मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग दो)
II. मसीह-विरोधियों के हित
आज, हम मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के मद नौ पर संगति जारी रखेंगे। उनकी अभिव्यक्तियों का नौवां मद कुछ इस प्रकार है : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं। पिछली बार, हमने इसके एक छोटे से हिस्से पर संगति की थी, बस अपना विषय शुरू किया था और इस बारे में संगति की थी कि हित क्या हैं, जो कि पहला मुद्दा है। दूसरे मुद्दे के लिए, हमने इस बारे में संगति की थी कि लोगों के हित क्या हैं और उनके हितों का सार क्या है। तीसरा मुद्दा जिसके बारे में हमने संगति की थी वह यह था कि परमेश्वर के हित क्या हैं और परमेश्वर के हितों का सार क्या है—यह कमोबेश उन तीन मुद्दों की विषय-वस्तु थी जिस पर हमने संगति की थी। पिछली बार हम अनिवार्य रूप से अवधारणात्मक सत्यों के बारे में संगति करते हुए हितों के विभिन्न पहलुओं की परिभाषा पर पहुँचे थे और लोगों को बुनियादी अवधारणाओं की समझ प्रदान की थी। इस बार हम उपरोक्त विषय-वस्तु पर और बात नहीं करेंगे, क्योंकि अपने नौवें मद के लिए हम जिस विषय-वस्तु के बारे में संगति करेंगे उसका उद्देश्य मसीह विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर प्रकाश डालना है। इसलिए, हम इस मद की अपनी संगति में मसीह विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर ध्यान देना जारी रखेंगे। हम मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों से संबंधित विभिन्न हितों के प्रति उनके रवैये और व्यवहार का गहन विश्लेषण करेंगे, मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार और स्वभाव की पहचान करने और इस दृष्टिकोण से उनका गहन विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे। हम इस विषय के साथ संगति शुरू करेंगे कि मसीह-विरोधियों की नजरों में, उनके हितों के लिए कौन-सी चीजें प्रासंगिक हैं।
मसीह विरोधियों की नजरों में, परमेश्वर, परमेश्वर का घर और कलीसिया सिर्फ लेबल हैं, शायद नाम से बढ़कर और कुछ नहीं, उनका कोई वास्तविक मूल्य नहीं है। इसलिए, वे परमेश्वर, परमेश्वर के घर और कलीसिया के हितों को अवमानना की दृष्टि से देखते हैं, और वे उनके विचार के लिए नीचे हैं या ध्यान देने लायक नहीं हैं। इसके विपरीत, मसीह-विरोधियों के व्यक्तिगत हित उनके लिए सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं। नतीजतन, मसीह-विरोधी अक्सर अपने व्यक्तिगत हितों के बदले में कलीसिया और परमेश्वर के घर के हितों का सौदा कर देते हैं। अब, आओ मसीह-विरोधियों के हितों के लिए प्रासंगिक चीजों को श्रेणियों में बाँटें और उनका अच्छी तरह से गहन विश्लेषण करें, ताकि लोगों को हितों के मामलों पर उनके दृष्टिकोण के बारे में स्पष्ट जानकारी मिल सके। सबसे जरूरी बात, चाहे मसीह-विरोधियों को कैसे भी लेबल किया जाए, चाहे वे मसीह-विरोधी हों, बुरे लोग हों, या ऐसे व्यक्ति हों जो सत्य का अभ्यास नहीं करते या उसके प्रति शत्रुता रखते हैं, इस तरह के लोग शून्य में नहीं रहते। वे देह में रहते हैं और उनकी जरूरतें भी सामान्य मानव जीवन वाली ही होती हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों जैसे लोग जो भाई-बहनों के बीच या परमेश्वर के घर और कलीसिया के भीतर रहते हैं, उनके भी अपनी सुरक्षा से जुड़े हित होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में पहला उपखंड है—उनकी अपनी सुरक्षा। मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में दूसरा उपखंड उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा है, जो उनके अधिकार से संबंधित है। मसीह-विरोधियों के हितों के बारे में तीसरे उपखंड में उनके लाभ शामिल हैं। क्या इन तीन उपखंडों के जरिये मसीह-विरोधियों के हितों का गहन विश्लेषण करना उनके बारे में अव्यवस्थित और सीधे तरीके से संगति करने की तुलना में ज्यादा स्पष्ट है? (बिल्कुल।) अगर मैं तुम सबसे इन तीन उपखंडों के आधार पर संगति करने के लिए कहूँ, तो क्या तुम्हारे पास कोई अंतर्दृष्टि है? क्या तुम थोड़ी समझ के बारे में संगति कर सकते हो? (मैं दूसरे उपखंड के बारे में कुछ अंतर्दृष्टियों पर चर्चा कर सकता हूँ, मगर मुझे व्यक्तिगत सुरक्षा और लाभ के बारे में ज्यादा स्पष्ट समझ नहीं है।) ठीक है, चूँकि मैं संगति कर रहा हूँ, इसलिए तुम लोग जहाँ भी स्पष्टता से बोलने में सक्षम हो, वहाँ बोल सकते हो, और तुम लोगों को जो भी अस्पष्ट लगे उसके बारे में मैं संगति करूँगा। क्या यह ठीक रहेगा? (बिल्कुल।)
क. उनकी अपनी सुरक्षा
हम अपनी संगति की शुरुआत मसीह-विरोधियों के हितों के पहले उपखंड—उनकी अपनी सुरक्षा से करेंगे। इस उपखंड का अर्थ सभी को स्पष्ट होना चाहिए; यह व्यक्ति की शारीरिक सुरक्षा के बारे में है। मुख्यभूमि चीन में, परमेश्वर में विश्वास रखने का मतलब है एक खतरनाक परिवेश में रहना। परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हरेक व्यक्ति को रोज गिरफ्तार किए जाने, सजा पाने और बड़े लाल अजगर द्वारा क्रूर उत्पीड़न दिए जाने के जोखिम का सामना करना पड़ता है। मसीह-विरोधियों के साथ भी यही होता है। भले ही परमेश्वर के घर में उन्हें मसीह-विरोधियों की तरह देखा जाए, धार्मिक समुदाय के साथ मिलकर बड़ा लाल अजगर, परमेश्वर की कलीसिया और उसके चुने हुए लोगों को दबाने और सताने के लिए लगातार अपनी पूरी कोशिश करता है, और बेशक, मसीह-विरोधी भी खुद को ऐसे परिवेश में पाते हैं और वे भी गिरफ्तारी के खतरे से मुक्त नहीं हो पाते। इसलिए, उन्हें अक्सर अपनी सुरक्षा की समस्या का सामना करना पड़ता है। अब सवाल उठता है कि मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा के मामले से कैसे निपटते हैं। इस उपखंड के लिए हम मुख्य रूप से अपनी सुरक्षा के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये के बारे में संगति कर रहे हैं। उनका रवैया क्या है? (वे अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए भरसक प्रयास करते हैं।) मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। वे मन ही मन यह सोचते हैं : “मुझे अपनी सुरक्षा अवश्य सुनिश्चित करनी चाहिए। चाहे जो भी पकड़ा जाए, मैं न पकड़ा जाऊँ।” इसे लेकर, वे अक्सर प्रार्थना करने परमेश्वर के सामने आते हैं और गुहार लगाते हैं कि परमेश्वर उन्हें मुसीबत में पड़ने से बचाए। उन्हें लगता है कि चाहे कुछ भी हो, वे वास्तव में एक कलीसिया अगुआ का काम कर रहे हैं और परमेश्वर को उनकी रक्षा करनी चाहिए। अपनी सुरक्षा की खातिर और गिरफ्तार होने से बचने के लिए, तमाम उत्पीड़न से बचने और खुद को एक सुरक्षित वातावरण में रखने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर अपनी सुरक्षा के लिए याचना और प्रार्थना करते हैं। जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है, तभी वे वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा और खुद को परमेश्वर को अर्पित करते हैं। बात जब इस पर आती है, तभी वे वास्तविक आस्था रखते हैं और तभी परमेश्वर पर उनका भरोसा वास्तविक होता है। कलीसिया के काम या अपने कर्तव्य के बारे में जरा-सा भी विचार न करते हुए वे केवल परमेश्वर से यह कहने के लिए प्रार्थना करने की जहमत उठाते हैं कि वह उनकी सुरक्षा करे। अपने काम में व्यक्तिगत सुरक्षा ही वह सिद्धांत होता है, जो उनका मार्गदर्शन करता है। अगर कोई स्थान सुरक्षित होता है, तो मसीह-विरोधी उस स्थान को कार्य करने के लिए चुनेगा, और बेशक, वह बहुत सक्रिय और सकारात्मक दिखाई देगा, अपनी महान “जिम्मेदारी की भावना” और “निष्ठा” दिखाएगा। अगर किसी कार्य में जोखिम होता है और उसके घटना का शिकार होने या उसे करने वाले के बारे में बड़े लाल अजगर को पता चल जाने की संभावना होती है, तो वे बहाने बना देते हैं और इससे इनकार करते हुए बचकर भागने का मौका ढूँढ़ लेते हैं। जैसे ही कोई खतरा होता है, या जैसे ही खतरे का कोई संकेत होता है, वे भाई-बहनों की परवाह किए बिना, खुद को छुड़ाने और अपना कर्तव्य त्यागने के तरीके सोचते हैं। वे केवल खुद को खतरे से बाहर निकालने की परवाह करते हैं। दिल में वे पहले से ही तैयार रह सकते हैं : जैसे ही खतरा प्रकट होता है, वे उस काम को तुरंत छोड़ देते हैं जिसे वे कर रहे होते हैं, इस बात की परवाह किए बिना कि कलीसिया का काम कैसे होगा, या इससे परमेश्वर के घर के हितों या भाई-बहनों की सुरक्षा को क्या नुकसान पहुँचेगा। उनके लिए जो मायने रखता है, वह है भागना। यहाँ तक कि उनके पास एक “तुरुप का इक्का”, खुद को बचाने की एक योजना भी होती है : जैसे ही उन पर खतरा मँडराता है या उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, वे जो कुछ भी जानते हैं, अपनी सुरक्षा बनाए रखने के लिए वह सब कह देते हैं और खुद को पाक-साफ बताकर तमाम जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। उनके पास यह योजना तैयार रहती है। ये लोग परमेश्वर पर विश्वास करने के कारण उत्पीड़न सहने को तैयार नहीं होते; वे गिरफ्तार होने, प्रताड़ित किए जाने और दोषी ठहराए जाने से डरते हैं। सच तो यह है कि वे बहुत पहले ही अपने दिलों में शैतान के आगे घुटने टेक चुके हैं। वे शैतानी शासन की शक्ति से भयभीत हैं, और इससे भी ज्यादा वे खुद पर होने वाली यातना और कठोर पूछताछ जैसी चीजों से डरते हैं। इसलिए, मसीह-विरोधियों के साथ अगर सब-कुछ सुचारु रूप से चल रहा होता है, और उनकी सुरक्षा को कोई खतरा या उसे लेकर कोई समस्या नहीं होती, तो वे अपने उत्साह और “वफादारी”, यहाँ तक कि अपनी संपत्ति की भी पेशकश कर सकते हैं। लेकिन अगर हालात खराब हों और परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने के कारण उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता हो, और अगर परमेश्वर पर उनके विश्वास के कारण उन्हें उनके आधिकारिक पद से हटाया जा सकता हो या उनके करीबी लोगों द्वारा त्यागा जा सकता हो, तो वे असाधारण रूप से सावधान रहेंगे, न तो सुसमाचार का प्रचार करेंगे, न ही परमेश्वर की गवाही देंगे और न ही अपना कर्तव्य करेंगे। जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे छुईमुई बन जाते हैं; जब परेशानी का कोई छोटा-सा भी संकेत होता है, तो वे परमेश्वर के वचनों की अपनी पुस्तकें और परमेश्वर पर विश्वास से संबंधित कोई भी चीज फौरन कलीसिया को लौटा देना चाहते हैं, ताकि खुद को सुरक्षित और हानि से बचाए रख सकें। क्या वे खतरनाक नहीं हैं? गिरफ्तार किए जाने पर क्या वे यहूदा नहीं बन जाएँगे? मसीह-विरोधी इतने खतरनाक होते हैं कि कभी भी यहूदा बन सकते हैं; इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि वे परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे। इतना ही नहीं, वे बेहद स्वार्थी और नीच होते हैं। यह मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार से निर्धारित होता है।
कुछ लोग कह सकते हैं, “शायद ऐसी अभिव्यक्तियों वाले लोग केवल बड़े लाल अजगर के देश में, चीन के सामाजिक संदर्भ में ही पाए जाते हैं। जब तुम विदेश जाते हो, तो कोई उत्पीड़न या गिरफ्तारी नहीं होती है, इसलिए व्यक्तिगत सुरक्षा का कोई मतलब नहीं रह जाता। क्या इस विषय की अभी भी आवश्यकता है?” क्या तुम लोग सोचते हो कि इसकी आवश्यकता है? (हाँ।) विदेशों में भी, परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाने वाले कई लोग अक्सर ऐसे व्यवहार दिखाते हैं। जैसे ही चर्चा किसी खास देश की राजनीतिक व्यवस्था द्वारा, गैर-विश्वासियों या धार्मिक समुदाय द्वारा परमेश्वर के घर के खिलाफ किए गए हमलों, बदनामी और आंदोलनों की ओर मुड़ती है, तो कुछ लोग अंदर से बेहद डर जाते हैं और घोर कायरता महसूस करते हैं। उन्हें यह भी लग सकता है कि अगर वे परमेश्वर में विश्वास न करते तो इस समय बेहतर और ज्यादा स्वतंत्र होते, उनमें से कुछ लोग परमेश्वर में आस्था रखने पर पछताते हैं, और अपने दिलों में, कुछ लोग तो पीछे हटने के बारे में भी सोचते हैं और ऐसे विचारों पर काम करते हैं। ऐसे लोग हर वक्त अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, उन्हें लगता है कि इससे ज्यादा महत्वपूर्ण और कुछ नहीं है। उनके जीवन की और उनकी अपनी सुरक्षा उनके दिलों की गहराई में सबसे बड़ी चिंता है। इसलिए, जब संसार और पूरी मानवता कलीसिया और परमेश्वर के कार्य का अपमान करती है, उसे बदनाम करती है और उसकी निंदा करती है, तो ये लोग यह देख कर भी अपने दिलों में परमेश्वर के साथ खड़े नहीं होते हैं। बल्कि, जब ये चीजें होती हैं, जब वे परमेश्वर की छवि खराब होते और उसकी निंदा होते सुनते हैं, तो वे अंदर-ही-अंदर परमेश्वर के विरोध में खड़े होते हैं। वे तत्परता से खुद को परमेश्वर, उसके घर और कलीसिया से अलग रखना चाहते हैं। इसके अलावा, ऐसे पलों में, यह स्वीकारना कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उनके लिए मुश्किल और दर्दनाक कार्य होता है। वे हर हाल में परमेश्वर, उसके घर या कलीसिया से सभी संबंध तोड़ लेना चाहते हैं। ऐसे समय में, वे असहज और शर्मिंदा तक महसूस करते हैं और परमेश्वर के घर का सदस्य होने के नाते अपना चेहरा दिखाने में भी उन्हें संकोच होता है। क्या ऐसे लोग वास्तव में परमेश्वर के अनुयायी हैं? क्या उन्होंने वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दिया है? (नहीं।) जब लोग मुख्यभूमि चीन में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो उन्हें अक्सर उत्पीड़न और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है और वे अक्सर व्यक्तिगत सुरक्षा की समस्याओं का भी सामना करते हैं; भले ही विदेशों का परिवेश इतना बुरा नहीं है, फिर भी लोगों को समान परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। वे धार्मिक समुदाय से बदनामी और निंदा का सामना करते हैं, और उन्हें कलीसिया के प्रति विभिन्न देशों की बेरुखी या उनको न समझे जाने के बयानों से जूझना पड़ता है। कुछ लोग असमंजस में होते हैं और यहाँ तक कि उन्हें इस बात पर भी अनिश्चितता और संदेह होता है कि क्या परमेश्वर का कार्य सच्चा है, वे परमेश्वर की सत्यता पर और ज्यादा सवाल उठाते हैं। क्योंकि वे अक्सर अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को स्थिर और सहज दिल के साथ नहीं कर पाते हैं। क्या इन लोगों ने वास्तव में अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित कर दिया है? (नहीं, उन्होंने नहीं किया है।) कुछ लोग तो यह भी सोचते हैं, “विदेश आने का मतलब है बड़े लाल अजगर के चंगुल से बच निकलना, है कि नहीं? विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता है न? सब कुछ स्वतंत्र और आजाद है न? अब जबकि परमेश्वर ने हमें अपने कर्तव्य निभाने के लिए विदेश भेजा है, तो हमें अभी भी उन्हीं कठोर परिस्थितियों का सामना क्यों करना पड़ता है? हमें अभी भी ये सबक क्यों सीखने पड़ते हैं और विदेश में इस पीड़ा से क्यों जूझना पड़ता है?” कुछ लोगों