मद पंद्रह : वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं (भाग एक)
I. मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते
आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की पंद्रहवीं मद पर संगति करेंगे—वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं। यह मद मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर और मसीह के साथ किए जाने वाले व्यवहार की दो अभिव्यक्तियाँ उजागर करती है, जो मसीह-विरोधियों के सार को दर्शाती हैं। ये दोनों अभिव्यक्तियाँ स्वयं परमेश्वर से संबंधित हैं, जिनमें एक ओर परमेश्वर का आत्मा और दूसरी ओर देहधारी परमेश्वर का देह शामिल है। मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, न ही वे उसके द्वारा धारण किए हुए देह को स्वीकारते हैं। ये वे दृष्टिकोण हैं जो मसीह-विरोधी परमेश्वर के प्रति रखते हैं, और ये इस बात की प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ हैं कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ कैसे व्यवहार करते हैं। फ़िलहाल हम इन दो प्राथमिक अभिव्यक्तियों के सार पर संगति नहीं करेंगे, इसके बजाय, आओ पहले इस बात पर चर्चा करते हैं कि परमेश्वर के अस्तित्व में मसीह-विरोधियों का अविश्वास कैसे अभिव्यक्त होता है, यानी परमेश्वर के प्रति मसीह-विरोधी कौन-से विचार, दृष्टिकोण, रवैये और विशिष्ट व्यवहार, अभिव्यक्तियाँ और नजरिये रखते हैं, जो साबित करते हैं कि वे उसके अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। क्या इस अविश्वास की ठोस अभिव्यक्तियाँ हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “परमेश्वर के अस्तित्व में मसीह-विरोधियों के अविश्वास का मतलब सिर्फ यह है कि वे इस तथ्य को नहीं स्वीकारते और परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं। अपने दिलों में वे मानते हैं कि कोई परमेश्वर नहीं है, और परमेश्वर का आत्मा, स्वयं परमेश्वर और सृष्टिकर्ता अदृश्य और अस्तित्वहीन हैं। उनकी नजर में ‘परमेश्वर’ की उपाधि निरर्थक और इंसानी कल्पना की उपज है। क्या यह समझाने और संगति करने के लिए एक आसान चीज नहीं है? यह मसीह-विरोधियों के सार से कैसे संबंधित है? इसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ कैसे हैं? क्या यह राई का पहाड़ बनाना नहीं है? क्या यह वास्तव में इतना जटिल है?” क्या सोचने का यह तरीका सही है? अगर तुम लोगों से मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास न करने के विषय पर संगति करने के लिए कहा जाए, तो तुम लोग इस पर कैसे संगति करोगे और कैसे इसका विश्लेषण करोगे? उदाहरण के लिए, किसी विशेष रूप से धोखेबाज व्यक्ति पर विचार करो। क्या तुम उसकी धोखेबाजी की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बात कर सकते हो? अगर तुम बस यह कहते हो, “यह व्यक्ति बहुत धोखेबाज है और हमेशा झूठ बोलता है, एक भी सच्चा शब्द नहीं बोलता,” तो क्या तब केवल इतना कहकर तुम संगति समाप्त कर दोगे? धोखेबाजी की विशिष्ट अवस्थाएँ और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? तुम उस व्यक्ति की धोखेबाजी का विश्लेषण कैसे कर सकते हो? लोगों से निपटने और अपने दैनिक जीवन में मामले सँभालने के लिए वह कौन-से नजरिये इस्तेमाल करता है? दुनिया से निपटने के लिए वह कौन-से तरीके इस्तेमाल करता है? उसका