तुम विषमता होने के अनिच्छुक क्यों हो?

जिन लोगों को जीता जाता है वे विषमताएँ हैं और ऐसा केवल पूर्ण किए जाने के बाद ही होता है कि लोग अंत के दिनों के कार्य के आदर्श और नमूने बन जाते हैं। पूर्ण किए जाने से पहले वे विषमताएँ, औजार और सेवा की वस्तुएँ होते हैं। जो लोग परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से जीते जा चुके हैं वे उसके प्रबंधन कार्य का क्रिस्टलीकरण, आदर्श और नमूने हैं। ये वचन जिन्हें मैंने ऐसे लोगों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया है मामूली हो सकते हैं, किन्तु वे कई रोचक कहानियाँ बयाँ करते हैं। तुम कम विश्वासी लोग हमेशा तुच्छ उपनाम पर तब तक बहस करोगे जब तक कि तुम लोगों के चेहरे लाल न हो जाएँ, और कभी-कभी तो इस वजह से हमारे संबंध भी खराब हो जाते हैं। यद्यपि यह बस एक छोटा सा उपनाम है, किन्तु तुम लोगों की सोच और विश्वास में, यह न केवल एक महत्वहीन उपनाम है, बल्कि यह तुम लोगों के भाग्य से संबंधित एक महत्वपूर्ण चीज है। इसलिए जो लोग समझदार नहीं हैं, उन्हें प्रायः इस तरह की छोटी-छोटी चीज़ों से बहुत नुकसान होगा—यह थोड़ा बचाने और ज़्यादा गँवाने के समान है। केवल किसी महत्वहीन उपनाम की वजह से तुम लोग भाग जाते हो और फिर कभी लौटकर नहीं आते। इसका कारण यह है कि तुम लोग जीवन को महत्वहीन मानते हो और तुम लोग उस नाम को बहुत महत्व देते हो जिससे तुम्हें पुकारा जाता है। इसलिए तुम लोगों के आध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन में भी, तुम लोग अपनी हैसियत से संबंधित अवधारणाओं की वजह से प्रायः कई पेचीदा और अजीब कहानियाँ बना लोगे। शायद तुम लोग इसे स्वीकार नहीं करोगे, लेकिन मैं तुम्हें बताऊँगा कि ऐसे लोग वास्तविक जीवन में विद्यमान हैं, यद्यपि तुम लोगों को अभी तक अलग-अलग उजागर नहीं किया गया है। इस प्रकार की चीजें तुम सभी लोगों के जीवन में हुई हैं। यदि तुम्हें इस पर विश्वास नहीं है, तो नीचे एक बहन (या एक भाई) के जीवन के शब्दचित्र पर नज़र डालो। यह संभव है कि वह व्यक्ति वास्तव में तुम हो या हो सकता है कि वह कोई ऐसा व्यक्ति हो जिससे तुम परिचित हो। यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो यह शब्दचित्र एक ऐसे अनुभव का वर्णन करता है जो तुम्हें हो चुका है। वर्णन में कोई कमी नहीं है, एक भी सोच-विचार को छोड़ा नहीं गया है, बल्कि उन्हें इस कहानी में पूरी तरह से दर्ज किया गया है। यदि तुम्हें विश्वास नहीं है, तो पहले इसे पढ़ो।

यह एक “आध्यात्मिक व्यक्ति” का छोटा सा अनुभव है।

वह यह देखकर बहुत व्याकुल हो गयी कि कलीसिया में भाई-बहन बहुत कुछ ऐसा करते थे जो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं था इसलिए उसने उन्हें फटकारना शुरू किया : “तुम निकम्मे लोग हो! क्या तुम्हारा ज़मीर बिल्कुल मर चुका है? तुम लोग आखिर अविवेकपूर्ण काम क्यों कर रहे हो? तुम लोग जो मन में आए वह करने के बजाय सत्य को क्यों नहीं खोज रहे हो? ... और मैं यह बात तुम लोगों से कह रही हूँ, लेकिन साथ ही मैं अपने आपसे भी घृणा कर रही हूँ। मैं देख रही हूँ कि परमेश्वर अधीरता से जल रहा है और मैं अपने अंदर एक आग महसूस कर रही हूँ। परमेश्वर ने जो कार्य मुझे सौंपा है मैं सच में उसे करना चाहती हूँ और मैं तुम लोगों के काम आना चाहती हूँ। लेकिन फिलहाल मैं बहुत कमज़ोर हूँ। परमेश्वर ने हम पर बहुत समय व्यय किया है और बहुत से वचन कहे हैं, किन्तु हम अभी भी वैसे ही हैं। मैं मन ही मन सोचती हूँ कि मैं परमेश्वर की बेहद ऋणी हूँ...।” (वह रोने लगी और बोल नहीं पायी।) तब वह प्रार्थना करने लगी : “हे परमेश्वर! मैं तुझसे विनती करती हूँ कि मुझे शक्ति दे और उससे भी अधिक प्रेरित कर जितना तूने पहले कभी किया है, और तेरा आत्मा मुझमें कार्य करे। मैं तेरे साथ सहयोग करने को तैयार हूँ। यदि अंत में तू महिमा प्राप्त करता है, तो मैं अपना सर्वस्व तुझे अर्पित करने को तैयार हूँ, भले ही मुझे अपना जीवन अर्पित करना पड़े। हम तेरी भरपूर स्तुति करना चाहते हैं ताकि तेरे पवित्र नाम की स्तुति करने, तुझे महिमान्वित करने, तुझे अभिव्यक्त करने, यह स्थापित करने के लिए कि तेरा कार्य सच्चा है और तू जिस जिम्मेदारी को वहन कर रहा है उसकी हर देखरेख के लिए, हमारे भाई-बहन खुशी से नाच-गा सकें...।” उसने इस तरह से ईमानदारी से प्रार्थना की और पवित्र आत्मा ने वास्तव में उसे एक ज़िम्मेदारी दे दी। इस दौरान उस पर असाधारण ज़िम्मेदारी थी और वह पूरा दिन पढ़ने, लिखने और सुनने में बिताती थी। वह बहुत व्यस्त रहती थी। उसकी आध्यात्मिक स्थिति उत्कृष्ट थी और अपने हृदय में, वह हर समय ऊर्जावान और ज़िम्मेदार बनी रहती थी। समय-समय पर वह कमजोर हो जाती थी और थककर चूर हो जाती थी, किन्तु शीघ्र ही फिर से सामान्य अवस्था में आ जाती थी। इसके बाद, उसने तेजी से प्रगति की, वह परमेश्वर के बहुत से वचनों की थोड़ी समझ पाने में सक्षम हो गई थी और उसने भजन भी तेजी से सीख लिये थे—कुल मिलाकर, उसकी आध्यात्मिक अवस्था उत्कृष्ट थी। जब उसने देखा कि कलीसिया में कई चीजें परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप नहीं हैं, तो वह चिंतित हो गई और उसने भाई-बहनों को झिड़का : “क्या अपने कर्तव्य के प्रति तुम्हारा यही समर्पण है? तुम लोग इतनी छोटी सी कीमत भी क्यों नहीं चुका पाते हो? यदि तुम लोग ऐसा नहीं करना चाहते हो, तो मैं करूँगी...।”