के दिलों में संदेह होता है, और कुछ लोग न केवल संदेह करते हैं बल्कि विरोध भी करते हैं, और उनके मन में इस तरह के सवाल होते हैं, “अगर यह सच्चा मार्ग है, अगर यह परमेश्वर का कार्य है, तो हम, जो निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाते हैं, जिन्होंने परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए सब कुछ त्याग दिया है, हमें इस संसार में ऐसा असमान व्यवहार क्यों सहना पड़ता है?” वे नहीं समझते। और क्योंकि वे यह नहीं समझते और अपनी सुरक्षा को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं, इसलिए उनमें समझ की यह कमी परमेश्वर के प्रति शिकायतों और सवालों में बदल जाती है। ऐसा ही होता है न? (बिल्कुल।) विदेशों में कुछ लोग अपने कर्तव्यों को करने में जोखिम उठाने से भी डरते हैं। अगर उन्हें कोई ऐसा काम सौंपा जाता है जिसमें थोड़ा जोखिम शामिल है, तो वे ऐसे बहाने ढूँढ़ते हैं, “मैं इस कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं हूँ। मेरा परिवार अभी भी मुख्यभूमि चीन में है, और अगर बड़े लाल अजगर ने मुझे ढूँढ़ लिया, तो क्या यह मेरे लिए परेशानी का कारण नहीं होगा?” वे ऐसे कर्तव्यों को निभाने से इनकार करते हैं। वे खुद को बचाने, अपनी सुरक्षा को बनाए रखने और अपनी जान बचाने को चुनते हैं। वे खुद को पूरी तरह समर्पित करने, सब कुछ त्याग देने और अपने कर्तव्यों को स्वीकारने के लिए सब कुछ त्यागने के बजाय खुद के लिए एक रास्ता छोड़ देते हैं। वे इसे हासिल नहीं कर सकते। जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है तो उनके व्यवहार कुछ ऐसे ही होते हैं। कुछ लोग अपने दिलों में बेचैनी महसूस करते हैं और अक्सर इस बारे में प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग यह सोचकर अक्सर डर और कायरता महसूस करते हैं कि शैतान की ताकतें बहुत शक्तिशाली हैं और उनके जैसा एक साधारण व्यक्ति इनका प्रतिरोध कैसे कर सकता है? इसलिए, वे अक्सर इस बारे में डरते और चिंता करते रहते हैं। कुछ लोगों को तो यह भी लगता है कि अगर उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो कलीसिया या परमेश्वर का घर कुछ भी नहीं कर पाएगा, अगर कुछ हुआ तो कोई भी प्रभावी नहीं होगा। इसलिए, वे खुद को सुरक्षित रखना सबसे जरूरी समझते हैं। इसलिए, जब उन्हें आगे बढ़कर जोखिम भरा कर्तव्य करना पड़ता है, तो वे खुद को छिपा लेते हैं, और कोई भी उन्हें मना नहीं सकता। वे सक्षम न होने का दावा करते हैं, परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए महत्वपूर्ण कर्तव्यों से बचने के लिए हर तरह के बहाने और तर्क ढूँढ़ते हैं। अगर परिवेश अच्छा हो, तो शायद ये लोग एक बड़ी भीड़ के सामने किसी सार्वजनिक जगह पर माइक्रोफोन के साथ खड़े होकर चिल्लाएँ भी, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का सदस्य हूँ। मैं आशा करता हूँ कि हर कोई आकर सच्चे मार्ग की जाँच कर सकेगा।” जब उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर कोई जोखिम न हो तो वे निडर होकर ऐसा कर सकते हैं। जब किसी खतरे या किसी ऐसी स्थिति का थोड़ा-सा भी संकेत मिलता है जिसमें उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा शामिल होती है, या जब अचानक परिस्थितियाँ सामने आती हैं, तो उनका उत्साह गायब हो जाता है, उनकी “निष्ठा” गायब हो जाती है, और उनकी “आस्था” फीकी पड़ जाती है। वे बस इधर-उधर भागना जानते हैं, हमेशा कुछ छोटे-मोटे, पर्दे के पीछे वाले काम खोजने की कोशिश करते हैं, उन कार्यों और कर्तव्यों को दूसरों पर थोपते रहते हैं जिनमें उन्हें आगे बढ़कर काम करना पड़े और अपनी गर्दन जोखिम में डालनी पड़े। जैसे ही परिवेश सुधरता है, वे फिर से मंच के मसखरों की तरह वापस आ जाते हैं। वे वापस क्यों प्रकट होते हैं? अपना दिखावा करने के लिए, लोगों को अपने अस्तित्व के बारे में बताने के लिए, परमेश्वर को अपना उत्साह दिखाने के लिए, उस पल परमेश्वर को अपनी निष्ठा दिखाने के लिए, और साथ ही, जो कुछ उन्होंने पहले किया था उसकी भरपाई करने के लिए, वे सब कुछ पूरी तरह से ठीक करने की कोशिश करते हैं। मगर, जैसे ही किसी मुसीबत या परिवेश में बदलाव के संकेत मिलते हैं, तो ये लोग फिर से गायब हो जाते और छिप जाते हैं।
जब सुसमाचार कार्य का प्रसार शुरू ही हुआ था, तब सुसमाचार फैलाना काफी मुश्किल था। उस समय, ऐसे ज्यादा लोग नहीं थे जो सुसमाचार का प्रचार कर सकें, और जो यह काम कर सकते थे, सत्य के बारे में उनकी समझ काफी उथली थी। वे लोगों की धार्मिक धारणाओं को अच्छी तरह से नहीं पहचान पाते थे, और लोगों को प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण था। इसके अलावा, सुसमाचार का प्रचार करने में जोखिम भी था। जब कुछ हद तक अच्छी मानवता वाले लोगों से तुम्हारा सामना होता था, तो ज्यादा से ज्यादा, वे बस इसे स्वीकारने से मना कर देते थे, और बात वहीं खत्म कर देते थे, मगर वे तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाते थे या तुम्हारा अपमान नहीं करते थे। अगर तुम उनसे संपर्क में रहते, तो उन्हें प्राप्त करने की उम्मीद अभी भी बनी रहती थी, जिससे कुछ परिणाम मिल सकते थे। लेकिन, जब तुम्हारा सामना बुरे लोगों या विभिन्न संप्रदायों के पादरियों और एल्डरों से होता था, तो ये लोग न केवल स्वीकारने से इनकार करते थे, बल्कि मिलकर तुम पर हमला भी करते थे, तुम्हें अपने पापों को कबूलने के लिए मजबूर करते थे, और अगर तुम ऐसा नहीं करते, तो वे शायद तुमसे मारपीट भी कर सकते थे। अधिक गंभीर मामलों में, वे शायद पुलिस को तुम्हारी रिपोर्ट कर देते और पुलिस के हवाले भी कर देते थे, जिससे तुम्हें किसी भी समय हिरासत में लिए जाने का खतरा होता था। कुछ कलीसिया अगुआ इन मामलों से बेबस नहीं होते थे। जब उन्हें अपना कर्तव्य करना होता था, वे कर्तव्य करना जारी रखते थे और यहाँ तक कि सुसमाचार का प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने में सबकी अगुआई करते थे। हालाँकि, कुछ तथाकथित अगुआ या झूठे अगुआ इस तरह से काम नहीं करते थे। जब उन्हें ऐसे खतरों का सामना करना पड़ता, तो वे खुद जाने के बजाय दूसरों को भेजते थे। मैंने एक अगुआ के बारे में सुना था, जिसे पता चला कि एक संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता किसी संप्रदाय का अगुआ है। वह किसी और को उसे सुसमाचार सुनाने का काम सौंपना चाहती थी। इस पर विचार करने के बाद, जब उसे कोई सही व्यक्ति नहीं मिला तो उसने फैसला किया कि खुद जाना ही अच्छा होगा। मगर उसे खतरे का डर था और वह जाना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने अपनी जगह अठारह या उन्नीस साल की एक युवा बहन के जाने की व्यवस्था की। तुम सबको क्या लगता है? क्या उसे इस युवा बहन के जाने की व्यवस्था करनी चाहिए थी? (नहीं करनी चाहिए थी।) क्यों नहीं करनी चाहिए थी? (क्योंकि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता अनेक धार्मिक धारणाओं वाले किसी संप्रदाय का अगुआ था। युवा बहन का आध्यात्मिक कद छोटा था, सत्य की उसकी समझ उथली थी, वह संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता की समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं कर सकती थी, और न केवल वह उसका मत-परिवर्तन करने में सक्षम नहीं हुई होती, बल्कि खुद भी गुमराह हो गई होती।) जितनी उसकी उम्र थी उसके हिसाब से यह युवा बहन वास्तव में कितना सत्य समझ सकती थी? उसे बाइबल का कितना ज्ञान था? वह उस संप्रदाय के अगुआ का मत-परिवर्तन करने में कितनी आश्वस्त हो सकती थी? उसकी उम्र को देखें तो यकीनन उसे सुसमाचार प्रचार करने का ज्यादा अनुभव नहीं था। इसके अलावा, वह अभी-अभी बड़ी हुई थी और उसके पास अनुभव की कमी थी। क्या वह बड़ों की धारणाओं, विचारों और कठिनाइयों को समझ सकती थी? (नहीं, वह नहीं समझ सकती थी।) बिलकुल नहीं। अपनी उम्र में, वह बड़ों के विचारों से निपटने में सक्षम नहीं थी। मुझे बताओ, उसकी उम्र को देखें, तो क्या यह युवा बहन सर्वोत्तम विकल्प थी? (नहीं थी।) वह सर्वोत्तम विकल्प नहीं थी। तो, युवा बहन को भेजने में, क्या इस अगुआ का इरादा सही था? (उसका इरादा सही नहीं था।) उसका इरादा सही नहीं था। उसे युवा बहन को नहीं भेजना चाहिए था। बाद में, जब युवा बहन ने उस संप्रदाय के अगुआ से संपर्क किया और पाया कि वह अच्छा व्यक्ति नहीं है, तो उसने अपनी अगुआ को वापस उसकी रिपोर्ट की, उसे बताया कि वह बहुत डर गई है और फिर से वहाँ जाने की हिम्मत नहीं कर सकेगी। इस अगुआ ने उस पर दबाव डालते हुए जोर देकर कहा, “नहीं, यह तुम्हारा कर्तव्य है, और तुम्हें जाना ही होगा!” युवा बहन यह कहते हुए रो पड़ी, “यह मेरा कर्तव्य है, और मुझे जाना चाहिए, मगर मुझसे यह नहीं होगा, मैं यह नहीं कर सकती।” फिर भी, इस अगुआ ने नरमी नहीं दिखाई और कहती रही, “भले ही तुम यह न कर सको, पर तुम्हें जाना ही होगा; कोई और नहीं है, इसलिए तुम्हें ही जाना होगा!” तुम सबको क्या लगता है कि यह किस किस्म की अगुआ है? खतरा सामने देखकर न सिर्फ उसने अपनी रक्षा की, बल्कि खुद पीछे हटते हुए उसने दूसरों को भी खतरे में डाल दिया। यहाँ तक कि ऐसी परिस्थितियों में भी जब इस युवा बहन ने अपनी असमर्थता व्यक्त की और डर के मारे रो पड़ी, तब भी वह नहीं मानी। यह किस किस्म की दुष्ट है? क्या यह इंसान है? (नहीं।) यह इंसान नहीं है। उसने अपने भाई-बहनों की सुरक्षा के बारे में नहीं सोचा, सिर्फ अपने बारे में सोचा। उसने अपने हित के लिए दूसरों की सुरक्षा का सौदा तक किया, ठीक वैसे ही जैसे जुआ खेलने वाले माता-पिता, जब अपना सारा पैसा हार जाते हैं और उनके पास कुछ नहीं बचता, तो वे अपने कर्ज चुकाने के लिए अपनी बेटियों तक को गिरवी रख देते हैं, ताकि वे मुश्किल समय का सामना कर सकें और आपदा से बच सकें, अपनी खुशी के बदले में वे अपने सबसे प्रिय लोगों की बलि चढ़ा देते हैं। यह अगुआ कैसी दुष्ट है? क्या उसमें कोई मानवता बची है? (नहीं।) उसमें रत्ती भर भी मानवता नहीं है। इस व्यवहार को देखते हुए, क्या इस तरह के लोगों को मसीह-विरोधियों की श्रेणी में रखा जा सकता है? (हाँ, रखा जा सकता है।) बिलकुल रखा जा सकता है! कुछ लोग कह सकते हैं, “वे जो भी कर रहे हैं वह कलीसिया के कार्य की खातिर कर रहे हैं, सुसमाचार फैलाने के लिए कर रहे हैं। क्या उनका इरादा अच्छा नहीं है? क्या वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के लिए ऐसा नहीं कर रहे हैं? उन्हें मसीह-विरोधियों की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है?” क्या किसी ने कभी इस तरह से सोचा है? क्या यह दलील दी जा सकती है? (नहीं, नहीं दी जा सकती।) तो, मुझे बताओ, इस समस्या की प्रकृति क्या है? (इस अगुआ ने, अपने हितों और सुरक्षा की खातिर, युवा बहन के जीवन और सुरक्षा का सौदा किया, यानी उसने जान-बूझकर उसे गड्ढे में धकेल दिया—उसकी मानवता बहुत दुर्भावनापूर्ण है।) ज्यादा बेबाकी से कहें, तो इस अगुआ ने यह जानते हुए कि युवा बहन इस कार्य के लिए पूरी तरह से अक्षम थी, खुद को बचाने के लिए यह व्यवस्था की। साथ ही, उसने अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए ऐसा किया, अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पाने के लिए दूसरे के हितों और सुरक्षा का बलिदान किया। यही उसका इरादा था। उसने इस कार्य के लिए सबसे अच्छा व्यक्ति ढूँढ़ने के लिए इस बात पर बिलकुल विचार नहीं किया कि कौन इस काम को कर पाएगा, कौन इस व्यक्ति का मत-परिवर्तन कर पाएगा, या कौन इस काम को प्रभावी ढंग से कर पाएगा। उसके क्रियाकलापों का सार अपना कर्तव्य निभाना या अपनी निष्ठा दिखाना या जिम्मेदारी निभाना नहीं था, बल्कि अपने वरिष्ठों को जवाब देने में सक्षम होना और दूसरों के हितों का त्याग करके खुद को बचाना और यहाँ तक कि दूसरों को नुकसान पहुँचाना भी था। उसने खुद को बचाने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए इस तरह से काम किया जिससे दूसरों को नुकसान हुआ—क्या यह इसका सार नहीं है? (बिल्कुल है।) यही इसका सार है। इसलिए, इस अगुआ के क्रियाकलापों को मसीह विरोधी के क्रियाकलापों की श्रेणी में रखा जा सकता है। क्या यही मामले की जड़ नहीं है? (हाँ, यही है।) बिलकुल यही बात है। अगर कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं था, और यह युवा बहन वहाँ नहीं होती, और अगर उसे उस संप्रदाय के अगुआ का मत-परिवर्तन करने के लिए खुद जाने को कहा जाता, तो क्या वह जाती? क्या वह यह कह पाती, “अगर कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हैं, तो मैं चली जाऊँगी। मैं नहीं डरती। भले ही मुझे इस व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए अपना जीवन त्यागना पड़े, मैं इसे त्यागने के लिए तैयार हूँ, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य और मेरी जिम्मेदारी है”? क्या वह ऐसा कर पाती? (नहीं।) हम क्यों कहते हैं कि वह ऐसा नहीं कर पाती? हम यहाँ अटकलें नहीं लगा रहे हैं। हम यह किस आधार पर कह रहे हैं कि वह ऐसा नहीं कर पाती? (क्योंकि जब वह अपना कर्तव्य निभा रही थी, तो उसका उद्देश्य वास्तव में नतीजे हासिल करना और उस संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता का मत-परिवर्तन करना नहीं था। इसलिए, वह उस युवा बहन को भेजकर बस खानापूर्ति कर रही थी। अगर युवा बहन वहाँ नहीं होती, तो वह इस व्यक्ति को प्राप्त करने के लिए खुद नहीं जाती।) यह सही है, ऐसा ही होता। जब उसने देखा कि कोई उपयुक्त उम्मीदवार मौजूद नहीं है, तो क्या उसे खुद नहीं जाना चाहिए था? (बिल्कुल जाना चाहिए था।) अगर वह वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान थी और उसे व्यक्तिगत सुरक्षा की फिक्र नहीं थी, तो वह युवा बहन को नहीं जाने देती, बल्कि खुद चली जाती। तो, उसके खुद न जाने से किस समस्या का पता चलता है? (यही कि वह अपनी सुरक्षा और हितों की रक्षा कर रही थी।) यह सही है, ऐसा ही बात थी। अगर वह वाकई अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होती, तो खुद उस जिम्मेदारी को निभाती। मगर, उसने ऐसा नहीं किया; बल्कि, उसने अपनी जगह पर सबसे कम उपयुक्त उम्मीदवार को भेजने के लिए चुना। क्या उसका इरादा खुद को खतरे से बचाने और अपनी सुरक्षा करने के लिए सबसे कम उपयुक्त व्यक्ति को सबसे खतरनाक जगह पर भेजने का था? (बिल्कुल ऐसा ही था।) यह मसीह-विरोधियों का व्यवहार है। इसका संबंध लोगों की व्यवस्था करने से है।
