मार्ग ... (8)

जब से परमेश्वर मानवजाति से बातचीत करने और लोगों के साथ रहने के लिए आया है, तब से केवल एक या दो दिनों ही नहीं हुए हैं। शायद इस समय के दौरान, लोग परमेश्वर का अच्छा ज्ञान प्राप्त करते हों, और शायद वे परमेश्वर की सेवा करने के बारे में कुछ अंतर्ज्ञान से अधिक प्राप्त करते हों, और वे परमेश्वर पर अपने विश्वास में पक्के हो चुके हों। स्थिति चाहे जो भी हो, लोग कमोबेश परमेश्वर के स्वभाव को समझते हैं, और वे अपने स्वभाव को असंख्य तरीकों से व्यक्त भी करते हैं। जिस तरीके से मैं देखता हूँ, परमेश्वर द्वारा उदाहरण के रूप में उपयोग करने के लिए लोगों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ पर्याप्त हैं, और संदर्भ के रूप में उपयोग करने के लिए उनकी मानसिक क्रियाएँ पर्याप्त हैं। यह मानवजाति और परमेश्वर के बीच सहयोग का एक पहलू हो सकता है, जिससे मनुष्य बेख़बर है, जिससे परमेश्वर द्वारा निर्देशित यह प्रदर्शन बेहद स्पष्ट और जीवंत बन जाता है। इस नाटक के सामान्य निर्देशक के रूप में मैं ये बातें अपने भाई-बहनों से कह रहा हूँ—इसका अभिनय करने के बाद हम में से प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों और अपनी भावनाओं के साथ बात कर सकता है, और इस पर चर्चा कर सकता है कि इस नाटक में हम में से प्रत्येक अपने जीवन को कैसे अनुभव करता है। अपने दिल को खोलकर अपनी प्रदर्शन कला के बारे में बात करने के लिए, और यह देखने के लिए कि परमेश्वर कैसे प्रत्येक व्यक्ति का मार्गदर्शन करता है, हमें भी एक बिल्कुल नए प्रकार की संगोष्ठी मिल सकती है, ताकि अपने अगले प्रस्तुतिकरण में हम अपनी कला के एक उच्च स्तर को अभिव्यक्त कर सकें और प्रत्येक व्यक्ति अपनी भूमिका को अधिकतम संभव हद तक निभा सके, और परमेश्वर को निराश न करे। मुझे उम्मीद है कि मेरे भाई-बहन इसे गंभीरता से लेंगे। किसी को भी इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि किसी भी भूमिका को एक या दो दिनों में अच्छी तरह से नहीं निभाया जा सकता; इसके लिए आवश्यक है कि हम जीवन का अनुभव करें और लंबे समय तक अपने वास्तविक जीवन की गहराई तक जाएँ, और विभिन्न प्रकार के जीवन का व्यावहारिक अनुभव करें। केवल तब ही हम मंच पर जा सकते हैं। मैं अपने भाई-बहनों के लिए आशा से भरा हुआ हूँ। मुझे विश्वास है कि तुम लोग निराश या हतोत्साहित नहीं होगे, परमेश्वर चाहे कुछ भी क्यों न करे, तुम लोग आग के एक मटके की तरह होगे : तुम लोगों की गर्मी कभी कम नहीं होगी और तुम लोग अंत तक डटे रहोगे, जब तक कि परमेश्वर का कार्य पूरी तरह प्रकट न हो जाए, जब तक कि उस नाटक का जिसका निर्देशन परमेश्वर करता है, अंतिम निष्कर्ष न निकल आए। मैं तुम लोगों से कोई दूसरी अपेक्षा नहीं करता हूँ। मैं केवल यही आशा करता हूँ कि तुम लोग दृढ़ रहोगे, कि तुम लोग परिणामों के लिए अधीन नहीं होगे, कि तुम मेरे साथ सहयोग करो ताकि जो काम मुझे करना चाहिए वह अच्छी तरह से किया जाए, और कोई भी इसमें रुकावटें या गड़बड़ियाँ पैदा न करे। जब काम का यह भाग पूरा हो जाएगा, तो परमेश्वर तुम लोगों के समक्ष सब कुछ प्रकट कर देगा। मेरा कार्य पूरा हो जाने के बाद, मैं परमेश्वर को ब्यौरा देने के लिए उसके समक्ष तुम लोगों की साख प्रस्तुत करूँगा। क्या यह बेहतर नहीं है? अपने लक्ष्यों को हासिल