81. कष्ट परमेश्वर के आशीष हैं

वांगगांग, चीन

2008 की सर्दियों की एक दोपहर, जब दो बहनें और मैं सुसमाचार के एक लक्ष्य-समूह में, अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का प्रचार कर रहे थे, तभी अधर्मी लोगों ने हमारी शिकायत कर दी। छह पुलिस अधिकारियों ने सुसमाचार लक्ष्य-समूह के घर में घुसने के लिए हमारे आवासीय परमिट को जांचने की जरूरत का बहाना बनाया। जैसे ही वे दरवाजे पर आए, वे चिल्लाने लगे : "हिलना मत!" उन दुष्ट पुलिसवालों में से दो मुझ पर इस तरह झपटे जैसे वे पूरी तरह से अपना आपा खो चुके हों; उनमें से एक ने मेरी छाती के कपड़े को दबोच लिया और दूसरे ने मेरे हाथों को कसकर पकड़ लिया और उन्हें मेरे पीछे कसने के लिए अपनी पूरी ताकत, लगा दी, और फिर उसने चीखते हुए पूछा : "तुम क्या कर रहे हो? क्या नाम है तुम्हारा? तुम कहां के हो?" जवाब में मैंने पूछा : "तुम लोग क्या कर रहे हें? तुम मुझे क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं?" जब उन्होंने मुझे ऐसा कहते सुना, तो वे बहुत भड़क गए और सख्ती से बोले : "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कारण क्या है, हम तुम्हें ही ढूंढ रहे थे और अब तुम हमारे साथ चलोगे।" इसके बाद, पुलिस वालों ने मुझे और दोनों बहनों को पुलिस वाहन में ढकेल दिया।

हमारे लोक सुरक्षा ब्यूरो पहुँचने के बाद, पुलिस अधिकारियों ने मुझे एक छोटे कमरे में ले जाकर बंद कर दिया; उन्होंने मुझे जमीन पर झुककर बैठने का आदेश दिया और मेरी निगरानी के लिए चार लोग लगा दिए। चूंकि मैं काफी देर से उकड़ूँ बैठा हुआ था, इसलिए मैं इतना थक गया था कि मैं इसे और नहीं सह पाया। जब भी मैं खड़े होने की कोशिश करता, तो वे मुझ पर झपट पड़ते और मेरे सिर को नीचे दबाकर मुझे खड़े होने से रोक देते। कुछ ही समय बाद, मैंने बाजू के कमरे से खून जमा देने वाली चीख़ों की आवाज सुनी, जैसे किसी को यातना दी जा रही हो, और उस पल, मैं बहुत डर गया : मैं नहीं जानता था कि इसके बाद वे मुझ पर किस प्रकार की यतनाओं का प्रयोग करेंगे! मैंने तुरंत अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करनी शुरू कर दी : "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं इस समय बहुत डरा हुआ हूं, कृपया मुझे आस्था और शक्ति दो, और मुझे दृढ़ व साहसी बनाओ। मैं तुम्हारी गवाही देने का इच्छुक हूँ। अगर मैं उनकी क्रूर यातना नहीं सह सका, तो मैं अपनी जीभ काटकर आत्महत्या कर लेना पसंद करूंगा, लेकिन मैं यहूदा की तरह तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा!" प्रार्थना करने के बाद, मुझे अपने भीतर शक्ति संचारित होती हुई महसूस हुई, और मेरा डर कम होने लगा।

उस शाम 7 बजे के बाद, उन्होंने मेरे हाथों को पीठ के पीछे हथकड़ी में जकड़ दिया और मुझे सीढ़ियों से ऊपर पूछताछ कक्ष में ले जाकर फ़र्श पर धकेल दिया। वहाँ यातनाएं देने के लिए हर प्रकार का सामान मौजूद था, जैसे कि रस्सियां, लकड़ी की छड़ियाँ, डंडे, चाबुक आदि। एक पुलिसवाले ने अपने हाथ में तेज आवाज़ करता हुआ और बिजली के झटके देने वाला डंडा ले लिया, और मुझे डराते हुए जानकारी मांगने लगा : "तुम लोग कलीसिया में कुल कितने लोग हो? तुम लोगों के मिलने का स्थान कहाँ है? मुखिया कौन है? इस क्षेत्र में कितने लोग सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं? बोलो! वरना जो होगा वह तुम्हें भुगतना होगा!" मैंने बिजली के डंडे के आने वाले खतरे की ओर देखा और फिर यातना के उपकरणों से भरे उस कमरे