34  परमेश्वर को सेवा प्रदान करना हमारा सौभाग्य है

1

अब हम सुन सकते हैं ईश्वर की वाणी,

उसके प्रकटन और कार्य की पुष्टि कर सकते हैं।

हम ख़ुश हैं देखकर व्यावहारिक ईश्वर को,

आशीषित हैं हम, प्रभु की वापसी का स्वागत करते हैं।

हम परमेश्वर के साथ भोज में शामिल होते हैं,

हम उठाये जाते हैं स्वर्ग के राज्य में।

अब से, हम ईश्वर के वचनों का सेवन करेंगे और आनंद लेंगे।

हम उसके साथ रहकर इतने ख़ुश हैं।

हम इच्छुक हैं ईश्वर के लिए मेहनत करने को,

उसकी योजना और व्यवस्था के अधीन होने को,

जीवन भर अपने पूरे दिल से सेवा करने को,

हमेशा उसकी धार्मिकता की स्तुति करने को, स्तुति करने को।


2

हम आशीष पाने की इच्छा रखते हैं, हम सामना करते हैं

ईश्वर के वचनों के प्रकाशन और न्याय का।

हमारे दिल उसकी तलवार से बिंधे हुए हैं,

हम बहुत दर्द और यातना महसूस करते हैं।

हम हैं भ्रष्ट, ईश्वर को देखने के काबिल नहीं,

क्योंकि उस पर हमारा विश्वास

सिर्फ़ इसलिए है ताकि हम आशीष प्राप्त कर सकें

और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।

लालसा के साल गुम हो चुके,

टूटे दिल के साथ, हम मुरझा रहे दर्द में।

ईश्वर के वचन जीतते हैं और हम आश्वस्त होते हैं।

हम ज़मीं पे गिरते हैं, हो कर शर्मसार।


3

केवल ईश्वर के वचनों के न्याय द्वारा

हम देख सकते हैं कि हम भ्रष्ट हैं।

आशीषित होने की इच्छा और इरादों से भरे,

हमारी भ्रष्टता नहीं शुद्ध हुई।

स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के अयोग्य,

ईश्वर के अनुग्रह से हम उसकी सेवा कर सकते हैं।

हम इच्छुक हैं और ये हमारी ख़ुशनसीबी है।

ये ईश्वर का महानतम प्यार और आशीष है।

हम इच्छुक हैं ईश्वर के लिए मेहनत करने को,

उसकी योजना और व्यवस्था के अधीन होने को,

जीवन भर अपने पूरे दिल से सेवा करने को,

हमेशा उसकी धार्मिकता की स्तुति करने को।

आज, हम सेवा करते हैं, खुद को अयोग्य मानते हैं,

नहीं चिंता हमें आशीष पाने की, बर्बाद होने या अपने अंत की।

ईश्वर शैतान को हराता है अपने वचनों से।

ऐसे ईश्वर उद्धार करता है अंधकार से हमारा।

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