करने में एक दूसरे की सहायता करना—क्या यह हर एक के लिए परिपूर्ण समाधान नहीं है? अब कठिन समय है ऐसा समय जिसके लिए तुम लोगों को क़ीमत चुकाने की आवश्यकता है। क्योंकि अब मैं निर्देशक हूँ, इसलिए मुझे आशा है कि तुम लोगों में से कोई भी खीजा हुआ नहीं है। मैं जिस कार्य को कर रहा हूँ वह ऐसा ही है। शायद, एक दिन, मैं एक अधिक उपयुक्त “कार्य इकाई” में चला जाऊँगा और तुम लोगों के लिए चीज़ों को और मुश्किल नहीं बनाऊँगा। मैं तुम लोगों को वह दिखाऊँगा जिसे तुम देखना चाहते हो और वह प्रदान करूँगा जिसे तुम लोग सुनना चाहते हो। लेकिन अभी नहीं। आज के लिए यही कार्य है, और मैं तुम लोगों को खुली छूट नहीं दे सकता और तुम लोगों को मनमानी करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ। यह मेरे कार्य को कठिन बना देगा; ईमानदारी से कहूँ, तो इससे कोई फल प्राप्त नहीं होगा और यह तुम लोगों के लिए लाभकारी नहीं होगा। इसलिए आज, तुम लोगों को “अन्याय” सहना चाहिए। जब वह दिन आएगा, और मेरे कार्य का यह चरण पूरा हो जाएगा, तो मैं मुक्त हो जाऊँगा, मैं ऐसे भारी बोझ को वहन नहीं करूँगा, और तुम लोग जो कुछ भी मुझसे माँगोगे मैं उसे स्वीकार करूँगा; जब तक यह तुम लोगों के जीवन के लिए लाभकारी रहेगा, तब तक तुम जो कुछ माँगोगे मैं उसे पूरा करूँगा। आज, मैंने अब एक भारी ज़िम्मेदारी उठा ली है। मैं परमपिता परमेश्वर के आदेशों के विरूद्ध नहीं जा सकता, और मैं अपने कार्य की योजनाओं में बाधा नहीं डाल सकता। मैं अपने कारोबारी मामलों के माध्यम से अपने व्यक्तिगत मामलों को प्रबंधित नहीं कर सकता—और मुझे आशा है कि तुम सभी लोग समझ सकते हो और मुझे क्षमा कर सकते हो, क्योंकि मैं जो कुछ भी करता हूँ वह परमपिता परमेश्वर की इच्छाओं के अनुसार होता है; मैं वही करता हूँ जो वह मुझसे करवाता है, चाहे वह जो कुछ भी क्यों न चाहता हो, और मैं उसके क्रोध या कोप को नहीं उकसाऊँगा। मैं केवल वही करता हूँ जो मुझे करना चाहिए। इसलिए, परमपिता परमेश्वर की ओर से, मैं तुम लोगों को सलाह देता हूँ कि कुछ दिन और सहन कर लो। किसी को भी चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। जब मैं वह पूरा कर लूँगा जो मुझे करना चाहिए, उसके बाद तुम लोग जो चाहे कर सकते हो और जो भी चाहे देख सकते हो—लेकिन मुझे उस कार्य को पूरा करना होगा जिसे मुझे पूरा करने की ज़रूरत है।

कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है। यही वह कार्य है जिसकी ज़िम्मेदारी मैंने उठाई है, इसलिए मुझे आशा है कि मेरे भाई-बहन मेरी कठिनाइयों को समझेंगे, और मुझसे किसी और चीज़ की याचना नहीं करेंगे। यह परमपिता परमेश्वर की मुझसे अपेक्षा है और मैं इस वास्तविकता से भाग नहीं सकता हूँ; मुझे वह काम करना ही होगा जो मुझे करना चाहिए। मुझे बस यही आशा है कि तुम लोग जबरदस्ती की बहस और विकृत तर्क नहीं करोगे, तुम अधिक अंतर्दृष्टि वाले होगे, और मुद्दों को बहुत सरल के रूप में नहीं देखोगे। तुम लोगों की सोच बहुत बचकाना है, बहुत अनुभवहीन है। परमेश्वर का कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम लोग कल्पना करते हो, वह मनमर्ज़ी से कुछ भी यूँ ही नहीं करता; अगर वह ऐसा करता, तो उसकी योजना तहस-नहस हो जाती। क्या तुम लोग ऐसा नहीं कहते हो? मैं परमेश्वर का कार्य कर रहा हूँ। मैं