चरित्र कैसा है? लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में उसका दृष्टिकोण क्या है? यह कैसे साबित किया जा सकता है कि यह व्यक्ति बहुत धोखेबाज है? क्या यहाँ कोई सटीक विवरण नहीं हैं? सटीक विवरण निश्चित रूप से हैं। यह सिर्फ यह कहने के बारे में नहीं है कि धोखेबाजी क्या है या कौन-से कार्य धोखेबाजी हैं, और यह सिर्फ इस शब्द को समझाने के बारे में नहीं है, इसके बजाय तुम्हें उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियों, व्यवहारों, विचारों, दृष्टिकोणों, मामले सँभालने के उसके तरीकों, उसके चरित्र आदि का गहनविश्लेषण करने की आवश्यकता है। धोखेबाज व्यक्ति का मुख्य लक्षण यह है कि वह कभी किसी के साथ दिल खोलकर संगति नहीं करता, और अपने सबसे अच्छे दोस्त से भी अपने दिल की बात नहीं कहता। वह असाधारण रूप से गूढ़ होता है। वास्तव में, जरूरी नहीं कि ऐसा व्यक्ति बूढ़ा हो या उसने बहुत दुनिया देखी हो, यहाँ तक कि उसका अनुभव भी अल्प हो सकता है, फिर भी वह बेहद गूढ़ होता है। अपनी उम्र के हिसाब से वह बहुत चालाक होता है। क्या यह व्यक्ति प्रकृति से धोखेबाज नहीं है? वह खुद को इतनी गहराई से छिपाता है कि कोई भी उसकी असलियत नहीं देख सकता। चाहे वह कितने भी शब्द बोले, यह बताना मुश्किल होता है कि उसका कौन-सा शब्द सच है और कौन-सा झूठ, और कोई नहीं जानता कि वह कब सच बोलता है और कब झूठ। इसके अलावा, वह स्वांग रचने और कुतर्क करने में विशेष रूप से कुशल होता है। वह अक्सर लोगों के मन में झूठी छवि बनाकर सच छिपाता है, ताकि सभी लोगों को बस उसका नकली रूप ही दिखाई दे। वह खुद को एक ऊँचे, अच्छे, गुणी और निर्दोष व्यक्ति के रूप में दिखाता है, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसे पसंद और अनुमोदित किया जाता है, और अंत में, हर कोई उसकी पूजा और सम्मान करता है। चाहे तुम ऐसे व्यक्ति के साथ कितना भी समय बिता लो, तुम कभी नहीं जान पाते कि वह क्या सोच रहा है। सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों के प्रति उसके विचार और दृष्टिकोण उसके हृदय में छिपे रहते हैं। ये चीजें वह कभी किसी को नहीं बताता। इन चीजों पर वह कभी अपने सबसे करीबी विश्वासपात्र के साथ भी संगति नहीं करता। यहाँ तक कि जब वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है, तब भी संभव है कि वह अपने दिल की बात या अपने बारे में सत्य न बताए। इतना ही नहीं, वह खुद को अच्छी मानवता से युक्त ऐसे व्यक्ति के रूप में दिखाने की कोशिश करता है, जो बहुत ही आध्यात्मिक है और सत्य का अनुसरण करने के लिए समर्पित है। कोई नहीं देख सकता कि उसका स्वभाव कैसा है और वह किस तरह का व्यक्ति है। ये धोखेबाजी की अभिव्यक्तियाँ हैं। उदाहरण के लिए, किसी आलसी व्यक्ति पर विचार करो। आलस्य की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “आलस्य बिल्कुल भी कोई काम न करना, पूरा दिन खाली बैठे बिता देना, हिलने-डुलने की चाह न रखना या किसी चीज की चिंता न करना और बात करने का इच्छुक न होना है।” क्या ये आलस्य की ठोस, मूलभूत अभिव्यक्तियाँ हैं? (नहीं, ये सिर्फ कुछ सतही परिघटनाएँ हैं।) तो फिर आलस्य की मूलभूत अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? मुख्य रूप से इसकी दो प्रमुख अभिव्यक्तियाँ हैं : पहली, कोई भी कठिनाई सहने की अनिच्छा, किसी भी काम में कोई बोझ या