83. बुरे व्यक्ति का भेद पहचानने में सीखे गए सबक
जून 2022 मे अगुआ ने मुझे पाठ-आधारित कार्य के पर्यवेक्षण का काम सौंपा। मुझे एक टीम की याद आई जिसके कार्य के नतीजे लगातार खराब रहे थे। शाओ ली नाम की पाठ-आधारित कार्यकर्ता द्वारा लिखी गई दशा के बारे में मैंने पाया कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे पर बहुत अधिक केंद्रित थी। हर बार जब वह कोई सवाल पूछती तो टीम की बहनों को तुरंत जवाब देना पड़ता था, अन्यथा वह बुरा रवैया दिखाती और बिना सोचे-समझे गुस्से में फट पड़ती थी। मैंने सोचा, “क्या सामंजस्यपूर्ण सहयोग की कमी उनके काम पर असर डाल रही है? मुझे जल्दी ही इस समस्या की जड़ को खोजना चाहिए।”
सभा के दौरान मैंने सभी से उनकी दशाओं के बारे में पूछा। टीम अगुआ ली मेई ने अपने विचार साझा किए कि कैसे वह शाओ ली के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग नहीं कर पा रही है और यहाँ तक कि काम भी छोड़ना चाहती है। शाओ ली ने तब कहा कि वह बचपन से ही गुस्सैल और बदमिजाज थी और जब भी वह कुछ अप्रिय सुनती थी तो उग्र हो जाया करती थी। उसने यह भी बताया कि एक बार लुओ लान ने अपने कर्तव्य करने में जिम्मेदारी के अभाव की बात की थी और कहा था कि उसे हमेशा ही कोई जल्दी नहीं रहती, वह सुबह की भक्ति ग्यारह बजे तक खींच देती और उसके बाद ही काम शुरू करती थी और उसने यह बात मानने से बिल्कुल इनकार कर दिया, सोचा, “क्या ली मेई भी वैसी ही नहीं है? लुओ लान उसके बारे में कुछ क्यों नहीं कहती?” उसे लगा कि लुओ लान लोगों के साथ अनुचित व्यवहार करती है और उसे निशाना बना रही है, इसी कारण वह उग्र होकर बोली। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के जरिए उसे अपनी कमजोर मानवता का एहसास हुआ और उसे महसूस हुआ कि दूसरों का उसे अलग-थलग करना और बहिष्कृत करना और उसे बुरा व्यक्ति कहना सही था। भले ही दूसरों ने उसके साथ कैसा भी व्यवहार किया हो, उसने कहा कि उसे परमेश्वर से स्वीकार करना चाहिए और खुद को जानना चाहिए और अपनी बहनों के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए। ली मेई भावुक हो गई और बोली, “शियाओ ली ने जो कुछ कहा वह सच नहीं है। हमने उसे अलग-थलग या बहिष्कृत नहीं किया, न ही हमने उसे बुरा व्यक्ति कहा।” शियाओ ली रोते हुए बोलती चली गई, उसने कहा कि जब उसने कलीसिया से एक मसीह-विरोधी को निकाले जाने के बारे में सुना तो उस पर गहरा असर पड़ा। इस मसीह-विरोधी ने कलह फैला रखी थी और लोगों पर अत्याचार किया था और उसे लगा कि उसकी प्रकृति इस मसीह-विरोधी से कहीं अधिक बुरी है और उसे महसूस हुआ कि अगर वह इसी तरह चलती रही तो यह बहुत खतरनाक होगा, इसलिए वह पश्चात्ताप करना चाहती थी। इन सब बातों ने मुझे काफी उलझन में डाल दिया और मैंने सोचा, “क्या शियाओ ली वास्तव में खुद को जानती भी है? अपनी स्वयं की भ्रष्टता के बारे में सामान्य खुली संगति क्या होती है और आत्म-ज्ञान पर संगति की आड़ में दूसरों को नीचा दिखाना और उन पर हमला करना क्या होता है? शियाओ ली की संगति से ऐसा क्यों प्रतीत होता है कि ली मेई और लुओ लान साथ मिलकर उसे बाहर रख रहे थे?” उस समय मैंने इस बारे में ज्यादा विचार नहीं किया, यह सोचा, “शियाओ ली युवा है, थोड़ी हठी है और उसका भ्रष्ट स्वभाव काफी गंभीर है, लेकिन उसे रोते हुए और खुद को जानते हुए देखने से लगता है कि वह ऐसी इंसान है जो सत्य स्वीकारती है। बदलाव के लिए एक प्रक्रिया चाहिए, इसलिए उसे और छूट दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त सामंजस्यपूर्ण सहयोग की कमी सिर्फ एक इंसान की गलती नहीं होती, आखिरकार एक हाथ से ताली नहीं बजती और ऐसा शायद इसलिए होता है क्योंकि दोनों पक्ष खुद को नहीं जानते और अपने भ्रष्ट स्वभावों के अनुसार जीते हैं।” इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने सामंजस्यपूर्ण सहयोग पर परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े और उन्हें याद दिलाया कि लोगों या चीजों पर नजर न गड़ाएँ, बल्कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार आत्म-चिंतन करें और खुद को जानें और एक-दूसरे से सीखें। मैंने शियाओ ली के साथ उग्रता से काम करने के खतरनाक परिणामों पर संगति करने के लिए अपने अनुभवों का भी इस्तेमाल किया। मेरी संगति के बाद शियाओ ली ने कहा, “मेरे और बहनों के बीच कोई गहरी दुश्मनी नहीं है। मैं बहनों के साथ सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करने और अपने कर्तव्य में दिल लगाने के लिए तैयार हूँ। मैं वास्तव में गुस्सैल हूँ और मेरा स्वभाव गंभीर रूप से घमंडी है, लेकिन मैं परमेश्वर के आगे प्रार्थना करने और समाधान खोजने के लिए तैयार हूँ।” ली मेई कुछ हद तक सब्र करती हुई लगी, उसने कहा, “मुझे वास्तव में नहीं पता कि इस परिवेश का अनुभव कैसे करूँ और मैं नहीं जानती कि कैसे आत्म-चिंतन कर खुद को जानूँ।” उसने यह भी कहा कि सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग न करने की समस्या हल करने के लिए हमें पहले पूरी कहानी समझ लेनी चाहिए। यह सुनकर मुझे लगा कि समस्या वास्तव में हल नहीं हुई है। मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की, मन ही मन में कहा, “परमेश्वर इस मामले में तुम्हारा इरादा क्या है? इस समस्या का मूल कारण क्या है? सत्य सिद्धांतों के अनुरूप इसे कैसे हल किया जाना चाहिए?”
