या जिससे उनकी प्रसिद्धि, लाभ और हैसियत को कोई लाभ नहीं पहुँचता, तो उसमें उनकी कोई रुचि नहीं होती, और वे उसे स्वीकार नहीं करते, मानो उस काम का उनसे कोई लेना-देना न हो, और वह ऐसा कार्य न हो जो उन्हें करना चाहिए। जब वे कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो इस बात की कोई संभावना नहीं होती कि वे उन्हें हल करने के लिए सत्य की तलाश करेंगे, बड़ी तसवीर देखने की कोशिश करना और कलीसिया के काम पर ध्यान देना तो दूर की बात है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर के कार्य के दायरे में, कार्य की समग्र आवश्यकताओं के आधार पर, कुछ कर्मियों का तबादला हो सकता है। अगर किसी कलीसिया से कुछ लोगों का तबादला कर दिया जाता है, तो उस कलीसिया के अगुआओं को समझदारी के साथ इस मामले से कैसे निपटना चाहिए? अगर वे समग्र हितों के बजाय सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों से ही सरोकार रखते हैं, और अगर वे उन लोगों को स्थानांतरित करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते, तो इसमें क्या समस्या है? कलीसिया-अगुआ के रूप में, क्यों वे परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने में असमर्थ रहते हैं? क्या ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होता है? क्या वह कार्य की बड़ी तस्वीर के प्रति सचेत होता है? अगर वह परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में समग्र रूप से नहीं सोचता, बल्कि सिर्फ अपनी कलीसिया के हितों के बारे में सोचता है, तो क्या वह बहुत स्वार्थी और नीच नहीं है? कलीसिया-अगुआओं को परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं, और परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं और समन्वय के प्रति बिना शर्त समर्पित होना चाहिए। यही सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है। जब परमेश्वर के घर के कार्य को आवश्यकता हो, तो चाहे वे कोई भी हों, सभी को परमेश्वर के घर के समन्वय और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए, और किसी एक अगुआ या कार्यकर्ता द्वारा नियंत्रित नहीं होना चाहिए, मानो वे उसके हों या उसके निर्णयों के अधीन हों। परमेश्वर के चुने हुए लोगों की परमेश्वर के घर की केंद्रीकृत व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता बिल्कुल स्वाभाविक और उचित है और इन व्यवस्थाओं की किसी के द्वारा अवहेलना नहीं की जा सकती, जब तक कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता कोई मनमाना तबादला नहीं करता जो सिद्धांत के अनुसार न हो—उस मामले में इस व्यवस्था की अवज्ञा की जा सकती है। अगर सिद्धांतों के अनुसार सामान्य स्थानांतरण किया जाता है, तो परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों को आज्ञापालन करना चाहिए, और किसी अगुआ या कार्यकर्ता को किसी को नियंत्रित करने का प्रयास करने का अधिकार या कोई कारण नहीं है। क्या तुम लोग कहोगे कि ऐसा भी कोई कार्य होता है जो परमेश्वर के घर का कार्य नहीं होता? क्या कोई ऐसा कार्य होता है जिसमें परमेश्वर के राज्य-सुसमाचार का विस्तार शामिल नहीं होता? यह सब परमेश्वर के घर का ही कार्य होता है, हर कार्य समान होता है, और उसमें कोई “तेरा” और “मेरा” नहीं होता। अगर तबादला सिद्धांत के अनुरूप और कलीसिया के कार्य की आवश्यकताओं पर आधारित है, तो इन लोगों को वहाँ जाना चाहिए जहाँ इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। फिर भी, जब इस तरह की परिस्थिति का सामना करना पड़े तो मसीह-विरोधियों की प्रतिक्रिया क्या होती है? वे इन उपयुक्त लोगों को अपने साथ रखने के लिए तरह-तरह के कारण और बहाने ढूँढ़ते हैं और केवल दो साधारण लोगों की पेशकश करते हैं, और फिर तुम पर शिकंजा कसने के लिए कोई बहाना ढूँढते हैं, या तो यह कहते हुए कि उनके पास काम बहुत है या यह कि उनके पास लोग कम हैं, लोगों का मिलना मुश्किल होता है, यदि इन दोनों को भी स्थानांतरित कर दिया गया, तो इसका काम पर असर पड़ेगा। और वे तुमसे ही पूछते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हें यह महसूस कराते हैं कि लोगों को स्थानांतरित करने का मतलब है कि आप उनके एहसानमंद हैं। क्या शैतान इसी तरह काम नहीं करते? गैर-विश्वासी इसी तरह काम करते हैं। जो लोग कलीसिया में हमेशा अपने हितों की रक्षा करने का प्रयास करते हैं—क्या वे अच्छे लोग होते हैं? क्या वे सिद्धांत के अनुसार कार्य करने वाले लोग होते हैं? बिल्कुल नहीं। वे गैर-विश्वासी और छद्म-विश्वासी हैं। और क्या यह काम स्वार्थी और नीच नहीं है? अगर किसी मसीह-विरोधी के अधीनस्थ किसी अच्छी काबिलियत वाले व्यक्ति