मद चौदह : वे परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानते हैं

पिछली सभा में हमने इस बात पर संगति की थी कि मसीह-विरोधी लोगों के हृदयों के साथ-साथ कलीसिया का वित्त भी नियंत्रित करते हैं। हमने जिन मुख्य बिंदुओं पर संगति की थी वे क्या थे? (हमने दो बिंदुओं के बारे में संगति की थी : पहला बिंदु था कलीसिया की संपत्ति पर कब्जे और उपयोग तक अपनी पहुंच बनाने को प्राथमिकता देना, जबकि दूसरा बिंदु चढ़ावे की बर्बादी, गबन, उधार, उसका कपटपूर्वक उपयोग और उसकी चोरी करने आदि से संबंधित था।) हमने उन दो मुख्य बिंदुओं पर संगति की थी। आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के चौदहवें मद के बारे में संगति करेंगे : वे परमेश्वर के घर को अपने निजी अधिकार क्षेत्र की तरह मानते हैं। आओ, इस मद में देखें कि मसीह-विरोधियों की किन अभिव्यक्तियोँ से साबित होता है कि उनके पास मसीह-विरोधी का सार है। वे परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र की तरह पेश आते हैं : सतही तौर पर इन दो पदों—“परमेश्वर का घर” और “निजी अधिकार क्षेत्र”—से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि मसीह-विरोधी क्या बुराई कर सकते हैं। यह कहने से कि “मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर से अपने घर की तरह पेश आते हैं” इस बात का कोई प्रत्यक्ष संकेत नहीं मिलता है कि “घर” शब्द क्या संदर्भित कर रहा है, वह कुछ सकारात्मक है या नकारात्मक, इसका उपयोग प्रशंसा-भाव से हो रहा है या निंदात्मक रूप में। लेकिन क्या “घर” के स्थान पर “निजी अधिकार क्षेत्र” का उपयोग करने पर कुछ अनुमान होता है कि यहाँ कुछ समस्या है? सबसे पहले, “निजी अधिकार क्षेत्र” से क्या पता लगता है? (मसीह-विरोधी चाहते हैं कि अंतिम निर्णय वे लें।) इसके अलावा और क्या? (वे परमेश्वर के घर से ऐसे पेश आते हैं मानो वह उनका अपना प्रभाव क्षेत्र हो, जहाँ वे यारों और अपने घर के लोगों को आगे बढ़ाते हैं, और फिर कलीसिया पर नियंत्रण हासिल करते हैं।) यह भी मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति है। और कुछ? क्या इस वाक्यांश का सतही अर्थ यह दर्शाता है कि यह मसीह-विरोधियों का प्रभाव क्षेत्र है, कि यही वह जगह है जहाँ सत्ता और प्रभुत्व मसीह-विरोधियों के हाथ में है, यही वह जगह है जहाँ सब कुछ मसीह-विरोधियों के नियंत्रण, एकाधिकार और नियमन में है, वह स्थान जहाँ मसीह-विरोधियों की तूती बोलती है? (हाँ।) हम इस वाक्यांश से ऐसे अर्थ निकाल सकते हैं; क्योंकि जब पहले मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर चर्चा की जा रही थी, तो हमने मसीह-विरोधियों के सार का गहन विश्लेषण करने और उसे उजागर करने के बारे में काफी संगति की थी। इन अभिव्यक्तियों में से मुख्य हैं मसीह-विरोधियों के लोगों को नियंत्रित करने और सत्ता का उपयोग करने के प्रयास—यद्यपि निश्चित रूप से कई अन्य अभिव्यक्तियाँ भी हैं।

अब जब हमने मसीह-विरोधियों द्वारा “निजी अधिकार क्षेत्र” का उपयोग करने के सामान्य अर्थ पर संगति कर ली है, तो आओ अब हम इस पर संगति करें कि “परमेश्वर के घर” का ठीक-ठीक अर्थ क्या है। क्या तुम लोगों के पास कोई अवधारणा है कि परमेश्वर का घर क्या है—क्या तुम लोग इसकी कोई सटीक परिभाषा दे सकते हो? भाई-बहनों का एक एकत्रित समूह—क्या यह “परमेश्वर का घर” है? क्या मसीह और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले लोगों के एकत्र होने या उनकी सभा को परमेश्वर का घर माना जाता है? क्या कलीसिया के अगुआओं, उपयाजकों और विभिन्न दलों के अगुआओं के एक साथ होने को परमेश्वर का घर माना जाता है? (नहीं।) तो, आखिर परमेश्वर का घर है क्या? (परमेश्वर का घर केवल वह कलीसिया है जहाँ मसीह का शासन हो।) (केवल ऐसे लोगों के समूह को परमेश्वर का घर माना जा सकता है जो परमेश्वर के वचनों को अपने अभ्यास के सिद्धांतों के रूप में अपनाते हों। क्या ये दोनों परिभाषाएँ बिलकुल सही हैं? तुम लोग इसे समझा नहीं सकते। इतने सारे धर्मोपदेश सुनकर भी तुम लोग इसकी आसान परिभाषा देने में असमर्थ हो। जाहिर है कि तुम लोगों को इन आध्यात्मिक शब्दों और शब्दावली को गंभीरता से लेने और उन पर उचित विचार करने की आदत नहीं है। तुम लोग कितने लापरवाह हो! तो, इस पर फिर से विचार करो : परमेश्वर के घर का बिलकुल ठीक-ठीक अर्थ क्या है? यदि इसे सैद्धांतिक रूप से परिभाषित किया जाए, तो परमेश्वर का घर एक ऐसा स्थान है जहाँ सत्य का शासन होता है, ऐसे लोगों का समूह है जिनके अभ्यास के सिद्धांत परमेश्वर के वचन हैं। ऐसी स्थिति में, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानना समस्या वाली बात है; वे परमेश्वर का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों की सभा से अपने व्यक्तिगत प्रभाव क्षेत्र के तौर पर पेश आते हैं, उस स्थान के रूप में पेश आते हैं जहाँ वे सत्ता का प्रयोग करते हैं और उस वस्तु के रूप में पेश आते हैं जिस पर वे शक्ति का प्रयोग करते हैं। मसीह-विरोधियों के परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के तौर पर पेश आने के द्वारा यही शाब्दिक अर्थ समझा जा सकता है। तुम इसे किसी भी कोण से समझाओ या देखो, मसीह-विरोधियों का परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के रूप में पेश आना लोगों को गुमराह करने और उन्हें नियंत्रित करके पूर्ण सत्ता स्थापित करने का उनका प्रकृति सार दर्शाता है। परमेश्वर का घर वह स्थान है जहाँ परमेश्वर काम करता है और बोलता है, जहाँ परमेश्वर लोगों को बचाता है, जहाँ परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर के काम का अनुभव करते हैं, शुद्ध किए जाते हैं और उद्धार पाते हैं, जहाँ परमेश्वर की इच्छा और इरादे निर्बाध तरीके से लागू किए जा सकते हैं, और जहाँ परमेश्वर की प्रबंधन योजना क्रियान्वित एवं पूरी की जा सकती है। संक्षेप में, परमेश्वर का घर वह स्थान है जहाँ सत्ता परमेश्वर के हाथ है, जहाँ परमेश्वर के वचनों और सत्य का शासन होता है; वह ऐसा स्थान नहीं है जहाँ कोई व्यक्ति शक्ति का प्रयोग करता है, अपने अभियान चलाता है, या अपनी इच्छाओं अथवा भव्य योजनाओं को आकार देता है। परंतु, मसीह-विरोधी जो भी करते हैं वह बिल्कुल परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध होता है : वे इस बात पर ध्यान नहीं देते और गौर नहीं करते कि वह क्या है जो परमेश्वर करना चाहता है, उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि क्या परमेश्वर के वचन लोगों के बीच फलीभूत होते हैं, न ही वे इस बात की परवाह करते हैं कि क्या लोग परमेश्वर के वचन और सत्य सिद्धांतों को समझ पा रहे हैं, अभ्यास में ला और उनका अनुभव कर पा रहे हैं; वे केवल इस बात पर विचार करते हैं कि उनके पास रुतबा, ताकत और आवाज है या नहीं, और क्या उनके इरादों, विचारों और इच्छाओं को लोगों के बीच साकार किया जा सकता है। अर्थात्, उनके प्रभाव क्षेत्र के भीतर कितने लोग उनकी बातें सुनते हैं और उनका पालन करते हैं, और उनकी छवि, प्रतिष्ठा और अधिकार किस प्रकार के हैं—यही वे प्रमुख चीजें हैं जिनके प्रबंधन का वे प्रयास करते हैं, और यही वे बातें हैं जिनकी उन्हें अपने दिल में सबसे अधिक परवाह होती है। परमेश्वर मनुष्यों के बीच बोलता और कार्य करता है, वह लोगों को बचाता है, लोगों की अगुआई करता है, लोगों का भरण-पोषण करता है, लोगों को परमेश्वर के सामने आने, उसके इरादों को समझने, कदम-दर-कदम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और धीरे-धीरे परमेश्वर के प्रति समर्पण प्राप्त करने में मार्गदर्शन देता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, वह ठीक इसके उलट होता है। परमेश्वर लोगों को परमेश्वर के सामने लाने में उनकी अगुआई करता है, फिर भी मसीह-विरोधी इन लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं और उन्हें अपने सामने लाने की कोशिश करते हैं। सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने, परमेश्वर के इरादों को समझने और कदम-दर-कदम परमेश्वर के प्रभुत्व के प्रति समर्पण करने में परमेश्वर लोगों का मार्गदर्शन करता है; मसीह-विरोधी कदम-दर-कदम लोगों को नियंत्रित करने, उनकी गतिविधियों को रोकने और उन्हें मजबूती से अपनी शक्ति के अधीन करने का प्रयास करते हैं। सार रूप में, मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह परमेश्वर के अनुयायियों को अपने अनुयायियों में बदलने के लिए होता है; जब वे सत्य का अनुसरण न करने वाले भ्रमित लोगों को जीतकर अपनी सत्ता के अधीन कर लेते हैं, तो वे एक कदम आगे बढ़ते हैं और उन लोगों को जीतकर अपनी सत्ता के अधीन करने का हर संभव प्रयास करते हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करने और निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हैं, कलीसिया में सभी लोगों को अपनी बातें सुनने को और उन्हें मसीह-विरोधियों की इच्छा के अनुसार जीने, काम करने, बर्ताव करने और सब कुछ करने को मजबूर करते हैं ताकि वे अंततः मसीह-विरोधियों की हर बात मानें, उनकी इच्छाओं का पालन करें और उनकी मांगें पूरी करें। कहने का तात्पर्य यह है कि, परमेश्वर जो भी करना चाहता है, परमेश्वर जो भी प्रभाव प्राप्त करना चाहता है, मसीह-विरोधी भी वही परिणाम पाना चाहते हैं। वे जो परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं वह यह नहीं है कि लोग परमेश्वर के सामने आएँ और परमेश्वर की आराधना करें, बल्कि यह है कि वे उनके सामने आएँ और उनकी आराधना करें। कुल मिलाकर, जब मसीह-विरोधियों के पास ताकत होती है, तो वे अपने प्रभाव क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति और वस्तु को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, वे जिस भी क्षेत्र को नियंत्रित कर सकते हैं उसे नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं, वे कलीसिया, परमेश्वर के घर, और उन लोगों को वह क्षेत्र बनाने का प्रयास करते हैं और जहाँ वे अपनी सत्ता का उपयोग करते हैं और शासन कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि परमेश्वर लोगों को अपने सामने लाता है, जबकि मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करते हैं और लोगों को अपने सामने लाना चाहते हैं। यह सब करने के पीछे मसीह-विरोधियों का लक्ष्य परमेश्वर के अनुयायियों को अपना अनुयायी बनाना, परमेश्वर के घर और कलीसिया को अपने घर में बदल देना है। चूँकि मसीह-विरोधियों में ये प्रेरणाएँ और सार हैं, ऐसे में उनकी कौन-सी विशिष्ट अभिव्यक्तियोँ और व्यवहार से प्रदर्शित होता है कि ये मसीह-विरोधी, मसीह-विरोधी ही हैं, कि वे परमेश्वर के शत्रु हैं, कि वे ऐसे राक्षस और शैतान हैं जो परमेश्वर और सत्य के प्रति शत्रुता रखते हैं? इसके बाद, हम इसका ठोस विश्लेषण करेंगे कि मसीह-विरोधियों में किस प्रकार की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ और रवैये हैं जिनसे साबित होता है कि परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र के रूप में पेश आते हैं।

I. मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमाते हैं

मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर से अपने निजी अधिकार क्षेत्र की तरह पेश आने की पहली अभिव्यक्ति पर हमने अक्सर संगति की है, और यह एक आवश्यक अभिव्यक्ति है जो खास मसीह-विरोधियों में होती है : मसीह-विरोधी किसी भी चीज से ज्यादा प्रेम रुतबे से करते हैं। उन्हें रुतबा सबसे ज्यादा क्यों पसंद है? रुतबा किस बात का प्रतिनिधित्व करता है? (सत्ता का।) सही कहा—यही कुंजी है। रुतबा होने पर ही उनके पास सत्ता हो सकती है, और केवल सत्ता होने पर ही वे आसानी से काम करवा सकते हैं; केवल सत्ता से ही उनकी विभिन्न इच्छाएँ, महत्वाकांक्षाएँ और लक्ष्यों के साकार होने और वास्तविकता में बदलने की उम्मीद की जा सकती है। तो, मसीह-विरोधी बहुत चालाक होते हैं, वे ऐसे मामलों में बहुत स्पष्ट दृष्टि रखते हैं; यदि उन्हें परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र बनाना है, तो उन्हें पहले सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करना होगा। यह एक प्रमुख अभिव्यक्ति है। जिन मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हुआ है, जिनके बारे में तुमने सुना है, या अपनी आँखों से देखा है, उनमें से कौन ऐसा था जिसने सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने की कोशिश नहीं की? वे चाहे जो भी साधन अपनाएँ, चाहे मक्कारी और चालाकी हो, चाहे बाहरी तौर पर संतुलित और मिलनसार होना हो, या ज्यादा शातिर और बहुत नीच साधनों का उपयोग करना, या हिंसा का सहारा लेना हो, मसीह-विरोधियों का केवल एक ही उद्देश्य होता है : रुतबा हासिल करना और फिर सत्ता का इस्तेमाल करना। इसलिए, मैं जिस पहली बात पर संगति करना चाहता हूँ वह यह है कि बाकी सारी बातों से पहले, मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमाने की कोशिश करते हैं। मसीह-विरोधियों में सत्ता पाने की इच्छा सामान्य लोगों से कहीं अधिक होती है; उनमें यह प्रवृत्ति भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा होती है। भ्रष्ट स्वभाव वाले सामान्य लोग केवल इतना चाहते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में अच्छा सोचें, उनके बारे में अच्छी राय रखें; बात करते समय उन्हें ज्यादा प्रमुखता हासिल करना अच्छा लगता है, लेकिन सत्ता न होने से या लोगों की आराधना का पात्र न होने से उन्हें बहुत तकलीफ नहीं होती; यह सब उनके पास हो या न हो, उनका काम चल जाता है; वे सत्ता थोड़ी पसंद करते हैं और उसकी लालसा तो रखते हैं, लेकिन मसीह-विरोधियों की हद तक नहीं। और वह कौन-सी हद है? सत्ता न होने पर वे लगातार बेचैन रहते हैं, उन्हें शांति नहीं मिलती, वे ढंग से न खा पाते हैं, न सो पाते हैं, हर दिन उनके लिए केवल बोरियत और बेचैनी लेकर आता है, और अपने दिलों में वे महसूस करते रहते हैं जैसे यह कुछ ऐसा है जिसे पाने में वे असफल हो रहे हैं, और यह भी कि मानो कुछ ऐसा हुआ है जिसमें वे चूक गए हैं। सामान्य भ्रष्ट मनुष्य सत्ता पाकर खुश होते हैं, लेकिन उसके न होने से बहुत ज्यादा परेशान नहीं होते; वे थोड़ी निराशा महसूस कर सकते हैं, किंतु सामान्य व्यक्ति होने में भी वे संतुष्ट रहते हैं। यदि मसीह-विरोधियों को सामान्य रहना पड़े, तो वे जिंदा ही नहीं रह सकते, जीवन में आगे ही नहीं बढ़ सकते, ऐसा लगता है जैसे उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य खो गए हैं, वे नहीं जानते कि जीवन के मार्ग पर आगे कैसे बढ़ें। रुतबा होने पर ही उन्हें महसूस होता है कि उनका जीवन प्रकाश से भरा है, केवल रुतबे और सत्ता से ही उनका जीवन गौरवशाली, शांतिपूर्ण और खुशहाल बनता है। क्या ये बात सामान्य लोगों से अलग है? रुतबा पा लेने पर मसीह-विरोधी असामान्य रूप से उत्साहित हो जाते हैं। दूसरे लोग यह सब देखकर सोचते हैं कि वे पहले से इतना बदले हुए क्यों हैं? वे इतने कांतिमान और दीप्तिमान क्यों हैं? वे इतने खुश क्यों हैं? पूछने पर पता चलता है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके पास रुतबा है; सत्ता है; विमर्शों पर उनका प्रभाव है; वे आसपास के लोगों पर रौब जमा सकते हैं; वे सत्ता का इस्तेमाल कर सकते हैं; उनकी प्रतिष्ठा है; और उनके पास उनकी बात मानने वाले लोग हैं। रुतबा और सत्ता होने पर मसीह-विरोधियों के मानसिक नजरिये में कुछ बदलाव आ जाता है।

मसीह-विरोधियों की सत्ता लिप्सा संकेत करती है कि उनका सार सामान्य नहीं है; यह कोई सामान्य भ्रष्ट स्वभाव नहीं है। और इसलिए, इस बात की परवाह किए बिना कि वे किसके बीच हैं, मसीह-विरोधी अलग दिखने, दिखावा करने, अपने बारे में प्रचार करने, हर किसी को अपनी खूबियां और सद्गुण दिखाने और उनकी ओर सबका ध्यान खींचने, और कलीसिया में अपने लिए कुछ पद पाने का तरीका खोजने की कोशिश करते हैं। जब कलीसिया के चुनाव होते हैं, तो मसीह-विरोधियों को लगता है कि उनका मौका आ गया है : खुद का प्रचार करने का मौका, अपनी इच्छाओं को वास्तविकता में बदलने का मौका, और अपनी इच्छाएँ पूरी करने का मौका आ गया है। वे अगुआ चुने जाने के लिए जो बन पड़े वो करते हैं, सत्ता हासिल करने की हर संभव कोशिश करते हैं, वे मानते हैं कि सत्ता हासिल करने से उनके लिए काम करवाना आसान हो जाएगा। आसान क्यों होगा? मसीह-विरोधियों के पास जब कोई ताकत नहीं होती, तो बहुत संभव है कि तुम उनके बाहरी रूप से उनकी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और सार को उद्घाटित न कर सको, क्योंकि वे उन्हें छिपा कर रखते हैं, और दिखावा करते हैं, ताकि तुम उन चीजों की असलियत न देख सको। लेकिन एक बार रुतबा और सत्ता हासिल होते ही वे सबसे पहले क्या करते हैं? वे अपने रुतबे को मजबूत करने, अपने हाथों में सत्ता का विस्तार करने और उसे सुदृढ़ करने का प्रयास करते हैं। और वे अपनी सत्ता को ठोस बनाने और अपनी स्थिति मजबूत करने के कौन-से तरीके अपनाते हैं? मसीह-विरोधियों के पास कई साधन हैं; वे ऐसा अवसर नहीं चूकते, जब वे सत्ता पर काबिज हो चुके होते हैं तो निष्क्रिय नहीं रहते। उनके लिए, ऐसे मौकों का आना बहुत प्रसन्नता की बात होती है—और इसी समय वे अपनी धूर्तता को काम में लाते हैं, और अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करते हैं। कोई मसीह-विरोधी निर्वाचित होने के बाद, सबसे पहले अपने परिवार और रिश्तेदारों की पड़ताल करके यह जाँचता है कि कौन उससे करीब से जुड़ा है, कौन उसका घनिष्ठ है, कौन उसके बहुत करीब है, और कौन उससे मेलजोल रखता है और उस जैसी ही भाषा बोलता है। वह यह भी जाँचता है कि कौन ईमानदार है, कौन उसका पक्ष नहीं लेगा, परमेश्वर के घर के नियमों और सिद्धांतों के विरुद्ध जाने वाला कोई काम करने पर कौन उसकी रिपोर्ट करेगा—ये वे लोग हैं जिन्हें वह फुसलाएगा। रिश्तेदारों की छंटाई करने के बाद वह सोचता है : “मेरे अधिकांश रिश्तेदारों के मेरे साथ अच्छे संबंध हैं, हमारी अच्छी बनती है, हम एक ही भाषा बोलते हैं; यदि वे मेरे मातहत बन जाएँ और मैं उनका उपयोग कर सकूँ, तो क्या मेरा प्रभाव नहीं बढ़ेगा? और क्या इससे कलीसिया के भीतर मेरा रुतबा मजबूत नहीं होगा? एक कहावत है, ‘रिश्तेदारों को नजरंदाज किए बगैर सक्षम लोगों को बढ़ावा देना।’ अविश्वासी अधिकारियों को मदद के लिए अपने करीबी दोस्तों और सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ता है—अब जब मैं अधिकारी हूँ, तो मुझे भी ऐसा ही करना चाहिए, यह अच्छा विचार है। सबसे पहले, मुझे अपने रिश्तेदारों को बढ़ावा देना चाहिए। मेरी पत्नी और बच्चों को तो लाभ मिलेगा ही; मैं सबसे पहले उनके लिए कुछ पदों की व्यवस्था करूँगा। मेरी पत्नी क्या करेगी? कलीसिया में चढ़ावे की देखभाल करना एक आवश्यक और महत्वपूर्ण भूमिका है—वित्तीय शक्ति हमारे हाथों में होनी चाहिए, तभी मैं स्वतंत्रता से और आसानी से पैसे खर्च कर सकूंगा। यह पैसा किसी बाहरी व्यक्ति के हाथ में नहीं छोड़ा जा सकता; यदि ऐसा होता है, तो अंततः यह पैसा उनका होगा, और व्ययों की निगरानी होगी और नियंत्रण में रखा जाएगा, जो सुविधाजनक नहीं होगा। क्या वह व्यक्ति जो वर्तमान में खातों का प्रबंधन करता है वह मेरी ओर है? वह बाहर से तो ठीक दिखता है, लेकिन कौन जाने वह अंदर क्या सोच रहा है। नहीं, मुझे उसे बदलने का कोई रास्ता निकालना होगा और अपनी पत्नी को खातों का प्रबंधन देना होगा।” मसीह-विरोधी इस मुद्दे पर अपनी पत्नी से बात करता है, जो कहती है “यह तो बहुत अच्छी बात है! अब चूँकि तुम कलीसिया के एक अगुआ हो, तो कलीसिया को मिलने वाले चढ़ावों के बारे में तुम्हारी राय ही अंतिम होगी, है ना? तुम्हीं तय करो कि उनका प्रभारी कौन होगा।” मसीह-विरोधी कहता है : “लेकिन इस समय खातों का प्रबंधन कर रहे व्यक्ति से छुटकारा पाने का कोई अच्छा तरीका नहीं है।” इस पर उसकी पत्नी थोड़ा सोचती है और कहती है : “क्या यह आसानी से नहीं होगा? तुम कहो कि वह बहुत लंबे समय से काम कर रहा है। यह बुरी बात है; हो सकता है वहाँ असंचालित खाते हों, अशोध्य ऋण हों या भ्रष्टाचार की घटनाएँ हों। जब किसी के पास कोई काम लंबे समय से हो, तो आसानी से गलतियाँ हो जाती हैं; जैसे-जैसे समय बीतता है, उसे लगता है कि उसके पास एक पूंजी है, और वह दूसरों की बात सुनना बंद कर देता है। इसके अलावा, खातों का प्रबंधन करने वाला व्यक्ति काफी बुजुर्ग है। बुजुर्ग लोग आसानी से उलझ जाते हैं और अक्सर चीजें भूल जाते हैं। यदि कभी कोई चूक हुई तो नुकसान होगा। यह बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है—उन्हें बदलना होगा।” और यह कहेगा कौन कि उन्हें बदला जाना है? कलीसिया के अगुआ के रूप में उसके मुँह से तो इस व्यक्ति को बदलने की कोई बात नहीं निकल सकती; मसीह-विरोधी की पत्नी को यह जिम्मेदारी देने का सुझाव तो भाई-बहनों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। जब उसकी पत्नी अपना प्रस्ताव रख लेगी, तो कलीसिया के चढ़ावों की जिम्मेदारी उसे सौंप दी जाएगी। लेकिन कलीसिया के सिद्धांत निर्देशित करते हैं चढ़ावों को सुरक्षित रखने का काम किसी व्यक्ति द्वारा अकेले नहीं बल्कि दो या तीन लोगों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए, इससे किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी खामी का फायदा उठाने और परमेश्वर के घर के धन का गबन करने से बचने में मदद मिलती है। इसलिए मसीह-विरोधी ने अपने चचेरे भाई को इसे सुरक्षित रखने की प्रक्रिया में शामिल होने की सिफारिश यह कहते हुए की कि उसकी पत्नी लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास करती है, उसने कई बार दान दिए हैं, उसकी अच्छी प्रतिष्ठा है और उस पर भरोसा किया जा सकता है। सब कहते हैं, “ये दोनों तुम्हारे रिश्तेदार हैं। तुम्हारे परिवार से बाहर का भी कोई व्यक्ति इसमें होना चाहिए।” इसलिए मसीह-विरोधी वित्त प्रबंधन और नियंत्रण में मदद के लिए एक भ्रमित बुजुर्ग बहन की सिफारिश करता है। मसीह-विरोधी सबसे पहले वित्त को अपने परिवार के नियंत्रण में लाता है, जिसके बाद उसका परिवार विशेष रूप से यह नियंत्रित करता है कि चढ़ावे का पैसा कैसे खर्च होगा और विशिष्ट लेन-देन आदि पर उसका पूरा नियंत्रण होता है।

