कार्य और प्रवेश (5)

आज तुम सब जानते हो कि परमेश्वर लोगों की अगुआई जीवन के सही मार्ग पर कर रहा है, कि वह दूसरे युग में प्रवेश करने का अगला कदम उठाने में मनुष्य की अगुआई कर रहा है, कि वह इस अंधकारमय पुराने युग से, शरीर से बाहर, अंधकारमय शक्तियों के उत्पीड़न और शैतान के प्रभाव से दूर जाने में मनुष्य की अगुआई कर रहा है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता के संसार में जी सके। एक सुंदर कल के लिए, और इसलिए कि लोग अपने कल के कदमों में और अधिक साहसी हो जाएँ, परमेश्वर का आत्मा मनुष्य के लिए हर चीज़ की योजना बनाता है, और इसलिए कि मनुष्य और अधिक आनंद प्राप्त करे, परमेश्वर देह में मनुष्य के आगे के मार्ग को तैयार करने के लिए सभी प्रयास करता है, और उस दिन के आगमन में जल्दी कर रहा है, जिसकी मनुष्य इच्छा करता है। क्या तुम लोग इस सुंदर पल को सँजो पाओगे; परमेश्वर के साथ आना कोई सरल उपलब्धि नहीं है। यद्यपि तुम लोगों ने उसे कभी नहीं जाना है, फिर भी तुम बहुत लंबे समय से उसके साथ रहे हो। काश, हर आदमी इन सुंदर किंतु अस्थायी दिनों को हमेशा के लिए याद रख सकता, और पृथ्वी पर उन्हें अपनी बहुमूल्य संपत्ति बना सकता। परमेश्वर का कार्य बहुत पहले से मनुष्य पर प्रकट किया गया है—पर चूँकि लोगों के हृदय बहुत जटिल हैं, और चूँकि उनकी कभी इसमें रुचि नहीं रही है, इसलिए परमेश्वर का कार्य अपनी आरंभिक बुनियाद पर ही रुक गया है। ऐसा लगता है कि उनके विचार, धारणाएँ और मानसिक दृष्टिकोण पुराने हो गए हैं, इतने पुराने कि उनमें से बहुत लोगों का मानसिक दृष्टिकोण पुराने समय के आदिम लोगों जैसा है, और उसमें थोड़ा-सा भी परिवर्तन नहीं हुआ है। परिणामस्वरूप, लोग अभी भी परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य के प्रति बेसुध और अस्पष्ट हैं। वे इस बारे में और भी अधिक अस्पष्ट हैं कि वे स्वयं क्या करते हैं और उन्हें किस चीज़ में प्रवेश करना चाहिए। ये चीज़ें परमेश्वर के कार्य में बहुत मुश्किलें पेश करती हैं और लोगों के जीवन को आगे बढ़ने से रोकती हैं। मनुष्य के सार और वर्तमान में उसकी कमज़ोर क्षमता के मूल कारण से वे मूलभूत रूप से परमेश्वर के कार्य को समझने में असमर्थ हैं, और इस चीज़ों को कभी भी महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं। यदि तुम लोग अपने जीवन में उन्नति चाहते हो, तो तुम्हें अपने अस्तित्व के हर विवरण को समझते हुए उस पर ध्यान देना आवश्यक है, ताकि तुम जीवन में अपने प्रवेश को नियंत्रित कर सको, अपने हृदय को अच्छी तरह से रूपांतरित कर सको, और अपने हृदय के खालीपन और एक घिसे-पिटे तथा नीरस अस्तित्व की समस्याओं का समाधान कर सको जो तुम्हें परेशान करता है, ताकि तुममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर से नया हो जाए और ऐसे जीवन का वास्तव में आनंद उठाए, जो कि उन्नत, उत्तम और स्वतंत्र है। इसका उद्देश्य यह है कि तुममें से प्रत्येक जीवित हो सके, अपनी आत्मा में पुनर्जीवित हो सके, और एक जीवित प्राणी के समान हो सके। जितने भी भाइयों और बहनों के संपर्क में तुम लोग आते हो, उनमें से शायद ही कोई जीवंत और ताजगी से भरा होता है। वे सब प्राचीन कपि-मानव के समान हैं, सीधे-सादे और बुद्धिहीन, स्पष्टतः विकास की बिना किसी संभावना के। इससे भी बुरी बात यह है कि जिन भाइयों और बहनों के संपर्क में मैं आया हूँ, वे जंगली लोगों के समान अशिष्ट और असभ्य रहे हैं। वे शिष्टाचार के बारे में शायद ही कुछ जानते हों, व्यवहार करने की मूलभूत बातों का तो फिर कहना ही क्या। ऐसी कई युवा बहनें हैं, जो हालाँकि बुद्धिमान और सुंदर दिखती हैं, और फूलों के समान सुंदर हो गई हैं, लेकिन फिर भी अपने आपको “वैकल्पिक” फैशन में फँसा लेती हैं। एक बहन[क] के बाल उसके पूरे चेहरे को ढक लेते हैं और उसकी आँखों के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। हालाँकि उसका चेहरा साफ़ और शालीन है, परंतु उसका केश-विन्यास घृणास्पद है, जो देखने वाले में एक अजीब-सी भावना पैदा करता है, मानो वह बाल-सुधार-गृह की सबसे बड़ी अपराधी हो। पानी में पन्ने जैसी उसकी निर्मल और चमकदार आँखें उसकी वेशभूषा और केश-विन्यास के कारण छिप जाती हैं, जिससे कि वे काली अँधेरी रात में अचानक एक जोड़ी लालटेन के समान दिखाई देती हैं, जो रुक-रुककर चकाचौंध कर देने वाली रोशनी के समान चमकती हैं और लोगों के हृदय में भय उत्पन्न करती हैं, और साथ ही ऐसा भी प्रतीत होता है कि जैसे वह जानबूझकर किसी से छिप रही हो। जब मैं उससे मिलता हूँ तो वह हमेशा “दृश्य” से हट जाने की युक्ति सोचती रहती है, उस हत्यारे के समान जिसने अ‍भी-अ‍भी किसी की हत्या की हो और जो पता लगने के गहरे डर से लगातार चकमा दे रहा हो; साथ ही वह अश्वेत अफ़्रीकी[1] लोगों के समान भी लगती है, जो सदियों से गुलाम रहे हैं और दूसरों के समक्ष कभी अपना सिर नहीं उठा सकते। कपड़े पहनने और खुद को तैयार करने तक में उनके व्यवहार का यह ढंग सुधरने में महीनों लग जाएँगे।