को फिर से देखा; मैं घबराने व डरने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। मैं नहीं जानता था कि मैं इस यातना को सह पाउंगा या नहीं, इसलिए मैं परमेश्वर को लगातार पुकारता रहा। यह देखकर कि मैं अपना मुँह नहीं खोलने वाला, वह चिढ़ गया और उसने बड़ी क्रूरता से इलेक्ट्रिक डंडे से मेरी छाती के बाईं ओर वार किया। उसने लगभग एक मिनट तक मुझे बिजली का झटका दिया। मुझे तुरंत ऐसा लगने लगा जैसे मेरे शरीर का खून उबल रहा हो; सिर से पैर तक मुझे असहनीय दर्द हो रहा था और मैं लगातार चीखते हुए जमीन पर गिरकर तड़पने लगा। उसने फिर भी मुझे नहीं बख्शा और अचानक मुझे खींचते हुए ऊपर उठाने लगा और ठुड्डी के बल मेरा चेहरा ऊपर उठाने के लिए डंडे का प्रयोग करते हुए चिल्लाया : "बोलो! तुम कुछ भी स्वीकार नहीं करोगे?" इन दानवों की उन्मादी यातनाओं का सामना करते हुए, मुझे केवल इस बात का डर था कि इनकी यातनाओं को न सह पाने के कारण कहीं मैं परमेश्वर को धोखा न दे दूं। उस समय, मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, "सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे फिर से आस्था व शक्ति प्रदान की, और मैं समझ गया कि भले ही मेरे सामने मौजूद दुष्ट पुलिस वाले पागल व बेलगाम हों, लेकिन उन्हें परमेश्वर के हाथों ही व्यवस्थित किया गया था। परमेश्वर की अनुमति के बिना वे मुझे नहीं मार सकते। जब तक मैं परमेश्वर पर आस्था रखूँगा और उस पर आश्रित रहूंगा और उन दुष्टों से हार नहीं मानूंगा, तब तक वे निश्चित रूप से मुझे परास्त करने में असफल रहेंगे। ऐसा सोचकर, मैंने अपने शरीर की पूरी शक्ति को इकट्ठा किया और तेज आवाज में उत्तर दिया : "तुम मुझे यहां क्यों लाए हो? तुम मुझे इलेक्ट्रिक डंडे से बिजली के झटके क्यों दे रहे हो? मैंने कौनसा जुर्म किया है?" दुष्ट पुलिस वाला अचानक ही हेडलाइट के सामने आने वाले हिरण की तरह हो गया और अपराध-बोध से उसक सर झुक गया। वह हकलाने लगा और कुछ बोल न पाया। फिर वे सब दुम दबाकर भाग गए। शैतान की दुविधा की इस अपमानजनक स्थिति को देखकर, मेरी आंखों से आंसू निकल आए। इस विडंबना में, मैंने वाकई सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की शक्ति व प्रभुत्व को अनुभव किया। अगर मैं परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाऊँगा, तो मैं परमेश्वर के कर्मों को देख सकूँगा। पाँच-छह मिनट बाद दो पुलिस वले आए, पर इस बार उन्होंने दूसरा तरीका अपनाया। एक दुबले-पतले अधिकारी ने मुझसे बड़े प्यार से कहा, "बस कुछ देर हमारा साथ दो। हमारे सवालों का जवाब दे दो, नहीं तो हम तुम्हें जाने नहीं दे सकते।" मैंने एक शब्द भी नहीं कहा, तो वह एक कागज़ का टुकड़ा ले आया और मुझे दस्तखत करने को कहा। उस पर लिखे शब्द, "श्रम द्वारा पुन:शिक्षण", पढ़कर मैंने इनकार कर दिया। दूसरे अधिकारी ने मेरे बाएँ कान पर इतना ज़ोरदार थप्पड़ मारा कि मैं लगभग फ़र्श पर ही गिर पड़ा। मेरा कान झनझनाने लगा और सब कुछ स्पष्ट समझ में आने में कुछ पल लग गए। उन्होंने मुझे फिर से हथकड़ी लगा दी और मुझे छोटे से उसी कमरे में बंद कर दिया।

