179  अँधेरे और दमन के बीच उठ खड़े होना

1

बड़े लाल अजगर के क्रूर उत्पीड़न ने दिखा दी है मुझे असलियत शैतान के चेहरे की।

तमाम परीक्षणों और क्लेशों के जरिए

मैंने देख ली है परमेश्वर की बुद्धि और सर्वशक्तिमत्ता।

सत्य समझ कर और आस्था हासिल करके,

आखिर मैं कैसे संतुष्ट हो सकता हूँ परमेश्वर का अनुसरण ना करके?

मैं शैतान से गहराई से नफरत करता हूँ, उससे भी ज्यादा बड़े लाल अजगर से नफरत है।

दानव राजा के शासित स्थान पर रहना कारागार में रहने जैसा है।

शैतान बिल्कुल मेरे पीछे पड़ा है; रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान नहीं।

परमेश्वर में विश्वास करना, उसकी आराधना करना पूरी तरह स्वाभाविक और न्यायोचित है।

मैंने परमेश्वर को प्रेम करना चुना है, मैं अंत तक वफादार रहूँगा।

दानव राजा शैतान, बिल्कुल क्रूर है, सच में बेशर्म और नीच है।

मैं शैतान का दानवी चेहरा साफ देखता हूँ, मेरा दिल मसीह से और भी प्रेम करता है।

शैतान के सामने घुटने टेक कर, परमेश्वर को धोखा देकर

मैं एक नीच अस्तित्व को कभी नहीं ढोऊँगा।

मैं सभी कष्टों और दर्द को सहूंगा, और काली से काली रात को झेलूंगा।

परमेश्वर के दिल को सुकून देने के लिए, मैं विजयी गवाही दूंगा।


2

सवेरे के पहले की रात गुजर जाएगी,

धार्मिकता का सूरज पहले ही प्रकट हो चुका है।

शैतान और दानव, अपनी मौत की वेदना में,

परमेश्वर के कार्य के लिए सेवा प्रदान करते हैं।

परमेश्वर ने विजेताओं का एक समूह बनाया है,

शैतान पूरी तरह शर्मिंदा और हराया गया है।

परमेश्वर की धार्मिकता को जानकर, मेरा दिल परमेश्वर से और भी ज्यादा प्यार करता है।

परमेश्वर के प्रेम का आनंद लेते हुए, मुझे उसके दिल के प्रति विचारशील होना चाहिए।

परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए मैं अपना सब कुछ खपाने को तैयार हूँ।

संकल्प के साथ परमेश्वर का अनुसरण करूँगा, उसके शुभ समाचार का प्रसार करूंगा।

मैं परमेश्वर की गवाही देते हुए और उसकी महिमा करते हुए अपनी अंतिम वफादारी दूँगा।

चाहे परमेश्वर कैसे भी करे परीक्षण मेरा,

यह मुझे परखने का तरीका है उसका।

सत्य समझकर अडिग रहता हूँ अपनी गवाही में

और परमेश्वर के इरादे पूरे करता हूँ मैं।

ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम और उसके हृदय पर विचार करता हूँ,

उसका आदेश पूरा करता हूँ मैं।

मृत्यु तक वफादारी की प्रतिज्ञा करूँगा

और मार्ग के अंतिम चरण पर उचित रूप से चलूँगा मैं।

अपनी मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति समर्पण करना—

यही वह है जो करने के लिए कर्तव्य-बद्ध हूँ मैं।

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