मुख्यभूमि चीन में, बड़े लाल अजगर ने अक्सर परमेश्वर के विश्वासियों को खतरनाक परिवेशों में रखते हुए लगातार और क्रूरता से उनका दमन किया, उन्हें गिरफ्तार करके उनका उत्पीड़न किया है। उदाहरण के लिए, सरकार विश्वासियों को पकड़ने के लिए तमाम तरह के बहाने बनाती है। जब भी उन्हें किसी मसीह-विरोधी के ठिकाने का पता चलता है, तो मसीह-विरोधी सबसे पहले किस बारे में सोचता है? वह कलीसिया के काम को ठीक से व्यवस्थित करने के बारे में नहीं, बल्कि इस खतरनाक परिस्थिति से बच निकलने के बारे में सोचता है। जब कलीसिया को दमन और गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ता है, तो मसीह-विरोधी कभी भी काम की खोज-खबर लेने के लिए आगे नहीं आते हैं। वे कलीसिया के लिए जरूरी संसाधनों या कर्मियों की व्यवस्था नहीं करते हैं। बल्कि, अपने लिए एक सुरक्षित जगह पक्की करने और इससे निपटने के लिए बहाने और तर्क ढूँढ़ते हैं, और उनका काम पूरा हो जाता है। जब उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पक्की हो जाती है, तो वे कलीसिया के काम, कर्मियों या संसाधनों की व्यवस्था करने में शायद ही कभी व्यक्तिगत रूप से शामिल होते हैं, और न ही वे मामले की जाँच करते या कोई विशेष व्यवस्थाएँ करते हैं। इस वजह से कलीसिया के संसाधनों और पैसों को तुरंत सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया नहीं जा सकता है, और अंत में, बहुत कुछ बड़े लाल अजगर द्वारा लूट और छीन लिया जाता है, जिससे कलीसिया को काफी नुकसान होता है और ज्यादा भाई-बहनों को पकड़ लिया जाता है। जब मसीह-विरोधी अपनी जिम्मेदारी से बचते हैं तो यही परिणाम होता है। मसीह-विरोधियों के दिलों की गहराई में, उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा हमेशा सबसे ऊपर होती है। यह मुद्दा उनके दिलों में लगातार चिंता का विषय बना रहता है। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “मुझे मुसीबत में नहीं पड़ना चाहिए। चाहे कोई भी पकड़ा जाए, बस मैं न पकड़ा जाऊँ—मुझे जिंदा रहना है। मैं अभी भी परमेश्वर का कार्य पूरा होने पर परमेश्वर की महिमा में हिस्सा पाने का इंतजार कर रहा हूँ। अगर मैं पकड़ा गया, तो यहूदा की तरह बन जाऊँगा, और मेरे लिए सब खत्म हो जाएगा। मेरा परिणाम अच्छा नहीं होगा। मुझे दंडित किया जाएगा।” इसलिए, जब भी वे काम करने के लिए किसी नई जगह जाते हैं, तो सबसे पहले यह जाँच-पड़ताल करते हैं कि किसके पास सबसे सुरक्षित और सबसे शक्तिशाली घर है, जहाँ वे सरकार की तलाशी से छिप सकें और सुरक्षित महसूस कर सकें। इसके बाद, वे ऐसे घर ढूँढ़ते हैं जहाँ का रहन-सहन बेहतर हो, जहाँ हर भोजन में माँस परोसा जाता हो, गर्मियों में एयर कंडीशनिंग और सर्दियों में घर को गर्म रखने की व्यवस्था हो। इसके अलावा, वे इस बात की भी पूछताछ करते हैं कि विश्वासियों में से कौन ज्यादा उत्साही है और किसकी नींव अधिक मजबूत है, कोई ऐसा व्यक्ति जो मुसीबत आने पर सुरक्षा दे सके। वे पहले इन सभी बातों की जाँच-पड़ताल करते हैं। अपनी जाँच-पड़ताल के बाद, वे रहने के लिए कोई जगह ढूँढ़ते हैं और कुछ सतही काम करते हैं, एक चिट्ठी भेजकर या फिर मौखिक रूप से कुछ जानकारी या कार्य व्यवस्थाएँ बताते हैं। अब, क्या तुम्हें लगता है कि मसीह-विरोधी काम करने में सक्षम हैं? अगर तुम यह देखो कि वे कैसे सावधानी बरतते हुए और साफ-सुथरे ढंग से अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सोचते और उसकी व्यवस्था करते हैं, तो ऐसा लग सकता है कि वे कोई विशिष्ट कार्य करना जानते हैं, और वे अपने दिल में जानते हैं कि इसे कैसे करना है। लेकिन, उनके इरादे सही नहीं हैं, वे केवल व्यक्तिगत लाभ के बारे में सोचते हैं, और वे सत्य से विमुख होते हैं; भले ही उन्हें पता हो कि वे जो कर रहे हैं वह सत्य के विरुद्ध है, स्वार्थी और घृणित है, फिर भी वे अपने तरीके से काम करने पर जोर देते हैं और अनियंत्रित तरीके से और लापरवाही से काम करते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी अपनी सुरक्षा के लिए होता है। अपना डेरा जमाने और यह महसूस करने के बाद कि वे हानि से दूर हैं, और खतरा टल गया है, मसीह-विरोधी कुछ सतही काम करने में लग जाते हैं। मसीह-विरोधी अपनी व्यवस्थाओं में काफी सावधानी बरतते हैं, मगर यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे किसके साथ काम कर रहे हैं। वे अपने हितों से जुड़े मामलों के बारे में बहुत सावधानी से सोचते हैं, मगर जब बात कलीसिया के कार्य या उनके अपने कर्तव्यों की आती है, तो वे अपनी स्वार्थपरता और नीचता दिखाते हैं और कोई जिम्मेदारी नहीं उठाते, उनमें जरा भी जमीर या विवेक नहीं होता है। ठीक इन्हीं व्यवहारों के कारण उन्हें मसीह-विरोधियों की श्रेणी में रखा जाता है। अगर हमें सिर्फ उनकी काबिलियत के आधार पर आकलन करना होता, तो यह देखकर कि वे कितनी अच्छी तरह से सोचते हैं और अपनी सुरक्षा के लिए कितनी सावधानी से और ठोस योजनाएँ बनाते हैं, उनमें काबिलियत की कमी नहीं है और उनके पास दिमाग भी है। उन्हें परमेश्वर के घर के काम को संभालने में सक्षम होना चाहिए। अब, अगर तुम उनकी काबिलियत के आधार पर गौर करो, तो उन्हें मसीह-विरोधी नहीं कहा जाना चाहिए, मगर फिर भी उन्हें ऐसा क्यों कहा गया है? यह उनके सार के आधार पर तय होता है कि क्या वे सत्य को स्वीकार सकते हैं और उसका अभ्यास कर सकते हैं, या क्या वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं। वे अपने रहने के परिवेश, अपने खान-पान और अपनी सुरक्षा के बारे में विचारशील होकर और विशेष ध्यानपूर्वक व्यवस्थाएँ करते हैं। लेकिन, जब परमेश्वर के घर के काम की बात आती है, तो वे पूरी तरह से अलग लोग बन जाते हैं, खास तौर पर स्वार्थी और नीच, जो परमेश्वर के इरादों पर कोई ध्यान नहीं देते। ये यकीनन सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं। परमेश्वर के घर के काम और ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं से मसीह-विरोधी अपनी पसंद के अनुसार निपटते हैं। वे अपनी पसंद के हिसाब से छाँटते हैं कि वे क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं करना चाहते हैं, और कौन-सी चीज उनकी अपनी सुरक्षा से संबंधित है और कौन-सी नहीं। फिर, वे कुछ आसान काम करते हैं जिनमें कोई खतरा नहीं होता, बस ऊपरवाले को यह पता न चलने देने के लिए कि वे खाने में जल्दबाज और काम में धीमे हैं, और वे अपने उचित कर्तव्यों का पालन नहीं करते। काम की व्यवस्था करने के बाद, वे कभी पूछताछ या निगरानी नहीं करते हैं कि विशेष कार्य कैसे किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर में भेंटों और विभिन्न संसाधनों को लेकर विशिष्ट सिद्धांत और विनियम हैं : उन्हें कैसे व्यवस्थित करना है, कहाँ रखना है, कैसे सुरक्षित रखना है, और कौन उन्हें सुरक्षित रखेगा। दूसरी ओर, मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में सिर्फ बात करते हैं, और व्यवस्थाएँ कर लेने के बाद, सोचते हैं कि काम पूरा हो गया है। चाहे परिवेश उपयुक्त हो या न हो, वे कभी भी निरीक्षण करने के लिए स्थल पर नहीं जाते हैं; वे केवल अपने होंठ हिलाते हैं, और अपने दिल में वे इसे समझते नहीं हैं और पूछताछ नहीं करते, जाँच-पड़ताल नहीं करते हैं, या इसकी परवाह नहीं करते हैं कि परमेश्वर के घर के इन संसाधनों के लिए की गई विशेष व्यवस्थाएँ उपयुक्त या सुरक्षित हैं या नहीं। इसलिए, अगुआ के रूप में मसीह-विरोधियों के कार्यकाल के दौरान, उनके कार्यक्षेत्र के भीतर, बुरे लोग परमेश्वर के वचनों की कुछ पुस्तकें जब्त कर लेते हैं। सही ढंग से न रखने के कारण कुछ पुस्तकों में फफूंदी लग जाती है, और कभी-कभी, कुछ पुस्तकों या संसाधनों को ऐसी जगहों पर रखा जाता है जहाँ कोई उनकी देखभाल नहीं करता है। मसीह-विरोधी न केवल इन मामलों के लिए विशेष व्यवस्थाएँ करने में विफल रहते हैं, बल्कि उनके बारे में पूछताछ या जाँच-पड़ताल भी नहीं करते हैं। बल्कि, व्यवस्थाएँ करने के बाद वे मान लेते हैं कि उनका काम पूरा हो गया है। वे बस बातें करते हैं और कुछ नहीं; वे वास्तविक परिणाम पाने की कोशिश किए बिना केवल खानापूर्ति करते रहते हैं। क्या मसीह-विरोधी इन व्यवहारों के जरिये निष्ठा दिखाते हैं? (नहीं।) उनमें कोई निष्ठा नहीं होती। जब कलीसिया के विभिन्न संसाधनों की व्यवस्था करने की बात आती है, तो मसीह-विरोधी कभी पूछताछ नहीं करते। “कभी पूछताछ नहीं करने” का क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि वे कोई भी व्यवस्था नहीं करते हैं? वे बस खानापूर्ति करते हैं और लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए व्यवस्थाएँ करते हैं, ताकि कोई उनके बारे में वरिष्ठों से शिकायत न कर दे। मगर वे कभी कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं। विशिष्ट कार्य क्या होते हैं? इनमें यह निर्धारित करना शामिल है कि इन चीजों को कहाँ रखा जाना चाहिए, यह जगह सुरक्षित है या नहीं, कहीं इन चीजों को कुछ हो न जाए, कहीं चूहे आकर चीजों को काट और चबा न डालें, कहीं उनमें पानी न भर जाए या उनकी चोरी न हो जाए, और क्या इन्हें सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति उपयुक्त हैं या नहीं। मगर, मसीह-विरोधी कभी पूछताछ नहीं करते, कभी जाँच-पड़ताल नहीं करते, और कभी इनकी चिंता नहीं करते हैं। अपने दिलों में, वे मानते हैं कि ये चीजें उनके लिए नहीं हैं; वे उन्हें महत्व नहीं देते और उनके लिए इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है। वे दूसरे लोगों के हैं, परमेश्वर के घर के हैं, और उनसे संबंधित नहीं हैं। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता; जो भी इनकी चिंता करना चाहता है, उसे चिंता करने दो—उन्हें इनकी चिंता नहीं है। वे बस चीजों को व्यवस्थित करते हैं, और कुछ नहीं। कुछ मसीह-विरोधी व्यवस्था करने की भी परवाह नहीं करते। वे मानते हैं कि भले ही वे यह काम अच्छी तरह से करें, उन्हें कोई इनाम नहीं मिलेगा, और कोई भी उन्हें इसे खराब तरीके से करने के लिए जवाबदेह नहीं ठहराएगा। इतनी छोटी-सी बात के लिए कौन उनकी शिकायत करेगा? क्या परमेश्वर उन्हें इसके लिए दंड देगा? अपने कर्तव्यों के प्रति मसीह-विरोधियों का रवैया और दृष्टिकोण बिल्कुल ऐसा ही है : वे बस काम करने का दिखावा करते हैं और मामलों को अनमने ढंग से संभालते हैं। अगर ये चीजें उनके अपने रुतबे या सुरक्षा को प्रभावित नहीं करतीं, तो उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका प्रबंध किया जा रहा है या नहीं। फिर चाहे ये चीजें खो जाएँ, कम हो जाएँ या खराब हो जाएँ, इसका उनसे कोई सरोकार नहीं है। मसीह-विरोधी अपने मन में परमेश्वर के घर के इन संसाधनों को सार्वजनिक संपत्ति मानते हैं। उन्हें इनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है, उन्हें इन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है, और न ही इनका प्रबंध करने के लिए कोई ऊर्जा खपाने की जरूरत है। इसलिए, मसीह-विरोधियों के अगुआओं के रूप में कार्यकाल के दौरान, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी लापरवाही, निजी मौज-मजे पर ज्यादा ध्यान देने, और विशिष्ट कार्यों को करने में उनकी विफलता के कारण, बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के घर के विभिन्न संसाधनों को लूट या छीन लेता है, या कुछ बुरे लोग उन्हें जब्त कर लेते हैं। ऐसे कई मामले हुए। कुछ लोग कह सकते हैं, “ऐसे शत्रुतापूर्ण परिवेश में, कौन सब कुछ इतनी सावधानी से देख सकता है? थोड़ी-सी लापरवाही या कुछ गलतियाँ करने से कौन बच सकता है?” क्या यह सिर्फ कुछ ही गलतियाँ करने की बात है? मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ, अगर लोग अपनी जिम्मेदारियाँ निभा सकें और निष्ठा दिखा सकें, तो इन संसाधनों का नुकसान इतना बड़ा नहीं होगा; इसमें गिरावट जरूर आएगी, और कार्य की प्रभावशीलता में भी बहुत सुधार होगा।
मसीह-विरोधी आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर या परमेश्वर के हितों से जुड़ी चीजों के बारे में नहीं सोचते। वे जो कुछ भी करते हैं वह उनके व्यक्तिगत हितों के इर्द-गिर्द घूमता है। अगर परमेश्वर के घर के कार्य में उनके व्यक्तिगत हित शामिल न हों, तो वे इसकी परवाह ही नहीं करते और न ही कोई पूछताछ करते हैं। वे कितने स्वार्थी होंगे! जब कुछ मसीह-विरोधी अगुआओं के रूप में काम कर रहे थे, तो बड़े लाल अजगर ने उनकी निगरानी के दायरे में आने आने वाले चढ़ावों की बड़ी मात्रा को लूट लिया, और हैरत में डालने वाली राशि खो गई। मगर इन मसीह-विरोधियों ने खुद को रत्ती भर भी दोष नहीं दिया। यहाँ तक कि उन्होंने बाद में ऐसा भी कहा, “यह सिर्फ मेरी जिम्मेदारी नहीं है : इसका सारा दोष मुझ पर कैसे मढ़ा जा सकता है? वैसे भी, ऐसी स्थिति को टाला नहीं जा सकता है।” उन्हें कोई पछतावा नहीं हुआ, उन्होंने दूसरे लोगों पर दोष मढ़ दिया, और बहाने बनाकर खुद को बचाने की कोशिश की। वे किस तरह के लोग हैं? क्या ऐसे लोगों को निष्कासित नहीं किया जाना चाहिए? क्या उन्हें शापित और दंडित नहीं किया जाना चाहिए? (बिल्कुल।) इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी इन मसीह-विरोधियों को कोई पछतावा नहीं था! अगर किसी व्यक्ति की लापरवाही के कारण परमेश्वर के घर की संपत्तियाँ बड़े लाल अजगर द्वारा छीन ली जाएँ, तो वह सामान्य व्यक्ति, जिसमें मानवता है, जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है या जिसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, कैसी अभिव्यक्तियाँ दिखाएगा? (उसे पछतावा होगा, वह खुद को दोष देगा, और अपने दिल में महसूस करेगा कि उसने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया।) इसके बाद वह क्या करेगा? वह सुधार करने का कोई तरीका सोचेगा। अपने दिल की गहराई से, वह ऋणी और पश्चात्ताप की भावना महसूस करेगा; दूसरे लोग चाहे जो भी कहें, वह शिकायत का एक शब्द भी नहीं बोलेगा, वह अपना बचाव नहीं करेगा। वह मान लेगा कि यह उसकी लापरवाही थी, उसका अपराध था। परमेश्वर उससे जो भी कहे और परमेश्वर का घर उससे निपटने का जो भी फैसला ले, वह उसे स्वीकारेगा। तो मसीह-विरोधी इसे क्यों नहीं स्वीकारते? निष्कासित किये जाने के बाद वे क्यों शिकायतों से भरे हुए रहते हैं? यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति का खुलासा करता है। इन मसीह-विरोधियों ने परमेश्वर के घर के कार्य को इतना भारी नुकसान पहुँचाया, अपने कर्तव्यों के प्रति उनकी लापरवाही के कारण दूसरों की इतनी सारी मेहनत बर्बाद हो गई, और बड़े लाल अजगर ने इतने सारे चढ़ावे लूट लिए, फिर भी उन्होंने खुद को दोषी या ऋणी महसूस नहीं किया, बल्कि अपना बचाव भी किया। जब परमेश्वर के घर ने उनका निपटान किया, तो उन्होंने समर्पण करने से इनकार कर दिया, और उन्होंने अपनी अवज्ञा हर जगह फैला दी। वे किस तरह के लोग हैं? क्या यह मौत को न्योता देना नहीं है? (बिल्कुल।) यह मौत को न्योता देना है। मसीह-विरोधियों के सार को देखें, तो उनका प्रकृति सार सत्य और परमेश्वर के प्रति शत्रुता का है। उनमें मानवता की कमी है; वे मनुष्य की वेशभूषा में छिपे जीवित राक्षस, शैतान और जानवर हैं। जब मानवता वाले लोग एक छोटी-सी गलती करते हैं या कुछ गलत कह देते हैं, तो उन्हें आत्म-भर्त्सना महसूस होती है। मगर जीवित राक्षस, मसीह-विरोधी ऐसा महसूस नहीं करते। इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी, उन मसीह-विरोधियों ने कोई