उस छोटे कमरे में वापस आने के बाद, मुझे खूब मारा-पीटा गया, वह दर्द असहनीय था। मैं बहुत पस्त और कमजोर महसूस कर रहा था। मैंने लोगों को सत्य दिखाने व उन्हे बचाने के अच्छे प्रयोजन के साथ सुसमाचार का प्रचार किया था, फिर भी मुझे इस अप्रत्याशित उत्पीड़न को सहना पड़ रहा है। इस बारे में सोचते हुए, मैं और ज्यादा यह महसूस करने लगा कि मेरे साथ गलत किया गया है। मैंने अपनी पीड़ा में प्रार्थना करते हुए परमेश्वर को पुकारा, और कहा, "हे परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और मैं बहुत कमज़ोर हूँ। परमेश्वर मैं तुम पर भरोसा करना चाहता हूँ और तुम्हारी गवाही देना चाहता हूँ। कृपया मुझे राह दिखाओ।" बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के एक भजन के बारे में सोचा : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ। आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है')। परमेश्वर के वचनों से मैं यह समझ गया कि यातनाओं और कठिनाइयों से मेरा सामना इसलिए हुआ था ताकि परमेश्वर मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण बना सके। वह परिवेश मेरे लिए परमेश्वर का आशीष था। मैं कैसे शिकायत कर सकता था और परमेश्वर को कैसे दोष दे सकता था? मुझे गिरफ्तार किया गया और यातना दी गई, पर इस अग्नि-परीक्षा के दौरान परमेश्वर अपने वचनों से मुझे राह दिखाता रहा; यह परमेश्वर का प्रेम था। मैं मन ही मन वह भजन गाता रहा, जितना मैंने उसे गाया उतना ही मैं उत्साह से भर गया। इसने मेरी आस्था वापस लौटा दी और मैंने परमेश्वर के सामने कसम खाई : "परमेश्वर, चाहे मुझे पुलिस कितनी भी यातना दे, मैं तुम्हारी गवाही देना चाहता हूँ, और मैं कभी भी तुम्हें धोखा देना नहीं चाहता। मैं अंत तक तुम्हारा अनुसरण करने के लिए संकल्पबद्ध हूँ।"

हिरासत में, पुलिस अधिकारी मुझे यातना देने के लिए हर प्रकार की युक्तियों को लगातार आजमा रहे थे और अक्सर दूसरे कैदियों को भी मुझे मारने के लिए उकसाते थे। सर्दियों की बर्फीली ठंड में, उन्होंने कैदियों से बाल्टियों से मुझ पर ठंडा पानी डालने के लिए कहा और जबर्दस्ती मुझे ठंडे पानी से नहाने के लिए विवश किया। मैं सिर से पाँव तक ठंड से कांपने लगा। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था और मुझे बहुत पसीना आ रहा था, मेरे दिल में इतना भयंकर दर्द हो रहा था कि इससे मेरी पीठ भी बुरी तरह दुखने लगी थी। यहां कैदी, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए पैसा बनाने वाली मशीन थे और उनके पास कोई भी वैधानिक अधिकार नहीं थे। उनके पास इस दमन को सहने और गुलामों की तरह शोषित किए जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जेल में मुझे दिन के समय कागजी मुद्रा छापने के लिए कहा गया, जिन्हें मृतकों के साथ जले हुए अवशेषों के रूप में रखा जाता है। शुरू में, उन्होंने यह नियम बनाया कि मुझे हर रोज 1,000 कागज के टुकड़ों को मुद्रित करना होगा, जिसे बाद में उन्होंने 1,800 टुकड़े प्रति दिन कर दिया, और अंत में इसे बढ़ा कर 3,000 टुकड़े कर दिया गया। इतनी मात्रा को पूरा करना एक अनुभवी व्यक्ति के लिए भी असंभव था, तो मेरे जैसे गैर-अनुभवी व्यक्ति की तो बात ही छोड़ दीजिए। असल में, उन्होंने जानबूझकर मुझे इतना काम दिया था, ताकि मैं इसे किसी भी तरह पूरा न कर पाऊँ और उन्हें मुझे प्रताड़ित करने व पीटने के लिए एक बहाना मिल जाए। जब भी मैं इस कोटे को पूरा नहीं कर पाता था, तो दुष्ट पुलिस वाले मेरे पैरों में 5 किलोग्राम से ज्यादा वजनी बेड़ियां बांध देते, और हथकड़ियों से मेरे हाथ व पैर आपस में बांध देते। मैं बस वहां बैठा रह सकता था, अपना सिर झुकाए और अपनी कमर मोड़े, हिलने-डुलने में भी असक्षम। इसके अलावा, इन अमानवीय व निर्दयी पुलिस वालों ने मेरी मूलभूत जरूरतों के लिए भी मुझसे कभी नहीं पूछा और न ही उन्हें इसकी परवाह थी। हालांकि जेल की सेल में ही शौचालय