मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग चार)

II. मसीह-विरोधियों के हित

आज हम हमारी पिछली सभा के विषय पर संगति जारी रखेंगे। पिछली बार हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की नौवीं मद के तहत मसीह-विरोधियों के हितों के दूसरे खंड पर संगति की थी। इस खंड में हमने उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में संगति की थी, है ना? (सही है।) जरा फिर से सोचो और मुझे इसका एक अनुमानित सारांश दो। हमने मसीह-विरोधियों की अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में मुख्य रूप से कितने बिंदुओं पर संगति की थी? (पिछली बार परमेश्वर ने दो बिंदुओं पर संगति की थी। पहला बिंदु काट-छाँट किए जाने के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये के बारे में था। मसीह-विरोधी कभी भी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं कर सकते या उसके प्रति समर्पण नहीं कर सकते, न ही वे इसे सत्य के रूप में स्वीकार सकते हैं। दूसरा बिंदु यह था कि मसीह-विरोधी लोगों के समूह में अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा कैसे करते हैं और उनकी क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं। मसीह-विरोधियों का सार प्रतिस्पर्धा करना है, और उन्हें अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करनी ही है।) तो आओ, आज इस विषय पर संगति जारी रखें। पिछली बार मैंने तुम लोगों को क्या काम दिया था? हमारी सभा के बाद मैंने तुम लोगों से किस विषय पर चिंतन और संगति करने के लिए कहा था? क्या तुम्हें याद है? (परमेश्वर ने हमसे खुद की तुलना करने के लिए मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर संगति और गहन-विश्लेषण करने के लिए कहा था, ताकि हम देख सकें कि मसीह-विरोधियों के कौन-से स्वभाव हमारे अंदर हैं, और हम चीजों को करने के लिए मसीह-विरोधियों की कौन-सी प्रकृति पर निर्भर होते हैं।) यह मुख्य विषय था। उप-विषय किस बारे में था? (यही कि मसीह-विरोधी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करते हुए कौन-सी प्रतिस्पर्धी प्रकृतियाँ प्रदर्शित करते हैं, और यह इनसे अपनी तुलना करने के बारे में भी था ताकि हम देख सकें कि अपने वास्तविक जीवन में हम उन्हें कैसे प्रकट करते हैं, और प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर हम चीजों को कैसे करते हैं, क्या कहते हैं, और क्या करते हैं, और साथ ही अपने रुतबे की रक्षा करने के लिए, हम भाई-बहनों से शोहरत और लाभ की होड़ करने की कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं।) क्या कोई और इस बारे में कुछ कह सकता है? (परमेश्वर ने हमें मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों पर संगति करते समय हमेशा इस बारे में बात करने से मना किया था कि दूसरे लोग कैसे हैं, इसके बजाय परमेश्वर ने हमें उनसे अपनी तुलना करने और इस बारे में संगति करने को कहा था कि हमारे पास ऐसे कौन-से स्वभाव और खुलासे हैं जो मसीह-विरोधियों के जैसे हैं।) यह काफी है। मसीह-विरोधी लोगों के समूह में कैसे काम करते हैं इसका आदर्श वाक्य क्या था, जिस पर हमने पिछली बार संगति की थी? क्या इसने तुम लोगों पर कोई छाप नहीं छोड़ी? (उनका आदर्श वाक्य है, “मुझे प्रतिस्पर्धा करनी होगी! प्रतिस्पर्धा करनी होगी! प्रतिस्पर्धा करनी होगी!”) तुम्हें यह याद है। तुम्हें इसे कैसे याद रख पाए? (क्योंकि मसीह-विरोधियों का यह आदर्श वाक्य, जिसके बारे में परमेश्वर ने बताया, “मुझे प्रतिस्पर्धा करनी होगी! प्रतिस्पर्धा करनी होगी! प्रतिस्पर्धा करनी होगी!” कुछ ऐसा है जिसे मैं खुद आमतौर पर अभिव्यक्त करता हूँ और अक्सर प्रकट करता हूँ। साथ ही, परमेश्वर की संगति का लहजा काफी स्पष्ट था, और जिस तरह से परमेश्वर ने इन वचनों को व्यक्त किया वह मेरे अपने दिल की स्थिति से मेल खाता था, इसलिए इसने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी।) कभी-कभी, जब मैं मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनके विभिन्न प्रकार के प्रकृति सार पर संगति करता हूँ और उनका गहन-विश्लेषण करता हूँ, तो मैं थोड़ी रोजमर्रा की भाषा के साथ-साथ कुछ ऐसे लहजे और तरीके भी इस्तेमाल करता हूँ जिन्हें लोगों के लिए स्वीकारना आसान होता है, और जो लोगों पर गहरी छाप छोड़ते हैं, और मैं कुछ ऐसे उदाहरणों का भी उपयोग करता हूँ जो वास्तविक जीवन के काफी करीब होते हैं। ऐसा करने से लोगों को मसीह-विरोधियों का सार जानने और खुद को जानने में वाकई बहुत मदद मिलती है। यह लोगों के लिए खुद को जानने और अपने वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने के लिए भी फायदेमंद है, और यह मसीह-विरोधियों की तरह के स्वभाव को बदलने के लिए और भी अधिक अनुकूल है, है ना? (बिल्कुल है।) तुम लोगों ने पिछली संगति का लगभग सही सारांश दिया है, मगर विवरण इन बातों से बढ़कर है—और भी बहुत सारे विवरण हैं। तुम लोगों को संगति सुनने के बाद एक सारांश तैयार करना चाहिए। कम से कम, संगति सुनने के बाद, तुम लोगों को एक साथ इकट्ठा होकर इसे कई बार फिर से सुनना चाहिए, और फिर हर कोई साथ मिलकर सारांश तैयार कर सकता है। हमारी पिछली संगति के बारे में तुम लोगों का सारांश सुनने के बाद, मैं कह सकता हूँ कि सबकी याददाश्त थोड़ी फीकी पड़ गई है, ऐसा लगता है जैसे तुमने एक या दो साल पहले यह संगति सुनी थी और इसने तुम पर कोई छाप नहीं छोड़ी। मुमकिन है कि तुम्हारे पास किसी खंड की कुछ अवधारणा और प्रभाव, एक या दो वाक्य या एक या दो बातें बची हों, मगर ऐसा लगता है कि ज्यादातर लोगों के पास मसीह-विरोधियों को उजागर करने के लिए आवश्यक ज्ञान और गहन-विश्लेषण की कोई अवधारणा या प्रभाव नहीं है। इसलिए जिन मुद्दों पर हमने चर्चा की है उनके बारे में तुम लोगों को आपस में ज्यादा चिंतन-मनन और संगति करनी होगी। उन्हें गंभीरता से लिए बिना केवल उन्हें सुनकर एक तरफ मत रख दो। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम लोगों का सत्य में प्रवेश बहुत धीमा होगा—इन धर्मोपदेशों पर चिंतन-मनन नहीं करने से काम नहीं चलेगा! तो, तुम लोग अपने कलीसियाई जीवन में इन धर्मोपदेशों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हो? क्या तुम लोग हर हफ्ते अपनी सभाओं में इन धर्मोपदेशों पर संगति करते हो? या क्या तुम नए धर्मोपदेशों और संगतियों को कई बार सुनते हो, ताकि तुममें से ज्यादातर लोगों पर उनका प्रभाव पड़े और गहन ज्ञान प्राप्त हो, और फिर उनके जरिये सत्य को समझ सको? क्या तुम ऐसा करते हो? (परमेश्वर, हर हफ्ते हमारी सभाओं में हम पहले परमेश्वर की नई संगतियों को खाते-पीते हैं।) कलीसिया के अगुआओं, प्रचारकों और निर्णय लेने वाले समूहों में कलीसियाई जीवन के प्रभारी लोगों को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए; केवल इसी तरह से कलीसिया का कार्य अच्छे से किया जा सकता है।

ग. अपने लाभों के लिए षड्यंत्र करना

1. परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना

आज हम मसीह-विरोधियों के हितों के तीसरे खंड—लाभ पर संगति करेंगे। लाभ क्या होते हैं? (आशीष पाना, और हित।) यह बहुत साधारण व्याख्या है; यह शाब्दिक अर्थ है। थोड़ा और समझाओ—लाभ क्या होते हैं? (लाभ वे भौतिक और गैर-भौतिक हित, वांछनीय चीजें और सुविधाएँ हैं जो लोग अपना कर्तव्य करके या दुनिया में काम करके हासिल कर सकते हैं।) यह व्याख्या सही है। लाभ एक तरह के अच्छे व्यवहार हैं जो लोगों को उनके वेतन के अतिरिक्त मिलते हैं, और इसमें रोजमर्रा की जरूरत की चीजें, भोजन या कूपन आदि शामिल हैं। वे ऐसी सुविधाएँ और भौतिक या गैर-भौतिक व्यवहार भी हैं जो किसी व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने के दौरान मिलते हैं; ये सभी चीजें लाभ हैं। अब मैंने इस शब्द का अर्थ समझा दिया है, तो क्या तुम लोग उन विषय-क्षेत्रों, उदाहरणों और अभिव्यक्तियों के बारे में जानते हो जिन पर हम इस खंड में संगति करेंगे? कुछ लोगों के व्यवहार और क्रियाकलाप अभी तुम लोगों के मन में कौंध रहे हैं, साथ ही उन लोगों के भी जो ये काम कर सकते हैं, है ना? सबसे पहले तुम्हें कौन से लोग याद आते हैं? (वे लोग जो कलीसिया के सहारे जीने के लिए रुतबे का लाभ उठाते हैं।) ये एक प्रकार के लोग हैं। ये लोग अपने कर्तव्य भी करते हैं। उनमें से कुछ के पास रुतबा है, वे विभिन्न स्तरों पर अगुआ और कार्यकर्ता या सुपरवाइजर हैं, जबकि अन्य लोग सामान्य काम करते हैं। उन सभी में कौन-सी अभिव्यक्ति एक समान है? अपने कर्तव्य करते हुए, वे लगातार कुछ काम करते हैं और अपने देह-सुख के लिए, अपने परिवार और अपने आनंद के लिए कुछ-न-कुछ करते रहते हैं। हर दिन वे भाग-दौड़ करते हैं और कीमत चुकाते हैं, और वे यह बात हमेशा ध्यान में रखते हैं कि इस काम को या इस कर्तव्य को करने से उन्हें कौन सी वांछनीय चीजें मिलेंगी। वे हमेशा इस बारे में योजना बनाते और हिसाब लगाते रहते हैं कि इससे उन्हें क्या-क्या सुविधाएँ और मनपसंद व्यवहार मिल सकते हैं। एक बार जब उन्हें पता चल जाता है तो वे इन चीजों को पाने के लिए कुछ भी करेंगे, और इससे भी बढ़कर, वे निश्चित रूप से इन सुविधाओं को और अपने लिए इन हितों को पाने का कोई भी मौका नहीं गँवाएँगे। इस मामले को लेकर तुम कह सकते हो कि वे निष्ठुर और भावनाशून्य हो जाते हैं, और निश्चित रूप से वे अपनी ईमानदारी और गरिमा पर बिल्कुल भी विचार नहीं करते। उन्हें यह डर नहीं है कि भाई-बहन उन्हें निराशा भरी नजरों से देख सकते हैं, और वे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं करते कि इसके कारण परमेश्वर उनका कैसे मूल्यांकन करेगा। वे बस चोरी-छिपे चिंतन-मनन करते और योजना बनाते हैं कि वे जो कर्तव्य कर रहे हैं उसका लाभ कैसे उठाया जाए ताकि वे सभी लाभकारी व्यवहारों का आनंद ले सकें। इस प्रकार, ऐसे लोगों के पास एक तरह का विचार और तर्क होता है, जिसे सतही तौर पर गलत नहीं माना जा सकता, जो यह है : “परमेश्वर का घर मेरा परिवार है, और मेरा परिवार परमेश्वर का घर है; जो मेरा है वह परमेश्वर का है, और जो परमेश्वर का है वह मेरा है। लोगों के कर्तव्य उनकी जिम्मेदारियाँ हैं, और वे सभी लाभ जो वे अपने कर्तव्यों से प्राप्त कर सकते हैं, वे परमेश्वर द्वारा दिए गए अनुग्रह हैं; लोग उन्हें ठुकरा नहीं सकते और लोगों को उन्हें परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए। अगर मैं उन्हें प्राप्त नहीं करता हूँ तो कोई और करेगा, इसलिए बेहतर होगा कि मैं आगे बढ़कर इन लाभों का आनंद लूँ और विनम्र होने का दिखावा न करूँ, और मुझे निश्चित रूप से विनम्रतापूर्वक कुछ भी ठुकराना नहीं चाहिए। मुझे बस इन लाभों को पाने की कोशिश करनी होगी और उन्हें विनम्र दिल और स्पष्ट रवैये से स्वीकारने के लिए अपना हाथ बढ़ाना होगा।” वे ऐसे लाभों को एक तरह के व्यवहार के रूप में देखते हैं जिसके वे स्वाभाविक रूप से हकदार हैं और जो उन्हें हथियाना ही चाहिए; यह वैसा ही है जैसे जब कोई व्यक्ति काम करता है, अपना समय लगाता है और कड़ी मेहनत करता है, तो उसे लगता है कि उसे मिलने वाला वेतन और पारिश्रमिक उसका उचित हिस्सा है। तो, भले ही उसने इन चीजों का गबन किया हो और उन्हें पाने की कोशिश करके इन लाभों को प्राप्त किया हो, वे इसे गलत या ऐसा कुछ नहीं मानते जिससे परमेश्वर घृणा करता है, और वे इस बात की परवाह तो बिल्कुल नहीं करते कि भाई-बहनों की उनके बारे में कोई राय है या नहीं। मसीह-विरोधी इन सभी चीजों का आनंद लेते हैं, वे इन चीजों को पाने की कोशिश करते हैं, और इससे भी बढ़कर, वे हर दिन अपने दिल में इन सभी चीजों के लिए योजना बनाते हैं, मानो ऐसा करना पूरी तरह से सही और स्वाभाविक हो। यह मसीह-विरोधी लोगों की अपने कर्तव्य करने की नियमित स्थिति है, और यह मसीह-विरोधी लोगों की अपने कर्तव्य करते हुए अपने निजी हितों के लिए तरकीब निकालने की नियमित स्थिति भी है। तो, मसीह-विरोधियों की मानसिकता कैसी होती है? “जब लोग अपना कर्तव्य करते हैं तो वे बदले में कुछ पाने की कोशिश करते हैं। क्योंकि मैंने यह कर्तव्य करने के लिए अपना परिवार त्याग दिया, और क्योंकि मैंने परमेश्वर और उसके घर के लिए अपनी कड़ी मेहनत, ऊर्जा और समय दिया है, इसलिए मुझे लोगों से अच्छे व्यवहार मिलने चाहिए जो मैं चाहता हूँ।” मसीह-विरोधी इन सभी को ऐसी चीजों के रूप में देखते हैं जिनके वे स्वाभाविक रूप से हकदार हैं, ऐसी चीजें जिन्हें परमेश्वर को लोगों को अपने आपदे देनी चाहिए और इसके लिए लोगों को कोशिश करने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। यह मसीह-विरोधियों का दृष्टिकोण है। और इसलिए, अपना कर्तव्य करते हुए, वे लगातार लाभ पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं, और हमेशा इस बात से डरते हैं कि उनमें से कोई लाभ किसी और को मिल जाएगा और उनके लिए कम ही लाभ बचेंगे। यह मसीह-विरोधियों की अपने कर्तव्य करने की स्थिति है। अपना कर्तव्य करने के पीछे उनके इरादे, मंशाएँ, और लक्ष्य अंततः किस पर आकर टिक जाते हैं? वे अपने लिए सभी लाभ हासिल करने के चक्कर में षड्यंत्र रचते हैं और सोचते हैं कि अगर ऐसा नहीं किया तो वे बड़े बेवकूफ होंगे और जीवन का कोई अर्थ नहीं होगा। यही मसीह-विरोधियों की मानसिकता है।