वित्तीय शक्ति पर एकाधिकार जमाने और संपत्ति पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद क्या मसीह-विरोधी ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है? अभी नहीं। सबसे महत्वपूर्ण बात है कलीसिया के विभिन्न कार्यों के पर्यवेक्षकों को नियंत्रित करना, उन्हें अपने पक्ष में लाना और अंतिम निर्णय लेना। मसीह-विरोधी को लगता है कि यही बात सबसे अधिक मायने रखती है; इसका संबंध इस बात से है कि क्या नीचे की हर टीम में लोग उसके कहे के मुताबिक ही काम करते हैं और क्या उसकी ताकत सबसे निचले स्तर तक पहुँचती है। तो, वह ऐसा कैसे करता है? वह व्यापक सुधारों की शुरुआत करता है। सबसे पहले वह संगति करता है और कहता है कि प्रत्येक मूल टीम के काम में फलां-फलां गलती है। उदाहरण के लिए वीडियो संपादन टीम के सामने कुछ मुद्दे आए तो मसीह-विरोधी कहता है, “ये समस्याएँ पर्यवेक्षक के कारण हुई हैं। उसके काम में ये बड़ी अनदेखियां और उनके कारण पैदा हुई बड़ी समस्याएँ इस बात का सबूत हैं कि पर्यवेक्षक इस काम के लायक नहीं है, और उसे बदला जाना चाहिए; यदि वह नहीं बदला जाता है तो यह कार्य ठीक से नहीं हो सकता। तो, उसकी जगह कौन लेगा? क्या तुम लोगों के मन में कोई है—क्या कोई उम्मीदवार है? टीम में कौन अपने काम में सर्वश्रेष्ठ है?” हर कोई इस पर विचार करता है, और कोई कहता है, “एक भाई है जो बहुत अच्छा है, लेकिन मुझे नहीं पता कि वह उपयुक्त है या नहीं।” मसीह-विरोधी उत्तर देता है : “यदि तुम नहीं जानते, तो उसे नहीं चुना जा सकता। तुम लोगों के लिए मेरा एक सुझाव है। मेरा 25 वर्ष का बेटा कंप्यूटर विज्ञान में स्नातक है और उसने वीडियो निर्माण तथा स्पेशल एफेक्ट्स में विशेषज्ञता हासिल की है। परमेश्वर में उसका विश्वास नया है और सत्य का ज्यादा अनुसरण नहीं करता, लेकिन इस काम में वह तुम सभी से बेहतर होगा। क्या तुम लोगों में से कोई पेशेवर है?” और सभी उत्तर देते हैं, “नहीं, हमें पेशेवर नहीं कहा जा सकता, लेकिन हम लंबे समय से अपना कर्तव्य निभा रहे हैं और परमेश्वर के घर के इस काम के सिद्धांतों को समझते हैं। क्या उसे इनकी समझ है?” “अगर वह नहीं समझता तो कोई बात नहीं; वह सीख सकता है।” यह बात हर किसी को सही लगती है और वे उसकी बात से सहमत हो जाते हैं, सभी उसकी पसंद के व्यक्ति को प्रोत्साहित करने देने पर सहमत हो जाते हैं, और इस तरह यह मसीह-विरोधी एक और महत्वपूर्ण भूमिका पर नियंत्रण स्थापित कर लेता है। इसके बाद मसीह-विरोधी को लगता है कि सुसमाचार का कार्य परमेश्वर के घर के लिए महत्वपूर्ण है—और इसका पर्यवेक्षक उसके पक्ष में नहीं है। उसे बदला जाना चाहिए। उसे कैसे बदलें? उसी तरीके से : दोष निकालकर। मसीह-विरोधी कहता है, “पिछली बार के संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं का क्या हुआ?” किसी ने उत्तर दिया, “एक महीने तक विश्वास करने के बाद, उन्होंने कुछ नकारात्मक प्रचार सुना और उस पर विश्वास करने लगे, इसलिए वे अब परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते।” मसीह-विरोधी पूछता है, “वे ऐसे विश्वास करना कैसे बंद कर सकते हैं? क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोगों ने दर्शनों के सत्य पर स्पष्ट संगति नहीं की? या, ऐसा इसलिए है कि तुम लोग आलसी थे, या प्रतिकूल वातावरण से भयभीत थे और खुद को खतरे में डालने से डरते थे, इसलिए तुमने साफ-साफ संगति नहीं कीं? या ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों ने तुरंत उनकी परवाह नहीं की? या तुम लोग उनकी मुश्किलें हल करने में मदद करने में विफल रहे?” वह एक के बाद एक ढेर सारे प्रश्न पूछता है। और, उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे क्या उत्तर देते हैं, या वे क्या स्पष्टीकरण देते हैं; मसीह-विरोधी इस बात पर जोर देता है कि सुसमाचार टीम के पर्यवेक्षक के साथ बहुत सारे मसले हैं, उसके दोष बहुत गंभीर हैं, वह गैर-जिम्मेदार है, और वह दिए गए काम के अयोग्य है, इस प्रकार उसे जबरन सेवामुक्त कर दिया जाता है। और उसे सेवामुक्त किए जाने के बाद मसीह-विरोधी कहता है, “अमुक बहन ने पहले भी सुसमाचार फैलाया है और उसके पास अनुभव भी है—मुझे लगता है कि वह अच्छी रहेगी।” यह सुनकर लोग कहते हैं, “वह तो तुम्हारी बड़ी बहन है! वह भले ही बातें कर लेती हो, लेकिन उसकी मानवता अच्छी नहीं है। उसका नाम बहुत खराब है, उसका उपयोग नहीं किया जा सकता,” और भाई-बहन इससे असहमत हो जाते हैं। मसीह-विरोधी कहता है, “यदि तुम लोग सहमत नहीं हो, तो सुसमाचार टीम को भंग कर दिया जाएगा। तुम्हें अब सुसमाचार नहीं फैलाना है, तुम इस कर्तव्य को ठीक से करने में सक्षम नहीं हो। या तो ऐसा होगा या एक उपयुक्त टीम लीडर चुनो, और मेरी बहन सहायक टीम लीडर होगी!” भाई-बहन किसी को चुनते हैं, और मसीह-विरोधी अनिच्छा से इस शर्त पर सहमत होता है कि उसकी बड़ी बहन को सहायक टीम लीडर बनाया जाएगा। इस प्रकार बनी सहमति से सुसमाचार टीम किसी तरह कायम रह पाती है।

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई काम कहाँ है या क्या है, मसीह-विरोधियों को अपने साथियों को, ऐसे लोगों को उसमें शामिल करना होता है जो उनके पक्ष में हों। मसीह-विरोधी जब अगुआ बन जाते हैं और रुतबा हासिल कर लेते हैं, तो उनका पहला काम यह देखना नहीं होता कि विभिन्न टीमों के सदस्य अपने जीवन प्रवेश में कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, या यह पता लगाना नहीं होता कि उनका काम कैसा चल रहा है, या अपने काम में उन्हें जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है उन्हें कैसे हल किया जा सकता है, और क्या कोई लंबित मुद्दे या चुनौतियाँ हैं; इसके बजाय, वे कार्मिकों की स्थिति देखते हैं कि विभिन्न टीमों का मुखिया कौन है, विभिन्न टीमों में उनके खिलाफ कौन है और भविष्य में कौन-से लोग उनके रुतबे के लिए खतरा होंगे। वे ऐसे मामलों के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं, लेकिन वे कभी भी कलीसिया के काम की स्थिति के बारे में पूछताछ नहीं करते। वे कभी भी भाई-बहनों की स्थिति, उनके जीवन प्रवेश या उनका कलीसियाई जीवन कैसा चल रहा है आदि के बारे में नहीं पूछते, और वे इसकी परवाह भी कम से कम करना चाहते हैं। लेकिन वे सभी टीमों के प्रभारियों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं कि क्या वे उनके साथी हैं, क्या उन लोगों की उनके साथ अच्छी बनती है, और क्या वे उनकी सत्ता या रुतबे के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। वे इन सभी विवरणों को जानते हैं और वे उन्हें बहुत स्पष्ट रूप से समझते हैं। समूह में जो लोग अपेक्षाकृत खरे हैं और सच बोलते हैं, उनके संबंध में मसीह-विरोधियों का मानना है कि ऐसे व्यक्तियों से बचा जाना चाहिए और उसे कोई रुतबा नहीं दिया जाना चाहिए; तिस पर भी वे उन लोगों का पक्ष लेते हैं जो चापलूसी में माहिर हैं, जो लप-चप करना जानते हैं, जो दूसरों को खुश करने के लिए मीठा बोलते हैं, और जो लोग इशारों पर चल सकते हैं। मसीह-विरोधी उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है और उन्हें बढ़ावा देने और उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर रखने की योजना बनाता है। इस तरह के लोगों को मसीह-विरोधी हर कहीं अपने साथ ले जाने के बारे में भी सोचते हैं, और इस तरह सुनिश्चित करते हैं कि वे अधिक धर्मोपदेश सुनें और उन्हें अपने यार-दोस्तों में तब्दील कर देते हैं। जहाँ तक कलीसिया में उन लोगों की बात है जो सत्य का अनुसरण करते हैं, न्याय की भावना रखते हैं, और सत्य बोलने का साहस करते हैं, जो लगातार परमेश्वर को ऊँचा उठाते और उसकी गवाही देते हैं, जो दुष्ट ताकतों, रुतबे या अधिकार के सामने नहीं झुकते—मसीह-विरोधी उनसे बचते हैं, उनसे घृणा करते हैं, उनके साथ भेदभाव करते हैं और अपने मन से उन्हें बाहर कर देते हैं। परंतु, जो लोग उनकी चापलूसी करते हैं, खास तौर पर उनके परिवार के सदस्य, उनके दूर के रिश्तेदार, और उनके इर्द-गिर्द घूमने वाले लोगों को वे अपना मानते हैं और उन्हें अपने परिवार के रूप में देखते हैं। मसीह-विरोधी की सत्ता के अधीन आने वाले जो लोग उनके इर्द-गिर्द घूम सकते हैं, उनके इशारों पर चल सकते हैं और काम करते समय निर्देश लेते हैं, और उनके मन-मुताबिक काम करते हैं—उन लोगों में अंतश्चेतना या तर्क, मानवता और परमेश्वर से थोड़ा-सा भी भयभीत होने वाला हृदय नहीं होता। वे अविश्वासियों का समूह भर हैं। वे चाहे जो बुरे काम करें, मसीह-विरोधी उनका पोषण करता है, उनकी रक्षा करता है, और उन्हें अपने परिवार के रूप में मानते हुए अपनी शक्ति के अधीन लाता है—इस तरह से मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र का निर्माण होता है।

और मसीह-विरोधी का निजी अधिकार क्षेत्र किन लोगों से बनता है? पहली बात, मसीह-विरोधी मुखिया होता है, नेता होता है, सारे अधिकार रखने वाला राजा होता है जिसका हर शब्द इस अधिकार क्षेत्र में सवालों से परे होता है। मसीह-विरोधियों के रक्तसंबंधी, उनके निजी परिवार, उनके यार, दोस्त, कट्टर प्रशंसक, दूसरे लोग जो खुशी-खुशी उनके पीछे चलते और उनसे आदेश लेते हैं, और फिर वे अन्य लोग जो प्रसन्नता से उनके साथ जुड़कर उनके बुरे कामों में शामिल होते हैं, और वे लोग भी जो परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं और प्रशासनिक आदेशों के विनियमन की परवाह किए बगैर, परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों की परवाह किए बगैर खुशी-खुशी उनके लिए जी-जान से मेहनत करते हैं, उनके लिए खुद को जोखिम में डालते हैं और उनके लिए कड़ी मेहनत करते हैं—ये सभी मसीह-विरोधी के इस अधिकार क्षेत्र के सदस्य होते हैं। कुल मिलाकर, वे मसीह-विरोधी के कट्टर अनुयायी होते हैं। और, मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र के ये सभी सदस्य क्या करते हैं? क्या वे अपना कर्तव्य और प्रत्येक कार्य परमेश्वर के घर के विनियमों और सिद्धांतों के अनुसार करते हैं? क्या वे वैसा ही काम करते हैं जैसी परमेश्वर अपेक्षा करता है और उसके वचनों और सत्य को सभी सिद्धांतों में सर्वोच्च मानते हैं? (नहीं।) जब ऐसे लोग कलीसिया में मौजूद हों, तो क्या सत्य और परमेश्वर के वचन बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ सकते हैं? न केवल वे ऐसा नहीं कर सकते, बल्कि मसीह-विरोधी गिरोह द्वारा पैदा किए गए विघ्नों, उनके गुमराह करने और तोड़-फोड़ के कारण परमेश्वर के वचनों, उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों, और लोगों से उसकी अपेक्षाओं को कलीसिया में पूरा नहीं किया जा सकता; उन्हें लागू नहीं किया जा सकता। जब मसीह-विरोधी का अधिकार क्षेत्र अस्तित्व में होता है, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य कलीसियाई जीवन नहीं जी सकते, न ही वे अपना कर्तव्य सामान्य रूप से कर सकते हैं, और वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम तो बिल्कुल नहीं कर सकते क्योंकि कलीसिया का प्रत्येक कार्य मसीह-विरोधी के नियंत्रण में होता है। जहाँ पर ऐसा प्रभाव कम है, वहाँ मसीह-विरोधियों के व्यवधान से अराजकता पैदा होती है, लोग व्याकुलता की स्थिति में होते हैं, काम में कोई प्रगति नहीं होती, और लोगों को नहीं पता होता कि वे अपना काम अच्छी तरह से कैसे करें या अपना कर्तव्य ठीक से कैसे करें; सब कुछ अराजकता की स्थिति में होता है। गंभीर मामलों में, सारा काम रुक जाता है और किसी को इसकी चिंता या परवाह नहीं होती। कुछ लोग ये तो बता सकते हैं कि कोई समस्या है, पर वे यह नहीं पहचान पाते कि यह समस्या मसीह-विरोधियों के कारण है; वे लोग भी मसीह-विरोधियों से बाधित और भ्रमित हो जाते हैं और नहीं जानते कि कौन सही है या कौन गलत; इतना ही नहीं, अगर कुछ लोग कुछ मुद्दों की पहचान कर पाते हैं और बोलना चाहते हैं या काम का प्रभार लेना चाहते हैं, तो वे काम का बीड़ा उठाने में असमर्थ होते हैं। जो कोई भी मसीह-विरोधियों को उजागर करने की कोशिश करता है, या न्याय की भावना रखता है और खुद काम का बीड़ा उठाने की कोशिश करता है, उसे दबा दिया जाता है। और ऐसे लोगों को दबाने में मसीह-विरोधी किस हद तक जाते हैं? यदि तुम आवाज उठाने का साहस नहीं करते, यदि तुम दया की भीख मांगते हो, यदि तुम उनके बारे में जानकारी नहीं देने का साहस नहीं करते, यदि तुम ऊपरी स्तरों पर उनके बारे में रिपोर्ट करने का साहस नहीं करते, या उनके काम से संबंधित मसलों को सामने नहीं लाते, या सत्य की संगति नहीं करते, या “परमेश्वर” शब्द नहीं बोलते, तो मसीह-विरोधी तुम्हें माफ कर देगा। यदि तुम सिद्धांतों का समर्थन करते हो और उन्हें उजागर करते हो, तो वे तुम्हें दंडित करने का हर संभव प्रयास करेंगे, वे तुम्हारी निंदा करने और दबाने का हर संभव प्रयास करेंगे, और यहाँ तक कि अपने अधिकार क्षेत्र के सदस्यों और एक किनारे रहने वालों तथा साहसहीन, कायरों और मसीह-विरोधी ताकतों से भयभीत रहने वालों को भी तुम्हें अस्वीकार करने और दबाने के लिए भड़काएँगे। अंततः, कुछ कम आस्था और आध्यात्मिक कद रखने वाले लोग मसीह-विरोधियों के सामने घुटने टेक देंगे। इससे मसीह-विरोधियों को खुशी होती है; उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है। एक बार सत्ता पा लेने पर उस सत्ता पर एकाधिकार जमाने और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए, वे न केवल कलीसिया में सभी महत्वपूर्ण कार्य अपने रिश्तेदारों और उन लोगों को देते हैं जिनके साथ उनके अच्छे संबंध हैं, बल्कि इसी के साथ वे ऐसे दूसरे लोगों को भी भर्ती करते हैं जो रिश्तेदार नहीं होते, ताकि वे उनकी सेवा करें और उनके लिए पूरी ताकत से काम करें क्योंकि उनका लक्ष्य भविष्य में अपना रुतबा बनाए रखना और हमेशा सत्ता अपने हाथों में रखना होता है। उनके दिमाग में, उनके अधिकार क्षेत्र में जितने अधिक लोग होंगे, उनका बल उतना ही ज्यादा होगा, और इस प्रकार उनकी शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी। और उनकी शक्ति जितनी अधिक होगी, उतना ही भयभीत वे लोग होंगे जो उनका विरोध कर सकते हैं, जो उन्हें मना कर सकते हैं, और जो उन्हें बेनकाब करने का साहस कर सकते हैं। ऐसे लोगों की संख्या और भी कम हो जाती है। लोग उनसे जितना अधिक डरेंगे, उनके पास परमेश्वर और परमेश्वर के घर से लड़ने के लिए उतनी ही बड़ी पूँजी होगी; वे अब परमेश्वर से नहीं डरते, और परमेश्वर के घर द्वारा निपटारा किए जाने से भी नहीं डरते। सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की आकांक्षा, सत्ता द्वारा वे जो करते हैं और उनके विभिन्न प्रकार के व्यवहारों के आधार पर कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी सार रूप में परमेश्वर के दुश्मन हैं; वे शैतान हैं और दानव हैं।

