6. हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचन पढ़े हैं। उनमें अधिकार और शक्ति हैं, और वे वास्तव में परमेश्वर की आवाज़ हैं। फिर भी पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि बाइबल में यह लिखा है, "मुझे आश्चर्य होता है कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह में बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु यदि हम, या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो शापित हो" (गलातियों 1:6-8)। पौलुस द्वारा बोले गए इन शब्दों के कारण, पादरी और एल्डर्स कहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में हमारा विश्वास प्रभु यीशु के नाम से, और प्रभु यीशु के रास्ते से, भटक जाता है। वे कहते हैं कि हम दूसरे सुसमाचार में विश्वास करते हैं, और यह धर्मत्याग है, प्रभु के प्रति विश्वासघात है। हालाँकि हमें यह तो लगता है कि वे जो कहते हैं वह ग़लत है, (फिर भी) हम यह सुनिश्चित रूप से नहीं कह सकते हैं कि वे किस तरह ग़लत हैं। कृपया इस बारे में हमारे साथ सहभागिता करें।
उत्तर :
पौलुस के इन वचनों के आधार पर पादरी और एल्डर कहते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ है प्रभु यीशु के नाम से मुँह मोड़ना, दूसरे सुसमाचार में विश्वास करना, प्रभु को धोखा देना। लेकिन क्या पौलुस के शब्दों की उनके द्वारा की गयी व्याख्या सही है? बाइबल पढ़ने के बाद बहुत-से लोग सत्य की तलाश नहीं करते, और उस समय के संदर्भ पर ध्यान न देकर वे पूरे अंधेपन के साथ, मनमर्जी से और सनक में आकर नियम थोपते हैं, जो आसानी से लोगों को मूर्ख बना देते हैं और गुमराह कर देते हैं। यदि पादरी और एल्डर बाइबल को संदर्भ से हटकर उद्धृत करते हैं, तो उनके लिए सच्चे मार्ग की जाँच करने वालों के बीच भ्रम पैदा करना आसान है। वास्तव में, पौलुस के शब्दों का एक संदर्भ था : अनुग्रह के युग में केवल एक ही सुसमाचार था, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य का सुसमाचार। जब लोगों ने अन्य तरीकों का प्रचार किया—प्रभु यीशु के सुसमाचार से भिन्न सुसमाचारों का—तो वे "दूसरे सुसमाचार" थे, सुसमाचार जो लोगों को धोखा देते थे। और जिन लोगों को प्रभु यीशु का नाम स्वीकार करने के बाद दूसरे सुसमाचार का अनुसरण करने के लिए धोखा दिया गया था, उन्होंने प्रभु के साथ विश्वासघात किया। जब पौलुस ने ये बातें कहीं, तब तक परमेश्वर ने अंत के दिनों का काम नहीं किया था, न ही कोई ऐसा था जो अंत के दिनों के सुसमाचार का प्रचार करता। तो स्पष्ट रूप से, जिस "दूसरे सुसमाचार" के बारे में पौलुस ने कहा, वह निश्चित रूप से अंत के दिनों के दौरान प्रभु की वापसी का सुसमाचार नहीं था, बल्कि वे उन झूठे मसीहों द्वारा प्रचारित सुसमाचार थे, जो प्रभु यीशु के प्रकट होने और अपना कार्य करने के दौरान उभरे थे। उस समय का कोई भी ऐतिहासिक अध्ययन निश्चित रूप से ऐसी ही स्थिति प्रकट करेगा। वास्तव में, पौलुस ने कभी नहीं कहा कि प्रभु के लौटने पर राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना गलत है, और उसने यह कहने की हिम्मत तो बिलकुल भी नहीं की कि यदि लोग लौटे हुए प्रभु यीशु—सर्वशक्तिमान परमेश्वर—के अंत के दिनों के सुसमाचार को स्वीकार करते हैं, तो वे प्रभु के साथ विश्वासघात करेंगे। फिर भी धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर अनुग्रह के युग की कलीसियाओं के लिए पौलुस के वचनों का उपयोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की निंदा करने के लिए करते हैं। इसमें वे केवल बाइबल की गलत व्याख्या कर रहे हैं और उसे संदर्भ से हटकर उद्धृत कर रहे हैं, जो सचमुच हास्यास्पद और बेतुका है! जाहिर है, पादरी और एल्डर लोगों को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उन्हें सच्चे मार्ग की तलाश और जाँच करने से रोक सकें। यदि ऐसा होता जैसा वे कहते हैं, तो जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आया, और उसके प्रकटन और कार्य को देखकर यहोवा में विश्वास करने वाले बहुत-से लोग प्रभु यीशु का अनुसरण करने लगे और उसके उद्धार को स्वीकार करने लगे, तो क्या प्रभु यीशु का अनुसरण