जब उस पर जिम्मेदारी पड़ी, तो पवित्र आत्मा के अधिकाधिक कार्य से उसने अपनी आस्था में खुद को मज़बूत महसूस किया। कभी-कभी मुश्किलें आने पर वह नकारात्मक हो जाती थी, लेकिन वह उन पर काबू पा लेती। अर्थात्, जब वह पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करती, स्थिति अच्छी होने पर भी वह कुछ न कुछ कठिनाइयों का सामना करती या थोड़ी-बहुत कमजोरी महसूस करती थी। ऐसी चीज़ें होती ही हैं, किन्तु शीघ्र ही वह उन स्थितियों से बाहर निकल आती थी। कमज़ोरी का अनुभव करते समय, वह प्रार्थना करती और उसे महसूस होता कि उसका अपना आध्यात्मिक कद अपर्याप्त है, लेकिन वह परमेश्वर के साथ सहयोग करने को तैयार थी। परमेश्वर चाहे जो करे, लेकिन वह उसकी इच्छा को संतुष्ट करने और उसकी सभी व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए तैयार थी। कुछ ऐसे लोग थे जिनके मन में उसके बारे में कुछ राय और पूर्वाग्रह थे, लेकिन वह तटस्थ होकर उनके साथ संगति करने को तैयार रहती थी। पवित्र आत्मा के सामान्य कार्य के दौरान लोगों की अवस्थाएँ ऐसी ही होती हैं। कुछ समय के बाद, परमेश्वर का कार्य बदलने लगा और सभी लोग कार्य के दूसरे चरण में प्रवेश कर गए जिसमें परमेश्वर की उनसे अलग-अलग अपेक्षाएँ थीं। तो बोले गए नए वचनों में लोगों से नई अपेक्षाएँ की गयी थीं : “... तुम लोगों के लिए मेरे मन में केवल घृणा है, आशीष कदापि नहीं। मुझे तुम लोगों को आशीष देने का विचार कभी नहीं आया, न ही मुझे तुम लोगों को पूर्ण करने का विचार आया, क्योंकि तुम लोग बहुत विद्रोही हो। क्योंकि तुम लोग कुटिल और कपटी हो और क्योंकि तुम लोगों में क्षमता का अभाव है और तुम लोग निम्न हैसियत के हो, तुम लोग कभी भी मेरी दृष्टि में या मेरे हृदय में नहीं रहे। मेरा कार्य केवल तुम लोगों की निंदा करने के आशय से किया जाता है; मेरा हाथ कभी तुम लोगों से दूर नहीं रहा है, न ही मेरी ताड़ना तुम लोगों से दूर रही है। मैंने तुम लोगों का न्याय करता रहा हूँ और शाप देता रहा हूँ। क्योंकि तुम लोगों को मेरी कोई समझ नहीं है, इसलिए मेरा कोप हमेशा तुम लोगों पर रहा है। यद्यपि मैंने हमेशा तुम लोगों के बीच कार्य किया है, फिर भी तुम लोगों को अपने प्रति मेरी प्रवृत्ति का पता होना चाहिए। यह मात्र घृणा है—कोई अन्य प्रवृत्ति या राय नहीं है। मैं केवल यह चाहता हूँ कि तुम लोग मेरी बुद्धि और मेरे महान सामर्थ्य के लिए विषमता के रूप में कार्य करो। तुम लोग मेरी विषमताओं से अधिक कुछ नहीं हो क्योंकि मेरी धार्मिकता तुम लोगों के विद्रोहीपन के माध्यम से प्रकट होती है। मैं तुम लोगों से अपने कार्य के विषमता के रूप में, अपने कार्य का उपांग होने के लिए कार्य करवाता हूँ...।” जैसे ही उसने “उपांग” और “विषमता” शब्द देखे, वह सोचने लगी : “इन शब्दों के आलोक में मुझे कैसे अनुसरण करना चाहिए? ऐसी कीमत चुकाकर भी मैं विषमता ही हूँ। क्या कोई विषमता केवल एक सेवाकर्मी ही नहीं है? अतीत में कहा जाता था कि हम सेवाकर्मी नहीं होंगे, हम परमेश्वर-जन होंगे, मगर क्या हम आज भी यहाँ मात्र सेवाकर्मी की ही भूमिका में नहीं हैं? क्या सेवाकर्मियों में जीवन का अभाव नहीं होता? चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा क्यों न सहनी पड़े, परमेश्वर मेरी प्रशंसा नहीं करेगा! जब मेरा एक विषमता होने का कार्य पूरा हो जाएगा, तो क्या यह समाप्त नहीं हो जाएगा? ...” इस बारे में सोच-सोचकर वह निरुत्साहित हो गई थी। कलीसिया में आने पर अपने भाई-बहनों की अवस्था देखकर तो उसे और भी बुरा लगा : “तुम लोग सही नहीं हो! मैं भी सही नहीं हूँ! मैं नकारात्मक हो गयी हूँ। ओह! क्या किया जा सकता है? परमेश्वर अभी भी हमें नहीं चाहता है। इस तरह का कार्य करने पर, ऐसा कोई तरीका नहीं है कि वह हमें नकारात्मक न बनाए। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मेरे साथ क्या समस्या है। मैं तो प्रार्थना भी नहीं करना चाहती। खैर, मैं अभी ठीक नहीं हूँ, मैं अपने आपको प्रेरित नहीं कर पा रही हूँ। अनेक बार प्रार्थना करने पर भी नहीं और इसे जारी नहीं रखना चाहती। मैं तो इसे इसी तरह से देखती हूँ। परमेश्वर कहता है कि हम विषमताएँ हैं, तो क्या विषमताएँ मात्र सेवाकर्मी ही नहीं हैं? परमेश्वर कहता है कि हम विषमताएँ हैं, उसके पुत्र नहीं और न ही हम उसके जन हैं। हम उसके पुत्र नहीं हैं, उसकी पहली संतान तो बिल्कुल नहीं। हम कुछ भी नहीं, मात्र विषमताएँ हैं। यदि हम यही हैं, तो क्या हमें संभवतः कोई अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकता है? विषमताओं को कोई आशा नहीं होती क्योंकि उनमें जीवन नहीं होता। यदि हम उसके पुत्र, उसके लोग होते, तो उसमें कोई आशा होती—हम पूर्ण बनाए जा सकते थे। क्या विषमताएं अपने अंदर परमेश्वर का जीवन वहन कर सकती हैं? क्या परमेश्वर उन लोगों को जीवन दे सकता है जो उसके लिए सेवा करते हैं? जिन्हें वह प्रेम करता है ये वे लोग हैं जिनमें उसका जीवन है और जिनमें उसका जीवन है मात्र वही उसके पुत्र, उसके जन हैं। यद्यपि मैं निराश और कमज़ोर हूँ, किन्तु मुझे आशा है कि तुम लोग निराश नहीं हो। मुझे पता है कि इस तरह से पीछे हटने और निराश होने से परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट नहीं किया जा सकता, लेकिन मैं विषमता बनने को तैयार नहीं हूँ। मुझे विषमता होने से डर लगता है। खैर, मेरे पास केवल इतनी ही ऊर्जा बची है और अब मैं आगे नहीं बढ़ सकती। मुझे आशा है कि तुम में से कोई भी वैसा नहीं करेगा जैसे मैंने किया है, बल्कि तुम मुझ से कुछ प्रेरणा