आत्म-भर्त्सना महसूस नहीं की, और उन्होंने अपना बचाव करने की कोशिश भी की। तो फिर, उनके लिए सत्य क्या है? क्या वे अपने दिलों में सत्य को स्वीकारते हैं? परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं, और परमेश्वर खुद सत्य है—क्या वे इस तथ्य को स्वीकारते हैं? (वे इसे स्वीकार नहीं करते।) जाहिर है कि वे इसे नहीं स्वीकारते। अपने दिलों में, वे खुद को ही सत्य मानते हैं, परमेश्वर मानते हैं; वे सोचते हैं कि उनके अलावा कोई और परमेश्वर नहीं है। क्या ये दानव नहीं हैं? (बिल्कुल।) ये दानव हैं, पक्के दानव हैं। मसीह-विरोधी कलीसिया के संसाधनों के बारे में बिल्कुल भी पूछताछ नहीं करते, न ही उनके लिए कोई विशेष व्यवस्थाएँ करते हैं। लेकिन अगर खुद उनके पास कोई कीमती चीज हो, तो तुम यकीन से कह सकते हो कि वे उसका अच्छे से ख्याल रखेंगे। वे नींद में बात करते हुए भी उसके बारे में एक शब्द नहीं बोलेंगे, और तुम उनसे जबरदस्ती भी उगलवा नहीं सकोगे। वे उसकी बहुत अच्छी तरह से रक्षा करते हैं। लेकिन जब परमेश्वर के घर के संसाधनों की बात आती है, तो उनका रवैया बिल्कुल अलग होता है। उनका रवैया वास्तव में कुछ इस तरह का होता है : “इससे मेरा क्या लेना-देना? मैं वह संसाधन इस्तेमाल के लिए नहीं मिलता, और वह मेरा नहीं है। भले ही मैं इसकी अच्छी तरह से देखभाल करूँ, फिर भी यह किसी और को दिया जा सकता है! इसकी इतनी अच्छी तरह से रक्षा करने का क्या फायदा?” वे इस मामले को अपना कर्तव्य नहीं मानते। क्या यह मानवता की कमी नहीं है? (बिल्कुल है।) यह मानवता की कमी की अभिव्यक्ति ही है। इसे क्या कहते हैं? इसे गैर-भरोसेमंद होना कहते हैं। परमेश्वर ने तुम्हें यह काम सौंपा है, और ये कर्तव्य दिए हैं जो तुम्हें निभाने चाहिए—यह तुम्हारे काम का हिस्सा है। तुम्हें इन मामलों को ठीक से संभालना चाहिए, परमेश्वर के अपेक्षित सिद्धांतों और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं का पालन करते हुए, और उन्हें ठीक से व्यवस्थित करते हुए, एक-एक कर पूरा करना चाहिए, तब जाकर तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी होगी। मगर क्या मसीह-विरोधियों के पास ऐसी मानसिकता या विचार है? (नहीं, उनके पास नहीं है।) बिल्कुल नहीं है। यह मानवता का पूर्ण अभाव है। मानवता की कमी की विशिष्ट अभिव्यक्ति क्या है? यह जमीर या विवेक की परवाह न करना, और स्वार्थी और घिनौना होना, विश्वसनीयता का अभाव होना, गैर-भरोसेमंद होना, और कोई भी काम सौंपने लायक न होना है।
जब कलीसिया में कार्यकर्ताओं के मामलों की बात आती है, जैसे कि कौन कहाँ क्या काम कर रहा है, क्या वह इसे ठीक से कर रहा है, क्या वह प्रभावी ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहा है, क्या कोई बाधाएँ या गड़बड़ियाँ आई हैं, या भाई-बहनों की प्रतिक्रिया कैसी है, मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में कभी विस्तार से पूछताछ नहीं करते या व्यवस्थाएँ नहीं करते। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर का घर उन्हें विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली व्यक्तियों का नाम देने के लिए कहता है, तो मसीह-विरोधी केवल इन व्यक्तियों के लिखित परिचय पर ही नजर डालते हैं, उनकी स्थितियों के बारे में पता नहीं लगाते या पूछताछ नहीं करते—उदाहरण के लिए, क्या इन व्यक्तियों की आस्था की कोई नींव है, उनकी मानवता कैसी है, क्या वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, क्या उनकी विशेष प्रतिभाएँ और तकनीकी कौशल उन मानकों के अनुरूप हैं जो परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित हैं, और क्या वे विकसित किए जाने और महत्वपूर्ण कर्तव्यों की जिम्मेदारी उठाने के लिए उपयुक्त हैं। मसीह-विरोधी इन चीजों को लेकर बस दिखावा करते हैं, मुखौटा लगाते हैं, और लिखित परिचय पर बस थोड़ी-बहुत नजर डाल लेते हैं। वे वास्तव में कभी भी उन व्यक्तियों के साथ मेलजोल नहीं करते हैं, न ही उन्हें विस्तार से या गहराई से समझने की कोशिश करते हैं। नतीजतन, उनके द्वारा चुने गए ज्यादातर लोगों को अपने कर्तव्य पूरे करने या अपने उचित कार्यों को निभाने में विफल होने के कारण हटा दिया जाता है। मसीह-विरोधी इस स्थिति को कैसे देखते हैं? “ऐसा नहीं है कि मुझे इन कर्तव्यों को करने के लिए पदोन्नति दी जा रही है; मेरा उनमें कोई हिस्सा नहीं है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि कौन निकाला जाता है? अगर मैं सिफारिशों को मंजूरी देता हूँ और इन लोगों को पोषण देता हूँ, तो इसकी गिनती मेरे काम करने के रूप में होगी। इसके अलावा, जिन व्यक्तियों को पदोन्नति दी गई है उन पर मेरा एहसान रहेगा। वे विकसित किए जाने लायक हैं या नहीं, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है।” अगर मसीह-विरोधी अनुपयुक्त व्यक्तियों को पोषण देते हैं, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य में रुकावटें आती हैं, तो क्या वे जिम्मेदारी उठाते हैं? (बिल्कुल हैं।) वे बहुत सारी चीजों की जिम्मेदारी उठाते हैं, मगर इन दानवी चीजों की कभी कोई जाँच नहीं करते। कुछ लोग कहते हैं, “कठोर परिवेश वाले कुछ स्थानों पर, हम लोगों से आमने-सामने बातचीत नहीं कर सकते। फिर हम उनकी जाँच कैसे कर पाएँगे?” परिवेश चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, इन मामलों को संभालने के लिए अभी भी तरीके और दृष्टिकोण मौजूद हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि क्या तुम जिम्मेदार हो और वास्तव में प्रतिबद्ध हो। क्या ऐसा नहीं है? (बिल्कुल है।) अगर तुम अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी दिखाते हो, तो भले ही परिणाम अनुकूल न हों, परमेश्वर इसकी पड़ताल करता है और इसे जानता है, और तुम इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराए जाओगे। लेकिन अगर तुम अपनी निष्ठा और जिम्मेदारी नहीं दिखाते, तो भले ही कुछ गलत न हो और इससे अंत में कोई गलत परिणाम न निकले, परमेश्वर इसकी पड़ताल करेगा। इन दोनों दृष्टिकोणों की प्रकृति अलग है, और परमेश्वर उनके साथ अलग तरह से पेश आएगा। जब लोगों को पोषण देने की बात आती है, तो भी मसीह-विरोधी साजिश रचते हैं, उनकी मंशाएँ भी स्वार्थी और घिनौनी होती हैं, और उनमें निष्ठा नहीं होती। चाहे वे कुछ भी कर रहे हों, मसीह-विरोधी अपने हिसाब-किताब रखते हैं और वे सिद्धांतों का पालन नहीं करते। इसके अलावा, ठोस काम अच्छी तरह से हो, इसके लिए उन्हें अपना चेहरा दिखाना पड़ेगा, यात्राएँ करते हुए ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना पड़ेगा, कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी और जोखिम उठाना पड़ेगा। जैसे ही उनकी अपनी सुरक्षा की बात आती है, मसीह-विरोधी फिर से हिसाब-किताब करना शुरू कर देते हैं, और उनकी प्रकृति बेनकाब हो जाती है। क्या बेनकाब होता है? यही कि उनके हिसाब से बहुत से लोगों से मिलना-जुलना उनकी अपनी सुरक्षा के लिए जोखिम भरा है, और वे मनमाने ढंग से लोगों से नहीं मिल सकते हैं। मसीह-विरोधी उन लोगों से बातचीत नहीं करते जिनसे उन्हें करनी चाहिए और वे किसी से नहीं मिलते हैं, बल्कि वे रहने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना ढूँढ़ लेते हैं, और वहीं छिप कर कुछ आसान कामों से ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। जहाँ तक कार्य के अन्य पहलुओं के ठीक से किए जाने का सवाल है, जैसे कि क्या ऐसे लोग हैं जो बाधाएँ डाल रहे हैं, या फिर क्या कार्य व्यवस्थाओं, परमेश्वर के वचनों की विभिन्न पुस्तकों, या रिकॉर्ड किये गए धर्मोपदेशों को बाँटा जा रहा है या नहीं, मसीह-विरोधी इन चीजों के बारे में कभी भी विशिष्ट व्यवस्थाएँ या पूछताछ नहीं करते। जाहिर कि निष्ठावान माने जाने के लिए उन्हें जोखिम उठाना, अपना चेहरा दिखाना और मुसीबत का सामना करना होगा। यहाँ समस्या क्या है? कौन समझा सकता है? (जब पहले-पहल उन्होंने यह काम शुरू किया था, तो उन्होंने कभी भी नहीं सोचा कि इसे अच्छी तरह से कैसे करें या क्या सुझाए गए कार्यकर्ता उपयुक्त हैं या नहीं, और उन्होंने कभी भी पूरे दिल से काम नहीं किया या अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। उन्होंने इन चीजों के बारे में कभी नहीं सोचा।) वे निष्ठा दिखाते ही नहीं। परमेश्वर के प्रति निष्ठावान लोगों और बिना निष्ठा वाले लोगों के काम करने के तरीके की प्रकृति में अंतर होता है। जब दोनों का सामना ऐसे मामलों से होता है जिनमें खतरा शामिल है, तो निष्ठावान लोग कार्य व्यवस्थाओं को लागू करने के लिए बुद्धि और तरीकों का इस्तेमाल करके खतरे का सामना करने और अपना काम करने में सक्षम होते हैं। लेकिन, खतरा शामिल हो या न हो, मसीह-विरोधी ठोस काम नहीं करते, और न ही वे कभी कार्य व्यवस्थाओं को लागू करते हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी मौखिक रूप से कलीसिया की स्थिति, विभिन्न कार्यों वगैरह के बारे में पूछताछ कर सकते हैं, मगर उनकी पूछताछ भी महज औपचारिकताएँ होती हैं, वे बस सतही स्तर के प्रयास करते हैं, और इसमें बिल्कुल भी सावधानी नहीं बरतते। बाहर से, ऐसा लग सकता है कि वे ठोस काम कर रहे हैं, मगर वास्तव में, वे काम को नहीं समझते, वे टिप्पणियाँ नहीं लिखते हैं, उस पर विचार नहीं करते, और न ही प्रार्थना करते या सत्य खोजते हैं। वे इस बात पर विचार करने में ऊर्जा नहीं खपाते कि काम के विभिन्न हिस्से किस तरह आगे बढ़ रहे हैं, या उन क्षेत्रों के लिए कौन जिम्मेदार है जहाँ काम ठीक से नहीं हुआ है, या कौन-से कलीसिया अगुआ शायद उपयुक्त नहीं हैं, या किन जगहों पर काम लागू नहीं हुआ है। वे इन बातों पर ध्यान नहीं देते, बस दिखावा करते हैं, और जब उन्हें कोई समस्या दिखाई देती है, तो उसे हल नहीं करते। कुछ तथाकथित अगुआ लोगों को सिर्फ सभाओं के लिए इकट्ठा करते हैं, स्थिति के बारे में पूछताछ करते हैं, और काम का विश्लेषण और जाँच-पड़ताल करते हैं। मगर जैसे ही कोई ठोस काम आता है, और इसके लिए उन्हें कष्ट उठाना पड़ता है और कीमत चुकानी पड़ती है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा को जोखिम में डालना होता है और कुछ कठिनाई शामिल होती है, तो वे इसे नहीं करते। तब वे खुद को बचाने के लिए काम करना बंद कर देते हैं। यहाँ तक कि जब उन्हें समस्याएँ नजर आती हैं, तो भी वे विशिष्ट व्यवस्थाएँ नहीं करते। अगर वे अपनी आस्था के लिए जाने जाते हों, और उनके पकड़े जाने का खतरा हो, तो क्या वे ये काम दूसरों को सौंप देते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं करते। वे ये काम दूसरों को नहीं सौंपते हैं, और यही समस्या है। तो, इस तरह के लोग कैसा सार प्रकट करते हैं? उनमें निष्ठा की कमी होती है, वे स्वार्थी और घिनौने होते हैं, और हर चीज में अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को लागू करने या परमेश्वर के घर के कार्य की प्रगति के बारे नहीं पूछते, और उन्हें इन चीजों की परवाह नहीं होती। उन्होंने अपनी निष्ठा प्रस्तुत नहीं की है, और वे अपनी निष्ठा नहीं दिखाते हैं। उनके लिए, इन मामलों के संबंध में खानापूर्ति कर लेना ही बहुत है; वे इसे काम करना मानते हैं। अगर जोखिम छोटा है, तो वे न चाहते हुए थोड़ा-बहुत काम कर सकते हैं। लेकिन अगर जोखिम बड़ा है, और उनके पकड़े जाने की संभावना है, तो फिर चाहे काम कितना भी जरूरी क्यों न हो, वे इसे नहीं करेंगे। यही मसीह विरोधियों का सार है। उनके दिलों की गहराई में, जब तक उनके हित सुरक्षित हैं, वे किसी का भी सौदा कर सकते हैं। उनके हित परमेश्वर के घर के हितों की कीमत पर पूरे होते हैं; उनके लिए, उनके हित सर्वोपरि हैं। क्या मसीह-विरोधी कर्तव्य संभालने के बाद निष्ठावान हो सकते हैं? (नहीं, वे नहीं हो सकते।) उनके लिए निष्ठा असंभव है। क्या वे अपने भाई-बहनों के जीवन और सुरक्षा का ध्यान रख सकते हैं? (नहीं रख सकते।) जब उनकी अपनी सुरक्षा की बात आएगी, तो मसीह-विरोधी केवल खुद को बचाएँगे, अपने भाई-बहनों को आग के कुंड में धकेल देंगे, और बलि के बकरे के रूप में उनका इस्तेमाल करेंगे। यही मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है।
अपनी सुरक्षा पर ध्यान देने के अलावा, कुछ मसीह-विरोधी और क्या सोचते हैं? वे कहते हैं, “फिलहाल, हमारा परिवेश अनुकूल नहीं है, इसलिए हमें लोगों के सामने कम ही आना चाहिए और सुसमाचार को कम फैलाना चाहिए। इस तरह, हमारे पकड़े जाने की संभावना कम होगी, और कलीसिया का काम नष्ट नहीं होगा। अगर हम पकड़े जाने से बच गए, तो हम यहूदा नहीं बनेंगे, और हम भविष्य में यहाँ बने रह पाएँगे, है न?” क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हैं जो अपने भाई-बहनों को गुमराह करने के लिए ऐसे बहाने बनाते हैं? कुछ मसीह-विरोधी मौत से बहुत डरते हैं और घिनौनी जिंदगी घसीटते रहते हैं; उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबा भी पसंद है, और वे अगुआ की भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार रहते हैं। भले ही वे जानते हैं कि, “अगुआ का काम आसान नहीं है—अगर बड़े लाल अजगर को पता चला कि मुझे अगुआ बना दिया गया है, तो मैं मशहूर हो जाऊँगा, और हो सकता है कि मुझे वांछित लोगों की सूची में डाल दिया जाए, और जैसे ही मैं पकड़ा जाऊँगा, मेरी जान खतरे में पड़ जाएगी,” इस रुतबे के लाभों का आनंद लेने के लिए, वे इन खतरों को नजरंदाज कर देते हैं। जब वे अगुआ के रूप में काम करते हैं, तो केवल अपने देह-सुख के बारे में सोचते हैं, और वास्तविक कार्य नहीं करते। विभिन्न कलीसियाओं के साथ थोड़े-बहुत पत्राचार के अलावा, वे कुछ और नहीं करते हैं। वे किसी स्थान पर छिप जाते हैं और किसी से नहीं मिलते, खुद को बंद रखते हैं, और भाई-बहनों को नहीं पता होता कि उनका अगुआ कौन है—वे इतने अधिक डरे हुए होते हैं। तो, क्या यह कहना सही नहीं है कि वे केवल नाम के अगुआ हैं? (बिल्कुल सही है।) वे अगुआ के रूप में कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं; उन्हें बस खुद को छिपाने की परवाह होती है। जब दूसरे उनसे पूछते हैं, “अगुआ होना कैसा है?” तो वे कहेंगे, “मैं बहुत व्यस्त रहता हूँ, और अपनी सुरक्षा की खातिर, मुझे घर बदलते रहना पड़ता है। यह परिवेश इतना अस्थिर करने वाला है कि मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।” उन्हें हमेशा ऐसा लगता है कि कई लोग उन पर नजर रख रहे हैं, और वे नहीं जानते कि कहाँ छिपना सुरक्षित है। वेश बदलने, अलग-अलग जगहों पर खुद को छिपाने और एक स्थान पर टिके न रहने के अलावा, वे प्रति दिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। क्या ऐसे अगुआ होते हैं? (बिल्कुल।) वे किन सिद्धांतों का पालन करते हैं? ये लोग कहते हैं, “एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं। खरगोश को हिंसक जानवर के हमले से बचने के लिए, तीन बिल बनाने पड़ते हैं ताकि वह खुद को छिपा सके। अगर किसी व्यक्ति का खतरे