2. जैसा कि हम इसे समझते हैं, कई प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक विशेषज्ञों और शिक्षाविदों ने माना है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया एक उभरती हुई ईसाई कलीसिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया और पारंपरिक ईसाइयत के बीच क्या अंतर है?

उत्तर :

ईसाइयत देहधारी प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के बाद अस्तित्व में आई; यह एक ईसाई कलीसिया है, जो अनुग्रह के युग से संबंधित है। अंत के दिनों में, अनुग्रह के युग का अंत और राज्य के युग की शुरुआत करते हुए देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है, और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य की नींव पर वह सत्य व्यक्त कर रहा है, और परमेश्वर के घर से प्रारंभ करते हुए न्याय का कार्य संपन्न कर रहा है। सभी ईसाई संप्रदायों में बहुत-से लोगों ने, जो सत्य से प्रेम करते हैं और प्रभु के प्रकटन की लालसा करते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ा और वे परमेश्वर की वाणी को पहचान गए। वे विश्वस्त हो गए कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही प्रभु यीशु की वापसी है, और उनमें से प्रत्येक ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया और वे मेमने के नक्शेकदम पर चले—इसी से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का जन्म हुआ। इस प्रकार, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया और ईसाइयत दोनों ही परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से जन्मे, लेकिन ईसाइयत जहाँ अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से पैदा हुई थी, वहीं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का जन्म तब हुआ, जब अंत के दिनों के दौरान न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर ने देहधारण किया; यह राज्य के युग की ईसाई कलीसिया है। दोनों कलीसियाएँ परमेश्वर द्वारा प्रकट होने और कार्य करने के लिए देहधारण करने से उत्पन्न हुईं, लेकिन अलग-अलग युगों में। ईसाइयत अनुग्रह के युग की कलीसिया है, जबकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया राज्य के युग की कलीसिया है, जिसकी अगुआई और चरवाही आज परमेश्वर के व्यक्तिगत कार्य और कथनों द्वारा की जाती है। दूसरी ओर, ईसाइयत ने पवित्र आत्मा के कार्य को खो दिया है, क्योंकि उसने परमेश्वर के कदमों के साथ तालमेल नहीं बनाए रखा, और वह अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य का प्रतिरोध और निंदा करती है; यह वह कलीसिया है जिसकी परमेश्वर ने निंदा की है और जिसे उसने त्याग दिया है, और इसलिए परमेश्वर ईसाइयत को परमेश्वर की नहीं, बल्कि परमेश्वर की प्रतिरोधी और निंदक मानता है। इसलिए दोनों के बीच कोई तुलना नहीं है। प्रभु यीशु मसीह ने दो हजार साल पहले स्वर्गारोहण किया था। वह पृथ्वी पर नहीं है। यद्यपि ईसाई लोग प्रभु यीशु के नाम में विश्वास करते हैं, लेकिन वे उससे कभी मिले नहीं, उसकी चरवाही या सिंचन तो उन्होंने बिलकुल भी नहीं पाई, न ही वे प्रभु के वचनों का अभ्यास या अनुभव करने पर कोई ध्यान देते हैं। वे प्रभु यीशु को बिलकुल नहीं जानते, और फिर, वे उसके आत्मा को भी नहीं जानते। और इसलिए ईसाई कलीसिया केवल स्वर्ग के अस्पष्ट और अमूर्त ईश्वर में विश्वास करती है, न कि अंत के दिनों के देहधारी मसीह में। इसलिए इस तरह की कलीसिया सच्ची ईसाइयत नहीं है; वह एक धार्मिक समूह बनकर रह गई है, जो बौद्ध धर्म या ताओवाद से अलग नहीं है, और वह परमेश्वर की कलीसिया नहीं है। इस प्रकार, प्रभु की वापसी और स्वर्ग के राज्य में आरोहण के लिए ईसाइयत की लालसा शुद्ध फंतासी है। ईसाइयत के जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं जिन्हें परमेश्वर के सामने उन्नत किया जाता है; फिर भी, ज्यादातर लोग अंत के दिनों के न्याय के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते, वे केवल बाइबल के शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं, और धार्मिक नियमों और रस्मों से चिपके रहते हैं। वे पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य के साथकदम-से-कदम मिलाकर चलने में असमर्थ हैं, और इसके बजाय, वे परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा और प्रतिरोध करने के भरसक प्रयास में सीसीपी के शैतानी शासन का अनुसरण करते हैं। वे लोग मूर्ख कुँवारियाँ हैं, और परमेश्वर द्वारा पहले ही तिरस्कृत और अस्वीकृत किए जा चुके हैं और हटाए जा चुके हैं; परमेश्वर उन्हें स्वीकार नहीं करता, वे केवल नाममात्र के "ईसाई" हैं, और उन्होंने ईसाइयत का सार खो दिया है, जो उनमें लंबे समय से केवल नाम के लिए ही है।

जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रकट हुआ और उसने कार्य करना शुरू किया, तो अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने वाले लोगों के समूह पर ध्यान केंद्रित करने के लिए परमेश्वर ने आत्मा का पूरे ब्रह्मांड का कार्य पहले ही वापस ले लिया था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर से प्रार्थना करके और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को खा-पीकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के ईसाइयों ने पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर लिया है, उन्होंने परमेश्वर के जीवन का समृद्ध पोषण प्राप्त कर लिया है, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करते हैं, वे परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करते हैं, उनमें सत्य की समझ दिनोदिन बढ़ती रहती है, उनकी भ्रष्टता स्वच्छ होती रहती है, उनके स्वभावों में बदलाव आता है, और वे परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करते हैं, और आपदाओं से पहले परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए गए विजेताओं का समूह बन जाते हैं। लेकिन ईसाइयत में केवल एक छोटी संख्या में ही लोग बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं, जिन्होंने परमेश्वर की आवाज सुनी है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया है, और जो मेमने की शादी की दावत में बैठे हैं। ईसाइयत में अधिकतर लोग न केवल परमेश्वर के कार्य के पदचिह्नों का अनुसरण करने में विफल रहे हैं, बल्कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य का प्रतिरोध और निंदा करने में अभी भी धार्मिक दुनिया की मसीह-विरोधी बुरी ताकतों का अनुसरण करते हैं। वे लंबे समय से पवित्र आत्मा के कार्य को खो चुके हैं, वे परमेश्वर द्वारा तिरस्कृत और अस्वीकृत किए जा चुके हैं, और दुख के आँसू बहाते हुए और अपने दाँत पीसते हुए आपदा में डूब चुके हैं।

पिछला: 1. प्रभु की वापसी के विषय में बाइबल में दी गई भविष्यवाणियाँ अब काफी हद तक पूरी हो चुकी हैं, और प्रभु यहाँ पहले से ही आ चुका हो सकता है। हम देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया सार्वजनिक रूप से ऑनलाइन गवाही दे रही है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी है, और सभी धर्मों और संप्रदायों के कई लोग जो वास्तव में प्रभु में विश्वास करते हैं और जो परमेश्वर के प्रकटन के लिए तरसते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास लौट आए हैं। हम जानना चाहेंगे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर, परमेश्वर का प्रकटन है या नहीं।

अगला: 1. प्रभु यीशु के आगमन से पहले, फरीसी प्रायः धर्मग्रंथों को सभाओं में उजागर करते थे और लोगों के सामने प्रार्थना किया करते थे। वे बहुत पवित्र दिखाई देते थे, और, लोगों की नज़रों में, ऐसा नहीं लगता था कि वे कुछ भी ऐसा करते थे जिसमें पवित्रशास्त्र का उल्लंघन होता हो। तो फरीसियों को प्रभु यीशु ने श्राप क्यों दिया था? वे किन तरीकों से परमेश्वर की अवहेलना करते थे, उन्होंने परमेश्वर के क्रोध को क्यों उकसाया?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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