उस शाम मैं ली मेई और लुओ लान के साथ एक कमरे में आराम कर रही थी। लेकिन मैं सो नहीं पाई और सभा के दौरान ली मेई ने मुझे जो याद दिलाया था, उसके बारे में सोचती रही : सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग न करने की समस्या हल करने के लिए हमें मामले के सत्य को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए और पूरी कहानी की तह तक जाना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि सभा में अपनी संगति के दौरान मैंने बहनों से केवल खुद को जानने और लोगों या चीजों पर नजर न गड़ाने के लिए कहा था, लेकिन मेरे सामने पूरी कहानी की स्पष्ट तस्वीर नहीं थी, इसलिए समस्या हल नहीं हुई थी। मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “पृथ्वी पर जो कुछ भी होता है, वह सब जो तुम महसूस कर सकते हो, वह सब जो तुम देख सकते हो, वह सब जो तुम सुन सकते हो—सब परमेश्वर की अनुमति से होता है। इस मामले को परमेश्वर से स्वीकारने के बाद इसे परमेश्वर के वचनों की कसौटी पर कसो और पता करो कि जिसने भी यह काम किया है वह किस तरह का व्यक्ति है और इस मामले का सार क्या है, फिर चाहे उसकी कथनी-करनी ने तुम्हें ठेस पहुँचाई हो या तुम्हारे हृदय और आत्मा को आघात पहुँचाया हो या फिर तुम्हारे चरित्र को रौंद दिया हो। पहले यह देखो कि वह व्यक्ति कोई बुरा व्यक्ति है या कोई साधारण भ्रष्ट व्यक्ति है, पहले परमेश्वर के वचनों के अनुसार उसकी असलियत जानो और फिर इस मामले को परमेश्वर के वचनों के अनुसार समझकर इससे निपटो। क्या ये कदम उठाना सही नहीं है? (बिल्कुल सही है।) पहले इस मामले को परमेश्वर से स्वीकारो और इस मामले में शामिल लोगों को उसके वचनों के अनुसार देखो ताकि यह निर्धारित कर सको कि क्या वे साधारण भाई-बहन हैं या बुरे लोग, मसीह-विरोधी, छद्म-विश्वासी, बुरी आत्माएँ, गंदे राक्षस या बड़े लाल अजगर के जासूस हैं, और उन्होंने जो किया वह भ्रष्टता का एक सामान्य नमूना था या एक दुष्ट कार्य था जिसका उद्देश्य जानबूझकर परेशान करना और बाधित करना था। यह सब परमेश्वर के वचनों से तुलना करके निर्धारित किया जाना चाहिए। चीजों को परमेश्वर के वचनों की कसौटी पर कसना सबसे सटीक और वस्तुनिष्ठ तरीका है” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (9))। परमेश्वर के वचनों से मेरा दिल रोशन हो गया। टीम में जो कुछ भी हो रहा था, वह सब परमेश्वर की अनुमति से हो रहा था। मुझे लोगों और मामलों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार देखना चाहिए था, यह देखने से शुरुआत करनी थी कि दूसरा पक्ष किस तरह का व्यक्ति है, क्या वह भ्रष्ट स्वभावों वाला भाई या बहन है जो सत्य स्वीकार सकता है या वह बुरा व्यक्ति या छद्म-विश्वासी है जो सत्य बिल्कुल भी नहीं स्वीकारता है। अगर वे सच्चे भाई-बहन हैं तो हमें प्यार से उनकी मदद करनी चाहिए, लेकिन अगर वे बुरे लोग या छद्म-विश्वासी हैं तो हमें उन्हें समय रहते उजागर करना, बरखास्त करना या अलग-थलग कर देना चाहिए। इसलिए मैंने सोचा, “शियाओ ली वास्तव में किस तरह की व्यक्ति है? मुझे उससे कैसे निपटना चाहिए?” इसलिए मैंने दो बहनों से शियाओ ली के निरंतर व्यवहार के बारे में पूछा।
ली मेई और लुओ लान से मुझे पता चला कि शियाओ ली काफी घमंडी, हठी और गुस्सैल थी, उसे प्रतिष्ठा और रुतबे की बहुत चिंता रहती थी और जब भी वह बहनों से बात करती तो उन्हें तुरंत जवाब देना होता था और अगर वे धीमी हो जातीं या जवाब नहीं देतीं तो शियाओ ली तुरंत नाराज हो जाती और बहनों को डाँटते हुए कहती, “अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें परेशान कर रही हूँ तो बस कह दो और मैं तुमसे फिर कभी नहीं पूछूँगी!” इससे बहनें बहुत बेबस महसूस करने लगती थीं। उसके बाद शियाओ ली चाहे जो भी पूछे, चाहे बहनों को समझ आया हो या नहीं, वे शियाओ ली के दुखी होने और उसका गुस्सा भड़कने के डर से जल्दी से जवाब दे देती थीं। एक बार ली मेई ने शियाओ ली के काम में कुछ समस्याओं के बारे में बताया, लेकिन शियाओ ली ने इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया। उसने कहा कि ली मेई की माँगें बहुत अधिक थीं और वह उसे भ्रष्टता का खुलासा नहीं करने देती थी। ली मेई ने कहा कि शियाओ ली की उग्रता से दूसरे बेबस होते हैं, इस कारण शियाओ ली ने तुरंत तेज आवाज में यह कहते हुए रोना शुरू कर दिया कि ली मेई जैसे लोगों के साथ रहना कितना मुश्किल है, उसने कहा कि उसे लगा मानो ली मेई के शब्द उसका गला घोंट रहे थे। इससे पूरी सभा अस्त-व्यस्त हो गई। इस मामले के बाद शियाओ ली ने सबके सामने स्वीकार किया कि वह मसीह-विरोधी जैसी है, जो