पा सकोगे। मुझे लगता है जैसे कि मैं मर भी सकती हूँ! मैं मरने से पहले तुम लोगों के लिए कुछ अंतिम वचन छोड़ जाऊँगी—मुझे आशा है कि तुम लोग अंत तक विषमताओं के रूप में कार्य कर सकते हो; हो सकता है कि अंत में परमेश्वर विषमताओं की प्रशंसा करे...।” जब भाई-बहनों ने यह देखा, तो उन्होंने सोचा : वह इतनी निराश कैसे हो सकती है? क्या वह पिछले कुछ दिनों तक पूरी तरह से ठीक नहीं थी? वह अचानक इतनी निरुत्साही क्यों हो गई है? वह सामान्य क्यों नहीं हो रही है? उसने कहा : “मत कहो कि मैं सामान्य नहीं हो रही हूँ। दरअसल, मैं अपने हृदय में हर चीज के बारे में स्पष्ट हूँ। मैं जानती हूँ कि मैंने परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट नहीं किया है, लेकिन क्या यह मात्र इसलिए नहीं है क्योंकि मैं उसकी विषमता के रूप में कार्य करने के लिए तैयार नहीं हूँ? मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है। शायद एक दिन परमेश्वर ‘विषमताओं’ के उपनाम को ‘प्राणियों’ में बदल दे, इतना ही नहीं, बल्कि अपने प्राणियों में बदल दे जिन्हें वह महत्वपूर्ण तरीकों से उपयोग में लाता है। क्या इस बात में कुछ आशा नहीं है? मुझे आशा है कि तुम लोग नकारात्मक या हतोत्साहित नहीं होगे और तुम लोग परमेश्वर का अनुसरण करने और विषमता के तौर पर कार्य करने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास कर सकोगे। बहरहाल, मैं जारी नहीं रख सकती। मेरे क्रियाकलापों से खुद को सीमित मत कर लेना।” अन्य लोगों ने सुनकर कहा : “भले ही तुम उसका अनुसरण करना बंद कर दो, किन्तु हम पालन करते रहेंगे, क्योंकि परमेश्वर ने कभी हमारे साथ अन्याय नहीं किया है। हम तुम्हारी नकारात्मकता से लाचार नहीं होंगे।”

काफी समय तक इस अनुभव से गुजरने के बाद भी वह एक विषमता होने को लेकर निराश थी, इसलिए मैंने उससे कहा : “तुझे मेरे कार्य की कोई समझ नहीं है। तुझे मेरे वचनों की आंतरिक सच्चाई, सार या उनके अभीष्ट परिणामों की कोई समझ नहीं है। तू मेरे कार्य के लक्ष्यों को या इस बुद्धि को नहीं जानती। तुझे मेरी इच्छा की कोई समझ नहीं है। तू केवल पीछे हटना जानती है क्योंकि तू विषमता है—हैसियत के लिए तेरी अभिलाषा बहुत बड़ी है! तू कितनी बेवकूफ है! अतीत में मैंने तुझे बहुत कुछ कहा है। मैंने कहा है कि मैं तुझे पूर्ण बना दूँगा; क्या तू भूल गई? विषमताओं के बारे में बोलने से पहले, क्या मैंने पूर्ण बनाए जाने के बारे में नहीं बोला था?” “रुक, मुझे इसके बारे में सोचने दे। हाँ, सही है! विषमताओं के बारे में बात करने से पहले, तूने वे बातें कही थीं!” “जब मैंने पूर्ण बनाए जाने के बारे में बोला था, तो क्या मैंने नहीं कहा था कि लोगों को जीते जाने के बाद ही उन्हें पूर्ण बनाया जाएगा?” “हाँ!” “क्या मेरे वचन ईमानदार नहीं थे? क्या वे अच्छी भावना से नहीं कहे गए थे?” “हाँ! तू एक ऐसा परमेश्वर है जिसने कभी भी बेईमानी की बात नहीं कही है—कोई भी इस इसे नकारने की हिम्मत नहीं कर सकता। लेकिन तू कई भिन्न-भिन्न तरीकों से बोलता है।” “क्या मेरे बोलने का तरीका कार्य के भिन्न-भिन्न चरणों के अनुसार बदलता नहीं है? क्या जिन चीज़ों को मैं कहता हूँ वे तेरी आवश्यकताओं के आधार पर की और कही नहीं जाती हैं?” “तू लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करता है और तू उनकी आवश्यकता के अनुसार उनका भरण-पोषण करता है। यह असत्य नहीं है!” “तो क्या मैंने जो बातें तुझसे कही हैं वे लाभप्रद नहीं रही हैं? क्या मेरी ताड़नाएँ तेरे वास्ते संपन्न नहीं की गयी हैं?” “तू कैसे कह सकती है कि यह मेरे अपने लिए है! तूने मुझे लगभग मरने की हद तक ताड़ना दी है—मैं अब जीवित नहीं रहना चाहती हूँ। आज तू ऐसा कहता है, कल तू वैसा कहता है। मुझे पता है कि मुझे पूर्ण बनाना मेरे अपने लिए है, किन्तु तूने मुझे पूर्ण नहीं बनाया है—तू मुझे विषमता बनाकर भी ताड़ना देता है। क्या तू मुझसे नफरत नहीं करता? कोई भी तेरे वचनों पर विश्वास नहीं करता और अब मैंने अच्छी तरह देख लिया है कि तेरी ताड़ना केवल तेरे हृदय से घृणा को दूर करने के लिए है, मुझे बचाने के लिए नहीं है। तूने पहले मुझसे सच्चाई छिपायी थी; तूने कहा था कि तू मुझे पूर्ण बनाएगा और यह कि ताड़ना मुझे पूर्ण बनाने के लिए है। इसलिए मैंने हमेशा तेरी ताड़ना का पालन किया है; मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि आज मुझे एक विषमता का उपनाम मिलेगा। परमेश्वर, क्या यह बेहतर नहीं होता यदि तूने मुझसे किसी और रूप में कार्य करवाया होता? क्या तेरा मुझसे विषमता की भूमिका करवाना आवश्यक था? मैं तो स्वर्ग में द्वारपाल होना स्वीकार कर लेती। मैं इधर-उधर दौड़ती रही हूँ और स्वयं को खपा रही हूँ, किन्तु अंत में अब मेरे हाथ खाली हैं—मैं बिल्कुल कंगाल हूँ। मगर अभी भी तू मुझसे कहता है कि तू मुझसे अपने विषमता के रूप में कार्य करवाएगा। मैं अपना चेहरा भी कैसे दिखाऊँ?” “तू किस बारे में बात कर रही थी? मैंने अतीत में इतना अधिक न्याय का कार्य किया है और यह तेरी समझ में नहीं आ रहा? क्या तुझे अपने बारे में सच्ची समझ है? क्या ‘विषमता’ का उपनाम भी वचनों का न्याय नहीं है? क्या तुझे लगता है कि विषमताओं के बारे में मेरी सारी बातें भी एक तरीका है, तेरे साथ न्याय करने का एक तरीका है? तो कैसे तू मेरा अनुसरण करेगी?” “मैंने अभी तक योजना नहीं बनायी है कि तेरा अनुसरण कैसे करूँ! सबसे पहले मुझे जानना है : मैं विषमता हूँ या नहीं? क्या विषमताओं को