हजारों वर्षों से चीनी लोगों ने गुलामों का जीवन जीया है, और इसने उनके विचारों, धारणाओं, जीवन, भाषा, व्यवहार और कार्यों को इतना जकड़ दिया है कि उनके पास थोड़ी-सी भी स्वतंत्रता नहीं रही है। हजारों वर्षों के इतिहास ने महत्वपूर्ण लोगों को एक आत्मा के वश में कर दिया है और उन्हें आत्मा-विहीन शवों के समान जीर्ण-शीर्ण कर डाला है। कई लोग ऐसे हैं जो शैतान रूपी कसाई की छुरी के नीचे अपना जीवन जीते हैं, कई लोग ऐसे हैं जो जंगली जानवरों की माँद सरीखे घरों में रहते हैं, कई लोग ऐसे हैं जो बैलों और घोड़ों जैसा भोजन करते हैं और कई लोग ऐसे हैं जो बेसुध और अव्यवस्थित ढंग से “मृतकों के संसार” में पड़े रहते हैं। बाहरी तौर पर लोग आदिम मनुष्य से अलग नहीं है, उनका रहने का स्थान नरक के समान है, और जहाँ तक उनके साथियों का सवाल है, वे हर तरह के गंदे पिशाचों और बुरी आत्माओं से घिरे रहते हैं। बाहर से मनुष्य उच्चतर “जानवरों” के समान प्रतीत होते हैं; वास्तव में, वे गंदे पिशाचों के साथ रहते और निवास करते हैं। बिना किसी की चौकसी के लोग शैतान की घात के भीतर रहते हैं, उसके चंगुल में फँसने के बाद उनके निकलने का कोई मार्ग नहीं होता। यह कहने के बजाय कि वे अपने प्रियजनों के साथ आरामदायक घरों में रहते हैं, सुखद और संतोषप्रद जीवन जीते हैं, यह कहना चाहिए कि मनुष्य नरक में रहते हैं, पिशाचों के साथ व्यवहार करते हैं और शैतान के साथ जुड़े हैं। वास्तव में, लोग अभी भी शैतान द्वारा जकड़े हुए हैं, वे वहाँ रहते हैं जहाँ पिशाच एकत्र होते हैं और उन पिशाचों द्वारा उनका गलत इस्तेमाल किया जाता है, मानो उनके बिस्तर उनके शवों के सोने का स्थान हों, मानो वे उनके आरामदायक घोंसले हों। उनके घरों में प्रवेश करने पर उनका आँगन ठंडा और एकाकी होता है और सर्द हवा सूखी पत्तियों से गूँजती हुई बहती है। “बैठक” का दरवाजा खोलो, तो कमरा तारकोल के समान काला होता है—तुम अपना हाथ बढ़ा सकते हो, पर अपनी उँगलियाँ नहीं देख सकते। थोड़ी-सी रोशनी दरवाजे की दरार में से झाँकती है, जो कमरे को और अधिक धुँधला और भयानक बना देती है। समय-समय पर चूहे अजीब सी चीं-चीं की आवाज करते हैं, जैसे कि मौज मना रहे हों। कमरे में सब-कुछ घृणास्पद और डरावना है, उस घर के समान, जिसमें कभी वह इनसान रहा करता था, जिसे अभी-अभी ताबूत में रखा गया है। कमरे में रखे बिस्तर, रजाइयों और मामूली-सी छोटी अलमारी पर धूल जमी हुई है, जमीन पर कई छोटे-छोटे स्टूल अपने नुकीले दाँत दिखा रहे हैं और अपने पंजे लहरा रहे हैं, और मकड़ी के जाले दीवारों पर लटके हुए हैं। मेज पर एक दर्पण रखा हुआ है, और उसके