परमेश्वर मसीह-विरोधियों की प्रकृति या सत्य से प्रेम न करने की उनकी अभिव्यक्तियों को चाहे कैसे भी उजागर करे, वे अपने इन इरादों और लक्ष्यों को नहीं त्यागेंगे; वे लाभ पाने की कोशिश करते रहेंगे। उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो कलीसिया या भाई-बहन मेजबान परिवार के लिए कुछ खाद्य पदार्थ या उपकरण खरीदेंगे या उन्हें कुछ पैसे भी देंगे। अगर यह कर्तव्य निभाने वाला व्यक्ति एक मसीह-विरोधी है, तो वह अपने लिए जो वांछनीय चीजें पाने की कोशिश करेगा, वे महज माचिस या छोटी चम्मच जैसी साधारण चीजें नहीं होंगी। वे कहते हैं, “मैं इन भाई-बहनों की मेजबानी करने के लिए अपना घर दे रहा हूँ, और उनके कर्तव्य करने के दौरान उनकी सेवा कर रहा हूँ, इसलिए परमेश्वर के घर को बेशक सभी सामग्री और पैसे देने चाहिए। मैं तुम्हें अपना घर दे रहा हूँ, तुम लोगों के लिए खाना बना रहा हूँ और तुम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा हूँ; यह पहले ही बहुत अच्छा है। जहाँ तक बाकी चीजों की बात है—तुम लोगों के खाने-पीने और इस्तेमाल की चीजें—ये कलीसिया द्वारा दी जानी चाहिए।” वास्तव में यह गलत नहीं है कि कलीसिया ये चीजें उपलब्ध कराएगी, मगर मैं यहाँ जिस बात पर संगति करना चाहता हूँ, वह यह है कि मसीह-विरोधी जिस प्रकार मेजबानी का कर्तव्य करते हैं और दूसरे लोग जिस प्रकार ईमानदारी से यह कर्तव्य करते हैं, दोनों के बीच क्या अंतर है। जब मसीह-विरोधी मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, तो इस क्रियाकलाप को सिर्फ देखकर समझा नहीं जा सकता; उनकी अपनी छिपी हुई मंशाएँ होती हैं। वे सोचते हैं, “मैं यह मेजबानी का कर्तव्य कर रहा हूँ, तो मुझे इससे कुछ पाने के लिए षड्यंत्र करना ही होगा। कलीसिया थोड़ा भोजन और कुछ अन्य जरूरी चीजें उपलब्ध करा रही है, तो भाई-बहनों के साथ-साथ मेरे परिवार के सदस्य भी वह भोजन खाएँगे और अपनी मर्जी से उन सारी चीजों का उपयोग करेंगे। मेरा परिवार परमेश्वर के घर के लिए है, इसलिए जो परमेश्वर के घर का है, वह मेरे परिवार का भी है।” मसीह-विरोधी इसी रवैये के साथ अपने कर्तव्य करते हैं, है ना? (बिल्कुल।) इसलिए, जब कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य करना शुरू करते हैं तो उनके दिल बदलने लगते हैं, वे लगातार उन भौतिक चीजों और पैसों के बारे में सोचते हैं जो भाई-बहनों की मेजबानी में इस्तेमाल किए जाते हैं, और अगर कोई इन चीजों पर ध्यान नहीं देता, तो इन मसीह-विरोधियों को कुछ लाभ पाने का अवसर मिल जाता है। किस तरह का अवसर? वे चोरी-छिपे हिसाब लगाएँगे, “एक व्यक्ति एक दिन में इतना खर्च करता है, तो जो भी पैसा बचेगा, मैं कलीसिया को वापस नहीं दूँगा; मैं इसे अपने पास रखूँगा। कम से कम यह पैसा मैंने कमाया है, तो कोई मुझे इसे अपने पास रखने के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता; बेशक मैं इसी का हकदार हूँ!” फिर वे बचे हुए पैसे अपनी जेब में डाल लेंगे। कुछ मसीह-विरोधी भाई-बहनों द्वारा दान में दी गई या परमेश्वर के घर द्वारा दी गई कुछ भौतिक चीजों को अपने पास रखने के लिए सभी तरह के बहाने ढूँढ़ेंगे। कुछ जगहों पर, जब भाई-बहन फिर से वहाँ रहने जाते हैं, तो बिस्तर का गद्दा गायब हो जाता है, तकिए और रजाई गायब हो जाती हैं, माँस और सब्जियाँ गायब हो जाती हैं, और जब वे अपने मेजबानों से इस बारे में पूछते हैं, तो ये मसीह-विरोधी कहते हैं, “अगर भोजन को लंबे समय तक बचाकर रते, तो इसका स्वाद खराब हो जाता, इसलिए हमने इसे खा लिया।” क्या ये लालची लोग नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) जैसे ही परमेश्वर के घर द्वारा दी गई भौतिक चीजें, और साथ ही भाई-बहनों द्वारा मेजबान परिवार के लिए खरीदी गई चीजें, इन मसीह-विरोधियों के आस-पास लाई जाती हैं, वे उनकी हो जाती हैं; वे अपने हिसाब से उन्हें इस्तेमाल करते हैं या खाते हैं, या यहाँ तक कि उन्हें सीधे तौर पर अपनी संपत्ति मानकर छिपा देते हैं। जब भाई-बहन फिर से वहाँ जाते हैं, तो ये चीजें कहीं दिखाई नहीं देतीं। अगर कलीसिया को फिर से इन मसीह-विरोधियों के घरों का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े, तो उसे उन चीजों को फिर से खरीदने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं, और भाई-बहनों को फिर से उन चीजों को उनके घर लाना पड़ता है। यह देखकर, मसीह-विरोधी खुश हो जाते हैं, और सोचते हैं, “परमेश्वर में विश्वास करना वाकई बहुत बढ़िया है! मैं कोई और काम करके इतनी जल्दी अमीर नहीं बन सकता; यह चीजें पाने का अब तक का सबसे सुविधाजनक तरीका है। साथ ही, कोई पुलिस को रिपोर्ट करने की हिम्मत भी नहीं करेगा कि ये कलीसिया की चीजें गायब हो गई हैं; अगर तुम वास्तव में मेरी रिपोर्ट करने की कोशिश करोगे, तो पहले मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा! इसलिए तुम चुपचाप यह सब देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते, तुम कहीं भी इसके बारे में शिकायात नहीं कर सकते। मैंने इन चीजों पर कब्जा किया है और यह खाना खाया है। बताओ क्या कर लोगे तुम मेरे साथ? परमेश्वर किसी को पसंद-नापसंद नहीं करता। मैं भाई-बहनों की मेजबानी के लिए अपना घर दे रहा हूँ, तो यही मेरा योगदान है, और परमेश्वर इसके लिए मुझे याद रखेगा। अगर मैं इसमें से थोड़ा-सा ले लूँ तो डरने की क्या बात है? मैं इसका हकदार हूँ! इसमें से थोड़ा भोजन खा लेने में किस बात का डर है? क्या बात है, तुम लोगों को इसे खाने की अनुमति है मगर मुझे नहीं है? तुम लोग परमेश्वर के घर के सदस्य हो, तो क्या मैं भी नहीं हूँ? मैं न केवल इस स्थिति का फायदा उठाऊँगा, बल्कि खुद ये चीजें खाऊँगा और अकेले ही इनका इस्तेमाल करूँगा!” अपने कर्तव्यों के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया है। अपने कर्तव्य करने में, उनका लक्ष्य इन चीजों को पाना है, और वे इन्हें सबसे बड़े लाभ मानते हैं, और कहते हैं, “ये परमेश्वर द्वारा दिए गए सबसे बड़े अनुग्रह हैं; इस अनुग्रह से अधिक मूर्त कुछ भी नहीं है, और इस आशीष से ज्यादा वास्तविक और मूर्त रूप में लाभकारी कुछ भी नहीं है। यह बहुत ही बढ़िया है! हर कोई कहता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का मतलब है, ‘इस जीवन में सौ गुना और आने वाली दुनिया में अनंत जीवन पाएँगे’; इससे यह कहावत चरितार्थ होती है। मैं अब इस आशीष का पूर्वानुभव ले रहा हूँ। यह वाकई परमेश्वर की दयालुता है!” इस प्रकार, मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर की चीजों पर कब्जा करने में कोई संकोच नहीं करते, और वे क्रूरता से सब कुछ छीन लेते हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर की इन संपत्तियों को कैसे देखते हैं? वे उन्हें अविश्वासियों की सार्वजनिक संपत्ति जैसा मानते हैं; वे सभी लालची हैं, वे सभी लोग परमेश्वर के घर की चीजों को अपने पास रख लेना चाहते हैं, और फिर भी वे अभी भी मानते हैं कि ये अनुग्रह और आशीष हैं जिनका वे अपने कर्तव्य करने के लिए आनंद लेने के हकदार हैं। इतना ही नहीं, उन्हें इस बारे में कभी कोई पछतावा या शर्म तक महसूस नहीं होती, न ही वे खुद की दुष्टता को या ईमानदारी की कमी को पहचानते हैं। इनमें से कुछ मसीह-विरोधी तो और भी ज्यादा लालची और महत्वाकांक्षी हो जाते हैं। मेजबानी के अपने कर्तव्य करते हुए, उन्हें कभी नहीं लगता कि परमेश्वर उनके क्रियाकलापों से घृणा करेगा या उनसे नाराज होगा। इसके बजाय, वे बस यह सोचते हुए अपने मन में हिसाब लगाते रहते हैं और तुलना करते रहते हैं कि “उस परिवार ने मेजबान के रूप में काम किया और उसे वे चीजें मिलीं। अगर मैं उन लोगों की मेजबानी करता, तो वे चीजें सही मायने में मेरी होतीं। वह मेजबान मुझसे ज्यादा आरामदायक जीवन जीता है, और बेहतर खाना भी खाता है। मैंने भी इस तरह का फायदा कैसे नहीं उठाया?” वे भी इन चीजों का हिसाब लगाते हैं और इनकी होड़ करते हैं। जैसे ही कोई अवसर मिलता है, वे कोई दया नहीं दिखाते और उस अवसर को बिल्कुल भी नहीं छोड़ते। इस प्रकार, जब मसीह-विरोधी मेजबानी का कर्तव्य निभा रहे होते हैं, तो वे लालच करते हैं और जो कुछ भी उनके हाथ में आ सकता है, उस पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं—इनमें जूते के तले की जोड़ी जैसी छोटी चीज से लेकर परमेश्वर के घर द्वारा खरीदे गए उपकरण जैसी बड़ी चीज तक शामिल है। वे अपने कर्तव्य करने के अवसर का फायदा उठाकर चीजों को हड़पने के लिए तरह-तरह के बहाने और तरीके ढूँढ़ते हैं, परमेश्वर के घर की संपत्ति का दुरुपयोग करते हैं, और बेशर्मी से कहते हैं कि वे ऐसा सिर्फ परमेश्वर के घर की संपत्तियों की रक्षा करने के लिए कर रहे हैं, और अपने कर्तव्य करने के लिए वे इन चीजों को पाने के हकदार हैं। ये चीजें उन लोगों के बीच होती हैं जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं।

जब मसीह-विरोधी मेजबानी का अपना कर्तव्य कर रहे होते हैं, तो वे बाहर से यह दिखावा कर सकते हैं कि वे चीजों को लेने का लालच नहीं करते या चीजों को लेने की कोशिश नहीं करते, भाई-बहनों की मेजबानी के लिए कोई भी भुगतान लेने से इनकार करते हैं, और वे बेकार की चीजों को भी सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, जब परमेश्वर के घर की कीमती चीजों की बात आती है, तो वे उन्हें इस तरह से बिल्कुल भी नहीं जाने देंगे। मुमकिन है वे एक युआन की कीमत वाली कोई चीज सौंप दें, मगर सौ युआन, एक हजार युआन, दस हजार युआन या इससे भी ज्यादा कीमती किसी भी चीज को मजबूती से अपनी जेब में डाल लेंगे और उसे हड़प लेंगे। कुछ लोगों के लिए, परमेश्वर के घर की संपत्तियों की देखभाल करते हुए स्थानीय स्तर पर कोई खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है, और जो लोग जानते हैं कि वे ऐसा कर रहे हैं शायद कहीं और भाग जाते हैं या गिरफ्तार हो जाते हैं, और इसलिए उनके अलावा कोई भी इन संपत्तियों के बारे में नहीं जानता जिन्हें वे सुरक्षित रख रहे हैं—ऐसी ही स्थितियों में लोगों की परीक्षा होती है। जो लोग वास्तव में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं और अपने दिल में परमेश्वर का भय मानते हैं, वे हर समय अपने कर्तव्य का पालन कर सकते हैं, और उन्हें इन संपत्तियों का गलत इस्तेमाल करने का कोई विचार या ख्याल तक नहीं आएगा। लेकिन, मसीह-विरोधी ऐसे नहीं होते; वे अपने दिमाग खपाएँगे और इन संपत्तियों को हड़पने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे। जैसे ही उन लोगों के साथ कुछ होता है जो जानते हैं कि वे संपत्तियों की सुरक्षा कर रहे हैं, मसीह-विरोधी दिल से खुश होते हैं और खुशी से उछल पड़ते हैं। वे बिना किसी डर के तुरंत संपत्तियों को अपने कब्जे में कर लेते हैं, उन्हें किसी तरह का पछतावा या अपराध-बोध नहीं होता। कुछ मसीह-विरोधी इन संपत्तियों का इस्तेमाल अपने घरेलू खर्चों के लिए करते हैं और उन्हें मनमाने ढंग से बेच देते हैं, उनमें से कुछ अपने घर के लिए मनचाही चीजें खरीदने में तुरंत पैसे उड़ा देते हैं, और कुछ तो पैसे को सीधे अपने बैंक खाते में डालकर अपने पास रख लेते हैं। और जब भाई-बहन संपत्तियों को वापस लेने जाते हैं, तो क्या मसीह-विरोधी यह स्वीकारने में सक्षम होते हैं कि उन्होंने क्या किया है? मसीह-विरोधी इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। परमेश्वर में विश्वास करने और अपना कर्तव्य करने का उनका उद्देश्य बस वांछनीय चीजें पाना है, और इन वांछनीय चीजों में परमेश्वर की भेंटें, परमेश्वर के घर की संपत्ति और यहाँ तक कि भाई-बहनों की निजी संपत्ति भी शामिल है। इसलिए, मसीह-विरोधी लालच, इच्छा और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से अपना कर्तव्य करते हैं; वे सत्य का अनुसरण करने, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकारने या परमेश्वर का उद्धार स्वीकारने यहाँ नहीं आए हैं, बल्कि वे हर एक लाभ, सभी सुविधाओं और सभी संपत्तियों को पाने के लिए यहाँ आए हैं। इन लोगों को लालच और इच्छा से भरा हुआ कहा जा सकता है। वे किस पर अपना दिल लगाते हैं? वे परमेश्वर के घर की संपत्तियों पर अपना दिल लगाते हैं। इसलिए जब वे मेजबानी का कर्तव्य करते हैं, तो वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि परमेश्वर का घर किसके लिए क्या खरीदता है, परमेश्वर का घर किसे कितने पैसे देता है, और मेजबानी का कर्तव्य करने के लिए कुछ लोग परमेश्वर के घर और भाई-बहनों से कितने बड़े लाभ और कौन-सी वांछनीय चीजें हासिल करते हैं—इन चीजों पर वे अपनी नजर गड़ाए रखते हैं। अगर उनसे साधारण भाई-बहनों की मेजबानी करने के लिए कहा जाए और ऐसा करने से उन्हें कोई भी वांछनीय चीज न मिले, तो वे सभी तरह के बहाने बनाएँगे ताकि उन्हें ऐसा न करना पड़े। जैसे ही उन्हें किसी ऊँचे स्तर के अगुआ की मेजबानी करने के लिए कहा जाता है, उनका रवैया पूरी तरह बदल जाता है, वे मुस्कुराने लगते हैं, और अगुआ का बेसब्री से इंतजार करते हैं; वे इस “बड़ी हस्ती” को अपने घर आमंत्रित करने और इस अगुआ की परमेश्वर की तरह आराधना करने के लिए बेताब रहते हैं। उन्हें लगता है कि उनका जहाज आ गया है, कि यह उनकी दुधारू गाय है, और अगर उन्होंने यह मौका गँवा दिया तो उनके अमीर बनने का मौका चला जाएगा, तो वे इसे कैसे जाने दे सकते हैं? लालच, इच्छा, और परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गलत इस्तेमाल करने की प्रेरणा और इरादे के साथ, वे यह कर्तव्य स्वीकार लेते हैं जो उन्हें वांछनीय चीजें दिला सकता है—उनका अंतिम उद्देश्य क्या है? क्या यह अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करना है? क्या यह भाई-बहनों की अच्छी तरह से मेजबानी करना है? क्या यह अपनी निष्ठा दिखाना है? क्या यह सत्य हासिल करना है? नहीं, यह इनमें से कुछ भी नहीं है; वे इस अवसर का उपयोग वांछनीय चीजें पाने के लिए करना चाहते हैं। वे आम लोगों की मेजबानी नहीं करेंगे, मगर जब उन्हें पता चलेगा कि उन्हें किसी रुतबे वाले अगुआ या कार्यकर्ता की मेजबानी करनी है, तो वे ऐसा करने के लिए खुद को तैयार कर लेंगे, और फिर वे अपने लिए सभी तरह की रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और घरेलू उपकरण खरीदने के लिए परमेश्वर के घर से तरह-तरह के बहाने बनाएँगे, और कहेंगे, “जब अगुआ यहाँ रहने आएँगे, तो वे खराब हालत में नहीं रह सकते। क्या मेजबानी को सुविधाजनक बनाने के लिए सब कुछ तैयार नहीं करना चाहिए? परमेश्वर के घर द्वारा दी गई चीजों का आनंद हम नहीं लेते हैं; अगर हम लेते भी हैं तो बस अगुआओं के साथ थोड़ा-सी चीजों का आनंद लेते हैं। इसके अलावा, अगर कोई अगुआ आता है, तो मुझे डर है कि वह हमारे यहाँ रोज बनने वाला भोजन खाने का आदी नहीं होगा। अगुआओं को हर दिन बहुत-सी चीजों का प्रबंधन करना पड़ता है, और अगर वे अस्वस्थ हो गए, तो क्या हम मेजबान के रूप में अपने कर्तव्य में लापरवाह नहीं होंगे? इसलिए, कलीसिया को अगुआओं के लिए दिन में तीन बार भोजन तैयार करना चाहिए। हमें उनके लिए दूध, ब्रेड, अंडे और सभी प्रकार की सब्जियाँ, फल, माँस और स्वास्थ्य संबंधी पूरक चीजें तैयार रखने होंगी।” क्या यह एक शानदार और विचारशील सोच नहीं है? मसीह-विरोधी इंसानी भाषा तो बोलते हैं, मगर क्या वे वास्तव में अपने दिलों में अगुआओं के बारे में सोच रहे होते हैं? उनका असली उद्देश्य क्या है? उनका उद्देश्य इतना सरल नहीं है। वे गरीब हो सकते हैं और शायद उन्होंने पहले कभी अच्छी चीजें खाई या देखी नहीं हों, इसलिए वे इस मौके का फायदा अनुभव पाने, अमीरों की तरह रहने, ऐसा जीवन जीने के लिए करना चाहते हैं जहाँ उनकी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हों, वे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रख सकें, ऐसी चीजें खाएँ जो आम लोग नहीं खा सकते और ऐसे व्यवहार का आनंद लें जो आम लोगों को नहीं मिल सकता। इसलिए उनकी सोच इतनी विचारशील दिखाई देती है। मगर उनके विचारों के पीछे क्या छिपा है? वे अपनी खातिर षड्यंत्र रचना चाहते हैं, वे इन चीजों को पाना और हथियाना चाहते हैं, और वे निश्चित रूप से अपने षड्यंत्रों के हर एक पहलू पर काफी सोच-विचार कर रहे होते हैं—वे किसी और के लिए ऐसा नहीं करेंगे। और जब ये मसीह-विरोधी किसी अगुआ की मेजबानी करते हैं, तो वे वास्तव में अच्छा जीवन जी रहे होते हैं। बाद में, वे सोचते हैं, “इस तरह जीना बहुत अच्छा है, मगर ये चीजें वास्तव में मेरी नहीं हैं। ये चीजें कब मेरी होंगी? अगर मैं इस अगुआ से छुटकारा पा लूँ, तो मैं इन चीजों का आनंद नहीं ले पाऊँगा, लेकिन अगर मैं उससे छुटकारा नहीं पाऊँगा, तो वास्तव में मेरे पास उसकी मेजबानी करते रहने की सदिच्छा नहीं है। अगर इन वांछनीय चीजों की बात न होती, तो मैं यह कर्तव्य कभी नहीं करता। हर दिन, मुझे जल्दी उठना पड़ता है और देर से सोना पड़ता है, मैं हमेशा डरा रहता हूँ, और मुझे उसकी सेवा करनी पड़ती है। अब मैं हमेशा यही सोचता रहता हूँ कि इस कर्तव्य को करने से जितना लाभ होगा, उससे कहीं ज्यादा नुकसान होगा, और इससे मुझे मिलने वाले लाभ और आनंद पर्याप्त नहीं होंगे। अगर अगुआ यहाँ लंबे समय तक रहे, तो मैं क्या करूँगा? मुझे उसे भगाने का कोई तरीका सोचना होगा, और तब मैं अपने घर में फिर से शांति और सुकून से रह पाऊँगा।” क्या लोग ऐसा ही सोचते हैं? क्या सामान्य मानवता रखने वाले और ईमानदारी से अपना कर्तव्य करने वाले लोग ऐसा सोचेंगे? (नहीं।) मसीह-विरोधी ऐसा सोचते हैं। चाहे उन्हें कितनी भी बड़ी वांछनीय चीजें या लाभ क्यों न मिले, उनका लालच और इच्छा कभी भी तृप्त नहीं हो सकती; वे अतृप्त हैं, उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ नहीं पाया है, और यह कर्तव्य करना वह काम नहीं है जो उन्हें करना चाहिए। इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि यह एक अतिरिक्त त्याग और कीमत है। चाहे वे कितनी भी चीजें हासिल कर लें या उन्हें कितने भी बड़े लाभ मिलें, उन्हें लगता है कि उन्होंने कुछ खो दिया है और वास्तव में परमेश्वर का घर उनकी कीमत पर लाभ उठा रहा है, और भाई-बहन उनकी कीमत पर लाभ उठा रहे हैं, और उन्हें खुद इससे कोई भी वांछनीय चीज नहीं मिल रही है। जैसे-जैसे समय बीतता है, उन्हें लगता है कि ये वांछनीय चीजें उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकती और उनका लालच शांत नहीं हो सकता। मुझे बताओ, मसीह-विरोधियों में कौन-सी मानवता है? क्या उनमें कोई मानवता है भी? (नहीं।) और जिन लोगों में मानवता नहीं है क्या उन लोगों में जमीर होता है? क्या वे अपना कर्तव्य सच्चाई से निभाने की इच्छा रखते हुए कर सकते हैं, और साथ ही क्या वे अपना कर्तव्य विनम्र होने, ईमानदार होने और वास्तव में मेहनत करने की इच्छा रखते हुए निभा सकते हैं? क्या वे बिना भुगतान माँगे, बिना कोई पारिश्रमिक माँगे और बिना कोई इनाम माँगे अपना कर्तव्य कर सकते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं? क्योंकि उनका जमीर जिंदा नहीं है, और चाहे उन्हें कितने भी बड़े लाभ क्यों न मिलें, उन्हें लगता है कि वे इसके असली हकदार हैं। क्या यह “असली हकदार होना” कुछ ऐसा नहीं है जिसके बारे में सामान्य लोग सोच भी नहीं सकते और न ही वे कभी ऐसा सोचेंगे? क्या इस तरह के विचार और रवैये में शर्म की कोई भी भावना होती है? (नहीं।) क्या बेशर्म लोगों में कोई मानवता होती है? यह मामला मसीह-विरोधियों की प्रकृति को उजागर करता है, जिनमें शर्म या जमीर बिल्कुल नहीं होता है।