करने वाले ये लोग यहोवा को धोखा दे रहे थे और धर्मत्याग कर रहे थे? स्पष्ट है कि वे यहोवा को धोखा नहीं दे रहे थे, बल्कि परमेश्वर के पदचिह्नों पर चल रहे थे—वे परमेश्वर के प्रति वफादार थे। इस बीच, जो लोग हठपूर्वक व्यवस्था से चिपके रहे और जिन्होंने प्रभु यीशु के उद्धार को स्वीकार नहीं किया, वे शायद यहोवा के नाम की रक्षा करते हुए प्रतीत हुए हों, लेकिन परमेश्वर की दृष्टि में उन्होंने उसके विरुद्ध विद्रोह किया और उसके नए कार्य का विरोध किया; वे केवल उस कार्य पर टिके रहे, जो परमेश्वर ने अतीत में किया था, उन्होंने परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण नहीं किया, और उन्होंने परमेश्वर के वर्तमान वचनों और कार्य को स्वीकार या उनका पालन नहीं किया—वे ही वास्तविक धर्मत्यागी थे, जिनसे परमेश्वर ने घृणा की और जिन्हें अस्वीकार कर दिया।
प्रभु में विश्वास करने वाले हम यह गहराई से समझते हैं कि यद्यपि प्रभु में हमारे विश्वास का अर्थ है कि हमारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं, फिर भी हम उस स्थिति में रहते हैं जहाँ हम दिन में पाप करते हैं और रात में अपने पाप स्वीकार कर लेते हैं। अपनी शैतानी प्रकृति द्वारा नियंत्रित होकर हम अकसर अपने शैतानी स्वभाव प्रकट करते हैं, जैसे अहंकार और दंभ, कुटिलता और छल, स्वार्थ और नीचता; हम झूठ बोले बिना और पाप किए बिना, परमेश्वर के प्रति विद्रोह और उसका विरोध किए बिना नहीं रह पाते, और हम पाप के बंधनों और बेड़ियों से नहीं बच पाए हैं। जो पवित्र नहीं हैं, वे प्रभु से नहीं मिल सकते। परमेश्वर पवित्र है, तो फिर वह उन लोगों को अपने राज्य में प्रवेश करने की अनुमति कैसे दे सकता है, जो शैतान के स्वभावों से भरे हुए हैं और जिनके द्वारा उसके खिलाफ विद्रोह और उसका विरोध किए जाने की संभावना है? और इसलिए, अंत के दिनों के राज्य के युग के आगमन के साथ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु के कार्य की नींव पर एक नए, उच्च कार्य : अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का न्याय करने और उसे निर्मल बनाने के कार्य का चरण निष्पादित करता है। कार्य के इस चरण में परमेश्वर मनुष्य की पापी प्रकृति और उसके भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने के लिए सत्य व्यक्त करता है, जिससे मनुष्य को परमेश्वर द्वारा हमेशा के लिए निर्मल किया और बचाया जा सके, और उसे परमेश्वर के राज्य में लाया जा सके। यह बाइबल की इन भविष्यवाणियों को पूरा करता है : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। "जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:48)। "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। इस प्रकार, जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करते हैं, वे प्रभु यीशु के साथ विश्वासघात या धर्मत्याग नहीं कर रहे। इसके बजाय, वे परमेश्वर की वाणी सुनते हैं और मेमने के पदचिह्नों पर चलते हैं; केवल वही लोग बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं, और वही हैं जो परमेश्वर के सामने उसके भोज में शामिल होने के लिए उन्नत किए जाते हैं।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "चूँकि मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए उसे परमेश्वर के पदचिह्नों का, कदम-दर-कदम, निकट से अनुसरण करना चाहिए; और उसे 'जहाँ कहीं मेमना जाता है, उसका अनुसरण करना' चाहिए। केवल ऐसे लोग ही सच्चे मार्ग को खोजते हैं, केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को जानते हैं। जो लोग शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों का ज्यों का त्यों अनुसरण करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा निष्कासित कर दिया गया है। प्रत्येक समयावधि में परमेश्वर नया कार्य आरंभ करेगा, और प्रत्येक अवधि में मनुष्य के बीच एक नई शुरुआत होगी। यदि मनुष्य केवल इन सत्यों का ही पालन करता है कि 'यहोवा ही परमेश्वर है' और 'यीशु ही मसीह है,' जो ऐसे सत्य हैं, जो केवल उनके अपने युग पर ही लागू होते हैं, तो मनुष्य कभी भी पवित्र आत्मा के कार्य के साथ कदम नहीं