सिर्फ़ लोगों के लिए असंगत काम नहीं कर रहा हूँ, जो चाहा वह कर दिया और व्यक्तिगत तौर पर निर्णय ले लिया कि मैं कुछ करूँ या न करूँ। आज चीज़ें इतनी आसान नहीं है। मुझे निर्देशक के रूप में कार्य करने के लिए परमपिता द्वारा भेजा गया है—क्या तुम लोगों को लगता है कि मैंने स्वयं इसकी व्यवस्था की और इसे चुना है? लोगों की सोच का झुकाव प्रायः परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने की ओर होता है, यही वजह है कि, मेरे कुछ अवधि तक कार्य करने के बाद, लोग मुझसे कई अनुरोध करते हैं जिन्हें मैं पूरा नहीं कर सकता, और लोग मेरे बारे में अपना मन बदल लेते हैं। तुम सभी को अपने इन मतों के बारे में स्पष्ट हो जाना चाहिए; मैं उनमें से प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से उठाने नहीं जा रहा हूँ, मैं केवल उस कार्य को ही समझा सकता हूँ जो मैं करता हूँ। इससे मेरी भावनाओं को बिल्कुल भी चोट नहीं पहुँचती है। एक बार तुम लोग इस बात को समझ लो, तो तुम लोग इसे जैसे चाहे देख सकते हो। मैं कोई भी आपत्ति नहीं करूँगा, क्योंकि परमेश्वर इसी तरह कार्य करता है; मैं यह सब समझाने के लिए बाध्य नहीं हूँ। मैं सिर्फ़ वचनों के कार्य को करने के लिए आया हूँ, वचनों के निर्देशन के माध्यम से कार्य करने और इस नाटक को खेलने देने के लिए आया हूँ। मुझे अन्य कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है, ना ही मैं और कुछ कर सकता हूँ। मुझे जो कुछ भी कहना था वह सब कुछ मैं समझा चुका हूँ, तुम लोग क्या सोचते हो इसकी मुझे परवाह नहीं है, और इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। लेकिन मैं तब भी तुम लोगों को याद दिलाना चाहूँगा कि परमेश्वर का कार्य उतना सरल नहीं है जितना तुम लोग कल्पना करते हो। लोगों की अवधारणाओं के साथ जितना कम यह मेल खाता है इसके मायने उतने ही गहरे होते हैं; और लोगों की अवधारणाओं के साथ जितना अधिक यह मेल खाता है, जितना ही कम मूल्यवान होता है, इसके वास्तविक मायने उतने ही कम होते हैं। इन वचनों पर ध्यान से विचार करो—मैं इसके बारे में केवल इतना ही कहूँगा। बाकी का विश्लेषण तुम लोग स्वयं कर सकते हो। मैं इसे नहीं समझाऊँगा।

लोग सोचते हैं कि परमेश्वर चीज़ों को एक निश्चित तरीके से करता है, लेकिन पिछले साल के दौरान, परमेश्वर के कार्य के बारे में जो हमने देखा है और जो अनुभव किया है क्या वह वास्तव में मानवीय धारणों के अनुरूप रहा है? दुनिया के सृजन से लेकर अब तक, एक भी व्यक्ति परमेश्वर के कार्यों के चरणों या उसके नियमों को समझ नहीं पाया है। यदि वे समझ सकते, तो ऐसा क्यों है कि धार्मिक नेता यह नहीं समझते हैं कि परमेश्वर आज इसी तरह से कार्य करता है? ऐसा क्यों है कि बहुत थोड़े से लोग आज की वास्तविकता को समझते हैं? इससे हम देख सकते हैं कि कोई भी परमेश्वर के कार्य को नहीं समझता है। लोगों को केवल उसके आत्मा के मार्गदर्शन के अनुसार ही कार्य करना चाहिए; उन्हें उसके कार्य पर नियमों को सख्ती से लागू नहीं करना चाहिए। यदि तुम यीशु की छवि और कार्य को लो और परमेश्वर के वर्तमान कार्य के साथ इसकी तुलना करो, तो यह ठीक ऐसा ही होगा जैसे कि यहूदी लोग यीशु की तुलना यहोवा से करने की कोशिश कर रहे हों। क्या ऐसा करके तुम नष्ट नहीं होते हो? यहाँ तक कि यीशु को भी नहीं पता