बेशर्म लोग किस तरह के होते हैं? मानवजाति में किस तरह के लोगों में कोई शर्म नहीं होती? (मानसिक रूप से बीमर लोगों को।) मानसिक रूप से बीमार लोगों में कोई शर्म नहीं होती, वे सड़कों पर नंगे दौड़ते हैं इस बात से अनजान कि सभी उन्हें देख रहे हैं, शायद वे कपड़े पहने लोगों पर हँसते भी हैं, और कहते हैं, “देखो, तुम लोगों के लिए कपड़े पहनना कितनी मुसीबत का काम है। मैं बिना कपड़ों के सड़क पर नंगा दौड़ रहा हूँ, और मैं कितना आजाद और निर्बाध महसूस कर रहा हूँ!” क्या यही बेशर्म होना नहीं है? (हाँ, यही है।) बेशर्म होना यही है। बेशर्म लोगों का जमीर जिंदा नहीं होता और वे मानसिक रूप से बीमार होते हैं; वे दूसरों की कीमत पर लाभ पाते हैं, वे दूसरों की हर एक चीज हड़प लेना चाहते हैं, उनके लालच और उनकी इच्छा ने सामान्य इंसानी तार्किकता के दायरे को पार कर लिया है—वे उस बिंदु पर पहुँच गए हैं जहाँ वे खुद को नियंत्रित नहीं कर सकते और उनका जमीर जिंदा नहीं है। क्या इस तरह के लोग सत्य प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। वे केवल शोहरत, लाभ, रुतबे और भौतिक हितों के पीछे भागते हैं, और वे कभी सत्य प्राप्त नहीं करते। तो, क्या उन्हें स्वर्ग के राज्य में जगह मिलेगी? परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं बचाता या पूर्ण नहीं करता है। क्या इन लोगों पर दया दिखानी चाहिए? (नहीं।) इन लोगों से घृणा की जानी चाहिए; वे घृणित, घिनौने और नीच हैं। इन लोगों का चरित्र घिनौना और नीच है; उनमें कोई गरिमा या शर्म नहीं है। उनके दिल लालच, महत्वाकांक्षा और इच्छा से भरे हुए हैं। वे केवल अपने कर्तव्य करने के अवसर का लाभ उठाकर अपने हित साधने की कोशिश करना चाहते हैं, और वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, न ही सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं। जब वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, तब भी वे वांछनीय चीजें, अपने हित और परमेश्वर से आशीष माँगते हैं। वे परमेश्वर को बताते हैं कि उन्होंने कितने कष्ट सहे हैं और कितने त्याग किए हैं, और वे इन चीजों के बारे में प्रार्थना करने के लिए परमेश्वर के सामने बस इसलिए आते हैं ताकि उन्होंने जो कष्ट सहे हैं और जो कीमतें चुकाई हैं, उनका हवाला देकर परमेश्वर के साथ सौदेबाजी कर सकें, परमेश्वर से आशीष और इनाम माँग सकें, और यहाँ तक कि वे खुलेआम परमेश्वर के सामने अपने हाथ फैलाकर उस सांसारिक व्यवहार की माँग करते हैं जो वे चाहते हैं। जब वे परमेश्वर के सामने आते हैं तो वे अपनी शिकायतें, अपनी अवज्ञा, अपना असंतोष, अपने दुख और अपनी नाराजगी व्यक्त करना चाहते हैं, और साथ ही अपने लालच और इच्छाओं की पूर्ति न होने को लेकर अपनी निराशा व्यक्त करना चाहते हैं। जब परमेश्वर इन अभिव्यक्तियों को देखता है, तो वह उनसे प्रेम करता है या घृणा? (वह उनसे घृणा करता है।) जब वे कलीसिया की खातिर कोई छोटा-मोटा काम करते हैं, तो वे इसकी घोषणा करने और श्रेय लेने, परमेश्वर को अपने त्याग के बारे में बताने और विभिन्न कर्तव्य निभाते हुए या विभिन्न काम करते हुए उन्होंने जो कुछ भी समर्पित किया है उसके बारे में बताने के लिए तुरंत परमेश्वर के सामने आते हैं; उन्हें डर है कि परमेश्वर इन चीजों के बारे में नहीं जान पाएगा, परमेश्वर इन चीजों को नहीं देख सकता, और परमेश्वर उनके द्वारा चुकाई गई कीमतों को भूल जाएगा। इसलिए, ये लोग परमेश्वर के सामने बुरे और बेशर्म माने जाते हैं। जब वे अपनी चुकाई गई कीमतों का ब्यौरा देने और घोषणा करने के लिए परमेश्वर के सामने आते हैं, उसे बताते हैं कि वे क्या चीजें पाना चाहते हैं, और परमेश्वर के सामने अपने हाथ फैलाकर उन पुरस्कारों की माँग करते हैं जो वे चाहते हैं, तो परमेश्वर कहता है, “हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” परमेश्वर का रवैया क्या है? “तुम जैसे लोग मेरे सामने आने के लायक नहीं हैं। मैं तुमसे नफरत करता हूँ और तुम से विमुखता महसूस करता हूँ। मैंने तुम्हें वह सब दिया है जो तुम चाहते हो; तुम इस जीवन में जो पाना चाहते हो, वह तुम्हें पहले ही सौ गुना मिल चुका है। तुम्हें और क्या चाहिए?” परमेश्वर मानवजाति को मुख्य रूप से भौतिक चीजें नहीं देना चाहता, बल्कि वह मानवजाति को सत्य सौंपना चाहता है, ताकि सत्य के जरिये वे उद्धार पा सकें। लेकिन, मसीह-विरोधी, परमेश्वर के कार्य का खुलेआम विरोध करते हैं, वे सत्य नहीं खोजते, और न ही वे सत्य का अभ्यास करते हैं। इसके बजाय, वे परमेश्वर के कार्य के दौरान अपना कर्तव्य करने के अवसर का इस्तेमाल गलत तरीके से अपने लिए वांछनीय चीजें पाने के लिए करना चाहते हैं; वे खामियों का फायदा उठाकर हर चीज में दूसरों की कीमत पर लाभ कमाते हैं, फिर भी उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि वे कुछ खो रहे हैं और उन्हें ज्यादा लाभ नहीं हुआ है। उन्हें अक्सर ऐसा भी लगता है कि उन्होंने बहुत ज्यादा त्याग और समर्पण किया है, उनके नुकसान लाभ से कहीं ज्यादा हैं, और इससे भी बढ़कर, उन्हें अक्सर अपने त्याग पर पछतावा होता है, उन्हें लगता है कि उन्होंने चीजों के बारे में पर्याप्त रूप से नहीं सोचा है या अपने लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सोचा है। इसलिए, वे अक्सर अपने त्याग का इनाम समय पर न मिलने से अपने दिल में गुस्सा महसूस करते हैं, और परमेश्वर के प्रति शिकायतों से भी भरे होते हैं। अपने दिलों में, वे अक्सर यह सोचते हुए हिसाब लगाते रहते हैं, “क्या परमेश्वर धार्मिक नहीं है? परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है, है ना? क्या परमेश्वर वह परमेश्वर नहीं है जो लोगों को आशीष देता है? क्या परमेश्वर व्यक्ति के सभी अच्छे कर्मों और उन सारी चीजों को याद नहीं रखता है जो उसने समर्पित की हैं और जो उसने खुद को खपाया है? मैंने परमेश्वर के कार्य के लिए अपना परिवार त्याग दिया और कीमत चुकाई, मगर मुझे परमेश्वर से क्या मिला?” अगर उनका लालच और उनकी इच्छा कम समय में संतुष्ट नहीं होती है, तो वे नकारात्मक हो जाते हैं और शिकायत करने लगते हैं। अगर उनका लालच और उनकी इच्छा लंबे समय तक संतुष्ट नहीं होती है, तो उनके हृदय के अंतरतम में द्वेष भर जाता है। और इस तरह द्वेष भर जाने के क्या परिणाम होते हैं? अपने दिलों में, वे परमेश्वर पर संदेह करना और सवाल उठाना शुरू कर देंगे, वे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव की आलोचना करने लगेंगे, और यहाँ तक कि वे परमेश्वर के प्रेम और सार पर भी संदेह करेंगे। अगर यह द्वेष लंबे समय तक इकठ्ठा होता रहा, तो ये चीजें घातक ट्यूमर में बदल जाती हैं और फैलने लगती हैं, और वे किसी भी समय परमेश्वर को धोखा देने में सक्षम हो जाते हैं। खासकर जब वे कुछ ऐसे लोगों के सामने होते हैं जो नकारात्मक और कमजोर हैं और जो अपेक्षाकृत अपरिपक्व आध्यात्मिक कद के होते हैं, या जब वे कुछ ऐसे लोगों के सामने होते हैं जो आस्था में नए हैं, तो वे हर बार इन नकारात्मक भावनाओं को प्रकट करेंगे और फैलाएँगे, परमेश्वर के प्रति अपना असंतोष फैलाएँगे और उसकी ईशनिंदा करेंगे, और वे कुछ ऐसे लोगों को, जिनमें विवेक की कमी है, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव और उसके सार के बारे में संदेह करने के लिए गुमराह भी करेंगे। क्या यह मसीह-विरोधियों का काम नहीं है? चूँकि मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाएं, इच्छाएँ, लक्ष्य और इरादे पूरे नहीं हुए हैं, इसलिए वे ये चीजें करने में सक्षम हैं और परमेश्वर के प्रति इस तरह का रवैया अपना सकते हैं—यह कैसा स्वभाव है? यह साफ तौर पर मसीह-विरोधियों का स्वभाव और शैतानी स्वभाव है।

एक मसीह-विरोधी जो भी थोड़ी-बहुत पीड़ा अनुभव करता है या कलीसिया में जो भी कीमत चुकाता है, वह उसे अपने दायित्व का हिस्सा नहीं मानता, यह नहीं मानता कि यह एक सृजित प्राणी का कर्तव्य है जो उसे करना चाहिए, बल्कि उसे अपना योगदान मानता है, जिसे परमेश्वर को याद रखना चाहिए। उसे लगता है, अगर परमेश्वर उसके योगदान को याद रखता है, तो परमेश्वर को उसे तुरंत प्रतिफल देना चाहिए, उसे आशीष, प्रतिज्ञा, विशेष भौतिक सुख प्रदान करना चाहिए, उसे फायदे और कुछ विशेष लाभ प्राप्त करने देना चाहिए। तब जाकर मसीह-विरोधी संतुष्ट होता है। एक मसीह-विरोधी की कर्तव्य की समझ क्या होती है? उसे नहीं लगता कि कर्तव्य कोई दायित्व है जिसे सृजित प्राणियों को वहन करना चाहिए और न ही उसके लिए यह कोई जिम्मेदारी है जिसे पूरा करने के लिए परमेश्वर के अनुयायी बाध्य होते हैं। बल्कि उसे तो यह लगता है कि कर्तव्य-निर्वहन परमेश्वर के साथ सौदेबाजी करने का जरिया है, जिसके बदले परमेश्वर से पुरस्कार प्राप्त किए जा सकते हैं, अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरा की जा सकती हैं और परमेश्वर में आस्था रखने के कारण उसका आशीष प्राप्त किया जा सकता है। उसे लगता है कि परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष उसके कर्तव्य-निर्वहन की पूर्वशर्त होनी चाहिए, इससे लोगों में परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था उत्पन्न होती है, लोग अपने कर्तव्य करने में तभी सहज हो सकते हैं जब परमेश्वर सुनिश्चित करे कि वे भविष्य की चिंताओं से मुक्त हैं। उन्हें यह भी लगता है कि जो लोग अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, उन्हें परमेश्वर की ओर से हर प्रकार की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए और उनका विशेष आदर होना चाहिए, लोगों को अपने कर्तव्य-पालन के दौरान परमेश्वर के घर के द्वारा हर तरह के लाभों का आनंद मिलना चाहिए। यही वो चीजें हैं जो लोगों को मिलनी चाहिए। मसीह विरोधी अपने दिलों में इसी ढंग से सोचते हैं। सोचने के ये तरीके ठीक मसीह-विरोधी दृष्टिकोण और नीतिवचन हैं और अपने कर्तव्य के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। कर्तव्य-निर्वहन को लेकर सत्य के बारे में परमेश्वर का घर चाहे जैसे संगति करे, लेकिन मसीह-विरोधी के मन में पलने वाली चीजें कभी नहीं बदलतीं। अपने कर्तव्य-निर्वहन के प्रति वे सदा अपने ही दृष्टिकोण पर टिके रहेंगे। इस अभिव्यक्ति के संबंध में हम एक वाक्यांश का उपयोग कर सकते हैं—वो क्या है? यह कि भौतिक चीजों को बाकी सभी चीजों से ऊपर रखना; यानी केवल वे चीजें असली हैं जो वे अपने हाथों में पकड़ सकते हैं, और वादे करना निरर्थक है। इन लोगों की अभिव्यक्तियों का सार भौतिकवादी है, है ना? (सही है।) भौतिकवाद का मतलब नास्तिकता है; वे केवल उसी के अनुसार चलते हैं जिसे वे देख और छू सकते हैं, उनके लिए केवल वही चीज मायने रखती है जिसे वे देख सकते हैं, और वे ऐसी किसी भी चीज के अस्तित्व को नकारते हैं जिसे वे नहीं देख सकते। इसलिए यह निर्धारित किया जा सकता है कि अपने कर्तव्य के प्रति एक मसीह-विरोधी का ज्ञान और समझ निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों के विपरीत है, और यह पूरी तरह से अविश्वासियों के दृष्टिकोण जैसा ही है; वास्तव में, वे छद्म-विश्वासी हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह भी नहीं मानते कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, सच्चा मार्ग हैं। उनका केवल यही मानना है कि शोहरत, लाभ और रुतबा ही वास्तविक हैं, वे जो कुछ भी चाहते हैं और जिन चीजों का आनंद लेते हैं, उन्हें केवल मानवीय प्रयासों और संघर्ष से ही पाया जा सकता है और उनके द्वारा चुकाई गई कीमत से पाया जा सकता है। यह उस दृष्टिकोण से कैसे भिन्न है जो कहता है, “लोगों को अपनी खुशी अपने हाथों से पैदा करनी चाहिए”? कोई फर्क नहीं है। वे यह नहीं मानते कि लोग परमेश्वर की खातिर अपना कर्तव्य अच्छे से करने के लिए खुद को खपाकर और कीमत चुकाकर ही अंततः सत्य और जीवन प्राप्त करते हैं। वे यह भी नहीं मानते हैं कि जो लोग परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम करते हैं और इस प्रकार अपने कर्तव्य का समुचित निर्वहन करते हैं, वे सृष्टिकर्ता की स्वीकृति और आशीष प्राप्त कर सकते हैं। इससे पता चलता है कि वे मानवता के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा या परमेश्वर के आशीर्वाद में विश्वास नहीं रखते। दरअसल वे लोग इस बात में विश्वास नहीं रखते कि सभी पर परमेश्वर की संप्रभुता है, इसलिए उनमें सच्ची आस्था नहीं होती। वे केवल यह मानते हैं, “मैं अपना कर्तव्य निभाता हूँ, इसलिए मुझे परमेश्वर के घर से विशेष आदर और भौतिक सुख मिलना चाहिए। परमेश्वर के घर को मुझे हर भौतिक विशेषाधिकार और आनंद प्रदान करना चाहिए। यही असली चीज होगी।” यह होती है एक मसीह-विरोधी की मानसिकता और दृष्टिकोण। वे नहीं मानते कि परमेश्वर के वादे विश्वसनीय हैं, या न ही वे इस तथ्य को मानते हैं कि सत्य प्राप्त करके व्यक्ति जीवन और परमेश्वर का आशीष पा लेता है। जब अपना कर्तव्य निभाने की बात आती है, तो वे सत्य नहीं खोजते, वे सत्य स्वीकार नहीं करते, और यह सत्य तो वे और भी कम स्वीकारते हैं कि : मनुष्य एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाने में सक्षम है, यही परमेश्वर का दिया सबसे बड़ा आशीष है और यही वो चीज है जिसे परमेश्वर याद रखेगा, और इस प्रक्रिया के दौरान, मनुष्य सत्य प्राप्त करके आखिरकार परमेश्वर द्वारा बचाया जा सकता है—यह परमेश्वर का मनुष्य से किया गया सबसे बड़ा वादा है। अगर तुम परमेश्वर द्वारा तुमसे किए गए वादों पर विश्वास करके इन वादों को स्वीकार सकते हो, तो तुम्हें परमेश्वर में सच्ची आस्था है। मसीह-विरोधी और छद्म-विश्वासी इन शब्दों को सुनकर कैसा महसूस करते हैं? (वे परमेश्वर की कही बातों पर विश्वास नहीं करते और उन्हें लगता है कि यह एक धोखा है।) उन्हें लगता है कि परमेश्वर द्वारा कहे गए ये वचन बस लोगों को भ्रमित करने के लिए हैं ताकि कुछ मूर्ख और सीधे-सादे बेवकूफ लोगों से परमेश्वर के लिए सेवा करवाई जा सके, और फिर जब उनकी सेवा समाप्त हो जाए तो उन्हें बाहर निकाल दिया जाए। वे सोचते हैं, “सत्य प्राप्त करें? हा! कौन देख सकता है कि सत्य क्या है? कौन जान सकता है कि परमेश्वर के वादे क्या हैं? किसी को ये मिले हैं? परमेश्वर के वादे यथार्थवादी नहीं हैं; केवल शोहरत और लाभ पाना और रुतबे के लाभों का आनंद लेना ही यथार्थवादी है; केवल शोहरत और लाभ के लिए प्रयास करना और रुतबे के लाभों का आनंद लेना ही वास्तविक है। मैं बरसों से परमेश्वर द्वारा मनुष्य से किए गए वादों और मनुष्य को दिए गए सत्य के बारे में सुनता आ रहा हूँ, और मैं बिल्कुल भी नहीं बदला हूँ, मुझे कोई लाभ नहीं मिला है, और न ही इन चीजों से मुझे रुतबे वाला उन्नत जीवन जीने में मदद मिली है। भले ही कुछ लोग गवाही देते हुए यह कहते हैं कि उन्होंने सत्य प्राप्त कर लिया है और बदल गए हैं, और परमेश्वर का आशीष मिल गया है, फिर भी वे बहुत साधारण दिखते हैं, वे सभी सामान्य लोग हैं, तो फिर वे परमेश्वर से आशीष पाकर स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकते हैं?” उन्हें लगता है कि केवल वे चीजें ही सबसे वास्तविक हैं जिन्हें वे अपने हाथों से पकड़ सकते हैं और प्राप्त कर सकते हैं। क्या यह छद्म-विश्वासियों का दृष्टिकोण नहीं है? बिल्कुल है। इसलिए, एक बार जब ये मसीह-विरोधी कलीसिया में प्रवेश कर जाते हैं, तो वे हर चीज को संदेह की नजर से देखते हैं, हमेशा सोचते रहते हैं कि उन्हें कहाँ से कुछ लाभ मिल सकता है, वे किस अवसर का उपयोग करके कुछ लाभ हासिल कर सकते हैं और परमेश्वर में अपनी आस्था से कैसे बड़े व्यावहारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं—वे अक्सर अपने मन में इन चीजों का हिसाब लगाते रहते हैं। उन्हें लगता है कि केवल शोहरत, लाभ और रुतबा पाकर ही वे हर लाभ प्राप्त कर सकते हैं, और इसलिए वे रुतबे के पीछे भागने का विकल्प चुनते हैं और इन चीजों को पाने के प्रयास में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं। वे कभी भी सत्य पर चिंतन नहीं करते या परमेश्वर की इच्छा नहीं जानना चाहते, और वे सत्य का अनुसरण करने के लिए नहीं, बल्कि केवल अपने दिलों को सूकून देने और अपने खालीपन को भरने के लिए ही परमेश्वर के वचनों को खाते-पीते हैं। अगर तुम किसी मसीह-विरोधी से किसी भी समय अपने लालच और इच्छाओं को छोड़ने, शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागना पूरी तरह से बंद करने, और परमेश्वर में अपनी आस्था से जिन लाभों को वे पाना चाहते हैं उन्हें छोड़ने के लिए कहोगे, तो वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। उन्हें इन चीजों को छोड़ने के लिए कहने से उन्हें ऐसा महसूस होता है जैसे तुम उनकी खाल उधेड़ रहे हो या उनकी पेशियाँ निकालने की कोशिश कर रहे हो; इन चीजों के बिना, उन्हें ऐसा लगता है मानो उनका दिल उनसे छीन लिया गया है, जैसे उन्होंने अपनी आत्मा खो दी है, और इन महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं के बिना उन्हें लगता है कि परमेश्वर में उनकी आस्था की कोई उम्मीद नहीं बची है, और जीवन निरर्थक है। उनकी नजरों में, जो लोग केवल अपने कर्तव्य के लिए खुद को खपाते हैं, समर्पित करते हैं और कीमत चुकाते हैं, जो लोग व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहते हैं, वे सभी बेवकूफ हैं। सांसारिक आचरण के लिए मसीह-विरोधी जो सिद्धांत अपनाते हैं वह है “हर व्यक्ति अपनी सोचे और बाकियों को शैतान ले जाए।” वे सोचते हैं, “लोग अपने बारे में कैसे नहीं सोच सकते? लोग अपने लिए लाभ पाने की कोशिश कैसे नहीं कर सकते?” अपने दिलों में, वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो सब कुछ त्यागकर ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं, वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभाते हैं और जो अपने भौतिक जीवन के मामले में बहुत ही साधारण और सादगी भरा जीवन जीते हैं, और वे उन लोगों से भी घृणा करते हैं जिन्हें बस इसलिए सताया जाता है क्योंकि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और कर्तव्य निभाते हैं और इसी वजह से अपने घर वापस नहीं लौट पाते। वे अक्सर अपने दिलों में इन लोगों पर हँसते हुए कहते हैं, “तुम लोगों ने परमेश्वर में अपनी आस्था के कारण अपना घर खो दिया है। तुम अपने परिवार के साथ नहीं रह सकते और तुम बहुत कम पैसे में गुजारा कर रहे हो—तुम लोग निहायत ही बेवकूफ हो! कोई व्यक्ति चाहे कुछ भी करे, भले ही वह परमेश्वर में अपनी आस्था रखे, उसे सांसारिक आचरण के लिए एक सिद्धांत अपनाना चाहिए : नुकसान बिल्कुल भी नहीं उठाना है। उसे परमेश्वर के वादों और आशीषों को देखने और छूने में सक्षम होना चाहिए, और एकमात्र उचित रवैया जो लोग अपना सकते हैं वह यह है कि जब तक सफलता पक्की न हो तब तक काम शुरू मत करो। तुम लोग नियाहत ही बेवकूफ हो! मुझे देखो। मैं परमेश्वर में विश्वास भी करता हूँ और शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भी भागता हूँ। मैं परमेश्वर के घर के सभी अच्छे व्यवहारों का आनंद लेता हूँ और भविष्य में भी आशीष पा सकता हूँ। मुझे कोई कष्ट सहने की जरूरत नहीं है, और मुझे मिलने वाले आशीष तुम लोगों से ज्यादा ही होंगे। इस बात की निश्चितता के बिना कि मैं भविष्य में कोई आशीष प्राप्त कर सकूँगा या नहीं, मैं तुम लोगों की तरह अपने परिवार और नौकरियों को त्यागकर और घर वापस आने में असमर्थ होकर कोई कीमत नहीं चुकाता।” ये लोग क्या चीज हैं? वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं करते, और फिर भी वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो अपने परिवारों और नौकरियों को त्यागकर कष्ट सहते हैं और अपना कर्तव्य करने, परमेश्वर का आदेश पूरा करने और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलने की खातिर कीमत चुकाते हैं। क्या ऐसे बहुत से लोग हैं? (बिल्कुल हैं।) हर कलीसिया में कुछ ऐसे लोग होते हैं। क्या ये लोग परमेश्वर के सच्चे विश्वासी हैं। क्या उन्हें बचाया जा सकता है? (नहीं।) वे परमेश्वर के सच्चे विश्वासी नहीं हैं, उनका बचाया जाना तो दूर की बात है।