काट-छाँट को स्वीकार नहीं करती। एक और बार लुओ लान ने सभा के दौरान खुशामदी होने की अपनी भ्रष्टता के बारे में बात की, उसने देखा कि शियाओ ली सत्य स्वीकार नहीं करती, लेकिन उसने इस बारे में उसे कुछ नहीं बताया क्योंकि वह अपना रिश्ता बनाए रखना चाहती थी। यह सुनने के बाद शियाओ ली ने रोते हुए हंगामा खड़ा कर दिया और कहा, “जाओ और अगुआ को मेरी रिपोर्ट कर दो, फिर देखते हैं कि मुझे बरखास्त किया जाता है या निकाला जाता है। जब भी मेरा अहंकार आहत होता है, मैं खुद को नियंत्रित नहीं रख पाती, मैं टूटने के कगार पर होती हूँ!” यह कहने के बाद वह अपना कंप्यूटर दूसरे कमरे में ले गई और दो दिन तक अकेले ही भक्ति करती रही और बहनों को अनदेखा कर दिया। बाद में एक सभा में शियाओ ली ने रोते हुए खुद के बारे में अपनी समझ को लेकर बात की और ली मेई और लुओ लान से माफी माँगी। लेकिन उसके बाद भी वह उग्र हो जाती थी और लोगों और चीजों पर नजर गड़ा देती थी।
शियाओ ली के सभी व्यवहारों के बारे में सुनकर मुझे समस्या की गंभीरता का एहसास हुआ। शियाओ ली की समस्या सिर्फ उसके अहंकारी और हठी स्वभाव की नहीं थी। क्या वह उन बुरे लोगों जैसी नहीं थी जो विवेकहीन और जान-बूझकर परेशान करने वाले होते हैं, जिन्हें परमेश्वर उजागर करता है? मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जो लोग अविवेकी और जानबूझकर परेशान करने वाले होते हैं, वे जब कार्य करते हैं, तो सिर्फ अपने हितों के बारे में सोचते हैं, और वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है। उनके शब्द ऊटपटाँग तर्कों और पाखंडों के अलावा और कुछ नहीं होते हैं और वे विवेक से अप्रभावित रहते हैं। उनके शातिर स्वभाव सारी हदें पार कर चुके हैं। खुद पर आपदा आमंत्रित करने के डर से कोई उनके साथ जुड़ने की हिम्मत नहीं करता और कोई उनके साथ सत्य के बारे में संगति करने को तैयार नहीं होता। दूसरे लोग जब भी अपने मन की बात उनसे कहते हैं तो बेचैन रहते हैं, वे डरते हैं कि अगर उन्होंने एक भी शब्द ऐसा कह दिया जो उन्हें पसंद या उनकी इच्छा के अनुरूप न हो, तो वे उसे लपक लेंगे और उसके आधार पर घोर आरोप लगा देंगे। क्या ऐसे लोग बुरे नहीं हैं? क्या वे जीते-जागते राक्षस नहीं हैं? बुरे स्वभाव और खराब विवेक वाले सभी लोग जीते-जागते राक्षस हैं। और जब कोई जीते-जागते राक्षस के साथ बातचीत करता है तो वह पल भर की लापरवाही से अपने ऊपर आपदा ला सकता है। अगर ऐसे जीते-जागते राक्षस कलीसिया में मौजूद हों तो क्या इससे एक बड़ी मुसीबत नहीं खड़ी हो जाएगी? (हो जाएगी।) अपनी भड़ास निकालने और गुस्सा उतारने के बाद ये जीते-जागते राक्षस कुछ देर के लिए एक इंसान की तरह बोल सकते हैं और माफी माँग सकते हैं, लेकिन बाद में वे नहीं बदलते। कौन जानता है कि कब उनका मूड खराब हो जाएगा और वे फिर से नखरे दिखाने लगेंगे, अपने ऊटपटाँग तर्क बकने लगेंगे। हर बार उनके नखरे दिखाने और भड़ास निकालने का लक्ष्य अलग होता है; और ठीक ऐसा ही उनकी भड़ास का स्रोत और पृष्ठभूमि होती है। यानी, कोई भी चीज उन्हें उकसा सकती है, कोई भी चीज उन्हें असंतुष्ट महसूस करवा सकती है, और कोई भी चीज उन्हें उन्मादी और अविवेकी तरीके से प्रतिक्रिया करने पर मजबूर कर सकती है। यह कितनी भयानक, कितनी तकलीफदेह बात है! ये विक्षिप्त बुरे लोग किसी भी समय पगला सकते हैं; कोई नहीं जानता कि वे क्या करने में सक्षम हैं। मुझे ऐसे लोगों से सबसे ज्यादा नफरत है। उनमें से हर एक का सफाया कर देना चाहिए—उन सभी को बाहर कर देना चाहिए। मैं उनके साथ जुड़ना नहीं चाहता। वे भ्रमित विचारों वाले और पाशविक स्वभाव के होते हैं, वे ऊटपटाँग तर्कों और शैतानी शब्दों से भरे होते हैं, और जब उनके साथ कोई अनहोनी होती है, तो वे प्रचंड रूप से इसके बारे में अपनी भड़ास निकालते हैं। भड़ास निकालते समय इनमें से कुछ लोग रोते हैं, दूसरे लोग चीखते-चिल्लाते हैं तो अन्य लोग अपने पैर पटकते हैं और यहाँ तक कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपने सिर हिलाते हैं और अपने हाथ-पैरों को हवा में लहराते रहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो वे जंगली जानवर हैं, इंसान नहीं। ... अपनी खुद की कई समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से जानने के बावजूद वे कभी भी उन्हें सुलझाने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हैं और न ही वे दूसरों के साथ अपनी संगति में आत्म-ज्ञान पर चर्चा करते हैं। जब उनकी अपनी समस्याओं का जिक्र किया जाता है तो वे पलट जाते हैं और दोष किसी और के मत्थे मढ़ देते हैं, सभी समस्याएँ और जिम्मेदारियाँ दूसरों पर डाल