5. 28 मई को शेडोंग के झाओयुआन में हुई घटना के बाद, सीसीपी ने गृह कलीसियाओं पर हमला करने के अपने प्रयासों को तीव्रतर कर दिया, और यहाँ तक कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का दमन करने और उस पर टूट पड़ने के लिए उसने सशस्त्र पुलिस भी जुटाई थी। कई लोगों ने झाओयुआन घटना के बारे में संदेह व्यक्त किया है, उनका विश्वास है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ जनता की राय बनाने के लिए एक झूठे मामले को गढ़कर, इस पर हमला करने और इसका दमन करने का यह एक प्रयास था। इसके बावजूद, मामले को सार्वजनिक रूप से सीसीपी की अदालत में पेश किया गया और प्रमुख चीनी मीडिया आउटलेट्स द्वारा इसे रिपोर्ट किया गया, और सीसीपी ने जो कहा, वह कुछ लोगों ने मान लिया है। हम यह सुनना चाहेंगे कि आप झाओयुआन में हुई घटना के बारे में क्या सोचते हैं।
उत्तर :
सीसीपी ने जिस शानडोंग झाओयुएन मामले को अकेले ही गढ़ा था, उसका उस समय चीन और विदेश दोनों पर बहुत प्रभाव पड़ा और कई अनजान लोग इसके धोखे में आ गए थे। लेकिन क्या दुनिया हमेशा इसके झांसे में रहेगी? आज, कितने लोग सीसीपी की कानूनी अदालतों के फैसलों और उसकी मीडिया की रिपोर्टों पर भरोसा करते हैं? छल और छिपाने का खेल कभी भी लंबे समय तक नहीं चल सकता; झूठ हमेशा झूठ ही रहेगा, वह कभी सच नहीं हो सकता। सीसीपी को समझने वाला हर इंसान जानता है कि चीन पर कम्युनिस्ट तानाशाही का राज है और वहाँ न कोई न्यायिक स्वतंत्रता है, न ही प्रेस की आजादी। सीसीपी के न्यायाधीशों को कोई स्वतंत्रता नहीं है; उन्हें वही करना होता है जो सीसीपी सरकार कहती है और सभी मामलों का निपटारा सरकार की इच्छानुसार होता है। चीन की मीडिया भी सीसीपी सरकार द्वारा नियंत्रित है, वह सीसीपी तानाशाही के मुखपत्र और साधन के अलावा और कुछ नहीं है। ये स्वीकृत तथ्य हैं। तो इसमें कोई शक नहीं है कि सीसीपी की कानूनी अदालतों के मामले हास्यास्पद तमाशे हैं जो तथ्यों को विकृत करते हैं और सच के बिल्कुल विपरीत होते हैं। कोई निष्पक्षता या न्याय है ही नहीं! शानडोंग झाओयुएन घटना के सार्वजनिक मुकदमे के दौरान, संदिग्धों ने स्पष्ट रूप से कहा था, "मैं कभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के संपर्क में नहीं रहा," और "राज्य झाओ वीशान के 'सर्वशक्तिमान परमेश्वर' पर हमला कर रहा है, न कि हमारे 'सर्वशक्तिमान परमेश्वर' पर।" उनकी स्वीकारोक्तियां यह बहुत अच्छे से स्पष्ट कर देती हैं कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्य नहीं हैं, और न ही वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया द्वारा मान्यता प्राप्त हैं; उनका सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया से कोई लेना-देना नहीं है। तो सीसीपी के न्यायाधीश ने इस बात को अनसुना क्यों किया, और तथ्यों के अनुसार मामले का फैसला क्यों नहीं किया? क्यों, किसी सबूत के अभाव में, न्यायाधीश ने संदिग्धों की स्वीकारोक्तियों का खुले तौर पर खंडन किया और जानबूझकर तथ्यों को विकृत करते हुए, झूठ को सच बना दिया और इन संदिग्धों पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों का ठप्पा लगाने पर अड़ा रहा? क्या यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि सीसीपी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को फंसाने, उस पर झूठा आरोप लगाने, कलीसिया को दबाने और सताने और जनता की राय को उसके विरुद्ध करने के लिए झूठ गढ़ रही थी? क्या इसने तथ्यों की अवहेलना नहीं की, क्या इसने कानून को रौंदा नहीं? क्या ये सफेद झूठ नहीं थे? ऐसे फैसले पर संदेह कैसे नहीं किया जा सकता? सीसीपी वर्षों से धोखा और झूठ फैला रही है। यह निरंतर और अधिक कुख्यात और दुराचारी, भ्रष्ट और दुष्ट होती जा रही है। देश-विदेश में इसकी प्रतिष्ठा के चिथड़े उड़ गए हैं; इसकी दुर्गंध असहनीय है। दुनिया भर में अधिक से अधिक लोग सीसीपी की सच्चाई देख पा रहे हैं; अब कोई भी सीसीपी पर विश्वास नहीं करता है, क्योंकि सीसीपी एक घिनौना और नास्तिक राजनीतिक दल है, दुष्ट शैतान का एक समूह है, जिसकी दुष्टता और परमेश्वर के विरोध का दुनिया भर में कोई सानी नहीं है।