मसीह-विरोधी चाहे किसी भी समस्या का सामना करें या वे कुछ भी करें, उनके मन में सबसे पहला विचार यह नहीं होता कि वे सत्य और उद्धार प्राप्त कर सकते हैं या नहीं, बल्कि वे अपने सभी दैहिक लाभों के बारे में सोचते हैं। उनके दिलों में, उनकी देह से संबंधित सभी लाभों का सबसे महत्वपूर्ण, सबसे ऊँचा, सर्वोच्च स्थान होता है। अपने दिलों में, वे कभी भी परमेश्वर की इच्छा पर विचार नहीं करते, कभी भी परमेश्वर के कार्य पर विचार नहीं करते, और यह तो बिल्कुल भी नहीं सोचते कि मनुष्य को क्या कर्तव्य निभाना चाहिए। परमेश्वर चाहे जैसे भी लोगों से अपने कर्तव्य के समुचित निर्वहन की अपेक्षा करे, परमेश्वर चाहे जैसे भी लोगों से सुयोग्य सृजित प्राणी होने की अपेक्षा करे, मसीह-विरोधियों पर इन बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता। परमेश्वर चाहे कोई भी तरीका अपनाए या कोई भी वचन बोले, वह इन लोगों को प्रेरित नहीं कर सकता, और उन्हें अपना इरादा बदलने और अपना लालच और इच्छाएँ त्यागने के लिए तैयार नहीं कर सकता। ये लोग नाम और तथ्य दोनों ही प्रकार से मसीह-विरोधियों के बीच भौतिकवादी और छद्म-विश्वासी हैं। तो, क्या इन लोगों को मसीह-विरोधियों की श्रेणी का सबसे निचला तबका माना जा सकता है? (हाँ, क्योंकि कुछ मसीह-विरोधी अभी भी रुतबे की खातिर कुछ सेवा प्रदान कर सकते हैं, जबकि ये लोग सेवा करने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं।) यह सही है। ये लोग लाभ पाना चाहते हैं, वे दिन भर केवल लाभ पर ही अपनी नजरें गड़ाए रखते हैं और उसी के बारे में सोचते रहते हैं, और वे जो कुछ भी करते हैं वह सिर्फ लाभ पाने के इर्द-गिर्द ही घूमता है। कुछ लोग मेजबानी का कर्तव्य करते हैं और जब उनके पास अंडे, चावल या आटा खत्म हो जाता है, तो वे तुरंत कलीसिया से इन चीजों को खरीदने के लिए किसी को भेजने को कहते हैं। वे खुद कुछ नहीं खरीदते; मानो कि मेजबानी का कर्तव्य शुरू करने से पहले उन्होंने अपने घर में कभी ये चीजें खाई ही नहीं। यह कर्तव्य शुरू करने से पहले, वे सारी चीजें खुद ही खरीदते थे, मगर यह कर्तव्य शुरू करते ही वे बहाने बनाने लगते हैं, वे खुद को सही और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं, और वे परमेश्वर के घर से कर्ज वसूलने वाले, परमेश्वर के घर के लेनदार बन जाते हैं, मानो परमेश्वर के घर पर उनका कुछ कर्ज हो—इस तरह के लोग अच्छे नहीं होते।

मैं चीन की मुख्यभूमि में कुछ मेजबानों के घरों में रहा हूँ, और इनमें से कुछ भाई-बहनों में बेहतरीन मानवता थी। भले ही उन्होंने केवल दो या तीन साल ही विश्वास किया हो और ज्यादा सत्य नहीं समझा हो, फिर भी उन्होंने मेजबानी के कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाया। अगर परमेश्वर का घर उन्हें पैसे देने की कोशिश करता, तो वे उसे ठुकरा देते; भाई-बहन उन्हें कुछ भी देते तो वे उस चीज के पैसे उन्हें चुका देते, और वे परमेश्वर के घर से जुड़ी किसी भी चीज को ध्यान से सुरक्षित रखते थे; अगर परमेश्वर के घर द्वारा खरीदी गई कोई चीज इस्तेमाल नहीं हुई, तो वे उसके बराबर मूल्य परमेश्वर के घर को दे देते थे। कुछ लोग जो आर्थिक रूप से संपन्न थे, वे अपनी इच्छा से मेजबानी करते, और परमेश्वर के घर द्वारा दिया गया एक भी पैसा नहीं लेते थे। कुछ लोग अमीर नहीं थे, फिर भी वे परमेश्वर के घर द्वारा दिया गया कोई भी पैसा नहीं लेते थे। कलीसिया या भाई-बहन मेजबानी के लिए उनके घर को जो कुछ भी देते, वे उसमें से कुछ भी गबन नहीं करते थे। क्या ऐसा इसलिए था क्योंकि वे सत्य समझते थे? नहीं, यह चरित्र का मामला था। इसके अलावा, और सबसे जरूरी बात यह है कि वे सच्चे विश्वासी थे, और साथ ही अच्छे चरित्र वाले होने के कारण वे ऐसा करने में सक्षम थे, अन्यथा वे ऐसा नहीं कर पाते। मैं कुछ मेजबानों के घर गया हूँ और मेजबानों ने मुझे ओढ़ने के लिए अपनी सबसे अच्छी रजाई और कंबल दी थी, और मैंने कहा, “ये बिल्कुल नए हैं और इन्हें इस्तेमाल नहीं किया गया है। उन्हें वापस बंद करके रख दो, मैं उनका इस्तेमाल नहीं करूँगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं उनका इस्तेमाल करूँ। फिर कुछ मेजबान परिवार ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने मेरे इस्तेमाल के लिए सभी नई चीजें खरीदीं, जिस पर मैंने कहा, “नई चीजें मत खरीदो, यह पैसे की बर्बादी है। मैं बस वही इस्तेमाल करूँगा जो तुम्हारे पास अभी है। पैसे खर्च मत करो। मैं जहाँ भी जाता हूँ लोगों से कभी भी मेरे लिए ऐसी चीजें खरीदने को नहीं कहता। हमेशा नई चीजों का इस्तेमाल करना जरूरी नहीं है।” कुछ लोगों ने फिर भी यह पैसा खर्च करने पर जोर दिया। कुछ मेजबान परिवार ऐसे भी थे जिन्होंने खाने के समय कई व्यंजन बनाए। क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि मुझे क्या खाना पसंद है, इसलिए उन्होंने बहुत सारे व्यंजन बनाए ताकि मैं अपनी पसंद का खाना खा सकूँ, क्योंकि अगर वे केवल कुछ ही व्यंजन बनाते, तो उन्हें चिंता होती कि मैं ठीक से नहीं खा पाऊँगा। ऐसे भी बहुत से लोग हैं। हालाँकि, कुछ मेजबानों के घर अलग बात होती है। जब मैं वहाँ गया, तो मेजबानों ने मेरे लिए कुछ रोजमर्रा की जरूरत की चीजें लाकर रख दीं, खाना बनाते समय सिर्फ उन्हीं चीजों का इस्तेमाल किया जो भाई-बहन उनके लिए लेकर आए थे, और जब उन्हें बाहर जाकर अन्य चीजें खरीदने की जरूरत पड़ती, तो वे मेरे सामने पैसों के लिए हाथ फैलाते थे। फिर कुछ दूसरे मेजबानों के घर हैं जहाँ मैंने कुछ सामान सुरक्षित रखने के लिए छोड़ा था। जब मैं कुछ समय तक वापस नहीं गया, तो उन्होंने मेरी दराज खोली और फिर उसमें से कुछ चीजें गायब हो गईं। वे सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और सभी मेजबानी का कर्तव्य निभाते हैं, मगर क्या उनके बीच कोई बड़ा अंतर है? परमेश्वर में विश्वास करने वाले कुछ लोग ऐसी चीजें कर सकते हैं—क्या मनुष्य ऐसा करते हैं? लुटेरे, डाकू, गुंडे और बदमाश ही ऐसा करते हैं। क्या सच्चे विश्वासी ऐसी चीजें करने में सक्षम हैं? अगर कोई सच्चा विश्वासी तुम्हारा कोई सामान सुरक्षित रखता है, तो चाहे तुम कितने भी समय के लिए दूर रहो, चाहे आठ या दस साल ही क्यों न बीत जाएँ, वह हमेशा तुम्हारे लिए इसे सुरक्षित रखेगा; वह इसे छुएगा भी नहीं, इसे देखेगा भी नहीं, और इसमें ताक-झाँक भी नहीं करेगा। हालाँकि, कुछ मेजबान परिवारों में, अगर तुम कुछ छोड़कर जाते हो तो वे तुम्हारे दरवाजे से बाहर निकलते ही इसे खोलकर देखेंगे। वे किस चीज की तलाशीले रहे हैं? वे तुम्हारे बैग की तलाशी लेंगे, यह देखने के लिए कि क्या उसमें कोई कीमती चीज, जैसे कि गहने, मोबाइल फोन, या पैसे हैं—वे इन सभी चीजों की तलाशी लेते हैं। कुछ महिलाएँ किन-किन चीजों की तलाशी लेती हैं? वे देखना चाहती हैं कि क्या तुम्हारे पास कोई अच्छे कपड़े हैं। एक बार तलाशी ले लेने के बाद, वे सोचती हैं, “अरे, ये कपड़े तो बहुत अच्छे हैं। मैं इन्हें पहनकर देखती हूँ।” मुझे बताओ, क्या ऐसी घटनाएँ नहीं होती हैं? (बिल्कुल होती हैं।) तुम्हें कैसे पता? क्या तुम लोगों ने ऐसा होते देखा है? मेरे पास यह कहने के लिए ठोस सबूत है कि ऐसी चीजें होती हैं। एक बार, पतझड़ के अंत में, मैंने अपने कुछ कपड़े एक मेजबान के घर पर छोड़ दिए थे। एक दिन, अचानक मुझे उनमें से कुछ कपड़ों की याद आई जो मुझे पहनने थे, तो मैं उन्हें वापस लाने की सोचकर उस मेजबान के घर गया। सोचो क्या हुआ होगा। जैसे ही मैं घर में घुसा, तो वहाँ बूढ़ी मेजबान महिला मेरा ऊनी कोट पहनने की कोशिश कर रही थी। यह सिर्फ एक संयोग था कि मैंने उसे देख लिया। मैंने पूछा, “तुम क्या कर रही हो?” वह हैरान रह गई। उसने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा संयोग भी होगा कि मैं उसकी ये हरकत देख लूँगा, और वह बहुत शर्मिंदा हुई। हालाँकि, इस तरह के लोग बड़े ढीठ होते हैं, तो उसने तुरंत कहा, “अरे, क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारा ऊनी कोट मुझ पर एकदम सही जँचता है?” मैंने कहा, “यह मेरा कोट है। अगर तुम इसे पहनती हो तो मैं इसे नहीं पहन सकूँगा।” उसने कहा, “ये लो, मुझे यह नहीं चाहिए।” मैंने जवाब दिया, “अगर तुम्हें यह नहीं चाहिए तो तुम इसे पहनने की कोशिश क्यों कर रही हो? क्या अलमारी के दरवाजे पर ताला नहीं लगा था?” उसने कहा, “दरअसल आज मेरे पास कुछ करने को नहीं था तो मैंने यूँ ही इसे बाहर निकाल लिया।” इस पर मैंने कहा, “यह तुम्हारा नहीं है, तो तुम्हें इसे हाथ नहीं लगाना चाहिए था।” यह सच में घटी एक घटना का उदाहरण है। मुझे नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया। मुझे बताओ, क्या ऐसा इंसान परमेश्वर का विश्वासी है। क्या मुझे ऐसे लोगों को परमेश्वर का विश्वासी और परमेश्वर के घर का सदस्य कहना चाहिए? (नहीं।) वे परमेश्वर के अनुयायी होने के योग्य नहीं हैं, वे शैतान के गिरोह में से एक हैं, उनमें बिल्कुल भी शर्म, जमीर या विवेक, कोई मानवता नहीं है—वे बदमाश हैं। क्या परमेश्वर ऐसे लोगों को बचाएगा? इस तरह के लोगों में ईमानदारी और गरिमा या परमेश्वर के लिए सम्मान रत्ती भर भी नहीं होता है—शायद परमेश्वर उन्हें नहीं बचा सकता। परमेश्वर जो सत्य बोलता है और जो जीवन वह मनुष्य को देता है, वह ऐसे लोगों के लिए नहीं है; ये लोग परमेश्वर के परिवार के सदस्य नहीं हैं, बल्कि परमेश्वर के घर के बाहर के छद्म-विश्वासी हैं, और वे शैतान के हैं। मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार यह है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते और सत्य से विमुख रहते हैं, इसके अलावा उनका चरित्र भी बेहद नीच और घृणित होता है, और ऐसे लोग घटिया, घृणित और निंदनीय हैं। परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करने वाले इन लोगों की अभिव्यक्तियाँ, जिनके बारे में हमने अभी बात की, यह दिखाने के लिए काफी हैं कि चाहे ये लोग कोई भी कर्तव्य क्यों न करें, वे कभी भी वास्तव में खुद को नहीं खपाते और कभी भी इसे ईमानदारी से नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे अपने खुद के इरादों, लालच और इच्छाओं के साथ आते हैं, वे लाभ पाने के लिए दौड़ते हुए आते हैं, न कि सत्य प्राप्त करने के लिए। इसलिए, तुम इसे कैसे भी देखो, ऐसे लोगों की मानवता परमेश्वर के लिए पर्याप्त नहीं है। तो मुझे बताओ, क्या तुम लोग ऐसे लोगों की मानवता को पर्याप्त मानते हो, और क्या तुम उन्हें अच्छे लोग मानते हो? (नहीं।) तुम लोग भी ऐसे लोगों की निंदा करते हो, है ना? (बिल्कुल।) जब कुछ लोगों को पता लगता है कि परमेश्वर के घर ने कुछ खरीदा है, तो वे उसमें से अपना हिस्सा चाहते हैं, और जब वे देखते हैं कि भाई-बहन कपड़े दान कर रहे हैं, तो इस बात की परवाह किए बिना कि वे इन्हें पाने के हकदार हैं या नहीं या उन्हें ये मिलने चाहिए या नहीं, वे इन्हें पाने की कोशिश करते हैं, दूसरों की तुलना में अधिक सक्रियता से काम करते हैं; लेकिन जब उन्हें सुनने में आता है कि परमेश्वर के घर में ऐसा कोई काम है जिसे करने की आवश्यकता है या कुछ गंदे या थकाऊ काम हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है, तो वे तुरंत छिप जाते हैं और तुम उन्हें कहीं नहीं ढूँढ़ सकते। ऐसे लोग चालाक और धूर्त होते हैं, नीच चरित्र के होते हैं—वे घृणित, घिनौने और घटिया लोग होते हैं!