को दूसरा काम करने के लिए स्थानांतरित किया जाता है, तो अपने दिल में मसीह-विरोधी इसका हठपूर्वक विरोध करता और इसे नकार देता है—वह काम छोड़ देना चाहता है, और उसमें अगुआ या समूह-प्रमुख होने का कोई उत्साह नहीं रह जाता। यह क्या समस्या है? उनमें कलीसिया की व्यवस्थाओं के प्रति आज्ञाकारिता क्यों नहीं होती? उन्हें लगता है कि उनके “दाएँ-हाथ जैसे व्यक्ति” का तबादला उनके काम के परिणामों और प्रगति को प्रभावित करेगा, और परिणामस्वरूप उनकी हैसियत और प्रतिष्ठा प्रभावित होगी, जिससे उन्हें परिणामों की गारंटी देने के लिए कड़ी मेहनत करने और ज्यादा कष्ट उठाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा—जो आखिरी चीज है, जिसे वे करना चाहते हैं। वे सुविधाभोगी हो गए हैं, और ज्यादा मेहनत करना या अधिक कष्ट उठाना नहीं चाहते, इसलिए वे उस व्यक्ति को जाने नहीं देना चाहते। अगर परमेश्वर का घर तबादले पर जोर देता है, तो वे बहुत शिकायत करते हैं, यहाँ तक कि अपना काम भी छोड़ देना चाहते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? परमेश्वर के घर द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को केंद्रीय रूप से आवंटित किया जाना चाहिए। इसका किसी अगुआ, समूह-प्रमुख या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी को सिद्धांत के अनुसार कार्य करना चाहिए; यह परमेश्वर के घर का नियम है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते, वे लगातार अपनी हैसियत और हितों के लिए साजिशें रचते हैं, और अपनी शक्ति और हैसियत मजबूत करने के लिए अच्छी क्षमता वाले भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। क्या यह स्वार्थी और नीच होना नहीं है? बाहरी तौर पर, अच्छी क्षमता वाले लोगों को अपने पास रखना और परमेश्वर के घर द्वारा उनका तबादला न होने देना ऐसा प्रतीत होता है, मानो वे कलीसिया के काम के बारे में सोच रहे हों, लेकिन वास्तव में वे सिर्फ अपनी शक्ति और हैसियत के बारे में सोच रहे होते हैं, कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते। वे डरते हैं कि वे कलीसिया का काम खराब तरह से करेंगे, बदल दिए जाएँगे, और अपनी हैसियत खो देंगे। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य के बारे में कोई विचार नहीं करते, सिर्फ अपनी हैसियत के बारे में सोचते हैं, परमेश्वर के घर के हितों को होने वाले नुकसान के लिए जरा भी खेद न करके अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, और कलीसिया के कार्य को हानि पहुँचाकर अपनी हैसियत और हितों की रक्षा करते हैं। यह स्वार्थी और नीच होना है। जब ऐसी स्थिति आए, तो कम से कम व्यक्ति को अपने विवेक से सोचना चाहिए : “ये सभी परमेश्वर के घर के लोग हैं, ये कोई मेरी निजी संपत्ति नहीं हैं। मैं भी परमेश्वर के घर का सदस्य हूँ। मुझे परमेश्वर के घर को लोगों को स्थानांतरित करने से रोकने का क्या अधिकार है? मुझे केवल अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में आने वाले काम पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय परमेश्वर के घर के समग्र हितों पर विचार करना चाहिए।” जिन लोगों में जमीर और विवेक होता है, उन लोगों के विचार ऐसे ही होने चाहिए, और जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनमें ऐसा ही विवेक होना चाहिए। परमेश्वर का घर समग्र के कार्य में संलग्न है और कलीसियाएँ हिस्सों के कार्य में संलग्न हैं। इसलिए, जब परमेश्वर के घर को कलीसिया से कोई विशेष आवश्यकता हो, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों में ऐसा जमीर और विवेक नहीं होता। वे सब बहुत स्वार्थी होते हैं, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, और वे कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं सोचते। वे सिर्फ अपनी आँखों के सामने के लाभों पर विचार करते हैं, वे परमेश्वर के घर के व्यापक कार्य पर विचार नहीं करते, इसलिए वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने में बिल्कुल अक्षम रहते हैं। वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं! परमेश्वर के घर में उनकी हिम्मत इतनी बढ़ जाती है कि वे विनाशकारी हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे अपने मनसूबों से बाज नहीं आते; ऐसे लोग मानवता से बिल्कुल शून्य होते हैं, दुष्ट होते हैं। मसीह-विरोधी इसी प्रकार के लोग हुआ करते हैं। वे हमेशा कलीसिया के काम को, भाइयों और बहनों को, यहाँ तक कि परमेश्वर के घर की सारी संपत्ति को जो उनकी जिम्मेदारी के दायरे में आती है, निजी संपत्ति के रूप में ही देखते हैं। मानते हैं कि यह उन पर है कि इन चीजों को कैसे वितरित करें, स्थानांतरित करें और उपयोग में लें, और कि परमेश्वर के घर को दखल देने की अनुमति नहीं होती। जब वे चीजें उनके हाथों में आ जाती हैं, तो ऐसा लगता है कि वे शैतान के कब्जे में हैं, किसी को भी उन्हें छूने की अनुमति नहीं होती। वे बड़ी तोप चीज होते हैं, वे ही सबसे बड़े होते हैं, और जो कोई भी उनके क्षेत्र में जाता है उसे उनके आदेशों और व्यवस्थाओं का पालन शिष्ट और कोमल तरीके से करना होता है और उनकी अभिव्यक्तियों से इशारा लेना होता है। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र के स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति होती है। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते, वे सिद्धांतों का ज़रा भी पालन नहीं करते, और केवल निजी हितों और अपने ही रुतबे के बारे में सोचते हैं—जो मसीह-विरोधियों के स्वार्थ और नीचता के हॉल्मार्क हैं।
एक और स्थिति है। चाहे भाई-बहनों द्वारा चढ़ाया गया पैसा हो या सामान, सामान्य परिस्थितियों में, चाहे वह कितनी भी मात्रा में भी हो, उसे परमेश्वर के घर को सौंप दिया जाना चाहिए। लेकिन कुछ मसीह-विरोधी गलत ढंग से यह मान लेते हैं कि “हमारी कलीसिया में भाई-बहनों द्वारा चढ़ाया गया पैसा हमारी कलीसिया का है और उसे हमारी कलीसिया को ही रखना और इस्तेमाल करना है। हम उसे कैसे इस्तेमाल या वितरित करते हैं, इसमें किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है और निश्चित रूप से उनके पास इसे ले लेने की योग्यता नहीं है।” इसलिए अगर तुम उनसे पूछो कि कलीसिया को कितना चढ़ावा मिला है, तो वे डरेंगे कि तुम उसे ले जा सकते हो और वे तुम्हें वास्तविक मात्रा नहीं बताएँगे। कुछ लोग सोच सकते हैं, “इसका क्या मतलब है कि वे उसे ले जाए जाने से डरते हैं? क्या वे इसे खुद खर्च करना चाहते हैं?” जरूरी नहीं है। वे सोचते हैं, “हमारी कलीसिया को भी पैसे की जरूरत है। अगर इसे ले लिया गया, तो हम अपना काम कैसे करेंगे?” इन मामलों के लिए ऊपर वाले के पास सिद्धांत हैं, तो तुम उन्हें सँभालते समय सिद्धांतों का पालन क्यों नहीं करते? वे तुम्हारे काम के लिए पर्याप्त राशि अलग रखते हैं और बाकी राशि परमेश्वर के घर द्वारा समान रूप से व्यवस्थित की जाती है। ये संसाधन कलीसिया के अगुआओं की निजी संपत्ति नहीं हैं; वे परमेश्वर के घर के हैं। लेकिन अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने और अपने कार्य की खातिर और अपने प्रभाव-क्षेत्र के भीतर संसाधनों की गारंटी देने के लिए कुछ मसीह-विरोधी ये चीजें अपने पास रख लेते हैं और अपनी चीजों की तरह उनका उपयोग करते हैं और किसी और को उनका उपयोग नहीं करने देते। क्या यह स्वार्थ और नीचता की अभिव्यक्ति नहीं है? यह भी मसीह-विरोधियों के चरित्र की एक ठेठ और विशिष्ट अभिव्यक्ति है।
ये मसीह-विरोधी खराब और बुरे, कुरूप, दुष्ट, नीच और अधम हैं। उनके बारे में बात करना ही घिनौना और क्रोध दिलाने वाला है। वे बाहर से इंसानों जैसे दिख सकते हैं और मीठा बोल सकते हैं, सभी तरह के धर्म-सिद्धांतों को समझते और उनमें महारत हासिल किए हुए प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन जैसे ही वे कार्य करते हैं, उनकी कुरूप और बुरी मानवता उजागर हो जाती है जो देखने में अप्रिय लगती है। चूँकि प्रत्येक मसीह-विरोधी के चरित्र में ये कुरूप और बुरे गुण होते हैं, इसलिए वे ऐसे बुरे कर्म करने में सक्षम होते हैं। इसीलिए उन्हें मसीह-विरोधी कहा जाता है। क्या यह तर्क समझ में आता है? (बिल्कुल।) दूसरे शब्दों में, यह उनके चरित्र में उन खल और दुष्ट स्वभावों की उपस्थिति ही है, जो उन्हें मसीह-विरोधियों के बुरे कर्म करने देती है, जिससे उन्हें इस तरह वर्गीकृत किया जाता है। यही हकीकत है। अगर कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है, तो क्या उसकी मानवता को दयालु, सीधी-सरल और ईमानदार के रूप में वर्णित करना सही होगा? निश्चित रूप से नहीं। अगर कोई व्यक्ति आदतन झूठ बोलता है, तो उसमें मसीह-विरोधी का गुण है। अगर कोई व्यक्ति कपटी और निर्दयी है, तो उसमें भी मसीह-विरोधी का गुण है। अगर कोई व्यक्ति स्वार्थी, नीच, सिर्फ व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित, बेलगाम होकर बुरी चीजें काम करने वाला और शर्म से बेपरवाह है, तो वह एक बुरा व्यक्ति है। अगर ऐसा बुरा व्यक्ति सत्ता में आ जाता है, तो वह मसीह-विरोधी बन जाता है।
ङ. ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना
मसीह-विरोधियों की मानवता में एक ऐसी चीज भी होती है जो घृणित और वीभत्स दोनों होती है—यानी वे ताकतवरों से चिपकते हैं और कमजोरों को दबाते हैं। अगर कलीसिया या दुनिया में कुछ मशहूर हस्तियाँ या शक्तिशाली या हैसियतदार लोग हैं, तो चाहे वे कोई भी हों, मसीह-विरोधी उनके लिए अपने दिल में असीम ईर्ष्या और प्रशंसा रखते हैं, यहाँ तक कि वे उनकी चापलूसी भी करते हैं। जब वे ईसाई धर्म में विश्वास करते हैं, तो वे दावा करते हैं कि कुछ राजनीतिक प्रमुख हैं जो विश्वासी हैं, और जब वे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य के इस चरण को स्वीकारते हैं, तो वे दावा करते हैं कि प्रमुख संप्रदायों के कुछ पादरी भी इसे स्वीकार चुके हैं। जो कुछ भी वे करते हैं, उसे हमेशा एक प्रभावशाली शीर्षक देते हैं, वे हमेशा मशहूर हस्तियों का सम्मान और अनुकरण करते हैं और सिर्फ तभी संतुष्ट महसूस करते हैं जब वे कम से कम किसी मशहूर हस्ती या हैसियतदार व्यक्ति से चिपकने में कामयाब हो जाते हैं। जब हैसियतदार लोगों की बात आती है, तो चाहे वे अच्छे हों या बुरे, मसीह-विरोधी बिना थके उनकी खुशामद, चापलूसी और ठकुरसुहाती करते हैं। यहाँ तक कि वे उन्हें चाय बनाकर पिलाने और उनका मल-मूत्र उठाने के लिए भी तैयार रहते हैं। दूसरी ओर, बिना हैसियत वाले लोग चाहे कितने भी सच्चे, ईमानदार और दयालु क्यों न हों, उनके साथ व्यवहार करते समय मसीह-विरोधी उन्हें जब भी संभव हो, धमकाते और रौंद देते हैं। वे अक्सर इस बात की डींग हाँकते हैं कि फलाँ व्यक्ति समाज में कितना बड़ा बिजनेस एग्जीक्यूटिव है, फलाँ व्यक्ति का पिता कितना अमीर है, फलाँ व्यक्ति के पास कितना पैसा है और फलाँ व्यक्ति का परिवार या कंपनी कितनी बड़ी है, और वे समाज में उनकी प्रमुखता पर जोर देते हैं। जहाँ तक कलीसिया में नकली अगुआओं और मसीह-विरोधियों की बात है, तो चाहे वे कितने भी बुरे कर्म क्यों न करें, मसीह-विरोधी कभी उनकी रिपोर्ट नहीं करते, उन्हें उजागर नहीं करते या उन्हें पहचानते नहीं। इसके बजाय, वे उनका घनिष्ठता से अनुगमन करते हैं और जो कुछ भी उनसे करने के लिए कहा जाता है, वही करते हैं। वे जिस भी स्तर के अगुआ का अनुगमन करते हैं, उसी के अनुयायी, प्यादे और गुलाम बन जाते हैं। शक्ति, प्रभाव, धन और हैसियत वाले लोगों के साथ व्यवहार करते समय वे असाधारण रूप से आज्ञाकारी, विनम्र और अनाड़ी दिखते हैं। वे अत्यंत आज्ञाकारी और विनम्र हो जाते हैं और उन लोगों की हर बात का सिर हिलाकर पालन करते हैं। लेकिन बिना हैसियत वाले आम लोगों से व्यवहार करते समय वे एक अलग ही शान बघारते हैं, लोगों पर हावी होने के लिए बोलते समय एक रोबदार तरीका अपनाते हैं, श्रेष्ठ बनना चाहते हैं, मानो वे अपराजेय, औरों से ज्यादा शक्तिशाली और ऊँचे हों, जिससे उनमें किसी भी समस्या, दोष या कमजोरी को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह किस तरह का चरित्र है? क्या इसके और कपटी, निर्दयी और शर्म से बेपरवाह होने के बीच कोई संबंध है? (बिल्कुल है।) ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना—क्या यह मसीह-विरोधियों की मानवता का कुरूप और बुरा पक्ष नहीं है? क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसी मानवता वाले लोग ईमानदार होते हैं? (नहीं।) क्या वे हैसियतदार और शक्तिशाली लोगों से जो कहते हैं, वह सच होता है? क्या वे कमजोरों से जो कहते हैं, वह सच होता है? (उसमें से कुछ भी सच नहीं होता।) इसलिए इस मद का आदतन झूठ बोलने से कुछ संबंध है। इस मद से आँकें तो, मसीह-विरोधियों का चरित्र बेहद घिनौना होता है और उनके दो बिल्कुल अलग चेहरे होते हैं। ऐसे व्यक्ति का एक उपनाम होता है—“गिरगिट।” वे लोगों के साथ कभी सत्य-सिद्धांतों, मानवता या इस आधार पर व्यवहार नहीं करते कि वे लोग परमेश्वर के घर में सत्य का अनुसरण कर रहे हैं या नहीं। इसके बजाय, वे लोगों के साथ सिर्फ उनकी हैसियत और प्रभाव के आधार पर अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं। हैसियत और योग्यताओं वाले लोगों के साथ व्यवहार करते समय वे उनकी खुशामद करने, उनकी चापलूसी करने और उनके करीब जाने की हर संभव कोशिश करते हैं। अगर वे इन लोगों द्वारा पीटे या डाँटे भी जाएँ, तो भी वे बिना किसी शिकायत के इसे सह लेते हैं। यहाँ तक कि वे लगातार अपनी अनुपयोगिता भी स्वीकारते हैं और दास बन जाते हैं, हालाँकि वे अंदर से जो सोचते हैं वह उनके बाहरी व्यवहार से बिल्कुल अलग होता है। अगर कोई हैसियत और प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति बोलता है, भले ही वह शैतान की भ्रांति और पाखंड ही हो जो सत्य से पूरी तरह से असंबंधित हो, तो वे इसे सुनेंगे, सहमति में सिर हिलाएँगे और ऊपरी तौर पर इसे स्वीकारेंगे। दूसरी ओर, अगर किसी में योग्यता या हैसियत की कमी होती है, तो चाहे उसके शब्द कितने भी सही क्यों न हों, मसीह-विरोधी उसे अनदेखा कर नीची निगाह से देखेंगे। भले ही वह जो कहता है वह सिद्धांतों और सत्य के अनुरूप हो, वे इसे नहीं सुनेंगे, बल्कि उसका खंडन करेंगे, मजाक उड़ाएँगे और उपहास करेंगे। यह मसीह-विरोधियों के चरित्र में पाया जाने वाला एक और लक्षण है। आचरण और दुनिया से व्यवहार करने के उनके तरीकों और सिद्धांतों से आँकें तो, इन व्यक्तियों को निश्चित रूप से असंदिग्ध छद्म-विश्वासियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनके चरित्र की अभिव्यक्तियाँ नीच, घिनौनी और अधम होती हैं।
ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना मसीह-विरोधियों जैसे लोगों के लिए सामाजिक मेलजोल का एक सामान्य तरीका है। वे अविश्वासियों के साथ जीवंत बातचीत में शामिल होते हैं और उनके साथ घुलमिल जाते हैं, लेकिन जब वे मुड़कर भाई-बहनों को देखते हैं, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता न कोई समान आधार होता है। ये मसीह-विरोधी हैं। परमेश्वर में आस्था, कर्तव्य-पालन, जीवन-प्रवेश या स्वभाव में बदलाव से संबंधित मामलों पर चर्चा करते समय उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता और इसमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती। लेकिन अविश्वासियों, खासकर धनी और प्रभावशाली लोगों, राजनीतिक हस्तियों, सामाजिक अभिजात वर्ग, संगीत और फिल्म की मशहूर हस्तियों, सामाजिक रुझानों और भोजन और मनोरंजन से संबंधित मामलों के बारे में बात करते समय वे बेहद बातूनी हो जाते हैं और उन्हें रोका नहीं जा सकता। ऐसा लगता है कि वे ऐसे जीवन और सामाजिक हैसियत के लिए खास तौर से लालायित रहते हैं। हालाँकि ऐसे व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन यह सिर्फ उनकी अपनी कठिनाइयों और छिपे हुए इरादों और लक्ष्यों के कारण होता है। वे सिर्फ आशीषों के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी वे ऐसी चीजें नहीं छोड़ सकते। इसलिए, भोजन और मनोरंजन के मामलों पर चर्चा करते समय वे उत्साही हो जाते हैं। लेकिन भाई-बहनों से बात करते समय अलग ही कहानी होती है। अपने दिल और आत्मा की गहराइयों से वे उन लोगों को नीची निगाह से देखते हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, सत्य का अनुसरण करते हैं और ईमानदार और सच्चे होते हैं। वे ऐसे व्यक्तियों के साथ भेदभाव करते हैं और उनका तिरस्कार करते हैं। मसीह-विरोधी जब कलीसिया में अगुआओं को देखते हैं तो सोचते हैं, “ये अगुआओं जैसे नहीं दिखते; ये अधिकारियों जैसे बिल्कुल नहीं दिखते। सांसारिक अधिकारियों की तुलना में ये बहुत हीन हैं, इनके आचरण और चाल-ढाल में काफी कमी है!” अगर उन्हें पता चलता है कि कुछ अगुआओं ने उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं की है, तो वे अपने दिल में उनके साथ भेदभाव करते हैं। तुम लोगों को क्या लगता है कि जब वे मुझे देखते हैं, तो वे कैसा महसूस करते हैं? एक नजर देखने पर वे सोचते हैं, “मसीह, देहधारी परमेश्वर, उच्च शिक्षा से रहित एक नाचीज है, जो उतना लंबा नहीं है, जिसका रूप आकर्षक नहीं है, जिसकी चाल-ढाल में कमी है और जिसका पहनावा सामान्य है। हर कोई कहता है कि उसके पास सत्य है; यह एकमात्र ऐसी चीज है जो ध्यान देने लायक है, उसकी और कोई चीज प्रभावशाली नहीं है। देखो, समाज के वे शक्तिशाली लोग क्या पहनते हैं! तुम्हारे कपड़े और जूते किस ब्रांड के हैं? तुम्हारा हेयरस्टाइल कैसा है? क्या तुमने किसी मशहूर सैलून में बाल कटवाए हैं? एक बार बाल कटवाने में कितना खर्चा आया?” मैं कहता हूँ, “मैं बाल कटवाने पर एक पैसा भी खर्च नहीं करता; मैं घर पर खुद ही बाल काट लेता हूँ।” वे कहते हैं, “क्या तुम सौंदर्य-उपचार के लिए जाते हो? क्या तुम होटलों में ठहरते हो? कितने सितारों वाले होटलों में ठहरते हो? क्या तुम कभी लग्जरी क्रूज पर गए हो?” मैं कहता हूँ, “मैं इन चीजों के बारे में नहीं जानता।” वे कहते हैं, “तो तुम वाकई बहुत अबोध हो। अपनी आलीशान पहचान और हैसियत के बावजूद तुम्हें दुनिया की इन शानदार और उच्च-स्तरीय चीजों की जानकारी या समझ क्यों नहीं है? जैसी तुम्हारी परिस्थितियाँ हैं, तुम्हें खुद ही थोड़ा अनुभव करना चाहिए। कम से कम, तुम्हें एक उच्च-स्तरीय ब्यूटी-सैलून में जाना चाहिए, पाँच-सितारा होटल में ठहरना चाहिए और एक लग्जरी क्रूज पर जाना चाहिए। कम से कम, हवाई यात्रा करते हुए तुम्हें प्रथम श्रेणी में बैठना चाहिए।” जब वे मुझे देखते हैं तो मुझे तुच्छ समझते हैं, लेकिन उन्हें एक बात स्वीकारनी होगी, और वह यह कि, “सभाओं के दौरान तुम्हारे द्वारा कही गई कोई बात मैंने पहले कभी नहीं सुनी है : मुझे तुम्हारी बातें सुननी चाहिए।” लेकिन सभाओं के बाद वे मुझे पहचानते ही नहीं। ठीक भेड़िये की तरह : जब तुम उसे खाना खिला देते हो, तो वह पलटकर तुम्हें काट लेता है। यही है भेड़िये की प्रकृति। जब मसीह-विरोधी साधारण भाई-बहनों को देखते हैं जिनके पास पैसा या प्रभाव नहीं होता, जो सिर्फ सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करने में सक्षम हैं, और जो स्वेच्छा से अपने कर्तव्य निभाते हैं, तो वे उनका तिरस्कार कर उन्हें बाहर निकाल देते हैं। जब वे मसीह को देखते हैं और उन्हें एक साधारण व्यक्ति दिखाई पड़ता है, जो हर पहलू में, आकृति, रूप और चाल-ढाल में, एक सीधा-सादा और साधारण व्यक्ति है, तो क्या वे तुरंत अपना आंतरिक स्वभाव और दृष्टिकोण बदल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं बदल सकते।) चीजों के प्रति उनका रवैया उनके चरित्र पर आधारित होता है। सामान्य मानवता के अभाव में मसीह के प्रति उनका रवैया निस्संदेह एक साधारण व्यक्ति के प्रति उनके रवैये जैसा ही होता है। उसमें जरा-सा भी सम्मान नहीं होता; यह उनके सार और चरित्र से निर्धारित होता है। मसीह-विरोधी की मानवता के इस पहलू की अभिव्यक्ति अन्य पहलुओं की तरह ही घृणित और वीभत्स है।
हमने अभी-अभी मसीह-विरोधी के चरित्र के बारे में जिन विभिन्न लक्षणों पर चर्चा की, वे अलग-अलग रूप से उसके चरित्र की अच्छाई या बुराई, श्रेष्ठता या हीनता प्रकट कर सकते हैं। आदतन झूठ बोलने वाले व्यक्ति का चरित्र श्रेष्ठ होता है या हीन? (हीन।) स्वार्थी और नीच व्यक्ति की मानवता अच्छी होती है या बुरी? (बुरी।) शर्म से बेपरवाह व्यक्ति की मानवता अच्छी होती है या बुरी? (बुरी।) कपटी और निर्दयी व्यक्ति का चरित्र श्रेष्ठ होता है या हीन? (हीन।) ऐसे व्यक्ति का चरित्र कैसा होता है, जो सिर्फ ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना जानता है, जो सिर्फ ऐसे सिद्धांतों का पालन करता है? (घटिया।) ऐसे व्यक्ति चरम सीमा तक घटिया होते हैं, उनमें न सिर्फ सामान्य मानवता का अभाव होता है, बल्कि सटीक रूप से कहा जा सकता है कि वे मनुष्य नहीं हैं—वे मैल हैं, शैतान हैं। जिस किसी में भी जरा-सा भी जमीर और विवेक नहीं होता, वह शैतान होता है, मनुष्य नहीं।
च. सामान्य लोगों से ज्यादा भौतिक चीजों का अभिलाषी होना
मसीह-विरोधियों की मानवता में एक और अभिव्यक्ति होती है : वे सामान्य लोगों से ज्यादा भौतिक चीजों के अभिलाषी होते हैं। यानी भौतिक चीजों के लिए उनकी इच्छा और माँग विशेष रूप से बड़ी होती है—वह असीमित होती है। वे एक असाधारण जीवनशैली की आकांक्षाओं से भरे होते हैं और अतृप्त रूप से लालची होते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं : “अधिकांश मसीह-विरोधियों में यह अभिव्यक्ति नहीं होती।” इसके न होने का मतलब यह नहीं है कि यह उनकी मानवता में अनुपस्थित है। जब ऐसे लोग हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, तो वे क्या खाते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं और कैसे दिखते हैं, इसके लिए उनके क्या सिद्धांत होते हैं? जैसे ही वे हैसियत प्राप्त करते हैं, उन्हें अपनी मर्जी से काम करना होता है, उन्हें अवसर मिलते हैं, कुछ स्थितियाँ मिलती हैं और उनका जीवन अलग होता है। वे अपने खाने के बारे में तुनकमिजाज हो जाते हैं, आडंबर और विलासिता पर बल देते हैं। वे ब्रांडेड चीजें पहनने और इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं, और वे जिस घर में रहते हैं और जो कार चलाते हैं, वह उच्च-स्तरीय और शानदार होनी चाहिए। यहाँ तक कि जब वे कोई यूटिलिटी वाहन खरीदते हैं, तो उसके अंदर भी शानदार सामान लगा होना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं : “अगर उनके पास पैसे नहीं होते, तो वे इन चीजों पर इतना जोर क्यों देते हैं?” सिर्फ इसलिए कि उनके पास पैसे नहीं हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वे ऐसी चीजों के पीछे नहीं भागते या यह इच्छा उनकी मानवता में अनुपस्थित होती है। इसलिए, जब मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में चढ़ावों पर पकड़ बना लेते हैं, तो वे उन्हें लापरवाही से उड़ाते हैं। वे हर चीज खरीदना और उसका आनंद लेना चाहते हैं, वे ऐसा बेशर्मी की हद तक, और इस हद तक करते हैं कि इसे नियंत्रित करना मुश्किल होता है। उन्हें सोने की परत चढ़ी प्यालियों में परोसी गई उच्च गुणवत्ता वाली चाय पीनी होती है, उनका भोजन शानदार दावत होना चाहिए, वे विशेष ग्रेड की जिनसेंग का सेवन करने पर जोर देते हैं और सिर्फ विश्वस्तरीय ब्रांडों के कंप्यूटरों और फोनों का उपयोग करते हैं जो हमेशा नवीनतम मॉडलों के होते हैं। वे हजारों युआन के चश्मे पहनते हैं, हेयरस्टाइल