से सामना हो और उसे भागना पड़े, मगर उसके पास छिपने के लिए कोई जगह न हो, तो क्या यह स्वीकार्य है? हमें खरगोशों से सीखना चाहिए! परमेश्वर के बनाए प्राणियों में जीवित रहने की यह क्षमता होती है, और लोगों को उनसे सीखना चाहिए।” अगुआ बनने के बाद से, वे इस धर्म-सिद्धांत को समझ गए हैं, और यह भी मानते हैं कि उन्होंने सत्य को समझ लिया है। वास्तविकता में, वे बहुत डरे हुए हैं। जैसे ही वे किसी ऐसे अगुआ के बारे में सुनते हैं, जिसकी रिपोर्ट पुलिस में इसलिए की गई क्योंकि वह किसी असुरक्षित जगह पर रह रहा था, या किसी ऐसे अगुआ के बारे में जो बड़े लाल अजगर के जासूसों के चंगुल में फँस गया, क्योंकि वह अपना कर्तव्य निभाने के लिए अक्सर बाहर जाता और बहुत से लोगों से बातचीत करता था, और कैसे इन लोगों को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया, तो वे तुरंत डर जाते हैं। वे सोचते हैं, “अरे नहीं, क्या पता इसके बाद मुझे ही गिरफ्तार किया जाए? मुझे इससे सीखना चाहिए। मुझे ज्यादा सक्रिय नहीं रहना चाहिए। अगर मैं कलीसिया के कुछ काम करने से बच सकता हूँ, तो मैं उसे नहीं करूँगा। अगर मैं अपना चेहरा दिखाने से बच सकूँ, तो मैं नहीं दिखाऊँगा। मैं अपना काम जितना हो सके उतना कम करूँगा, बाहर निकलने से बचूँगा, किसी से बातचीत करने से बचूँगा, और यह पक्का करूँगा कि किसी को भी मेरे अगुआ होने की खबर न हो। आजकल, कौन किसी और की परवाह कर सकता है? सिर्फ जिंदा रहना भी अपने आप में एक चुनौती है!” जब से वे अगुआ बने हैं, बैग उठाकर छिपते फिरने के अलावा, कोई काम नहीं करते। वे हमेशा पकड़े जाने और जेल जाने के निरंतर डर के साये में जीते हैं। मान लो वे किसी को यह कहते हुए सुन लें, “अगर तुम पकड़े गए, तो तुम्हें मार दिया जाएगा! अगर तुम अगुआ नहीं होते, अगर तुम बस एक साधारण विश्वासी होते, तो तुम्हें छोटा-सा जुर्माना भरने के बाद शायद छोड़ दिया जाता, मगर चूँकि तुम अगुआ हो, इसलिए कुछ कह नहीं सकते। यह बहुत खतरनाक है! पकड़े गए कुछ अगुआओं या कर्मियों ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर मार डाला।” जब वे किसी के पीट-पीटकर मार दिए जाने के बारे में सुनते हैं, तो उनका डर और बढ़ जाता है, वे काम करने से और भी ज्यादा डरने लगते हैं। हर दिन, वे बस यही सोचते हैं कि पकड़े जाने से कैसे बचें, दूसरों के सामने आने से कैसे बचें, निगरानी से कैसे बचें, और अपने भाई-बहनों से संपर्क से कैसे बचें। वे इन चीजों के बारे में सोचने में अपना दिमाग खपाते हैं और अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भूल जाते हैं। क्या ये निष्ठावान लोग हैं? क्या ऐसे लोग कोई काम संभाल सकते हैं? (नहीं, वे नहीं संभाल सकते।) इस तरह के लोग बस डरपोक होते हैं, और हम सिर्फ इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें मसीह-विरोधी नहीं कह सकते, मगर इस अभिव्यक्ति की प्रकृति क्या है? इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है, और वे यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर की खातिर खुद को खपाने के लिए समर्पित होना, सत्य के लिए खुद को समर्पित करना है, और परमेश्वर इसे स्वीकृति देता है। वे अपने दिलों में परमेश्वर का भय नहीं मानते; वे केवल शैतान और दुष्ट राजनीतिक दलों से डरते हैं। वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते, वे यह नहीं मानते कि सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और यह तो बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को स्वीकृति देगा जो परमेश्वर की खातिर, उसके मार्ग पर चलने की खातिर और परमेश्वर का आदेश पूरा करने की खातिर खुद को खपाता है। वे इनमें से कुछ भी नहीं देख पाते। वे किसमें विश्वास करते हैं? उनका मानना है कि अगर वे बड़े लाल अजगर के हाथ लग गए, तो उनका बुरा अंत होगा, उन्हें सजा हो सकती है या यहाँ तक कि अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अपने दिलों में, वे केवल अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं, कलीसिया के कार्य के बारे में नहीं। क्या ये छद्म-विश्वासी नहीं हैं? (बिल्कुल, हैं।) बाइबल में क्या कहा गया है? “जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा” (मत्ती 10:39)। क्या वे इन वचनों पर विश्वास करते हैं? (नहीं, वे नहीं करते।) अगर उनसे अपना कर्तव्य निभाते समय जोखिम उठाने को कहा जाए, तो वे खुद को कहीं छिपाना चाहेंगे और किसी को भी उन्हें नहीं देखने देंगे—वे अदृश्य होना चाहेंगे। वे इस हद तक डरे हुए होते हैं। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर मनुष्य का सहारा है, सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है, अगर कुछ वाकई गलत हो जाता है या वे पकड़े जाते हैं, तो यह परमेश्वर की अनुमति से हो रहा है, और लोगों के पास समर्पण वाला दिल होना चाहिए। इन लोगों के पास ऐसा दिल, ऐसी समझ या यह तैयारी नहीं है। क्या वे वाकई परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं रखते।) क्या इस अभिव्यक्ति का सार एक छद्म-विश्वासी का सार नहीं है? (बिल्कुल है।) यह ऐसा ही है। इस तरह के लोग बहुत ज्यादा डरपोक, बुरी तरह से डरे हुए होते हैं, और शारीरिक पीड़ा सहने और उनके साथ कुछ बुरा होने से डरते हैं। वे डरपोक पक्षियों की तरह डर जाते हैं और अब अपना काम नहीं कर पाते। जिस तरह के लोगों के बारे में हमने इससे पहले बात की थी, वे भले ही अपना काम करने में सक्षम हों, फिर भी कोई काम नहीं करते। भले ही उन्हें पता हो कि कोई समस्या है, वे उसे हल नहीं करेंगे। वे बस अपनी सुरक्षा करते हैं, और बहुत स्वार्थी और घिनौने होते हैं। ये दोनों प्रकार के लोग छद्म-विश्वासी हैं। पहले प्रकार के लोग झूठे और धूर्त होते हैं, कठिनाई और थकान से डरते हैं, अपने देह-सुख की चिंता करते हैं, और वास्तविक कार्य नहीं करते। दूसरे प्रकार के लोग डरपोक और भयभीत होते हैं, वास्तविक कार्य करने की हिम्मत नहीं करते, और बड़े लाल अजगर द्वारा पकड़े जाने और उत्पीड़न सहने से डरते हैं। क्या इन दो प्रकार के लोगों के बीच कोई अंतर नहीं है? (बिल्कुल है।)
क्या तुम लोगों के पास कोई उदाहरण है कि मसीह-विरोधी अपनी सुरक्षा कैसे करते हैं? (परमेश्वर, मैं ऐसा एक उदाहरण जानता हूँ। एक कलीसिया थी जिसे बड़े लाल अजगर ने नष्ट कर दिया, क्योंकि इसे एक ऐसा मसीह-विरोधी चला रहा था जो बेधड़क बुरे काम करता था; इस घटना में सभी अगुआओं, उपयाजकों और कुछ भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय, मसीह-विरोधी को पकड़े जाने का डर था। गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने की व्यवस्थाएँ किए बिना ही वह कहीं दूर जाकर छिप गया। उसने एक मेजबान परिवार के साथ रहने से भी इनकार कर दिया, और इसके बजाय एक जगह किराए पर लेने के लिए चढ़ावे का इस्तेमाल करने पर जोर दिया। चूँकि उसने बाद के कार्य के लिए उचित व्यवस्थाएँ नहीं की और छिपे हुए खतरों को तुरंत खत्म नहीं किया, इसलिए कई भाई-बहन गिरफ्तार हो गए, और कलीसिया का कार्य मजबूरन बंद करना पड़ गया। यह स्पष्ट है कि मसीह-विरोधी बहुत स्वार्थी और घिनौने होते हैं। संकट की घड़ी में, वे केवल अपने हितों की रक्षा करते हैं और परमेश्वर के घर के हितों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं करते।) मसीह-विरोधी बेहद स्वार्थी और घिनौने होते हैं। उनमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं होती, परमेश्वर के प्रति निष्ठा तो बिल्कुल नहीं होती; जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो वे केवल अपना बचाव और अपनी सुरक्षा करते हैं। उनके लिए, उनकी अपनी सुरक्षा से ज्यादा जरूरी और कुछ नहीं है। अगर वे जिंदा रह सकें और गिरफ्तार न हों, तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कलीसिया के काम को कितना नुकसान हुआ है। ये लोग बेहद स्वार्थी हैं, वे भाई-बहनों या कलीसिया के काम के बारे में बिल्कुल नहीं सोचते, सिर्फ अपनी सुरक्षा के बारे में सोचते हैं। वे मसीह-विरोधी हैं। तो जब उन लोगों के साथ ऐसी चीजें घटती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं और परमेश्वर में सच्ची आस्था रखते हैं, तो वे उन्हें कैसे संभालते हैं? वे जो करते हैं वह मसीह-विरोधियों के काम से किस तरह अलग है? (जब ऐसी चीजें उन लोगों पर बीतती हैं जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान हैं, तो वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने, परमेश्वर के चढ़ावे को नुकसान से बचाने के लिए किसी भी तरीके के बारे में सोचेंगे, और वे नुकसान को कम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं, और भाई-बहनों के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ भी करेंगे। जबकि, मसीह-विरोधी सबसे पहले यह सुनिश्चित करते हैं कि वे सुरक्षित रहें। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करते, और जब कलीसिया में गिरफ्तारियाँ होती हैं, तो इससे कलीसिया के कार्य को नुकसान होता है।) मसीह-विरोधी कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चढ़ावे को छोड़कर भाग जाते हैं, और वे गिरफ्तारी के बाद की स्थिति को सँभालने के लिए लोगों की व्यवस्था नहीं करते। यह बड़े लाल अजगर को परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों को जब्त करने की अनुमति देने के समान है। क्या यह परमेश्वर के चढ़ावे और उसके चुने हुए लोगों के साथ गुप्त विश्वासघात नहीं है? जब वे लोग जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होते हैं, स्पष्ट रूप से जानते हैं कि परिवेश खतरनाक है, तब भी वे गिरफ्तारी के बाद का कार्य सँभालने का जोखिम उठाते हैं, और निकलने से पहले वे परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम करते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। मुझे बताओ, बड़े लाल अजगर के इस दुष्ट राष्ट्र में, कौन यह सुनिश्चित कर सकता है कि परमेश्वर में विश्वास करने और कर्तव्य करने में कोई भी खतरा न हो? चाहे व्यक्ति कोई भी कर्तव्य निभाए, उसमें कुछ जोखिम तो होता ही है—लेकिन कर्तव्य का निर्वहन परमेश्वर द्वारा सौंपा गया आदेश है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, व्यक्ति को अपना कर्तव्य करने का जोखिम उठाना ही चाहिए। इसमें बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और अपनी सुरक्षा के इंतजाम करने की भी आवश्यकता होती है, लेकिन व्यक्ति को अपनी सुरक्षा को पहला स्थान नहीं देना चाहिए। उसे पहले परमेश्वर के इरादों पर विचार करना चाहिए, उसके घर के कार्य और सुसमाचार के प्रचार को सबसे ऊपर रखना चाहिए। परमेश्वर ने तुम्हें जो आदेश सौंपा है, उसे पूरा करना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और वह पहले आता है। मसीह-विरोधी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं; उनका मानना है कि किसी और चीज का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। जब किसी दूसरे के साथ कुछ होता है, तो वे परवाह नहीं करते, चाहे वह कोई भी हो। जब तक खुद मसीह-विरोधी के साथ कुछ बुरा नहीं होता, तब तक वे आराम से बैठे रहते हैं। वे निष्ठारहित होते हैं, जो मसीह-विरोधी के प्रकृति सार से निर्धारित होता है। मुख्यभूमि चीन के परिवेश में, क्या अपना कर्तव्य करते समय कोई भी जोखिम उठाने से बचना और यह पक्का करना मुमकिन है कि कुछ भी बुरा न हो? सबसे सतर्क व्यक्ति भी यह गारंटी नहीं दे सकता। मगर सतर्कता जरूरी है। पहले से अच्छी तरह तैयार होने से चीजें थोड़ी बेहतर होंगी, और कुछ गलत होने पर नुकसान को कम करने में मदद मिल सकेगी। अगर कोई तैयारी नहीं है, तो नुकसान बड़ा होगा। क्या तुम इन दो स्थितियों के बीच अंतर को स्पष्ट रूप से देख सकते हो? इसलिए, चाहे सभाओं की बात हो या किसी तरह का कर्तव्य निभाने की, सतर्क रहना सबसे अच्छा है, और कुछ निवारक उपाय करना जरूरी है। जब कोई निष्ठावान व्यक्ति अपना कर्तव्य निभाता है, तो वह थोड़ा और व्यापक रूप से और अच्छी तरह से सोच सकता है। वह इन चीजों को जितना हो सके उतना व्यवस्थित करना चाहता है ताकि अगर कुछ गलत हो जाए, तो नुकसान कम से कम हो। उसे लगता है कि यह नतीजा हासिल करना जरूरी है। जिस व्यक्ति में निष्ठा नहीं है वह इन चीजों के बारे में नहीं सोचता। उसे ये चीजें जरूरी नहीं लगती हैं, और वह उन्हें अपनी जिम्मेदारी या कर्तव्य नहीं मानता। जब कुछ गलत हो जाता है, तो वह बिल्कुल भी दोषी महसूस नहीं करता। यह निष्ठा की कमी की अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। जब उन्हें काम सौंपा जाता है, तो वे इसे बहुत खुशी से स्वीकार लेते हैं और कुछ अच्छी घोषणाएँ करते हैं, मगर जब खतरा आता है, तो वे सबसे तेजी से भागते हैं; सबसे पहले भागने वाले, सबसे पहले बचकर निकलने वाले वही होते हैं। इससे पता चलता है कि उनका स्वार्थ और घिनौनापन बहुत गंभीर है। उन्हें जिम्मेदारी या निष्ठा का रत्ती भर भी एहसास नहीं है। जब किसी समस्या का सामना करना पड़ता है, तो वे केवल भागना और छिपना जानते हैं, और सिर्फ खुद को बचाने के बारे में सोचते हैं, कभी अपनी जिम्मेदारियों या कर्तव्यों पर विचार नहीं करते। अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की खातिर, मसीह-विरोधी लगातार अपना स्वार्थी और घिनौना स्वभाव दिखाते हैं। वे परमेश्वर के घर के काम या अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं देते। वे परमेश्वर के घर के हितों को जरा भी प्राथमिकता नहीं देते। इसके बजाय, वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
अभी हमने जिस उपखंड के बारे में संगति की क्या वह मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के नौवें मद से संबंधित नहीं है—वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं? (बिल्कुल है।) खुद को बचाने, खतरे और शारीरिक पीड़ा से बचने के लिए, मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के काम और अपने कर्तव्यों के प्रति अनमना रवैया अपनाते हैं। वे वास्तविक कार्य किए बिना पदों पर काबिज रहते हैं। क्या यह परमेश्वर के घर के हितों का सौदा करना नहीं है? क्या यह व्यक्तिगत सुरक्षा के बदले में परमेश्वर के घर के हितों, परमेश्वर के कार्य और अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा करना नहीं है? (बिल्कुल है।) इस उपखंड में हमने जिन अभिव्यक्तियों का गहन विश्लेषण किया है, वे मसीह-विरोधियों के स्वार्थी और घिनौने सार का पूरी तरह से खुलासा करते हैं। हमने यहाँ मुख्य रूप से किस बारे में संगति की है? मसीह-विरोधी, मुसीबत में पड़ने के डर से और खुद को बचाने के लिए, अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते, और परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा नहीं दिखाते। क्या इस अभिव्यक्ति में कोई सत्य वास्तविकता है? क्या यह जमीर और विवेक की कमी नहीं है? यह मानवता का पूर्ण अभाव है!