देते हैं, और यहाँ तक कि यह शिकायत भी करते हैं कि उनके व्यवहार का कारण यह है कि दूसरे उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके नखरे और बेतुके भड़कावे दूसरे लोगों के कारण हुए हैं, जैसे कि बाकी सभी दोषी हैं और उनके पास इस तरह से कार्य करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है—वे मानते हैं कि वे जायज तरीके से खुद का बचाव कर रहे हैं। वे जब भी असंतुष्ट होते हैं, तो अपनी नाराजगी की भड़ास निकालना और बकवास करना शुरू कर देते हैं, अपने ऊटपटाँग तर्कों पर ऐसे अड़े रहते हैं मानो बाकी सभी गलत हैं, वे दूसरों को खलनायक के रूप में चित्रित करते हैं और खुद को अकेला अच्छा व्यक्ति बताते हैं। चाहे वे कितने भी नखरे दिखाएँ या ऊटपटाँग तर्क क्यों न बकें, वे अपेक्षा करते हैं कि उनके बारे में अच्छी-अच्छी बातें कही जाएँ। जब वे गलत करते हैं, तब भी वे दूसरों को उन्हें उजागर करने या उनकी आलोचना करने से रोक देते हैं। अगर तुम उनके किसी मामूली मुद्दे की तरफ भी ध्यान दिलाते हो तो वे तुम्हें अंतहीन विवादों में फँसा देंगे और फिर तुम शांति से जीना तो भूल ही जाओ। यह किस किस्म का व्यक्ति है? यह अविवेकी और जानबूझकर परेशान करने वाला व्यक्ति है और जो लोग ऐसा करते हैं, वे बुरे लोग हैं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (26))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि जब मानवता और विवेक वाले लोग अप्रिय चीजों का सामना करते हैं या जब दूसरे उनकी समस्याएँ बताते हैं तो भले ही वे उस समय इसे स्वीकार न करें, बाद में वे इसे परमेश्वर से स्वीकार कर समर्पण कर सकते हैं और अपनी समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोज सकते हैं। लेकिन जो लोग अनुचित रूप से परेशान करने वाले होते हैं, जिनका स्वभाव क्रूर होता है और जिनमें मानवता और विवेक की कमी होती है, वे छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित होते हैं और नखरे दिखाते हैं, अपना असंतोष जताते हैं। वे काट-छाँट किए जाने को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते। इसके बजाय वे पलटवार करने और यहाँ तक कि बदला लेने के लिए विभिन्न भ्रांतियों का उपयोग करते हैं। इसकी तुलना शियाओ ली के व्यवहार से करने पर मैंने देखा कि शियाओ ली ऐसी ही व्यक्ति थी। वह हमेशा चाहती थी कि दूसरे उसके इर्द-गिर्द घूमते रहें और थोड़ा सा भी अच्छा न लगने पर वह उग्र होकर चिढ़ने और दूसरों को डाँटने लगती थी जिससे बहनें बेबस हो जाती थीं। वे ऐसा कुछ भी गलत कहने या करने से डरती थीं जो उसे नाराज कर देता। जब टीम अगुआ ली मेई ने उसकी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया तो उसने इसे स्वीकार नहीं किया और यहाँ तक कि दलील दी कि ली मेई की माँगें बहुत ज्यादा थीं और वह उसे भ्रष्टता का खुलासा नहीं करने दे रही थी। वह सही और गलत को उलझा रही थी और कलीसियाई जीवन में व्यवधान डाल रही थी। सभाओं में ली मेई और लुओ लान अपनी स्वयं की भ्रष्टता पर आत्म-चिंतन करने के लिए परमेश्वर के वचनों का सहारा लेती थीं और भले ही ये बातें शियाओ ली की समस्याओं से जुड़ी थीं लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा था वे तथ्य थे। विवेकशील लोगों को चीजें सही ढंग से सँभालनी चाहिए, लेकिन शियाओ ली रोना-धोना शुरू कर देती थी और हंगामा मचाती रहती थी क्योंकि ये बातें उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ी होती थीं। वह कहती थी कि बहनें उसे बाहर रखती हैं और यह भी कहती थी कि उन्हें जल्दी से उसकी रिपोर्ट कर उसे बरखास्त करवाना या निकलवा देना चाहिए, इससे बहनें उसके द्वारा बेबस महसूस करती थीं और सभाओं में अपनी दशा के बारे में खुलकर बोलने और संगति करने की हिम्मत नहीं करती थीं और वे अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ थीं। हर बदमिजाजी के बाद शियाओ ली खुद को जानने के बारे में बात करती और बहनों से माफी माँगती और ऐसा प्रतीत होता था कि वह सत्य स्वीकार कर सकती है। लेकिन जब भी कुछ अप्रिय होता या उसकी प्रतिष्ठा को खतरा पैदा होता तो वह उग्र होकर फूट पड़ती और अपना असंतोष जताने लगती, बहस करती और बार-बार संगति के बावजूद बदलने से इनकार कर देती थी। यह स्पष्ट था कि शियाओ ली सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करती थी। वह बहनों को नुकसान पहुँचा रही थी और बिना किसी पश्चात्ताप के कलीसियाई जीवन में व्यवधान डाल रही थी। इसके बजाय वह पलटवार करती थी, कहती थी कि उसके साथ बहनों के अनुचित व्यवहार और उनके बहिष्कार के कारण ही वह उग्र होती है, मानो उसकी उग्रता दूसरों की