साथ ही लकड़ी की एक कंघी रखी है। दर्पण की ओर बढ़ते हुए तुम एक मोमबत्ती उठाकर जला देते हो। तुम देखते हो कि दर्पण धूल से ढका हुआ है और लोगों के प्रतिबिंबों[ख] पर एक “आवरण” सा चढ़ा रहा है, जिससे ऐसा लगता है कि वे अभी-अभी कब्र से निकले हैं। कंघी बालों से भरी हुई है। ये सब चीजें पुरानी और भोंड़ी हैं, और ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनका इस्तेमाल किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जिसकी अभी-अभी मृत्यु हुई है। कंघी को देखते हुए ऐसा महसूस होता है, जैसे कोने में कोई शव पड़ा हो। कंघी के बालों में लहू न होने के कारण उनमें से किसी मृतक की-सी गंध आती है। दरवाजे की दरार से सर्द हवा प्रवेश करती है, जैसे कि कमरे में रहने के लिए लौटकर कोई भूत दरार में से घुस रहा हो। कमरे में एक चुभती हुई-सी ठंडक है और अचानक सड़ी हुई लाश जैसी दुर्गंध आती है, और इस क्षण यह देखा जा सकता है कि बहुत-सी अस्त-व्यस्त चीजें दीवारों पर लटकी हैं, पलंग पर अस्त-व्यस्त पड़ा बिस्तर गंदा और बदबूदार है, कोने में अनाज पड़ा है, अलमारी पर धूल जमी है, फर्श दरारों से उगती टहनियों और गंदगी से अत पड़ा है, आदि-आदि—मानो इन सब चीज़ों का इस्तेमाल किसी लड़खड़ाकर आगे बढ़ते, दाँत पीसते और हवा में पंजे मारते हुए मृत व्यक्ति द्वारा किया गया हो। तुम्हारी कँपकँपी छुड़ाने के लिए इतना काफी है। कमरे में कहीं जीवन का कोई चिह्न नहीं है, सब कुछ अंधकारमय और सीलनभरा है, परमेश्वर द्वारा बताए गए अधोलोक और नरक जैसा। यह मनुष्य की कब्र के समान है, जिसमें विलाप के कपड़े पहने तथा मृतक को मौन श्रद्धांजलि देते हुए बिना रँगी अलमारी, स्टूल, खिडकियों की चौखटें और दरवाजे हैं। मनुष्य मृतकों के इस संसार में सुबह जल्दी बाहर जाते और देर से लौटते हुए दशकों से या सदियों से, बल्कि सहस्राब्दियों से रह रहा है। प्रकाश की पहली किरण में, जब मुर्गे बाँग दे रहे होते हैं, वे अपनी “कब्र” से बाहर निकलते हैं, और आकाश की ओर देखकर और फिर जमीन पर नज़र डालकर अपने दिन के कार्यकलाप आरंभ करते हैं। जब सूरज पहाड़ों के पीछे छिप जाता है, तो वे अपने थके शरीरों को वापस “कब्र” में घसीट लाते हैं; जब तक वे अपने पेट भरते हैं, तब तक शाम हो जाती है। फिर, अगले दिन “कब्र” से निकलने की तैयारियाँ पूरी करने के बाद वे रोशनी बुझा देते हैं, जो धीमा प्रकाश देने वाली लपटों की चमक बिखेरती प्रतीत होती है। इस समय चाँद की रोशनी के तले जो कुछ दिखाई देता है, वे कब्र पर लगे मिट्टी के ढेरों के समान हैं, जो हर कोने में छोटे-छोटे टीलों के समान फैले पड़े हैं। “कब्रों” के