प्रश्न 5: ये जानकर कि हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार कर लिया है, पादरी और एल्डर हमें लगातार परेशान कर रहे हैं, हमें लगातार बाइबल समझा रहे हैं। हालांकि हम उनका खंडन करते हैं, उनको ठुकराते हैं, फिर भी वे नहीं छोड़ते। ये नागरिकों का गंभीर उत्पीड़न है। पहले जब कभी हम कमजोर या नकारी होते थे, वे इतनी चिंता नहीं दिखाते थे। अब जैसे ही हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है, वे बहुत ज़्यादा नाराज हो गये हैं, मीठी और कड़वी बातें बोल-बोल कर हमें लगातार गुस्सा दिला हैं। लगता है उनकी ये दुष्टता तब तक ख़त्म नहीं होगी, जब तक वे हमें अपने साथ नरक में नहीं घसीट लेते! मुझे समझ नहीं आता। पादरी और एल्डर, जो प्रभु की सेवा करते हैं, और जो अक्सर बाइबल के बारे में बात करते हैं, उनको यह आभास होना चाहिए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सभी वचन सत्य हैं। वे सत्य की खोज क्यों नहीं करते? वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अंधाधुंध निंदा, विरोध और तिरस्कार करने के बजाय, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की जांच-पड़ताल क्यों नहीं करते? पादरी और एल्डर सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने के हमारे रास्ते में रोड़े अटकाने की भरसक कोशिश करते हैं। हमें इस मामले के पीछे की हकीकत जानने में बड़ी मुश्किल हो रही है। कृपया हमारे साथ इस बारे में संगति कीजिए।

उत्तर: क्या पादरी और एल्डर को आपके सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करने पर फ़िक्र नहीं होनी चाहिए? पादरी और एल्डर की नज़र में, आप सब उनकी भेड़ें हैं। आप लोगों को चुरा लिया गया है – इससे पादरी और एल्डर की ज़िंदगी के एक अहम हिस्से पर चोट लगी है। इसलिए उनके लिए ज़रूरी है कि वे आपको फंसाने और वापस कब्जे में लेने की पुरजोर कोशिश करें। उस वक्त को याद करें जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया। यहूदी धर्म के मुख्य पादरियों, धर्मगुरुओं, और फरीसियों ने प्रभु यीशु पर बेलगाम होकर लांछन लगाये, उनकी निंदा की और उनका तिरस्कार किया; और-तो-और उन लोगों ने प्रभु यीशु को सूली पर भी चढ़ा दिया। उस वक्त यहूदी धर्म के बहुत-से ऐसे लोग थे जो प्रभु यीशु को स्वीकार करना चाहते थे। उन लोगों ने प्रभु यीशु को स्वीकार करने की हिम्मत क्यों नहीं की? और प्रभु यीशु का अनुसरण करने तक की हिम्मत क्यों नहीं की? मुझे लगता है कि उन यहूदी मुख्य पादरियों, धर्मगुरुओं और फरीसियों ने यहूदी विश्वासियों को अक्सर धमकियां दी होंगी, और लोगों को प्रभु यीशु को स्वीकार करने से रोकने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाये होंगे। उस वक्त नीकुदेमुस नाम के एक व्यक्ति हुए थे। वे प्रभु यीशु से मिलने सिर्फ रात को क्यों जा पाते थे? ये बात पक्के तौर पर इस स्थिति से अलग नहीं है। बाइबल में ऐसी बातें साफ़-साफ़ दर्ज की गयी हैं। बदकिस्मती से धार्मिक वर्गों के थोड़े-से लोग ही प्रभु के प्रति फरीसियों के विरोध की वजह समझ पाये थे। ऐसे लोग तो और भी कम थे, जो प्रभु यीशु द्वारा फरीसियों की निंदा करने, उनका पर्दाफ़ाश करने और श्राप देने के लिए कहे गये वचनों के आधार पर, धार्मिक वर्गों के पादरियों और एल्डर्स को समझ पाये थे। वास्तव में क्या ऐसी ही स्थिति नहीं है? अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ गये हैं, और उन्होंने परमेश्वर के प्रति धार्मिक फरीसियों, पादरियों, और एल्डर्स के विरोध की सही स्थिति और सार को उजागर कर दिया है। आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचनों को पढ़ें।