और अपना स्वयं का अधिकार क्षेत्र स्थापित करने के बाद मसीह-विरोधी क्या करता है? क्या वे इस बात को लेकर अत्यधिक उद्विग्न होते हैं कि कलीसिया का सुसमाचार कार्य कैसा चल रहा है? क्या वे इसके बारे में चिंतित होते हैं, या क्या वे इसके बारे में पूछताछ करते हैं? वे केवल निरीक्षण दौरा करते हैं, यंत्रवत ढंग से काम करते हैं, कुछ शब्द बोलकर अनमने ढंग से अपना काम चलाते हैं और इससे अधिक कुछ नहीं करते। उनके निरीक्षण दौरे का उद्देश्य क्या है? भाई-बहनों का हाल जानने के लिए इन व्यापक यात्राओं पर निकलने का अंतिम उद्देश्य क्या है? क्या ऐसा इसलिए है कि उन्हें इस बात की परवाह है कि भाई-बहनों का जीवन प्रवेश कैसा चल रहा है? नहीं। वे यह देखना चाहते हैं कि क्या उनके प्रभाव के दायरे में कोई उनका विरोध करने का इरादा रखता है, क्या कोई है जो उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टि से देखता है, या उन्हें “नहीं” कहने का साहस करता है, या उनकी बात न मानने और कहे के मुताबिक न करने का साहस करता है; उन्हें अपनी आँखों से देखना होता है, उन्हें स्थितियों से व्यक्तिगत रूप से परिचित होना होता है। यह एक पहलू है। और तो और, जब मसीह-विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेते हैं, तो वे खुद को उसका न्यायसंगत राजा बना लेते हैं—और यदि तुम कहो कि वे अत्याचारी हैं, शहर के बदमाश हैं, डाकुओं के सरदार हैं, तो भी अगर उनके पास रुतबा है और सत्ता है तो उन्हें इन बातों की कोई परवाह नहीं होती। उनके प्रभाव क्षेत्र में, उनके अधिकार क्षेत्र के अंदर, सारी शक्ति उनके हाथों में होती है, वे अकेले ही निर्णय लेते हैं। साथ ही, वे अपने समूह के लोगों की आराधना, प्रशंसा और सम्मान के साथ-साथ उनकी चापलूसी, मिथ्या प्रशंसा और श्रेष्ठता की भावनाओं और उनके द्वारा अपने प्रति किए गए विशेष व्यवहारों का भी आनंद लेते हैं। क्या तुम सोचते हो कि जब मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार जमा लेते हैं तो यह केवल उच्च पद से बोलने के लिए होता है? क्या यह सब केवल ऐसी इच्छा संतुष्ट करने के लिए होता है? नहीं, वे कुछ और अधिक ठोस चाहते हैं : वे अपने अधिकार क्षेत्र में सत्ता और रुतबे के कारण मिलने वाले सभी विशिष्ट व्यवहारों का आनंद लेते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेते हैं, उनके कट्टर अनुयायी बन जाते हैं, तो उनका समय प्राचीन सम्राटों से भी अधिक आराम से बीतता है। उन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती : जबान से निकलते ही उनकी इच्छा पूरी हो जाती है; उनके कुछ कहते ही उनकी इच्छित वस्तुएँ उन तक पहुँचा दी जाती हैं। उदाहरण के लिए, मसीह-विरोधी कहता है, “आज मौसम अच्छा है; मुझे मुर्गा खाने का इतना मन क्यों कर रहा है?” दोपहर से पहले ही, किसी ने मुर्गा पका लिया होगा। दोपहर के भोजन के दौरान, मसीह-विरोधी कहता है, “हम परमेश्वर के विश्वासी, शराब नहीं पी सकते, लेकिन कुछ जलपान तो किया ही जा सकता है?” अपने अगुआ की बातें सुनकर, मसीह-विरोधी के अनुयायी जलपान खरीदने के लिए किसी को दौड़ा देंगे। क्या वह सभी इच्छित चीजें नहीं पा लेता? उसे बस अपना हाथ बढ़ाना है, अपना मुंह खोलना है, और चीजें उसके पास ले आई जाएँगी और उसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाएँगी। उसके दिन बड़े आराम से कटते हैं। फिर मसीह-विरोधी कहता है, “आज बहुत ठंड है। पिछले साल मैं जो स्वेटर पहन रहा था उसमें कीड़ों ने छेद कर दिया था, अब मैं इसे पहनता हूँ तो यह अच्छा नहीं लगता—अच्छा नहीं दिखता। मुझे नहीं पता कि इस साल वाला स्वेटर कहाँ है।” जब कोई उसे कई स्वेटर खरीद देने की पेशकश करेगा, तो वह कहेगा कि उन्हें यूं ही नहीं खरीदना चाहिए, उसे संतों की मर्यादा के अनुरूप होना चाहिए, और पैसा सिद्धांत के अनुसार खर्च किया जाना चाहिए। इतना कहने के तुरंत बाद कोई उसके लिए कई स्वेटर खरीद कर लाता है। स्वेटर के आने के बाद मसीह-विरोधी को लगता है कि अगर उसने कुछ नहीं बोला तो लगेगा कि यह सब जानबूझकर किया गया है, इसलिए वह कहता है : “इन्हें किसने खरीदा? क्या यह सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है? क्या इससे मैं गलत नहीं ठहराया जाऊँगा? कौन इन्हें खरीद लाया? मैं उसे इसके पैसे दूँगा।” वह अपनी पत्नी से पहले कलीसिया के चढ़ावे में से कुछ पैसे निकालने के लिए कहता है, और कहता है कि जब उसके पास पैसे होंगे तो वह इसे वापस कर देगा। वास्तव में, यह बात वह यूँ ही कहता है; उन पैसों को वापस देने की उसकी कोई योजना नहीं होती। मसीह-विरोधी वास्तव में वह सब कुछ हासिल करता है जो वह चाहता है, और हर पकी-पकाई चीज का आनंद लेता है। और क्या इन चीजों का आनंद लेने के बाद उसके दिल में कोई अपराधबोध पैदा होता है? क्या उसका अंतःकरण उसे दोषी ठहराता है? (नहीं) वह आरोपी कैसे महसूस कर सकता है? वह इसी के तो पीछे पड़ा है, यही वह चीज है जिसकी उसने दिन-रात कामना की है—वह इसे अस्वीकार कैसे कर सकता है? यह लाभ गँवाया नहीं जा सकता, यदि वह इसका लाभ नहीं उठाता तो यह समाप्त और अर्थहीन हो जाएगा; एक बार जब इसका फायदा उठा लिया जाए, तब वह कुछ अच्छी-सी बात कह देगा, ताकि पैसा खर्च करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से ऐसा करे, और उसके बारे में कुछ भी सोचने की हिम्मत न करे।

अपने अधिकार क्षेत्र में मसीह-विरोधी न केवल अधीनस्थों के विशेष व्यवहार और उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाएँ पाते हैं, बल्कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के लोगों को अपनी आज्ञाओं का पूरी तरह पालन करने का प्रशिक्षण भी देते हैं। उदाहरण के लिए यदि मसीह-विरोधी सभी को सुबह पाँच बजे उठने के लिए कहता है, तो सभी को सुबह पाँच बजे तक उठ ही जाना होगा। जो देर से जागेंगे उनकी काट-छाँट होगी—उन्हें मसीह-विरोधी की तीखी नजरों का सामना करना होगा; खाना खाने के समय कोई मेज पर तब तक नहीं बैठ सकता जब तक कि मसीह-विरोधी न बैठ जाए और उसके खाना शुरू करने के पहले कोई खाना शुरू करने की हिम्मत नहीं कर सकता। वह जो कुछ भी करना तय करे, वह किया जाना आवश्यक है; वह जैसे तय करता है दूसरों को वैसे ही काम करना होगा, और अवज्ञा बर्दाश्त नहीं की जाती है। अपने अधिकार क्षेत्र में वे ही अगुआ और राजा होते हैं और उनकी बात ही अंतिम होती है—जो भी उनका पालन करने में असफल होता है, उसे दंडित किया जाता है। मसीह-विरोधियों के अधीनस्थों को प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे बिना कोई सवाल किए आदेशों का पालन करें, थोड़ा सा भी उनके खिलाफ न जाएँ और यह विश्वास करें कि जो भी आदेश दिए जा रहे हैं वे न्यायोचित और मूल्यवान हैं—यही उनका कर्तव्य और दायित्व है। परमेश्वर में विश्वास होने तथा अपने कर्तव्य करने की पताका तले मसीह-विरोधियों के अधीनस्थ बिना कोई सवाल किए उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, उन्हें अपनी हथेली पर उठाए फिरते हैं और उनके साथ अपने राजा और मालिक जैसा व्यवहार करते हैं। यदि किसी के मन में मसीह-विरोधी के बारे में कोई विचार या राय है, यदि उनके दृष्टिकोण मसीह-विरोधी से भिन्न हैं, तो मसीह-विरोधी उनका खंडन करने, उन्हें नीचा दिखाने, विश्लेषण करने, उन पर फैसला सुनाने, निंदा करने और उन्हें दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और तब जाकर चैन लेते हैं जब वह व्यक्ति पूरी तरह से उनके सामने समर्पण कर दे। मसीह-विरोधी अपने आश्चर्यजनक रूप से आरामदेह अधिकार क्षेत्र में फलता-फूलता है। भाई-बहनों का दिया हुआ पैसा सारा का सारा मसीह-विरोधी के पास जाता है, और मसीह-विरोधी को जो भी कमी होती है, वह उन्हें ही पूरी करनी होती है। मसीह-विरोधियों को संतुष्ट और प्रसन्न रखने के लिए भाई-बहनों को मसीह-विरोधी की जरूरतों को तुरंत पूरा करना होता है। मसीह-विरोधी ने इन लोगों को अप्रत्यक्ष गुलाम जैसा बनने के लिए प्रशिक्षित किया होता है। मसीह-विरोधी जो उपदेश सबसे ज्यादा देते हैं वह इस बात के इर्द-गिर्द होता है कि उन्होंने कैसे कष्ट सहे और वफादार रहे और उसमें इस बात पर जोर दिया गया होता है कि लोगों को परमेश्वर को खुश करने और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप होने के लिए उन्हें समझना और उनका पालन करना चाहिए। मसीह-विरोधी ऊँचे-ऊँचे धर्मोपदेशों का प्रवचन करता है, नारे लगाता है, और ऐसे धर्म-सिद्धांत प्रस्तुत करता है जो मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं से पूरी तरह मेल खाते हैं, जिससे उसे दूसरे लोगों की प्रेम और प्रशंसा मिलती है। इसी के साथ, वे अपने खिलाफ कोई भी संदेह, भ्रम या समझ पैदा होने को प्रभावी तरीके से रोकते हैं, और लोगों को उन्हें उजागर करने या पहचानने या उनके विरुद्ध किसी तरह के विश्वासघात के विचार रखने से भी रोकते हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि उनकी सत्ता हमेशा बनी रहेगी, कि बिना किसी परिवर्तन के उनकी सत्ता कलीसिया में सुदृढ़ रहेगी। क्या मसीह-विरोधी काफी आगे की नहीं सोच रहे होते हैं? तो फिर, इन सभी कार्यों के पीछे क्या उद्देश्य है? एक शब्द में कहें तो—सत्ता। चाहे उनके अधिकार क्षेत्र के भीतर के लोग हों या बाहर के, उनके कट्टर अनुयायी हों या उन्हें समझने वाले भाई-बहन, मसीह-विरोधी को सबसे अधिक डर और चिंता किस बात की होती है? उनकी चिंता होती है कि ये लोग सत्य को समझ सकते हैं, परमेश्वर के सामने आ सकते हैं, उन्हें पहचान सकते हैं और उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं। इसी बात से उन्हें सबसे ज्यादा डर लगता है। जब हर कोई उन्हें अस्वीकार कर देता है, तो वे बिना सेना के सेनाध्यक्ष जैसे हो जाते हैं, अपना रुतबा और प्रतिष्ठा खो देते हैं, और उनकी सत्ता छिन जाती है। इसलिए, वे मानते हैं कि केवल अपने अधिकार क्षेत्र को सुरक्षित करके, अपने कट्टर अनुयायियों पर मजबूत पकड़ बनाकर, अपने अनुयायियों को कठोरता से गुमराह और नियंत्रित करके, उन सबको मजबूती से अपनी पकड़ में रखकर ही वे अपनी सत्ता को सुदृढ़ कर सकते हैं। इस तरह, वे उनकी सत्ता के कारण लोगों से मिलने वाले विशेष व्यवहार पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखते हैं। कुछ मसीह-विरोधी अपने आचरण और व्यवहार में विशेष रूप से चतुर और लोगों को जीतने में माहिर होते हैं। जिस अधिकार क्षेत्र का वे प्रबंधन करते हैं, उसमें विभिन्न प्रकार के वे लोग होते हैं जो उनके काम करते हैं, जो उनकी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, और वे जो उनके लिए जानकारी इकट्ठा करते हैं या चीजों को सुचारु बनाते हैं। मसीह-विरोधी के प्रभाव क्षेत्र में यदि अच्छी काबिलियत वाला कोई व्यक्ति न हो, कोई सत्य का अनुसरण न कर रहा हो, और कोई भी सत्य सिद्धांतों को कायम न रख रहा हो है तो मसीह-विरोधी लंबे समय तक कलीसिया पर नियंत्रण बनाए रख सकता है, और इसके कारण कलीसिया के भीतर के लोग पूरी तरह से क्षत-विक्षत और इतने गुमराह हो चुके होंगे कि उनके सुधारे जाने की कोई आशा नहीं होगी। अगर ऊपरवाले ने किसी को उनके काम की जाँच के लिए भेजा भी तो वह व्यर्थ होगा। मसीह-विरोधी के नियंत्रण में कलीसिया अपारगम्य और अभेद्य हो चुकी है, उसका मजबूत किला बन चुकी होती है। मसीह-विरोधी को चाहे जो उजागर और विश्लेषित करे, या कोई भी सत्य सिद्धांतों पर संगति करे, गुमराह हो चुके लोग उसकी बात नहीं सुनते। इसके बजाय, वे सत्य का विरोध करते हुए मसीह-विरोधी के पक्ष में खड़े होते हैं और मसीह-विरोधी को उजागर किए जाने और उसके विश्लेषण की निंदा करते हैं।

मसीह-विरोधी, उनके कट्टर अनुयायी, और उनके अधिकार क्षेत्र के सदस्य हमेशा परमेश्वर के घर के मामलों पर चर्चा और जाँच करते रहते हैं : किसे कहाँ स्थानांतरित किया गया है? किसे बदला गया है? ऊपरवाले ने अमुक-अमुक को बेनकाब करने के बारे में एक और संगति और धर्मोपदेश जारी किया है—क्या हमें इसका प्रकाशन करना चाहिए? और हम इसे कैसे प्रकाशित करेंगे? इसे पहले किसे दिखाया जाएगा और उसके बाद किसे? क्या हमें इसमें हस्तक्षेप करने और कुछ सुधार या संपादन करने की जरूरत है? हाल ही में कौन बाहरी लोगों के संपर्क में रहा है? क्या ऊपरवाले ने किसी को नीचे भेजा है? क्या उनमें से किसी का हमारे निचले स्तर के लोगों से संपर्क था? ऐसी चीजों पर वे अक्सर साथ में चर्चा करते हैं; वे अक्सर ऊपरवाले की सभी कार्य व्यवस्थाओं के प्रत्युत्तर में प्रत्युपायों, योजनाओं और साधनों पर चर्चा करते हुए साँठ-गाँठ करते और षड्यंत्र रचते हैं; और तो और वे अक्सर अपने से नीचे की स्थिति वाले भाई-बहनों की परिस्थितियों पर चर्चा और उनकी जाँच भी करते हैं। मसीह-विरोधी और उनके अधिकार क्षेत्र के सदस्य साथ बैठकर पूरा दिन साजिश रचने में बिताते हैं, वे सभी एक-दूसरे के साथ राज़ साझा करते हैं। जब वे एक साथ होते हैं, तो वे सत्य या परमेश्वर की इच्छा पर संगति नहीं करते, कलीसिया के काम, या अपना कर्तव्य कैसे निभाया जाए, कलीसिया के काम को कैसे आगे बढ़ाया जाए, या परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में भाई-बहनों के प्रवेश का मार्गदर्शन कैसे किया जाए, अथवा बाहरी परिस्थितियों पर कैसे प्रत्युत्तर दिया जाए आदि के बारे में तो और भी संगति नहीं करते। वे कभी भी इन उचित चीजों के बारे में संगति नहीं करते हैं, बल्कि जाँच करते हैं कि कौन किसके करीब आ रहा है, ये लोग जब साथ होते हैं तो किसके बारे में बात करते हैं, क्या वे पीठ पीछे अगुआओं के बारे में बात करते हैं; और वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि किसका परिवार धनी है और क्या उन्होंने कोई चढ़ावा चढ़ाया है। ये वे चीजें हैं जो वे अकेले में करते हैं, वे हमेशा भाइयों और बहनों और ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं की आलोचना करते रहते हैं—वे हमेशा भाई-बहनों और ऊपरवाले के साथ कपट की हर संभव कोशिश करते रहते हैं। अकेले में वे जो करते हैं, वह लज्जाप्रद है : वह यदि कलीसिया के लिए हानिकारक न हो, तो भी भाई-बहनों के लिए हानिकारक होता है; वे हमेशा साजिश रचते रहते हैं या अच्छी काबिलियत वाले और सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों के बारे में शिकायतें करते रहते हैं, वे हमेशा अच्छे लोगों को नीचा दिखाने या उनके नाम पर कालिख पोतने की कोशिश करते रहते हैं। मसीह-विरोधी जब भी कुछ करते हैं, तो वे हमेशा अपने पक्ष के लोगों के साथ इस पर चर्चा करते हैं—इसमें साजिशें और योजनाएँ शामिल होती हैं। मसीह-विरोधी गिरोह की कही कोई भी बात विश्लेषण के लायक नहीं है; यदि सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाए तो इन सभी में समस्याएँ मिल जाती हैं। अधिकार क्षेत्र से बाहर के लोगों से वे बातें छिपाते हैं और सावधान रहते हैं; मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र में कोई भी बात सीमा से बाहर नहीं होती : वे भाई-बहनों पर, परमेश्वर के घर के काम पर, ऊपरी स्तर के अगुआओं पर, यहाँ तक कि परमेश्वर पर भी फैसले सुनाते हैं। सब कुछ जायज है। लेकिन जब अधिकार क्षेत्र के बाहर का कोई व्यक्ति मौजूद होता है, तो वे अपने शब्द छिपा लेते हैं, चुप्पी साध लेते हैं, बातें नहीं कहते और यहाँ तक कि बाहरी लोगों की समझ में न आने वाली गुप्त भाषा का भी प्रयोग करते हैं। उनकी एक खास मुखाकृति है जिसका एक निश्चित अर्थ है, एक कुटिल मुस्कान है जिसका कुछ मतलब है, यहाँ तक कि एक खँखार और एक खाँसी का भी कुछ मतलब है—ये सभी उनके गुप्त चिह्न हैं। कभी वे अपना सिर खुजाते हैं, कभी वे अपने कान खींचते हैं, कभी वे पैर पटकते हैं, कभी वे अपनी हथेलियां आपस में रगड़ते हैं; उन सभी का कुछ न कुछ मतलब होता है। ये सभी मसीह-विरोधी गिरोह की सामान्य अभिव्यक्तियाँ हैं, वे व्यवहार हैं जिन्हें वे कलीसिया की सत्ता पर एकाधिकार हो जाने के बाद प्रकट करते हैं। उनके विभिन्न व्यवहारों और अभिव्यक्तियों के मद्देनजर और उनकी मानवता के दृष्टिकोण से विश्लेषण करें तो, ये लोग क्या हैं? क्या वे छल और दुष्टता के अनुचर नहीं हैं? (हाँ, हैं।) और क्या इन लोगों में न्याय की कोई भावना है? क्या उनमें कोई जमीर या नैतिकता है? क्या वे ईमानदार हैं? नहीं, इन लोगों को कोई शर्म नहीं है। वे भाई-बहनों का दिया दान खा जाते हैं, और उसे अपना हक समझते हैं; साथ ही, वे मनमानी करते हैं और परमेश्वर के घर में निरंकुश हो जाते हैं जिससे भाई-बहनों को नुकसान होता है—और वे केवल अस्थाई रूप से कलीसिया पर निर्भर नहीं रहते, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर दिन ऐसा करते रहते हैं। क्या ये मनुष्य का मांस खाने और मनुष्य का रक्त पीने वाले दानव नहीं हैं? वे बेशर्म हैं! मसीह-विरोधी और उनका गिरोह एक साथ बैठ कर हमेशा “राष्ट्रीय मामलों” पर चर्चा करते रहते हैं। लेकिन क्या बंद दरवाजों के पीछे उनकी चर्चाएँ लज्जाप्रद हैं? (हाँ।) वे किस बारे में बात करते हैं? क्या वे कलीसिया के काम पर संगति करते हैं? क्या वे कलीसिया के काम का बोझ महसूस करते हैं? कुछ स्थानों पर कलीसिया पर निगरानी रखी जा रही होती है और बड़े लाल अजगर यानी सरकार द्वारा भाई-बहनों का पीछा किया जा रहा होता है, निगरानी की जा रही होती है, और ज्यादातर भाई-बहनों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया होता है और उन पर गिरफ्तारी और जेल भेजे जाने का खतरा होता है। क्या उन्हें कोई परवाह है? क्या वे भाई-बहनों की रक्षा करने, उन्हें उत्पीड़न और जेल के कष्टों से बचने में मदद करने का कोई तरीका खोजने की कोशिश करते हैं? अकेले में क्या वे कलीसिया की पुस्तकों, सामान आदि की सुरक्षा कैसे की जाए, इस मसले पर विचार करते हैं ताकि कलीसिया को नुकसान से बचाया जा सके? यदि कोई यहूदा कलीसिया में प्रकट हो जाए, तो क्या वे तुरंत प्रतिक्रिया करते हुए प्रभावित भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए तुरंत किसी सुरक्षित स्थान की व्यवस्था करते हैं? क्या वे ऐसी चीजें करेंगे? (नहीं।) जब लोगों के पास सत्ता होती है, तो वे अच्छी चीजें भी कर सकते हैं और बुरी चीजें भी। तो, जब मसीह-विरोधी के पास शक्ति होती है, तो वे क्या करते हैं? (बुरी चीजें।) वे कौन-सी बुरी चीजें करते हैं? (वे अपनी बात न सुनने वालों को दंडित करने के तरीके ढूंढ़ते हैं। जब परमेश्वर का घर कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को काम के बारे में पूछने के लिए भेजता है, तो वे उनसे बचने का एक तरीका ढूंढ़ लेते हैं, या मौके का फायदा उठाने और उनकी आलोचना करने, उनकी निंदा करने, और उन्हें जल्दी भेजने के कारण ढूंढ़ लेते हैं ताकि उन्हें काम के बारे में पूछताछ करने और उसमें समस्याओं का पता लगाने से रोक सकें।) कुछ मसीह-विरोधी इसके ठीक विपरीत कार्य करते हैं : इस डर से कि भाई-बहन उनकी समस्याओं की रिपोर्ट कर देंगे, वे ऊपरवाले द्वारा भेजे गए अगुआओं पर नजर रखते हैं, उन्हें बढ़िया भोजन और पेय उपलब्ध कराते हैं, और नीचे के भाई-बहनों के संपर्क में आने से रोकते हैं। जब अगुआ भाई-बहनों के बारे में पूछते हैं, तो उनका जवाब होता है, “वे सब अच्छे हैं। फिलहाल, हमारा सुसमाचार का काम आराम से आगे बढ़ रहा है। हमने प्रतिकूल माहौल के कारण उपजे सभी मुद्दों को हल कर लिया है, और उन यहूदा को निकाल दिया है जिन्होंने हमें धोखा देने की कोशिश की थी; हम उन लोगों से निपट चुके हैं जिन्होंने कलीसिया के काम में बाधा डालने की कोशिश की थी, उन सभी को बाहर कर दिया गया है, और परमेश्वर के वचनों की किताबों का वितरण सामान्य रूप से कर दिया गया है। यहाँ बिल्कुल कोई समस्या नहीं है।” ऐसा कहकर वे दूसरे लोगों के बारे में भी कुछ रिपोर्ट करते हैं। ऊपरवाला जब उनकी जांच के लिए किसी को भेजता है तब अगर उन्हें लगता है कि किसी ने उनकी रिपोर्ट की है—तो उच्च अगुआओं को भटकाने के लिए वे जानबूझकर उस व्यक्ति की समस्याओं की रिपोर्ट करेंगे और आने वाले अगुआओं को यह सोचने पर बाध्य कर देंगे कि मसीह-विरोधी ने जिस व्यक्ति के बारे में रिपोर्ट की है उसमें समस्याएँ हैं, ताकि अगुआओं को कलीसिया के कामकाज की वास्तविक स्थिति जानने और मसीह-विरोधी से जुड़े मसलों का पता लगाने से रोका जा सके और अंततः वे बदले न जाएँ और उन पर कोई खतरा न रह जाए। अपने अधिकार क्षेत्र की रक्षा करने के पीछे मसीह-विरोधी का उद्देश्य अपनी सत्ता को सुदृढ़ करना और उसे प्रभावी बनाना होता है, और इसलिए वे बहुत से पिछलग्गू, नौकर, कट्टर अनुयायी और यार बनाते हैं। ऐसे लोगों को बढ़ाने में उनका उद्देश्य सत्ता पर पूर्ण एकाधिकार स्थापित करना होता है, ताकि उसे कमजोर होने या छिनने से रोका जा सके।

मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के साथ अपने निजी अधिकार क्षेत्र जैसा व्यवहार करते हैं और नेतृत्व पाने के बाद वे जो पहला काम करते हैं वह है सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करना। क्या तुम लोगों ने मसीह-विरोधियों द्वारा सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने की किसी घटना के बारे में सोचा है? (अतीत में एक मसीह-विरोधी एक कलीसिया का अगुआ था। जब भी कोई उसकी समस्याएँ बताता या उसे उजागर करता वह उस व्यक्ति को दबा देता और उसकी परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें जब्त कर लेता था। स्थिति के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए मैं उसकी कलीसियाओं की कुछ सभा समूहों में गया। इस डर से उसकी काली करतूतें सामने न आ जाएँ, उस मसीह-विरोधी ने मुझे वहाँ से भगाने की कोशिश की और इसे मुझ पर उसकी अनुमति के बिना गोपनीय तरीके से सभाओं में भाग लेने का आरोप लगाने का मौका लपक लिया। बाद में उच्च अगुआओं ने किसी को जाँच के लिए भेजा जिससे मसीह-विरोधी ने मेरी खूब भर्त्सना की, मेरे बारे में उल्टी-सीधी बातें कीं और मुझे नजरबंद करके दूसरे भाई-बहनों को निर्देशित किया वे मेरे साथ कोई संबंध न रखें। उस समय एक अगुआ और एक कार्यकर्ता के सहयोग से यह मसीह-विरोधी आठ कलीसियाओं पर नियंत्रण रखता था। अंत में, कई महीनों की संगति और समझाने पर भाइयों-बहनों ने अंततः मसीह-विरोधियों के इस समूह को निकाल दिया।) तो, मसीह-विरोधी इस तरह से काम करते हैं। कलीसिया में वे जो कुछ भी करते हैं उसका लक्ष्य सत्ता पर पकड़ बनाना और लोगों को नियंत्रित करना होता है। वे उस व्यक्ति के प्रति खास तौर पर संवेदनशील होते हैं जो उनके रुतबे और सत्ता के लिए खतरा हो। ऐसे मामलों का पता लगाने में उनकी नाक बहुत तेज होती है और वे तुरंत जान जाते हैं कि ये मामले उनके प्रतिकूल हैं और उनके रुतबे को खतरे में डालने वाले हैं। क्या यह दुष्टतापूर्ण नहीं है? मसीह-विरोधी इन मामलों के बारे में इतने संवेदनशील क्यों होते हैं? दूसरे लोग इसे क्यों नहीं पकड़ पाते? इसका संबंध उनकी प्रकृति से है; केवल मसीह-विरोधी ही इन चीजों के प्रति सजग हो सकते हैं। इससे एक बात साबित होती है : मसीह-विरोधियों का सार इसी प्रकार का होता है। सत्ता के लिए उनकी लालसा असाधारण होती है और उनमें इसके लिए अद्वितीय छटपटाहट होती है। कोई जब ऐसी कलीसिया में जाता है जिसके वे प्रभारी हों, तो वे यह सोचते हुए उस व्यक्ति को गहराई से पढ़ने की कोशिश करते हैं कि “क्या यह व्यक्ति मेरे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए खतरा बन सकता है? वह यहाँ मुझे पदोन्नत करने आया है या मुझे बर्खास्त करने के लिए? क्या वह यहाँ मुझसे जुड़े मुद्दों की जांच करने आया है या फिर कामकाज के बारे में सामान्य रूप से संगति करने?” वे पहले इन बातों का पता लगाने की कोशिश करते हैं। ऐसे मामलों के प्रति वे विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनमें रुतबे और सत्ता के प्रति विशेष मोह और लालसा होती है; वे सत्ता और रुतबे के लिए जीते हैं। वे सोचते हैं कि यदि उन्होंने सत्ता खो दी, उनके समर्थक कम हो गए, और वे बिना सेना के सेनापति जैसे हो गए तो जीवन का अर्थ खो जाएगा। इसलिए, मसीह-विरोधी चाहे तीन, पाँच, या दस कलीसियाओं के प्रभारी हों, जो रुतबा और सत्ता उनके पास होती है उसके संबंध में उनका विश्वास है कि जितना अधिक हो, उतना बेहतर। वे अपनी सत्ता दूसरों को बिल्कुल नहीं सौंपते। वे सोचते हैं कि उचित ढंग से यह उनकी ही है, वह चीज जिसके लिए उन्होंने संघर्ष किया, कुछ ऐसी चीज जिसे उन्होंने क्रांति और रणनीति के सहारे हासिल किया। दूसरे अगर इसे पाना चाहते हैं तो उन्हें इसके बदले में अपनी जान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह बड़े लाल अजगर की तरह है—अगर कोई तानाशाही को समाप्त करने के लिए लोकतांत्रिक परिवर्तन का सुझाव देते हुए कम्युनिस्ट पार्टी से निष्पक्ष चुनाव कराने का आग्रह करे, तो बड़ा लाल अजगर क्या कहेगा? “प्रजातंत्र? तुम इसे दो करोड़ लोगों के सिर के बदले पा सकोगे! कम्युनिस्ट पार्टी ने अनगिनत व्यक्तियों का खून बहाकर यह सत्ता हासिल की है। यदि तुम सत्ता पर कब्जा करना चाहते हो, तो तुम्हें इसके बदले उतने ही लोगों का खून और जीवन देना होगा!” मसीह-विरोधी भी वैसे ही होते हैं। यदि तुम चाहते हो कि वे सत्ता छोड़ दें, तो उन्हें मनाने के लिए केवल सत्य पर संगति करना ही पर्याप्त नहीं होगा; वे तुमसे विवाद करेंगे और लड़ेंगे। उनके तरीके या साधन कितने भी घृणित क्यों न हों, उन्हें अपनी सत्ता की रक्षा करनी होगी। जब तक परमेश्वर के चुने हुए लोग नहीं जागते और उन्हें उजागर करने और हटाने के लिए एकजुट नहीं होते, वे ऐसा नहीं करेंगे। क्या मसीह-विरोधी बहुत दुष्ट नहीं हैं? यह मसीह-विरोधियों के दुष्ट और शातिर स्वभाव की पूरी तरह से पुष्टि करता है और उदाहरण सहित समझाता है। मसीह-विरोधी इस बात की परवाह नहीं करते कि जो लोग उनके अधीन हैं वे ऐसा स्वेच्छा से करते हैं या नहीं, उनकी रजामंदी सच्ची है या नहीं अथवा वे आज्ञापालन और अनुसरण करने को तैयार हैं या नहीं। वे लोगों को दबाने और नियंत्रित करने के लिए अपनी सत्ता का बलपूर्वक उपयोग करते हैं। कोई भी उनकी अवज्ञा नहीं कर सकता : जो कोई भी नहीं उनकी बात नहीं मानेगा, वह दंडित होगा। मसीह-विरोधी ऐसे होते हैं।

अभी-अभी, हमने मसीह-विरोधियों द्वारा सत्ता पर एकाधिकार जमाने के कुछ विशिष्ट अभ्यासों और अभिव्यक्तियों के बारे में संगति की। इन अभ्यासों और अभिव्यक्तियों से क्या हम यह नहीं देख सकते कि मसीह-विरोधियों के पास एक शातिर और दुष्ट स्वभाव और सार होता है? क्या कोई उन्हें बदल सकता है? क्या उनके साथ तर्क करना, उनकी भावनाओं को जगाना, परमेश्वर के वचनों और सत्य को प्रस्तुत करना, उनकी काट-छाँट करना, या वास्तविक भावनाओं के माध्यम से उन्हें बदलने की कोशिश करना आदि में से कोई भी तरीका उन्हें सत्ता पर एकाधिकार करने की आदत छोड़ने को तैयार कर सकता है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी केवल भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग हैं। लोगों में मानवीय भावनाएँ होती हैं। यदि तुम उनसे भावनात्मक रूप से निवेदन करोगे, चीजों को तार्किक रूप से समझाओगे, और उनके सामने पक्ष-विपक्ष रखोगे, तो सिद्धांत समझने के बाद शायद वे इस तरह से कार्य न करें। वे अपनी गलतियाँ स्वीकार कर सकते हैं, पश्चाताप कर सकते हैं और मसीह-विरोधियों के रास्ते पर चलना बंद कर सकते हैं। संभव है कि वे परमेश्वर के घर के भीतर अपना खुद का अधिकार क्षेत्र स्थापित न करें, परमेश्वर के घर में सत्ता पर एकाधिकार करने के लिए अपने कट्टर अनुयायियों को जमा न करें, और ऐसे कामों में न लगें जो मानवता और नैतिकता के अनुरूप नहीं हैं।” क्या मसीह-विरोधियों को इस तरह प्रभावित किया जा सकता है? (नहीं) क्या कभी किसी ने किसी मसीह-विरोधी को बदला है? कुछ लोग कहते हैं, “शायद छोटी उम्र से उनकी मां ने उन्हें ठीक से शिक्षा नहीं दी थी जिससे वे खराब हो गए। अब, यदि उसकी माँ या उसके परिवार का सबसे सम्मानित व्यक्ति उससे बात करे, या कोई लंबे समय का विश्वासी उसे समझाए, तो संभव है कि वह उन कामों को छोड़ दे जो मसीह-विरोधी करते हैं।” क्या इसमें कोई सत्य है? (नहीं?) क्यों नहीं? (उनके साथ तर्क करना बेकार है; तुम जितनी ज्यादा बात करोगे, वे उतना ही वे उससे नाराज होंगे। यदि तुम उन्हें उजागर करना और काटना-छाँटना जारी रखोगे, तो वे तुमसे नफरत करने लगेंगे।) सही कहा। क्या उन्होंने परमेश्वर के वचनों और सत्य को थोड़ा भी नहीं सुना है? कुछ मसीह-विरोधियों ने दस या बीस वर्षों तक विश्वास किया है और परमेश्वर के वचनों को काफी पढ़ा है फिर भी कोई बदलाव नहीं हुआ। कोई बदलाव क्यों नहीं हुआ? ऐसा इसलिए कि उनके हृदय बुराई से भरे हुए हैं—यहाँ तक कि परमेश्वर भी उन्हें नहीं बचाता, तो, क्या मनुष्य अपने थोड़े से ज्ञान और धर्म-सिद्धांत से उन्हें बदल सकते हैं? मानव समाज में, देशों में शिक्षा है और समाज में कानून हैं, जो सभी को अच्छा बनने और अपराध करने से बचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। लेकिन यह लोगों को बदल क्यों नहीं पाता? क्या राष्ट्रीय शिक्षा और व्यवस्थाओं का समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ा है? क्या राष्ट्र द्वारा प्रचारित उन चीजों का मानवता के लिए कोई शैक्षिक महत्व या मूल्य है? क्या वे प्रभावी रहे हैं? (नहीं) यहाँ तक कि प्रत्येक देश में कानूनी विभाग, जैसे कि किशोर सुधार सुविधाएँ और जेल, हैं जो लोगों को अनुशासित करने के सबसे बड़े और सख्त स्थान हैं, क्या इनसे लोगों का सार बदल गया? बलात्कारियों, चोरों और ठगों को ही लो—वे इतनी बार जेल के अंदर और बाहर जाते हैं कि वे आदतन अपराधी बन जाते हैं—क्या अंततः वे बदलते हैं? नहीं, उन्हें कोई नहीं बदल सकता। किसी व्यक्ति का सार नहीं बदला जा सकता। इसी प्रकार, मसीह-विरोधियों का सार भी नहीं बदला जा सकता है। सत्ता पर एकाधिकार करने का अभ्यास मसीह-विरोधियों के सार को दर्शाता है, और इसे बदला नहीं जा सकता। बदलाव में असमर्थ इस प्रकार के व्यक्ति के प्रति परमेश्वर का रवैया क्या है? क्या यह उसे बदलने और बचाने के लिए अपना अधिकतम प्रयास करने और फिर उनकी प्रकृति में परिवर्तन लाने का रवैया है? क्या परमेश्वर यह कार्य करता है? (नहीं।) अब जब तुम लोग समझ गए हो कि परमेश्वर इस तरह का काम नहीं करता, तो तुम्हें मसीह-विरोधियों से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें अस्वीकार करो।) पहले, समझो और विश्लेषण करो; जब तुम उनकी असलियत जान लो, तो उन्हें अस्वीकार कर दो। केवल अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर किसी को यह सोचकर अस्वीकार न करो कि वह अहंकारी और दंभी है और मसीह-विरोधी जैसा है। इससे काम नहीं चलेगा; तुम दृष्टिहीन नहीं बन सकते। संपर्क, जांच और विवेक के माध्यम से, धीरे-धीरे स्थापित करो और पुष्टि करो कि कोई व्यक्ति मसीह-विरोधी है। पहले, संगति करो और सभी के सामने उनका विश्लेषण करो, उन्हें समझो, और फिर कलीसिया में उन लोगों के साथ एकजुट हो जो सत्य का अनुसरण करते हैं और मसीह-विरोधी को अस्वीकार करने के लिए न्याय की भावना रखते हैं। पहले उन्हें पहचानो और विश्लेषण करो, और तब उन्हें अस्वीकार करो—मसीह-विरोधियों से निपटने का यही सबसे अच्छा तरीका है। पाखंड में माहिर और काफी चालाक कुछ मसीह-विरोधियों से संपर्क करने के द्वारा तुमने जांच की है और उनकी पहचान की है, पुष्टि की है कि वे मसीह-विरोधी हैं, पर भाई-बहनों को उनके बारे में अच्छी तरह से पता नहीं है और उनमें वास्तविक विवेक की कमी है, तो जब तुम उन भाई-बहनों के साथ संगति करते हो और मसीह-विरोधी का विश्लेषण करते हो, तो वे न केवल उसके मसीह-विरोधी होने की बात पर अविश्वास या इसे अस्वीकार करते हैं बल्कि यहाँ तक ​​कहते हैं कि “तुम उसके प्रति पूर्वाग्रही हो; यह तुम्हारी व्यक्तिगत राय है”—तो तुम्हें क्या करना चाहिए? यदि तुम कहते हो कि “जो भी हो, मैंने उसकी पहचान कर ली है, मैं उसके द्वारा गुमराह या उससे बेबस नहीं होऊंगा, मैं उसकी बात नहीं सुनूंगा, और निश्चित रूप से मैं उसकी आज्ञा का पालन नहीं करूंगा। तुम लोग उसे पहचानो या नहीं, यह मेरी चिंता का विषय नहीं है। मैंने तो तुम लोगों को उसकी अभिव्यक्तियों और उसके कामों के बारे में बता दिया है, और तुम लोग इस पर विश्वास करो या न करो, सुनो या न सुनो, मेरी जिम्मेदारी तो पूरी हुई। यदि तुम उसके भटकावे और नियंत्रण में रहते हो, यदि तुम उसके कहे पर ध्यान देते हो और उसकी बातों का पालन करते हों, तो इसके परिणामों के ही हकदार हो और यह तुम्हारी बदकिस्मती है!”—क्या यह दृष्टिकोण स्वीकार्य है? क्या इसे तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी करने के रूप में देखा जा सकता है? क्या इसे परमेश्वर के प्रति वफादार होना माना जा सकता है? (नहीं।) तो, तुम्हें क्या करना चाहिए? ऐसी चीज़ें अपरिहार्य हैं; ऐसे मामले तो उठेंगे ही। कुछ लोग, चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश सुनें, सत्य नहीं समझ सकते, और वे मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों की तुलना करने या उन्हें समझने में असमर्थ रहते हैं। किसी व्यक्ति के मसीह-विरोधी होने की बात जब दिन की तरह साफ हो तब भी वे इसे नहीं देख पाते हैं और गुमराह हो जाते हैं। जब तक मसीह-विरोधी उन्हें व्यक्तिगत रूप से नुकसान नहीं पहुँचाता, उन्हें नहीं दबाता, उन्हें नहीं डाँटता, उनकी काट-छाँट नहीं करता, या उनके बिल्कुल सामने खराब आचरण नहीं करता, वे उसका मसीह-विरोधी होना स्वीकार नहीं करेंगे। भले ही दूसरे लोग तथ्य बताएँ या सबूत पेश करें, वे उस पर विश्वास नहीं करते। उन्हें इसे स्वीकार करने से पहले अपनी आँखों से देखना होता है कि मसीह-विरोधी क्या करता है और व्यक्तिगत रूप से मसीह-विरोधियों के दुर्व्यवहार का अनुभव करना होता है। इस स्थिति में क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करने देते हुए दुर्व्यवहार का अनुभव करने देना चाहिए; दुर्व्यवहार सहने के बाद ही उनकी नींद टूटेगी।) क्या यह थोड़ा कठोर होना नहीं है? (यह उनके साथ कठोर व्यवहार करना नहीं है। ऐसे लोग संगति के माध्यम से सत्य नहीं समझ सकते, वे व्यक्तिगत रूप से दुर्व्यवहार का अनुभव करके ही जागरूक हो सकते हैं और जाग सकते हैं। इसलिए, ऐसे लोगों से निपटने का यही एकमात्र तरीका है।) यह एक सिद्धांत है। कुछ लोग सकारात्मक तरीके से बात करने पर उसे समझ नहीं पाते; उनमें इसे समझने की क्षमता का अभाव होता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम उन्हें बताओ, “वह क्षेत्र खतरनाक है; यदि तुम रात में अकेले जाओगे, तो लुटेरे मिल सकते हैं। ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है। रात को टहलने न जाओ; जल्दी वापस आओ!” वे इस पर विश्वास नहीं करते और बिना किसी को साथ लिए रात में अकेले टहलने पर जोर देते रहते हैं। उस स्थिति में तुम उन्हें अकेले घूमने देते हो, लेकिन यह सुनिश्चित करते हुए कि वे वास्तव में परेशानी में न पड़ें, तुम गुप्त रूप से उनकी रक्षा करते हो। यह तुम्हारी जिम्मेदारी निभाना है। जब असल में मुसीबत आती है, तो तुम उनकी रक्षा कर सकते हो, किसी भी मुसीबत को उनके पास आने से रोक सकते हो, और उन्हें सबक सीखने और उसे याद रखने में मदद कर सकते हो। आखिरकार, वे विश्वास करेंगे कि तुमने जो कहा था, वह सही था। इसलिए, जो लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते हैं और सत्य की चाहे जैसी संगति की जाए, उन्हें समझ नहीं पाते हैं, उनको गंभीर नुकसान उठाना होगा, सबक सीखना होगा, और समझ पैदा करने के लिए इसे स्मृति में रखना होगा। जो लोग उलझे हुए दिमाग वाले हैं और सलाह को नजरअंदाज करते हैं, वे मसीह-विरोधियों की दुष्टता और शातिरपने को नहीं समझ सकते, यहाँ तक कि मसीह-विरोधियों के साथ भाई-बहनों की तरह व्यवहार करते हैं, उनके साथ वैसे ही बातचीत करते हैं, प्यार से उनकी मदद करते हैं और उनके साथ ईमानदारी से व्यवहार करते हैं, दिल से बात करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, वे मसीह-विरोधियों के शिकार बन जाते हैं। कुछ लोगों को समझ पैदा करने से पहले एक बार नहीं, बल्कि कई बार नुकसान उठाना होता है। जब तुम उनके साथ संगति करते हो और उनकी मदद करते हो, तो वे तुम पर विश्वास करते हैं। यह एक प्रभावी तरीका है और कुछ लोगों को ऐसी चीजों से परेशानी उठानी पड़ती है। अतीत में, एक भ्रमित व्यक्ति था जिसमें समझ की कमी थी और जब परमेश्वर के घर ने एक मसीह-विरोधी को हटाया तो उसने उसे अच्छा नहीं लगा। मसीह-विरोधी के बुरे कर्म स्पष्ट थे और उन्हें इसी तरह से वर्गीकृत भी किया गया था। उसके अलावा सभी ने इसे स्वीकार किया, और कोई भी उसके साथ संगति नहीं कर सका। अंततः, वह मसीह-विरोधी के पीछे-पीछे बाहर चला गया। एक अवधि के बाद, गंभीर क्षति झेलने के बाद, वह आंसुओं के साथ लौटा और स्वीकार किया कि मसीह-विरोधी वास्तव में भयानक था। वास्तव में, मसीह-विरोधी हमेशा से इतना ही बुरा था, लेकिन क्योंकि उसके मन में मसीह-विरोधी के बारे में अच्छी भावना थी और वह उसकी चापलूसी करना चाहता था, इसलिए उसने मसीह-विरोधी की हर बात को सहन किया और उसे स्वीकार किया। जब मसीह-विरोधी ने अपना रुतबा खो दिया, तो उसने मसीह-विरोधी के साथ समान स्तर पर बातचीत की और मसीह-विरोधी द्वारा किए गए कुछ कामों के बारे में राय बनाने लगा। उसका नजरिया बदल गया और उसने समस्याओं को देखना शुरू कर दिया। अंत में, फिर से मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के लिए कहे जाने पर भी, उसने साफ तौर पर इनकार कर दिया—वह मसीह-विरोधी का अनुसरण करने के बजाय मरने को तैयार था, क्योंकि उसे बहुत क्षति हुई थी और उसने मसीह-विरोधी को पहचान लिया था। वास्तव में, उसने जो देखा वह उसे पहले ही बताया गया था, लेकिन तब उसने इसे मानने या स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। इसे रोका नहीं जा सकता था। ऐसे लोगों को घुमावदार रास्ता अपनाना पड़ता है और अधिक कठिनाई सहनी पड़ती है—वे इस पीड़ा के लायक हैं। मैं यह क्यों कहता हूँ कि वे इसी लायक हैं? मेरा मतलब यह है कि जब तुम्हारे पास आशीष हैं, लेकिन तुम उनका आनंद लेने से इनकार करते हो, और कष्ट सहने पर अड़े रहते हो—तो इसमें कुछ नहीं किया जा सकता—तुमको पहले कठिनाई और कष्ट सहना होगा। तुम इस कष्ट के लायक हो।

सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करते हुए मसीह-विरोधी प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण काम उन्हें सौंपते हैं जो बिना कोई सवाल किए उनकी आज्ञा का पालन करें। इसके बाद वे उन अस्थिरचित्त लोगों को प्रशिक्षित करते हैं जिनके दिमाग को बदला जा सकता है, उन्हें वे अपने पक्ष में करते हैं। ये लोग जब पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित हो जाते हैं और मसीह-विरोधी के अधिकार क्षेत्र के सदस्य बन जाते हैं, तो मसीह-विरोधी को चैन आ जाता है। जहाँ तक उन लोगों की बात है जिनका वे इस्तेमाल नहीं कर पाते, मसीह-विरोधी उन्हें पूरी तरह छोड़ देते हैं, और उन्हें अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रखते हैं। वे सभी जो बिना प्रश्न किए उनकी बात मानते हैं, मसीह-विरोधी के कट्टर समर्थक और उनके अधिकार क्षेत्र के विश्वसनीय सदस्य माने जाते हैं। वे इन लोगों को अपने अनुगामियों, पिछलग्गुओं और भरोसे के लोगों की तरह देखते हैं। उनकी सत्ता का इस समूह में बोलबाला होता है; मतलब कि उन लोगों के माध्यम से प्रभावी तरीके से प्रयोग की जाती है। इसलिए कहा जा सकता है कि जब मसीह-विरोधी सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करते हैं और परमेश्वर के घर को अपने अधिकार क्षेत्र में बदलते हैं, तो उन्हें इसके लिए काफी प्रयास करने होते हैं। वे बहुत-से क्रियाकलाप करते हैं और इसकी काफी कीमत चुकाते हैं, लेकिन इसका परिणाम होता है परमेश्वर से, सत्य से और सत्य का अनुसरण करने वाले सभी भाई-बहनों से शत्रुता। ऐसी सत्ता का मूल्य और महत्व क्या है? यह इस तथ्य में निहित है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर और उसके घर से लड़ने की पूँजी पा जाते हैं, अपने गढ़ स्थापित करते हैं, स्वतंत्र राज्यों का निर्माण करते हैं और उनके पास स्वतंत्र रूप से काफी सत्ता होती है।

II. मसीह-विरोधी परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करते हैं

पहले, हमने मसीह विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानने की पहली अभिव्यक्ति के बारे में सहभागिता की थी : शक्ति पर एकाधिकार बनाना। शक्ति पर एकाधिकार बनाने के संबंध में, हमने मुख्य तौर पर इस विशिष्ट विषयवस्तु पर सहभागिता की थी कि किस प्रकार मसीह विरोधी शक्ति प्राप्त करते हैं, उसे प्राप्त करने के बाद वे कैसे अपने रुतबे को स्थिर करते हैं और उस शक्ति को आगे और समेकित करते हैं और अंत में, उस शक्ति का कैसे उपयोग करते हैं। शक्ति पर एकाधिकार बनाने के अलावा, परमेश्वर के घर को अपना निजी अधिकार क्षेत्र मानने वाले मसीह विरोधियों का दूसरा ठोस अभ्यास है परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने के शाब्दिक अर्थ को समझना आसान होना चाहिए, तो “परिस्थितियाँ” शब्द का क्या मतलब है? जब मसीह विरोधी शक्ति पर अपना एकाधिकार बना लेता है, अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेता है और अपने खुद के कट्टर अनुयायी, घनिष्ट मित्र और प्रभाव क्षेत्र एकत्र कर लेता है, तो क्या वह दूसरों को अपने कार्य में हस्तक्षेप करने की अनुमति दे सकता है? क्या वह दूसरों को उन मामलों और प्रभाव क्षेत्र में शामिल होने या हस्तक्षेप करने की अनुमति दे सकता है जिनकी वह खुद देखरेख करता है? (वह इसकी अनुमति नहीं देता है।) मसीह विरोधी के लिए शक्ति ही उसका जीवन है। उसके प्रभाव क्षेत्र में सब कुछ उसके हुक्म से होना चाहिए। उसके प्रभाव क्षेत्र में चाहे कुछ भी होता रहे, इसमें शामिल लोग और मामले और साथ ही, मामलों का अंतिम परिणाम, सब कुछ उसके द्वारा प्रबंधित और नियंत्रित होना चाहिए। यह सब कुछ उसकी इच्छाओं के अनुरूप होना चाहिए और उसे कोई नुकसान हुए बिना इन्हें उसकी जरूरतें पूरी करनी चाहिए। जैसे, अगर वह किसी विशेष मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है या उसमें जोड़-तोड़ नहीं करता है, और उस मामले को स्वाभाविक रूप से अपने आप आगे बढ़ने देता है, तो हो सकता है कि इससे उसकी बदनामी हो या कोई उसकी रिपोर्ट कर दे और उसे बर्खास्त कर दिया जाए। ऐसा होने पर उसका रुतबा खतरे में पड़ सकता है और फिर उसके पास जो शक्ति है वह छू-मंतर हो सकती है। इसलिए, मसीह विरोधी के लिए कलीसिया में होने वाले छोटे-बड़े सभी तरह के मामलों को खुद ही संभालना जरूरी होता है। इन मामलों के साथ उसकी प्रतिष्ठा और रुतबा ही नहीं उसकी शक्ति भी जुड़ी हुई है। जहाँ तक उसकी शक्ति से संबंध न रखने वाले मामलों की बात है, वह उनकी छानबीन न करने या उन्हें पूरी तरह अनदेखा कर देने का फैसला ले सकता है। खास तौर पर परमेश्वर के घर के कार्य, भाई-बहनों के जीवन प्रवेश, कलीसियाई जीवन और ऐसे ही कई अलग-अलग मामलों के संबंध में, अगर ये चीजें उसके रुतबे और शक्ति को प्रभावित नहीं करतीं और अगर ये ऊपरवाले के साथ उसकी बातचीत से संबंधित नहीं हैं, तो वह उन्हें लेकर न परेशान होता है, न उनकी छानबीन करता है और न ही उनकी परवाह करता है। मिसाल के तौर पर, सुसमाचार दल द्वारा प्राप्त लोगों की मासिक संख्या उसके लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह उसके रुतबे को प्रभावित करती है। अगर हर महीने सूचित की गई संख्या उसके रुतबे को सुनिश्चित कर सकती है, तो वह अपने रुतबे की रक्षा करने के उद्देश्य से उस संख्या को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक प्रयास करेगा, जबकि दूसरे मामले उसके लिए अप्रासंगिक बने रहेंगे। जैसे, मान लो कि वह जिस क्षेत्र की देखरेख करता है उसमें सामान्य परिस्थितियों में एक महीने में एक सौ लोग प्राप्त होने चाहिए। लेकिन, अगर परिवेश इसकी अनुमति नहीं दे रहा हो, उस महीने कुछ खास परिस्थितियाँ हों या अब भी कुछ लोगों की जांच अवधि में होने के कारण प्राप्त लोगों की संख्या एक सौ से कम हो, तो मसीह विरोधी इस मामले में प्रयास करेगा और परेशान हो जाएगा। वह किस चीज को लेकर परेशान है? क्या वह बोझ तले दबा हुआ और परेशान इसलिए महसूस करता है क्योंकि वह देख रहा है कि परमेश्वर का सुसमाचार सुचारू रूप से नहीं फैल रहा है? क्या ऐसा है कि सुसमाचार फैलाने वाले लोगों में बोझ की समझ नहीं है और वे अनमने हैं, और उसे इस बात की चिंता है कि वह उन्हें किस तरह सींचे और इसे हल करे? या उसे यह चिंता है कि सुसमाचार फैलाने के लिए पर्याप्त श्रमशक्ति नहीं है तो इसे कैसे समायोजित किया और बढ़ाया जाना चाहिए? नहीं, वह इन चीजों को लेकर परेशान नहीं है। वह यह सोचकर परेशान है कि वह ऊपरवाले को अपने छलपूर्ण तरीकों के बारे में पता चलने दिए बिना इस संख्या को एक सौ तक कैसे लेकर जाए। यदि असली संख्या सौ के बजाय सिर्फ अस्सी है और वह ईमानदारी से इसकी सूचना देता है, तो हो सकता है कि ऊपरवाला परिस्थिति की छानबीन करने और ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए किसी को भेज दे, तो फिर वह इस संख्या को कैसे सूचित करे ताकि ऊपरवाला कोई प्रतिक्रिया न दे। तो वह अट्ठानवे लोगों की रिपोर्ट देता है। कोई कहता है, “तुम ऐसे हेर फेर नहीं कर सकते; यह धोखाधड़ी है, यह अस्वीकार्य है।” जवाब में वह कहता है, “सब ठीक है। यहाँ के सारे फैसले मैं लेता हूँ; अगर कुछ हुआ, तो मैं उसकी जिम्मेदारी लूँगा।” उसने खासकर यही संख्या क्यों बताई? क्या इसके पीछे कोई और गहरा मतलब है? क्या उसने इस पर बहुत ध्यान से सोच-विचार किया था? हाँ, उसने किया था। असली संख्या सिर्फ अस्सी होने पर अगर उसने एक सौ लोगों की सूचना दी होती, तो यह बहुत बड़ा अंतर हो जाता, जिससे बाद में इस झूठ की सफाई देना मुश्किल हो जाता। लेकिन, जब वह अट्ठानवे की सूचना देता है, तो हालाँकि ऊपरवाला देखता है कि यह संख्या सौ से नीचे है, लेकिन यह एक जायज संख्या लगती है और इसलिए, ऊपरवाले की तरफ से छानबीन की कोई कार्यवाही नहीं की जाती, जिससे उसके रुतबे का सुरक्षित रहना सुनिश्चित हो जाता है। कभी-कभी जब वह एक सौ लोग प्राप्त कर लेता है, तो वह दो सौ की सूचना देने की हिम्मत करता है और अगर ऊपरवाला किसी को छानबीन करने के लिए भेजता है, तो उसके पास इससे निपटने के तरीके हैं। वह दावा करता है कि अतिरिक्त एक सौ फिलहाल जांच कर रहे हैं और उन्हें अगले महीने प्राप्त कर लिया जाएगा। अगर ऊपरवाला इसकी छानबीन करने के लिए किसी को नहीं भेजता है, तो वह अपने योगदानों का दिखावा करने का कोई न कोई तरीका ढूँढ लेता है। कभी-कभी, अगर उसने एक महीने में एक भी व्यक्ति प्राप्त नहीं किया है, तो वह तीस या पचास लोग प्राप्त करने की झूठी सूचना तक दे देता है, और फिर अगले महीने इसकी भरपाई करने के लिए कोई तरीके ढूँढ लेता है। संक्षेप में कहें तो जब सुसमाचार फैलाने के द्वारा प्राप्त लोगों की संख्याएँ सूचित करने की बात आती है, तो मसीह विरोधी उनमें हेर फेर कर सकता है, उनके बारे में झूठ बोल सकता है, धोखाधड़ी कर सकता है और छलपूर्ण तरीकों का उपयोग कर सकता है। कोई संख्या कैसे सूचित की जाती है और क्या संख्या सूचित की जानी है, इसे सीधे मसीह विरोधी निर्देशित करता है। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है?

मसीह विरोधी अपने रुतबे और शक्ति का उपयोग करके निरंतर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कर्तव्य प्रदर्शन में हस्तक्षेप करता और विघ्न डालता है। वह ऐसे हर किसी का दमन कर देता है जो सिद्धांतों के आधार कर कार्य करता है और अपना कर्तव्य करने में प्रभावकारी है। इस तरह व्यवहार करने के पीछे उसका क्या उद्देश्य है? परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना; वह सारा नियंत्रण अपने हाथों में रखता है और अपने अधीन लोगों को दबाता है और ऊपरवाले की आँखों में धूल झोंकता है। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने के पीछे उसका क्या लक्ष्य है? उसका लक्ष्य सत्य को प्रकट होने से रोकना, लोगों को सत्य जानने से रोकना, ऊपरवाले को धोखा देना, नीचे वह जो कार्य कर रहा है उसकी असली परिस्थिति और उसने कोई असल कार्य किया या नहीं और अपना कार्य कैसे किया इसे छिपाना है। परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने में उसका लक्ष्य तथ्यों पर पर्दा डालना, सत्य को ढकना और अपने बुरे इरादों को छिपाना है और साथ ही, उसका लक्ष्य अपने बुरे कर्मों, उसके अत्यधिक उपेक्षापूर्ण कार्यकलापों और इस बारे में सत्य को भी छिपाना है कि वह किस तरह दूसरी चीजों के अलावा कोई असली कार्य न तो करता है और न ही कर सकता है। जैसे, जब परमेश्वर के घर को कुछ पैसों की जरूरत पड़ती है और उससे पूछा जाता है कि उसकी कलीसिया के पास कितना चढ़ावा है, तो मसीह विरोधी पहले पूछता है कि परमेश्वर के घर को कितने पैसों की जरूरत है। अगर तुम कहते हो कि तुम्हें कुछ हजार युआन चाहिए, तो वह दावा करता है कि उसके पास कुछ सौ युआन ही हैं; अगर तुम कहते हो कि तुम्हें लाखों की जरूरत है, तो वह कहता है कि उसके पास बस कुछ हजार ही हैं। वास्तव में, कलीसिया में उसके पास चढ़ावे के लाखों युआन हैं और वह उन्हें अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता। क्या वह अपने मन में बुरे इरादे नहीं रख रहा है? वह क्या करना चाहता है? वह अपने खुद के उपयोग के लिए इन चढ़ावों पर कब्जा कर लेना चाहता है। क्या इसे परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना कह सकते हैं? (हाँ।) मसीह विरोधी परिस्थितियों में इस हद तक जोड़-तोड़ करता है कि वह चढ़ावों को भी अपने हाथ से नहीं जाने देता। अगर तुम उससे पूछते हो कि क्या उसकी कलीसिया में कोई लेखन, संगीत या वीडियो उत्पादन में कुशल है, तो हो सकता वह कहे कि “हमारे पास लेखन में कुशल एक व्यक्ति हैं, वे अठहत्तर साल के हैं और पहले पत्रकार थे, अब उन्हें पेट की गंभीर बीमारी है।” सच तो यह है कि यह व्यक्ति सिर्फ तीस-पैंतीस साल का युवा है और उसे पेट की कोई गंभीर बीमारी नहीं है। मसीह विरोधी अपनी पकड़ ढीली क्यों नहीं करता है? वह झूठी जानकारी क्यों देता है? वह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना चाहता है। उसका मानना है कि ऐसी प्रतिभा को अपने हाथ से जाने देने से उसके राज पर प्रभाव पड़ेगा; वह इन प्रतिभाशाली लोगों को अपने पास बनाए भी रखना चाहता है। क्या ये प्रतिभाशाली लोग वाकई उसके हैं? (नहीं।) तो फिर वह उन्हें अपने हाथ से जाने क्यों नहीं देता है? जब परमेश्वर के घर को उनकी जरूरत है, तो फिर वह इन कुशल लोगों को प्रदान क्यों नहीं करता है और जानकारी में हेर फेर करने की हद तक क्यों पहुँच जाता है? वह अपना रुतबा सुरक्षित रखने के लिए लोगों को गुमराह करना चाहता है—वह वाकई परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर रहा है। वह न तो यह पूछता है कि क्या इसमें शामिल पक्ष ये कर्तव्य निभाने के इच्छुक हैं और न ही वह परमेश्वर के घर को सच्चाई से इन लोगों की परिस्थितियाँ प्रस्तुत करता है। इसके बजाय, वह उन्हें अपने उपयोग के लिए रख लेता है और अगर वह उनका उपयोग न भी करे, तो भी वह उन्हें परमेश्वर के घर को प्रदान नहीं करता है। मिसाल के तौर पर, अगर परमेश्वर के घर को कलीसिया से वीडियो प्रोडूसर की जरूरत है, तो मसीह विरोधी यह देखकर सोचता है कि “वीडियो बनाने में कुशल व्यक्ति प्रदान करना है—क्या मैं इतना अच्छा अवसर यूँ ही छोड़ सकता हूँ? हर इंसान सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचता है : मेरी बेटी, बेटा और कुछ रिश्तेदार वीडियो प्रोडक्शन के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं, इसलिए मैं उन्हें प्रदान कर दूँगा, चाहे वे परमेश्वर के घर की जरूरतें पूरी करते हों या न करते हों।” जब उसे लोग प्रदान करने जैसा कोई अच्छा अवसर मिलता है, तो वह अपने रिश्तेदारों और मित्रों को प्रधानता देता है और बाहरवालों के लिए कुछ नहीं छोड़ता। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है?

ऊपर बताए गए मिसालों के आधार पर, मसीह विरोधी द्वारा परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का ठीक-ठीक क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मसीह विरोधी दृढ़तापूर्वक संपूर्ण प्रभुता दिखाकर सभी व्यक्तियों और चीजों को नियंत्रित करता है और उनमें जोड़-तोड़ करता है? सबकुछ उसके हाथ में है और हर चीज में उसी का फैसला अंतिम होता है; सिर्फ वही बोर्ड को नियंत्रित करता है और पर्दे के पीछे से निर्देश देता है और जोड़-तोड़ करता है। यही परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना है। जब ऊपरवाला हालात को समझने के लिए उसकी कलीसिया में किसी को भेजता है और वह व्यक्ति कुछ लोगों से बात करना और यह देखना चाहता है कि उसके भाई-बहनों का जीवन प्रवेश और उनके कर्तव्यों का प्रदर्शन कैसा चल रहा है, और यह पता करना चाहता है कि क्या परमेश्वर के वचन की किताबों और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग जैसी सामग्रियाँ परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों में बाँट दी गई हैं, तो मसीह विरोधी कहता है, “कोई बात नहीं, मैं तुम्हें एक भाई और एक बहन के घर ले जाऊँगा।” ये दो लोग कौन हैं? क्या ये दोनों लोग मसीह विरोधी के अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं हैं? (हाँ, हैं।) इन दोनों में से एक उसकी छोटी बहन है और दूसरा व्यक्ति उसकी पत्नी का छोटा भाई है। जब वह ऊपरवाले की तरफ से भेजे गए व्यक्ति को इन दोनों घरों में लेकर जाता है, तो ये दोनों लोग कहते हैं, “हमारा कलीसियाई जीवन बहुत अच्छा है और हमारे पास सभी प्रकार के धर्मोपदेश और सहभागिता और साक्ष्य के वीडियो हैं। हमारी कलीसिया के अगुआ कलीसिया के कार्य के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए हैं और अभी तक घर नहीं लौटे हैं।” चाहे कोई भी उसकी कलीसिया जाए, असली हालात के बारे में उसे जरा सी भी भनक नहीं लग पाती है। मसीह विरोधी कलीसिया में असली हालात के बारे में सबकुछ छिपा देता है, जैसे, जो समस्याएँ पैदा हुई हैं, वे बुरे लोग जो गड़बड़ियाँ और विघ्न कर रहे हैं, कौन अपने कर्तव्य अनमने ढंग से कर रहा है, किन कार्यों में भूल हुई है, वगैरह। वहाँ जाने पर तुम्हें जो दृश्य नजर आते हैं वे सिर्फ वही होते हैं जो देखने में सुखद हैं—यह पूरी तरह से झूठा दिखावा है। यहाँ सिर्फ एक बात पर ध्यान देना चाहिए : अगर ऊपरवाले की तरफ से भेजा गया व्यक्ति यह पूछता है कि क्या कलीसिया के चढ़ावे को रखने के लिए कोई उचित जगह है और क्या कुछ चढ़ावों को वहाँ से ले जाने की जरूरत है, तो मसीह विरोधी जल्दी से कहता है कि कलीसिया का चढ़ावा ज्यादा नहीं है। सिर्फ चढ़ावों से जुड़े हालात की बात छोड़कर वह दूसरे सभी कार्यों के संबंध में सकारात्मक तरीके से बात करता है—इससे पहले कि व्यक्ति कुछ कह पाए वह बातचीत ही बंद कर देता है। मसीह विरोधी कलीसिया के उन कर्मियों को नियंत्रित करता है जो सभी तरह के कर्तव्य पूरे करने के लिए उपयुक्त हैं और ऐसे कुछ लोगों को प्रदान कर देता है जिन्हें वह पसंद करता है या जो परमेश्वर के घर में कर्तव्य करने की शर्तों को पूरा नहीं करते हैं, खास तौर पर ऐसे लोगों को प्रदान करता है जिनमें बुरी मानवता है और जिनमें कोई बुरी आत्मा कार्य कर रही है या उन दूसरे लोगों को प्रदान कर देता है जिनमें बुनियादी तौर पर आध्यात्मिक समझ नहीं है, जिनमें घिनौनी मानवता है, जो अनमने ढंग से अपने कर्तव्य करते हैं, परमेश्वर में उनकी आस्था की बुनियाद नहीं है और जो बिल्कुल अविश्वासियों लोगों जैसे हैं। अनमने तरीके से अपने कर्तव्य पूरे करने के अलावा, ये लोग बाधाएँ और गड़बड़िया भी पैदा करते हैं और अनियंत्रित व्यवहार करते हैं और इनमें से कुछ लोग कष्ट नहीं झेल पाने के कारण परमेश्वर का घर छोड़ देना चाहते हैं। कुछ लोग तो अफवाहें भी फैलाते हैं और धारणाओं का प्रचार करते हैं और दूसरे लोग अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा नहीं करते हैं और टेलीविजन ड्रामा या दूसरे बकवास वीडियो देखकर अपने दिन बिताते हैं। और फिर अंत में क्या होता है? इनमें से कुछ लोगों को निकाल दिया जाता है। निकाल दिए जाने वालों में से पचानवे प्रतिशत लोगों में बुरी मानवता होती है। उनकी मानवता कितनी बुरी है? अत्यंत बुरी है—उनमें मानवता की कमी है और कुछ तो परमेश्वर में बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं। ये लोग कहाँ से आए? क्या ये सभी कलीसिया की तरफ से प्रदान नहीं किए गए थे? चूँकि ये कलीसिया द्वारा प्रदान किए गए थे, इसलिए जिन लोगों ने इन्हें प्रदान किया था उनमें जरूर कोई समस्या है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इनमें से कुछ लोग मसीह विरोधी हो सकते हैं और प्रदान किए गए लोग मसीह विरोधियों के रिश्तेदार, यार-दोस्त या कट्टर अनुयायी हो सकते हैं। क्या यही बात नहीं है? क्या जिस व्यक्ति में वाकई मानवता है और थोड़ा-सा जमीर है, वह प्रतिभाशाली व्यक्ति प्रदान करने के जरूरी मुद्दे को ध्यान से संभाल सकता है? क्या वह थोड़ा-सा जिम्मेदार हो सकता है? क्या वह अपने कुछ स्वार्थी इरादों को दूर कर सकता है? जिस व्यक्ति में मानवता और जमीर है वह बिल्कुल ऐसा कर सकता है और सिर्फ एक प्रकार का व्यक्ति ही ऐसा नहीं कर सकता और वह है मसीह विरोधी। वे सारी अच्छी चीजों को अपने लिए जमा करना चाहते हैं और ऐसी हर चीज के साथ सहयोग करने को अस्वीकार और इनकार कर देते हैं जो उनके लिए फायदेमंद नहीं है—मसीह विरोधी ऐसे होते हैं।