वजह से थी, न कि उसकी अपनी समस्या की वजह से। वह सचमुच बेवजह परेशान करने वाली और तर्क से परे थी! पहले मैं सोचती थी कि शियाओ ली सिर्फ युवा, हठी और अभिमानी थी, कि उसका स्वभाव काफी भ्रष्ट था और उसके अश्रुपूर्ण आत्म-चिंतन से ऐसा लगता था कि वह सत्य को स्वीकार सकती है और अधिक प्रेमपूर्ण संगति और मदद के जरिए बदल सकती है। लेकिन परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन से मुझे एहसास हुआ कि शियाओ ली बेवजह परेशान करने वाली थी, उसका स्वभाव क्रूर था और वह सत्य को स्वीकार नहीं करती थी और सत्य से विमुख थी। यह कोई साधारण भ्रष्टता नहीं थी। हालाँकि उसने अभी तक कोई बड़ी बुराई नहीं की थी, लेकिन ऐसा व्यक्ति एक टाइम बम की तरह होता है जो कभी भी फट सकता है और उसे टीम में रखने से काम में केवल देरी ही होगी और कलीसिया का जीवन बाधित होगा। उसे तुरंत उजागर करके बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। यह बिल्कुल वैसा है जैसा परमेश्वर ऐसे अनुचित रूप से परेशान करने वाले लोगों के बारे में उजागर करता है : “हालाँकि ये लोग हो सकता है कोई बड़े बुरे कर्म न करें, फिर भी वे सत्य को लेशमात्र भी स्वीकार नहीं करते हैं। उनके प्रकृति सार को देखें तो न केवल उनमें अंतरात्मा और विवेक का अभाव है, बल्कि वे अविवेकी, जानबूझकर परेशान करने वाले और विवेक से अप्रभावित होते हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं! जो लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकते वे छद्म-विश्वासी होते हैं, वे शैतान के नौकर-चाकर हैं। ... अविवेकी, जानबूझकर परेशान करने वाले और उन लोगों को जिन पर तर्क का कोई असर नहीं होता, कलीसिया से दूर कर देना बिल्कुल सही है। यह कलीसिया और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति उनका उत्पीड़न मूल रूप से रोक देता है। यही अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (26))। अगर शियाओ ली अपनी बरखास्तगी के बाद भी पश्चात्ताप नहीं करती और गड़बड़ी करती रहती है तो उसे कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए। मैं परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों के सार का भेद नहीं पहचान पाई थी बल्कि उन्हें अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार देखती थी। मैं कितनी भ्रमित थी!
बाद में मैंने मन में सोचा, “शियाओ ली से निपटने में सत्य के अनुसार लोगों का सार समझने में असमर्थ होने के अलावा मैं यह भेद भी पहचानने में असमर्थ थी कि सामान्य तरीके से खुद को खोलना और खुद को उजागर करना क्या होता है और दूसरों पर हमला करते समय दिखावा करने के बहाने के रूप में संगति का उपयोग करना क्या होता है। मैं शियाओ ली के आँसुओं और आत्म-ज्ञान के प्रदर्शन से पूरी तरह गुमराह हो गई थी।” फिर मैंने इस मुद्दे के बारे में परमेश्वर के वचनों को पढ़ा : “जब बुरे लोग समस्याओं पर संगति करते हैं और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, तो हमेशा उनका कोई इरादा और उद्देश्य होता है जो हर बार किसी पर लक्षित होता है। वे अपना गहन-विश्लेषण नहीं कर रहे होते या खुद को जानने की प्रक्रिया में नहीं होते, न ही अपनी समस्याओं को हल करने के लिए खुद को खोलकर रख रहे होते हैं—बल्कि वे दूसरों को उजागर करने, उनका गहन-विश्लेषण करने और उन पर हमला करने के अवसर का लाभ उठा रहे होते हैं। वे अक्सर दूसरों का गहन-विश्लेषण करने और उनकी निंदा करने के लिए अपने आत्म-ज्ञान की संगति का लाभ उठाते हैं, और परमेश्वर के वचनों और सत्य पर संगति करने के माध्यम से वे लोगों को उजागर करते हैं, उन्हें नीचा दिखाते हैं और बदनाम करते हैं। ... सत्य पर संगति करते समय ये बुरे लोग खुद को उजागर क्यों नहीं करते या अपना गहन-विश्लेषण क्यों नहीं करते, और हमेशा दूसरों को क्यों निशाना बनाते और उजागर करते हैं? क्या यह वास्तव में हो सकता है कि वे भ्रष्टता प्रकट नहीं करते, या उनके स्वभाव भ्रष्ट नहीं हैं? निश्चित रूप से नहीं। फिर वे खुलासे और गहन-विश्लेषण के लिए दूसरों को निशाना बनाने पर जोर क्यों देते हैं? वे वास्तव में क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे होते हैं? यह प्रश्न गहन विचार की माँग करता है। यदि कोई कलीसिया को बाधित करने वाले बुरे लोगों के बुरे कामों को उजागर करता है, तो वह वही कर रहा है जैसा उसे करना चाहिए। लेकिन इसके बजाय ये लोग सत्य के बारे में संगति करने के बहाने अच्छे लोगों को उजागर करते हैं और पीड़ा पहुँचाते हैं। उनका इरादा और उद्देश्य क्या होता है? क्या वे इसलिए क्रोधित हैं क्योंकि वे देखते हैं कि