संभव है कि सीसीपी को समझने वाला कोई भी व्यक्ति इसके काम करने के तौर-तरीकों से परिचित हो। हर बार जब सीसीपी धार्मिक विश्वास, लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलनों, जातीय अल्पसंख्यक विरोधों आदि को हिंसक रूप से दबाती है, तो वह सबसे पहले जनता की राय को विकृत करने और जनसाधारण को उकसाने के लिए झूठी घटनाएँ गढ़ती है, जिसके बाद वह खून-खराबा करते हुए दमन करती है। उदाहरणस्वरूप, 1989 के तियानामेन स्क्वायर पर हुए विरोधों को लो : यह मूल रूप से भ्रष्टाचार से लड़ने और लोकतंत्र और स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए किया गया छात्र आंदोलन था, लेकिन सीसीपी ने अज्ञात व्यक्तियों को छात्र होने का नाटक करने और प्रदर्शनकारियों के साथ घुलने मिलने का निर्देश दिया, जहाँ उन्होंने गुंडागर्दी के माध्यम से अराजकता पैदा की, आगजनी की और सैन्य वाहनों को पलट दिया। इसका पूरा-पूरा आरोप छात्रों पर लगा दिया गया और छात्र आंदोलन को एक क्रांति विरोधी दंगा करार दिया गया, इस प्रकार छात्रों के दमन और एक खूनी कार्रवाई शुरू करने का बहाना मिल गया, जिसमें कम-से-कम कई हजार छात्रों को टैंकों द्वारा गोलियों से भून दिया गया या कुचल दिया गया। इस प्रकार सीसीपी ने एक हृदय-विदारक अभियान चलाया, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया और चीनी लोगों को—गहरी निराशा से भर दिया—तियानमेन स्क्वायर नरसंहार। सीसीपी द्वारा तिब्बती विरोधों के दमन में भी ऐसा ही हुआ था। पहले इसने लोगों को आगजनी, मारपीट, लूटपाट जैसे हिंसक कृत्य करने के लिए प्रदर्शनकारियों के बीच घुलमिल जाने का आदेश दिया, फिर इसने तिब्बती विद्रोह को दबाने के नाम पर प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाने के लिए सेना को लामबंद किया। सीसीपी के ऐसे कृत्यों की सूची बहुत लंबी है। ये तथ्य मतभेद रखने वालों को मिटाने के लिए सीसीपी की सुस्थापित रणनीति का प्रमाण हैं : पहले यह झूठ गढ़ती है, तथ्यों को विकृत करती है, और झूठे आरोप लगाती है, फिर एक खूनी कार्रवाई करती है। वास्तव में, झाओयुएन केस वह आधार बन गया है जिसके बल पर सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया पर क्रूरतापूर्वक अत्याचार और उत्पीड़न करने के लिए जनमत को विकृत करने का काम किया है। धार्मिक विश्वास के उत्पीड़न में यह सीसीपी का एक और जघन्य अपराध है। लेकिन इतने वर्षों तक सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को दबाने और सताने के बाद, क्या सीसीपी वास्तव में इसे मिटाने में सक्षम हुई है? कई साल पहले, यहूदी लोगों ने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाकर परमेश्वर के स्वभाव का अपमान किया था; परमेश्वर ने उन्हें श्राप दिया, और उनके राष्ट्र का अभूतपूर्व विनाश हुआ। परमेश्वर के प्रति अपने उन्मत्त विरोध और ईसाइयों का क्रूर उत्पीड़न करने के कारण, रोमन साम्राज्य भी, परमेश्वर द्वारा भेजी गई एक महामारी द्वारा नष्ट हो गया था। ये सभी तथ्य हैं। सीसीपी अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य के अपने विरोध और निंदा के लिए परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित होने से नहीं बच सकती। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, "हमें विश्वास है कि परमेश्वर जो कुछ प्राप्त करना चाहता है, उसके मार्ग में कोई भी देश या शक्ति ठहर नहीं सकती। जो लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं, परमेश्वर के वचन का विरोध करते हैं, और परमेश्वर की योजना में विघ्न डालते और उसे बिगाड़ते हैं, अंततः परमेश्वर द्वारा दंडित किए जाएँगे। जो परमेश्वर के कार्य की अवहेलना करता है, उसे नरक भेजा जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य का विरोध करता है, उसे नष्ट कर दिया जाएगा; जो कोई राष्ट्र परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करने के लिए उठता है, उसे इस पृथ्वी से मिटा दिया जाएगा, और उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 2: परमेश्वर संपूर्ण मानवजाति के भाग्य का नियंता है)।