भी पूर्ण बनाया जा सकता है? क्या ‘विषमता’ के उपनाम को बदला जा सकता है? क्या मैं विषमता होकर शानदार गवाही दे सकती हूँ और ऐसी इंसान बन सकती हूँ जिसे पूर्ण बनाया जा सके, जो परमेश्वर को प्यार करने का एक प्रतिमान हो और परमेश्वर का अंतरंग हो? क्या मुझे पूर्ण बनाया जा सकता है? मुझे सच बता!” “क्या तू नहीं जानती कि चीजें हमेशा विकसित हो रही हैं, हमेशा बदल रही हैं? अगर तू विषमता की अपनी भूमिका में वर्तमान में आज्ञाकारी होने की इच्छुक है, तो तू बदलने में सक्षम हो सकेगी। तू विषमता है या नहीं इसका तेरी नियति से कोई संबंध नहीं है। मुख्य बात यह है कि तू ऐसी इंसान हो सकती है या नहीं जिसके अपने जीवन स्वभाव में परिवर्तन हो गया है।” “क्या तू मुझे बता सकता है कि तू मुझे पूर्ण कर सकता है या नहीं?” “अगर तू अंत तक अनुसरण और आज्ञा पालन करेगी, तो मैं गारंटी देता हूँ कि मैं तुझे पूर्ण बना सकता हूँ।” “और मुझे किस तरह के दुःख से गुज़रना होगा?” “तुझे मुश्किलों से, वचनों के न्याय और ताड़ना से, विशेष रूप से वचनों की ताड़ना से गुज़रना होगा, जो विषमता होने की ताड़ना जैसी है!” “विषमता जैसी ही ताड़ना? ठीक है, यदि मुश्किलों से गुजरकर मैं तेरे द्वारा पूर्ण बनायी जा सकूँ, यदि कोई आशा है तो ठीक है। यदि लेशमात्र भी आशा हो, तो यह विषमता होने से बेहतर है। उपनाम ‘विषमता’ का उपनाम बहुत खराब लगता है। मैं विषमता बनने की इच्छुक नहीं हूँ!” “विषमता में इतना खराब क्या है? क्या विषमताएँ अपने आप में पूरी तरह से अच्छे नहीं होते? क्या विषमताएँ आशीषों का आनंद लेने योग्य नहीं हैं? यदि मैं कहता हूँ कि विषमताएँ आशीषों का आनंद ले सकते हैं तो तुम आशीषों का आनंद लेने में सक्षम हो जाओगी। क्या यह सच नहीं है कि मेरे कार्य की वजह से लोगों उपनाम बदल जाता है? फिर भी मात्र एक उपनाम तुम्हें इतना परेशान कर रहा है? सच्चाई यह है कि तू इस तरह की विषमता की पूरी तरह हकदार है। तू अनुसरण करने के लिए तैयार है या नहीं?” “ठीक है, तू मुझे पूर्ण बना सकता है या नहीं? क्या तू मुझे अपने आशीषों का आनंद लेने दे सकता है?” “तू अंत तक अनुसरण करने के लिए तैयार है या नहीं? क्या तू खुद को अर्पित करने के लिए तैयार है?” “मुझे इस पर विचार करने दे। एक विषमता भी तेरे आशीष का आनंद ले सकता है, और उसे पूर्ण बनाया जा सकता है। पूर्ण बनाए जाने के बाद मैं तेरी अंतरंग हो जाऊँगी, तेरी सभी इच्छाओं को समझ जाऊँगी और मुझमें भी वही होगा जो तुझमें है। मैं भी वही आनंद ले पाऊँगी, जो आनंद तू लेता है और मैं भी वह जान जाऊँगी जो तू जानता है। ... मुश्किलों से गुजरने और पूर्ण किए जाने के बाद, मैं आशीषों का आनंद ले पाऊँगी। तो मैं वास्तव में किन आशीषों का आनंद लूँगी?” “तू किन आशीषों का आनंद लेगी इस बारे में चिंता मत कर। भले ही मैं तुझे बता दूँ, तब भी ये चीज़ें तेरी कल्पना से परे हैं। एक अच्छी विषमता होने के बाद, तू जीत ली जाएगी और तू एक सफल विषमता हो जाएगी। यह जीत लिए गए इंसान का एक प्रतिमान और नमूना है, लेकिन तू प्रतिमान और नमूना जीत लिए जाने के बाद ही हो सकती है।” “प्रतिमान और नमूना क्या होता है?” “यह सभी अन्य-जातियों के लिए एक प्रतिमान और नमूना है, अर्थात्, उनके लिए जिन्हें जीता नहीं गया है।” “इसमें कितने लोग शामिल होते हैं?” “बहुत से लोग। यह तुम लोगों में से मात्र चार या पाँच हजार नहीं होते—पूरी दुनिया में जो लोग इस नाम को स्वीकार करते हैं, उन सभी को जीता जाना ज़रूरी है।” “इसलिए यह मात्र पाँच या दस शहर नहीं हैं!” “इसके बारे में अभी चिंता मत कर, स्वयं को अत्यधिक चिंतित मत कर। बस इस बात पर ध्यान दे कि तुझे अभी प्रवेश कैसे पाना चाहिए! मैं गारंटी देता हूँ कि तुझे पूर्ण बनाया जा सकता है।” “किस स्तर तक? और मैं किन आशीषों का आनंद ले सकती हूँ?” “तू क्यों इतनी चिंतित है? मैंने गारंटी दी है कि तुझे पूर्ण बनाया जा सकता है। क्या तू भूल गई है कि मैं विश्वसनीय हूँ?” “यह सच है कि तू विश्वसनीय है, किन्तु बोलने के तेरे कुछ तरीके हमेशा बदलते रहते हैं। आज तू कहता है कि तू गारंटी देता है कि मुझे पूर्ण बनाया जा सकता है, लेकिन कल तू कह सकता है कि यह अनिश्चित है। और कुछ लोगों को तू कहता है, ‘मैं गारंटी देता हूँ कि तेरे जैसा कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं बनाया जा सकता।’ मुझे नहीं पता कि तेरे वचनों के साथ क्या चल रहा है। मैं बस उन पर विश्वास करने की हिम्मत नहीं कर पाती हूँ।” “तो तू स्वयं को अर्पित कर सकती है या नहीं?” “क्या अर्पित करूँ?” “अपने भविष्य को, अपनी आशाओं को अर्पित कर।” “इन चीज़ों को त्याग देना आसान है! मुख्य बात ‘विषमता’ उपनाम की है—यह मुझे नहीं चाहिए। यदि तू मुझसे यह उपनाम हटा ले तो मैं किसी भी चीज के लिए तैयार हो जाऊँगी, मैं कुछ भी करने को तैयार हो जाऊँगी। क्या ये मामूली चीज़ें नहीं हैं? क्या तू उस पदनाम को हटा सकता है?” “क्या यह बहुत आसान नहीं होगा? यदि मैं तुझे वह उपनाम दे सकता हूँ तो मैं निश्चित रूप से इसे वापस भी ले सकता हूँ। लेकिन अभी समय नहीं आया है। तुझे सबसे पहले कार्य के इस चरण का अनुभव पूरा कर लेना चाहिए, तभी तू एक नया उपनाम प्राप्त कर सकती है। कोई व्यक्ति जितना अधिक तेरे जैसा होगा, उसे उतना ही अधिक विषमता होना होगा। विषमता होने के लेकर तू जितना अधिक भयभीत होगी, उतना ही अधिक मैं तेरा इस रूप में वर्गीकरण करूँगा। तेरे जैसे व्यक्ति को सख्ती से अनुशासित किया जाना चाहिए और निपटा जाना चाहिए। कोई