ख. उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा
आओ संगति के दूसरे उपखंड, “मसीह-विरोधियों की अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा” के बारे में संगति जारी रखें। इसमें भी मसीह-विरोधियों के हित शामिल हैं। अब, ये तीनों उपखंड जिन पर हम चर्चा कर रहे हैं : मसीह-विरोधियों की अपनी सुरक्षा, उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबा, और उनके अपने लाभ—वे सब मसीह-विरोधियों के अपने हितों से संबंधित हैं। क्या उनका परमेश्वर के घर के कार्य से कोई संबंध है? (बिल्कुल है।) क्या संबंध है? (मसीह-विरोधी अपने संरक्षण और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सुरक्षित रखने के लिए, कलीसिया के काम में गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं और उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं।) मसीह-विरोधी अपने हितों के संरक्षण के लिए परमेश्वर के घर के हितों और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं। मसीह-विरोधियों की स्वार्थी और घिनौनी प्रकृति को देखें, तो इस तरह के व्यक्ति, अपनी सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से रक्षात्मक होने के अलावा और किस चीज को संजोते हैं? (उन्हें प्रतिष्ठा और रुतबा बहुत पसंद है।) यह सही है। मसीह-विरोधियों को प्रतिष्ठा और रुतबा बहुत अधिक पसंद आता है। प्रतिष्ठा और रुतबा उनके जीवन का आधार है; उन्हें लगता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना जीवन बेकार है, और प्रतिष्ठा और रुतबे के बिना उनमें कुछ भी करने की ऊर्जा नहीं होती है। मसीह-विरोधियों के लिए, प्रतिष्ठा और रुतबा दोनों उनके व्यक्तिगत हितों से नजदीकी से जुड़े हैं; वे उनकी दुखती रग हैं। इसीलिए, मसीह-विरोधी जो भी करते हैं वह उनके रुतबे और प्रतिष्ठा से जुड़ा होता है। अगर यह इन चीजों के लिए न होता, तो शायद वे कोई काम नहीं करते। मसीह-विरोधियों के पास चाहे कोई रुतबा हो या न हो, जिस लक्ष्य के लिए वे लड़ रहे हैं, जिस दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं, वह इन्हीं दो चीजों की ओर है—प्रतिष्ठा और रुतबा। जब मसीह-विरोधी मुख्यभूमि चीन जैसे निरंकुश परिवेश में परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, तो वे अपनी सुरक्षा पक्की करने के फेर में परमेश्वर के घर के हितों के बारे में कोई विचार नहीं करते। वे जो कुछ करते हैं, उसका एक हिस्सा अपनी पूरी ताकत से रुतबा पाने, सत्ता पर दृढ़ता से कब्जा बनाए रखने और कलीसिया को नियंत्रित करने के लिए है। दूसरा हिस्सा यह है कि वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की ही खातिर हमेशा बातें करते हैं, काम करते हैं, इधर-उधर भागते-फिरते और कड़ी मेहनत करते रहते हैं। मसीह-विरोधी जो कुछ भी कहते और करते हैं, वह इन्हीं चीजों से संबंधित होता है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश के लिए कभी कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, और न ही वे राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए कोई वास्तविक कार्य करते हैं। जब वे कीमत चुकाते हैं, तो गौर करो कि वे यह कीमत क्यों चुकाते हैं। जब वे किसी मुद्दे पर उत्साहपूर्वक वाद-विवाद करते हैं, तो गौर करो कि वे उस पर बहस क्यों करते हैं। जब वे किसी व्यक्ति के बारे में विचार-विमर्श करते या उसकी निंदा करते हैं, तो गौर करो कि उनका इरादा और लक्ष्य क्या है। जब वे किसी बात को लेकर दुखी या गुस्सा होते हैं, तो गौर करो कि वे किस तरह का स्वभाव प्रकट करते हैं। लोग दूसरे लोगों के दिलों के अंदर नहीं झाँक सकते, मगर परमेश्वर ऐसा कर सकता है। जब परमेश्वर लोगों के दिलों में झाँकता है, तो वह लोगों की कथनी और करनी के सार को मापने के लिए किस चीज का उपयोग करता है? वह इसे मापने के लिए सत्य का उपयोग करता है। मनुष्य की नजर में, अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा करना उचित है। तो फिर परमेश्वर की नजर में इसे मसीह-विरोधियों का प्रकाशन और अभिव्यक्ति, और मसीह-विरोधियों का सार क्यों माना जाता है? यह मसीह-विरोधियों द्वारा किए जाने वाले हर काम के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा पर आधारित है। परमेश्वर उनके द्वारा किए जाने वाले कामों के पीछे के आवेग और अभिप्रेरणा की जाँच करता है, और अंत में, यह निर्धारित करता है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह उनकी अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए है, न कि अपने कर्तव्य को करने की खातिर; यह सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने की खातिर तो बिल्कुल भी नहीं है।
मसीह-विरोधी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, इसलिए वे यकीनन अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने के लिए ही बोलते और काम भी करते हैं। वे अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं। अगर उनके आसपास कोई अच्छी काबिलियत वाला व्यक्ति है और वह सत्य का अनुसरण करता है, और इस व्यक्ति को भाई-बहनों के बीच कुछ प्रसिद्धि हासिल करने के बाद टीम का अगुआ चुन लिया जाता है, और भाई-बहन वास्तव में उस व्यक्ति की प्रशंसा करते और उसे स्वीकारते हैं, तो मसीह-विरोधी कैसी प्रतिक्रिया देंगे? यकीनन वे इससे खुश नहीं होंगे, और उनमें ईर्ष्या पैदा होगी। अगर मसीह-विरोधी मन में ईर्ष्या रखते हैं, तो मुझे बताओ, क्या वे सही बर्ताव कर सकेंगे? क्या उन्हें इस बारे में कुछ नहीं करना होगा? (बिल्कुल करना होगा।) अगर वे वास्तव में इस व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं, तो वे क्या करेंगे? अपने मन में, वे जरूर कुछ इस तरह का हिसाब लगाएँगे : “इस व्यक्ति में काफी अच्छी काबिलियत है, उसके पास इस पेशे की कुछ समझ है, और वह मुझसे ज्यादा मजबूत है। यह परमेश्वर के घर के काम के लिए फायदेमंद है, मगर मेरे लिए नहीं! क्या वह मेरी जगह ले लेगा? अगर उसने वाकई एक दिन मेरी जगह ले ली, तो क्या यह परेशानी की बात नहीं होगी? मुझे पहले से ही निवारक काम करना चाहिए। अगर वह कभी अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम हो जाए, तो मेरे लिए उसे ठीक करना इतना आसान नहीं होगा। बेहतर होगा कि मैं पहले ही वार करूँ। अगर मैं देर करता हूँ और उसे मुझे उजागर करने देता हूँ, तो कौन जाने इसके परिणाम क्या होंगे। तो, मैं वार कैसे करूँ? मुझे एक बहाना, एक अवसर खोजना होगा।” मुझे बताओ, अगर कोई किसी को दंडित करना चाहे, तो क्या उसके लिए ऐसा करने का बहाना और अवसर ढूँढ़ना आसान नहीं है? शैतान की कौन-सी एक चाल है? (“जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।”) बिल्कुल, “जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है।” शैतान के संसार में, इस तरह का तर्क मौजूद है, और ऐसी चीजें होती रहती हैं। परमेश्वर के लिए यह मौजूद नहीं है। मसीह-विरोधी शैतान के हैं और ये सब करने में सबसे ज्यादा सक्षम हैं। वे इस बारे में सोचेंगे : “जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है। मैं तुम पर आरोप लगाऊँगा, तुम्हें दंडित करने का अवसर ढूँढूँगा, तुम्हारे अहंकार और हेकड़ी को दबाऊँगा, और भाई-बहनों को तुम्हारा सम्मान करने और अगली बार तुम्हें टीम का अगुआ चुनने से रोकूँगा। फिर, तुम मेरे लिए कोई खतरा नहीं रहोगे, है न? अगर मैं इस संभावित समस्या को खत्म कर दूँ और इस प्रतिस्पर्धी को हटा दूँ, तो क्या मुझे राहत नहीं मिलेगी?” अगर उसके दिमाग में इस तरह की उथल-पुथल मची हुई है, तो क्या वह बाहर से खुद को इस पर काम करने से रोक पाएगा? मसीह-विरोधियों की प्रकृति को देखें, तो क्या वे इस विचार को अपने अंदर दबाए रखने और कुछ न करने में सक्षम हो सकते हैं? बिल्कुल नहीं। वे यकीनन अपनी चाल चलने का रास्ता खोज ही लेंगे। यह मसीह विरोधियों की मक्कारी है। वे न केवल ऐसा सोचते हैं, बल्कि इस लक्ष्य को हासिल भी करना चाहते हैं। इसलिए, वे इस मामले पर बेतहाशा विचार करेंगे, अपना दिमाग खपाएँगे। वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार नहीं करते, न ही वे कलीसिया के कार्य पर विचार करते हैं। उन्हें इस बात की और भी कम परवाह होती है कि उनके क्रियाकलाप परमेश्वर के इरादे के अनुसार हैं या नहीं। वे बस अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने, अपनी ताकत की रक्षा करने के बारे में ही सोचते हैं। उन्हें लगता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने पहले ही उनके रुतबे के लिए खतरा पैदा कर दिया है, इसलिए वे उन्हें नीचे गिराने का अवसर खोजने की कोशिश करते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने उनसे सलाह-मशविरा किए बिना किसी ऐसे व्यक्ति को बदल दिया है जो लगातार अनमने ढंग से अपना कर्तव्य निभा रहा था, तो वे इसे अपने प्रतिद्वंद्वी पर कुछ आरोप लगाने का सही मौका समझेंगे। भाई-बहनों के सामने वे कहते हैं, “क्योंकि आज सभी यहाँ हैं, तो आओ इस मामले का गहन विश्लेषण करें। क्या अधिकृत हुए बिना, अपने सहकर्मियों या साथियों से विचार-विमर्श किए बिना किसी को बदलना तानाशाही नहीं है? कोई ऐसी गलती क्यों करेगा? क्या उनके स्वभाव में कोई समस्या नहीं है? क्या उनकी काट-छाँट नहीं की जानी चाहिए? क्या भाई-बहनों को उनका परित्याग नहीं कर देना चाहिए?” वे यह मुद्दा उठाते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी को बदनाम करने और खुद को ऊँचा उठाने के लिए बात का बतंगड़ बना देते हैं। वास्तव में, स्थिति इतनी गंभीर नहीं है। टीम के किसी सदस्य के कर्तव्य में कुछ फेर-बदल करने या उसे बदले जाने के बाद रिपोर्ट बनाना पूरी तरह से स्वीकार्य है, अगर यह फेर-बदल या बदलाव सिद्धांतों का पालन करके किया गया हो। लेकिन, मसीह-विरोधी इस मुद्दे को हद से ज्यादा तूल देते हैं। वे जान-बूझकर अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करते और खुद को ऊँचा उठाते हैं। क्या यह दूसरों को दंडित करने की अभिव्यक्ति नहीं है? वे अपने प्रतिद्वंद्वी को मक्कारी से काटते-छाँटते हैं, और उनके बारे में बढ़ा-चढ़ाकर आरोप लगाते हैं। यह सब सुनने के बाद, भाई-बहन सोचते हैं, “यहाँ क्या चल रहा है? दाल में कुछ काला है। वे जो कह रहे हैं वह वास्तविकता से मेल नहीं खाता! जिस व्यक्ति के कर्तव्य में फेर-बदल किया गया था, वह इसे जिम्मेदारी से नहीं निभा रहा था—यह तथ्य सबको पता है। कलीसिया के कार्य को बनाए रखने के लिए उसे बदला गया था। इस तरह से अपना कर्तव्य निभाना एक गंभीर और जिम्मेदार तरीका है, और निष्ठा की अभिव्यक्ति है। तो इसे तानाशाही का काम क्यों कहा जाए? यह साफ तौर पर ऐसा मामला है कि ‘जो अपने कुत्ते को मारने का मन बना लेता है, वह आसानी से छड़ी ढूँढ़ लेता है’!” जिस किसी के पास सत्य की थोड़ी भी समझ और पहचान हो, वह एक नजर में बता सकता है कि ये मसीह-विरोधी सिर्फ अपना भाव दिखा रहे हैं और अपने प्रतिद्वंद्वी पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं। यह काम की जिम्मेदारी लेना कैसे है? यह व्यक्ति की काट-छाँट करना कैसे है? ये मसीह-विरोधी राई का पहाड़ बना रहे हैं : यह सीधे तौर पर प्रतिकार और व्यक्तिगत प्रतिशोध है। यह मानवीय इच्छा और शैतान से आता है, यह परमेश्वर से नहीं आता। यह यकीनन काम और अपने कर्तव्यों की जिम्मेदारी लेने के रवैये से नहीं आता—यह उनका इरादा नहीं है। मसीह-विरोधी अपने इरादों को बहुत स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं, और कुछ लोग इसे देख सकते हैं। क्या मसीह-विरोधियों को इसका एहसास हो सकता है? (बिल्कुल।) यही मसीह-विरोधियों की धूर्तता है। वे अपने रुतबे की रक्षा करने, कुतर्क करने, लोगों को जीतने और खास तौर से लोगों के दिलों में “झाँकने” में सबसे ज्यादा कुशल हैं। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “मैं तुम लोगों के दिलों में मौजूद हर विचार को देख सकता हूँ। शायद तुम लोग सत्य को समझ सकते हो, मगर मेरी असलियत को नहीं समझ सकते। मैं तुम लोगों की असलियत समझ सकता हूँ। मैं बता सकता हूँ कि मेरी कही बातों पर किसे यकीन नहीं है।” मगर क्या वे ऐसा कुछ कहते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कहते। लेकिन क्या वे ऐसा कुछ कहते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं करते। वे सबको आश्वस्त करने के लिए कुछ मीठे शब्दों और अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि सबको लगे कि उस व्यक्ति को काट-छाँटकर उन्होंने सही किया है। वे कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं? वे कहते हैं, “मैंने स्वार्थी और व्यक्तिगत इरादे से तुम्हारी काट-छाँट नहीं की है। वास्तव में, हमारे बीच कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। बात बस इतनी है कि जब तुमने मनमाने ढंग से उस व्यक्ति को उसके कर्तव्य से हटाया, तो इससे परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचा। क्या मैं इसे नजरअंदाज कर सकता हूँ? अगर मैंने तुम्हें ऐसा करने दिया, तो यह मेरी गैर-जिम्मेदारी होगी। मैं तुम्हें या किसी व्यक्ति को निशाना बनाने के लिए ऐसा नहीं कर रहा हूँ। अगर मैं गलत हूँ, तो भाई-बहन मेरी आलोचना कर सकते हैं और मुझे फटकार सकते हैं। मैं अगला चुनाव नहीं लड़ूँगा।” कुछ लोग यह सब सुनकर पूरी तरह भ्रमित हो जाते हैं। वे सोचते हैं, “लगता है उसे समझने में मुझसे गलती हो गई। वह चुनाव न लड़ने को भी तैयार है। उसने रुतबे की प्रतिस्पर्धा में उस व्यक्ति की काट-छाँट नहीं की है, उसने जो किया वह कलीसिया के कार्य की जिम्मेदारी निभाने के रवैये के आधार किया। इसमें कुछ गलत नहीं है।” ये मसीह-विरोधी फिर से कुछ लोगों को गुमराह करने में कामयाब हो जाते हैं। क्या मसीह-विरोधी चालाक नहीं हैं? (हाँ, वे चालाक हैं।) वे बेहद शातिर हैं! यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी अपना दिमाग खपाते हैं, अपने मन की गहराई को टटोलते हैं, और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर जो बन पड़े वह सब करते हैं। एक कहावत है : “पहले उन्हें थप्पड़ मारो, और फिर मीठी-मीठी बातें कह दो।” क्या मसीह-विरोधी इस चाल का इस्तेमाल नहीं करेंगे? वे तुम पर वार करने के बाद, तुम्हें मनाने, सांत्वना देने और यह महसूस कराने के लिए कुछ मीठे-मीठे शब्द कह सकते हैं कि वे बहुत सहनशील, धैर्यवान और स्नेही हैं। आखिरकार, तुम्हें उन्हें स्वीकार करके यह कहना पड़ेगा, “देखो, इस व्यक्ति के पास अपने काम को लेकर इतने स्पष्ट उद्देश्य हैं, और वह इसमें इतना प्रवीण है—क्या शानदार कौशल है! जाहिर है कि उसमें एक अगुआ के गुण हैं, और हम सब उसकी तुलना में कमतर महसूस करते हैं।” तो क्या इन मसीह-विरोधियों ने अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया है? ये मसीह-विरोधियों की चालें हैं।