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन-सत्य का अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है? मैं तुम लोगों से आगे पूछता हूँ : क्या तुम लोगों के लिए वो ग़लतियां करना बेहद आसान नहीं, जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थीं, क्योंकि तुम लोगों के पास यीशु की थोड़ी-भी समझ नहीं है? क्या तुम सत्य का मार्ग जानने योग्य हो? क्या तुम सचमुच विश्वास दिला सकते हो कि तुम मसीह का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते कि तुम मसीह का विरोध करोगे या नहीं, तो मेरा कहना है कि तुम पहले ही मौत की कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे, वे सभी यीशु का विरोध करने, यीशु को अस्वीकार करने, उसे बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते, वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उसे बुरा-भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान द्वारा किए गए धोखे की तरह देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटे यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता? जिसका तुम लोग सामना करते हो, वह पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा होगी, कलीसियाओं के लिए कहे गए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु द्वारा व्यक्त किए गए समस्त वचनों को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो, तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम हठपूर्वक अपनी ग़लतियां मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग उसके कार्य को कैसे समझ सकते हो? मैं तुम लोगों को यह बताता हूँ : जो लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, फिर भी अंधों की तरह श्वेत बादलों पर यीशु के आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा करेंगे और ये वे वर्ग हैं, जो नष्ट किए जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

"ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे 'मज़बूत देह' वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)

"प्रतिदिन वे बाइबल में मेरे निशान ढूँढ़ते हैं, और यों ही 'उपयुक्त' अंश तलाश लेते हैं, जिन्हें वे अंतहीन रूप से पढ़ते रहते हैं...। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाकलापों पर कोई ध्यान नहीं देते, बल्कि पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर परम और विशेष ध्यान देते हैं। बहुत से लोग तो यहाँ तक मानते हैं कि अपनी इच्छा से मुझे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो पवित्रशास्त्र द्वारा पहले से न कहा गया हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं, इस हद तक कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूँ, वे उसे मापने और मेरी निंदा करने के लिए बाइबल के छंदों का उपयोग करते हैं। वे मेरे साथ अनुकूलता का मार्ग या सत्य के साथ अनुकूलता का मार्ग नहीं खोजते, बल्कि बाइबल के वचनों के साथ अनुकूलता का मार्ग खोजते हैं, और विश्वास करते हैं कि कोई भी चीज़ जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यपरायण वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के साथ अनुकूल होने की कोशिश नहीं की, बल्कि कर्मठतापूर्वक व्यवस्था का इस हद तक अक्षरशः पालन किया कि—यीशु पर पुराने विधान की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए—निर्दोष यीशु को सूली पर चढ़ा दिया। उनका सार क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के साथ अनुकूलता के मार्ग की खोज नहीं की? उनके दिमाग़ में पवित्रशास्त्र का एक-एक वचन घर कर गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और विधियों पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। वे सत्य की खोज करने वाले लोग नहीं, बल्कि सख्ती से पवित्रशास्त्र के वचनों से चिपकने वाले लोग थे; वे परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग नहीं, बल्कि बाइबल में विश्वास करने वाले लोग थे। दरअसल वे बाइबल की रखवाली करने वाले कुत्ते थे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें मसीह के साथ अनुकूलता का तरीका खोजना चाहिए)

"हर पंथ और संप्रदाय के अगुवाओं को देखो। वे सभी अभिमानी और आत्म-तुष्ट हैं, और वे बाइबल की व्याख्या संदर्भ के बाहर और उनकी अपनी कल्पना के अनुसार करते हैं। वे सभी अपना काम करने के लिए प्रतिभा और पांडित्य पर भरोसा करते हैं। यदि वे कुछ भी उपदेश करने में असमर्थ होते, तो क्या वे लोग उनका अनुसरण करते? कुछ भी हो, उनके पास कुछ ज्ञान तो है ही, और वे सिद्धांत के बारे में थोड़ा-बहुत बोल सकते हैं, या वे जानते हैं कि दूसरों को कैसे जीता जाए, और कुछ चालाकियों का उपयोग कैसे करें, जिनके माध्यम से वे लोगों को अपने सामने ले आए हैं और उन्हें धोखा दे चुके हैं। नाम मात्र के लिए, वे लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने अगुवाओं का अनुसरण करते हैं। अगर वे उन लोगों का सामना करते हैं जो सच्चे मार्ग का प्रचार करते हैं, तो उनमें से कुछ कहेंगे, 'हमें परमेश्वर में अपने विश्वास के बारे में हमारे अगुवा से परामर्श करना है।' देखिये, परमेश्वर में विश्वास करने के लिए कैसे उन्हें किसी की सहमति की आवश्यकता है; क्या यह एक समस्या नहीं है? तो फिर, वे सब अगुवा क्या बन गए हैं? क्या वे फरीसी, झूठे चरवाहे, मसीह-विरोधी, और लोगों के सही मार्ग को स्वीकार करने में अवरोध नहीं बन चुके हैं?" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अनुसरण करना ही परमेश्वर में सच्चे अर्थ में विश्वास करना है')

अब चूंकि हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ लिया है, क्या सबके मन में ये बात साफ़ हो गयी है कि धार्मिक फरीसियों ने किस तरह से प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की थी, किस तरह से धार्मिक वर्गों के पादरी और एल्डर परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा और विरोध करते हैं, और परमेश्वर के प्रति उनके विरोध की सच्चाई और वजह क्या है? अनुग्रह के युग में प्रभु यीशु ने फरीसियों को श्राप दिया था, और फरीसियों के असली पाखंडी चेहरे को बेनकाब किया था। अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ गए हैं, और उन्होंने धार्मिक वर्गों के पादरियों और एल्डर्स के परमेश्वर-विरोधी आचरण, व्यवहार और सार का पर्दाफ़ाश किया है। परमेश्वर के दो देहधारणों में, दोनों बार वे क्यों धार्मिक अगुवाओं के पाखंड और परमेश्वर के विरोध की वास्तविकता और सार को उजागर करते हैं? वजय ये है कि भले ही वे परमेश्वर की सेवा का झंडा लहराते हैं, दरअसल वे परमेश्वर के वचनों का न तो पालन करते हैं और न ही उनका अनुभव करते हैं, और परमेश्वर के आदेशों का भी पालन नहीं करते। इस वजह से उन्हें सत्य की वास्तविकता नहीं मालूम और वे परमेश्वर के प्रति भी सच्चे मन से कम ही समर्पित होते हैं; वे सिफ थोड़े-से सिद्धांतों, नियमों, और धार्मिक अनुष्ठानों को मानते हैं। वे अपनी खुद की बोलने की शक्ति और उपहारों का उपयोग करके लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने और खुद को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने के लिए, बाइबल के ज्ञान और धर्मशास्त्र की व्याख्या करते हैं, ताकि लोग उनका आदर और अनुसरण करें। इसी वजह से परमेश्वर के चुने हुए लोग उनकी