कलीसिया में पूरा नियंत्रण रखने और हर मामले में सिर्फ अपनी चलाने की हमेशा चाह रखने के अलावा भी मसीह विरोधी के परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का एक और इससे भी ज्यादा घिनौना पहलू है। क्या अपने कट्टर अनुयायियों के साथ साठ-गांठ करने वाले मसीह विरोधी परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के आगे समर्पण कर सकते हैं, अपने कर्तव्य सही तरीके से कर सकते हैं, परमेश्वर के घर के कार्यों को संभाल सकते हैं और अपनी जिम्मेदारियाँ और दायित्व निभा सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते।) इसलिए मैंने कहा कि वे आपस में साठ-गांठ कर रहे हैं। यह कह देने के बाद कि वे आपस में साठ-गांठ करते हैं, यह सुस्पष्ट हो जाता है कि वे सब साथ मिलकर जो भी कहते हैं और करते हैं उसमें बेईमान लेन-देन शामिल है। ऊपर से ये लोग मिलनसार, अपने से बड़ों का आदर करने वाले और सुव्यवस्थित प्रतीत होते हैं और एक दूसरे के प्रति अत्यंत प्रेममय, शालीन और आदरपूर्ण व्यवहार करने वाले प्रतीत होते हैं, और साथ ही वे विनम्र और चरित्रवान भी लगते हैं। लेकिन वास्तव में, यह सब खोखला, दोगला और पाखंडपूर्ण है। वे इतने शिष्ट कैसे हो सकते हैं और एक दूसरे के साथ अत्यंत आदर और विनम्रता से व्यवहार कैसे कर सकते हैं? इसका एक कारण है। आपस में साठ-गांठ करने के पीछे उनका उद्देश्य अपनी खुद की कमजोरियों की भरपाई करने के लिए एक दूसरे से सीखना नहीं है या परमेश्वर की इच्छा का पालन करने और अच्छी तरह से कलीसिया का काम करने के लिए सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की प्रक्रिया में एक दूसरे को सहारा देना नहीं है। बल्कि, यह आपसी शोषण, निर्भरता और सहायता के लिए है। वे आपस में साठ-गांठ इसलिए करते हैं क्योंकि ज्यादा लोगों के होने का मतलब है ज्यादा ताकत होना, और ज्यादा ताकत से चीजों से निपटना आसान हो जाता है और निजी मामलों को संभालना सुगम हो जाता है। इसलिए, जब वे एक साथ होते हैं, तो वे बहुत स्नेहशील दिखते हैं, मानो वे सब एक घनिष्ठ परिवार के सदस्य हों। वे अपने से बड़ों को विनम्रता से संबोधित करते हैं, हमउम्र लोगों को “बहन” या “भाई” बुलाते हैं और इन शब्दों को स्नेह और पूरी सामाजिक परंपरा के अनुसार कहते हैं। अगर किसी को हालात के तथ्यों की जानकारी न हो, तो हो सकता है कि वह उनके प्रेम, आपसी सहयोग और एक दूसरे पर भरोसा करने के लिए उनकी सराहना भी कर दे; वे मुश्किल घड़ियों में मदद का हाथ बढ़ाने के लिए इच्छुक प्रतीत होते हैं और वे बहुत खुश और संतुष्ट होकर कहते हैं, “हम एक परिवार हैं; हम एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं।” ऐसा कहते समय वे एक दूसरे को अर्थपूर्ण नजरों से देखकर अपना प्रेम साझा करते हैं जिससे इस बात की और पुष्टि हो जाती है कि वे वाकई एक परिवार और सुगठित समूह हैं। तो, आखिर आपस में साठ-गांठ करते समय वे क्या करते हैं? मिसाल के तौर पर, उनमें से एक बड़ी बहन किसी कंपनी में जनरल मैनेजर है और उसके बहुत बढ़िया सामाजिक संबंध और कई लोगों से अच्छी जान-पहचान है। उसने मसीह विरोधी के अधिकार क्षेत्र में लोगों के लिए बहुत कुछ किया है और ज्यादातर लोगों ने कभी न कभी उससे मदद ली है, इसलिए वे उसे “बड़ी बहन” बुलाते हैं। जब भी किसी के घर कुछ चल रहा होता है, जैसे किसी का बेटा यूनिवर्सिटी जाने वाला होता है या किसी की बेटी नौकरी की तलाश में होती है, तो वे उससे सलाह जरूर लेते हैं और समस्याएँ सुलझाने के लिए उससे मदद मांगते हैं। अगर कोई अस्पताल में भर्ती है और कलीसिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो अस्पताल में कार्य करता है और आयात की गई दवाएँ प्राप्त करने में उसकी मदद कर सकता है, तो मसीह विरोधी जल्दी से इस व्यक्ति को एक घनिष्ठ विश्वासपात्र और परिवार का हिस्सा मान लेता है। वे ऐसे कार्य संभालने के लिए आपस में साठ-गांठ करते हैं, एक दूसरे को फायदा पहुंचाते हैं और ऐसे हालात पैदा करते हैं जिनमें दोनों पक्षों को फायदा ही फायदा होता है। इसलिए, जब वे एक साथ होते हैं, तो उन्हें देखकर लगता है जैसे उनके बीच अच्छे संबंध और बढ़िया तालमेल है और वे अत्यंत खुश हैं और कभी लड़ते-झगड़ते नहीं हैं। लेकिन, इस तालमेल के पीछे हर व्यक्ति चुपके से अपने मन में अप्रत्यक्ष मंशाएँ पाले रहता है और यह सोचता रहता है कि किस तरह से दूसरे पक्ष का फायदा उठाया जाए और दूसरों का उपयोग किया जाए, साथ में वह यह भी सोचता है कि एक दूसरे के लिए फायदे तैयार करके और दूसरे लोगों की जरूरतें पूरी करके वह किस तरह से दूसरों की मदद कर सकता है। जब मसीह विरोधी अपना अधिकार क्षेत्र स्थापित कर लेता है और अपने कट्टर अनुयायी बना लेता है, तो उसके पास उसकी टीम और उसका “परिवार” होता है जो दैनिक जीवन की सभी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाने में उसकी मदद करते हैं। मिसाल के तौर पर, नौकरी ढूँढना, कॉलेज जाना, तरक्की हासिल करना, किसी गंभीर बीमारी से निपटना, घर बदलना या यहाँ तक कि उसे हिरासत में लिए जाने के बाद जेल से छुड़वाने के लिए किसी को मध्यस्थ के रूप में पैसे देने के लिए ढूँढना—इन सभी मामलों को संभालने के लिए कोई न कोई होता है। मसीह विरोधी के दृष्टिकोण से देखें तो, क्या ये “परिवार के सदस्य” फायदेमंद नहीं हैं? क्या उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है? क्या वे एक दूसरे पर निर्भर रहकर एक दूसरे की मदद नहीं कर सकते हैं? (हाँ, कर सकते हैं।) इसलिए, ऐसे अधिकार क्षेत्र में जो लोग दिखाई देते हैं, वे परमेश्वर के वचनों को अपने सिद्धांत मानकर बातचीत करने वाले या अपने जमीर के अनुसार कार्य करने, परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन बिताने, परमेश्वर की पूजा करने, एक दूसरे से सामान्य ढंग से बातचीत करने, पूरी ईमानदारी से सहभागिता करने, अपना दिल खोलकर अपनी खुद को पूरी तरह उजागर करने, अपने खुद के भ्रष्ट स्वभाव के बारे में सहभागिता करने और उसके बारे में जानने वाले या अपनी कमियों की भरपाई करने के लिए एक दूसरे से सीखने वाले लोग नहीं हैं—ऐसा कुछ भी नहीं है। यह गुट, यह अधिकार क्षेत्र, मसीह विरोधी के गिरोह का अधिकार क्षेत्र है, जहाँ सत्य के पास कोई शक्ति नहीं है, जहाँ पवित्र आत्मा कार्य नहीं करता और जहाँ लोगों के दिलों में परमेश्वर के वचन नहीं हैं। इसके बजाय, यहाँ मसीह विरोधी का गिरोह संतोषपूर्वक, आराम से और मजे लेते हुए रहता है और इसे अपना ही घर समझता है। वास्तव में, यह न तो परमेश्वर का घर है और न ही कलीसिया है; यह समाज है, मसीह विरोधी का गिरोह है।

मसीह विरोधी कलीसिया को अपना खुद का अधिकार क्षेत्र बनाकर उसे एक सामाजिक समूह और अपने गिरोह में बदल देते हैं। वे विनाशकारी और घिनौने कृत्यों में शामिल होते हैं और पूरी तरह से अविश्वासियों की कार्यनीतियों और तरीकों का उपयोग करके बात या कार्य करते हैं। इनमें से हर व्यक्ति चिकनी-चुपड़ी, ओछी बातें करने वाला, गुंडागर्दी करने वाला, कपटी और दुष्ट है और सत्य को स्वीकार करने से इनकार करता है। ऊपर से, ये सुसंस्कृत, सभ्य, विनम्र, अनुशासित और यहाँ तक कि काबिलियत और चारित्रिक दृढ़ता वाले शिष्ट व्यक्ति का भेष धरे रहते हैं। लेकिन, सच तो यह है कि इनमें से हर व्यक्ति कपटी, चालाक, नीच और दुष्ट चरित्र का है। वे आपस में साठ-गांठ करते हैं, संबंध स्थापित करते हैं, प्रभावों के लिए मुकाबला करते हैं, फिजूलखर्ची पर ध्यान देते हैं और समाज में सामुदायिक और कार्मिक रिश्तों पर बल देते हैं। वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि समाज में किसका ज्यादा बोलबाला है, किसके पास बड़ा रुतबा और ज्यादा प्रतिष्ठा है और साथ ही, रणनीतियाँ बनाने में कौन सबसे अच्छा है। उनकी बातों और व्यवहार में तुम्हें सच्चा विश्वास नहीं दिखेगा; और उनके दिलों में परमेश्वर के वचनों और सत्य के लिए थोड़ी-सी जगह भी तुम्हें दिखाई नहीं पड़ेगी। उनका विश्वास सिर्फ एक खेल और धोखे से ज्यादा और कुछ नहीं है। इन दुष्ट किरदारों ने कलीसिया को एक सामाजिक समूह में बदल दिया है, जो दुष्ट किरदारों के लिए आपस में साठ-गांठ करने का अधिकार क्षेत्र है, जहाँ वे हमेशा अपने आडंबरपूर्ण शब्दों को लगातार व्यक्त करते हुए कहते हैं : “हमें परमेश्वर में विश्वास है, हम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य पूरे करते हैं, फलां तरीके से परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, फलां तरीके से अपने भाई-बहनों के कल्याण में योगदान करते हैं, फलां तरीके से उनकी मदद करते हैं और उन्हें सहारा देते हैं और फलां-फलां तरीके से एक दूसरे से प्रेम करते हैं।” लोगों को गुमराह करने और जाल में फांसने वाले दुष्ट साधनों और अलग-अलग नीच तरीकों से वे भाई-बहनों का नुकसान करते हैं, और फिर भी यह मानते हैं कि वे अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं, भाई-बहनों का सहयोग कर रहे हैं, परमेश्वर को महिमान्वित कर रहे हैं और उसके साक्षी बन रहे हैं। उन्हें इस बात की जरा भी समझ नहीं है कि इन कार्यों और व्यवहार के पीछे मसीह विरोधियों के परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने का सार छिपा हुआ है। मसीह विरोधी परमेश्वर का अनुसरण करने वालों को अपनी शक्ति के जाल में फंसा लेते हैं और कलीसिया को अपने खुद के अधिकार क्षेत्र में, एक सामाजिक समूह में, ऐसे लोगों के संगठन में बदल देते हैं जो शैतान की शक्ति के अधीन हैं। क्या ऐसे संगठन को अब भी कलीसिया माना जा सकता है? बिल्कुल नहीं। क्या मसीह विरोधियों का व्यवहार सरासर घिनौना नहीं है? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा मसीह विरोधी का गिरोह देखा है? जब तुम लोग उनके बीच होते हो, तो तुम्हें कैसा लगता है? बाहर से, वे लोग विनम्र और मिलनसार प्रतीत होते हैं—लेकिन जब तुम उनके साथ सत्य और परमेश्वर की इच्छा की सहभागिता करते हो, तो वे अपनी बाहरी विनम्रता और मिलनसारिता के विपरीत ऐसा रवैया दिखाते हैं जो खास तौर पर घृणा और अरुचि का होता है। जब तुम उनके साथ सत्य की सहभागिता करते हो, तो उन्हें महसूस होता है कि तुम बाहरवाले हो और जब तुम कलीसिया के कार्य की सहभागिता करते हो, तो उन्हें और ज्यादा ऐसा महसूस होने लगता है; फिर जब तुम उन सत्य सिद्धांतों के बारे में सहभागिता करते हो जिनका कर्तव्य पूरा करते समय अभ्यास करना चाहिए, तो वे कुंठित और उदासीन हो जाते हैं और यही वह समय है जब वे अपनी राक्षसी समानता प्रकट करते हैं, वे अपना सिर खुजाते हैं, जम्हाई लेते हैं और उनकी आँखों से पानी आने लगता है। क्या यह असामान्य नहीं है? जैसे ही तुम सत्य पर सहभागिता करते हो, उनकी राक्षसी समानता क्यों बाहर आ जाती है? क्या उनमें से हरेक के दिल में बहुत प्रेम नहीं है? जैसे ही तुम सत्य पर सहभागिता करना शुरू करते हो, वे दिलचस्पी कैसे खो सकते हैं? क्या इस तरह से वे उजागर नहीं हो जाते हैं? क्या उनमें बाहरी कार्यों को पूरा करने के प्रति बहुत उत्साह और वफादारी नहीं है? और अगर वे भरोसेमंद हैं, तो क्या उनमें वास्तविकता नहीं है? अगर उनमें वास्तविकता है, तो लोगों को सत्य की सहभागिता करते हुए सुनकर उन्हें खुश होना चाहिए, उन्हें इसके लिए तरसना चाहिए। तो उनकी स्थिति हमेशा असामान्य क्यों बनी रहती है, यहाँ तक कि बुरी आत्माओं के वश में भी हो जाती है? इससे पता चलता है कि उनकी आम सामंजस्यपूर्ण बातचीत, उनकी विनम्रता और मिलनसारिता सरासर झूठी हैं। परमेश्वर के न्याय के वचन और उसके द्वारा व्यक्त किए गए सत्य ही उन्हें पूरी तरह से उजागर करते हैं। फिर उनका गुस्सा उबलने लगता है और उनकी स्थिति आम तौर पर जैसी होती है उससे अलग हो जाती है और वे बुराई करने लगते हैं और विघ्न डालते हैं। फिर परमेश्वर उन्हें शैतान के हवाले कर देता है और उनके बारे में परवाह करना बंद कर देता है। अपनी अनगिनत धूर्तता में उन्होंने अपने असली रंग दिखा दिए हैं।

मसीह विरोधियों का परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना वाकई एक सच्चाई है। मामूली मामलों में, एक व्यक्ति कुछ लोगों को बहकाता है; जबकि गंभीर मामलों में, एक पूरा समूह कुछ लोगों को बहकाता है और इसके अलावा हर मुद्दे में हेरा फेरी करता है। एक व्यक्ति एक सीमित संख्या में ही चीजों और परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर सकता है; इसलिए, अपनी शक्ति को बढ़ाने और अपने रुतबे को सुरक्षित करने के लिए मसीह विरोधियों के लिए लोगों की एक टीम को प्रशिक्षित करना जरूरी है। उनके लिए लोगों के एक समूह को आकर्षित करना और उन्हें नियंत्रित करना जरूरी होता है ताकि वे उन्हें सहयोग करें, उनके रुतबे और शक्ति को सुरक्षित करें और परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने में उनकी मदद करें। जैसे ही मसीह विरोधी अपना गिरोह स्थापित कर लेते हैं, उनके प्रभाव का दायरा बड़ा होने लगता है जिससे वे और चीजों में जोड़-तोड़ करने में सक्षम हो जाते हैं और उनकी भागीदारी व्यापक हो जाती है। फलस्वरूप, उनके शिकारों की संख्या भी बढ़ने लगती है। अगर तुम्हारा सामना किसी ऐसे मसीह विरोधी के गिरोह से हो जाए जो परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने की क्षमता रखता है, तो तुम लोगों को क्या करना चाहिए? क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा गिरोह देखा है? आम तौर पर, इस समूह में चार या पाँच मुख्य सदस्य होते हैं या फिर दस से ज्यादा भी हो सकते हैं। हरेक व्यक्ति अलग-अलग कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है। मिसाल के तौर पर, यहाँ कुछ लोग हैं जो कर्मचारियों के समायोजनों में माहिर हैं, जो आर्थिक मामलों को संभालते हैं, जो ऊपरवाले से बातचीत करते हैं और कुछ वे होते हैं जो भले कुछ भी हो जाए मसीह विरोधी के लिए जल्दी से चीजों पर पर्दा डाल देते हैं; और फिर ऐसे लोग भी हैं जो पर्दे के पीछे से सलाह देते हैं, जो दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए बुरी चीजों की योजना बनाते हैं; कुछ लोग अफवाह फैलाने में माहिर हैं, कुछ फूट डालते हैं, कुछ बुरे कार्यों को अंजाम देने में कुकर्मियों की मदद करते हैं, कुछ जानकारी एकत्र करते हैं और यहाँ तक कि ऐसे लोग भी है जो फायदे हासिल करते हैं और बीमारियों के इलाज मुहैया कराते हैं। संक्षेप में, इस जत्थे में हर तरह की भूमिका निभाने के लिए कोई न कोई जरूर मौजूद है। मसीह विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करते हैं जो प्रभावशाली नहीं हैं, निष्कपट और सादे हैं और जिनमें समाज के मामलों को संभालने की क्षमता नहीं है। इसके बजाय, वे खास तौर पर ऐसे विश्वासियों को निशाना बनाते हैं जिनके पास अधिकारी की हैसियत से या समाज में बड़ा व्यवसायी होने के कारण रुतबा, प्रतिष्ठा, प्रभाव और अनुभव होता है—ऐसे लोग जिन्होंने दुनिया देखी है, जो कार्यों को करवाने की क्षमता रखते हैं और उनके लिए अच्छी चीजें हासिल कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर एक कार की कीमत 400,000 युआन है, तो एक काबिल व्यक्ति जो बाजार को अच्छी तरह जानता है, वह मसीह विरोधी के लिए आधी कीमत पर एक पुरानी कार खरीद सकता है, जो नई कार जैसी होगी। अगर ऐसा व्यक्ति मसीह विरोधी के पास आए, तो क्या मसीह विरोधी उसे शामिल कर लेगा? (हाँ।) मसीह विरोधी ऐसे लोगों को शामिल करते हैं। उनका क्या उद्देश्य होता है? वे परमेश्वर के घर को, परमेश्वर के कार्य की जगह को सामाजिक समूह में बदलने का लक्ष्य रखते हैं ताकि लोगों के बीच परमेश्वर के कार्य और सत्य के प्रवाह में रुकावट आए—वे अपने खुद के लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं। अगर कोई आम विश्वासी व्यक्ति परमेश्वर में दिल और आत्मा से विश्वास करती है, अपने परिवार और करियर को त्याग सकती है, निष्कपट और सीधी-सादी है और उसमें चीजों को संभालने की क्षमता की कमी है, तो क्या मसीह विरोधी उसे चाहेगा? (नहीं।) अगर उसका पति और बेटा दोनों व्यवसाय से अच्छा पैसा कमा सकते हैं, समाज में उनका बोलबाला है और कोई उन्हें डराने-धमकाने की हिम्मत नहीं करता है, तो क्या मसीह विरोधी की नजर में ऐसी बुजुर्ग महिला का कोई मूल्य है? हो सकता है कि मसीह विरोधी की नजर में इस महिला में अन्तर्निहित मूल्य की कमी हो, लेकिन उसके परिवार के संबंध में वह अत्यंत मूल्यवान है। उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं है, उसका घर भाई-बहनों की मेजबानी कर सकता है और अगर कुछ समस्या हो जाती है, तो उससे निपटने में वह अपने परिवार की मदद ले सकती है। मसीह विरोधी के लिए ऐसा व्यक्ति मूल्यवान होता है। मसीह विरोधी ऐसे व्यक्ति को आकर्षित और गुमराह करने के लिए सारे संभव प्रयास करता है और वे उन्हें अपने पक्ष में खड़ा करते हैं और उनका उपयोग करते हैं। मसीह विरोधी अपने लिए उपयोगी लोगों का सटीकता से मूल्यांकन कर लेता है। वह ऐसे लोगों की न परवाह और न ही कद्र करता है जिनकी आस्था सच्ची है, जो ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं या चरित्रवान हैं और अपने कर्तव्य के प्रदर्शन में भरोसेमंद हैं और चरवाही किए और सींचे जाने के बाद प्रगति कर सकते हैं और सच्चाई से कीमत चुका सकते हैं। तुम जितने ज्यादा सच्चे होगे और तुममें जितना ज्यादा जमीर और समझ होगी, वह उतना ही ज्यादा तुमसे घृणा करेगा। अगर तुम ईमानदारी और सीधे तरीके से बात करोगे, तो वह तुमसे चिढ़ेगा और घृणा करेगा। तुम्हें देखते ही वह तुमसे दूर हट जाएगा। अगर तुम उससे बात करोगे, तो वह दिखावे के लिए तुम्हारा हाल-चाल पूछ लेगा, लेकिन सच्चे दिल से सिर्फ तभी बात करेगा अगर तुम उसके लिए मूल्यवान हो। वह ऐसे लोगों को पसंद करता है जो उसके लिए मूल्यवान हैं, जो उसकी शक्ति और रुतबे के लिए फायदेमंद हैं। अगर ऐसा कोई है जिसका वह उपयोग कर सकता है और जो कार्य पूरे करने में उसकी मदद कर सकता है, सच्चे तथ्यों को छिपा सकता है, गलत कार्य को करने के उपयुक्त बहाने ढूँढकर उन्हें कर सकता है और किसी को पता चलने दिए बिना, किसी के द्वारा उजागर किए गए या पहचाने गए बिना भाई-बहनों को गुमराह कर सकता है, तो वह व्यक्ति उसके शोषण और भर्ती का लक्ष्य बन जाता है। अगर कोई व्यक्ति, चाहे वह किसी से भी बात कर रहा हो, हमेशा चापलूसी वाले शब्द बोलता है, शक्तिशाली लोगों के गुण गाता है, रुतबे वाले लोगों का अनुसरण करता है और किसी के प्रति कोई विवेक नहीं दिखाता है, तो क्या मसीह विरोधी उसका उपयोग करता है? मसीह विरोधी के लिए ऐसा व्यक्ति मूल्यवान है, लेकिन वह ऐसे व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय सावधानी भी बरतता है। वह चापलूसी करने वालों पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करता है और वह उन्हें कुछ चीजों के बारे में जानने नहीं देता है। बैठकों में जहाँ पदानुक्रम के मायने हैं, वहाँ वह ऐसे लोगों को महत्वपूर्ण सभाओं से बाहर रखता है। कम महत्वपूर्ण सभाएँ या आम सभाएँ वे सभाएँ हैं जहाँ ऐसे ढुलमुल लोग भाग ले सकते हैं। इसका यह कारण है कि अगर कोई और अगुआ उभरकर सामने आया, तो ये ढुलमुल लोग किसी भी समय उसे धोखा दे सकते हैं और उसे उजागर कर सकते हैं। मसीह विरोधी ऐसे लोगों के साथ चालाकी से व्यवहार करता है और हालात के अनुसार उनका उपयोग करता है। इसलिए, जब परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने की बात आती है, तो मसीह विरोधी बहुत सावधानी बरतता है। वह ऐसे मामलों को व्यवस्थित और सोचे-समझे तरीके से संभालता है और बड़े ध्यान से विचार करता है कि उसे किस तरीके से कार्य करना है और किन लोगों का फायदा उठाना है। वह अपने मन में करीबी मित्रों और आम मित्रों के बीच फर्क करता है।