व्यक्ति जितना अधिक विद्रोही होगा, उतना ही अधिक वह एक सेवाकर्मी होगा और अंत में, उसे कुछ प्राप्त नहीं होगा।” “यह देखते हुए कि इतनी मेहनत से खोज कर रही हूँ, मैं ‘विषमता’ के उपनाम को क्यों नहीं हटा सकती? हमने इतने सारे वर्षों से तेरा अनुसरण किया है और बहुत अधिक दुःख सहा है। हमने तेरे लिए बहुत कुछ किया है। हमने तेरे लिए आँधी-तूफान झेले हैं; हमने लगभग अपनी जवानी गँवा दी है। हमने न विवाह किया है, न ही घर-परिवार बनाया है और हम में से जो भी ऐसा कर चुके हैं वे भी बाहर आ गए हैं। मैं हाई स्कूल तक विद्यालय में थी; लेकिन जैसे ही मैंने सुना कि तू आ गया है, मैंने कालेज जाने का अवसर त्याग दिया। और तू कहता है कि हम विषमता हैं! हमने बहुत कुछ गँवाया है! हम ये सब चीजें करते हैं लेकिन पता चलता है कि हम मात्र तेरी विषमता हैं। इससे मेरे पुराने सहपाठी और मेरे साथी मेरे बारे में क्या सोचते हैं? जब वे मुझे देखकर मेरी स्थिति और मेरी हैसियत के बारे में पूछते हैं, तो मुझे उन्हें बताने में शर्मिंदगी कैसे न होगी? सबसे पहले, तुझ पर अपने विश्वास की वजह से मैंने हर मूल्य चुकाया और लोगों ने मुझे बेवकूफ समझकर मेरा उपहास किया। लेकिन यह सोचकर मैंने अनुसरण किया कि मेरा दिन आएगा, जब मैं उन सभी को दिखा सकूँगी जिन्होंने विश्वास नहीं किया। लेकिन, आज तू मुझे कहता है कि मैं एक विषमता हूँ। यदि तूने मुझे निम्नतम उपनाम दिया होता, यदि तूने मुझे राज्य का एक व्यक्ति होने की अनुमति दी होती, तो वह फिर भी ठीक होता! भले ही मैं तेरी अनुयायी या तेरी विश्वासपात्र न हो सकी हूँ, किन्तु मैं मात्र तेरी अनुयायी बन कर भी खुश रहती! हमने इतने सालों तक तेरा अनुसरण किया है, अपने परिवारों का त्याग किया है, और अब तक खोज करते रहना बहुत कठिन रहा है, और इसके बदले हमारे पास दिखाने को केवल ‘विषमता’ का उपनाम है! मैंने तेरे लिए हर चीज का परित्याग कर दिया है; मैंने सभी सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया है। पहले, किसी ने मुझे एक संभावित साथी से परिचित करवाया। वह सुंदर और सजीला था; वह किसी ऊँचे सरकारी अधिकारी का पुत्र था। उस समय मेरी उसमें रुचि थी। लेकिन जैसे ही मैंने सुना कि परमेश्वर प्रकट हुआ है और अपना कार्य कर रहा है, कि तू हमें राज्य में ले जाने, और हमें पूर्ण बनाने जा रहा है, और तूने हमें सब कुछ छोड़ने में समय न गँवाने का दृढ़ संकल्प लेने के लिए कहा है, जब मैंने यह सुना, तो मैंने देखा कि मुझमें थोड़ा-भी संकल्प नहीं है। तब मैंने अपने आपको मज़बूत बनाकर उस अवसर को अस्वीकार कर दिया। उसके बाद, उसने मेरे परिवार को कई बार उपहार भेजे, लेकिन मैंने उनको देखा भी नहीं। क्या तुझे लगता है कि मैं उस समय परेशान थी? यह इतनी अच्छी चीज़ थी लेकिन व्यर्थ हो गई। मैं परेशान कैसे न होती? मैं इसे लेकर कई दिनों तक इतनी परेशान रही कि रात को सो नहीं सकी, लेकिन अंत में मैंने तब भी उसे जाने दिया। जब भी मैंने प्रार्थना की तो मैं पवित्रात्मा से प्रेरित हुई, जिसने कहा : ‘क्या तू मेरे लिए सब कुछ बलिदान करने को तैयार है? क्या तू मेरे लिए अपने आप को खपाने को तैयार है?’ जब भी मैंने तेरे उन वचनों पर विचार करती, तो मैं रोती थी। मैं प्रेरित होकर न जाने कितनी बार रोती। एक साल बाद मैंने सुना कि उस आदमी ने शादी कर ली है। कहने की आवश्यकता नहीं कि मैं बेहद दुःखी हो गई थी, लेकिन मैंने तेरी खातिर उसे भी जाने दिया। और यह सब इस बात का ज़िक्र भी किये बिना कि मेरे कपड़े और खानपान अच्छे नहीं हैं—मैंने उस विवाह का त्याग कर दिया, मैंने यह सब त्याग दिया, इसलिए तुझे मुझसे विषमता के रूप में कार्य नहीं करवाना चाहिए! मैंने अपने आप को सिर्फ तेरे लिए अर्पित करने की खातिर अपने विवाह, अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना का त्याग कर दिया! एक व्यक्ति का पूरा जीवन एक अच्छा साथी खोजने और एक सुखी परिवार पाने से अधिक कुछ नहीं होता। मैंने इन सबको, बेहतरीन चीजों को जाने दिया, और अब मेरे पास कुछ भी नहीं है, मैं बिल्कुल अकेली हूँ। तू मुझे कहाँ भेजना चाहेगा? जब से मैंने तेरा अनुसरण करना शुरू किया है तब से मैं कष्ट ही उठाती रही हूँ। मेरा जीवन अच्छा नहीं रहा है। मैंने अपने परिवार, अपनी जीविका और अपने सारे भौतिक सुख छोड़ दिए हैं, और हमारा यह सारा बलिदान भी तेरे आशीषों का आनंद लेने के लिए अभी भी पर्याप्त नहीं है? तो अब यह ‘विषमता’ की चीज आ गयी। परमेश्वर, तूने सचमुच सीमा लाँघ दी है! हमें देख—हमारे पास इस दुनिया में भरोसा करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। हममें से कुछ ने अपने बच्चों को छोड़ दिया है, कुछ ने अपनी नौकरी, अपने जीवनसाथी[क] को छोड़ दिया है, वगैरह, वगैरह; हमने सभी दैहिक सुखों को छोड़ दिया है। हमारे लिए अब और क्या उम्मीद बची है? हम दुनिया में कैसे ज़िंदा रह सकते हैं? हमने जो कीमत चुकाई है, क्या उसका मूल्य एक पैसा भी नहीं हैं? क्या तू इसे बिल्कुल भी नहीं देख सकता? हमारी हैसियत निम्न है और हममें क्षमताओं का अभाव है—हम इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन जो तू हमसे करवाना चाहता था हमने उस पर कब ध्यान नहीं दिया है? अब तू, हमें निर्दयतापूर्वक छोड़ रहा है और ‘विषमता’ के उपनाम के साथ ‘चुकता’ कर रहा है? क्या हमारे बलिदान ने हमें यही सब दिया है? अंत में, अगर लोग मुझसे पूछें कि मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने से क्या प्राप्त हुआ है, तो क्या मैं सचमुच उन्हें यह ‘विषमता’ शब्द दिखा सकती हूँ? यह कहने के लिए मैं अपना मुँह कैसे खोल सकती हूँ कि मैं एक विषमता हूँ? मैं इसे अपने माता-पिता को नहीं समझा सकती, अपने पूर्व संभावित साथी को नहीं समझा सकती। मैंने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है, और मुझे बदले में जो मिला है वह है एक विषमता होना! आह! मुझे बहुत बुरा लग रहा है!” (अपनी जाँघों को पीटते हुए रोना शुरू कर दिया।) “अब अगर मैं कहूँ कि मैं तुझे एक विषमता का उपनाम नहीं दे ने रहा हूँ, बल्कि तुझे अपने लोगों में से एक बनाऊँगा और सुसमाचार का प्रसार करवाने के लिए निर्देश दूँगा, यदि मैं तुझे कार्य करने के लिए हैसियत दे दूँ, तो क्या तू ये कार्य कर पाएगी? इस कार्य के कदम-दर-कदम तूने वास्तव में क्या प्राप्त किया है? और फिर भी तू अपनी कहानी से मुझे प्रसन्न कर रही है—तुझे कोई शर्म नहीं है! तू कहती है कि तूने कीमत चुकाई है लेकिन कुछ नहीं मिला है। क्या ऐसा हो सकता है कि मैंने तुझे यह नहीं बताया है कि किसी व्यक्ति को पाने के लिए मेरी शर्तें क्या हैं? मेरा कार्य किसके लिए है? क्या तू जानती है? यहाँ तू पुराने दुःखों को पुनर्जीवित कर रही है! क्या अब तेरी गिनती इंसानों में होती है? तूने जो कष्ट भोगा है, क्या वह तेरी अपनी इच्छा से नहीं था? और क्या तेरा कष्ट आशीष पाने के उद्देश्य से नहीं था? क्या तूने मेरी अपेक्षाओं को पूरा किया है? तू तो बस आशीष चाहती है। तुझे कोई शर्म नहीं है! तुझसे मेरी अपेक्षाएँ कब अनिवार्य थीं? यदि तू मेरा अनुसरण करने की इच्छुक है तो तुझे हर चीज में मेरी आज्ञा का पालन करना चाहिए। मुझसे सौदेबाज़ी मत कर। आखिरकार, मैंने तुझे पहले ही बता दिया था कि यह रास्ता कष्टों से भरा है। यह विकट संभावनाओं और थोड़ी-बहुत शुभता से भरा हुआ है। क्या तू भूल गयी है? मैंने ऐसा कई बार कहा है। यदि तू कष्ट उठाने के लिए तैयार है, तो ही मेरा अनुसरण कर। यदि तू कष्ट उठाने के लिए तैयार नहीं है, तो रुक जा। मैं तुझे बाध्य नहीं कर रहा हूँ—तू आने-जाने के लिए स्वतंत्र है! लेकिन, मेरा कार्य ऐसे ही किया जाता है, और मैं तेरी व्यक्तिगत विद्रोहशीलता के कारण अपने समस्त कार्य में विलंब नहीं कर सकता। तू भले ही आज्ञापालन करने के लिए तैयार न हो, लेकिन अन्य लोग हैं जो तैयार हैं। तुम सभी हताश लोग हो! तुझे किसी चीज़ का डर नहीं है! तू मुझसे सौदेबाज़ी कर रही है—तू जीवित रहना चाहती है या नहीं? तू अपने लिए योजना बनाती है और अपनी प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करती है। क्या मेरा कार्य तुम सभी लोगों के लिए नहीं है? क्या तू अंधी है? मेरे शरीर धारण करने से पहले, तू मुझे नहीं देख सकती थी, और ये वचन जो तूने बोले हैं माफ करने योग्य होते, लेकिन अब मैं देहधारी हूँ और मैं तुम लोगों के बीच कार्य कर रहा हूँ, मगर तब भी तू नहीं देख पाती? तू क्या चीज़ है जो तू नहीं समझती? तू कहती है कि तूने नुकसान सहा है; इसलिए मैं तुम हताश लोगों को बचाने के लिए देह बन गया हूँ और इतना सारा कार्य किया है, और तब भी तू अब तक शिकायत कर रही है—क्या तू नहीं कहेगी कि मैंने नुकसान सहा है? क्या मैंने जो कुछ भी किया है वह तुम लोगों के लिए नहीं किया गया है? मैं लोगों को यह उपनाम उनके वर्तमान आध्यात्मिक कद के आधार पर देता हूँ। यदि मैं तुझे ‘विषमता’ कहता हूँ, तो तू तुरंत एक विषमता बन जाती है। इसी तरह, यदि मैं तुझे ‘परमेश्वर-जन में से एक’ कहता हूँ, तो तू तुरंत परमेश्वर-जन बन जाती है। मैं तुझे जो भी बुलाता हूँ, तू वही है। क्या यह मेरे होंठों के कुछ वचनों से प्राप्त नहीं होता है? मेरे ये कुछ वचन तुझे इतना क्रोधित कर रहे हैं? तो ठीक है, मुझे क्षमा कर! यदि तू अब आज्ञापालन नहीं करेगी, तो अंत में तुझे शाप दिया जाएगा—क्या तब तू खुश होगी? तू अपनी जीवन-शैली पर ध्यान न देकर केवल अपनी हैसियत और उपनाम पर ध्यान देती है; तेरा जीवन किस प्रकार का है? मैं इनकार नहीं करता कि तूने एक बड़ी कीमत चुकाई है, लेकिन तू अपने आध्यात्मिक कद और अभ्यास पर एक नज़र डाल, और अभी भी तू मुझसे शर्तों पर मोल-तोल कर रही है। क्या यही वह आध्यात्मिक कद है जो तूने अपने संकल्प से प्राप्त किया है? क्या तेरे अंदर कोई निष्ठा है? क्या तुझमें कोई विवेक है? क्या मैंने कुछ गलत कर दिया? क्या तुझसे मेरी अपेक्षाएँ गलत थीं? अच्छा, तो यह क्या है? मैं तुझसे कुछ दिनों के लिए एक विषमता के रूप में कार्य करवाता और फिर भी तू ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है। यह किस तरह का संकल्प है? तुम सभी कमजोर इच्छाशक्ति वाले हो, तुम लोग कायर हो। अब तुझ जैसे लोगों को दंडित करना निस्संदेह अनिवार्य बात है!” मेरे ऐसा कहने के बाद, वह एक शब्द नहीं बोली।