आज्ञा मानने लगते हैं, हर बात में उनकी सलाह लेने लगते हैं, और हर चीज़ में उनकी बात सुनने लगते हैं। सच्चे मार्ग की जांच-पड़ताल और खोज करने के लिए भी परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पादरी और एल्डर की मंजूरी लेनी पड़ती है। चाहे किसी भी मामले से उनका सामना हो, परमेश्वर से प्रार्थना करने या सत्य को खोजने के बजाय, वे मदद के लिए पादरी और एल्डर के भरोसे रहते हैं और उन्हीं की ओर देखते हैं। वे वो सब कुछ करते हैं, जो पादरी और एल्डर उनको करने के लिए कहते हैं। वे ये कभी नहीं समझ पाते कि पादरी और एल्डर की बातें बाइबल के अनुरूप हैं या नहीं या सत्य से मेल खाती हैं या नहीं। यहाँ तक कि जब देहधारी परमेश्वर कार्य करने और सत्य व्यक्त करने आये, तब भी उनके पास अपने खुद के फैसले करने की क्षमता नहीं थी कि वे उसकी जांच-पड़ताल करें या ना करें, परमेश्वर की वाणी को सुनें या ना सुनें। ज़रूरी था कि धार्मिक पादरी और एल्डर ही उनके लिए फैसले करें। वे पादरियों और एल्डर्स को अपनी खुद की जिंदगियां, और अंतिम निवास स्थान सौंप देते और उन्हें अपनी मनमानी करने देते। ये समस्या क्या है? आखिर वे पादरियों और एल्डर्स में विश्वास करते हैं या प्रभु यीशु में? सच में अचरज होता है। धार्मिक फरीसी, पादरी और एल्डर्स असल में लोगों को परमेश्वर के सामने नहीं लाये हैं, बल्कि उन्होंने अपनी खुद की ताकत से उनको काबू में किया हुआ है। चूंकि परमेश्वर के बहुतेरे चुने हुए लोगों में समझ-बूझ नहीं है, इसलिए वे धार्मिक फरीसियों, पादरियों और एल्डर्स के इन पाखंडी चेहरों से धोखा खाते रहे हैं। अगर परमेश्वर सत्य को व्यक्त करने और उन लोगों के सत्य से नफ़रत करने और परमेश्वर का विरोध करने के सार को उजागर करने नहीं आये होते, तो कोई ये नहीं जान पाता कि वे मसीह-विरोधी हैं, जो सत्य से नफ़रत करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से लड़ाई करते हैं! इस तरह, परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास उन लोगों के धोखे और चंगुल से बचने का कोई रास्ता नहीं होता है, उनके पास परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने और उद्धार पाने के लिए परमेश्वर की ओर मुड़ने का कोई मार्ग नहीं होता है, और आखिरकार वे इन दुष्ट सेवकों और मसीह-विरोधियों द्वारा बरबाद कर दिये जाते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने धार्मिक फरीसियों, पादरियों और एल्डर्स के परमेश्वर के प्रति विरोध के सार और वजह का पूरी तरह से पर्दाफ़ाश किया है, और उनके पाखंडी मुखौटों और छद्म वेशभूषा को फाड़ कर फेंक दिया है, ताकि परमेश्वर के विश्वासी, इन लोगों द्वारा परमेश्वर की सेवा करने के साथ-साथ किये जा रहे उनके विरोध की सच्चाई और सत्य को समझ सकें। क्या इस तरह से परमेश्वर, धार्मिक फरीसियों की बंदिशों और शैतान के बुरे प्रभाव से हमें बचा नहीं रहे हैं? अगर परमेश्वर ने इस प्रकार कार्य न किया होता, तो क्या परमेश्वर के विश्वासी अपनी खुद की इच्छा से परमेश्वर के अस्तित्व के पास लौट सके होते? अगर परमेश्वर ने सत्य व्यक्त नहीं किये होते और फरीसियों के परमेश्वर के प्रति विरोध की सच्चाई और तथ्यों को उजागर नहीं किया होता, तो क्या परमेश्वर के विश्वासी फरीसियों की असलियत समझ पाये होते? अगर परमेश्वर ने अंत के दिनों में धार्मिक पादरियों और एल्डर्स द्वारा परमेश्वर के प्रति विरोध की सच्चाई और तथ्यों का पर्दाफ़ाश नहीं किया होता, तो क्या परमेश्वर के विश्वासी उन लोगों की पाबंदियों और चंगुल से बच सके होते? वे नहीं बच सके होते। इसलिए हम कहते हैं कि परमेश्वर का इस तरह कार्य करना हमारे लिए उनकी करुणा है, और हमारे लिए उनका उद्धार है!