था, लेकिन मैं वहां तक जाने और उसका प्रयोग करने में पूरी तरह से असक्षम था; मैं बस अपने सेल के साथियों से निवेदन कर सकता था कि वे मुझे उठाकर शौचालय तक ले जाएं। अगर वे थोड़े बेहतर कैदी होते, तो वे मुझे उठाकर ले जाते; अगर कोई भी मेरी मदद न करता, तो फिर रोके रखने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं होता था। सबसे ज्यादा दर्दनाक समय भोजन करने का समय होता था क्योंकि मेरे हाथ व पैर आपस में बंधे हुए थे। मैं बस अपनी पूरी ताकत से अपना सिर थोड़ा नीचे कर पाता था और अपने हाथ व पैर उठा पाता था। केवल ऐसा करके ही मैं एक उबला हुआ पाव अपने मुंह में डाल पाता था। मुझे हर कौर पर बहुत ऊर्जा खर्च करनी पड़ती थी। वे हथकड़ियां मेरे हाथों व पैरों से रगड़ खाती थीं, जिसकी वजह से काफी दर्द होता था। कुछ समय बाद, मेरी कलाइयों व टखनों में काले व चमकदार कड़े घट्टे पड़ गए। अक्सर जब मुझे बंद रखा जाता था तो मैं खा नहीं पाता था, और कभी कभार ही, कैदी मुझे दो छोटे पाव दे दिया करते थे। ज्यादातर वे मेरा हिस्सा भी खा जाया करते थे और मैं खाली पेट ही रह जाया करता था। मुझे पीने के लिए इससे भी कम मिलता था; असल में, हर किसी को प्रति दिन केवल दो प्याला पानी दिया जाता था, लेकिन मैं बंधा हुआ था और हिल भी नहीं सकता था, इसलिए मैं कभी-कभार ही पानी पी पाता था। मुझे चार बार ऐसी अमानवीय यातना दी गई, जो कुल दस दिनों तक चली। उन परिस्थितियों में भी अधिकारी मुझसे रात की शिफ्ट कराते थे। मैंने लंबे समय से भर-पेट खाना नहीं खाया था; भूख की वजह से मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती, उल्टी आती और सीने में दर्द होता। मैं बस हाड़-माँस का पुतला बन गया था। जब मेरी भूख बर्दाश्त के बाहर हो गई तो मैंने याद किया कि प्रभु यीशु ने परीक्षा के समय शैतान से क्या कहा था : "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा" (मत्ती 4:4)। इससे मुझे सुकून मिला और मैं इन शब्दों को शैतान द्वारा मुझे दी जा रही यातना के जरिए खुद अनुभव करने के लिए तैयार हो गया। मैंने खुद को परमेश्वर के सामने शांत किया ताकि प्रार्थना कर सकूँ और उसके वचनों पर विचार कर सकूँ। और फिर मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरी पीड़ा और भूख शांत हो गई। एक बार एक कैदी ने मुझसे कहा : "ऐसे ही पहले एक युवक को हथकड़ी लगाकर भूखा मार दिया गया था। मैं देख रहा हूँ कि तुमने कई दिनों से कुछ नहीं खाया है पर तुम्हारे हौसले अभी भी बुलंद हैं।" उसके शब्दों को सुनकर मैंने मन ही मन परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैंने गहराई से महसूस किया कि यह परमेश्वर के वचनों में मौजूद जीवन-शक्ति ही है जो मुझे सहारा दे रही है। इससे सच में मुझे यह महसूस हुआ कि परमेश्वर के वचन सत्य, मार्ग, और जिंदगी हैं एवं निश्चित रूप से यही वह आधार है जिस पर मुझे जीवित रहने के लिए भरोसा करना चाहिए। इसलिए, परमेश्वर में मेरी आस्था अनायास ही बढ़ गई। कष्टों के इस वातावरण में, मैं सत्य की इस वास्तविकता को सच में अनुभव करने में सक्षम था कि "मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्‍वर के मुख से निकलता है, जीवित रहेगा।" यह सच में जिंदगी की सबसे बहुमूल्य संपत्ति है जो परमेश्वर ने मुझे दी है, और यह मेरा अनोखा उपहार भी है। और फिर, एक ऐसे वातावरण में मैं कभी भी यह सब नहीं पा सकता था जहां मुझे खाने या कपड़े की चिंता करने की आवश्यकता न हो। इन कष्टों का कितना अधिक अर्थ व मूल्य था!