था कि अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य क्या होगा; वह केवल इतना ही जानता था कि उसे सलीब पर चढ़ने के कार्य को पूरा करना है। तो तो दूसरों को कैसे पता चल सकता था? उन्हें कैसे पता हो सकता था कि भविष्य में परमेश्वर क्या करने जा रहा है? परमेश्वर मनुष्यों के सामने अपनी योजना का खुलासा कैसे कर सकता था, जिन पर शैतान ने कब्ज़ा किया हुआ है? क्या यह मूर्खतापूर्ण नहीं है? परमेश्वर अपेक्षा करता है कि तुम उसकी इच्छा को जानो और समझो। वह यह अपेक्षा नहीं करता है कि तुम उसके भविष्य के कार्य पर विचार करो। हमें बस परमेश्वर में आस्था रखने की, उसके मार्गदर्शन के अनुसार कार्य करने की, वास्तविक कठिनाइयों को सँभालने में व्यवहारिक होने की, और परमेश्वर के लिए चीज़ों को मुश्किल नहीं बनाने या उसके लिए परेशानी पैदा नहीं करने के बारे में चिंतित होने की ज़रूरत है। हमें वही करना चाहिए जो हमें करना है; अगर हम परमेश्वर के वर्तमान कार्य के भीतर उपस्थित रह सकते हैं, तो इतना पर्याप्त है! यही वह राह है जिस पर मैं तुम लोगों का मार्गदर्शन करता हूँ। यदि हम केवल आगे बढ़ना जारी रखने पर एकाग्र रहते हैं, तो परमेश्वर हम में से किसी के साथ भी बुरा बर्ताव नहीं करेगा। अपने पिछले वर्ष के असाधारण अनुभवों के दौरान, तुमने बहुत-सी चीज़ें प्राप्त की हैं; मुझे यकीन है कि तुम लोगों को यह इतनी कठिन नहीं लगेगी। मैं तुम लोगों को अपने कार्य और ध्येय के मार्ग पर ले जा रहा हूँ, और इसे परमेश्वर द्वारा बहुत पहले ही इस तरह से नियत कर दिया गया था कि हमारा आज के दिन तक इतनी दूर तक आना पूर्वनियत था। हम ऐसा करने में सक्षम रहे हैं यह हम पर महान आशीष है, यद्यपि यह एक निर्बाध राह नहीं रही है, किन्तु हमारी मित्रता शाश्वत है, और यह युग-युगांतर तक चलेगी। चाहे जयकार और हँसी रही हो या उदासी और आँसू रहे हों, इस सब को एक सुंदर याद बनने दो! तुम लोगों को शायद पता होगा कि मेरा कार्य समाप्त होने वाला है। मेरे पास कई कार्य परियोजनाएँ हैं, और मैं अक्सर तुम लोगों का साथ नहीं दे सकता। मुझे आशा है कि तुम लोग मुझे समझ सकते हो—क्योंकि हमारी मूल दोस्ती बदली नहीं है। हो सकता है कि एक दिन मैं तुम लोगों के सामने एक बार फिर से प्रकट हो जाऊँ, और मुझे आशा है कि तुम लोग मेरे लिए चीज़ों को मुश्किल नहीं बनाओगे। आखिरकार, मैं तुम लोगों से भिन्न हूँ। मैं अपने कार्य के लिए चारों तरफ़ यात्रा करता हूँ, और मैं अपना जीवन होटलों में समय व्यर्थ करके नहीं बिताता हूँ। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम लोग कैसे हो, मैं सिर्फ़ वही करता हूँ जो मुझे करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि अतीत में हमने जिन चीज़ों को साझा किया था वे हमारी दोस्ती का पुष्प बनेंगी।

ऐसा कहा जा सकता है कि यह राह मेरे द्वारा खोली गई थी, और चाहे यह कड़वी रही हो या मीठी, मैंने राह दिखाई है। अगर आज हम यहाँ तक पहुँच पाए हैं, तो यह केवल परमेश्वर के अनुग्रह के कारण है। कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो मुझे धन्यवाद दें, और कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो मेरे बारे में शिकायत करें—लेकिन इनमें से कुछ भी मायने नहीं रखता है। मैं बस यह देखना चाहता हूँ कि लोगों के इस समूह में जो