भीतर से कभी-कभी खर्राटों की आवाज उठती-गिरती सुनाई देती है। सब लोग गहरी नींद में सो जाते हैं, और सब गंदे भूत-पिशाच भी शांति से विश्राम करते प्रतीत होते हैं। समय-समय पर दूर कहीं से कौवों की काँव-काँव सुनाई देती है—एक शांत और निर्जन रात में ऐसी उजाड़ चीख-पुकारों की आवाज तुम्हारी कँपकँपी छुड़ाने और रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है...। कौन जाने मनुष्य ने ऐसे हालात में मरते और फिर से जन्म लेते हुए कितने बरस बिता दिए हैं; कौन जाने वे कितने समय से ऐसे मानव-जगत में रहे हैं, जहाँ लोग और भूत-प्रेत घुलमिलकर रहते हैं, और तो और, कौन जाने कितनी बार उन्होंने संसार को अलविदा कहा है! पृथ्वी पर इस नरक में मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक जीवन जीते हैं, मानो उन्हें किसी बात की कोई शिकायत न हो, क्योंकि वे बहुत पहले से नरक के जीवन के आदी हो चुके हैं। और इसलिए, लोग इस स्थान पर मोहित हो गए हैं, जहाँ गंदे पिशाच रहते हैं, जैसे कि गंदे पिशाच उनके मित्र और साथी हों, जैसे कि संसार गुंडों का समूह[2] हो—क्योंकि मनुष्य का मूल तत्त्व बहुत पहले ही बिना कोई आवाज किए गायब हो गया है, बिना कोई सुराग छोड़े अदृश्य हो गया है। लोगों का रंग-रूप कुछ हद तक गंदे पिशाचों जैसा दिखाई देता है; इससे भी बढ़कर, उनके कार्यों का गंदे पिशाचों द्वारा गलत इस्तेमाल किया जाता है। आज वे गंदे पिशाचों से अलग नहीं दिखते, मानो वे इन गंदे पिशाचों से ही जन्मे हों। यही नहीं, लोग अपने इन पूर्वजों के प्रति बहुत प्रेमपूर्ण और उनके समर्थक हैं। कोई नहीं जानता कि मनुष्य बहुत पहले से शैतान द्वारा इतना कुचला गया है कि वह पहाड़ी गोरिल्लों जैसा बन गया है। उनकी रक्तवर्ण आँखों में गिड़गिड़ाहट-सी दिखाई देती है, और कम रोशनी में जो चमक उनमें से निकलती है, वह गंदे पिशाचों के घातक विद्वेष का हलका निशान है। उनके चेहरे झुर्रियों से भरे हुए हैं, देवदार के वृक्ष की फटी हुई छाल जैसे उनके मुँह बाहर की ओर निकले रहते हैं, जैसे कि उन्हें शैतान ने बनाया हो, उनके कान अंदर और बाहर से मैल से सने हुए हैं, उनकी कमर झुकी हुई हैं, उनकी टाँगें उनके शरीरों को सँभालने में संघर्ष करती हैं, और उनकी पतली-दुबली भुजाएँ लयबद्ध ढंग से आगे-पीछे झूलती रहती हैं। ऐसा लगता है, मानो वे सिर्फ खाल और हड्डी हों, पर फिर भी वे जंगली भालू के समान मोटे हैं। अंदर और बाहर से वे प्राचीन काल के वानरों के समान वस्त्रों में सजे-धजे हैं—मानो आज भी उन वानरों का आधुनिक मनुष्य के रूप में पूर्णतः विकसित होना[3] शेष हो, कितने पिछड़े हैं वे!