आराधना के धार्मिक स्थलों में ज्यादातर लोग पादरियों और एल्डर्स को आदरभाव से देखते हैं। वे मानते हैं कि पादरी और एल्डर बाइबल को समझते हैं और धर्मनिष्ठ हैं। वे भाई-बहनों के साथ भी प्यार से पेश आते हैं और अक्सर अथक मेहनत करते हुए लोगों को बाइबल समझाते हैं। वे पाखंडी फरीसी और मसीह-विरोधी कैसे हो सकते हैं? सच कहें तो, धार्मिक पादरी और एल्डर्स मसीह-विरोधी हैं या नहीं, सतही तौर पर ये देखकर नहीं बताया जा सकता कि वे दूसरों के साथ कितने अच्छे ढंग से पेश आते हैं, या वे प्रभु के लिए कितना काम करते हैं, या वे कितने कष्ट झेलते हैं। सबसे अहम ये देखना है कि वे परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को किस रूप में लेते हैं, वे देहधारी मसीह और उनके द्वारा व्यक्त सत्य के साथ कैसा बर्ताव करते हैं। सिर्फ इसी तरह से उनके सच्चे गुणों को साफ़ तौर पर देखा जा सकता है। ये पुराने ज़माने के यहूदी धर्म के मुख्य पादरियों, धर्मगुरुओं और फरीसियों से बहुत मिलते-जुलते हैं। वे सब ग्रंथों की व्याख्या करने में कुशल थे; यहाँ तक कि उनके कपड़ों की किनारियों पर ग्रंथों की कढ़ाई की हुई होती थी। बाहर से देखने में वे बहुत धर्मनिष्ठ लगते थे, लेकिन जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य शुरू किया, तब उन लोगों ने प्रभु यीशु से कैसा बर्ताव किया? अब मुझे याद आता है कि जब फरीसियों ने प्रभु यीशु को बीमार लोगों का इलाज करते हुए और शैतानों को दूर भगाते हुए देखा, परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य दिखाते हुए देखा, तब उन लोगों ने शैतानों का नाश करने की खातिर शैतानों के राजा का इस्तेमाल करने को लेकर, वास्तव में प्रभु यीशु का तिरस्कार किया, और पवित्र आत्मा का तिरस्कार करने का अपराध किया। इतना ही नहीं, सबसे बड़े पादरी ने प्रभु यीशु से यह पूछ कर उनकी परिक्षा ली कि क्या वे मसीह हैं। जब प्रभु यीशु ने कहा, "मैं हूँ", तो उन्होंने प्रभु यीशु को ईशनिंदा का दोषी करार देने के लिए इस बात का इस्तेमाल किया। उन्होंने प्रभु यीशु को रोमन सरकार के हवाले कर दिया। उन्हें प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने के बदले किसी चोर को जेल से रिहा कर देना पसंद था। यहूदी मुख्य पादरी, धर्मगुरु, और फरीसी, सभी जानते थे कि प्रभु यीशु अधिकार और सामर्थ्य के वचन बोलते थे, फिर भी सत्य को स्वीकार करना तो दूर रहा, उन लोगों ने सत्य को खोजने तक की जहमत नहीं की। वे जिद पर अड़ कर बाइबल के विधानों और आदेशों के साथ चिपके रहे, वे लोग बाइबल के पत्रों का इस्तेमाल करके परमेश्वर के कार्य की निंदा करते रहे। उन लोगों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि प्रभु यीशु ने कितने सत्य व्यक्त किये थे, या उन्होंने कितने चमत्कार या अजूबे करके दिखाये थे। जब तक प्रभु यीशु को मसीहा नहीं कहा गया, वे पागलों की तरह उनकी निंदा और विरोध करते रहे, उनको सूली पर चढ़ा देने को ठाने रहे। ये तथ्य इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि फरीसियों का स्वभाव और सार सत्य से घृणा करनेवाले, परमेश्वर से नफ़रत करनेवाले मसीह-विरोधी शैतानों जैसा था। अंत के दिनों में, प्रभु यीशु वापस आ गये हैं, सत्य को व्यक्त करनेवाले, लोगों के साथ न्याय का कार्य करनेवाले और उनका शुद्धिकरण करनेवाले सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रूप में। अलग-अलग संप्रदायों की अच्छी भेड़ें और प्रधान भेड़ें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुन रही हैं, और उन्हें परमेश्वर की वाणी के रूप में पहचान रही हैं, और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में आ गयी हैं। धार्मिक वर्गों के पादरी और एल्डर साफ़ तौर पर जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गये वचन संपूर्ण सत्य हैं, उनमें अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन वे लोग