हर पहलू में अपने खुद के लाभ के लिए मसीह-विरोधियों की चिंता का गहन-विश्लेषण करने के लिए हम परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करने में उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों का उपयोग करके यह देख सकते हैं कि ये लोग छद्म विश्वासी, भौतिकवादी, निंदनीय, नीच और निम्न चरित्र के घृणित लोग हैं, और ये ऐसे पात्र लोग नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर बचाएगा। ऐसे लोगों की परिभाषा को उस स्तर तक ले जाने की जरूरत नहीं है जहाँ वे सत्य से विमुख होते हैं; हम पहले ही मानवता और चरित्र के मामले में उनकी असलियत देख सकते हैं, तो इसे सत्य से संबंधित होने जैसा ऊँचा स्थान देने की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए, चाहे परमेश्वर के घर में हों या लोगों के किसी भी समूह में, ऐसे लोग हमेशा सबसे नीच और चरित्रहीन होंगे। बेशक, अगर उन्हें परमेश्वर के घर में सत्य का उपयोग करके परखा जाए, तो वे और भी ज्यादा घृणित और नीच दिखाई देते हैं। क्या तुम लोगों के पास मसीह-विरोधियों द्वारा प्रदर्शित इस अभिव्यक्ति के और भी उदाहरण हैं? (एक मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के लिए किताबों की छपाई का काम संभाल रहा था, और उसने गलत लेखा-जोखा करके परमेश्वर की भेटों में से लाखों युआन का गबन कर लिया। जब उसकी छानबीन की गई, तो पता चला कि यह कर्तव्य शुरू करने से पहले उसके परिवार के पास बहुत कम पैसे थे, मगर जब उसने यह कर्तव्य करना शुरू किया, तो उसने एक घर और एक गाड़ी खरीद ली, मगर बही-खातों से इन चीजों का पता नहीं लगाया जा सका। उसका पूरा परिवार वास्तव में बहुत क्रूर था और इसलिए भेंटों को वापस नहीं लाया जा सका।) क्या इस घटना के लिए अगुआ और कार्यकर्ता सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं थे? (बिल्कुल। बाद में, जब ज्यादा जानकारी सामने आई, तो पता चला कि उस समय जो अगुआ और कार्यकर्ता जिम्मेदार थे, उन्होंने कभी भी इस मसीह-विरोधी द्वारा प्रबंधित खातों की जाँच नहीं की थी। वे अपने कर्तव्य में लापरवाह थे और यह स्थिति उनकी गैर-जिम्मेदारी के कारण उत्पन्न हुई थी। वे निश्चित रूप से सीधे तौर पर जिम्मेदार थे।) तो, क्या उनके अपराधों को परमेश्वर की रिकॉर्ड बुक में दर्ज किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) इसके बाद इन लोगों से कैसे निपटा गया? (कुछ लोगों को निकाल दिया गया और निष्कासित कर दिया गया, और कुछ लोग भेंटों की भरपाई कर रहे हैं।) उनसे निपटने का यही उचित तरीका है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपने कर्तव्य में लापरवाही की और इस मामले में अपनी निगरानी की जिम्मेदारियाँ निभाने में विफल रहे। खासकर, उन्होंने गलत व्यक्ति का उपयोग किया और उन्होंने इस व्यक्ति पर नजर रखने या उसकी निगरानी करने का कोई प्रयास नहीं किया, वे जिस व्यक्ति का उपयोग कर रहे थे उसकी समस्याओं का सही समय पर पता नहीं लगा पाए, और इसलिए गंभीर परिणाम सामने आए, जिसके कारण परमेश्वर की भेंटों और परमेश्वर के घर की संपत्तियों को काफी नुकसान हुआ; यह उन सभी लोगों की जिम्मेदारी थी जो सीधे तौर पर जिम्मेदार थे, और उनके सभी अपराधों को दर्ज किया जाना चाहिए। यह नौकरी के लिए सही व्यक्ति का उपयोग न करके उनके द्वारा खुद पर लाया गया विनाशकारी परिणाम था और इससे परमेश्वर के घर को नुकसान उठाना पड़ा, और अंत में इसकी कीमत परमेश्वर की भेंटों के रूप में चुकानी पड़ी। मुझे बताओ, क्या मसीह-विरोधी हमेशा लालची होते हैं या ये बुरे विचार केवल तभी उनके मन में आते हैं जब वे कोई मूल्यवान चीज देखते हैं? (वे हमेशा लालची होते हैं।) यही कारण है कि जब तुम ऐसे लोगों के साथ जुड़ते हो और उनसे बातचीत करते हो, तो तुम यकीनन उनके लालच और इच्छाओं को जान सकते हो। यह परिणाम अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जिम्मेदार न होने, लोगों को न समझने, लोगों को स्पष्ट रूप से न देखने और लोगों का दुरुपयोग करने के कारण हुआ, और इसलिए यह जिम्मेदारी उन पर भारी पड़ गई, और वे निष्कासित किये जाने लायक ही थे।

हमने पहले मसीह-विरोधियों की प्रकृति, सार, स्वभाव और उनके द्वारा अपनाए जाने वाले मार्ग के मुख्य पहलुओं के बारे में संगति की थी। आज हम मसीह-विरोधियों की मानवता के दायरे में आने वाली अभिव्यक्तियों पर संगति और उनका गहन-विश्लेषण कर रहे हैं, और यह वास्तविक जीवन से संबंधित है। हालाँकि यह एक मामूली पहलू है, फिर भी इससे लोगों को मसीह-विरोधियों की कुछ अभिव्यक्तियाँ पहचानने में मदद मिल सकती है; ये मसीह-विरोधियों की कुछ स्पष्ट विशेषताएँ, संकेत और प्रतीक भी हैं। उदाहरण के लिए, किसी मसीह-विरोधी को रुतबा, शोहरत, लाभ और प्रभाव पसंद है, वह बहुत स्वार्थी, घृणित और क्रूर है, और वह सत्य से प्रेम नहीं करता, तो उसकी मानवता और उसका चरित्र कैसा है? कुछ लोग कहते हैं, “भले ही कुछ मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे से प्यार करते हैं, फिर भी उनके पास सम्मानजनक और उत्कृष्ट चरित्र होते हैं, और उनमें जमीर और सूझ-बूझ भी होता है।” क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) क्यों नहीं है? चलो, इस बारे में बात ना ही करें कि मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार क्या होता है; पहले उनकी मानवता और चरित्र को देखते हैं। वे निश्चित रूप से अच्छे लोग नहीं हैं, वे गरिमा, जमीर या उत्कृष्ट चरित्र वाले लोग नहीं हैं, और वे सत्य से प्रेम करने वाले लोग तो बिल्कुल नहीं हैं। क्या ऐसी मानवता वाले लोग सही मार्ग पर चल सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि उनके चरित्र में सही मार्ग पर चलने वाला सार नहीं है, और इसलिए ये लोग शायद सत्य से प्रेम नहीं कर सकते, इसे स्वीकारना तो दूर की बात है। जिस इरादे और रवैये से मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभाते हैं, उसे देखते हुए, मसीह-विरोधियों का चरित्र और मानवता लोगों को उन्हें नकारने और उनसे विमुख होने के लिए मजबूर करती है, और इससे भी बढ़कर उन्हें परमेश्वर द्वारा ठुकराया जाता है। चाहे वे कोई भी कर्तव्य करें, वे हमेशा परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करना चाहते हैं, और उससे पुरस्कार, पैसा, वस्तुएँ और लाभ पाना चाहते हैं। और परमेश्वर उन्हें किस तरह के लोगों के रूप में देखता है? जाहिर है कि ये अच्छे लोग नहीं हैं। तो फिर, परमेश्वर अपनी नजरों में, ऐसे लोगों को वास्तव में कैसे परिभाषित करता है? वह ऐसे लोगों को क्या नाम देता है? बाइबल में अनुग्रह के युग की एक कहानी दर्ज है : यहूदा अक्सर पैसे की थैली से चोरी करता था, और अंत में उसे परमेश्वर ने एक सेवा करने के लिए इस्तेमाल किया, वह थी प्रभु यीशु को धोखा देना। प्रभु यीशु को सलीब पर चढ़ाया गया, और यहूदा, जिसने अपने प्रभु और मित्रों को धोखा देने में भूमिका निभाई थी, वह पेट फटने से मर गया। इसलिए, ये लोग जो परमेश्वर के घर की संपत्ति का गबन करते हैं और परमेश्वर की भेंटों को चुराते हैं, वे सभी परमेश्वर की नजरों में यहूदा हैं, यानी कि इन लोगों को परमेश्वर ने यहूदा नाम दिया है। भले ही ये मसीह-विरोधी जिनकी अब यहूदा के रूप में निंदा की जाती है, यहूदा की तरह अपने प्रभु और मित्रों को धोखा देने जैसी चीजें नहीं करते, मगर उनका स्वभाव सार वैसा ही है। उनमें क्या समानता है? वे अपने पद और अपना कर्तव्य पूरा करने के अवसर का लाभ उठाकर परमेश्वर के घर की संपत्ति चुराते हैं और उसका गबन करते हैं। इसलिए इन लोगों को परमेश्वर ने यहूदा नाम दिया है, और वे उसके बराबर हैं जिसने अपने प्रभु और मित्रों को धोखा दिया। यानी, ये मसीह-विरोधी जो परमेश्वर के घर की संपत्तियों का गबन करते और उसे हड़प लेते हैं, यहूदा के समान हैं जिसने अपने प्रभु और मित्रों को धोखा दिया था, और यह समझने के लिए ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोगों का क्या परिणाम होना है।

2. अपनी सेवा में श्रम करवाने के लिए भाई-बहनों का शोषण करना

अपना कर्तव्य निभाते हुए मसीह-विरोधी जिन लाभों को पाने की कोशिश करते हैं वे उन तक ही सीमित नहीं हैं जिनकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं—पैसा, भौतिक वस्तुएँ, भोजन और इस्तेमाल की चीजें—इन लाभों का दायरा बहुत बड़ा है। उदाहरण के लिए, जब मसीह-विरोधी कोई कर्तव्य निभाते हैं, तो वे वह कर्तव्य निभाने के नाम पर भाई-बहनों का शोषण करते हैं, अपनी सेवा में उनसे श्रम करवाते हैं, और उन्हें आदेश देते हैं—क्या यह वो लाभ नहीं है जिसे पाने की कोशिश मसीह-विरोधी करते हैं? (बिल्कुल है।) कुछ लोग कलीसिया के अगुआ बनने से पहले घर पर हमेशा अपना हर काम खुद ही करते हैं, और ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी कोई महत्वाकांक्षाएँ या बुरे इरादे नहीं हैं। लेकिन एक बार कलीसिया के अगुआ चुने जाने और रुतबा पाने के बाद, क्या वे अभी भी सारा काम खुद ही करते हैं? एक बार रुतबा मिल जाने के बाद उन्हें लगता है कि वे अलग तरह के लोग हैं, परमेश्वर के घर में उनके साथ विशेष व्यवहार किया जाना चाहिए, और उन्हें अपना “कर्तव्य” मिल-जुलकर पूरा करने के लिए “आम लोगों की शक्ति” का लाभ उठाना सीखना चाहिए; उनके घर का हर काम कलीसिया के कार्यक्षेत्र में आने वाला काम बन जाता है, और वे अपने घर-परिवार के कामकाज और रोजमर्रा के कामों की चर्चा भाई-बहनों के बीच करते हैं। उदाहरण के लिए, जब उनके पास अपने घर में कोई ऐसा काम होता है जिसे करने की जरूरत होती है, तो वे भाई-बहनों से कहते हैं, “इन दिनों मैं कलीसिया के काम में काफी व्यस्त रहा। क्या तुम लोगों में से किसी के पास एक काम में मेरी मदद करने का समय है?” चार-पाँच लोग स्वेच्छा से सहमति देते हैं और कुछ समय के बाद काम पूरा हो जाता है। ये अगुआ सोचते हैं, “कई लोग मिलकर काम को आसान बना देते हैं। अगुआ होना अच्छा है, मुझे बस कहना होता है और काम पूरा हो जाता है। आगे से जब कभी मेरे पास घर पर कोई ऐसा काम होगा जिसे करना जरूरी है, तो मैं भाई-बहनों की मदद ले लूँगा।” यह इसी तरह चलता रहता है, वे कलीसिया के अगुआओं का ज्यादातर काम नहीं कराते, मगर वे अपने घर का काम कराने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की व्यवस्था करलेते हैं, और वे इसके लिए कार्यसूची भी बना लेते हैं—वे कलीसिया के कितने व्यस्त अगुआ हैं! अगुआ बनने से पहले उनके पास घर पर करने के लिए उतना काम कभी नहीं होता था, मगर अगुआ बनने के बाद घर पर करने के लिए इतने सारे काम निकल आते हैं। कुछ भाई-बहन उनके लिए फसलें उगाते हैं, कुछ उनके खेतों में पानी देते हैं, कुछ उनके लिए सब्जियाँ उगाते हैं, कुछ निराई-छँटाई करते हैं, कुछ खाद डालते हैं, और कुछ उनकी सब्जियाँ बेचकर उनकी मदद करते हैं और फिर एक भी पैसा अपने लिए रखे बगैर सारा पैसा उन्हें दे देते हैं। कलीसिया के अगुआ बनने के बाद उनका गृहस्थ जीवन फलने-फूलने लगता है; वे चाहे कुछ भी करें, लोग हमेशा उनका सहयोग और उनकी मदद करते हैं, और उनका हर एक शब्द बहुत प्रभावशाली होता है। वे बेहद खुश और प्रसन्न महसूस करते हैं, और लगातार यही सोचते हैं, “कलीसिया में अगुआ का यह ओहदा बहुत बढ़िया है, और रुतबा होना शानदार बात है। अगर मेरे घर में कभी भोजन की कमी हुई, तो मुझे बस बताना है और लोग मुझे भोजन दे देंगे, और इसके बदले में पैसे भी नहीं माँगेंगे। कितना आरामदायक जीवन है! मेरे विश्वास के कारण मुझे वाकई परमेश्वर का आशीष मिल रहा है। यह एक महान आशीष है, और यह वास्तव में परमेश्वर का अनुग्रह है! परमेश्वर बहुत महान है; परमेश्वर का धन्यवाद!” जब भी कोई उनके लिए सेवा करता है या उनके द्वारा ऐसा आदेश दिया जाता है, तो हमेशा “परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं” और “इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारते हैं।” ये कलीसिया के मामूली अगुआ इस हद तक अपने पद का इस्तेमाल करते हैं—क्या तुम लोग ऐसा कर सकते हो? क्या तुम लोग ऐसा कुछ करने में सक्षम हो? लोग अगुआ बनने के लिए प्रतिस्पर्धा क्यों करते हैं? वे रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा क्यों करते हैं? अगर कोई लाभ प्राप्त नहीं होना हो, तो क्या कोई रुतबे के लिए प्रतिस्पर्धा करेगा? जिस रुतबे के लिए उन्होंने प्रतिस्पर्धा की अगर उसका मतलब कड़ी मेहनत करना और कोल्हू के बैल की तरह काम करना हो, तो कोई इसकी परवाह नहीं करेगा। यह साफ तौर पर इसलिए है क्योंकि रुतबा होने पर इतने सारे लाभ प्राप्त होते हैं कि इसे पाने के लिए लोग जी-जान लगा देते हैं और प्रतिस्पर्धा करते हैं। कलीसिया का एक मामूली अगुआ बनने से उन्हें इतने बड़े फायदे मिलते हैं, और यह उनके जीवन में बहुत बड़ी सुविधाएँ और बहुत से लाभ लेकर आता है—किस तरह का इंसान ऐसा व्यवहार करता है? क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? क्या वे ऐसे लोग हैं जिनमें मानवता और जमीर है? क्या वे ऐसे लोग हैं जिनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय है? (नहीं।) उनका मानना है कि वे सभी के लिए और परमेश्वर के घर के लिए कलीसिया के अगुआ के तौर पर काम करते हैं, और वे इसे कर्तव्य नहीं मानते हैं। उनका मानना है कि कलीसिया के अगुआ के रूप में वे जो भी काम करते हैं वह उनके घरेलू जीवन का त्याग करने के आधार पर ही किया जाता है, इसलिए भाई-बहनों को उनके द्वारा चुकाई गई कीमत की भरपाई करनी चाहिए। अगर उनके पास घर का काम करने के लिए समय नहीं है तो भाई-बहनों को उसे पूरा करने में मदद करनी चाहिए; अगर उनके पास खेतों में काम करने का समय नहीं है तो भाई-बहनों को उनके खेतों में जाकर उनके लिए इस तरह काम करना चाहिए मानो इसके लिए वे अपने कर्तव्य से बंधे हों। कलीसिया का अगुआ होने के नाते उन्होंने चाहे जो भी त्याग किया हो, भाई-बहनों को उसकी दोगुनी भरपाई करनी चाहिए। ये कुछ चीजें हैं जिनका इस्तेमाल मसीह-विरोधी भाई-बहनों से अपनी सेवा कराने के लिए करते हैं और अपना कर्तव्य निभाने के दौरान उनके निजी जीवन में जिन्हें करने के लिए वे भाई-बहनों को आदेश देते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधी अगुआ बन जाते हैं, तो वे ऐसा अवसर बिल्कुल भी हाथ से नहीं जाने देंगे और खड़े होकर इन लाभों को अपनी उँगलियों से फिसलते हुए बिल्कुल भी नहीं देखेंगे। इसके बजाय, वे एकदम इसके उलट काम करेंगे : वे भाई-बहनों से अपने लिए श्रम करवाने के लिए हर पल का इस्तेमाल करेंगे और हर अवसर का लाभ उठाएँगे, और उनसे बोझ उठाने वाले जानवरों की तरह काम करवाएँगे। वे भाई-बहनों की मूर्खता और ईमानदारी का लाभ उठाते हैं, और वे स्वेच्छा से अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर के लिए कीमत चुकाने की भाई-बहनों की मानसिकता का लाभ उठाते हैं और उनसे अपनी सेवा करवाते हैं। इस बीच, वे यह भी दिखाते हैं कि कुछ शब्द सत्य हैं और भाई-बहनों को शिक्षित करने के लिए उनका इस्तेमाल भी करते हैं, ताकि वे इस विचार को सीख सकें : अगुआ भी इंसान हैं, अगुआओं के भी परिवार हैं, और अगुआओं को भी अपना जीवन जीना चाहिए, और अगर किसी अगुआ के पास अपने घरेलू मामलों को देखने का समय नहीं है, तो भाई-बहनों को इन मामलों को अपना कर्तव्य मानना चाहिए; इन कामों को करने के लिए अगुआ को उन्हें कहने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, बल्कि अगुआ जिन कामों को करने में सक्षम नहीं है, उन्हें सक्रिय होकर और स्वेच्छा से वे काम करने चाहिए। कई भाई-बहन इस तरह की जादूगरी और प्रलोभन में आकर स्वेच्छा से इन अगुआओं की सेवा करते हैं। सत्ता और रुतबा पाकर मसीह-विरोधी अपना यही लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, और यह उन कामों में से एक है जिसे वे करना चाहते हैं और यह उन लाभों में से एक है जिसे वे सत्ता और रुतबा पाकर हासिल करने की कोशिश करना चाहते हैं। क्या ऐसे बहुत-से लोग हैं? (बिल्कुल हैं।) ये लोग शैतान हैं। जो लोग सत्य से रहित हैं और जो सही मार्ग पर नहीं चलते, अगर उनके पास रुतबे का जरा-सा भी अंश हो तो वे ऐसी चीजें करने में सक्षम हैं। क्या ये लोग दयनीय हैं? उनके चरित्र के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या उनमें जरा-सा भी जमीर या सूझ-बूझ है?