मनुष्य जानवरों के साथ-साथ रहता है, और वे बिना झगड़े या मौखिक असहमतियों के, तालमेल के साथ आपस में निभा रहे हैं। मनुष्य जानवरों की देखभाल और चिंता करने में कुछ तुनकमिजाज है, जबकि जानवर मनुष्य के अस्तित्व के लिए, स्पष्ट रूप से उसके फायदे के लिए, बिना अपने किसी लाभ के, और मनुष्य के प्रति पूर्ण आज्ञाकारिता दिखाते हुए जीते हैं। सभी रूपों में मनुष्य और पशु के बीच एक घनिष्ठ[4] और सामंजस्यपूर्ण[5] संबंध है—और ऐसा प्रतीत होता है कि गंदे पिशाच मनुष्य और पशु का एक आदर्श संयोजन हैं। इस प्रकार, पृथ्वी पर मनुष्य और गंदे पिशाच और भी अधिक अंतरंग और अविभाज्य हैं : यद्यपि गंदे पिशाचों के अतिरिक्त, मनुष्य जानवरों से जुड़ा रहता है; इस बीच गंदे पिशाच मनुष्य से कुछ भी छिपाकर नहीं रखते, और सब-कुछ जो उनके पास होता है, वह उन्हें “समर्पित” कर देते हैं। लोग रोजाना “नरक के राजा के महल” में उछलते-कूदते हैं, “नरक के राजा” (अपने पूर्वज) की संगति में मस्ती करते हैं और उसके द्वारा गलत रूप से इस्तेमाल किए जाते हैं, जिससे आज लोग मल में जम गए हैं, और मृतक आत्माओं के संसार में इतना अधिक समय बिताने के बाद उन्होंने “जीवित लोगों के संसार” में लौटने की इच्छा रखना भी बहुत समय पहले छोड़ दिया है। अतः, जैसे ही वे रोशनी देखते हैं, और परमेश्वर की अपेक्षाओं, परमेश्वर के चरित्र और उसके कार्य का अवलोकन करते हैं, वे अपने आपको परेशान और व्याकुल महसूस करते हैं, और अब भी मृतात्माओं के संसार की ओर लौटने और भूत-प्रेतों के साथ रहने की लालसा करते हैं। बहुत समय पहले वे परमेश्वर को भूल चुके हैं और इसलिए हमेशा कब्रिस्तान में ही भटकते रहे हैं। जब मैं किसी स्त्री से मिलता हूँ, तो मैं उससे बात करने का प्रयास करता हूँ, और केवल तभी मुझे पता लगता है कि जो मेरे सामने खड़ी है, वह बिलकुल भी मनुष्य नहीं है। उसके बाल मैले-कुचैले हैं, उसका चेहरा गंदा है, और उसकी दाँतदार मुसकान भी भेड़िये की-सी है। साथ ही उसमें एक भूत जैसा भद्दापन दिखता है, जिसने अभी-अभी कब्र से निकलकर जीवित संसार के मनुष्य को देखा है। यह स्त्री हमेशा अपने होठों को मुसकान का रूप देने का प्रयास करती है; ऐसा प्रतीत होता है कि वह धूर्त और कपटी दोनों है। जब वह मेरी ओर देखकर मुसकराती है, तो ऐसा लगता है कि वह कुछ कहना चाहती है, पर शब्द नहीं ढूँढ पा रही, और वह केवल इतना ही कर पाती है कि भावशून्य और मूर्ख व्यक्ति के समान एक तरफ खड़ी रह जाती है। पीछे से देखने पर वह “चीन के परिश्रमी लोगों का सशक्त स्वरूप” प्रस्तुत करती प्रतीत होती है; इन पलों में वह और भी अधिक घिनौनी लगती है, और प्राचीन समय के पौराणिक यान हूआंग/यान वैंग[ग] के वंशजों की याद दिलाती है, जिनके बारे में लोग बातें किया करते हैं। जब मैं उससे प्रश्न करता हूँ, तो वह चुपचाप अपना सिर नीचे कर लेती है। जवाब देने में उसे बहुत समय