मसीह-विरोधी बहुत कपटी और धूर्त होते हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं, बहुत सोच-समझकर कहते हैं; दिखावा करने में उनसे बेहतर कोई नहीं है। मगर जैसे ही राज खुल जाता है, जैसे ही लोग उनकी असलियत देख लेते हैं, तो वे खुद के लिए बहस करने की पूरी कोशिश करते हैं, स्थिति को सुधारने के तरीके सोचते हैं, और अपनी छवि और प्रतिष्ठा को बचाने के उपाय के रूप में झांसा देकर अपना रास्ता बनाते हैं। मसीह-विरोधी रोज केवल प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीते हैं, वे केवल रुतबे के लाभों का आनंद लेने के लिए जीते हैं, वे बस इसी बारे में सोचते हैं। यहाँ तक कि जब वे कभी-कभी कोई छोटा-मोटा कष्ट उठाते हैं या कोई मामूली कीमत चुकाते हैं, तो वह भी हैसियत और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए होता है। हैसियत के पीछे दौड़ना, सत्ता धारण करना और एक आसान जीवन जीना वे प्रमुख चीजें हैं, जिनके लिए मसीह-विरोधी परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद हमेशा योजना बनाते हैं, और तब तक हार नहीं मानते, जब तक कि वे अपने लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। अगर कभी उनके दुष्कर्म उजागर हो जाते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, मानो उन पर आकाश गिरने वाला हो। वे न तो खा पाते हैं, न सो पाते हैं, और बेहोशी की-सी हालत में प्रतीत होते हैं, मानो अवसाद से ग्रस्त हों। जब लोग उनसे पूछते हैं कि क्या समस्या है, तो वे झूठ बोलते हुए कहते हैं, “कल मैं इतना व्यस्त रहा कि पूरी रात सो नहीं पाया, इसलिए बहुत थक गया हूँ।” लेकिन वास्तव में, इसमें से कुछ भी सच नहीं होता, यह सब धोखा होता है। वे ऐसा इसलिए महसूस करते हैं, क्योंकि वे लगातार सोच रहे होते हैं, “मेरे द्वारा किए गए बुरे काम उजागर हो गए हैं, तो मैं अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत कैसे बहाल कर सकता हूँ? मैं खुद को छुड़ाने के लिए किन साधनों का उपयोग कर सकता हूँ? इसे समझाने के लिए मैं सभी लोगों के साथ किस लहजे का उपयोग कर सकता हूँ? मैं लोगों को अपनी असलियत जानने से रोकने के लिए क्या कह सकता हूँ?” काफी समय तक उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें, इसलिए वे खिन्न रहते हैं। कभी-कभी उनकी आँखें एक ही स्थान पर शून्य में ताकती रहती हैं, और कोई नहीं जानता कि वे क्या देख रहे हैं। यह मुद्दा उन्हें सिर खपाने पर मजबूर कर देता है, वे जितना सोच सकते हैं उतना सोचते हैं और उनकी खाने-पीने की इच्छा नहीं होती। इसके बावजूद, वे अभी भी कलीसिया के काम की परवाह करने का दिखावा करते हैं और लोगों से पूछते हैं, “सुसमाचार का काम कैसा चल रहा है? उसे कितने प्रभावी ढंग से प्रचारित किया जा रहा है? क्या भाई-बहनों ने हाल ही में कोई जीवन प्रवेश प्राप्त किया है? क्या कोई विघ्न-बाधा डाल रहा है?” कलीसिया के काम के बारे में उनकी यह पूछताछ दूसरों को दिखाने के लिए होती है। अगर उन्हें समस्याओं के बारे में पता चल भी जाता, तो भी उनके पास उन्हें हल करने का कोई उपाय न होता, इसलिए उनके प्रश्न महज औपचारिकता होते हैं, जिन्हें दूसरे लोग कलीसिया के काम की परवाह के रूप में देख सकते हैं। अगर कोई कलीसिया की समस्याओं की रिपोर्ट बनाए जिनका उन्हें समाधान करना हो, तो वे बस इनकार में अपने सिर हिला देंगे। कोई भी योजना उनके काम नहीं आएगी, और हालाँकि वे खुद को छिपाना चाहेंगे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाएँगे, और उनके उजागर और प्रकट होने का खतरा होगा। यह सबसे बड़ी समस्या है, जिसका सामना मसीह-विरोधियों को अपने पूरे जीवन में करना पड़ता है। इस समय, मसीह-विरोधी बेहद आक्रांत होते हैं, कभी-कभी अपना सिर हिलाते हैं, मानो कह रहे हों, “ऐसे नहीं चलेगा।” फिर वे अपने हाथों से अपना सिर थपथपाते हैं, मानो सोच रहे हों, “मैं इतना बेवकूफ कैसे हूँ? मैं इस मामले में ठोकर कैसे खा सकता हूँ?” मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकते हैं और बस आहें भर सकते हैं। वे केवल अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के लिए मेहनत करते, कष्ट उठाते और कीमत चुकाते हैं, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सभी प्रकार के बुरे कर्म करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा उजागर होने के परिणाम को कोई नहीं रोक सकता। सत्य का अनुसरण न करने से लोगों का देर-सवेर पतन होना तय है। यह कहावत मसीह-विरोधियों पर पूरी तरह से लागू होती है। भले ही वे भेष बदलने में कुशल हों और दूसरों को मनाने और गुमराह करने में सक्षम हों, लेकिन अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझते हैं और व्यक्ति के सार को समझ सकते हैं, तो मसीह-विरोधी चाहे कितनी भी गहराई में क्यों न छिपे हों या चाहे कितने भी बुरे काम करें, वे उन्हें पूरी तरह से पहचान सकते हैं। कुछ और कहावतें हैं : “बुराई में बने रहना आत्म-विनाश लाता है,” और “आग से खेलने से तुम जल जाओगे।” ये सभी चीजों के विकास को नियंत्रित करने वाले वस्तुनिष्ठ नियम हैं, जिन्हें परमेश्वर ने सभी चीजों और सभी घटनाओं के विकास के लिए स्थापित किया है। कोई भी इनसे बच नहीं सकता। हालाँकि मसीह-विरोधियों के शासन में कलीसिया का काम जारी है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता बहुत कम हो गई है। कुछ महत्वपूर्ण कार्य अभी भी बुरे व्यक्तियों द्वारा संभाला जाता है, और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाएँ लागू नहीं की गई हैं। हालाँकि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, फिर भी कोई वास्तविक परिणाम नहीं मिला है, और कई काम लंबे समय से अटके पड़े हैं। इन समस्याओं का मूल कारण क्या है? यही कि मसीह-विरोधियों ने कलीसिया को अपने काबू में कर लिया है। जहाँ कहीं भी मसीह-विरोधी सत्ता में हैं, तो चाहे उनके प्रभाव का दायरा कुछ भी हो, चाहे वह सिर्फ एक समूह ही हो, वे परमेश्वर के घर के काम और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कुछ के जीवन-प्रवेश को प्रभावित करेंगे। अगर किसी कलीसिया में उनके पास सत्ता है, तो वहाँ कलीसिया का काम और परमेश्वर की इच्छा बाधित होती है। कुछ कलीसियाओं में परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू क्यों नहीं की जा सकतीं? इसलिए, कि उन कलीसियाओं में सता मसीह-विरोधियों के पास होती है। जो कोई भी मसीह-विरोधी है, वह परमेश्वर के लिए ईमानदारी से नहीं खपेगा, उसके कर्तव्यों का निर्वाह सिर्फ औपचारिकताओं और बेमन से काम करने का मामला होगा। वे वास्तविक कार्य नहीं करेंगे, भले ही वे अगुआ या कार्यकर्ता हों, कलीसिया के कार्य की रक्षा बिल्कुल न करते हुए वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए बोलेंगे और कार्य करेंगे। तो, मसीह-विरोधी पूरे दिन क्या करते हैं? वे प्रदर्शन और दिखावा करने में व्यस्त रहते हैं। वे सिर्फ अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से जुड़े काम करते हैं। वे दूसरों को गुमराह करने, लोगों को फुसलाने में व्यस्त रहते हैं, और जब वे अपनी ताकत इकट्ठी कर लेते हैं, तो वे और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करने में लग जाते हैं। वे सिर्फ राजा की तरह राज करना चाहते हैं और कलीसिया को अपने स्वतंत्र राज्य में बदलना चाहते हैं। वे सिर्फ महान अगुआ बनना चाहते हैं, पूर्ण, एकतरफा अधिकार प्राप्त करना चाहते हैं, और ज्यादा कलीसियाओं को नियंत्रित करना चाहते हैं। वे किसी और चीज की जरा भी परवाह नहीं करते। वे कलीसिया के कार्य या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश से सरोकार नहीं रखते, इस बात की परवाह तो बिल्कुल नहीं करते कि परमेश्वर की इच्छा पूरी होती है या नहीं। वे केवल इस बात की चिंता करते हैं कि कब वे स्वतंत्र रूप से सत्ता धारण कर सकते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित कर सकते हैं, और परमेश्वर के साथ बराबरी पर खड़े हो सकते हैं। मसीह-विरोधियों की इच्छाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ वास्तव में बहुत बड़ी होती हैं! मसीह-विरोधी कितने भी मेहनती दिखाई पड़ते हों, वे मनमाफिक कार्य करते हुए केवल अपने ही उद्यमों में, और अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे से संबंधित चीजों में व्यस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे अपनी जिम्मेदारियों या उस कर्तव्य के बारे में भी नहीं सोचते, जो उन्हें निभाना चाहिए, और एक भी ठीक काम नहीं करते। मसीह-विरोधी इसी तरह की चीज हैं—वे दानव और शैतान हैं जो परमेश्वर के कार्य को अस्त-व्यस्त करते हैं।
अतीत में, एक अगुआ था जिसे मैंने उसके कार्यकाल के दौरान पाँच काम सौंपे थे। लेकिन, दो महीने बाद भी, इनमें से कोई काम पूरा नहीं हुआ। बाहर से, ऐसा लग रहा था कि अगुआ खाली नहीं बैठा था, वह काफी व्यस्त और थका हुआ था, और शायद ही कभी सबके सामने आता था। तो, वह किस काम में व्यस्त था, और जो काम मैंने उसे सौंपे थे वह उन्हें पूरा क्यों नहीं कर सका? यहाँ एक समस्या थी। अगुआ ने कुछ काम नहीं किए क्योंकि उसे ये काम करना पसंद नहीं था, उसका मानना था कि ये काम उसके कर्तव्यों के दायरे से बाहर थे। यह एक समस्या थी। इसके अलावा, कुछ कामों के बारे में उसकी अपनी अलग राय थी, वह जान-बूझकर उन्हें एक तरफ रख देता था। कुछ काम चुनौतीपूर्ण भी थे, जिसमें दूसरों की सहायता की जरूरत थी और वे कुछ हद तक परेशानी भरे होते थे, और अगुआ उनसे निपटना नहीं चाहता था। इस तरह के परिदृश्य सामने आए। तो, दो महीने बीत गए और एक भी काम पूरा नहीं हुआ। कुछ लोगों ने कहा, “क्या इन सभी कामों को दो महीनों में पूरा करना मुमकिन है?” यह मुमकिन है कि इन सभी कामों को दो महीनों में पूरा किया जा सके, और इनमें से ज्यादातर कामों को एक या दो दिनों में ही पूरा किया जा सके, मगर अगुआ उन्हें लागू करने में विफल रहा। जब किसी और ने कार्यभार संभाला और ये काम किए, तो सभी पाँच काम एक हफ्ते के भीतर पूरे हो गए। क्या तुम सबको लगता है कि ऐसे अगुआ को बदल देना चाहिए? (बिल्कुल।) अगर तुम सबका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से हो जो ऊपरवाले द्वारा सौंपे गए किसी भी काम को पूरा नहीं करे, मगर बाहर से काफी व्यस्त दिखाई दे, तो वह एक झूठा अगुआ है। ऐसे व्यक्तियों को तुरंत बदला या हटा दिया जाना चाहिए। इस सिद्धांत के बारे में तुम्हारा क्या विचार है? (यह अच्छा है।) उनके बाहरी उत्साह और इस तथ्य पर ध्यान मत दो कि वे पूरे दिन काफी व्यस्त दिखते हैं। वास्तव में, वे कोई वास्तविक काम नहीं करते; वे खुद को छोटे-मोटे मामलों में व्यस्त रखते हैं। वे क्या करते हैं? उनके काम कुछ अलग-अलग श्रेणियों में आते हैं। सबसे पहले, वे ऐसे काम लेते हैं जो वे मानते हैं कि वे संभाल सकते हैं, जो सुरक्षित हैं और जिनमें ज्यादा जोखिम नहीं है। “ज्यादा जोखिम नहीं है” से मेरा क्या तात्पर्य है? यही कि इन कामों को करने से, गलतियाँ करने से बचना आसान होता है, उन्हें ऊपरवाले से बातचीत नहीं करनी पड़ती, और वे काम गलत ढंग से करने और काट-छाँट होने से बच सकते हैं। इसके अलावा, वे ऐसे काम करते हैं जिनमें वे प्रवीण हैं, जिनमें उनसे गलतियाँ होने की संभावना कम होती है। इस तरह, वे जिम्मेदारी उठाने से बच सकते हैं और काफी हद तक काटे-छाँटे जाने, हटाए जाने या निकाले जाने से खुद को बचा सकते हैं। इन कामों में जोखिम और जिम्मेदारी शामिल नहीं है, इसलिए वे इन्हें कर सकते हैं और संभाल सकते हैं। वास्तव में, इसमें एक बात छिपी होती है। अगर वे ये काम किसी की नजर में आए बिना कर सकें तो क्या वे इन्हें करेंगे? अगर इनमें उनका कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं है, तो क्या वे इन्हें करेंगे? बिल्कुल नहीं करेंगे। वे किस तरह के काम करना पसंद करते हैं? वे ऐसे काम करना पसंद करते हैं जो अपेक्षाकृत आसान हों, सरल हों और जिन्हें बहुत ज्यादा कष्ट सहे बिना पूरा किया जा सके। इसके अलावा, वे उन धर्मोपदेशों को अधिक सुनने और याद करने के लिए तैयार रहते हैं जिनमें उनकी रुचि होती है और जो उनकी धारणाओं से मेल खाते हैं। उन्हें समझने के बाद, वे खुद को बढ़िया ढंग से पेश करने और दूसरों से प्रसंशा पाने के लिए दूसरों के साथ इन धर्मोपदेशों पर चर्चा कर सकते हैं। इसके अलावा, अगर इन कामों को करने से उन्हें ज्यादा लोगों से बातचीत करने का मौका मिले और इससे दूसरे जान पाएँ कि वे काम में व्यस्त हैं, अगुआ के पद पर हैं, और उनके पास यह रुतबा और पहचान है, तो वे इन्हें करेंगे। वे इस प्रकृति के कामों को चुनते हैं। लेकिन, अगर उन्हें जो काम करना है वह जटिल हो और उनकी क्षमताओं से परे हो, अगर कोई और उनसे ज्यादा कुशल हो, और असफल होने पर उनकी प्रतिष्ठा खोने, दूसरों से अपमानित होने का जोखिम हो, तो वे ये काम करने को तैयार नहीं होंगे। वे कड़ी मेहनत, थकान और अच्छा प्रदर्शन न करने की शर्मिंदगी से डरते हैं। इसके अलावा, वे बहुत आलसी होते हैं और मुश्किल और मेहनत वाले कामों से बचते हैं, और खुद को इनसे कहीं दूर छिपा लेते हैं। इसके बजाय, वे ऐसे काम करना पसंद करते हैं जो उनकी छवि को बेहतर बनाते हैं, सहज होते हैं, जहाँ वे ऊपरवाले की नजर में आए बिना बस खानापूर्ति करते हुए लोगों के दिल जीत सकते हैं। ये सभी मसीह-विरोधियों के जन्मजात लक्षण हैं। जब अपने कर्तव्यों को निभाने की बात आती है, तो वे अपनी पसंद के काम चुनते हैं। उनके पास व्यक्तिगत पसंद, योजनाएँ और यहाँ तक कि साजिशें भी होती हैं। वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति बिल्कुल भी आज्ञाकारी नहीं होते; बल्कि, वे अपने ही विकल्प चुनते हैं। जहाँ तक ऊपरवाले की व्यवस्थाओं की बात है, अगर वे उनसे सहमत नहीं हैं, तो उन्हें बिल्कुल भी लागू नहीं करेंगे। वे इन मामलों को पूरी तरह से उलझा देते हैं, और कलीसिया के भाई-बहनों को उनके बारे में पता ही नहीं होता। अगर ऊपरवाले की इन व्यवस्थाओं को लागू करना कुछ व्यक्तियों के खिलाफ जाता है या उन्हें नाराज करता है, तो क्या वे उन्हें लागू करेंगे? नहीं करेंगे। वे मन-ही-मन सोचते हैं, “अगर ऊपरवाले को यह काम पूरा कराना है, तो मैं इसे नहीं करूँगा। अगर करूँगा भी, तो मुझे इसे ऊपरवाले के नाम पर करना पड़ेगा, कहना पड़ेगा कि यह ऊपरवाले का आदेश था। मैं उन लोगों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता।” मसीह-विरोधी चालाक किस्म के होते हैं, है न? वे जो कुछ भी करते हैं, उसकी आठ-दस बार या उससे भी अधिक बार गुप्त योजना बनाते और हिसाब-किताब करते हैं। वे सोचते रहते हैं कि कैसे भीड़ में अपनी स्थिति को मजबूत बनाया जाए, कैसे अच्छी प्रतिष्ठा और ऊँचा सम्मान प्राप्त किया जाए, कैसे ऊपरवाले की कृपा हासिल की जाए, भाई-बहनों का समर्थन, प्रेम और सम्मान कैसे पाया जाए और वे इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं। वे किस मार्ग पर चल रहे हैं? उनके लिए परमेश्वर के घर के हित, कलीसिया के हित और परमेश्वर के घर का कार्य कोई मायने नहीं रखता, उनसे जुड़ी चीजों की तो उन्हें और भी चिंता नहीं होती। वे क्या सोचते हैं? “इन बातों का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए; लोगों को अपने लिए, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए जीना चाहिए। यही सर्वोच्च लक्ष्य होता है। अगर कोई नहीं जानता कि उसे अपने लिए जीना और अपनी रक्षा करनी चाहिए तो वह मूर्ख है। अगर मुझे सत्य सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास करने, परमेश्वर और उसके घर की व्यवस्था के प्रति समर्पित होने को कहा जाए, तो यह इस पर निर्भर करेगा कि इससे मेरा हित सधेगा या नहीं और क्या ऐसा करने का कोई लाभ होगा। यदि परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण न करने से मुझे निकाल दिए जाने का और आशीष प्राप्त करने का अवसर खोने का डर है, तो मैं समर्पण कर दूंगा।” इस प्रकार, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की रक्षा के लिए, मसीह-विरोधी अक्सर कुछ समझौते करने को तैयार हो जाते हैं। तुम कह सकते हो कि हैसियत के लिए मसीह-विरोधी किसी भी प्रकार की पीड़ा सहने को और एक अच्छी प्रतिष्ठा के लिए हर तरह की कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। यह कहावत उन पर खरी उतरती है, “एक महान व्यक्ति जानता है कि कब झुकना है और कब नहीं।” यह शैतान का तर्क है, है न? यह सांसारिक आचरण के लिए शैतान का फलसफा है और यह जीवित रहने का शैतान का सिद्धांत भी है। यह बेहद घृणित है!
मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ये लोग कपटी, चालाक और दुष्ट ही नहीं, बल्कि अत्यधिक विद्वेषपूर्ण भी होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी हैसियत खतरे में है, या जब वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देते हैं, जब वे लोगों का समर्थन और स्नेह खो देते हैं, जब लोग उनका आदर-सम्मान नहीं करते, और वे बदनामी के गर्त में गिर जाते हैं, तो वे क्या करते हैं? वे अचानक बदल जाते हैं। जैसे ही वे अपनी हैसियत खो देते हैं, वे कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते, वे जो कुछ भी करते हैं, अनमने होकर करते हैं, और उनकी कुछ भी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती। लेकिन यह सबसे खराब अभिव्यक्ति नहीं होती। सबसे खराब अभिव्यक्ति क्या होती है? जैसे ही ये लोग अपनी हैसियत खो देते हैं और कोई उनका सम्मान नहीं करता, कोई भी उनसे गुमराह नहीं होता, तो उनकी घृणा, ईर्ष्या और प्रतिशोध बाहर आ जाता है। उनके पास न केवल परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं रहता, बल्कि उनमें समर्पण का कोई अंश भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, उनके दिलों में परमेश्वर के घर, कलीसिया, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से घृणा करने की संभावना होती है; वे दिल से चाहते हैं कि कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आ जाएँ या वह ठप हो जाए; वे कलीसिया, और भाई-बहनों पर हँसना चाहते हैं। वे उस व्यक्ति से भी घृणा करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करता है और परमेश्वर का भय मानता है। वे उस व्यक्ति पर हमला करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं, जो अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और कीमत चुकाने का इच्छुक होता है। यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है—और क्या यह विद्वेषपूर्ण नहीं है? ये स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं; मसीह-विरोधी अपने सार में बुरे लोग होते हैं। यहाँ तक कि जब सभाएँ ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं, अगर वे देखते हैं कि सिग्नल अच्छा है, तो वे मन-ही-मन कोसते हैं और कहते हैं : “काश कि सिग्नल चला जाए! काश कि सिग्नल चला जाए! बेहतर है, कोई उपदेश न सुन पाए!” ये लोग क्या हैं? (राक्षस।) वे राक्षस हैं! वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं। इस तरह के दानव और बुरे लोग माहौल को इस तरह बिगाड़ते हैं, फिर चाहे वे किसी भी कलीसिया में हों। भले ही समझदार लोग उन्हें उजागर करें और उन्हें रोकें, वे आत्म-चिंतन नहीं करेंगे या अपनी गलतियाँ स्वीकार नहीं करेंगे। वे सोचेंगे कि यह उनकी ओर से बस एक क्षणिक गलती थी और उन्हें इससे सीख लेनी चाहिए। ऐसे लोग, जो पश्चात्ताप करने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं, वे समर्पण नहीं करेंगे, भले ही कोई भी उन्हें पहचाने और उजागर करे। वे उस व्यक्ति के खिलाफ प्रतिकार करना चाहेंगे। जब उन्हें असहज महसूस हो, तो वे नहीं चाहते कि भाई-बहनों के लिए चीजें आसान रहें। अपने दिलों में, वे चोरी-छिपे भाई-बहनों को कोसते हैं, उनके साथ बुरा होने की कामना करते हैं, और परमेश्वर के घर के कार्य को भी कोसते हुए चाहते हैं कि उसमें मुसीबत आए। जब परमेश्वर के घर में कुछ भी गलत होता है, तो वे चोरे-छिपे खुश होते और जश्न मनाते हैं, सोचते हैं, “हुँह! आखिरकार, कुछ गलत हो ही गया। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि तुमने मुझे हटाया। अच्छा है जो सब कुछ बिखर रहा है!” वे दूसरों को कमजोर पड़ते और निराश होते देखकर खुश होते हैं और उसका आनंद लेते हैं, वे लोगों को बदनाम करने के लिए उनका मजाक बनाते और हँसी उड़ाते हैं, और यहाँ तक कि नकारात्मकता और मौत के शब्द भी फैलाते हैं, कहते हैं, “हम विश्वासी अपने कर्तव्य निभाने के लिए अपने परिवार और करियर तक त्याग देते हैं और पीड़ा सहते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि परमेश्वर का घर वास्तव में हमारे भविष्य की जिम्मेदारी ले सकता है? क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है? क्या यह उस कीमत के लायक है जो हम चुका रहे हैं? मैं अभी बहुत स्वस्थ नहीं हूँ, और अगर मैंने खुद को थका दिया, तो बुढ़ापे में मेरी देखभाल कौन करेगा?” वे ऐसी बातें कहते हैं ताकि हर कोई निराश महसूस करे—तभी उन्हें खुशी मिलती है। क्या वे बेकार नहीं हैं, बुरे और दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं? क्या ऐसे लोगों को दंड नहीं मिलना चाहिए? (बिल्कुल मिलना चाहिए।) क्या तुम सबको लगता है कि ऐसे लोगों के दिलों में वास्तव में परमेश्वर बसता है? वे परमेश्वर में सच्चे विश्वासी नहीं लगते, वे यह बिल्कुल नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों के दिलों की गहराई की पड़ताल करता है। क्या वे छद्म-विश्वासी नहीं हैं? अगर वे वाकई परमेश्वर में विश्वास करते, तो वे ऐसी बातें कैसे कहते? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं है—क्या यह सही है? (नहीं, यह सही नहीं है।) यह गलत क्यों है? (परमेश्वर उनके दिलों में है ही नहीं; वे परमेश्वर के विरोध में हैं।) वास्तव में, वे ऐसी बातें कहने की हिम्मत इसलिए करते हैं क्योंकि वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। वे इस बात पर और भी कम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर सबकी पड़ताल कर रहा है, और वे यह भी नहीं मानते कि परमेश्वर उनकी हर कथनी और करनी, हर विचार और धारणा को देख रहा है। वे ये बातें नहीं मानते, इसलिए वे नहीं डरते और बेधड़क और बेईमानी से ऐसे दानवी शब्द बोल सकते हैं। गैर-विश्वासी अक्सर यह भी कहते हैं, “स्वर्ग की आँखें हैं” और “जब मनुष्य काम करता है, तो स्वर्ग देख रहा होता है।” थोड़ी-सी भी सच्ची आस्था वाला कोई भी व्यक्ति, छद्म-विश्वासियों के ये दानवी शब्द यूँ ही नहीं कहेगा। क्या ऐसी बातें सोचने और बोलने वाले विश्वासियों के लिए गंभीर परिणाम नहीं होंगे? क्या इसकी प्रकृति गंभीर नहीं है? यह बहुत गंभीर है! उनके परमेश्वर को इस तरह से ठुकराने का मतलब है कि वे पक्के शैतान हैं, और बुरे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर के घर में घुसपैठ की है। केवल दानव और मसीह-विरोधी ही परमेश्वर के खिलाफ खुलकर शोर मचाने की हिम्मत रखते हैं। परमेश्वर के घर के हित परमेश्वर के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और परमेश्वर का घर जो कुछ भी करता है वह परमेश्वर की अगुआई में, उसकी अनुमति और उसके मार्गदर्शन से होता है; यह परमेश्वर के प्रबंधन कार्य से नजदीकी से जुड़ा हुआ है और इससे अलग नहीं किया जा सकता। जो लोग खुलेआम इस तरह से परमेश्वर के घर के काम को कोसते हैं, जो अपने दिलों में इसकी निंदा करते हैं, परमेश्वर के घर का मजाक उड़ाना चाहते हैं, जो चाहते हैं कि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग गिरफ्तार हो जाएँ, कलीसिया का काम पूरी तरह से रुक जाए, और विश्वासी अपनी आस्था से मुँह मोड़ लें, और जो ऐसा होने पर खुश हों—ये किस तरह के लोग हैं? (दानव हैं।) वे दानव हैं, वे पुनर्जन्म लेने वाले बुरे राक्षस हैं! साधारण लोगों में भ्रष्ट स्वभाव होते हैं, वे कभी-कभी विद्रोही हो जाते हैं, और जब वे निराश और कमजोर महसूस करते हैं, तो उनके मन में बस कुछ छोटे-मोटे विचार आते हैं, ज्यादा कुछ नहीं, मगर वे इतने बुरे नहीं होंगे या उनके मन में ऐसे बुरे और दुर्भावनापूर्ण विचार नहीं आएँगे। इस तरह का सार केवल मसीह-विरोधियों और दानवों में ही पाया जाता है। जब मसीह-विरोधियों के मन में ये विचार आते हैं, तो क्या उन्हें लगता है कि ये गलत हो सकते हैं? (नहीं, उन्हें ऐसा नहीं लगता।) क्यों नहीं? (क्योंकि वे जो सोचते और कहते हैं उसे ही सत्य मानते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता, और उनकी प्रकृति परमेश्वर का विरोध करने की होती है।) बिल्कुल, यही उनकी प्रकृति है। शैतान ने कब कभी परमेश्वर को परमेश्वर माना है? उसने कब माना है कि परमेश्वर ही सत्य है? उसने कभी यह नहीं माना है, और न ही कभी मानेगा। मसीह-विरोधी और ये दानव, दोनों एक जैसे हैं; वे परमेश्वर को परमेश्वर नहीं मानते या उसे सत्य नहीं मानते। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर ने ही सभी चीजों की रचना की है और वही उन पर संप्रभुता रखता है। इसलिए उन्हें लगता है कि वे जो कहते हैं वही सही है। वे इस तरह बेईमानी से काम करते और सोचते हैं; यही उनकी प्रकृति है। जब भ्रष्ट मनुष्य ऐसा करते हैं, तो वे अपने भीतर संघर्ष महसूस करते हैं। उनके पास जमीर और मानवीय जागरूकता होती है। उनके जमीर, जागरूकता और वे जिन सत्यों को समझते हैं, वे उन्हें अंदर से प्रभावित करते हैं, और इससे उनमें संघर्ष पैदा होता है। जब यह संघर्ष पैदा होता है, तो उचित-अनुचित, सही-गलत, और न्याय और दुष्टता के बीच संघर्ष होता है, और इसका यह परिणाम निकलता है : सत्य का अनुसरण करने वाले लोग परमेश्वर के साथ खड़े होते हैं, जबकि जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते वे शैतान की दुष्ट शक्तियों के साथ खड़े होते हैं। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह सब शैतान के सहयोग से करते हैं। वे नकारात्मकता फैलाते हैं, अफवाहें फैलाते हैं, और परमेश्वर के घर का मजाक उड़ाते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य और भाई-बहनों को कोसते हैं। वे यह सब करते हुए सहज भी महसूस करते हैं, उनका जमीर भी उन्हें दोषी नहीं ठहराता, और उन्हें जरा भी पछतावा नहीं होता, और वे मानते हैं कि उनके क्रियाकलाप बिल्कुल सही हैं। यह मसीह-विरोधियों की शैतानी प्रकृति, और परमेश्वर का विरोध करने वाले उनके बदसूरत चेहरों का पूरी तरह से खुलासा करता है। इसलिए, यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मसीह-विरोधी पक्के दानव और शैतान हैं। मसीह-विरोधी जन्मजात दानव होते हैं और उन्हें परमेश्वर के उद्धार का बिल्कुल भी लाभ नहीं मिलता। वे साधारण भ्रष्ट मानवजाति का हिस्सा बिल्कुल नहीं हैं। मसीह-विरोधी दानवों का पुनर्जन्म होते हैं, वे जन्मजात बुरे राक्षस होते हैं। बात ऐसी ही है।
मसीह-विरोधियों का ध्यान मुख्य रूप से प्रतिष्ठा और रुतबे पर केंद्रित होता है। जब प्रतिष्ठा और रुतबे की बात आती है, तो मसीह-विरोधी क्या करते हैं? वे बेईमानी से काम करते हैं, अपना दिमाग खपाते हैं, सारी सोच खत्म कर देते हैं, और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को संभालने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ये दो चीजें उनके जीवन का आधार हैं, उनका सब कुछ हैं। उनका मानना है कि इन दो चीजों को पाने का अर्थ यह है कि उन्होंने सब कुछ पा लिया है। उनके संसार में, केवल रुतबा, प्रतिष्ठा और उनके अपने हित मौजूद हैं; उनके लिए कुछ और मायने नहीं रखता। इसलिए, क्या मसीह-विरोधी जैसे लोगों के साथ सत्य, मानवता, न्याय या सकारात्मक चीजों के बारे में संगति करने का कोई फायदा है? (कोई फायदा नहीं है।) सही है, इसका कोई फायदा नहीं है। यह एक वेश्या को यह बताने की कोशिश करने जैसा है कि एक भले घर की महिला कैसे बने, या उसे यह सिखाने जैसा है कि एक सदाचारी पत्नी और माँ कैसे बने; वह सुनना नहीं चाहती, उसे यह सब पसंद नहीं है, और उसे यह घिनौना लगता है। उसे यह कितना घिनौना लगता है? वह मन-ही-मन तुम्हें डांटती है, और तुम्हारा मजाक उड़ाने, तुम्हारा उपहास करने, तुम पर हमला करने और तुम्हें बाहर निकालने के मौके ढूँढ़ती है। आजकल, कलीसिया में, क्या ऐसे लोग नहीं हैं जो जैसे ही किसी को सत्य के बारे में, या परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने या परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करने जैसे सत्यों के बारे में संगति करते हुए सुनते हैं, तो विशेष रूप से विद्रोही रवैया दिखाते हैं? (हाँ, ऐसे लोग हैं।) ऐसे लोग होंगे ही। ऐसा व्यवहार करने वालों को देखो और उन्हें पहचानो। जब तुम परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने की आवश्यकता के बारे में संगति करते हो, तो वे यह सोचते हुए, बहुत नफरत के साथ प्रतिक्रिया देते हैं कि, “वे पूरे दिन परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के बारे में बात करते रहते हैं, जैसे कि सब कुछ परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित किया गया हो, और लोगों के पास कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं!” जैसे ही तुम सत्य के बारे में या सामंजस्यपूर्ण सहयोग करने, परमेश्वर के इरादों को खोजने और अपने कर्तव्यों में सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करने की आवश्यकता के बारे में संगति करते हो, वे इसे पूरी तरह से ठुकरा देते हैं और कुछ नहीं सुनना चाहते। वे बेमन से इसे सुन भी लें, तो भी वे शांत नहीं बैठ सकते, और अगर वे किसी तरह शांत बैठ भी जाएँ, तो भी यह लगभग पक्का होता है कि वे सो गए हैं। जब तुम सत्य के बारे में और मामलों को संभालने में सिद्धांतों का पालन करने के बारे में संगति करते हो, तो वे ऊंघने लगते हैं और उनकी आँख लग जाती है। कुछ समय बाद, सत्य के बारे में संगति किए बिना, बिना काट-छाँट के, वे ऊर्जा से भर जाते हैं। वे मनमर्जी करते हुए लापरवाही से काम करते हैं, एकतरफा फैसले लेते हैं, और एक हाथ से प्रतिष्ठा छीनने की कोशिश करते हैं, तो दूसरे हाथ से रुतबा हथियाने की। वे सबसे ज्यादा उछलते हैं और हर तरह की मुसीबत खड़ी करते हैं। ये सभी लोग मसीह-विरोधी हैं; ये सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं और किसी भी समय बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
जिस किसी के पास भी मसीह-विरोधी की प्रकृति हो, उसे मसीह-विरोधी की श्रेणी में ही रखना चाहिए। जब वे एकतरफा ढंग से काम करना चाहें, तो उन्हें नियंत्रित कर रोका जाना चाहिए; इसमें कोई शक नहीं। कुछ लोग कह सकते हैं, “अगर हम उन्हें नहीं रोक सके तो क्या होगा? हमें क्या करना चाहिए?” मैं उन्हें रोकने के लिए तुम सबको बस एक शर्तिया वाक्य बताऊँगा। जब ऐसी स्थिति से तुम्हारा सामना हो, तो बस इतना कहो, “अगर तुम लापरवाही से काम करना बंद कर दोगे, एकतरफा फैसले नहीं लोगे और अंतिम निर्णय खुद नहीं करोगे, तो क्या तुम मर जाओगे?” यह कैसा लगा? (बढ़िया।) क्या तुम लोगों को लगता है कि अगर किसी मसीह-विरोधी को एकतरफा काम करने से रोका जाए तो वह वास्तव में मर जाएगा? (हाँ।) “हाँ” कैसे कह दिया? (मसीह-विरोधी भीतर से ऐसे ही होते हैं; अगर वे एकतरफा काम न करें तो दुखी महसूस करते हैं, और जी नहीं सकते।) बिल्कुल, वे भीतर से ऐसे ही होते हैं, और अगर वे इस तरह से काम न कर सकें, तो दुखी महसूस करते हैं। तो, क्या ये लोग सामान्य हैं? (नहीं।) वे सामान्य लोग नहीं हैं। एक सामान्य व्यक्ति कैसे सोचेगा? “अगर मैं एकतरफा काम नहीं कर सकता, तो मैं इसे छोड़ दूँगा; इसमें इतनी मुश्किल क्या है? इससे मेरा जीवन भी आसान हो जाएगा!” एक सामान्य व्यक्ति ऐसा ही सोचेगा। लेकिन अगर तुम किसी मसीह-विरोधी को इस तरह काम न करने दो तो वह तबाह हो जाएगा। क्या उसके अंदर दानव नहीं बसता? (बिल्कुल।) तो, अगर उसे एकतरफा काम न करने दिया जाए तो उसे ऐसा लगेगा कि वह मर रहा है। यहाँ “मरने” से क्या तात्पर्य है? यही कि दानव उनके दिल में इतनी अधिक पीड़ा देता है और इतना परेशान करता है कि वे इसे सहन नहीं कर पाते या जिंदा नहीं रह पाते, मानो मौत के कगार पर पहुँच गए हों; इसका यही मतलब है। मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और उन दानवों के लिए जो परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी पैदा करते हैं, उनसे यह एक वाक्य कहना उनके साथ किसी भी सत्य पर चर्चा करने से ज्यादा प्रभावी है। यह एक वाक्य उन मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और दानव जैसे लोगों पर उपयोगी है, जो परमेश्वर के घर के काम में गड़बड़ी पैदा करते हैं। क्या इन लोगों को सत्य बताने का कोई फायदा है? (नहीं, कोई फायदा नहीं है।) “तुम्हें सामंजस्यपूर्ण सहयोग करना होगा, अपना कर्तव्य निभाना होगा और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालना होगा”—इस तरह के शब्द कई वर्षों से बोले जा रहे हैं; क्या कोई ऐसा है जो इन्हें नहीं समझता या उसे ये शब्द याद नहीं हैं? होने तो नहीं चाहिए। तो फिर कुछ लोग अभी भी एकतरफा काम क्यों करते हैं? इसका बस एक ही अर्थ हो सकता है : उनका खुद पर काबू नहीं है; वे सामान्य लोग नहीं हैं। उनके मन और दिल उन्हें काबू में नहीं कर सकते; उनके अंदर कुछ और है जो उन्हें काबू में कर रहा है, हिंसा और बल के जरिये उन्हें इस तरह से काम करने को मजबूर कर रहा है, जो कि वास्तव में परमेश्वर के घर के काम को बाधित करने और उसमें गड़बड़ी पैदा करने, परमेश्वर के घर के काम और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने के लिए है। ऐसे काम कौन कर सकता है? केवल शैतान और दानव। परमेश्वर का अनुसरण करने वाले सामान्य लोगों, सच्चे सृजित प्राणियों के पास ऐसे काम करने की अभिप्रेरणा नहीं होगी; केवल शैतान और दानव ही ऐसा करने की प्रेरणा रखते हैं और वे जान-बूझकर ऐसे काम करते हैं। क्या तुमने इस कथन को याद कर लिया है? (बिल्कुल।) फिर, आज के लिए हम अपनी संगति यहीं समाप्त करेंगे। अलविदा!
29 फरवरी 2020