परमेश्वर अच्छे लोगों को बचाता है? वास्तव में ऐसा ही है। परमेश्वर बुरे लोगों को नहीं बचाता, इसलिए बुरे लोग परमेश्वर और अच्छे लोगों से घृणा करते हैं—यह सब बिलकुल स्वाभाविक है। बुरे लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते; वे खुद भी बचाए नहीं जा सकते, फिर भी वे उन अच्छे लोगों को पीड़ा देते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं और बचाए जा सकते हैं। यहाँ समस्या क्या है? अगर इन लोगों को खुद का और सत्य का ज्ञान होता, तो वे अपने को खोलते हुए संगति कर सकते थे, पर वे तो हमेशा दूसरों को निशाना बनाते और भड़काते रहते हैं—उनमें हमेशा दूसरों पर हमला करने की प्रवृत्ति होती है—और वे हमेशा सत्य का अनुसरण करने वालों को अपना कल्पित दुश्मन के तौर पर देखते हैं। ये बुरे लोगों के पहचान-चिह्न होते हैं। ऐसी बुराई करने में सक्षम लोग असली दानव और शैतान हैं, मसीह-विरोधी के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं, जिन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, और अगर वे बहुत अधिक बुराई करते हैं, तो उन्हें तुरंत सँभाला जाना चाहिए—उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। अच्छे लोगों पर प्रहार और उनके अलग करने वाले सभी लोग सड़े हुए सेबों जैसे होते हैं। मैं उन्हें सड़ा हुआ सेब क्यों कहता हूँ? क्योंकि वे कलीसिया में अनावश्यक विवाद और संघर्ष भड़काने की संभावना पैदा करते हैं, जिससे वहाँ की स्थिति और भी गंभीर होती जाती है। वे एक दिन एक व्यक्ति को निशाना बनाते हैं और दूसरे दिन दूसरे को, और वे हमेशा दूसरों को, उन लोगों को निशाना बनाते जाते हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं। इससे कलीसिया का जीवन बाधित हो सकता है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाने-पीने पर, साथ ही सत्य पर उनकी सामान्य संगति पर भी इसका असर पड़ सकता है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (15))। “सामान्य मानवता को जीने के लिए कैसे खुलकर खुद को प्रकट करना चाहिए? अपने भ्रष्ट स्वभाव के प्रकाशन के बारे में खुलकर, दूसरों को अपने दिल की वास्तविकता देखने देकर, और फिर, परमेश्वर के वचनों के आधार पर समस्या के सार का विश्लेषण करके, और अपने दिल की गहराई से खुद से घृणा और अपना तिरस्कार करके। जब लोग खुद को उजागर करते हैं, तो उन्हें खुद को सही ठहराने या गलतियों को समझाने का प्रयास नहीं करना चाहिए, बल्कि केवल सत्य का अभ्यास करना चाहिए और एक ईमानदार व्यक्ति बनना चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सामंजस्यपूर्ण सहयोग के बारे में)। परमेश्वर के वचनों पर आत्म-चिंतन करते हुए मैंने समझा कि सामान्य रूप से खुद को खोलने और खुद को उजागर करने का मतलब है कि परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन के माध्यम से व्यक्ति को अपनी स्वयं की भ्रष्टता और अपने मुद्दों के सार की वास्तविक समझ मिलती है, वह अपने भ्रष्ट स्वभाव का गहन विश्लेषण करने में सक्षम होता है और दूसरे उसके शब्दों में खुद के प्रति उसकी घृणा को महसूस कर सकते हैं। ऐसी संगति लोगों को सत्य समझने में मदद करती है और उन्हें लाभ पहुँचाती है। लेकिन कुछ लोग सभाओं में खुलने और संगति करने के बहाने का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उन्हें खुद के बारे में कोई वास्तविक समझ नहीं होती और इसके बजाय वे दूसरों की समस्याओं को उजागर करते हैं, तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हैं और दूसरों पर हमला करते हैं, विवाद पैदा करते हैं, रिश्तों को जटिल और तनावपूर्ण बनाते हैं, लोगों को सामान्य रूप से साथ नहीं रहने देते और कलीसियाई जीवन में व्यवधान पैदा करते हैं। ऐसे लोग बुरे होते हैं। मैंने सभा में शियाओ ली के व्यवहार के बारे में सोचा। लगता था कि वह अपनी कमजोर मानवता और उग्रता को जानती थी, लेकिन उसने अपनी भ्रष्टता का गहन विश्लेषण नहीं किया, बहनों द्वारा बताए गए मुद्दों पर बिल्कुल भी आत्म-चिंतन नहीं किया और उसे अपने अभिमानी और क्रूर स्वभाव की कोई सच्ची समझ नहीं थी। इसके बजाय उसने कहा कि उसकी उग्रता का कारण दूसरों द्वारा उसे बाहर रखना और अलग-थलग करना था। उसकी संगति में दूसरों को बहकाने की प्रवृत्ति थी, दूसरों को यह दिखाने की कोशिश करना था कि अकेले उसमें भ्रष्टता नहीं है बल्कि बहनों में भी समस्याएँ हैं, दूसरों को यह सोचने के लिए गुमराह करना था कि लुओ लान और ली मेई उसे बाहर रखने और अलग-थलग करने के लिए गुट बना रही हैं ताकि वह खुद को पीड़ित के रूप में दिखाए। वास्तव में लुओ लान और ली मेई ने उसे बिल्कुल