कुछ कलीसियाओं में कुछ भाई बहन होते हैं जो आम तौर पर अपने घरों में नहीं रहते, बल्कि लंबे समय तक अपनी कलीसिया के अगुआ के घर में ही रहते हैं। वे अक्सर कलीसिया के अगुआ के घर में ही क्यों रहते हैं? क्योंकि जब से इस अगुआ ने “अगुआ” का पदभार संभाला है, उसके घर को एक दीर्घकालिक हाउसकीपर की जरूरत पड़ गई है। वे किसी बहन को चुनते हैं, और वह बहन अगुआ के घर के लिए समर्पित हाउसकीपर बन जाती है। यह बहन हाउसकीपर बन जाती है, तो फिर उसका कर्तव्य क्या होता है? वह अपने हिस्से का काम या कलीसिया से संबंधित काम नहीं कर पाती है, इसके बजाय अगुआ के परिवार की सभी पीढ़ियों की उनके रोजमर्रा के जीवन में सेवा करने में जुटी रहती है, और उसे लगता है कि अगुआ के परिवार के कामकाज की देखरेख करना उसके लिए पूरी तरह से न्यायोचित है, और इस बारे में उसे कोई शिकायत या उसकी कोई धारणाएँ नहीं होतीं। यहाँ समस्या किसमें है? कलीसिया के अगुआओं के पास चाहे जितना भी काम हो या वे चाहे कितने भी लोगों की अगुआई करें, क्या वे वाकई इतने ज्यादा व्यस्त हैं? क्या वे वाकई अपने रोजमर्रा के कामकाज नहीं कर पाते हैं? अगर वे नहीं कर पाते हैं, तो भी यह उनकी अपनी समस्या है। इसका किसी और से क्या लेना-देना है? अगर भाई-बहन लापरवाह या सुस्त हैं, तो ऐसे अगुआ अपना रौब दिखाकर उनके साथ “सत्य पर संगति” करने के लिए इस मौके का लाभ उठाते हैं, और इसी बात के कारण भाई-बहनों की काट-छाँट की जाती है—यहाँ चल क्या रहा है? जब उनके घर के बिस्तर गंदे हो जाते हैं, तो भाई-बहनों को उन्हें धोना पड़ता है; जब उनका घर गंदा हो जाता है, तो भाई-बहनों को उसे साफ करना पड़ता है, और खाने के समय भाई-बहनों को खाना पकाना पड़ता है; ये अगुआ कामचोर बन जाते हैं, और अगुआ के तौर पर ऐसे ही काम करते हैं। जब ऐसे लोगों में ये अभिव्यक्तियाँ और इस तरह की मानवता होती है, तो क्या वे सत्य का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं? (नहीं।) क्यों नहीं? (ऐसे लोगों में रत्ती भर भी मानवता नहीं होती और वे बेहद नीच होते हैं। सत्य में उनकी कोई रुचि नहीं होती।) अगर वे सत्य में रुचि नहीं रखते, तो वे अगुआ ही क्यों बनते हैं? (वे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने और खुद का दिखावा करने के लिए ऐसा करते हैं।) तुम इसे साफ तौर पर नहीं समझा सकते, है ना? किस तरह के लोग अपनी सेवा में श्रम करवाने के लिए भाई-बहनों का शोषण करते हैं? क्या यह मसीह-विरोधियों के स्पष्ट लक्षणों में से एक नहीं है? सभी चीजों में सिर्फ अपना फायदा खोजना, केवल अपने नफे-नुकसान की चिंता करना, और इस बात पर विचार नहीं करना कि क्या इस तरह से काम करना सत्य के अनुरूप है, क्या इसमें मानवता है, क्या इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है, क्या इससे भाई-बहनों को कोई लाभ या शिक्षा मिल सकती है—वे इन चीजों पर विचार नहीं करते, बल्कि सिर्फ अपने नफे-नुकसान के बारे में सोचते हैं, और यह कि क्या उन्हें मूर्त लाभ प्राप्त हो सकते हैं। मसीह-विरोधी इसी रास्ते पर चलते हैं, और यही मसीह-विरोधियों का चरित्र है। यह एक किस्म का व्यक्ति है जिसके पास रुतबा है। कुछ लोगों के पास कोई रुतबा नहीं होता और वे साधारण काम करते हैं, और जब वे कुछ योग्यताएँ हासिल कर लेते हैं, तो वे भी दूसरों से अपनी सेवा करवाना चाहते हैं। कुछ लोग थोड़े जोखिम भरे काम करते हैं और वे भी अपनी सेवा करवाने के लिए दूसरों को आदेश देना चाहते हैं। कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो विशेष कर्तव्य निभाते हैं और जो अपने कर्तव्यों को बुनियादी शर्त, मोलभाव करने का साधन, और ऐसी पूँजी मानते हैं जिसकी मदद से वे भाई-बहनों से अपनी सेवा करवाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग ऐसे विशेष व्यावसायिक कौशल जानते हैं जिन्हें दूसरों ने सीखा या समझा नहीं है। जब वे परमेश्वर के घर में इन व्यावसायिक कौशलों से संबंधित कोई कर्तव्य निभाना शुरू करते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे दूसरे लोगों से अलग हैं, उन्हें परमेश्वर के घर में एक महत्वपूर्ण पद पर रखा जा रहा है, वे अब उच्च पदों पर हैं, और खास तौर पर उन्हें लगता है कि उनका मूल्य दोगुना हो गया है, और अब वे सम्माननीय हैं। नतीजतन, उन्हें लगता है कि कुछ ऐसे काम हैं जो उन्हें खुद करने की जरूरत नहीं है, जब उनके लिए खाना लाने या उनके कपड़े धोने जैसे रोजमर्रा के कामों की बात आती है तो दूसरों को बिना मेहनताने के उनकी सेवा करने का आदेश देना स्वाभाविक है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो भाई-बहनों से अपना कोई न कोई काम करवाने के लिए यह बहाना बनाते हैं कि वे अपने कर्तव्य में व्यस्त हैं। उन कार्यों के अलावा जो नितांत रूप से उन्हें खुद ही करने चाहिए, बाकी सब काम जो वे दूसरों से करवा सकते हैं या दूसरों से करवाने का आदेश दे सकते हैं, वे दूसरों से ही करवाते हैं। ऐसा क्यों है? वे सोचते हैं, “मेरे पास पूँजी है, मैं सम्माननीय हूँ, मैं परमेश्वर के घर में एक दुर्लभ प्रतिभा हूँ, मैं एक विशेष कर्तव्य निभाता हूँ, और मैं मुख्य रूप से परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किया जाने वाला व्यक्ति हूँ। तुम लोगों में से कोई भी मेरे जितना अच्छा नहीं है, तुम सब मुझसे निचले स्तर पर हो। मैं परमेश्वर के घर में विशेष योगदान दे सकता हूँ, और तुम लोग नहीं दे सकते। इसलिए, तुम लोगों को मेरी सेवा करनी चाहिए।” क्या ये अत्यधिक और बेशर्म माँगें नहीं हैं? हर कोई अपने दिलों में इन माँगों को पालता है, लेकिन बेशक मसीह-विरोधी बेरुखी और बेशर्मी से इन चीजों की और भी ज्यादा माँग करते हैं, और चाहे तुम उनके साथ सत्य पर कितनी भी संगति करो, वे उन्हें नहीं छोड़ेंगे। आम लोगों में भी मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ होती हैं, और अगर उनमें थोड़ी-सी प्रतिभा है या वे थोड़ा-बहुत योगदान देते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे कुछ विशेष व्यवहार का आनंद लेने के हकदार हैं। वे अपने कपड़े और मोजे खुद नहीं धोते, बल्कि दूसरों से यह काम करवाते हैं, और वे कुछ अनुचित माँगें रखते हैं जो मानवता के विरुद्ध होती हैं—उनमें सूझ-बूझ की बहुत कमी होती है! लोगों के ये विचार और माँगें तर्कसंगतता के दायरे में नहीं आती हैं; पहले, पैमाने के निचले छोर पर देखें तो वे मानवता और जमीर के मानकों के अनुरूप नहीं हैं, और पैमाने के ऊपरी छोर पर देखें तो वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं। इन सभी अभिव्यक्तियों को अपने खुद के फायदों के लिए प्रयास करने वाले मसीह-विरोधियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। भ्रष्ट स्वभावों वाला हर व्यक्ति इन चीजों को करने में सक्षम है, और वे इन्हें करने की जुर्रत भी करते हैं। अगर किसी व्यक्ति के पास थोड़ी-सी प्रतिभा और पूँजी है और वह कुछ योगदान देता है, तो वह दूसरों का शोषण करना चाहता है, वह अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसर का उपयोग अपने खुद के फायदों के लिए करना चाहता है, वह अपने लिए बनी-बनाई चीजें चाहता है और दूसरों को अपनी सेवा करने का आदेश देने से मिलने वाली खुशी और व्यवहार का आनंद लेना चाहता है। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना परिवार और नौकरी छोड़ देते हैं, और इस दौरान उन्हें कोई छोटी-मोटी बीमारी हो जाती है और इसी वजह से वे भावुक हो जाते हैं, और शिकायत करते हैं कि कोई भी उनकी चिंता या देखभाल नहीं करता है। तुम अपने लिए अपना कर्तव्य निभा रहे हो, तुम अपना खुद का कर्तव्य निभा रहे हो और अपनी खुद की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हो—इसका दूसरे लोगों से क्या लेना-देना है? कोई व्यक्ति जो भी कर्तव्य निभाता है, वह कभी किसी और के लिए या किसी और की सेवा में नहीं किया जाता है, और इसलिए किसी पर भी बिना किसी मेहनताने के दूसरों की सेवा करने या दूसरों का आदेश मानने का कोई दायित्व नहीं है। क्या यह सत्य नहीं है? (बिल्कुल सत्य है।) हालाँकि परमेश्वर चाहता है कि लोग प्रेमपूर्ण हों, और दूसरों के प्रति धैर्यवान और सहनशील हों, लेकिन कोई व्यक्ति दूसरों से व्यक्तिगत रूप से ऐसा करने की माँग नहीं कर सकता, और ऐसा करना अनुचित है। अगर कोई व्यक्ति तुम्हारे प्रति सहनशील और धैर्यवान हो सकता है और तुम्हारी अपेक्षा के बिना ही तुम्हारे प्रति प्यार दिखा सकता है, तो यह उस व्यक्ति पर निर्भर है। लेकिन, अगर भाई-बहन तुम्हारी सेवा इसलिए करते हैं क्योंकि तुम उनसे इसकी माँग करते हो, अगर तुम उनको जबरन आदेश देते हो और उनका शोषण करते हो, या तुम उनकी आँखों में धूल झोंक कर उनसे तुम्हारी सेवा करवा रहे हो, तो समस्या तुम में ही है। कुछ लोग अपना कर्तव्य निभाने के अवसर का लाभ उठाते हैं और अक्सर कुछ धनवान भाई-बहनों से चीजें ऐंठने के लिए इसका बहाना बनाते हैं, उनसे अपने लिए कोई न कोई चीज खरीदने और सेवाएँ प्रदान करने को कहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर उन्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत होती है, तो वे किसी भाई या बहन से कहते हैं, “तुम कपड़े बना सकते हो, है ना? जाओ, मेरे पहनने के लिए कुछ बना लाओ।” वह भाई या बहन कहती है, “तो फिर अपना बटुआ निकालो। तुम सामग्री खरीदो और मैं तुम्हारे लिए कुछ बना दूँगी।” वे अपना पैसा नहीं निकालते, बल्कि भाई या बहन को अपने लिए सामग्री खरीदने के लिए मजबूर करते हैं—क्या इस कृत्य की प्रकृति भ्रामक नहीं है? भाई-बहनों के बीच संबंधों का लाभ उठाना, उनकी पूँजी का शोषण करना, भाई-बहनों से सभी प्रकार की सेवाओं और व्यवहार की माँग करने के लिए अपने कर्तव्य निर्वहन के अवसर का लाभ उठाना, भाई-बहनों को अपने लिए श्रम करने का आदेश देना—ये सभी मसीह विरोधियों के घटिया चरित्र की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ऐसे लोग सत्य का अनुसरण कर सकते हैं? क्या वे बिल्कुल भी बदल सकते हैं? (नहीं।) इस तरह से मेरी संगति सुनकर, शायद कुछ लोगों को यह एहसास होगा कि ये चीजें करना बुरी बात है और वे खुद पर थोड़ा लगाम लगाने में सक्षम होंगे, लेकिन क्या खुद पर लगाम लगाना सत्य की खोज और अभ्यास करने के बराबर है? खुद पर लगाम लगाना सिर्फ इस बात का एहसास करना है, और इसका संबंध व्यक्ति की छवि और घमंड से है। मुझसे यह गहन-विश्लेषण सुनने के बाद, ये लोग समस्या की गंभीरता को देख पाते हैं और यह एहसास कर पाते हैं कि वे दोबारा नहीं फिसल सकते, और अगर उन्होंने भाई-बहनों को अपनी असलियत पहचानने दी, तो उन्हें उजागर करके ठुकरा दिया जाएगा। उनका एहसास केवल इस बिंदु तक ही होता है, लेकिन उनकी इच्छाओं और लालच को उनके दिलों से नहीं निकाला जा सकता।