जिम्मेदारी न उठाना, जब भी शरीर को थोड़ी-सी भी तकलीफ हो या कोई छोटी-सी भी कठिनाई या थकान हो तो शिकायत करना; दूसरी, कोई भी काम करने से विमुखता, सुखमय जीवन की चाहत रखना, आरामतलब होना और मेहनत को नापसंद करना, अपना समय बरबाद करना और अपने दिन निरुद्देश्य बिताना, साथ ही जब भी उन्हें काम करना हो, तो अंतहीन रिरियाना और खुद को ऐसी जगह छिपा लेना, जहाँ उन्हें कोई न ढूँढ़ सके। ये आलस्य की दो मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं; हम यहाँ विशिष्ट अभिव्यक्तियों पर चर्चा नहीं करेंगे। उदाहरण के लिए, किसी पेटू व्यक्ति को लो। पेटूपन की क्या विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं? यह मानवता के भीतर ऐसी चीज है जिसका विश्लेषण और पहचान करना आसान होना चाहिए, है न? (लगातार भौतिक सुखों का अनुसरण करना, हमेशा स्वादिष्ट भोजन करने की चाह रखना, खाने की अपनी लालसा को संतुष्ट करना।) (स्वादिष्ट भोजन की बात आने पर कभी न मिटने वाली भूख होना।) ये पेटूपन की अभिव्यक्तियाँ हैं। क्या ऐसे लोग नहीं हैं, जो यह सुनने के बाद कि किसी जगह पर स्वादिष्ट भोजन मिल रहा है, उसे पाने के लिए बहुत प्रयास करते हैं? उदाहरण के लिए, मान लो कहीं एक नया रेस्तराँ खुला है और वहाँ कई तरह के स्वादिष्ट पकवान मिलते हैं, लेकिन वह थोड़ा महँगा और दूर है, और वहाँ पहुँचने में एक घंटे का सफर तय करना पड़ता है। ज्यादातर लोग सोचेंगे कि सिर्फ खाने के लिए इतनी दूर जाना सही नहीं है। लेकिन खाने के शौकीन लोग इस रेस्तराँ के बारे में सुनकर सोचेंगे, “एक घंटे का सफर ज्यादा दूर नहीं है। क्या जिंदगी खाने, पीने और मौज-मस्ती करने के लिए ही नहीं है? चलो, वहाँ जाकर खाना खाते हैं!” लेकिन अगर उसी व्यक्ति को अपने उचित काम पर जाने के लिए एक घंटे का सफर करने के लिए कहा जाए, तो वह विचार करना शुरू कर देगा, “क्या मैं वहाँ जाने से थक नहीं जाऊँगा? क्या वहाँ जाकर काम करने में इतना समय लगाना मेरे लिए लाभदायक होगा? अगर मेरा बुरे लोगों से पाला पड़ गया, तो क्या होगा? अगर कार में ईंधन खत्म हो गया, तो क्या होगा? मैं वहाँ क्या खाऊँगा? क्या वहाँ पका-पकाया खाना मिलेगा? अगर मैं स्थानीय परिवेश में नहीं ढल पाया, तो क्या होगा? अगर मैं रात में सो नहीं पाया, तो क्या होगा?” जब उसके उचित काम की बात आती है, तो वह हर जगह मुश्किलें देखते हुए बहुत अधिक सोचने लगते हैं। लेकिन जब बात कुछ स्वादिष्ट खाने की आती है, तो वह तमाम बाधाएँ पार करने के लिए तैयार रहता है; कोई भी बाधा समस्या नहीं बनती, और वह ज्यादा सोचना बंद कर देता है। ये पेटूपन की विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। मैं यहाँ सिर्फ संक्षेप में इसका उल्लेख कर रहा हूँ; मैं इस पर और विस्तार से नहीं बोलूँगा।
आओ, आज की संगति के विषय पर वापस आएँ। परमेश्वर के अस्तित्व में मसीह-विरोधियों के अविश्वास की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? वे कौन-से विशिष्ट विचार, दृष्टिकोण और अवस्थाएँ प्रकट करते हैं? जब उन पर चीजें आकर पड़ती हैं, तो उनमें कौन-से रवैये, दृष्टिकोण और विचार होते हैं, जो यह साबित करते हैं कि वे वाकई परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते? क्या यह बात संगति के लायक नहीं है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते; इस अविश्वास के विवरण और विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (चाहे कुछ भी हो, वे नहीं मानते कि यह परमेश्वर द्वारा आयोजित और व्यवस्थित है, और वे इसे परमेश्वर से आया मानकर नहीं स्वीकारते।) (वे नहीं मानते कि परमेश्वर अच्छे को पुरस्कृत करता है और बुरे को दंडित करता है, इसलिए वे बेशर्मी से बुरे कर्म करते हैं।) ये कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। परमेश्वर के अस्तित्व में यह अविश्वास एक इनकार है। वे किस चीज को नकारते हैं जिससे यह साबित होता है कि वे परमेश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं? (वे सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर की पहचान को नकारते हैं।) (वे इस बात को नकारते हैं कि परमेश्वर सब-कुछ नियंत्रित करता है और सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है।) (वे इस बात को नकारते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, और इस बात को भी नकारते हैं कि परमेश्वर का न्याय और ताड़ना का कार्य लोगों की भ्रष्टता शुद्ध कर सकता है और उन्हें शैतान से बचा सकता है।) इनमें से कौन-सा कथन निरूपक और अधिक आवश्यक है? परमेश्वर की पहचान और सभी चीजों पर उसकी संप्रभुता को नकारना—क्या ये निरूपक नहीं हैं? क्या ये आवश्यक मुद्दे नहीं हैं? (हाँ, ये आवश्यक मुद्दे हैं।) परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना एक तरह से परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारना है। इतना ही नहीं, परमेश्वर की पहचान और सार में विश्वास करने की नींव के भी ऊपर, यह इस तथ्य को स्वीकारना और मानना है कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है। क्या यह परमेश्वर के अस्तित्व में पूरी तरह से विश्वास करना नहीं है? क्या ये दो बिंदु महत्वपूर्ण नहीं हैं? (हाँ, ये महत्वपूर्ण हैं।) ये दो सबसे आवश्यक मुद्दे हैं। इसलिए, परमेश्वर के अस्तित्व में मसीह-विरोधियों के अविश्वास का गहन विश्लेषण करने के लिए हमें पहले दो चीजों का गहन विश्लेषण करने की आवश्यकता है : पहली, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारने से इनकार करना; दूसरी, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करना। अन्य पहलू इन दो बिंदुओं में समाहित हैं। पूर्व में हमने इस बारे में संगति की थी कि कैसे मसीह-विरोधी नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर सत्य है, परमेश्वर के वचन सत्य हैं, या परमेश्वर लोगों को बचा सकता है। यह भी एक तथ्य है। हालाँकि, यहाँ मैं यह कह रहा हूँ कि मसीह-विरोधी मूल रूप से यह नहीं मानते कि परमेश्वर है, और मूल रूप से परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारने से इनकार करने और परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करने के परिप्रेक्ष्य से इसका गहन विश्लेषण करना अधिक सशक्त और निरूपक होगा।
क. परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारने से इनकार करना
