254  इस बात को जान लो कि मसीह चिरकालिक सत्य है

1

पहले, जब मैं प्रभु में विश्वास रखती थी, तो मैं सत्य की वास्तविकता से अनजान थी।

मैं सच्चे अगुवाओं और झूठे अगुवाओं और मसीह-विरोधियों में अंतर नहीं कर पाती थी।

जो कोई भी बाइबल के सिद्धांतों को समझाता था, मैं उसी की पूजा- आराधना और अनुसरण करने लगती थी।

मुझे लगता था कि जिसने भी कलीसिया के लिए काम किया है, और दुख सहे हैं, वो एक अच्छा अगुवा है।

मैंने भोलेपन में सोचा कि उनका अनुसरण करके मैं स्वर्गिक राज्य में प्रवेश कर सकती हूँ।


2

न्याय का अनुभव करने के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मेरी सोच कितनी बेतुकी और हास्यास्पद थी।

मैंने लोगों को कभी सत्य से नहीं, बल्कि धारणाओं और कल्पनाओं द्वारासमझा था।

मैंने वही किया जो अगुवा ने कहा और सोचा कि मैं परमेश्वर का आज्ञा का पालन कर रही हूँ।

मैंने रुतबे और ताकत की पूजा की; मेरे दिल में परमेश्वर के लिये थोड़ी-सी भी जगह नहीं थी।

आज जाकर मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर में मेरा विश्वास कितना गलत था।


3

आज, मैं इस बात को समझती हूँ कि परमेश्वर के विश्वास में सत्य और जीवन हासिल करना कितना मुश्किल है।

परमेश्वर के न्याय का अनुभव और सत्य का अभ्यास करने से ही मैं वास्तव में परमेश्वर को जान सकती हूँ।

जब लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं, तो उनका व्यवहार कितना भी अच्छा क्यों न हो, वह पाखंड ही होता है।

लोगों की धारणाएँ और कल्पनाएँ कितनी भी अच्छी क्यों न हों, वे भ्रांतियाँ होती हैं और सत्य के प्रतिकूल होती हैं।

केवल परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, केवल उनके वचन ही लोगों को शुद्ध कर सकते और बचा सकते हैं।


4

जब हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो हमें विश्वास होना चाहिए कि मसीह सत्य है, हमें लोगों का अनुसरण नहीं करना चाहिए।

जब हम सत्य को समझेंगे और परमेश्वर को जानेंगे, तो हम स्वाभाविक रूप से अलग-अलग तरह के लोगों को पहचान लेंगे।

जब हम परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो हमें केवल परमेश्वर के वचनों के सत्य का ही पालन करना चाहिए, और लोगों से सावधान रहना चाहिए।

सत्य के बिना, भेद कर पाने की योग्यता के बिना, हम यकीनन धोखा खाते हैं, और अपने लिये तबाही लाते हैं।

जब हम जान लेते हैं कि मसीह शाश्वत सत्य है तभी हम निष्ठापूर्वक अंत तक उसका अनुसरण कर सकते हैं।

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