कुछ लोग सोचते हैं, “मैं परमेश्वर के घर के लिए प्रयास कर रहा हूँ, मैंने परमेश्वर के घर के लिए बहुत-से योगदान दिए हैं, मैं वह कर्तव्य निभाता हूँ जिसमें कोई भी मेरी जगह नहीं ले सकता। जब मुझे कोई जरूरत होती है, तो मेरी जरूरतों को पूरा करने में मेरी मदद करने के लिए भाई-बहन अपने कर्तव्य से बंधे हैं। उन्हें हर समय बिना शर्त और बिना मेहनताने के मेरी सेवा करनी चाहिए।” क्या यह सोचने का शर्मनाक तरीका नहीं है? क्या यह एक नीच चरित्र की अभिव्यक्ति नहीं है? उदाहरण के लिए, हर कोई कभी न कभी बीमार पड़ता है, लेकिन जब कुछ लोग बीमार होते हैं, तो वे दूसरे लोगों को इस बारे में बताते नहीं फिरते हैं, बल्कि अपना कर्तव्य निभाना जारी रखते हैं। कोई भी उनके बारे में नहीं जानता या उनकी परवाह नहीं करता, और वे निजी तौर पर शिकायत नहीं करते या अपने कर्तव्य निर्वहन में देरी नहीं करते। फिर कुछ लोग बीमार न होकर भी बीमार होने का बहाना करते हैं, वे महारानियों या रईसों जैसा व्यवहार करते हैं, लोगों से अपनी सेवा करवाने के लिए हर तरीका अपनाते हैं, और विशेष व्यवहार पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं। वे बीमार न होने पर भी बीमार होने का बहाना करते हैं, और जब वे वास्तव में बीमार पड़ते हैं, तो यह और भी अधिक परेशानी का सबब बन जाता है, क्योंकि क्या पता कितने लोग उनके हाथों से कष्ट उठाएँगे और न जाने कितने लोगों को उनके द्वारा आदेश दिया जाएगा। यह ऐसे व्यक्ति के बीमार पड़ने पर सभी लोगों पर टूटने वाला दुर्भाग्य है; कुछ लोग उनके लिए चिकन सूप बनाते हैं, तो कुछ लोग उन्हें टहलाने में मदद करते हैं—क्या बहुत-से लोग कष्ट नहीं उठाते हैं? (बिल्कुल उठाते हैं।) शुरुआत में यह बस एक साधारण-सी, मामूली बीमारी थी, लेकिन उन्हें इसे एक गंभीर, जानलेवा बीमारी होने का दिखावा करना है—उन्हें दिखावा करने की जरूरत क्यों है? वे भाई-बहनों की आँखों में धूल झोंककर उनसे अपनी सेवा करवाने के लिए ऐसा करते हैं, ताकि वे उनके लिए किसी भी तरह की सेवा कर सकें। क्या ये लोग बेशर्म नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) क्या ऐसे बहुत-से लोग हैं? क्या तुम सभी लोग ऐसे नहीं हो? (मैंने अभी तक खुद में इसे नहीं पहचाना है।) अगर तुमने इसे नहीं पहचाना है तो इससे साबित होता है कि तुम लोग अपने रोजमर्रा के जीवन में आम तौर पर अपने व्यवहार को नहीं परखते, तुम लोग अपने विचारों और प्रकृति सार को नहीं परखते, और तुम परमेश्वर की जाँच-पड़ताल को स्वीकार नहीं करते। कुछ लोग अपने कर्तव्य निभाने के दौरान थोड़े ज्यादा थक जाते हैं और रात की नींद भी गँवा देते हैं, और वे इसे एक भयानक स्थिति तक पहुँचा देते हैं। अगली सुबह जब वे सोकर उठते हैं तो कराहते हैं, “बीती रात मैं एक पल भी नहीं सो पाया। बीते दिनों मैं अपने कर्तव्य में इतना अधिक व्यस्त रहा कि ठीक से नींद भी नहीं पूरी कर सका। जरा कोई जल्दी से मेरी मालिश कर दो!” वास्तव में, उन्होंने पूरी छः घंटे की नींद ली थी। उनकी जो भी समस्याएँ होती हैं, वे हमेशा इसका दोष अपने कर्तव्य पर मढ़ देते हैं; चाहे वे थके हुए हों, पीड़ा झेल रहे हों या बीमार हों और असहज महसूस कर रहे हों, वे हमेशा इन बातों का दोष अपने कर्तव्य पर मढ़ देते हैं। वे अपने कर्तव्य पर दोष क्यों मढ़ते हैं? यह सिर्फ थोड़े लाभ पाने और सभी की सहानुभूति पाने के लिए किया जाता है, ताकि वे लोगों से सेवा करवाने की अपनी माँग को सही ठहरा सकें। ये किस तरह के लोग हैं जो हमेशा महाराजाओं और महारानियों जैसा व्यवहार पाना चाहते हैं और दूसरों से अपनी सेवा करवाना चाहते हैं? ये नीच चरित्र वाले और घृणित लोग हैं। जब कुछ लोग थोड़े बीमार महसूस करते हैं, और कभी-कभार खाना भी नहीं खा पाते हैं, तो वे ऐसा दिखाते हैं मानो यह बहुत गंभीर समस्या हो, वे काफी बखेड़ा खड़ा कर देते हैं और फौरन किसी से अपनी मालिश करने के लिए कहते हैं। जब मालिश से उन्हें थोड़ा दर्द होता है, तो जोर से चिल्ला उठते हैं, जिसका अर्थ होता है : “मालिश कराने में भी मुझे काफी पीड़ा हो रही है। अगर परमेश्वर मुझे कोई इनाम नहीं देता और मुझे पूर्ण नहीं बनाता, तो मैं वाकई बहुत कुछ खो दूँगा!” जब वे थोड़ा कष्ट सहते हैं और कीमत चुकाते हैं तो पूरी दुनिया के सामने इसका एलान करना चाहते हैं ताकि धरती पर सभी को इसका पता चल जाए। क्या तुम अपना कर्तव्य अपने लिए नहीं निभाते? क्या तुम परमेश्वर के समक्ष अपना कर्तव्य नहीं निभाते? तो फिर किसलिए लोगों के बीच अपनी पीड़ा का एलान करते हो? क्या यह सतही नहीं है? ऐसे लोग नीच चरित्र वाले और बेहद घृणित होते हैं। ये लोग और किन तरीकों से नीच होते हैं? इस उम्मीद में कि लोग यह जान सकें कि वे दूसरों से अलग और बहुत कीमती हैं और उन्हें काफी देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है, वे कुछ विशेष आदतें और तरकीबें भी दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई कहता है कि उसे भूख नहीं लगती है और वह कुछ भी नहीं खा सकता है, तो ऐसा व्यक्ति अपना पेट पकड़कर कहेगा कि उसका पेट भी खराब है, लेकिन वह अपना कर्तव्य निभाने में लगा रहता है, और किसी को जल्दी से पेट ठीक करने की कोई दवा लाने का आदेश देता है। एक और व्यक्ति था जिससे मैंने कहा, “देखो, मैं केवल थोड़ा-थोड़ा ही खा सकता हूँ, और मेरा पेट ठंडा खाना और ठंडे पेय पदार्थ बरदाश्त नहीं कर पाता हैं।” इस व्यक्ति ने मेरी बात सुनकर जवाब दिया, “तुम्हारा पेट ठंडी चीजें बरदाश्त नहीं कर पाता है? मेरे पेट की भी यही हालत है।” मैंने पूछा, “तुम्हारा पेट ठंडी चीजें कैसे नहीं बरदाश्त कर पाता है?” तो उसने कहा, “जैसे ही मुझे ठंड लगती है, मेरे पेट में दर्द होने लगता है; यह ठंडी चीजें बरदाश्त नहीं कर पाता है।” ऐसा कहते हुए, उसने एक केला छीला और उसे कुछ ही निवालों में खा गया। मैंने कहा, “तुम्हारा पेट वाकई ठंडी चीजें बिल्कुल भी बरदाश्त नहीं कर पाता होगा, क्योंकि तुम उस केले को कुछ ही निवालों में खा गए। क्या तुम्हारा पेट वास्तव में ठंडी चीजें बरदाश्त नहीं कर पाता है?” क्या ऐसे लोग बेशर्म और तर्कहीन नहीं हैं? अगर किसी व्यक्ति में तार्किकता का और उसकी सामान्य मानवता में शर्म का अभाव है, तो वह बिल्कुल भी इंसान नहीं है, बल्कि एक जानवर है। जानवर सत्य नहीं समझ सकते, और उनमें सामान्य मानवता की ईमानदारी, गरिमा, जमीर और सूझ-बूझ नहीं होती। चूँकि इन लोगों में कोई शर्म या गरिमा नहीं होती, इसलिए जब वे थोड़ा-बहुत कर्तव्य निभाते हैं और थोड़ी-बहुत कठिनाई झेलते हैं, तो वे पूरी दुनिया में इसका एलान करना चाहते हैं, ताकि हर कोई उनके प्रयासों को स्वीकार करे, उन्हें प्रशंसा की भावना से देखे, और ताकि परमेश्वर उन्हें विशेष व्यवहार दे, उनके साथ दयालुता से पेश आए और उन्हें आशीष दे। साथ ही, किसी को तुरंत उनकी सेवा करनी चाहिए, उनकी माँगों पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए, और उनके लिए हमेशा मौजूद रहना चाहिए। जब उन्हें प्यास लगती है, तो किसी को उनके लिए चाय बनानी चाहिए; जब उन्हें भूख लगती है, तो किसी को उन्हें खाना परोसना चाहिए। उन्हें हमेशा कोई न कोई चाहिए जो उनकी सेवा करे, उनका कहा करे, और उनकी जरूरतों को पूरा करे। यह ऐसा है जैसे उनका शरीर किसी और के लिए पैदा हुआ हो, और उन्हें स्वाभाविक रूप से किसी की जरूरत होती है जो उनकी सेवा करे; ऐसा लगता है कि अगर कोई उनकी सेवा न करे तो वे खुद की देखभाल करने में असमर्थ और अक्षम हैं। जब उनके पास कोई नहीं होता जिसे कह सकें कि क्या करना है या जिसे अपनी सेवा में श्रम करने का आदेश दे सकें, तो वे अकेलापन और खालीपन महसूस करते हैं, और उन्हें लगता है कि जीवन का कोई अर्थ या उम्मीद नहीं है। जब उन्हें दूसरों से अपनी सेवा करवाने का अवसर और बहाना मिल जाता है, तो वे संतुष्ट और खुश महसूस करते हैं, मानो वे सातवें आसमान पर जी रहे हों। उन्हें लगता है कि जीवन इतना अद्भुत है, परमेश्वर में आस्था इतनी अद्भुत है, परमेश्वर में आस्था का यही अर्थ है और एक विश्वासी को इसी प्रकार परमेश्वर में विश्वास रखना चाहिए। कर्तव्य के बारे में उनकी समझ यह है कि इसका अर्थ दूसरों से सेवा करवाने और दूसरों को स्वतंत्र रूप से आदेश देने में सक्षम होने के आधार पर प्रयास करना और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना है—यही उनका कर्तव्य है। उनका मानना है कि उन्हें अपने कर्तव्य के लिए हमेशा इनाम मिलना चाहिए, उन्हें हमेशा कुछ न कुछ प्राप्त होना चाहिए और कुछ न कुछ पाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर वे पैसा या भौतिक चीजें पाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं तो वे दैहिक सुख और खुशियाँ पाने की कोशिश कर रहे होते हैं, और कम से कम उनका शरीर आनंद और आराम की स्थिति में होना चाहिए, तभी वे खुशी महसूस करेंगे, तभी उनके पास अपना कर्तव्य निभाने की ऊर्जा होगी और वे इसे थोड़ी निष्ठा के साथ कर पाएँगे। क्या ऐसे लोगों को सत्य की विकृत समझ है या वे अपने घटिया चरित्र के कारण सत्य स्वीकार नहीं करते हैं? (उनका चरित्र घटिया है, इसलिए वे सत्य स्वीकार नहीं करते हैं।) ये लोग पूरी तरह से छद्म-विश्वासी हैं, वे मसीह-विरोधियों की संतान हैं, और मसीह-विरोधियों का मूर्त रूप हैं।

परमेश्वर के घर में कुछ ऐसे अभिनेता हैं जिन्हें बाहर की दुनिया में रहकर अभिनय करने में आनंद आता था और उन्हें अभिनय का पेशा पसंद था, लेकिन वे वहाँ अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं कर पाए। अब वे परमेश्वर के घर में आए हैं और आखिरकार उनकी इच्छाएँ पूरी हुई हैं : वे उस पेशे में काम कर सकते हैं जो उन्हें पसंद है, उनके दिल अवर्णनीय खुशी से भरे हुए हैं, और साथ ही यह अवसर देने के लिए वे परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं। इनमें से एक व्यक्ति को मुख्य किरदार की भूमिका निभाने का सौभाग्य मिला, और फिर उसे लगा कि वह एक प्रतिष्ठित और महत्वपूर्ण व्यक्ति है, और उसे अपनी प्रतिष्ठा और महत्व की खातिर कुछ करना चाहिए। उसने देखा कि दुनिया में बड़ी हस्तियाँ और सितारे क्या करते थे, उन्होंने कैसे अभिनय किया, उनकी अभिनय-शैली क्या थी, और उनकी जीवनशैली कैसी थी, और वह उन लोगों की नकल उतारने लगा, उसका मानना था कि गुणवत्ता और कुलीनता वाला जीवन जीना इसी को कहते हैं। तो जिस पल से उसे मुख्य किरदार की भूमिका मिली और वह “स्टार” बना, रौब दिखाने लगा। वह किस हद तक रौब दिखाने लगा? एक बार एक छोटी-सी घटना घटी जिससे इस समस्या को समझा जा सकता है। जब टीम के सभी लोग फिल्मांकन शुरू करते को तैयार थे, इस विशेष “स्टार” की एक भौंह अच्छे से नहीं बन पाई थी, और सभी लोगों को उसका इंतजार करना पड़ा, उसके आसपास घूमना पड़ा और उसकी सेवा करनी पड़ी। दस मिनट बीत गए, फिर बीस मिनट बीत गए, और उस स्टार को लगा कि उसकी भौंह बहुत अच्छे से नहीं बनी है, तो उसने मेकअप आर्टिस्ट को इसे साफ करके फिर से बनाने को कहा। एक घंटा बीत गया, सभी कलाकार और टीम के लोग इस “स्टार” का इंतजार कर रहे थे कि उसकी भौंह अच्छे से बनकर तैयार हो जाए तो वे लोग फिल्मांकन शुरू करें—हर किसी को इस व्यक्ति की सेवा करते हुए उसके आसपास घुमते रहना पड़ा। यह किस किस्म का व्यक्ति है? क्या वह सामान्य इंसान है? क्या वह मानवता वाला इंसान है? नहीं, वह शैतान के शिविर का इंसान है, वह शैतान का है, और वह परमेश्वर के घर का सदस्य नहीं है। क्या परमेश्वर के घर में स्टार होते हैं? परमेश्वर के घर में कोई स्टार नहीं होता, केवल भाई-बहन होते हैं; वहाँ केवल अलग-अलग कर्तव्य होते हैं, उच्च और निम्न पदों का अंतर नहीं होता। तो फिर इस व्यक्ति ने किस आधार पर भाई-बहनों से अपने लिए इंतजार करवाया? एक बात तो पक्की है, उसे लगा कि वह दूसरे लोगों से अधिक महत्वपूर्ण है, और उसका कर्तव्य दूसरे लोगों के कर्तव्यों से अधिक अहमियत रखता है, उसके बिना अभिनय को फिल्माया नहीं जा सकता, और उसके बिना दूसरे लोगों काकर्तव्य निभाना व्यर्थ है। इसतिए सभी को उसकी सेवा करनी होगी, कीमत चुकानी होगी और उसके इंतजार में धैर्य रखना होगा, और इसके लिए किसी को शिकायत नहीं करनी चाहिए। मानवता का अभाव होने के अलावा, ऐसे लोग इस तरह का व्यवहार करने के सिद्धांत कहाँ से प्राप्त करते हैं? क्या उनके सिद्धांत सत्य से और परमेश्वर के वचनों से आते हैं, या वे मनुष्य के भ्रष्ट स्वभावों से आते हैं? (मनुष्य के भ्रष्ट स्वभावों से।) शैतान के शिविर से आए लोगों के पास न केवल शैतान के भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, बल्कि लोगों के समूह के भीतर उनके क्रियाकलाप, व्यवहार, और अभिव्यक्तियाँ भी घिनौनी होती हैं। वे घिनौनी क्यों होती हैं? वे हमेशा स्थिति पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, दूसरे लोगों के साथ हेरफेर करना चाहते हैं, और अन्य लोगों को अपने इर्द-गिर्द घुमाना चाहते हैं और खुद को सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाना चाहते हैं। ऐसा करके, वे साफ तौर पर खुद को बाकी सभी से ऊँचे स्थान पर रखते हैं; वे दूसरों से ऊपर उठना और सभी पर नियंत्रण करना चाहते हैं। क्या लोगों को यह सब करना चाहिए? (नहीं।) ऐसा कौन करता है? (शैतान।) यह शैतान का ही काम है। उन सत्यों में जहाँ परमेश्वर लोगों से अपने कर्तव्य निभाने की अपेक्षा करता है, क्या ऐसी कोई अपेक्षा है कि लोग अपने कर्तव्य निभाते हुए स्थिति पर अपनी पकड़ बनाएँ और सभी के विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करें? (नहीं।) तो फिर यह कहाँ से आता है? यह एक शैतानी प्रकृति है जिसके साथ लोग पैदा होते हैं। लोग शैतान के हैं और उनके पास यह प्रकृति जन्म से ही मौजूद है। उन्हें इसे सीखने की कोई जरूरत नहीं है, उन्हें ऐसे व्यक्ति की जरूरत नहीं है जो यह सब सिखाए, और उनके साथ सत्य पर तुम्हारी संगति चाहे जैसी भी हो, वे इस चीज को नहीं छोड़ेंगे। एक और व्यक्ति था जिसके कुछ रूखे और बेतरतीब बाल थे जिन्हें ठीक से सँवारे बिना ही वह अपनी प्रस्तुति देने के लिए मंच पर पहुँच गया। अपने रूप-रंग के मामले में, वह ठीक ही लगता था, फिर भी समय पर अपनी प्रस्तुति देने के लिए वह मंच पर नहीं उतरा; भाई-बहनों ने उससे बहुत अनुनय-विनय किया, पर कोई फायदा नहीं हुआ। वह खुद को स्टार मानता था, प्रभावशाली व्यक्ति मानता था; उसने इन थोड़े से रूखे और बेतरतीब बालों की खातिर हर किसी को कीमत चुकाने और अपना समय खपाने पर मजबूर कर दिया, और हर किसी को अकेले उसकी सेवा करनी पड़ी। क्या सामान्य मानवता वाले व्यक्ति की यह अभिव्यक्ति होनी चाहिए? इस तरह के व्यवहार की प्रकृति क्या है? क्या वह रौब नहीं दिखा रहा था? वह जिम्मेदार नहीं था और सभी तर्कों को अनदेखा कर रहा था। जहाँ तक इस व्यक्ति की बात है, किसी का भी कर्तव्य उसके जितना महत्वपूर्ण नहीं था, और हर किसी को उसकी सेवा करनी पड़ी। उसने सोचा, “अगर इन दो लटों को सँवारने में पूरा दिन भी लग जाता है, तो तुम लोगों को दिन भर मेरे लिए इंतजार करना होगा; अगर इसमें दो दिन लगते हैं, तो तुम लोगों को दो दिन तक इंतजार करना होगा; और अगर इसमें पूरा जीवन लग जाता है, तो तुम लोगों को जीवन भर इंतजार करना होगा। परमेश्वर के घर के कार्य और उसके हितों का क्या—मेरे हित सबसे पहले आते हैं। अगर मैं अपने बालों को सँवार नहीं सकता, तो क्या कैमरे के सामने जाने पर मेरी छवि खराब नहीं होगी? मेरी छवि बहुत महत्वपूर्ण है। परमेश्वर के घर के हितों के कोई मायने नहीं हैं!” इस तरह का व्यक्ति यह भी कहेगा, “मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ, मैं परमेश्वर की गवाही देता हूँ, मैं परमेश्वर के लिए अपना कर्तव्य निभाता हूँ, और मैं सब कुछ त्याग देता हूँ।” क्या यह सरासर झूठ नहीं है? वे एक या दो लटों को सँवारने जैसी मामूली चीज को नहीं छोड़ सकते, तो वे क्या छोड़ सकते हैं? वे क्या त्याग सकते हैं? उनका सारा त्याग झूठा है! ऐसे लोग पूरी तरह से तर्कहीन हैं, उनमें जमीर नाम की चीज नहीं है, और वे घटिया चरित्र के लोग हैं, और वे सत्य से प्रेम करने में और भी पीछे हैं। चूँकि उनकी मानवता स्तरीय नहीं है, इसलिए कोई भी उनके साथ सत्य की बात नहीं करेगा, वे इसके लायक नहीं हैं, और उनका चरित्र स्तरीय नहीं है। और ऐसी नीच मानवता के साथ, क्या उनके साथ सत्य की बात करना सूअर या कुत्ते के साथ सत्य की बात करने जैसा नहीं होगा? जब उनमें कुछ मानव के समान होगा और वे मनुष्य की तरह बोल सकेंगे, तभी लोग उनके साथ सत्य की बात करेंगे, लेकिन अभी वे इसके लायक नहीं हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं, काफी संख्या में हैं। तो, कुछ लोग इन चीजों को अभिव्यक्त क्यों नहीं करते? ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने अभी तक किसी अवसर का लाभ नहीं उठाया है; ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि उनकी काबिलियत और प्रतिभा बहुत ही साधारण है, और उन्हें सुर्खियों में आने का मौका नहीं मिला है और उन्होंने कुछ पूँजी प्राप्त नहीं की है, लेकिन अपने दिलों में, वे योजनाएँ बना रहे हैं, उनकी योजनाएँ अभी भी प्रारंभिक अवस्था में हैं। इसीलिए उन्होंने इस तरह का खुलासा नहीं किया है। हालाँकि, ऐसा खुलासा न होने का मतलब यह नहीं है कि उनमें ऐसी प्रकृति नहीं है। यदि तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलते हो, तो देर-सवेर एक दिन ऐसा आएगा जब तुमसे यह खुलासा होगा। तुम तुम ही हो, और मानवता रहित होना मानवता रहित होना ही है; तुम दिखावा करके या इसलिए मानवता वाले व्यक्ति नहीं बन सकते क्योंकि तुम में कोई प्रतिभा नहीं है और तुम्हारी काबलियत अच्छी नहीं है। इसलिए केवल एक ही रास्ता है : जब कोई व्यक्ति सत्य स्वीकार सकता है और काट-छाँट किए जाने को स्वीकार सकता है, तो उसके चरित्र में कुछ हद तक सुधार हो सकता है। जब वह इन तथ्यों का सामना कर सकता है, इन तथ्यों को सही तरीके से समझ सकता है, और फिर अपने व्यवहार और अंतरतम हृदय की बार-बार जाँच-परख करने में सक्षम है, तो वह बेहतर बन सकता है और खुद को थोड़ा संयमित कर सकता है। खुद को थोड़ा संयमित करके क्या उद्देश्य हासिल किया जा सकता है? तुम खुद को इतना अधिक शर्मिंदा नहीं करोगे, तुम्हारी प्रतिष्ठा थोड़ी बेहतर हो जाएगी, लोग तुमसे घृणा नहीं करेंगे, परमेश्वर तुमसे घृणा नहीं करेगा, और इस तरह तुम्हें अभी भी परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका मिल सकता है। क्या यह वो न्यूनतम विवेक नहीं है जो एक मनुष्य के पास होना चाहिए? क्या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके पास थोड़ा भी जमीर और विवेक हो, इस तरह से अभ्यास करना और प्रवेश करना आसान नहीं है?