भी बाहर नहीं रखा था बल्कि वे उसके हितों का ख्याल रखती थीं। यहाँ तक कि उनके द्वारा काट-छाँट करना और उसकी समस्याएँ बताना भी उसे खुद को जानने में मदद करने के लिए था। लेकिन शियाओ ली बिल्कुल भी नहीं समझी और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बचाने के लिए उसने तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा, दूसरों पर हमला किया और परेशानी खड़ी की, जिससे बहनें बाधित हो गईं और अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हो गईं। पहले मैंने शियाओ ली के दूसरों पर हमला करने के तरीकों या उसके दुष्ट स्वभाव का भेद नहीं पहचाना था। जब मैंने उसे रोते हुए और खुद को जानने और पश्चात्ताप की इच्छा व्यक्त करते हुए देखा तो मुझे लगा कि वह सत्य स्वीकार कर सकती है और मुझे उसके साथ संगति करने और उसकी मदद करने के लिए प्रेम पर भरोसा करना चाहिए। केवल तब जाकर मैंने देखा कि मेरा परिप्रेक्ष्य सत्य के अनुरूप नहीं था।
मैंने परमेश्वर के वचन का एक और अंश पढ़ा जिसमें मसीह-विरोधियों को उजागर किया गया था, जिससे मैंने झूठे आत्म-ज्ञान के भेद को पहचाना। परमेश्वर कहता है : “अगर ऐसे व्यक्ति कोई गलत काम करते हैं, फिर भाई-बहनों द्वारा काट-छाँट और आलोचना किए जाने के बाद आँसू बहाते हैं, सतही तौर पर परमेश्वर के ऋणी होने का दावा करते हैं और भविष्य में पश्चात्ताप करने का वादा करते हैं, तो क्या तुम उन पर विश्वास करने की हिम्मत करोगे? (नहीं।) क्यों नहीं? सबसे अकाट्य सबूत यह है कि वे आदतन झूठ बोलते हैं! भले ही वे बाहरी तौर पर पश्चात्ताप करें, फूट-फूटकर रोएँ, अपनी छाती पीटें और कसम खाएँ, उन पर विश्वास मत करना, क्योंकि वे मगरमच्छ के आँसू बहा रहे होते हैं, लोगों को धोखा देने के लिए आँसू बहा रहे होते हैं। वे जो दुख और पश्चात्ताप भरे शब्द बोलते हैं, वे दिल से नहीं निकलते; वे कपटी तरीकों से लोगों का विश्वास जीतने के लिए सोची गई तिकड़मी चालें होती हैं। लोगों के सामने वे फूट-फूटकर रोते हैं, भूल स्वीकारते हैं, कसम खाते हैं, और अपनी स्थिति जाहिर करते हैं। लेकिन जिनके निजी तौर पर उनके साथ अच्छे संबंध होते हैं, जिन पर वे अपेक्षाकृत भरोसा करते हैं, वे एक अलग ही कहानी बताते हैं। सार्वजनिक रूप से भूल स्वीकारना और अपने तौर-तरीके बदलने की कसम खाना ऊपर से तो वास्तविक लग सकता है, लेकिन पर्दे के पीछे वे जो कहते हैं, वह साबित करता है कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह सच नहीं था, बल्कि झूठ था, जिसे ज्यादा लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए कहा गया था। पर्दे के पीछे वे क्या कहेंगे? क्या वे स्वीकारेंगे कि उन्होंने जो पहले कहा था, वह झूठ था? नहीं, वे नहीं स्वीकारेंगे। वे नकारात्मकता फैलाएँगे, तर्क पेश करेंगे और खुद को सही ठहराएँगे। यह खुद को सही ठहराना और तर्क-वितर्क करना इस बात की पुष्टि करता है कि उनकी स्वीकारोक्तियाँ, पश्चात्ताप और कसमें सब झूठी थीं, जिनका उद्देश्य लोगों को धोखा देना था। क्या ऐसे व्यक्तियों पर भरोसा किया जा सकता है? क्या यह आदतन झूठ बोलना नहीं है? यहाँ तक कि वे स्वीकारोक्तियाँ भी गढ़ सकते हैं, झूठे आँसू बहाकर अपने तरीके बदलने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं, यहाँ तक कि उनकी कसम भी झूठ होती है। क्या यह राक्षसी प्रकृति नहीं है?” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण चार : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि सच्चा पश्चात्ताप केवल रोने का दिखावा करना और खुद को जानने की बात करना नहीं होता, बल्कि यह अपने भ्रष्ट स्वभाव का गहन विश्लेषण करना और उसे समझने में सक्षम होना, खुद से वास्तविक घृणा करना और अपने बुरे तरीकों को अस्वीकार करना और उसके बाद सत्य का अभ्यास करने की गवाही देने के बारे में होता है। हालाँकि शियाओ ली ने रोते हुए कहा था कि वह प्रतिष्ठा और रुतबे को महत्व देती है और वह एक बुरी इंसान है, लेकिन समस्याओं का सामना होने पर वह फिर से उग्र हो गई, लोगों और चीजों पर नजर गड़ाने लगी और खुद को उचित ठहराने के लिए विभिन्न विकृत तर्क खोजने लगी, कोई वास्तविक पश्चात्ताप नहीं दिखाया। उसकी समझ झूठी थी और दबाव में बनी थी। उसे डर था कि भाई-बहन एक बुरे व्यक्ति के रूप में उसका भेद पहचान लेंगे और उसे कलीसिया से निकाल दिया जाएगा, वह उद्धार का मौका खो देगी, उसके पास भाई-बहनों की सहानुभूति पाने के लिए रोने और खुद को जानने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। उसका ज्ञान पाखंडपूर्ण, भ्रामक और कपटपूर्ण था।