मिला पाएगा, और वह हमेशा पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने में अक्षम रहेगा। परमेश्वर चाहे कैसे भी कार्य करता हो, मनुष्य बिना किसी संदेह के अनुसरण करता है, और वह निकट से अनुसरण करता है। इस तरह, मनुष्य पवित्र आत्मा द्वारा कैसे निष्कासित किया जा सकता है? परमेश्वर चाहे जो भी करे, जब तक मनुष्य निश्चित है कि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, और बिना किसी आशंका के पवित्र आत्मा के कार्य में सहयोग करता है, और परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने का प्रयास करता है, तो उसे कैसे दंड दिया जा सकता है? परमेश्वर का कार्य कभी नहीं रुका है, उसके कदम कभी नहीं थमे हैं, और अपने प्रबंधन-कार्य की पूर्णता से पहले वह सदैव व्यस्त रहा है और कभी नहीं रुकता। किंतु मनुष्य अलग है : पवित्र आत्मा के कार्य का थोड़ा-सा अंश प्राप्त करने के बाद वह उसके साथ इस तरह व्यवहार करता है मानो वह कभी नहीं बदलेगा; जरा-सा ज्ञान प्राप्त करने के बाद वह परमेश्वर के नए कार्य के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए आगे नहीं बढ़ता; परमेश्वर के कार्य का थोड़ा-सा ही अंश देखने के बाद वह तुरंत ही परमेश्वर को लकड़ी की एक विशिष्ट आकृति के रूप में निर्धारित कर देता है, और यह मानता है कि परमेश्वर सदैव उसी रूप में बना रहेगा जिसे वह अपने सामने देखता है, कि यह अतीत में भी ऐसा ही था और भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा; सिर्फ एक सतही ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य इतना घमंडी हो जाता है कि स्वयं को भूल जाता है और परमेश्वर के स्वभाव और अस्तित्व के बारे में बेहूदा ढंग से घोषणा करने लगता है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं होता; और पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण के बारे में निश्चित हो जाने के बाद, परमेश्वर के नए कार्य की घोषणा करने वाला यह व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार का क्यों न हो, मनुष्य उसे स्वीकार नहीं करता। ये ऐसे लोग हैं, जो पवित्र आत्मा के नए कार्य को स्वीकार नहीं कर सकते; वे बहुत रूढ़िवादी हैं और नई चीज़ों को स्वीकार करने में अक्षम हैं। ये वे लोग हैं, जो परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, किंतु परमेश्वर को अस्वीकार भी करते हैं। मनुष्य का मानना है कि इस्राएलियों का 'केवल यहोवा में विश्वास करना और यीशु में विश्वास न करना' ग़लत था, किंतु अधिकतर लोग ऐसी ही भूमिका निभाते हैं, जिसमें वे 'केवल यहोवा में विश्वास करते हैं और यीशु को अस्वीकार करते हैं' और 'मसीहा के लौटने की लालसा करते हैं, किंतु उस मसीहा का विरोध करते हैं जिसे यीशु कहते हैं।' तो कोई आश्चर्य नहीं कि लोग पवित्र आत्मा के कार्य के एक चरण को स्वीकार करने के पश्चात् अभी भी शैतान के अधिकार-क्षेत्र में जीते हैं, और अभी भी परमेश्वर के आशीष प्राप्त नहीं करते। क्या यह मनुष्य की विद्रोहशीलता का परिणाम नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का अभ्यास)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें दिखाते हैं कि परमेश्वर हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता, और मानवजाति को बचाने का उसका कार्य कभी-भी आगे बढ़ना बंद नहीं करता। यदि, नए युग में, हम अभी भी परमेश्वर के पिछले कार्य से चिपके रहते हैं और परमेश्वर के नए कार्य को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, तो हम बहुत आसानी से वे लोग बन जाएँगे जो परमेश्वर में विश्वास करने के बावजूद उसका विरोध करते हैं, और जो पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा हटा दिए जाते हैं। सदियों पहले, चूँकि फरीसी परमेश्वर के पुराने नियम के युग के कार्य से चिपके हुए थे, चूँकि उन्होंने प्रभु यीशु के कार्य का विरोध और उसकी निंदा की थी, और उसे सूली पर चढ़ा दिया था—एक जघन्य पाप किया था—इसलिए उन्हें परमेश्वर के शाप और दंड मिले थे। तो अब हमें अंत के दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? हम सभी को इस पर ध्यान से विचार करना चाहिए!