लगता है, और जब वह जवाब देती है तो बहुत हिचकती है। वह अपने हाथों को सीधा नहीं रख सकती, और अपनी दो उँगलियाँ बिल्ली के समान चूसती रहती है। केवल अभी मै महसूस करता हूँ कि मनुष्य के हाथ ऐसे दिखते हैं, जैसे अभी-अभी कूड़े में से कुछ बीन रहे हों, उनके खुरदरे नाखून इतने बेरंगे हैं कि कोई कभी जान भी नहीं पाएगा कि उन्हें सफ़ेद होना चाहिए, उनके “सुडौल” नाखून पूरी तरह मैल से भरे हुए हैं। इससे भी अधिक घृणास्पद बात यह है कि उनके हाथों का पिछला हिस्सा मुर्गे की अभी-अभी खींचकर निकाली गई चमड़ी जैसा दिखता है। उनके हाथों की लगभग सारी रेखाएँ मनुष्य के परिश्रम के खून और पसीने के मूल्य से लबालब हैं, उनमें से प्रत्येक के बीच में मैल जैसी कोई चीज है, जो “मिट्टी की गंध” फैलाती प्रतीत होती है, जो मनुष्य की दुःख सहने की भावना की बहुमूल्यता और प्रशंसनीयता का बेहतर प्रतिनिधित्व करती है—इतना कि दुःख सहने वाला यह जज़्बा मनुष्य के हाथों की इन सब रेखाओं में भी गहरे से सन्निहित हो गया है। सिर से लेकर पैर तक, मनुष्य की कोई भी पोशाक जानवर की खाल जैसी दिखाई नहीं देती, परंतु वे यह नहीं जानते कि चाहे वे कितने भी “सम्माननीय” हों, उनकी कीमत वास्तव में लोमड़ी के रोएँ से भी कम है—यहाँ तक कि मोर के एक पंख से भी कम, क्योंकि उनके वस्त्रों ने लंबे समय से उन्हें इतना भद्दा बना दिया है कि वे एक सूअर और कुत्ते से भी बुरे दिखाई देते हैं। उस स्त्री के छोटे-से ऊपरी वस्त्र उसकी आधी कमर तक लटके रहते हैं, और मुर्गे की आँतों जैसी उसकी टाँगें चमकदार धूप में उसकी बदसूरती उजागर करती हैं। वे छोटी और पतली हैं, मानो यह दिखाने के लिए हों कि उसके पाँव बहुत समय से बिना बँधे रहे हैं : वे बड़े पाँव अब प्राचीन समाज के “तीन इंच लंबे सुनहरे कमल” नहीं रहे हैं। इस स्त्री की वेशभूषा बहुत पाश्चात्य है, पर बहुत ओछी भी। जब मैं उससे मिलता हूँ, वह हमेशा संकोची दिखती है, उसका चेहरा गहरा लाल हो जाता है, और वह अपना सिर उठाने में भी बिलकुल असमर्थ होती है, मानो वह गंदे पिशाचों द्वारा बहुत कुचली गई है, और अब लोगों से नजरें नहीं मिला सकती। मनुष्य के चेहरे पर धूल जमी हुई है। यह धूल, जो असमान से गिरी है, मनुष्य के चेहरे पर अनुचित रूप से गिरती हुई प्रतीत होती है, और उसे चिड़िया के पंख जैसा बना देती है। मनुष्य की आँखें भी चिड़िया की आँखों जैसी हैं : छोटी और सूखी, बिना किसी चमक के। जब लोग बात करते हैं, तो उनके बोल आदतन लड़खड़ाहट से भरे और अस्पष्ट, और दूसरों के लिए वीभत्स और घिनौने होते हैं। फिर भी बहुत-से लोग ऐसे लोगों की “राष्ट्र के प्रतिनिधियों” के रूप में प्रशंसा करते हैं। क्या यह मजाक नहीं है? परमेश्वर लोगों को बदलना चाहता है, उन्हें बचाना चाहता है, उन्हें मृत्यु की कब्र से छुड़ाना चाहता है, ताकि वे उस जीवन से बच जाएँ, जो वे अधोलोक और नरक में बिताते हैं।