जब तुम लोग मुझे इस तरह के लोगों के बारे में बात करते हुए सुनते हो, तो तुम काफी सहज महसूस करते हो, लेकिन अगर मैं तुम में से कुछ खास लोगों के बारे में बात करूँ, तो तुम लोग कैसा महसूस करोगे? क्या तुम सामान्य प्रतिक्रिया दोगे? मैं तुम लोगों को बता दूँ, अगर तुम स्वभाव में बदलाव प्राप्त करना चाहते हो और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना चाहते हो, तो तुम्हें एक के बाद एक परीक्षा पास करनी होगी। इन मामलों को कम मत आंको; अगर तुम्हारी मानवता स्तरीय नहीं है, तो न केवल भाई-बहन तुमसे घृणा करेंगे, बल्कि परमेश्वर तुम्हें पूर्ण नहीं करेगा या ना ही तुम्हें बचाएगा। परमेश्वर द्वारा किसी को बचाए जाने की सबसे बुनियादी शर्तें हैं कि उस व्यक्ति में मानवता, विवेक और जमीर होना चाहिए, और उसमें शर्मो-हया होनी चाहिए। जब ऐसा कोई व्यक्ति परमेश्वर के सामने आकर उसके वचनों को सुनता है, तो परमेश्वर उसे रोशन करेगा, उसकी अगुआई करेगा और उसका मार्गदर्शन करेगा। जिन लोगों में मानवता, जमीर, विवेक या शर्मो-हया नहीं है, वे हमेशा परमेश्वर के सामने आने के अयोग्य रहेंगे। भले ही तुम धर्मोपदेश सुनो और कुछ धर्म-सिद्धांतों को जान लो, फिर भी तुम प्रबुद्ध नहीं होगे, और इसलिए तुम हमेशा के लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में असमर्थ रहोगे। अगर तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम नहीं हो, तो यह एहसास करने में अधिक समय नहीं लगता कि उद्धार पाने की तुम्हारी उम्मीदें शून्य हैं। अगर तुममें केवल मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ और मसीह-विरोधियों का स्वभाव और सार है, और तुममें सामान्य मानवता की कोई भी अभिव्यक्ति नहीं है जिसकी परमेश्वर तुम्हारे पास होने की अपेक्षा करता है, तो तुम बहुत बड़े खतरे में हो। अगर तुम मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों और सारों से, जिन्हें मैं उजागर कर रहा हूँ, एक-एक करके खुद की तुलना कर सकते हो और साथ ही खुद की तुलना उनके क्रियाकलापों और खुलासों से कर सकते हो, अगर तुममें ये सभी चीजें अधिक या कम मात्रा में मौजूद हैं, तो यह तुम्हारे लिए बहुत खतरनाक है। अगर तुम अभी भी सत्य का अनुसरण नहीं करते हो और मसीह-विरोधी के रूप में वर्गीकृत किए जाने तक प्रतीक्षा करते हो, तो तुम पूरी तरह से समाप्त हो जाओगे। घातक बीमारी कौन-सी है : मसीह-विरोधी का सार होना या मसीह-विरोधी का स्वभाव होना? (मसीह-विरोधी का सार होना।) सच में? (हाँ।) इस बारे में ध्यान से सोचो, और फिर दोबारा जवाब दो। (मसीह-विरोधी का सार होना और मसीह-विरोधी का स्वभाव होना, दोनों ही घातक बीमारियाँ हैं।) ऐसा क्यों है? (क्योंकि मसीह-विरोधी के सार वाले लोग सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे, और यही बात मसीह-विरोधी के स्वभाव वाले लोगों पर भी लागू होती है। चाहे वे किसी भी समस्या का सामना करें, मसीह-विरोधी के स्वभाव वाले लोग कभी भी सत्य का अनुसरण करने पर ध्यान नहीं देते हैं, और उनमें न्यूनतम मानवता और विवेक भी नहीं होता है; इस तरह के लोग सत्य प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं, और वे उद्धार भी प्राप्त नहीं कर सकते हैं—यह भी एक घातक बीमारी है।) और कौन बोलना चाहेगा? (मेरी समझ यह है कि इनमें से कोई भी घातक बीमारी नहीं है, लेकिन अगर कोई सत्य का अनुसरण नहीं करता है, तो वह घातक बीमारी है।) यह इस मामले में एक अच्छा नजरिया है। हालाँकि, इसके लिए एक पूर्व-शर्त है, वह है मसीह-विरोधी का सार—जिन लोगों में मसीह-विरोधी का सार है, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे छद्म-विश्वासी हैं—मसीह-विरोधी का सार होना सबसे खतरनाक चीज है। मसीह-विरोधी के सार का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि ये लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते; वे केवल रुतबे के पीछे भागते हैं, वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के शत्रु हैं, वे मसीह-विरोधी हैं, वे शैतान के प्रतिरूप हैं, वे जन्मजात शैतान हैं, उनमें रत्ती भर भी मानवता नहीं है, वे भौतिकतावादी हैं, वे मानक छद्म-विश्वासी हैं, और ऐसे लोग सत्य से विमुख होते हैं। “सत्य से विमुख” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर सत्य है, वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, और इस तथ्य को तो वे और भी कम स्वीकारते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर और हर एक चीज पर संप्रभुता रखता है। तो, जब ऐसे लोगों को सत्य का अनुसरण करने का अवसर दिया जाता है, क्या वे ऐसा कर सकते हैं? (नहीं।) क्योंकि वे सत्य का अनुसरण नहीं कर सकते, और क्योंकि वे हमेशा के लिए सत्य के शत्रु और परमेश्वर के शत्रु हैं, वे कभी भी सत्य प्राप्त नहीं कर पाएँगे। हमेशा के लिए सत्य प्राप्त करने में असमर्थ रहना एक घातक बीमारी है। और जिन लोगों में मसीह-विरोधी स्वभाव होता है, वे सभी स्वभाव के मामले में उन लोगों जैसे होते हैं जिनके पास मसीह-विरोधी सार है : वे एक जैसी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं, एक जैसे खुलासे करते हैं, और उनका इन अभिव्यक्तियों और खुलासों को प्रदर्शित करने का तरीका, उनके सोचने का तरीका, और परमेश्वर के बारे में उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ सभी एक जैसी होती हैं। हालाँकि, जिन लोगों के पास मसीह-विरोधी स्वभाव होता है, चाहे वे सत्य स्वीकार कर सकें या नहीं और यह तथ्य स्वीकार सकें या नहीं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, जब तक वे सत्य का अनुसरण नहीं करते, तब तक उनका मसीह-विरोधी स्वभाव एक घातक बीमारी बन जाता है, और यही वजह है कि उनका परिणाम भी मसीह-विरोधी सार वाले लोगों के परिणाम जैसा ही होगा। फिर भी सौभाग्य से मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जिनमें मानवता, विवेक, जमीर और शर्मो-हया है, जो सकारात्मक चीजों से प्यार करते हैं और जिनके पास परमेश्वर द्वारा बचाए जाने की स्थितियाँ हैं। चूँकि वे सत्य का अनुसरण करते हैं, इसलिए ये लोग स्वभाव में बदलाव प्राप्त करते हैं, अपने भ्रष्ट स्वभाव त्याग देते हैं, और अपने मसीह-विरोधी स्वभाव त्याग देते हैं, ताकि उनका मसीह-विरोधी स्वभाव अब उनके लिए कोई घातक बीमारी न रहे, और तब उनके बचाए जाने की संभावना बनी रहती है। किस परिस्थिति में ऐसा कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी का स्वभाव होना एक घातक बीमारी है? इसके लिए एक पूर्व-शर्त है, जो यह है कि भले ही ये लोग परमेश्वर का अस्तित्व स्वीकारते हैं, परमेश्वर की संप्रभुता में विश्वास रखते हैं, परमेश्वर द्वारा कही गई हर एक बात पर विश्वास करते हैं और उसे स्वीकारते हैं, और अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं, लेकिन एक गड़बड़ है : वे कभी भी सत्य का अभ्यास नहीं करते या सत्य का अनुसरण नहीं करते। इसलिए उनका मसीह-विरोधी स्वभाव उनके लिए घातक बन जाता है, और यह उनकी जान ले सकता है। जब मसीह-विरोधी सार वाले लोगों की बात आती है, तो परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, इन लोगों के लिए सत्य से प्रेम करना या सत्य स्वीकारना संभव नहीं होता है, और वे कभी भी सत्य प्राप्त नहीं कर सकते। क्या तुम समझते हो? (हाँ।) तुम समझते हो। तो इसे मेरे सामने दोहराओ। (मसीह-विरोधी सार वाले लोग स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के शत्रु होते हैं। वे निश्चित रूप से ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य से प्रेम करते हैं और उसे स्वीकार सकते हैं, और उनके लिए कभी भी सत्य प्राप्त करना संभव नहीं है, और यही वजह है कि उनके लिए उनका मसीह-विरोधी स्वभाव एक घातक बीमारी है। जबकि कुछ लोग जिनका, इस पूर्व-शर्त के साथ कि उनमें मानवता, विवेक, जमीर और शर्मो-हया है, मसीह-विरोधी स्वभाव है और जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं और सत्य का अनुसरण करते हैं, और फिर सत्य का अनुसरण करके स्वभाव में बदलाव प्राप्त करते हैं, वे सही मार्ग पर चल रहे हैं, और उनके लिए उनका मसीह-विरोधी स्वभाव घातक बीमारी नहीं है। यह सब इन लोगों के सार और जिस मार्ग पर वे चलते हैं उससे निर्धारित होता है।) यानी मसीह-विरोधी सार वाले लोगों के लिए कभी भी सत्य का अनुसरण करना संभव नहीं है, और वे कभी भी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते हैं, जबकि मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है : एक प्रकार सत्य का अनुसरण करता है और उद्धार प्राप्त कर सकता है, और दूसरा प्रकार सत्य का अनुसरण बिल्कुल भी नहीं करता है और उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता है। जो लोग उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते हैं वे सभी श्रमिक हैं; कुछ निष्ठावान श्रमिक बच सकते हैं, और यह भी संभव है कि उन्हें एक अलग परिणाम मिले।

मसीह-विरोधी सार वाले लोग उद्धार क्यों नहीं प्राप्त कर सकते? क्योंकि ये लोग सत्य स्वीकार नहीं करते, न ही वे यह स्वीकारते हैं कि परमेश्वर सत्य है। ये लोग यह नहीं मानते कि सकारात्मक चीजें हैं, और वे सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते। इसके बजाय, वे दुष्ट चीजों और नकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं; वे सभी दुष्ट और नकारात्मक चीजों के प्रतिरूप हैं, और वे सभी नकारात्मक और दुष्ट चीजें अभिव्यक्त करते हैं, और यही वजह है कि वे सत्य से विमुख हैं, सत्य से शत्रुता रखते हैं, और सत्य से घृणा करते हैं। क्या ऐसे सार के साथ वे सत्य का अनुसरण कर सकते हैं? (नहीं।) इसलिए, इन लोगों से सत्य का अनुसरण करवाना असंभव है। क्या किसी जानवर को दूसरी तरह के जानवर में बदलना संभव है? उदाहरण के लिए, क्या किसी बिल्ली को कुत्ते या चूहे में बदलना संभव है? (नहीं।) एक चूहा हमेशा चूहा ही रहेगा, अक्सर बिलों में छिपता फिरेगा और छाया में ही रहेगा। बिल्ली हमेशा चूहे की कुदरती दुश्मन रहेगी, और इसे बदला नहीं जा सकता—इसे कभी भी बदला नहीं जा सकता। फिर भी मसीह-विरोधी स्वभाव वाले लोगों में कुछ ऐसे लोग हैं जो सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, जो सत्य का अभ्यास करने और अनुसरण करने के लिए हर संभव प्रयास करने को तैयार रहते हैं; परमेश्वर जो कुछ भी कहता है वे उसका अभ्यास करते हैं, चाहे परमेश्वर कैसे भी उनकी अगुआई करे वे उसका अनुसरण करते हैं, परमेश्वर जो भी करने को कहता है उसे करते हैं, वे जिस मार्ग पर चलते हैं वह पूरी तरह से परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप होता है, और वे परमेश्वर द्वारा दिए गए दिशानिर्देश और उद्देश्यों के अनुसार आगे बढ़ते हैं। जहाँ तक दूसरे लोगों की बात है, इस तथ्य के अलावा कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, वे भी मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं, और यह समझने में अधिक समय नहीं लगता है कि इन लोगों का परिणाम क्या होगा। वे न केवल सत्य प्राप्त नहीं करेंगे, बल्कि बचाए जाने का अवसर भी खो देंगे—ये लोग कितने दयनीय हैं! परमेश्वर उन्हें अवसर देता है और उन्हें सत्य और जीवन की आपूर्ति भी करता है, लेकिन वे इन चीजों को संजोते नहीं हैं, और वे पूर्ण बनाए जाने के मार्ग पर नहीं चलते हैं। ऐसा नहीं है कि परमेश्वर कुछ लोगों के बजाय दूसरों को तरजीह देता है और उन्हें अवसर नहीं देता है, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वे इन अवसरों को संजोते नहीं हैं या परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कार्य नहीं करते हैं, इसलिए वे बचाए जाने का अवसर खो देते हैं। इसलिए, उनका मसीह-विरोधी स्वभाव घातक बन जाता है और उन्हें अपनी जान गँवानी पड़ती है। वे सोचते हैं कि कुछ धर्म-सिद्धांतों को समझने और कुछ बाहरी क्रियाकलाप और अच्छे व्यवहार प्रदर्शित करने का मतलब है कि परमेश्वर उनके मसीह-विरोधी स्वभाव के मामले को नहीं देखेगा, और वे इसे छिपा सकते हैं, नतीजतन उन्हें स्वाभाविक रूप से सत्य का अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं है और वे जो चाहे वो कर सकते हैं, और अपनी समझ, तरीकों और इच्छाओं के अनुसार कार्य कर सकते हैं। अंत में, परमेश्वर चाहे उन्हें कितने भी अवसर क्यों न दे, वे अपने ही मार्ग से चिपके रहते हैं, वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं, और परमेश्वर के शत्रु बन जाते हैं। वे परमेश्वर के शत्रु इसलिए नहीं बन जाते क्योंकि परमेश्वर ने शुरू से ही उन्हें इस तरह परिभाषित किया था—परमेश्वर ने शुरू में उन्हें कोई परिभाषा नहीं दी थी, क्योंकि परमेश्वर की नजरों में वे उसके शत्रु या मसीह-विरोधी सार वाले लोग नहीं थे, बल्कि वे केवल शैतानी, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग थे। परमेश्वर चाहे कितने भी सत्य व्यक्त करे, वे फिर भी अपने अनुसरण में सत्य के लिए प्रयास नहीं करते। वे उद्धार के मार्ग पर कदम नहीं रख सकते, और इसके बजाय वे मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलते हैं, और आखिरकार बचाए जाने का अपना अवसर खो देते हैं। क्या यह शर्मनाक नहीं है? यह बहुत शर्मनाक है! ये लोग बहुत ही दयनीय हैं। वे दयनीय क्यों हैं? वे कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत समझते हैं और सोचते हैं कि वे सत्य समझते हैं; वे थोड़ी कीमत चुकाते हैं और अपने कर्तव्य करते हुए कुछ अच्छा व्यवहार प्रदर्शित करते हैं और सोचते हैं कि वे सत्य पर अमल कर रहे हैं; उनके पास थोड़ी प्रतिभा, काबिलियत और गुण हैं, और वे कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकते हैं, कुछ काम कर सकते हैं, कुछ विशेष कर्तव्य निभा सकते हैं, और उन्हें लगता है कि उन्होंने जीवन प्राप्त कर लिया है; वे थोड़ा कष्ट सह सकते हैं और थोड़ी कीमत चुका सकते हैं, और वे गलती से यह सोच लेते हैं कि वे परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हैं और परमेश्वर के लिए सब कुछ त्याग सकते हैं। वे अपने बाहरी अच्छे व्यवहार, अपने गुणों और उन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं जिनसे उन्होंने खुद को लैस किया है ताकि ये सत्य का अभ्यास करने की जगह ले सकें—यह उनकी सबसे बड़ी समस्या है, उनका घातक दोष है। यह उन्हें गलत तरीके से विश्वास दिलाता है कि वे पहले से ही उद्धार के मार्ग पर चल पड़े हैं, और उनके पास पहले से ही आध्यात्मिक कद और जीवन है। किसी भी मामले में, अगर ये लोग अंत में उद्धार प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं तो इसके लिए वे खुद के अलावा किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकते; ऐसा इसलिए है क्योंकि वे खुद ही सत्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं, सत्य का अनुसरण नहीं कर रहे हैं, और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने के इच्छुक हैं।

अब कुछ ऐसे लोग हैं जो 30 सालों से धर्मोपदेश सुनने के बाद, अब भी नहीं जानते कि सत्य क्या है या धर्म-सिद्धांत क्या है। जब वे अपने मुँह खोलते हैं, तो केवल खोखले सिद्धांत, दूसरों को उपदेश देने वाले शब्द और खोखले नारे बोलते हैं, और वे हमेशा केवल इस बारे में बात करते हैं कि उन्होंने अतीत में कैसे-कैसे कष्ट सहे और कितनी कीमत चुकाई; इस प्रकार वे अपनी वरिष्ठता दिखाते हैं। वे कभी भी अपने आत्म-ज्ञान के बारे में बात नहीं करते, यह नहीं बताते कि वे काट-छाँट किए जाने को कैसे स्वीकारते हैं, कैसे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, कैसे शोहरत और लाभ के लिए होड़ करते हैं या उनके पास मसीह-विरोधी स्वभाव के कौन-से खुलासे हैं। वे इन चीजों के बारे में कभी बात नहीं करते; वे केवल अपने योगदान के बारे में बात करते हैं और अपने अपराधों के बारे में नहीं बोलते। क्या ये लोग बहुत बड़े खतरे में नहीं हैं? कुछ लोग 20-30 साल से धर्मोपदेश सुन रहे हैं और अभी भी नहीं जानते कि सत्य वास्तविकता क्या है या परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने का क्या अर्थ है, और इसलिए मुझे संदेह है कि इन लोगों में शायद परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं है। 30 साल से धर्मोपदेश सुनने के बाद, उन्हें लगता है कि उनके पास आध्यात्मिक कद है, लेकिन जब उनके पास कोई रुतबा नहीं होता तो वे अब भी नकारात्मक हो सकते हैं, और वे अकेले में रोएँगे और शिकायत करेंगे, और शायद अपना काम भी छोड़ दें। 30 साल से धर्मोपदेश सुनने के बाद, जब उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है, तो वे अब भी चिड़चिड़े और विवेकहीन हो सकते हैं, और खुद को परमेश्वर के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं। इतने सालों से धर्मोपदेश सुनने के बाद उन्होंने क्या समझा है? अगर इतने सारे धर्मोपदेश सुनने के बाद भी उन्हें यह समझ में नहीं आया कि सत्य क्या है, तो क्या उन्होंने व्यर्थ में ही विश्वास नहीं किया? इसे ही भ्रमित आस्था कहते हैं!

14 मार्च, 2020

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