बाद में मैंने परमेश्वर के और वचन पढ़े : “सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को लोगों को किस तरह देखना चाहिए? लोगों और चीजों के बारे में उसके विचार, और उसका आचरण और कार्य, सभी परमेश्वर के वचनों के अनुसार होने चाहिए और सत्य उनकी कसौटी होनी चाहिए। तो, तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को कैसे समझते हो? देखो कि उसमें जमीर और विवेक है या नहीं, वह एक अच्छा इंसान है या बुरा। उनके साथ संपर्क के दौरान तुम देख सकते हो कि उनमें कुछ छोटी-मोटी खामियाँ और कमियाँ हैं, फिर भी उनकी मानवता काफी अच्छी है। वे लोगों के साथ बातचीत में सहनशील और धैर्यवान हैं, और जब कोई नकारात्मक और कमजोर होता है, तो वे उसके प्रति प्रेमपूर्ण होते हैं और उसे पोषण प्रदान कर उसकी मदद कर सकते हैं। दूसरों के प्रति उनका यही रवैया रहता है। तो फिर, परमेश्वर के प्रति उनका क्या रवैया रहता है? परमेश्वर के प्रति उनके रवैये में, यह और भी ज्यादा मापने योग्य है कि उनमें मानवता है या नहीं। हो सकता है कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उसमें वे विनम्र होते हों, खोज करते हों, लालसा रखते हों, और अपना कर्तव्य निभाने और दूसरों के साथ बातचीत करने के दौरान—जब वे कार्रवाई करते हैं—तो उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होता हो। ऐसा नहीं है कि वे दुस्साहसी होते हैं, खराब ढंग से पेश आते हैं, और ऐसा भी नहीं है कि वे कुछ भी कर देते हैं और कुछ भी कह देते हैं। जब कुछ ऐसा होता है जिसमें परमेश्वर या उसका कार्य शामिल होता है, तो वे बहुत सतर्क रहते हैं। जब तुम यह सुनिश्चित कर लेते हो कि उनमें ये प्रदर्शन हैं, तो उनकी मानवता से निकलने वाली चीजों के आधार पर, तुम कैसे मापोगे कि वह व्यक्ति अच्छा है या बुरा? इसे परमेश्वर के वचनों के आधार पर मापो, और इसे इस आधार पर मापो कि उनमें जमीर और विवेक है या नहीं, और सत्य तथा परमेश्वर के प्रति उनके दृष्टिकोण के आधार पर मापो” (वचन, खंड 6, सत्य के अनुसरण के बारे में, सत्य का अनुसरण करने का क्या अर्थ है (3))। मैंने देखा कि परमेश्वर द्वारा किसी व्यक्ति को अच्छा या बुरा आँकना मुख्य रूप से व्यक्ति की मानवता और सत्य के प्रति उसके रवैये पर आधारित होता है, जैसे कि क्या उसकी मानवता दयालु है, जब दूसरों के शब्द या कार्य-कलाप उस पर असर डालते हैं तो क्या वह सहनशील और धैर्यवान हो सकता है, क्या वह परमेश्वर के प्रति समर्पित है और उसका भय मानता है और क्या वह समस्याओं से सामना होने पर परमेश्वर के इरादों और सत्य सिद्धांतों को खोज सकता है। इससे मतलब नहीं है कि वह अपने भाषण में खुद को कितना जानता हुआ दिखता है, बल्कि यह है कि वह वास्तव में अपना जीवन कैसे जीता है। लेकिन मैंने परमेश्वर के वचनों के आधार पर लोगों या हालात का आकलन नहीं किया और गलती से यह मान लिया कि अगर कोई रोता है और खुद को जानता हुआ प्रतीत होता है तो वह सत्य को स्वीकार कर सकता है और सच्चा पश्चात्ताप कर सकता है। मैंने अनुचित रूप से परेशान करने वाले बुरे लोगों से सच्चे भाई-बहन की तरह व्यवहार किया और उनकी मदद और समर्थन के लिए प्यार पर भरोसा करना चाहा। मैं वास्तव में अंधी और पूरी तरह से भ्रमित थी! मैं सोचती थी कि लोगों के बीच सामंजस्यपूर्ण सहयोग की कमी दोनों पक्षों द्वारा खुद को न जानने और लोगों और चीजों पर नजर गड़ाए रखने के कारण होती है और केवल अपनी समस्याओं को जानने और उन पर आत्म-चिंतन करने से इसका समाधान हो जाएगा। ये सिर्फ मेरी अपनी धारणाएँ और कल्पनाएँ थीं। अगर दूसरा पक्ष बुरा व्यक्ति या छद्म-विश्वासी है तो ऐसे लोग सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते और खुद को नहीं जानेंगे, ऐसे लोगों के साथ सामंजस्यपूर्ण सहयोग कैसे हो सकता है? दोनों पक्षों का आत्म-चिंतन करना और खुद को जानना सिर्फ मुद्दे को नजरअंदाज करना है और इससे सिर्फ चीजें और खराब ही हो सकती हैं, इसके कारण कलीसियाई जीवन बाधित होगा और भाई-बहनों के जीवन को नुकसान पहुँचेगा। इस एहसास के साथ मैंने जल्दी से अगुआओं को शियाओ ली के निरंतर व्यवहार की सूचना दी और अगुआ बाद में इस बात पर सहमत हुए कि सिद्धांतों के अनुसार उसे उजागर करने और बरखास्त करने की जरूरत थी। शियाओ ली की बरखास्तगी के बाद टीम का कलीसियाई जीवन सामान्य हो गया और भाई-बहन अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हो गए, जिसके परिणामस्वरूप उनके काम की दक्षता और प्रभावशीलता में कुछ सुधार हुआ। इस अनुभव के बाद मुझे सचमुच एहसास हुआ कि परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों और परिस्थितियों का आकलन करना ही अभ्यास का एकमात्र मार्ग है!