अब इस प्रकार के कार्य का अनुभव करते हुए, तुम लोगों को परमेश्वर के कार्य के चरणों और लोगों को रूपांतरित करने के उसके तरीकों पर कुछ समझ अवश्य प्राप्त हो जानी चाहिए। रूपांतरण में परिणाम प्राप्त करने के लिए इनका होना एकमात्र तरीका है। तुम लोगों की खोज में, तुम्हारी बहुत सी व्यक्तिगत अवधारणाएँ, आशाएँ और भविष्य होते हैं। वर्तमान कार्य तुम लोगों की हैसियत पाने की अभिलाषा और तुम्हारी अनावश्यक अभिलाषाओं से निपटने के लिए है। आशाएँ, हैसियत और अवधारणाएँ सभी शैतानी स्वभाव के विशिष्ट प्रतिनिधित्व हैं। लोगों के हृदय में इन चीज़ों के होने का कारण पूरी तरह से यह है कि शैतान का विष हमेशा लोगों के विचारों को दूषित कर रहा है, और लोग शैतान के इन प्रलोभनों से पीछा छुड़ाने में हमेशा असमर्थ रहे हैं। वे पाप के बीच रह रहे हैं, मगर इसे पाप नहीं मानते, और अभी भी सोचते हैं : “हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें आशीष प्रदान करना चाहिए और हमारे लिए सब कुछ सही ढंग से व्यवस्थित करना चाहिए। हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए हमें दूसरों से श्रेष्ठतर होना चाहिए, और हमारे पास दूसरों की तुलना में बेहतर हैसियत और बेहतर भविष्य होना चाहिए। चूँकि हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, इसलिए उसे हमें असीम आशीष देनी चाहिए। अन्यथा, इसे परमेश्वर पर विश्वास करना नहीं कहा जाएगा।” बहुत सालों से, जिन विचारों पर लोगों ने अपने अस्तित्व के लिए भरोसा रखा था, वे उनके हृदय को इस स्थिति तक दूषित कर रहे हैं कि वे विश्वासघाती, डरपोक और नीच हो गए हैं। उनमें न केवल इच्छा-शक्ति और संकल्प का अभाव है, बल्कि वे लालची, अभिमानी और स्वेच्छाचारी भी बन गए हैं। उनमें खुद से ऊपर उठने के संकल्प का सर्वथा अभाव है, बल्कि, उनमें इन अंधेरे प्रभावों की बाध्यताओं से पीछा छुड़ाने की लेश-मात्र भी हिम्मत नहीं है। लोगों के विचार और जीवन इतने सड़े हुए हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के बारे में उनके दृष्टिकोण अभी भी बेहद वीभत्स हैं। यहाँ तक कि जब लोग परमेश्वर में विश्वास के बारे में अपना दृष्टिकोण बताते हैं तो इसे सुनना मात्र ही असहनीय होता है। सभी लोग कायर, अक्षम, नीच और दुर्बल हैं। उन्हें अंधेरे की शक्तियों के प्रति क्रोध नहीं आता, उनके अंदर प्रकाश और सत्य के लिए प्रेम पैदा नहीं होता; बल्कि, वे उन्हें बाहर निकालने का पूरा प्रयास करते हैं। क्या तुम लोगों के वर्तमान विचार और दृष्टिकोण ठीक ऐसे ही नहीं हैं? “चूँकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, इसलिए मुझ पर आशीषों की वर्षा होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मेरी हैसियत कभी न गिरे, यह अविश्वासियों की तुलना में अधिक बनी रहनी चाहिए।” तुम्हारा यह दृष्टिकोण कोई एक-दो वर्षों से नहीं है; बल्कि बरसों से है। तुम लोगों की लेन-देन संबंधी मानसिकता कुछ ज़्यादा ही विकसित है। यद्यपि आज तुम लोग इस चरण तक पहुँच गए हो, तब भी तुम लोगों ने हैसियत का राग अलापना नहीं छोड़ा, बल्कि लगातार इसके बारे में पूछताछ करते रहते हो, और इस पर रोज नज़र रखते हो, इस गहरे डर के साथ कि कहीकहीं किसी दिन तुम लोगों की हैसियत खो न जाए और तुम लोगों का नाम बर्बाद न हो जाए। लोगों ने सहूलियत की अपनी अभिलाषा का कभी त्याग नहीं किया। इसलिए, जैसा कि मैं आज जिस तरह तुम्हारा न्याय कर रहा हूँ, अंत में तुम लोगों के अंदर किस स्तर की समझ होगी? तुम लोग कहोगे कि यद्यपि तुम लोगों की हैसियत ऊँची नहीं है, फिर भी तुम लोगों ने परमेश्वर के उत्कर्ष का आनंद तो लिया ही है। क्योंकि तुम लोग अधम पैदा हुए थे इसलिए तुम लोगों की कोई हैसियत नहीं है, लेकिन तुम हैसियत प्राप्त कर लेते हो क्योंकि परमेश्वर तुम्हारा उत्कर्ष करता है—यह तुम लोगों को परमेश्वर ने प्रदान किया है। आज तुम लोग व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर का प्रशिक्षण, उसकी ताड़ना और उसका न्याय प्राप्त करने में सक्षम हो। यह भी उसी का उत्कर्ष है। तुम लोग व्यक्तिगत रूप से उसके द्वारा शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त करने में सक्षम हो। यह परमेश्वर का महान प्रेम है। युगों-युगों से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसने उसका शुद्धिकरण और प्रज्ज्वलन प्राप्त किया हो और एक भी व्यक्ति उसके वचनों के द्वारा पूर्ण नहीं हो पाया है। परमेश्वर अब तुम लोगों से आमने-सामने बात कर रहा है, तुम लोगों को शुद्ध कर रहा है, तुम लोगों के भीतर के विद्रोहीपन को उजागर कर रहा है—यह सचमुच उसका उत्कर्ष है। लोगों में क्या योग्यता हैं? चाहे वे दाऊद के पुत्र हों या मोआब के वंशज, कुल मिला कर, लोग ऐसे सृजित प्राणी हैं जिनके पास गर्व करने के लिए कुछ नहीं है। चूँकि तुम लोग परमेश्वर के प्राणी हो, इसलिए तुम लोगों को एक प्राणी का कर्तव्य निभाना चाहिए। तुम लोगों से अन्य कोई अपेक्षाएँ नहीं हैं। तुम लोगों को ऐसे प्रार्थना करनी चाहिए : “हे परमेश्वर, चाहे मेरी हैसियत हो या न हो, अब मैं स्वयं को समझती हूँ। यदि मेरी हैसियत ऊँची है तो यह तेरे उत्कर्ष के कारण है, और यदि यह निम्न है तो यह तेरे आदेश के कारण है। सब-कुछ तेरे हाथों में है। मेरे पास न तो कोई विकल्प हैं न ही कोई शिकायत है। तूने निश्चित किया कि मुझे इस देश में और इन लोगों के बीच पैदा होना है, और मुझे पूरी तरह से तेरे प्रभुत्व के अधीन आज्ञाकारी होना चाहिए क्योंकि सब-कुछ उसी के भीतर है जो तूने निश्चित किया है। मैं हैसियत पर ध्यान नहीं देती हूँ; आखिरकार, मैं मात्र एक प्राणी ही तो हूँ। यदि तू मुझे अथाह गड्ढे में, आग और गंधक की झील में डालता है, तो मैं एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। यदि तू मेरा उपयोग करता है, तो मैं एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण बनाता है, मैं तब भी एक प्राणी हूँ। यदि तू मुझे पूर्ण नहीं बनाता, तब भी मैं तुझ से प्यार करती हूँ क्योंकि मैं सृष्टि के एक प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ। मैं सृष्टि के परमेश्वर द्वारा रचित एक सूक्ष्म प्राणी से अधिक कुछ नहीं