आओ, पहले बिंदु पर संगति करने से शुरूआत करते हैं : मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारने से इनकार करना। परमेश्वर की पहचान क्या है? सभी सृजित प्राणियों के लिए परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, तो सभी चीजों के लिए उसकी क्या पहचान है? (सभी चीजों का संप्रभु।) यह उपाधि भी सटीक है, फिर भी परमेश्वर की असली पहचान क्या है? परमेश्वर को संबोधित करते समय क्या तुम उसे सीधे “सभी चीजों का संप्रभु” कह सकते हो? यह ऐसा है, जैसे तुम्हारे लिए तुम्हारी माँ की पहचान उस इन्सान की है जिसने तुम्हें जन्म दिया और तुम्हारा पालन-पोषण किया, लेकिन क्या तुम अपनी माँ को “वह इंसान जिसने मुझे जन्म दिया और मेरा पालन-पोषण किया” कह सकते हो? (नहीं।) तुम उसे क्या कहते हो? (माँ।) अपनी माता के लिए तुम्हारा यह शब्द है। इसलिए, सृष्टिकर्ता, सभी चीजों के संप्रभु की उपाधि परमेश्वर है, और सिर्फ स्वयं परमेश्वर को ही परमेश्वर कहा जा सकता है। सभी सृजित और गैर-सृजित चीजों के लिए परमेश्वर, परमेश्वर है; उसकी पहचान सभी चीजों के संप्रभु की है, और उसकी उपाधि परमेश्वर है। स्वयं परमेश्वर ही इस उपाधि को धारण करता है, वह परमेश्वर है। सिर्फ वही परमेश्वर की उपाधि के योग्य है, सिर्फ उसी के पास परमेश्वर की पहचान और सार है। आओ, अभी “सार” शब्द के बारे में बात नहीं करते, बल्कि पहचान के बारे में बात करते हैं। स्वयं परमेश्वर, जो परमेश्वर की पहचान रखता है, परमेश्वर की चीजें करता है, परमेश्वर के स्वभाव को व्यक्त करता है, और परमेश्वर के तरीकों का उपयोग करके समस्त मानवजाति की अगुआई करता है और समस्त मानवजाति और सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और परमेश्वर की पहचान स्वीकारते हैं, परमेश्वर जो कुछ भी करता है उसके बारे में उनका परिप्रेक्ष्य मसीह-विरोधियों के परिप्रेक्ष्य से बिल्कुल अलग होता है। जो लोग सभी चीजों के बीच परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले हर काम को सही ढंग से समझ सकते हैं, वे इससे उसके क्रियाकलापों के तरीके देखेंगे, और सभी चीजों के बीच उसके अस्तित्व के बारे में खुद को और आश्वस्त करेंगे। इसके विपरीत, जिस दृष्टिकोण, तरीके और कोण से मसीह-विरोधी इन सभी चीजों को देखते हैं, वे उन लोगों के दृष्टिकोण, तरीके और कोण से बिल्कुल विपरीत होते हैं जो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। इसी वजह से मसीह-विरोधी परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करने या यह मानने के बजाय कि जो ये सब चीजें करने में सक्षम है, वही परमेश्वर की पहचान रखता है और सिर्फ वही परमेश्वर कहलाने और लोगों द्वारा परमेश्वर के रूप में संबोधित किए जाने के योग्य है, मरना पसंद करेंगे।
सभी चीजों और पूरी मानवजाति के बीच मौजूद कई मामलों को, चाहे वे खुली आँखों से दिखाई दें या न दें, अगर लोग परमेश्वर के वचनों और सामान्य मानवता की तार्किकता के माध्यम से देखें और समझें, तो वे पाएँगे कि परमेश्वर सभी चीजों के बीच मानवजाति की अगुआई कर रहा है और वह वास्तव में मौजूद है। सभी चीजों के नियम और सभी चीजों का विकास अदृश्य, अवर्णनीय नियमों के भीतर आयोजित और व्यवस्थित किया जा रहा है, तो यह सब आयोजित और व्यवस्थित करने में कौन सक्षम है? यह कोई महान व्यक्ति या कोई नायक नहीं है, और यह निश्चित रूप से कोई प्राकृतिक निर्माण नहीं है। बल्कि, यह वह है जो अदृश्य और अमूर्त है, लेकिन मनुष्य द्वारा महसूस किया जा सकता है, जो इस सब पर संप्रभु है। यह कौन है? यह परमेश्वर है। क्या परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना वह न्यूनतम तार्किकता नहीं है, जो लोगों में होनी चाहिए? क्या यह सबसे न्यूनतम, बुनियादी दृष्टिकोण और कोण