फुटनोट :

1. “अश्वेत अफ़्रीकी” उन अश्वेत लोगों को संदर्भित करता है, जो परमेश्वर द्वारा शापित थे, और जो पीढ़ियों से गुलाम रहे हैं।

2. “गुंडों का समूह” मनुष्य-जाति की भ्रष्टता को सदर्भित करता है, और इसे भी कि कैसे मनुष्य-जाति में एक भी पवित्र मनुष्य नहीं है।

3. “विकसित होना” कपि-मानव के आज के लोगों के रूप में “क्रमिक विकास” को संदर्भित करता है। आशय व्यंग्यात्मक है : वास्तव में, प्राचीन वानरों के सीधे खड़े होकर चलने वाले मनुष्यों में विकसित होने के सिद्धांत जैसी कोई चीज़ नहीं है।

4. “घनिष्ठ” का इस्तेमाल उपहासपूर्ण ढंग से किया गया है।

5. “सामंजस्यपूर्ण” का इस्तेमाल उपहासपूर्ण ढंग से किया गया है।

क. मूल पाठ में “उस स्त्री का” लिखा है।

ख. मूल पाठ में “लोगों के चेहरे” लिखा है।

ग. “यान” और “हूआंग” दो पौराणिक सम्राटों के नाम हैं, जो चीन के पहले संस्कृति-दाताओं में से थे। “यान वैंग” ऐसा चीनी नाम है, जो “नरक के राजा” के लिए प्रयुक्त किया जाता है। “यान हूआंग” और “यान वैंग” का उच्चारण जब मेंडरिन भाषा में किया जाता है, तो ये लगभग एक जैसे प्रतीत होते हैं।

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