उत्पीड़न और यातना के उस अनुभव ने कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति मेरे दिल में मौजूद नफरत को और भी बढ़ा दिया। मुझे गिरफ्तार किया गया और सिर्फ परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण मुझे सभी प्रकार की यातनाएँ दी गईं। यह अमानवीय दुर्व्यवहार था; यह पूरी तरह से दुष्टता थी! मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश के बारे में सोचा जो मैंने पहले पढ़ा था : "गहराई का चेहरा अराजक और काला है, जबकि सामान्य लोग ऐसे दुखों का सामना करते हुए स्वर्ग की ओर देखकर रोते हैं और पृथ्वी से शिकायत करते हैं। मनुष्य कब अपने सिर को ऊँचा रख पाएगा? मनुष्य दुर्बल और क्षीण है, वह इस क्रूर और अत्याचारी शैतान से कैसे मुकाबला कर सकता है? वह क्यों नहीं जितनी जल्दी हो सके, परमेश्वर को अपना जीवन सौंप देता? वह क्यों अभी भी डगमगाता है? वह कब परमेश्वर का कार्य समाप्त कर सकता है? इस प्रकार निरुद्देश्य ढंग से तंग और प्रताड़ित किए जाते हुए उसका पूरा जीवन अंततः व्यर्थ ही व्यतीत हो जाएगा; उसे आने और विदा होने की इतनी जल्दी क्यों है? वह परमेश्वर को देने के लिए कोई अनमोल चीज़ क्यों नहीं रखता? क्या वह घृणा की सहस्राब्दियों को भूल गया है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। इस अनुभव ने मुझे कम्युनिस्ट पार्टी का सच्चा सार दिखाया कि वह परमेश्वर की दुश्मन है, और वह सत्य की दुश्मन है। इसने परमेश्वर के लिए गवाही देने के मेरे संकल्प को और मजबूत कर दिया।

एक माह के बाद, सीसीपी की पुलिस ने मुझ पर "समाज की व्यवस्था को बिगाड़ने और कानून के कार्यान्वयन को बाधित करने" का आरोप लगाया; और मुझे एक साल के श्रम के जरिए सुधार की सजा सुना दी गई। जब मैं लेबर कैम्प में पहुंचा, तो पुलिस अधिकारियों ने मुझे हर दिन काम करने पर मजबूर किया। जब मैं कार्यशाला में बोरियां गिन रहा होता, तो मैं 100 बोरियों को गिनता और फिर उन्हें एक साथ बांध देता। दूसरे कैदी हमेशा ही जान-बूझकर वहां चले आते और मैंने जो बोरियां गिनी होती थीं, उसमें से एक या कई बोरियां निकालकर ले जाते, और फिर यह कहते हुए कि मैंने ठीक से गिनती नहीं की थी, मुझे लात-घूंसे मारने लगते। जब टीम कप्तान मुझे मार खाते देखता, तो वह भी वहां आ जाता और पाखंडपूर्ण ढंग से पूछता कि यहां क्या हो रहा है, और कैदी गलत ब्यान देते हुए कहते कि मैं बोरियों की गिनती ठीक से नहीं कर रहा था। फिर मुझे टीम कप्तान की खरी-खोटी सुननी पड़ती। जब मुझे लगता कि मेरे साथ गलत हो रहा है, या मैं पीड़ा महसूस कर रहा हूँ तो मैं अपना काम करते-करते परमेश्वर के वचनों का एक भजन गाने लगता : "इन अंतिम दिनों में, तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसकी कृपा पर बने रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास')। मैं जितना गाता, उतना ही भाव-विभोर और प्रेरित महसूस करता, और मैं अपने आँसूओं को बहने से रोक नहीं पाता। मैंने संकल्प लिया कि चाहे मुझे कितना भी कष्ट उठाना पड़े, मैं परमेश्वर के लिए गवाही दूँगा। मेरी ही उम्र का एक और भाई था जो मेरे साथ ही जेल में बंद हुआ था। जब हम दिन में काम कर रहे होते थे, तब हमें बात करने की अनुमति नहीं थी, लेकिन रात में हम चुपके से परमेश्वर के वचनों और भजनों के अंशों को लिखते थे जिन्हें हमने याद किया था और उनका आदान-प्रदान करते थे। कुछ समय बाद हमें एक साथ काम पर लगाया गया, तब हम एक-दूसरे की मदद और प्रोत्साहन के लिए चुपचाप संगति किया करते। इससे अपने दुख को कम करने में हमें बहुत मदद मिलती।