हूँ, सृजित मनुष्यों में से सिर्फ एक हूँ। तूने ही मुझे बनाया है, और अब तूने एक बार फिर मुझे अपने हाथों में अपनी दया पर रखा है। मैं तेरा उपकरण और तेरी विषमता होने के लिए तैयार हूँ क्योंकि सब-कुछ वही है जो तूने निश्चित किया है। कोई इसे बदल नहीं सकता। सभी चीजें और सभी घटनाएँ तेरे हाथों में हैं।” जब वह समय आएगा, तब तू हैसियत पर ध्यान नहीं देगी, तब तू इससे छुटकारा पा लेगी। तभी तू आत्मविश्वास से, निर्भीकता से खोज करने में सक्षम होगी, और तभी तेरा हृदय किसी भी बंधन से मुक्त हो सकता है। एक बार लोग जब इन चीज़ों से छूट जाते हैं, तो उनके पास और कोई चिंताएँ नहीं होतीं। अभी तुम लोगों में से अधिकांश की चिंताएँ क्या हैं? तुम लोग हमेशा हैसियत के हाथों विवश हो जाते हो और हमेशा अपनी संभावनाओं की चिंता करते रहते हो। तुम लोग हमेशा परमेश्वर के कथनों की पुस्तक के पन्ने पलटते रहते हो, मानवजाति की मंज़िल से संबंधित कहावतों को पढ़ना चाहते हो और जानना चाहते हो कि तुम्हारी संभावनाएँ और मंज़िल क्या होगी। तुम सोचते हो, “क्या वाकई मेरी कोई संभावना है? क्या परमेश्वर ने उन्हें वापस ले लिया है? परमेश्वर बस यह कहता है कि मैं एक विषमता हूँ; तो फिर, मेरी संभावनाएँ क्या हैं?” अपनी संभावनाओं और नियति को दर-किनार करना तुम्हारे लिए मुश्किल है। अब तुम लोग अनुयायी हो, और तुम लोगों को कार्य के इस स्तर की कुछ समझ प्राप्त हो गयी है। लेकिन, तुम लोगों ने अभी तक हैसियत के लिए अपनी अभिलाषा का त्याग नहीं किया है। जब तुम लोगों की हैसियत ऊँची होती है तो तुम लोग अच्छी तरह से खोज करते हो, किन्तु जब तुम्हारी हैसियत निम्न होती है तो तुम लोग खोज नहीं करते। तुम्हारे मन में हमेशा हैसियत के आशीष होते हैं। ऐसा क्यों होता है कि अधिकांश लोग अपने आप को निराशा से निकाल नहीं पाते? क्या उत्तर हमेशा निराशाजनक संभावनाएँ नहीं होता? जैसे ही परमेश्वर के कथन उच्चारित होते हैं, तुम लोग यह देखने की हड़बड़ी करते हो कि तुम्हारी हैसियत और पहचान वास्तव में क्या है। तुम लोग हैसियत और पहचान को प्राथमिकता देते हो, और दर्शन को दूसरे स्थान पर रखते हो। तीसरे स्थान पर वह चीज़ है “जिसमें तुम लोगों को प्रवेश करना चाहिए”, और चौथे स्थान पर परमेश्वर की वर्तमान इच्छा आती है। तुम लोग सबसे पहले यह देखते हो कि तुम लोगों को परमेश्वर द्वारा दिए गए उपनाम “विषमता” को बदला गया है या नहीं। तुम लोग बार-बार पढ़ते हो, और जब देखते हो कि “विषमता” उपनाम हटा दिया गया है, तो तुम लोग खुश होकर परमेश्वर का धन्यवाद करते हो और उसके महान सामर्थ्य की स्तुति करते हो। लेकिन यदि तुम देखते हो कि तुम लोग अभी भी विषमता ही हो, तो तुम लोग तुरंत परेशान हो जाते हो और तुम लोगों के हृदय की प्रेरणा तुरंत गायब हो जाती है। जितना अधिक तू इस तरह से तलाश करेगी उतना ही कम तू पाएगी। हैसियत के लिए किसी व्यक्ति की अभिलाषा जितनी अधिक होगी, उतनी ही गंभीरता से उसके साथ निपटा जाएगा और उसे उतने ही बड़े शुद्धिकरण से गुजरना होगा। इस तरह के लोग निकम्मे होते हैं! उनके साथ अच्छी तरह से निपटने और उनका न्याय करने की ज़रूरत है ताकि वे इन चीज़ों को पूरी तरह से छोड़ दें। यदि तुम लोग अंत तक इसी तरह से अनुसरण करोगे, तो तुम लोग कुछ भी नहीं पाओगे। जो लोग जीवन का अनुसरण नहीं करते वे रूपान्तरित नहीं किए जा सकते; जिनमें सत्य की प्यास नहीं है वे सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। तू व्यक्तिगत रूपान्तरण का अनुसरण करने और प्रवेश करने पर ध्यान नहीं देता; बल्कि तू हमेशा उन अनावश्यक अभिलाषाओं और उन चीज़ों पर ध्यान देती है जो परमेश्वर के लिए तेरे प्रेम को बाधित करती हैं और तुझे उसके करीब आने से रोकती हैं। क्या ये चीजें तुझे रूपान्तरित कर सकती हैं? क्या ये तुझे राज्य में ला सकती हैं? यदि तेरी खोज का उद्देश्य सत्य की तलाश करना नहीं है, तो तू इस अवसर का लाभ उठाकरइन चीज़ों को पाने के लिए फिर से दुनिया में लौट सकती है। अपने समय को इस तरह बर्बाद करना ठीक नहीं है—क्यों अपने आप को यातना देती है? क्या यह सच नहीं है कि तू सुंदर दुनिया में सभी प्रकार की चीजों का आनंद उठा सकती है? धन, सुंदर स्त्री-पुरुष, हैसियत, अभिमान, परिवार, बच्चे, इत्यादि—क्या तू दुनिया की इन बेहतरीन चीज़ों का आनंद नहीं उठा सकती? यहाँ एक ऐसे स्थान की खोज में इधर-उधर भटकना जहाँ तू खुश रह सके, उससे क्या फायदा? जब मनुष्य के पुत्र के पास ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ वह आराम करने के लिए अपना सिर रख सके, तो तुझे आराम के लिए जगह कैसे मिल सकती है? वह तेरे लिए आराम की एक सुन्दर जगह कैसे बना सकता है? क्या यह संभव है? मेरे न्याय के अतिरिक्त, आज तू केवल सत्य पर शिक्षाएँ प्राप्त कर सकती है। तू मुझ से आराम प्राप्त नहीं कर सकती और तू उस सुखद आशियाने को प्राप्त नहीं कर सकती जिसके बारे में तू दिन-रात सोचती रहती है। मैं तुझे दुनिया की दौलत प्रदान नहीं करूँगा। यदि तू सच्चे मन से अनुसरण करे, तो मैं तुझे समग्र जीवन का मार्ग देने, तुझे पानी में वापस आयी किसी मछली की तरह स्वीकार करने को तैयार हूँ। यदि तू सच्चे मन से अनुसरण नहीं करेगी, तो मैं यह सब वापस ले लूँगा। मैं अपने मुँह के वचनों को उन्हें देने को तैयार नहीं हूँ जो आराम के लालची हैं, जो बिल्कुल सूअरों और कुत्तों जैसे हैं!

फुटनोट :

क. मूल पाठ में “पत्नियाँ” लिखा है।

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