जब मसीह विरोधी किसी अजनबी से मिलता है, जैसे कोई ऊंचे स्तर का अगुआ या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे वह अच्छी तरह से नहीं जानता है, तो पहले वह उस व्यक्ति के चरित्र की छानबीन करता है कि क्या उसके कुछ खास काम या शौक हैं, क्या उसमें सच्ची आस्था है, वह कितने सालों से परमेश्वर में विश्वास कर रहा है, क्या उसके पास सत्य वास्तविकता है या वह इन्हें पहचानता है और क्या वह जीवन प्रवेश के लिए कोई बोझ उठाता है। वह हर पहलू का मूल्यांकन और अवलोकन करता है, फिर वह अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके उनसे उनकी बातें उगलवाता है और उन्हें परखता है। अगर वह देखता है कि कोई व्यक्ति भ्रमित है, तो वह अपनी चौकसी कम करके उसे अनदेखा कर देता है। हालाँकि, अगर कोई व्यक्ति चालाक प्रतीत होता है और जिसे समझना आसान नहीं है, तो उसे लगता है कि उसे सावधान रहना पड़ेगा। मसीह विरोधी का परिस्थितियों को नियंत्रित करने का मतलब सारी चीजों का नियंत्रण अपने हाथ में लेना है और यह चाहना है कि सभी चीजों में उसी का फैसला अंतिम माना जाए, जिसमें सभी प्रकार के लोगों को अपने नियंत्रण में रखना भी शामिल है। उसके लिए परमेश्वर के घर के विनियम रद्दी कागज के टुकड़े की तरह बेमतलब हो जाते हैं, और परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों और स्वभाव का कोई अस्तित्व नहीं रहता, मानो वे बस हवा हों। उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छाएँ लोगों को नियंत्रित करने और उन्हें अपनी बातें सुनाने तक ही सीमित नहीं रहतीं; वह हर व्यक्ति द्वारा अनुभव की गई हर घटना को और उन मामलों को भी नियंत्रित करने की हद तक पहुँच जाता है जो ठीक उसकी नाक के नीचे, उसके प्रभाव क्षेत्र के अंदर और उसके बाहर घटती हैं। इस नियंत्रण का क्या उद्देश्य है? अपनी शक्ति और रुतबे के साथ-साथ अपनी प्रतिष्ठा को सुरक्षित करना। मसीह विरोधी द्वारा परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करने को एक वाक्य सारांशित करता है : सबकुछ उसके नियंत्रण में होता है। और इसलिए, मसीह विरोधी किसी भी मामले को अनदेखा करने की हिम्मत नहीं करता, चाहे वह मामला बड़ा हो या छोटा। वह किसी भी चीज को अनदेखा करने की हिम्मत नहीं करता है, वह ऐसी हर चीज में भाग लेना और हस्तक्षेप करना चाहता है जो उसके रुतबे या उसके प्रभाव क्षेत्र से जुड़ी हुई है और वह किसी भी फायदे से चूकता नहीं है। वह कलीसिया में होने वाले कई मामलों में सक्रियता से शामिल रहना चाहता है और चीजें कैसे आगे बढ़ रही हैं इस स्थिति को समझना चाहता है। मिसाल के तौर पर, अगर कुछ लोग वाकई उसकी बात नहीं सुनते हैं या उसके आगे समर्पण नहीं करते हैं और हमेशा उसके बारे में राय बनाए रखते हैं, तो वह उन्हें सजा देने के तरीके ढूँढ लेता है। लेकिन अगर वह उनकी काट-छाँट करने का कोई बहाना नहीं ढूँढ पाता, तो वह क्या करता है? वह परमेश्वर के घर से नीचे भेजी गई किताबों और धर्मोपदेशों की रिकॉर्डिंग को नियंत्रित करने का कोई तरीका ढूँढ लेता है। कौन उसका आज्ञाकारी है, इस आधार पर वह जल्दी से तय करता है कि ये सामग्रियाँ किसे मिलनी हैं। अगर तुम उसकी बात नहीं सुनते हो या उस अवधि के दौरान प्रतिकूल व्यवहार दिखाते हो, तो वह संसाधन सीमित होने का दावा करता है और तुम्हें वे चीजें नहीं भिजवाता है। मसीह विरोधी तुम्हारे व्यवहार पर नजर रखता है। अगर तुम इस पर स्पष्ट रूप से विचार करते हो, इसे समझ जाते हो और मसीह विरोधी के मनोविज्ञान को समझते हो; अगर तुम स्वेच्छा से अपनी गलतियाँ मान लेते हो और मसीह विरोधी के पास आते हो, तो वह यह कहने का बहाना ढूँढ लेगा, “इस बार परमेश्वर के घर ने सबके लिए पर्याप्त संसाधन भेजा है और तुम भी शामिल हो।” लेकिन, अगर उसने देखा कि कुछ समय बाद तुमने फिर से दूरी बना ली है, तो वह तुम्हें फिर सजा देगा। नए संसाधान आने पर वह तुम्हें सूचित भी नहीं करेगा, वह तुम्हें एक भी चीज नहीं देगा, और यहाँ तक कि शायद वह तुम्हारे पास पहले से जो चीजें हैं, उन्हें भी जब्त करने का बहाना ढूँढ ले। खासकर जब मसीह विरोधी को पता चलता है कि किसी को उसके पर्दे के पीछे के कुकर्मों की जानकारी हो सकती है और वह उसकी रिपोर्ट कर सकता है, तो वह पूर्वनिवारक कार्यवाही करने के लिए पहले एक सौम्य तरीका अपनाता है, वह सक्रियता से खुद आगे बढ़कर अपनी गलतियाँ मान लेता है और आत्म-ज्ञान साझा करता है। जब उसे लगता है कि यहाँ सौम्य तरीका कारगर नहीं होगा, यह अनुचित लग रहा है और इसके बावजूद यह व्यक्ति उसकी रिपोर्ट कर सकता है, तो मसीह विरोधी इस व्यक्ति का घेराव करने और जबरदस्ती धमकाने के लिए और लोगों को जुटाने का भरसक प्रयत्न करता है। यह तब तक जारी रहता है जब तक वह व्यक्ति समझौता नहीं कर लेता और अपना रुख बताते हुए यह स्पष्ट रूप नहीं कर देता कि वह उसकी रिपोर्ट नहीं करेगा और सिर्फ तभी मसीह विरोधी अपने प्रयास रोकता है। कुछ मामलों में, मसीह विरोधी दूसरों को पहले उजागर कर सकता है; इस डर से कि शायद दूसरे लोग उसे उजागर कर दें और उसकी रिपोर्ट कर दें, वह पूर्वनिवारक कार्यवाही करता है और जानबूझकर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दूसरे व्यक्ति से उन पर झूठे आरोप लगवाता है और उनके लिए जाल बिछाता है। बाद में, वह उस व्यक्ति को सबसे अलग करने और निष्कासित करने का बहाना ढूँढ लेता है और ऊपरवाले और कलीसिया के साथ उसकी बातचीत बंद करवा देता है। अब, मसीह विरोधी महसूस करता है कि वह सुरक्षित है और उसे फिक्र करने की और जरूरत नहीं है। क्या यह परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करना नहीं है? (हाँ है।) यह कह सकते हैं कि ऐसे मामलों में मसीह विरोधी की कार्यवाहियाँ बस एक या दो छिटपुट घटनाओं से ज्यादा होती हैं या एक या दो से ज्यादा तरीकों का उपयोग किया जाता है। मसीह विरोधी बहुत-से बुरे कर्म करता है ताकि परिस्थितियों में जोड़-तोड़ कर सके, अपने रुतबे को सुरक्षित कर सके और ऐसी व्यवस्था कर सके जिससे उसका अधिकार क्षेत्र डगमगाए नहीं। मिसाल के तौर पर, वह कलीसिया में कर्मचारियों से जुड़ी प्रणालियों और व्यवस्थाओं को बदल देता है। ज्यादा लोगों को नियंत्रित करने के लिए वह भाइयों और बहनों में फूट डालता है और उन्हें एक दूसरे पर हमला करने और एक दूसरे की निंदा करने के लिए उकसाता है। वह अपने अनुयायियों को ऐसे कुछ भाई-बहनों का घेराव करने के लिए भी उकसाता है जिनमें न्याय की भावना ज्यादा है; वह भाई-बहनों के आगे यह भी दावा करता है कि ऊपरवाला उसका बहुत सम्मान करता है। इतना ही नहीं, वह ऊपरवाले को पत्र लिखता है जिसमें वह अपने उत्कृष्ट कार्य की डींगे हांकता है और दावा करता है कि उसने आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लिया है और स्वेच्छा से अपनी समस्याओं का खुलासा कर सकता है, वगैरह। वह ऊपरवाले की कृपादृष्टि पाने के प्रयास में उसे पत्र लिखकर अपनी सारी समस्याओं की जानकारी दे देता है। वह अलग-अलग साधनों और तरीकों का उपयोग करके परिस्थितियों में जोड़-तोड़ करता है, अपने कट्टर अनुयायियों को नियंत्रित करता है, और भाइयों और बहनों के साथ-साथ परमेश्वर के घर को भी चकमा देता है। कलीसिया में परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए मसीह विरोधी इन्हीं अलग-अलग अभ्यासों का उपयोग करते हैं। बेशक, इनके अलावा और कई ज्यादा विशिष्ट अभ्यास भी हैं, लेकिन उनके बारे में यहाँ नहीं बताया जाएगा। संक्षेप में, मसीह विरोधी जिन तरीकों का उपयोग करके कलीसिया को नियंत्रित करते हैं उनसे जुड़े ये मामले आम हैं और वे जो अलग-अलग अभ्यास प्रदर्शित करते हैं वे भी आम हैं।

III. मसीह-विरोधी लोगों के दिलों की जाँच और उन पर नियंत्रण करते हैं

सत्ता पर एकाधिकार पाने और परिस्थितियों में हेरफेर करने के अलावा कौन से अन्य कार्यों से इस बात की पुष्टि हो सकती है कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर को अपने अधिकार-क्षेत्र की तरह मानते हैं? सत्ता पर एकाधिकार के साथ हमने मुख्य रूप से कार्मिक मामलों के पहलुओं के बारे में संगति की, जबकि परिस्थितियों में हेरफेर करना मुख्य रूप से घटनाक्रम को नियंत्रित करना है। मसीह-विरोधियों का सत्ता पर एकाधिकार पाना एक बाहरी क्रिया है, और परिस्थितियों में हेरफेर करना भी बाहरी चीज है जिसे लोग देख सकते हैं—इन पहलुओं को नियंत्रित करना आसान होता है। हालाँकि एक चीज है जिसे नियंत्रित करना किसी के लिए भी असाधारण रूप से कठिन होता है। वह चीज क्या है? (लोगों के दिलों और लोगों के विचारों पर नियंत्रण।) मुझे बताओ, क्या यह सही है? (हाँ, यह सही है।) बाइबल कहती है, “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है” (यिर्मयाह 17:9), यानी मनुष्य के दिल को नियंत्रित करना सबसे कठिन काम है। क्या मसीह-विरोधी सबसे मुश्किल चीज को नियंत्रित करने की कोशिश करेंगे? संभवतः वे कहें, “क्योंकि मनुष्य का दिल सबसे अधिक धोखेबाज है और इसे नियंत्रित करना कठिन है, इसलिए मैं इसे नियंत्रित नहीं करूँगा। उन्हें सोचने दो कि उन्हें क्या चाहिए; जब तक मेरे पास शक्ति है, जब तक मेरा लोगों पर नियंत्रण है, उतना काफी है। मैं बस उनके कार्यों और व्यवहार को नियंत्रित करूँगा, उनके विचारों का प्रबंधन परमेश्वर पर छोड़ा जा सकता है; मेरे पास क्षमता नहीं है, इसलिए मैं उन चीजों की परवाह नहीं करूँगा”? क्या मसीह-विरोधी इस तरह समझौता करेंगे? (नहीं, वे नहीं करेंगे।) मसीह-विरोधियों के सार का आकलन करें तो उनकी महत्वाकांक्षा किसी व्यक्ति को संपूर्ण रूप से नियंत्रित करना होती है। उनके लिए नियंत्रित करने वाली सबसे चुनौतीपूर्ण चीज मनुष्य का दिल होती है, लेकिन यही वह चीज भी है जिसे वे सबसे अधिक नियंत्रित करना चाहते हैं। वे अपनी सत्ता के अधीन लोगों को लुभाते हैं, हर चीज पर पूरा नियंत्रण रखते हैं : घटनाएँ किस दिशा में बढ़ती हैं, कितने लोग शामिल होते हैं, कौन सी बातें सामने आती हैं, इन घटनाओं का पूरा विकासक्रम और इनके परिणाम क्या होंगे—सभी का विकास उसी के अनुसार हो रहा है जिसे उन्होंने शुरू किया है और उनके दिल की चाह है। हालाँकि एक चीज है कि लोग अपने दिल में क्या सोच रहे हैं? वे उनके बारे में क्या सोच रहे हैं? उनके ऊपर उनका अच्छा प्रभाव पड़ता है या नहीं? वे उन्हें पसंद करते हैं या नहीं? अपने मन में क्या उन्हें विश्वास है कि वे मसीह-विरोधी हैं? क्या वे अपने क्रियाकलापों को समझते हैं या उनसे अप्रसन्न होते हैं? जब लोग बाहरी रूप से उनके प्रति सम्मान दिखाते हैं और उनकी चापलूसी करते हैं, तो वे वास्तव में अपने दिल में क्या सोच रहे होते हैं? क्या उनके दिल में जो कुछ है वह वास्तव में उनके बाहरी स्वरूप के अनुरूप है? क्या वे वास्तव में उनके प्रति आज्ञाकारी हैं? यह एक ऐसा मामला है जो मसीह-विरोधियों को बहुत परेशान करता है। वे जितना अधिक परेशान महसूस करते हैं, उतना ही अधिक वे जवाब ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं। यह मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के घर को अपने अधिकार-क्षेत्र की तरह मानने की तीसरी अभिव्यक्ति है—लोगों के दिलों की जाँच और उन पर नियंत्रण करना।

क्या लोगों के दिलों की जाँच और उन पर नियंत्रण करना आसान है? जाँच और नियंत्रण करना कुछ करते समय कार्य या व्यवहार के दो अलग-अलग स्तरों को दर्शाता है। जब एक मसीह-विरोधी के पास सत्ता होती है और वह किसी घटना के विकास और उसके परिणाम के पूरे क्रम को नियंत्रित करता है, जब वह इन चीजों को नियंत्रित करता है, तो उसके अधीन या उसके प्रभाव-क्षेत्र के भीतर के लोग वास्तव में अपने दिल में किस बारे में विचार कर रहे होते हैं—क्या वे उससे परमेश्वर के समान या एक संपूर्ण व्यक्ति के समान व्यवहार करते हैं, या वे उसके प्रति घृणा, राय, या धारणाएँ रखते हैं, और क्या वे उसे समझते हैं—लोग अपने दिल में वास्तव में क्या विचार कर रहे हैं, इन चीजों को परखना काफी चुनौतीपूर्ण है। तो फिर वह क्या करता है? वह अपने अधीन लोगों पर नजर रखता है, और जिनमें विवेक की कमी होती है और जिनका शोषण करना आसान होता है, उन्हें लाभ देता है या कुछ सुखद लगने वाले शब्द बोलता है। ये लोग रबड़ की गेंदों की तरह होते हैं : हर बार जब आप उन्हें मारते हैं तो वे अधिक ऊर्जा इकट्ठी कर लेते हैं। वह ऐसे व्यक्तियों से प्यादे के रूप में काम लेता है। वह उनका उपयोग किस लिए करता है? उसके ये प्यादे उसके लिए लोगों के दिलों की जाँच करते हैं। वह प्यादे से कह सकता है, “हाल ही में हमारी कलीसिया में बहन ली और उसकी पुत्री सेवा में कम समय बिता रही हैं। वे काफी समय सेवा करती थीं, लेकिन अब वे उतना ज्यादा नहीं आती हैं। वे फिलहाल क्या कर रही हैं? क्या उनका बाहरी लोगों से कोई संपर्क हुआ है? क्या उनके घर पर कुछ हो रहा है? जाओ देखो और कुछ सहायता प्रदान करो।” वह व्यक्ति बहन ली के घर जाता है और यह विचार करते हुए आसपास निगाह डालता है, “यहाँ कोई अपरिचित चेहरा तो नहीं है। ऐसा लगता है कि दोनों बहनें काफी शांतिपूर्ण जीवन जी रही हैं। ऐसा नहीं लगता कि उन्हें कोई परेशानी है। वे हमारी सभाओं में क्यों नहीं जाती हैं? चलो पूछताछ करते हैं।” यह व्यक्ति पूछता है, “क्या तुम लोगों के घर में हाल ही में कोई नई रोशनी हुई है? मुझे आजकल कमजोरी महसूस हो रही है; कुछ पल के लिए मेरे साथ संगति करो।” यह मालूम होने पर कि वह व्यक्ति सत्य की तलाश करने और मदद मांगने के लिए आया है, वो बहनें उसके साथ संगति करती हैं और कहती हैं, “हाल ही में हमें एक नई रोशनी मिली है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को दूसरे लोगों का अनुसरण नहीं करना चाहिए या हमेशा उन पर भरोसा नहीं करना चाहिए; चुनौतियों का सामना करने पर हमें परमेश्वर के समक्ष प्रार्थना करनी चाहिए; यही सर्वोच्च ज्ञान है। लोग भरोसेमंद नहीं होते हैं, व्यक्ति केवल परमेश्वर पर ही भरोसा कर सकता है; वह लोगों को सत्य, जीवन और वह मार्ग प्रदान कर सकता है जिस पर उन्हें चलना चाहिए—लोग ऐसा नहीं कर सकते। मैं हमेशा दूसरों पर निर्भर रहती थी, लेकिन बाद में एक बहन के साथ संगति करने से...।” वे पूछते हैं, “बहन के साथ संगति करने से? वह बहन कहाँ है? क्या वह बाहरी व्यक्ति है?” बहनें कहती हैं, “वह बिल्कुल बाहरी व्यक्ति नहीं है; वह हमारी कलीसिया की एक बहन है जो कई सालों तक बाहर कर्तव्य निभाने के बाद लौटी है।” वे कहते हैं, “क्या यह अभी भी किसी बाहरी व्यक्ति से संपर्क रखना नहीं है? तुम अविवेकपूर्ण ढंग से बाहरी लोगों से जुड़ी हुई हो; तुम्हें इस मुद्दे के बारे में कलीसिया को बताना चाहिए!” यह जानकारी जुटाने के बाद वह व्यक्ति दो महत्वपूर्ण बातों से पर्दा उठाता है : पहली बात, दोनों बहनें अगुआ के करीब नहीं रहना चाहती हैं, और उन्होंने उसके प्रति कुछ समझ से काम लिया है; दूसरी बात, उनका एक बाहरी व्यक्ति से संपर्क हुआ है, और उस बाहरी व्यक्ति ने उनसे कुछ कहा है; विशिष्ट जानकारी स्पष्ट नहीं है, बहनें उनके बारे में कुछ नहीं कहेंगी, वे जानबूझकर इसे छिपा रही हैं, जिसका अर्थ है कि अगुआ के प्रति उनकी वफादारी डगमगा रही है और उन्होंने उससे सावधान रहना शुरू कर दिया है। जब यह व्यक्ति लौट कर मसीह-विरोधी को उनकी रिपोर्ट देता है, तो क्या मसीह-विरोधी इसे सुनने के बाद खुश होता है? क्या वह सोचेगा, “बहुत बढ़िया, आखिरकार मेरे अधीनस्थों ने मेरे प्रति कुछ समझ से काम लिया है”? (नहीं, वह यह नहीं सोचेगा।) वह क्या सोचेगा? “यह बुरा है। दोनों बहनें आज्ञाकारी हुआ करती थीं, वे कलीसिया में सच्ची विश्वासी थीं, और उन्होंने बहुत सेवा की है। जब से इस अनजान व्यक्ति ने उनसे बातचीत शुरू की है तब से ये दोनों थोड़ी अवज्ञाकारी हो गई हैं। क्या वे भविष्य में सेवा करना जारी रखेंगी? यह परेशानी और जोखिम भरा है।” मसीह-विरोधी असहज महसूस करता है। वह बेचैन क्यों है? (लोग उसे समझ रहे हैं और अब उसकी बात नहीं सुनते।) वास्तव में लोगों के दिल अब उसके हेरफेर और नियंत्रण के अधीन नहीं हैं, उनका हृदय परिवर्तन हो रहा है, इसलिए वे बेचैनी महसूस करते हैं। अतीत में ये दोनों निष्कपट और सरल थीं, वे बहुत आज्ञाकारी थीं और उसके प्रति कम समझ से काम लेती थीं, जो कुछ भी वह कहता था उसे बिना किसी सोच-विचार के स्वीकार लेती थीं। अब जबकि उनका हृदय परिवर्तन हो गया है, उन्हें समझ आ गई है, और वे दूरी बनाए हुए हैं, संभवतः उसकी उपेक्षा कर रही हैं, और शायद उसकी रिपोर्ट करने का इरादा भी रखती हैं—यह परेशानी का कारण बनता है। क्या यह इस बात की विशिष्ट अभिव्यक्ति नहीं है कि मसीह-विरोधी कैसे लोगों के दिलों की जाँच और उन पर नियंत्रण करते हैं?