हासिल किया जाना चाहिए उसे हासिल कर लिया गया है। इसी का उत्सव मनाया जाना चाहिए। इसलिए, जो मेरे खिलाफ़ शिकायत करते हैं, उनसे मुझे कोई द्वेष नहीं है; मैं केवल इतना ही चाहता हूँ कि जितनी जल्दी हो सके मैं अपना कार्य पूरा करूँ ताकि परमेश्वर का दिल यथाशीघ्र विश्राम कर सके। उस समय मैं किसी भारी बोझ का वहन नहीं करूँगा, और परमेश्वर के दिल में कोई भी चिंता नहीं होगी। क्या तुम लोग अपना सहयोग बेहतर बनाने को तैयार हो? क्या परमेश्वर के कार्य को अच्छी तरह से करने का लक्ष्य रखना बेहतर नहीं है? इस अवधि में, यह कहना उचित है कि हमने असंख्य कठिनाइयों को सहा है और हर तरह के सुखों और दुःखों का अनुभव किया है। कुल मिलाकर, तुम लोगों में से प्रत्येक के प्रदर्शन ने मूलतः दर्जा बना लिया है। शायद, भविष्य में तुम लोगों से बेहतर कार्य की अपेक्षा की जाएगी, परन्तु मेरे ही विचारों पर न ठहर जाना; बस वही करना जो तुम लोगों को करना चाहिए। मुझे जो करना है मैं लगभग वहाँ पहुँच चुका हूँ; मुझे आशा है कि तुम लोग हमेशा वफ़ादार रहोगे, और तुम लोग मेरे कार्य को याद करके उदासीन नहीं होगे। तुम लोगों को पता होना चाहिए कि मैं कार्य का केवल एक चरण पूरा करने के लिए आया हूँ, और निश्चित रूप से परमेश्वर का समस्त कार्य करने के लिए नहीं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट हो जाना चाहिए, और इसके बारे में कोई अन्य मत नहीं रखना चाहिए। परमेश्वर के कार्य को पूरा करने के लिए और भी साधन आवश्यक हैं; तुम लोग हमेशा मुझ पर निर्भर नहीं रह सकते। हो सकता है कि तुम लोगों ने बहुत पहले ही यह एहसास कर लिया हो कि मैं कार्य के केवल एक हिस्से को पूरा करने के लिए आया हूँ; वह जो यहोवा या यीशु का प्रतिनिधित्व नहीं करता; परमेश्वर का कार्य कई चरणों में विभाजित है, इसलिए तुम लोगों को ज़्यादा कठोर नहीं होना चाहिए। जब मैं कार्य कर रहा हूँ तो तुम लोगों को मेरी बात सुननी चाहिए। प्रत्येक युग में, परमेश्वर का कार्य बदलता रहता है; यह एक समान नहीं रहता, और हर बार यह वही पुराना गीत नहीं होता। और प्रत्येक चरण में उसका कार्य युग के उपयुक्त होता है, और इसलिए बदल जाता है क्योंकि युग वही नहीं रहता है। और इसलिए, चूँकि तुम इस युग में पैदा हुए हो, तुम्हें परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना चाहिए, और इन वचनों को पढ़ना चाहिए। एक दिन ऐसा आ सकता है जब मेरा कार्य बदल सकता है, ऐसे मामले में तुम लोगों को उसके अनुसार आगे जारी रखना चाहिए जो तुम लोगों को करना चाहिए; परमेश्वर का कार्य ग़लत नहीं हो सकता है। इस बात पर कोई ध्यान मत दो कि बाहरी दुनिया कैसे बदलती है; परमेश्वर ग़लत नहीं हो सकता और उसका कार्य ग़लत नहीं हो सकता। बात बस इतनी ही है कि कभी-कभी परमेश्वर का पुराना कार्य गायब हो जाता है और उसका नया कार्य शुरू हो जाता है। हालाँकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि क्योंकि नया कार्य आ गया है, इसलिए पुराना कार्य ग़लत है। यह एक भ्रम है! परमेश्वर के कार्य को सही या ग़लत नहीं कहा जा सकता, इसे बस पहले का या बाद का ही कहा जा सकता है। परमेश्वर में लोगों के विश्वास के लिए यही मार्गदर्शन है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

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