प्रश्न 9: मैं जानना चाहती हूँ कि अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को शैतान के प्रभाव से बचाने के लिए अपना न्याय कार्य कैसे करते हैं। क्या आप हमें अपने अनुभव और गवाहियों के बारे में बता सकते हैं?

उत्तर: यह एक बहुत बढ़िया सवाल है! परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की खोज और जांच-पड़ताल करते समय हमें ये अहम सवाल पूछने चाहिए। परमेश्वर में अपनी आस्था के जरिये उद्धार पाना हमारे लिए बहुत ही फायदेमंद होगा! सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को शैतान के प्रभाव से बचाने के लिए अंत के दिनों का न्याय कार्य कैसे करते हैं, इस संबंध में आइए, पहले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ें! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

"परमेश्वर न्याय और ताड़ना का कार्य करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त कर सके और उसकी गवाही दे सके। मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव का परमेश्वर द्वारा न्याय के बिना, संभवतः मनुष्य अपने धार्मिक स्वभाव को नहीं जान सकता था, जो कोई अपराध नहीं करता और न वह परमेश्वर के अपने पुराने ज्ञान को एक नए रूप में बदल पाता। अपनी गवाही और अपने प्रबंधन के वास्ते, परमेश्वर अपनी संपूर्णता को सार्वजनिक करता है, इस प्रकार, अपने सार्वजनिक प्रकटन के ज़रिए, मनुष्य को परमेश्वर के ज्ञान तक पहुँचने, उसको स्वभाव में रूपांतरित होने और परमेश्वर की ज़बर्दस्त गवाही देने लायक बनाता है। मनुष्य के स्वभाव का रूपांतरण परमेश्वर के कई विभिन्न प्रकार के कार्यों के ज़रिए प्राप्त किया जाता है; अपने स्वभाव में ऐसे बदलावों के बिना, मनुष्य परमेश्वर की गवाही देने और उसके पास जाने लायक नहीं हो पाएगा। मनुष्य के स्वभाव में रूपांतरण दर्शाता है कि मनुष्य ने स्वयं को शैतान के बंधन और अंधकार के प्रभाव से मुक्त कर लिया है और वह वास्तव में परमेश्वर के कार्य का एक आदर्श, एक नमूना, परमेश्वर का गवाह और ऐसा व्यक्ति बन गया है, जो परमेश्वर के दिल के क़रीब है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं)

जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य को व्यक्त करना और अपना न्याय कार्य करना शुरू किया है, तब से परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खाना, पीना और उनका आनंद लेना शुरू कर दिया है। हर सभा में वे परमेश्वर के वचनों में मौजूद सत्य की अपनी समझ और असली अनुभवों की चर्चा करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को उनके चुने हुए लोगों तक पहुंचाते हैं, ये मनुष्य के पाप और परमेश्वर विरोध के उसके स्वभाव और सार का न्याय कर उसे उजागर करते हैं, शैतान द्वारा मनुष्य को धोखा देने के तरीकों, और शैतान के अधिकार-क्षेत्र में जीते हुए मनुष्य के शैतान के अधीन रहकर परमेश्वर का विरोध करने, धोखा देने के उनके हालात को उजागर करते हैं, मानवजाति के सामने परमेश्वर के धर्मी, प्रतापी और दयालु स्वभाव को प्रकट करते हैं। परमेश्वर के वचनों से उनके चुने हुए लोग यह समझ पाते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव धर्मी है, और मानवजाति के समक्ष उनके प्रकटनों में वे उनके क्रोध और प्रताप को देख पाते हैं। सभी लोग परमेश्वर के समक्ष चरम सीमा तक पश्चाताप करते हैं और बेहद शर्मिंदा महसूस करते हैं। तब उनको समझ में आता है कि परमेश्वर का पवित्र सार अहानिकर है। वे यह समझ पाते हैं कि वे कितने भ्रष्ट हैं और परमेश्वर को मुंह दिखाने लायक नहीं हैं। वे सब शैतान से नफ़रत करते हैं, और उन्हें खुद से नफ़रत होती है कि वे शैतान के स्वभाव से भरे हैं। वे असल में शैतान के प्रतिरूप में जी रहे हैं और उनमें इंसान जैसी कोई बात है ही नहीं! सिर्फ तभी वे सही मायनों में एक पश्चातापी दिल बना पाते हैं और एक नया इंसान बनने के लिए सत्य को स्वीकार करने को तैयार होते हैं। हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के अनुभव से समझा है कि भ्रष्ट मानवजाति परमेश्वर का विरोध करके और उनको धोखा देकर बिना छुटकारे के पाप में जी सकती है, क्योंकि उस पर शैतान के धोखे और तरह-तरह के प्रभावों का नियंत्रण है। उदाहरण के लिए: सीसीपी का प्रभाव, धार्मिक मसीह-विरोधियों का प्रभाव, शैतान की तरह-तरह की धर्म-विरोधी भ्रांतियां, सिद्धांत और नियम, वगैरह-वगैरह का प्रभाव। शैतान के ये दुष्प्रभाव एक अदृश्य मायाजाल की तरह हैं, जो हम सबको बांधे हुए और काबू किये हुए है, ताकि हम प्रकाश और परमेश्वर के प्रकटन को न देख पायें, परमेश्वर के इरादों को न समझ पायें और बुरी तरह संघर्ष करते हुए अंधेरों में जीते रहें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के न्याय के कारण ही, हम समझ पाते हैं कि मानवजाति में भ्रष्टाचार कितना गहरा है और इस सच को जान पाते हैं कि दुनिया कितनी अंधकारपूर्ण, बुरी और शैतान के काबू में है। हम सीसीपी के धोखेबाज और हानिकारक दानवी सार को साफ तौर पर समझ पाते हैं, धार्मिक पादरियों और एल्डर्स के पाखंडी और मसीह-विरोधी स्वभाव को समझ पाते हैं, और उनकी विभिन्न धर्म विरोधी भ्रांतियों को समझ पाते हैं, और समझ पाते हैं कि हम शैतान द्वारा धोखा खा चुके हैं और बड़ी गहराई तक भ्रष्ट हो चुके हैं! शैतान के ज़हर, उसके सिद्धांत और नियम हमारा स्वभाव बन गये हैं। हम ज़िंदा रहने के लिए इन चीज़ों के भरोसे रहते हैं और हमारी ज़िंदगी शैतान के घिनौनेपन में रच-बस गयी है: हम घमंडी, कुटिल, मनमाने, स्वार्थी, घिनौने, धूर्त, धोखेबाज और झूठ के पुलिंदे बन गए हैं, हम सत्य से ऊब चुके हैं और हमारे पास परमेश्वर से डरने वाला दिल भी नहीं है। एक लंबे अरसे से हम शैतान का प्रतिरूप बन चुके हैं, और हममें असली इंसान जैसी कोई बात है ही नहीं! इसके बावजूद, हम अब भी स्वर्ग के राज्य में लाये जाने की उम्मीद करते हैं। हम बड़े बेशर्म हैं! पहले, धार्मिक पादरी और एल्डर्स हमें धोखा देते थे और हम पर नियंत्रण किया करते थे। हम अनजाने में शैतान का अनुसरण, परमेश्वर का विरोध करते थे। हम परमेश्वर में विश्वास करते थे और हर बात में पादरियों और एल्डर्स का कहा मानते थे, मगर हमने सत्य को खोजने और परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने को नहीं चुना। हम वाकई दयनीय और अंधे थे; हम परमेश्वर को नहीं जानते थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय कार्य का अनुभव करने के बाद, हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी सत्य को धीरे-धीरे समझने और जानने लगे हैं, अब हम सकारात्मक और नकारात्मक चीज़ों में फर्क कर पाते हैं और परमेश्वर को बेहतर ढंग से जानने लगे हैं। जीवन और उसूलों के बारे में हमारा नज़रिया भी बदल गया है। हमारे शैतानी स्वभाव का धीरे-धीरे शुद्धिकरण हो गया है और हम अब शैतान के प्रभाव में बंधे नहीं रहे हैं। शैतान से जुड़ी तमाम धर्म विरोधी भ्रांतियां अब हमें आसानी से धोखा नहीं दे सकतीं। हमने धर्म-निरपेक्ष परिवारों में सभी बंधनों से छुटकारा पा लिया है। हम परमेश्वर के सामने एक जीव के रूप में अपने कर्तव्य पूरे करते हुए आज़ादी से जीने लगे हैं, हर दिन परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीते हुए धीरे-धीरे परमेश्वर के वचनों के सत्य को ग्रहण करने लगे हैं। यही तरीका है जिससे हम परमेश्वर से रूबरू होकर उनके कार्य का अनुभव करते हैं। अपने कर्तव्य निभाते हुए, परमेश्वर के प्रेम में जीते हुए, हम उनका अनुशासन, काट-छांट और बर्ताव स्वीकारते हैं, हम सबने महसूस किया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य बहुत ही व्यावहारिक है! यह वाकई लोगों को बचा सकता है और पूर्ण कर सकता है! हम वाकई समझ सकते हैं कि सिर्फ मसीह के आसन के समक्ष न्याय को स्वीकार करके ही मनुष्य सत्य और जीवन पा सकता है। अंत के दिनों के मसीह अनंत जीवन का मार्ग लेकर आते हैं। यह सोलह आने सच है।

"तोड़ डालो अफ़वाहों की ज़ंजीरें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 8: भले ही धार्मिक दुनिया पर पादरियों और एल्डर्स का शासन हो, और वे ऐसे पाखंडी हों जो फरीसियों के रास्ते पर चलते हों, उनके पापों का हमसे क्या सरोकार है? हालांकि हम उनका अनुसरण कर उनकी बात सुनते हैं, परंतु हम जिनमें विश्वास करते हैं वे प्रभु यीशु हैं, पादरी और एल्डर्स नहीं। मुझे लगता है कि हम फरीसियों के रास्ते पर नहीं चल रहे हैं। ऐसे फ़रीसी कैसे बन सकते हैं?

अगला: प्रश्न 10: पादरी युआन अक्सर बाइबल की व्याख्या करते हैं और हमें विनम्र, धैर्यवान तथा आज्ञाकारी बनने की शिक्षा देते हैं। वे बहुत विश्वास के साथ बात करते हैं और बाहर से बहुत धार्मिक भी लगते हैं। पादरी युआन ने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य की आप लोगों की गवाही भी हमारे साथ सुनी थी। वे ये भी मानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का वचन ही सत्य है, परंतु वो इसे स्वीकार क्यों नहीं करते? वे क्यों हर जगह अफवाहें फैला रहे हैं और परमेश्‍वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा और प्रतिरोध कर, लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की ओर मुड़ने से रोक रहे हैं?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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