इसके अलावा, मुझे हर सुबह "आचरण के नियमों" को याद करने का आदेश दिया जाता था, और अगर मैं याद नहीं कर पाता था तो मुझे पीटा जाता था; इतना ही नहीं, वे मुझे कम्युनिस्ट पार्टी की प्रशंसा करने वाले गीत गाने के लिए भी विवश किया करते थे। अगर वे यह देख लेते थे कि मैं गा नहीं रहा हूँ या मेरे होंठ नहीं हिल रहे हैं, तो निश्चित रूप से उस रात मुझे पीटा जाता था। वे मुझसे फर्श पर पोछा लगवाकर भी दंडित करते थे, और अगर मैंने उनकी उम्मीदों के अनुसार पोछा नहीं लगाया होता, तो मुझे हिंसक रूप से पीटा जाता था। एक बार, कुछ कैदियों ने अचानक ही मुझे पीटना व ठोकरें मारना शुरू कर दिया। मुझे मारने के बाद, उन्होंने मुझसे पूछा : "नौजवान, क्या तुम जानते हो कि तुम्हें क्यों पीटा जा रहा है? क्योंकि जब वार्डन यहां आया था तो तुमने खड़े होकर उसका अभिवादन नहीं किया था!" हर बार जब मुझे पीटा जाता, तो मैं क्रोधित हो उठता था, लेकिन कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं दिखा पाता था; मैं बस रो सकता था और चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता था, उसे अपने दिल में उत्पन्न रोष व क्षोभ के बारे में बताता था। इस कानूनरहित और तर्कहीन जगह पर कुछ भी सही नहीं था, वहां केवल हिंसा थी। वहां कोई भी इंसान नहीं था, वहां केवल उन्मादी दानव थे! मैंने हर दिन उस दुर्दशा में रहकर बहुत दर्द व दबाव महसूस किया था; मैं वहां एक मिनट भी और नहीं रहना चाहता था। जब भी मैं कमजोरी व दर्द की अवस्था में होता था, तो मैं हर बार सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचने लगता था : "क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रोत्साहित किया। मैं समझ गया कि परमेश्वर ने मेरे अंदर जो कुछ भी कार्य किया है, वह सब-कुछ मेरे पोषण व मुझे बचाने के लिए था; यह मुझमें सत्य समाहित कर रहा था और मेरी जिंदगी को सत्य बना रहा था। परमेश्वर ने इस उत्पीड़न व क्लेश को मुझे अपना शिकार बनाने की अनुमति दी थी, और भले ही इसकी वजह से मुझे बहुत शारीरिक पीड़ा पहुंची थी, पर इसने मुझे परमेश्वर का प्रतिरोध करने, उससे नफरत करने और उसे त्यागने के बड़े लाल अजगर के घृणित सार को स्पष्ट रूप से देखने दिया था, शैतान के प्रभाव से निकलने दिया था, और परमेश्वर द्वारा विजेता बनाए जाने के लिए पूरी तरह से उस पर निर्भर होने दिया था। इसने मुझे सच में यह अनुभव करने में सक्षम बनाया था कि परमेश्वर मेरे साथ है; परमेश्वर के वचनों को अपनी जिंदगी की खुराक और अपने कदमों का चिराग और अपने मार्ग का प्रकाश बनते देखकर मैं वाकई आनंदित हो रहा था, जो मुझे इस अंधकारमय नरक-कुंड से चरण दर चरण बाहर निकाल रहे थे। यह परमेश्वर का प्रेम व सुरक्षा है, जिसे मैंने अपने उत्पीड़न और क्लेश के दौरान अनुभव व प्राप्त किया था। उस समय, मैं यह देखने में सक्षम हो पाया कि मैं कितना अंधा था। परमेश्वर में विश्वास करके मैं सिर्फ यह जान सका था कि परमेश्वर के अनुग्रह व आशीष का आनंद कैसे लिया जाए और मुझे इस बात की तनिक भी परवाह नहीं थी कि सत्य व जीवन की तलाश और उसका अनुसरण कैसे किया जाए। मेरी देह को थोड़ी सी भी तकलीफ होने पर, मैं तुरंत कराहने लगता था; मैं परमेश्वर की इच्छा को