जब मसीह-विरोधी को कुछ भी असामान्य दिखाई देता है, तो वह स्थिति का पता लगाने और इसके पीछे के कारणों की जानकारी प्राप्त करने के लिए तुरंत अपने अंतरंग साथियों या गुर्गों को वहाँ भेजता है। यदि कोई बदलाव नहीं होता, यदि लोग वैसे ही बने रहते हैं और उनका हृदय परिवर्तन नहीं हुआ होता है, तो वह आश्वस्त हो जाता है, और फिर उसे बेचैनी या चिंता नहीं रह जाती। हालाँकि यदि उसे किसी असामान्य बात का पता चलता है, जिसकी उसे जानकारी नहीं है, जिसमें वह हेरफेर नहीं कर सकता, न ही जिसकी उसने कल्पना की है, तो वह तकलीफदेह होता है। वह परेशान और चिंतिंत हो जाता है, और हड़बड़ी में वह कार्रवाई करेगा। उसकी कार्रवाइयों का क्या उद्देश्य होता है? वह चाहता है कि लोग उसकी बातों से सहमत हों, और उनके दिल में कोई अन्य विचार न आए। लोग अपने विचार उसे बताएँ और वफादारी, दृढ़संकल्प तथा ईमानदारी के साथ लगातार उसे रिपोर्ट करें। उसे लगातार लोगों के दिलों में बदलती सोच और विचारों तथा उनकी सोच की दिशा और सिद्धांतों को नियंत्रित करना होगा। जैसे ही उसे किसी व्यक्ति में विरोध पनपने का पता चलता है तो वह उसे बदलने का उपाय करेगा। यदि उन्हें बदला नहीं जा सकता और वे दोस्त नहीं बन सकते, तो इसके बजाय वे दुश्मन बन जाएँगे। उसका दुश्मन बनने के क्या परिणाम होते हैं? उन्हें सजा दी जाएगी और उनका दमन किया जाएगा। यह एक रवैया है। दूसरा रवैया भी होता है। मसीह-विरोधी सदैव अपने आस-पास के लोगों के बारे में सशंकित रहता है, कभी भी उन्हें पूरी तरह समझने में समर्थ नहीं होता है, उसे डर होता है कि लोग उसे पहचान लेंगे और उसकी रिपोर्ट कर देंगे और अपने दिल में कहता है : “क्या तुमने देखा जब मैंने भेंटें चुराईं और चीजों को अपने ढंग से किया? अगर तुमने देखा होता, तो क्या तुम इसे पहचान पाते? क्या तुम मेरी रिपोर्ट करते?” यहाँ तक कि कुछ मसीह-विरोधी पर्दे के पीछे यौन रूप से असंयमी होते हैं, और वे सोचते हैं, “इन चीजों के बारे में किसे पता है? जो लोग इसके बारे में जानते हैं वो क्या सोच रहे हैं? क्या मुझे किसी तरह दिखावा करना चाहिए, झूठी छवि बनानी चाहिए, फिर इन लोगों की परीक्षा लेनी चाहिए, उनके अंतरतम के विचारों को जान लेना चाहिए, और देखना चाहिए कि वे वास्तव में क्या सोच रहे हैं?” क्या मसीह-विरोधी ऐसे काम करेंगे? मसीह-विरोधियों जैसे दुष्ट लोगों के लिए, ऐसी चीजें करना उनकी दूसरी प्रकृति की तरह है; वे स्वाभाविक रूप से ऐसा करते हैं—वे इसे शानदार ढंग से करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को एकजुट करते और कहते हैं, “आज मैंने सभी को किसी और उद्देश्य से नहीं बुलाया है, बल्कि हाल ही में कलीसिया में किए गए मेरे काम में मेरी खामियों की जाँच करने और मेरे द्वारा प्रकट भ्रष्ट स्वभावों को लेकर अपने ज्ञान के बारे में बात करने के लिए बुलाया है। खुलकर बोलो, कुछ छुपाओ मत। मैं तुम्हारी निंदा नहीं करूँगा। आओ खुलकर दिल की दिल से और आमने-सामने बात करें। यदि मैंने कुछ किया है, तो मैं बदलूँगा; यदि नहीं, तो मैं इसे ऐसा न करने की चेतावनी के रूप में लूँगा। परमेश्वर के घर में सब कुछ खुला, प्रकट, और सबके सामने है। हम सब कुछ परमेश्वर के सामने करते हैं, और किसी को भी किसी और से सतर्क रहने की कोई आवश्यकता नहीं है। भाइयों और बहनों, अपने मन को शांत करो। मैं स्वयं की जाँच करके शुरू करूँगा। हाल ही में, मेरे अपने आलस्य और शारीरिक सुखों की चाह के कारण, मैंने अपना काम अच्छे से नहीं किया है। सुसमाचार का काम फिलहाल ठीक से नहीं चल रहा है, और मैंने कलीसियाई जीवन की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया है। मैं सुसमाचार के काम में व्यस्त रहा और दूसरे मामलों के लिए समय नहीं निकाल सका। बेशक मैं जिम्मेदार हूँ। अपनी कल्पनाओं पर भरोसा करके मैंने मान लिया था कि कलीसियाई जीवन भाई-बहनों द्वारा स्वयं ही विनियमित हो जाएगा और मुझे ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं होगी। तुम सभी लोग वयस्क हो, और परमेश्वर के वचन एकदम स्पष्ट हैं, इसलिए मैंने खुद को सुसमाचार के कार्य में पूरी तरह समर्पित कर दिया था। हालाँकि मैंने सुसमाचार के कार्य को भी अच्छे से नहीं किया। मुझे भाई-बहनों के समक्ष अपनी गलतियों को स्वीकार करना है, तुमसे क्षमा मांगनी है, और परमेश्वर से भी क्षमा मांगनी है। यहाँ मैं तुम सबके सामने सिर झुकाता हूँ।” हरेक व्यक्ति यह देखकर मन में सोचता है, “वह बदल गया है; वह पहले की भांति चालाक नहीं दिखता है। वो आज इतना ईमानदार क्यों है? कुछ तो गड़बड़ है। मुझे सीधे निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए; मैं देखूँगा कि वह आगे क्या कहता है।” मसीह-विरोधी कहना जारी रखता है, कि वह दानव, शैतान है, स्वीकार करता है कि उसने कोई वास्तविक काम नहीं किया है, खुद को ऊपरवाले की सेवा में उपलब्ध रहने की और भाई-बहनों से किसी भी तरह की आलोचना या निंदा को स्वीकार करने की इच्छा जताता है। वह आगे कहता है, “भले ही वे मुझे बर्खास्त कर दें और अगुआई नहीं करने दें, तो भी मैं उनमें से एक होने को तैयार हूँ। मैं कलीसिया से सिफारिश करता हूँ कि वह मेरा काम बहन ली और उसकी पुत्री को सौंप दे।” उसने पहले ही अपना उत्तराधिकारी चुन लिया है। क्या उसका रवैया अत्यधिक ईमानदार नहीं है? क्या संदेह करने की भी कोई जरूरत है? ऐसा कहते हुए वह रोना भी शुरू कर देता है। फिर वह अपनी पत्नी को बुलाता है और कहता है, “इस दौरान तुमने भी कोई वास्तविक काम नहीं किया है, और केवल विघ्न-बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा की हैं, और भाई-बहनों की अँधाधुंध काट-छाँट भी की है। तुम्हें भी बर्खास्त किया जाना चाहिए।” मसीह-विरोधी खुद पर और फिर अपने परिवार पर अंगुली उठाता है, जिससे लोगों को लगता है कि वह ईमानदार है। जब हर कोई यह सुनता है तो कोई व्यक्ति कहता है, “असल में हम लंबे समय से तुम लोगों को देखते आ रहे हैं। तुम लोग मामलों पर हमसे सलाह नहीं करते; तुम में से कुछ निजी तौर पर आपस में चीजों पर चर्चा करके निर्णय ले लेते हो। यह परमेश्वर के घर के कार्य सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। इसके अलावा तुम लोगों ने हमारी जानकारी के बिना निर्णय ले लिया है कि तुम में से अगुआ कौन होगा—हमें तो जानने का भी ह‍क नहीं है। तुमने जिस व्यक्ति को चुना है वो न केवल वास्तविक कार्य करने में विफल रहता है बल्कि गड़बड़ियाँ भी पैदा करता है, लेकिन तुम उसे बर्खास्त नहीं करते।” भाई-बहन एक के बाद एक अपनी राय देते हैं। जब मसीह-विरोधी यह सुनता है तो सोचता है, “यह बुरी बात है! हालाँकि यह अच्छा है कि वे सभी एक साथ अपने सच्चे विचार रख रहे हैं। यह मेरे भावी कार्य में लाभकारी होगा। यदि वे नहीं बोलते और पीठ पीछे मेरे खिलाफ साजिश करते, और मेरी जानकारी के बिना ऊपरवाले को सीधे रिपोर्ट पत्र लिखते, तो मेरा काम तमाम हो जाता, क्या नहीं होता? सौभाग्य से मैंने इस चाल का इस्तेमाल किया, मैं चतुर हूँ और मेरी प्रतिक्रिया तीव्र है, और मैंने समय रहते उनकी राय जान ली।” फिर वह चाटुकारितापूर्ण ढंग से घोषणा करते हुए कहना जारी रखता है, “भाई-बहनों आपके भरोसे और आज मेरी गलतियों के लिए ईमानदारी से मेरी आलोचना करने के लिए धन्यवाद। मैं भविष्य में निश्चित तौर पर उनमें बदलाव करूँगा। यदि मैं ऐसा नहीं करता, तो मुझे सजा मिले और शाप मिले।” मसीह-विरोधी का लोगों के दिलों की जाँच और नियंत्रण करना केवल छिपकर बातें सुनने और दरवाजे से झांकने तक सीमित नहीं होता। गंभीर स्थितियों में उसके पास तुरुप का इक्का भी होता है। किस प्रकार का इक्का? वह लोकतंत्र और स्वतंत्रता को व्यवहार में लाता है, लोगों को बोलने की स्वतंत्रता देता है, उन्हें अपनी राय तथा अंतरमन के विचारों को अभिव्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता देता है, अपने अंतरमन की भावनाएँ व्यक्त करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता है, चाहे ये शिकायतें ही क्यों न हों। फिर वह उससे अलग विचार रखने वाले या उसके बारे में अलग राय रखने वाले लोगों की कमजोरियों का लाभ उठाता है, और उन सभी को एक बार में समाप्त कर देता है। मसीह-विरोधी का दृष्टिकोण कैसा प्रतीत होता है? यह बेहद दुष्ट है! क्या यह थोड़ा बहुत बड़े लाल अजगर से मिलता-जुलता नहीं है? वे अनिवार्य रूप से एक ही समूह से हैं, उनका प्रकृति सार एक जैसा ही होता है। क्या बड़ा लाल अजगर इसी तरह से काम नहीं करता? मसीह-विरोधी का काम करने का तरीका देखना बड़े लाल अजगर के बदसूरत चेहरे को देखने जैसा होता है।

मसीह-विरोधी लोगों को लुभाने और लोगों का भरोसा जीतने के लिए मधुर और सही शब्दों का इस्तेमाल करने में माहिर होते हैं। जाँच करके और चालाकी से लोगों से उनकी सही स्थितियों की जानकारी हासिल करने के बाद परिणाम क्या निकलता है? क्या मसीह-विरोधियों को पछतावा होगा क्योंकि लोगों ने सच्ची बातें उनको बताई थीं? क्या वे हार मान लेंगे, बुराई करना छोड़ देंगे, अपनी सत्ता छोड़ देंगे, सत्ता की अपनी चाह त्याग देंगे, और अपने अधिकार-क्षेत्र को जाने देंगे? कभी नहीं। इसके बजाय वे अपने प्रयासों को बढ़ाएँगे। लोगों के दिलों पर नियंत्रण करने के लिए सब-कुछ करने के बाद जिन लोगों के विचार उनसे मेल खाते हैं उन्हें वे अपने साथ रखते हैं, और जिनके विचार मेल नहीं खाते उन सभी से छुटकारा पा लेते हैं। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि कलीसिया में कुछ भाई-बहनों को ऐसी परिस्थितियों में बाहर निकाल दिया गया हो, निष्कासित कर दिया गया हो, या परमेश्वर के वचनों की उनकी पुस्तकों को जब्त कर लिया गया हो। इन लोगों के साथ गलत हुआ। जिन भाई-बहनों के साथ गलत हुआ उन्हें क्या करना चाहिए? क्या उन्हें परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर देना चाहिए क्योंकि एक मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर में आया और जिसने उन्हें इस तरह सजा दी और विश्वास करना असंभव बना दिया? क्या वे ऐसा कर सकते हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते।) क्या मसीह-विरोधियों से या अंधकारमय या दुष्ट शक्तियों के आगे समझौता करना या उनके सामने सिर झुकाना उचित है? क्या तुम लोगों को यह मार्ग चुनना चाहिए? (नहीं, ऐसा नहीं है।) तो तुम लोगों को कौन सा मार्ग चुनना चाहिए? (मसीह-विरोधियों को उजागर करने और उनके बारे में रिपोर्ट करने का मार्ग।) जब तुम्हें किसी व्यक्ति के मसीह-विरोधी होने का पता चलता है, तो मैं तुम्हें बता देता हूँ, यदि उसका प्रभाव बहुत बड़ा है, अनेक अगुआ और कर्मी उसकी बात सुनते हैं और तुम्हारी बात नहीं सुनते, और यदि तुम उन्हें उजागर करते हो और तुम्हें अच्छी तरह से अलग-थलग या बाहर किया जा सकता है, तो तुम्हें अपनी रणनीति पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। अकेले उनका सामना मत करो; परिस्थितियां तुम्हारे पक्ष में नहीं हैं। ऐसे चंद लोगों से संपर्क करके शुरुआत करो जो सत्य को समझते हों और जिनमें विवेक हो, जो उनसे संगति चाहते हों। यदि तुम एकमत हो जाते हो, तो ऐसे दो और अगुआओं या कर्मियों के पास जाओ जो सत्य को स्वीकार कर सकें और किसी सहमति पर पहुंच सकें। कई लोग एक साथ काम करके, संयुक्त रूप से मसीह-विरोधी को उजागर करो और उससे निपटो। इस तरह, तुम्हें सफलता मिल सकती है। यदि मसीह-विरोधी का प्रभाव बहुत ज्यादा है, तो तुम लोग ऊपरवाले को एक सूचना पत्र भी लिख सकते हो। यह एकदम सही दृष्टिकोण है। यदि कुछेक अगुआ और कर्मी सच में तुम लोगों को दबाने का प्रयास करें, तो तुम लोग उन्हें बता सकते हो, “यदि आप लोग हमारे खुलासे और रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करते हैं, तो हम ऊपरवाले के समक्ष इस मामले को उठाएंगे और फिर वो आप लोगों को संभालेगा!” इससे तुम्हारी सफलता की संभावनाएँ बढ़ती हैं, चूंकि वे तुम लोगों के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएंगे। मसीह-विरोधियों से निपटते समय, तुम्हें इस भरोसेमंद दृष्टिकोण—कभी अकेले कुछ मत करो, को अपनाना चाहिए। यदि तुम्हारे पास कुछेक अगुआओं और कर्मियों का समर्थन नहीं है, तो तुम्हारे प्रयास निश्चित ही असफल हो जाएंगे, जब तक कि तुम एक सूचना पत्र लिखकर ऊपरवाले को सौंप नहीं देते। मसीह-विरोधी अत्यधिक धोखेबाज और धूर्त होते हैं। यदि तुम्हारे पास पर्याप्त सबूत नहीं है, तो उनके खिलाफ जाने की कोशिश मत करो। उनसे तर्क या बहस करना बेकार है, उनमें बदलाव लाने की कोशिश करने के लिए प्रेम जताना बेकार है, और उनके साथ सत्य पर संगति करना भी काम नहीं आएगा; तुम उनमें बदलाव नहीं ला पाओगे। ऐसी स्थिति में जहां तुम उन्हें बदल नहीं सकते, तुम्हारे लिए सबसे अच्छा यही है कि उनसे खुले दिल से बात मत करो, उनसे तर्क मत करो, और उनके पश्चात्ताप का इंतजार मत करो। इसके बजाय उन्हें बताए बिना उजागर करो और उनकी रिपोर्ट करो, ऊपरवाले को उन्हें संभालने दो, और अधिक लोगों को उन्हें उजागर करने, उनकी रिपोर्ट करने, और उन्हें अस्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करो, ताकि आखिर उन्हें कलीसिया से उखाड़ फेंका जाए। क्या यह अच्छा तरीका नहीं है? यदि उनका उद्देश्य तुम्हारे अंतरमन के विचारों को परखना, तुम्हारी जाँच करना, और यह देखना है कि उनके प्रति तुममें कोई समझ तो नहीं है, तो तुम क्या करोगे यदि तुमने पहले ही उन्हें मसीह-विरोधी के रूप में पहचान लिया है? (मुझे उनके साथ सच नहीं बोलना चाहिए, बल्कि कुछ समय के लिए उनकी बातों के अनुसार चलना चाहिए, उन्हें अपनी समझ का पता नहीं चलने देना चाहिए, और फिर मुझे निजी तौर पर उन्हें उजागर करना चाहिए और उनकी रिपोर्ट करनी चाहिए।) यह दृष्टिकोण कैसा है? (अच्छा है।) तुम्हें दानवों और शैतानों की चालों को समझना चाहिए और उनके बिछाए जाल में फँसने से बचना चाहिए या उनके बनाए गढ्ढों में गिरने से बचना चाहिए। शैतानों और दानवों से निपटते समय, तुम्हें अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना चाहिए और उनसे सच बोलने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम केवल परमेश्वर और असली भाई-बहनों से ही सच बोल सकते हो। तुम्हें शैतानों से, दानवों से, या मसीह-विरोधियों से कभी सच नहीं बोलना चाहिए। केवल परमेश्वर ही इस योग्य है कि वह तुम्हारे दिल में जो है उसे समझे और तुम्हारे दिल पर संप्रभुता बनाए रखे और तुम्हारे दिल की जाँच-पड़ताल करे। कोई भी, विशेष रूप से दानव और शैतान, तुम्हारे दिल को नियंत्रित करने और उसकी पड़ताल करने के योग्य नहीं है। इसलिए यदि दानव और शैतान तुम्हारे अंतरमन की सच्चाई जानने की कोशिश करें, तो तुम्हारे पास “न” कहने का, उत्तर देने से इनकार करने का, और जानकारी को दबाकर रखने का अधिकार है—यह तुम्हारा अधिकार है। यदि तुम कहते हो, “दानव, तुम मेरे अंतरमन की बातों को परखना चाहते हो, लेकिन मैं तुमसे सच नहीं बोलूंगा, मैं तुम्हें नहीं बताऊंगा। मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा—तुम मेरा क्या बिगाड़ सकते हो? यदि तुम मुझे सताने की हिम्मत करोगे, तो मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगा, यदि तुम मुझे सताओगे तो परमेश्वर तुम्हें शाप देगा और तुम्हें सजा देगा!” क्या इससे काम चलता है? (नहीं चलता है।) बाइबल कहती है, “इसलिये साँपों के समान बुद्धिमान और कबूतरों के समान भोले बनो” (मत्ती 10:16)। ऐसी स्थितियों में तुम्हें साँपों के समान बुद्धिमान होना चाहिए; तुम्हें बुद्धिमान होना चाहिए। हमारे दिल केवल इसके लिए उपयुक्त हैं कि परमेश्वर उनकी पड़ताल करे और उन्हें धारण करे, और उन्हें केवल परमेश्वर को ही दिया जाना चाहिए। केवल परमेश्वर ही हमारे दिल के योग्य है, शैतान और दानव इसके योग्य नहीं हैं! इसलिए क्या मसीह-विरोधियों के पास यह जानने का अधिकार है कि हमारे दिल में क्या है या हम क्या विचार कर रहे हैं? उनके पास वह अधिकार नहीं है। तुम्हारे अंतरमन की सच्चाई जानने और तुम्हारी जाँच करने का उनका मकसद क्या है? उनका उद्देश्य तुम्हारे ऊपर नियंत्रण करना है; तुम्हें इसे स्पष्ट रूप से पहचानना चाहिए। इसलिए उनसे सच मत बोलो। तुम्हें उनको उजागर कर उनका तिरस्कार करने, उनकी जगह से उन्हें नीचे उतारने तथा उन्हें कभी सफल न होने देने के लिए और अधिक भाई-बहनों को एकजुट करने के तरीके ढूँढ़ने चाहिए। उन्हें कलीसिया से उखाड़ फेंको, और परमेश्वर के घर में फिर से सत्ता में बाधा डालने और सत्ता हथियाने के किसी भी और सभी अवसरों से उन्हें वंचित कर दो।

मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों के दिलों की जाँच करना और उन पर नियंत्रण करना एक कटु सच्चाई है। मसीह-विरोधियों के सार को देखते हुए यह स्पष्ट है कि ऐसी गतिविधियों में शामिल होना उनके लिए स्वाभाविक और काफी सामान्य बात है। विभिन्न कलीसियाओं में मसीह-विरोधी अक्सर भाई-बहनों में घुसपैठ करने, खुफिया जानकारी पाने और अंदरूनी जानकारी इकट्ठा करने के लिए अपने विश्वासपात्रों को भेजते हैं। कभी-कभी वे जो जानकारी इकट्ठी करते हैं वह घरेलू मामूली बातों या लोगों के बीच सामान्य बातचीत से संबंधित होती है, जो बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं होती। हालाँकि मसीह-विरोधी हमेशा इन मामलों पर हंगामा करते हैं, यहाँ तक कि लोगों के विचारों और राय में हुए परिवर्तनों को तुरंत समझने के लिए उन्हें विचारों और दृष्टिकोणों के स्तर तक उठा देते हैं। ऐसा इसलिए है ताकि वे सहजता से परिस्थितियों और प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति को नियंत्रित कर सकें, और प्रत्येक को तुरंत जवाब दे सकें। मसीह-विरोधी सत्ता और हैसियत से संबंधित अपने क्रियाकलापों में विशेष रूप से विशिष्ट होते हैं। वे किस हद तक विशिष्ट होते हैं? जहाँ तक मामलों को संभालने को लेकर प्रत्येक व्यक्ति के दृष्टिकोण की बात है, साथ ही भौतिक चीजों, धन, हैसियत, परमेश्वर में विश्वास, कर्तव्य निभाने और नौकरी छोड़ने के बारे में उनका दृष्टिकोण क्या है—वे इन बातों की पूरी जानकारी चाहते हैं। पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद मसीह-विरोधी लोगों को पोषण देने, लोगों के गुमराह दृष्टिकोण को बदलने या समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे इसका उपयोग अपनी हैसियत, सत्ता और अधिकार-क्षेत्र को बनाए रखने के लिए करते हैं। लोगों के दिलों की जाँच करने और उन पर नियंत्रण करने के पीछे मसीह-विरोधियों का यही उद्देश्य होता है। मसीह-विरोधियों के लिए, वे जो कुछ भी करते हैं वह सार्थक और मूल्यवान प्रतीत होता है, लेकिन इन सभी कथित तौर पर अर्थपूर्ण और मूल्यवान चीजों की परमेश्वर निश्चित रूप से निंदा करता है। वे निश्चित रूप से परमेश्वर के विरुद्ध जाते हैं और उसके साथ शत्रुता रखते हैं।

7 नवंबर 2020

पिछला: मद तेरह : वे कलीसिया के वित्त को नियंत्रित करने के साथ-साथ लोगों के दिलों को भी नियंत्रित करते हैं

अगला: मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग एक)

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें