253 मैं बस इतना माँगता हूँ कि परमेश्वर संतुष्ट हो
1
इतना आनंद लिया है परमेश्वर के अनुग्रह का,
पर सत्य का अनुसरण न कर पाई मैं।
अपने कर्तव्य में लापरवाह होकर
और परमेश्वर को धोखा देकर उसका दिल तोड़ा मैंने।
बार-बार, दिखाई सहनशीलता और दया परमेश्वर ने,
मुझे पश्चाताप करने के दिए मौके।
न्याय, ताड़ना, दंड और अनुशासन ने मेरे
सुन्न हृदय को जगा दिया।
सत्य समझकर, परमेश्वर के प्रेम का अनुभव कर,
मुझे अत्यधिक अफसोस होता है।
उसका अनुग्रह अत्यधिक है, मैंने जरा भी प्रतिदान नहीं किया है;
मैं कैसे उसका सामना करूं?
मैं सत्य का अनुसरण करूँगी, नई इंसान बन जाऊँगी,
अपना कर्तव्य अच्छे से निभाऊँगी।
करूँ प्रतिदान परमेश्वर के प्रेम का,
दूँ उसकी गवाही, यही इच्छा है मेरी।
2
अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए
मैं परमेश्वर के उपदेशों को दृढ़ता से अपने हृदय में रखती हूँ।
मैं सत्य का अभ्यास करती और अपना कर्तव्य अच्छे से निभाती हूँ,
ताकि परमेश्वर का हृदय संतुष्ट हो।
परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं द्वारा,
मैं विपत्ति का सामना और परीक्षणों का अनुभव करती हूँ।
मैं निराश कैसे हो सकती हूँ, कैसे मैं छिप सकती हूँ?
परमेश्वर की महिमा पहले आती है।
विपत्ति में, परमेश्वर के वचन मुझे राह दिखाते हैं,
मेरी आस्था पूर्ण बनाई जाती है।
परमेश्वर को देती हूँ मैं अपनी वफादारी,
मर भी गई तो क्या? उसकी इच्छा सर्वोपरि है।
भविष्य की परवाह और नफे-नुकसान का हिसाब नहीं करती,
बस यही माँगती हूँ कि परमेश्वर संतुष्ट हो।
मैं जोरदार गवाही दूँगी और शैतान को शर्मिंदा करूँगी,
परमेश्वर को महिमान्वित करूँगी।
मैंने देख लिया है धार्मिकता का सूर्य;
धरती पर सत्य का सर्वोच्च शासन है।
परमेश्वर का स्वभाव धार्मिक और पवित्र है,
जो मानवजाति के स्तुति के योग्य है।
मैं अपना जीवन प्रतिबद्ध करती हूँ
सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण और वफादारी से कर्तव्य करने के लिए।
अपने दिल में मैं सदा सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्यार करूँगी,
सदा मैं उसकी स्तुति करूँगी!