पर सैकड़ों युआन खर्च करते हैं, और मालिश और सौना सत्रों के लिए एक हजार युआन या उससे भी ज्यादा का भुगतान करते हैं। संक्षेप में, वे हर चीज के सर्वश्रेष्ठ और ब्रांडेड होने की माँग करते हैं और उसी चीज का आनंद लेना चाहते हैं जिसका मशहूर हस्तियाँ और शक्तिशाली लोग आनंद लेते हैं। जब मसीह-विरोधी हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, तो ये तमाम बदसूरत चीजें जाहिर हो जाती हैं। सभाओं के दौरान अगर सिर्फ तीन से पाँच लोग उनके उपदेश सुनते हैं, तो वे इसे अपर्याप्त पाते हैं और तीन सौ से पाँच सौ लोगों के होने पर जोर देते हैं। जब दूसरे कहते हैं कि बाहरी परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं, इसलिए तीन से पाँच लोगों की सभा भी काफी अच्छी है, तो वे जवाब देते हैं : “यह नहीं चलेगा—मेरा उपदेश सुनने वाले इतने कम लोग क्यों हैं? यह इस लायक नहीं है कि मैं इसके लिए समय दूँ। हमें कलीसिया के लिए एक बड़ा भवन खरीदना चाहिए, जिसमें ज्यादा सम्मानजनक उपदेश के लिए हजारों लोग आ सकें।” क्या वे मौत को बुलावा नहीं दे रहे? यह वैसी ही चीज है, जैसी मसीह-विरोधी करते हैं। क्या वे शर्म से बेपरवाह भी नहीं हैं? उनमें आलीशान जीवन और भौतिक चीजों के लिए एक बेहद अनियंत्रित इच्छा और रुचि होती है, जो मसीह-विरोधियों के चरित्र का एक और लक्षण है। जैसे ही कोई स्वादिष्ट भोजन, लग्जरी कारों, ब्रांडेड कपड़ों और उच्च-स्तरीय और महँगी वस्तुओं का उल्लेख करता है, उनकी आँखें चमक उठती हैं और लालच से हरी हो जाती हैं, और उनकी इच्छा सतह पर आ जाती है। यह इच्छा कैसे पैदा होती है? यह स्पष्ट रूप से उनकी राक्षसी प्रकृति का प्रकाशन है। कुछ मसीह-विरोधियों के पास पैसे कम हो सकते हैं, और जब वे किसी को महँगे गहने या दो-तीन कैरेट की हीरे की अँगूठी पहने देखते हैं, तो उनकी आँखें चमक उठती हैं और वे सोचते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करता तो पाँच कैरेट की अँगूठी पहन सकता था।” वे इस तथ्य पर विचार करते हैं कि उनके पास एक कैरेट की भी अँगूठी नहीं है, और वे परेशान हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना किसी लायक नहीं है। फिर भी, आगे विचार करने पर वे सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण मुझे भविष्य में बड़े आशीष प्राप्त होंगे। मेरे पास पाँच सौ कैरेट का हीरा हो सकता है और मैं उसे अपने सिर पर पहन सकता हूँ।” क्या उनमें इच्छाएँ नहीं हैं? टीवी पर धनी व्यक्तियों को डिजाइनर कपड़े पहने और समुद्र में आलीशान क्रूज जहाजों पर देख उन्हें लगता है कि यह बेहद आनंदमय, रोमांटिक, शानदार और ईर्ष्यायोग्य है। वे इस पर लार टपकाते हुए कहते हैं, “मैं कब उस तरह का व्यक्ति, लोगों के बीच असाधारण व्यक्ति बन सकता हूँ? मैं कब ऐसी जिंदगी का आनंद लूँगा?” वे इसे तब तक बार-बार देखते हैं, जब तक कि उन्हें नहीं लगता कि परमेश्वर में विश्वास करना वास्तव में नीरस है। लेकिन फिर वे दोबारा चिंतन करते हुए सोचते हैं, “मैं इस तरह नहीं सोच सकता। मैं परमेश्वर में विश्वास क्यों करता हूँ? ‘सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।’ भविष्य में मेरा जीवन उनसे बहुत बेहतर होगा। वे एक आलीशान क्रूज पर जाते हैं, लेकिन मैं एक आलीशान विमान या आलीशान उड़न-तश्तरी पर उड़ूँगा—मैं चाँद पर जाऊँगा!” क्या ये विचार थोड़े भी समझदारी भरे हैं? क्या ये सामान्य मानवता के अनुरूप हैं? (नहीं, ये सामान्य मानवता के अनुरूप नहीं हैं।) यह मसीह-विरोधियों की मानवता का एक और तत्त्व है—भौतिक चीजों और एक शानदार जीवन-शैली के लिए एक बेहद अनियंत्रित अभिलाषा। जब वे इन्हें प्राप्त कर लेते हैं, तो वे एक लोलुप नजर और प्रकृति के साथ अतृप्त रूप से लालची हो जाते हैं और हमेशा के लिए ये चीजें पाना चाहते हैं। मसीह-विरोधियों की मानवता में शक्तिशाली लोगों से ईर्ष्या करना भर शामिल नहीं है; वे भौतिक चीजें और उच्च गुणवत्ता वाला जीवन भी चाहते हैं। सामान्य मानवता में जीवन और भौतिक चीजों के लिए जरूरतों की एक उचित सीमा होती है : उनकी दैनिक जरूरतें, कार्य और जीवन-परिवेशों की जरूरतें और साथ ही उनकी शारीरिक जरूरतें भी होती हैं। इतना ही काफी है कि ये जरूरतें पूरी हो जाएँ, और अपनी क्षमता और आर्थिक स्थितियों के आधार पर उन्हें नियंत्रित करना अपेक्षाकृत सामान्य माना जाता है। लेकिन मसीह-विरोधियों की भौतिक चीजों की जरूरत और उनमें उनकी लिप्तता असामान्य और अतृप्त होने वाली होती है। कुछ मसीह-विरोधी खास तौर पर उच्च गुणवत्ता वाले जीवन के पीछे दौड़ते हैं—जब वे ऐसे मेजबान परिवार में रहते हैं जहाँ सिर्फ सादा खाना होता है, तो वे थोड़ा चिढ़ जाते हैं। इसके अलावा, अगर