नहीं समझता था और परमेश्वर के कार्य को भी समझने की कोशिश नहीं करता था। मैं हमेशा यही चाहता था कि परमेश्वर मेरे कारण दुख व दर्द महसूस करे। मुझमें सच में कोई चेतना नहीं थी! पश्चाताप व खुद को दोष देने की भावना में, मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं देख सकता हूं कि तू जो कुछ भी करता है वह मुझे बचाने व पाने के लिए है। मुझे बस इस बात से नफरत है कि मैं कितना दिद्रोही और अंधा हूं। मैंने हमेशा ही तुझे गलत समझा और तेरी इच्छा का कभी भी विचार नहीं किया। हे परमेश्वर, आज तेरे वचन ने मेरे सुन्न पड़े दिल व आत्मा को जगा दिया है और इस वजह से मैं तेरी इच्छा को समझ पाया हूं। अब मुझमेँ अपनी खुद की इच्छाएं व जरूरतें रखने की इच्छा नहीं रही है; मैं बस तेरी व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करूंगा। चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा सहनी पड़े, फिर भी मैं शैतान के समूचे उत्पीड़न के दौरान तेरी गवाहियाँ देता रहूँगा।" प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के अच्छे प्रयोजनों को समझा, और मैं जान गया कि परमेश्वर ने मुझे जिस भी वातावरण को अनुभव करने दिया था, वह मेरे लिए परमेश्वर का महानतम प्रेम था और इसी मेँ मेरा उद्धार निहित था। इसलिए, अब मैं कभी भी पीछे हटने या झुकने या परमेश्वर को गलत समझने के बारे में नहीं सोचूंगा। हालांकि परिस्थितियां अभी भी वैसी ही थीं, लेकिन मेरा दिल सचमुच पूरी तरह से खुश व आनंदमग्न था; मुझे महसूस हुआ कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने के लिए तकलीफ व उत्पीड़न सहने योग्य होना भी सम्मान का विषय था, और यह मेरे जैसे भ्रष्ट व्यक्ति के लिए एक अनोखा उपहार था; यह मेरे लिए परमेश्वर का विशेष आशीष व अनुग्रह था।

जेल में एक साल कष्टों का अनुभव करने के बाद, मैंने पाया कि मेरा कद बहुत छोटा है और यह कि मुझमें सत्य की कितनी कमी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने इस अनोखे वातावरण के माध्यम से मेरी कमियों का निराकरण किया और मुझे प्रगति करने का अवसर दिया। मेरी विपत्ति में, उसने मुझे जिंदगी की सबसे अनमोल धरोहर पाने में सक्षम बनाया और मैं उन बहुत-से सत्यों को समझ पाया जिन्हें मैं पहले नहीं समझ पाता था, और मैं परमेश्वर का उत्पीड़न और ईसाइयों को प्रताड़ित करने के सीसीपी के घिनौने अपराधों को साफ तौर पर देख पाया। मैंने राक्षसी शैतान के घिनौने चेहरे, और परमेश्वर का प्रतिरोध करने के उसके प्रतिक्रियावादी सार को पहचान लिया है। मैंने सचमुच ही उस महान उद्धार व करुणा का अनुभव किया है जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझ जैसे भ्रष्ट व्यक्ति को प्रदान किया है, और यह महसूस किया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की शक्ति व जिंदगी मेरे लिए प्रकाश ला सकती है और मेरी जिंदगी बन सकती है और मुझे शैतान पर जीत दिला सकती है और मुझे मृत्यु के साये की घाटी से दृढ़तापूर्वक बाहर निकाल सकती है। परमेश्वर का धन्यवाद!

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योंगयुआन, अमेरिका1982 के नवंबर में, हमारा पूरा परिवार संयुक्त राज्य अमेरिका जाकर बस गया। मेरे दादा की पीढ़ी से ही हम सभी को परमेश्वर पर...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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