सत्य को बिलकुल भी नहीं खोजते। इसके बजाय वे बाइबल को तोड़-मरोड़ कर उसका गलत हवाला देते हैं, ये कह कर कि बाइबल से भटकाव धर्म की खिलाफत है, और जो भी प्रभु यीशु बादल पर सवार होकर नहीं उतरते, वे नकली हैं। वे ये भी घोषणा करते हैं कि देहधारी परमेश्वर के आगमन का कोई भी संदेश धर्म के विरुद्ध है और झूठा सिद्धांत है। वे पागलों जैसे तरह-तरह की अफवाहें और भ्रांतियां फैलाते हैं, जिनमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर लांछन लागाये जाते हैं, उनकी निंदा की जाती है, उन पर हमले किये जाते हैं और उनका तिरस्कार किया जाता है। वे किसी भी हथकंडे का इस्तेमाल कर परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुसरण करने और उसकी खोजबीन करने से लोगों को रोकते हैं, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को परमेश्वर के आगमन का त्याग करना पड़ता है। पादरी और एल्डर जानते हैं कि वे परमेश्वर की भेड़ें हैं, फिर भी वे उन्हें परमेश्वर को नहीं लौटाते। इसके बजाय, वे परमेश्वर की भेड़ों को खुद की भेड़ें बताते हैं, ताकि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हमेशा के लिए काबू में कर सकें और उन पर दबदबा बनाये रख सकें। क्या यह मसीह-विरोधियों का बर्ताव नहीं है? क्या धार्मिक वर्गों के पादरी और एल्डर ऐसा नहीं करते? उनका इससे भी ज़्यादा नफ़रत वाला काम ये है कि जैसे ही उन्हें पता चलता है कि कोई सर्वशक्तिमान परमेश्वर का समाचार और गवाही देने के लिए कलीसिया आ रहा है, वे उसे मारते-पीटते हैं, उसको गाली देते हैं और बेइज्जत करते हैं और वे पुलिस तक को बुला लेते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देनेवालों को वे शैतानी सीसीपी शासन के हवाले कर देते हैं, बेकार ही इस उम्मीद के साथ कि वे सीसीपी की दुष्ट सत्ता की मदद से परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर रोक लगा देंगे, ताकि वे चीन में धर्म को हमेशा काबू में किये रहने के अपने बुरे मकसद को पूरा कर सकें। यह बात सत्य से नफ़रत करने और परमेश्वर से घृणा करने के उनके शैतानी स्वभाव का पूरा पर्दाफ़ाश करती है।

"मेरे काम में दखल मत दीजिए" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 4: धार्मिक मंडलियों में सभी पादरी बाइबल से परिचित हैं। वे अक्सर कलीसियाओं में बाइबल की व्याख्या करते हैं और बाइबल को बढ़ावा देते हैं। हमने हमेशा सोचा कि वे ऐसे लोग होने चाहिये जो परमेश्वर को जानते हैं। तो फिर अंत के दिनों के देह-धारी परमेश्वर के कार्य की धार्मिक जगत के अधिकांश पादरियों ने बुरी तरह निंदा क्यों की और इसका विरोध क्यों किया? मेरा मानना है कि धार्मिक समुदाय के ज़्यादातर पादरी और अगुवा जिसकी निंदा करते हैं शायद वो सच्चा मार्ग नहीं हो सकता!

अगला: प्रश्न 6: सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है, एक राक्षसी समूह, जो परमेश्वर और सत्य के सबसे अधिक विरुद्ध है। राक्षस शैतान का मनुष्य रूप है। शैतान और दुष्ट आत्माओं का पुनर्जन्म है राक्षस, जोकि परमेश्वर का कट्टर दुश्मन है। इसलिए जब अंत के दिनों में परमेश्वर चीन में देहधारी होकर कार्य करते हैं, तो सीसीपी सरकार द्वारा वे जिस पागल दमन और उत्पीड़न को झेलते हैं, वह अवश्यंभावी है। परंतु धार्मिक समुदाय के अधिकतर पादरी और एल्डर्स परमेश्वर के सेवक हैं, जो बाइबल से परिचित हैं| न सिर्फ वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को खोज कर उसका अध्ययन नहीं करते, इसकी बजाय वे उस पर अपनी राय थोप कर, उसकी निंदा कर, प्रचंडता से विरोध करते हैं। यह अविश्वसनीय है! इसमें कोई अचरज नहीं कि सीसीपी सरकार परमेश्वर के कार्य की निंदा करती है। धार्मिक पादरी और एल्डर्स भी परमेश्वर के कार्य का विरोध और निंदा क्यों करते हैं?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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