इस परिवार के लोग सत्य का अनुसरण कर रहे होते हैं, काफी ईमानदार होते हैं और उनकी चापलूसी नहीं करते, लल्लो-चप्पो नहीं करते या वे जो सुनना चाहते हैं वह नहीं कहते, तो वे और भी ज्यादा चिढ़ जाते हैं और सोचते हैं, “मुझे अच्छा खाना और बड़े घर में रहना कहाँ मिल सकता है? किसके पास अच्छी जीवन-स्थितियाँ हैं? किसके पास कार है जिसमें वह मुझे विभिन्न स्थानों पर ले जा सकता हो और वहाँ से मुझे ला सकता हो, ताकि मुझे पैदल न चलना पड़े?” वे हमेशा ऐसे ही मामलों की चिंता करते रहते हैं। क्या तुम लोगों के आसपास ऐसे लोग हैं? क्या तुम लोग ऐसे व्यक्ति हो? (ये चीजें हमारी मानवता में भी मौजूद हैं।) तो क्या तुम लोग उन्हें नियंत्रित रख सकते हो? सुविधाभोगी होना अतृप्त लालच के समान नहीं है; इसे संयमित रखना चाहिए और अपने कर्तव्य-प्रदर्शन के आड़े नहीं आने देना चाहिए। सामान्य भ्रष्ट लोगों में यह मानवता होती है। लेकिन मसीह-विरोधी संयम का अभ्यास नहीं करते; वे अतृप्त और आदतन लालची होते हैं। इस अभिव्यक्ति के बारे में क्या तुम लोगों के पास कुछ और जोड़ने के लिए है? (परमेश्वर, मैंने पहले एक मसीह-विरोधी देखी है। उस समय एक बहन ने अपने लिए दस से ज्यादा डाउन-जैकेटें खरीदी थीं जो सभी प्रसिद्ध ब्रांडों की थीं और यह मसीह-विरोधी उन्हें एक-एक करके पहनती थी, जब भी बाहर जाती थी एक नई जैकेट पहनती थी। बाद में वह एक अगुआ बन गई और उसने परमेश्वर के चढ़ावों का उपयोग एक बड़ी कार खरीदने के लिए किया। किसी ने विशेष रूप से उसकी मेजबानी करने के लिए एक अच्छा घर तक खरीद लिया, और जब वह खरीदारी करने जाती तो यह मेजबान बहन उसके पीछे-पीछे जाती। अगर उसे कोई कपड़ा पसंद आता तो वह बस उसकी ओर इशारा कर देती और उसकी मेजबान जल्दी ही उसे खरीदकर दे देती। घर लौटते हुए वह मेजबान परिवार को पहले ही कॉल करके कह देती कि वह पकौड़े खाना चाहती है। पकौड़े तलने के समय का हिसाब ठीक से रखना होता था—न तो बहुत जल्दी जिससे वे ठंडे न हो जाएँ, और न बहुत देर से जिससे उसे घर पहुँचने पर भूखे इंतजार न करना पड़े। वह एक विधवा महारानी की तरह थी; उसकी जीवनशैली बेहद विलासितापूर्ण थी। बाद में इस मसीह-विरोधी को निष्कासित कर दिया गया।) देखो, ये लोग कितने अज्ञानी और मूर्ख थे, एक मसीह-विरोधी के लिए घर और बड़ी कार खरीद रहे थे! मसीह-विरोधी मानते हैं कि लोग इस दुनिया में चीजों का आनंद लेने के लिए आते हैं, कि अगर कोई इन चीजों में लिप्त नहीं होता तो उसका जीवन व्यर्थ है। यह उनका सिद्धांत और मत है। क्या यह सिद्धांत सही है? यह विशुद्ध रूप से अविश्वासियों, क्रूर पशुओं और आत्माविहीन मृत लोगों का दृष्टिकोण है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और फिर भी ऐसे दृष्टिकोण रखते हैं, वे निरे छद्म-विश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। जब ऐसे लोग हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, तो वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी बन जाते हैं, और बिना हैसियत के वे बुरे लोग होते हैं।
आदतन झूठे होना, कपट और निर्दयता, गौरव की भावना से रहित और शर्म से बेपरवाह होना, स्वार्थी और नीच होना, ताकतवरों से चिपकना और कमजोरों को दबाना, और सामान्य लोगों से ज्यादा भौतिक चीजों का अभिलाषी होना—मसीह-विरोधियों के चरित्र के ये लक्षण विशिष्ट, अत्यधिक प्रतिनिधिक और स्पष्ट हैं। हालाँकि इनमें से कुछ अभिव्यक्तियाँ कुछ हद तक सामान्य लोगों में दिखाई दे सकती हैं, लेकिन उनकी अभिव्यक्तियाँ सिर्फ एक भ्रष्ट स्वभाव या असामान्य मानवता की अभिव्यक्तियाँ या मानवता की कमी होती हैं, जो शैतान की भ्रष्टता से उत्पन्न होती हैं। परमेश्वर के वचन पढ़कर ये लोग जमीर की जागरूकता और इन चीजों को छोड़ने और इनके खिलाफ विद्रोह कर पश्चात्ताप करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। ये लक्षण उनमें प्रभावी भूमिका नहीं निभाते और ये सत्य के उनके अनुसरण या उनके कर्तव्यों के प्रदर्शन को प्रभावित नहीं करेंगे। सिर्फ मसीह-विरोधी कितने ही उपदेश सुनकर भी सत्य स्वीकारने से इनकार करते हैं। उनकी मानवता में निहित गुण और लक्षण नहीं बदलेंगे, और यही कारण है कि ऐसे लोगों की परमेश्वर के घर में निंदा की जाती है और उन्हें कभी बचाया नहीं जा सकता। उन्हें क्यों नहीं बचाया जा सकता? ऐसे चरित्र वाले लोगों को इसलिए नहीं बचाया जा सकता कि वे सत्य स्वीकारने से इनकार करते हैं और इसलिए भी कि वे सत्य, परमेश्वर और सभी सकारात्मक चीजों के प्रति शत्रुता रखते हैं। उनमें उद्धार के लिए अपेक्षित स्थितियाँ और मानवता नहीं होती, इसलिए इन व्यक्तियों का हटाया जाना और नरक में डाला जाना नियत है।
12 दिसंबर 2020