नहीं है जिससे लोगों को चीजें देखनी चाहिए? लेकिन मसीह-विरोधियों में यह तार्किकता नहीं होती, इसलिए वे चीजों को ऐसे दृष्टिकोण और कोण से नहीं देखते। इसलिए, परमेश्वर द्वारा आयोजित चीजों के संबंध में, जिन्हें मानवता सिर्फ समझ सकती है और जिन्हें परमेश्वर ने मानवजाति को स्पष्ट भाषा में स्पष्ट रूप से संप्रेषित नहीं किया है, मसीह-विरोधी उन्हें संयोग, मानव-निर्मित, प्राकृतिक रूप से निर्मित, यहाँ तक कि लोगों द्वारा कल्पित और हेरफेर की हुई चीजें मानते हैं। चाहे तुम परमेश्वर के अस्तित्व की गवाही कैसे भी दो, चाहे तुम यह साबित करने के लिए कितने भी तथ्यों का उपयोग करो कि परमेश्वर सभी चीजों में है, कि परमेश्वर के पास परमेश्वर की पहचान है और सिर्फ वही जो परमेश्वर की पहचान रखता है, ये चीजें कर सकता है और सभी चीजों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित कर सकता है, और वही ऐसा संप्रभु है जिसके पास परमेश्वर की पहचान है, क्या मसीह-विरोधी इसे इस तरह से देखेंगे? क्या मसीह-विरोधी इसे इस तरह से समझेंगे? (नहीं।) चाहे तुम इसे साबित करने के लिए कितने भी तथ्य प्रस्तुत करो, मसीह-विरोधी न तो इस पर विश्वास करेंगे और न ही इसे स्वीकारेंगे। भले ही वे ऊपरी तौर पर कुछ न कहें, और भले ही वे इसका खंडन करने के लिए कोई सबूत पेश न कर सकें, लेकिन अंदर ही अंदर वे इससे सैकड़ों बार असहमत हो रहे होते हैं और सैकड़ों बार इसे स्वीकारने से इनकार कर रहे होते हैं, और इस पर कई प्रश्नचिह्न लगा रहे होते हैं। उन्हें लगता है कि जो लोग परमेश्वर की पहचान में विश्वास करते हैं, वे मूर्ख हैं और उन्हें गुमराह किया गया है, और ऐसी चीज सिर्फ परिपक्व सोच की कमी वाले लोग ही करेंगे और सोचेंगे। उनके विचार में, मनुष्य की स्वतंत्र इच्छा मनुष्य द्वारा ही नियंत्रित की जानी चाहिए और स्वतंत्र रूप से व्यक्त की जानी चाहिए। उन्हें लगता है कि लोगों को सभी चीजों के बीच होने वाली घटनाओं के बारे में अपनी राय अपनी पसंद के अनुसार बनानी चाहिए, और इन घटनाओं को वैज्ञानिक तरीकों और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से देखा जाना चाहिए, लोगों को इतना अंधविश्वासी नहीं होना चाहिए, या उन्हें सब-कुछ समझाने के लिए परमेश्वर की संप्रभुता का उपयोग नहीं करना चाहिए, या सब-कुछ परमेश्वर की संप्रभुता का उपयोग करके नहीं देखना चाहिए। उदाहरण के लिए, कलीसिया में कई भाई-बहनों ने परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने के बाद से परमेश्वर द्वारा दिखाए गए असंख्य संकेतों और चमत्कारों का अनुभव किया है। वे इस बात की गवाही देते हैं कि उस समय परमेश्वर ने उनकी अगुआई कैसे की, कैसे परमेश्वर ने उन्हें इन घटनाओं के माध्यम से दिखाया कि वह वास्तव में मौजूद है, और कि वे वास्तव में उसी के द्वारा की गई थीं, साथ ही उन घटनाओं के माध्यम से उन्हें अमित आशीष और अनुग्रह प्राप्त हुआ। इसका साक्ष्य गवाहियों और भौतिक प्रमाण दोनों रूपों में मौजूद है। जो लोग परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं, उनकी आस्था इन गवाहियों और भौतिक प्रमाण से मजबूत होती है, लेकिन क्या परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास न करने वाले मसीह-विरोधियों का दृष्टिकोण उन्हें सुनने के बाद बदल जाता है? (नहीं।) तुम यह कैसे कह सकते हो? क्योंकि, चाहे तुम कितनी भी सच्चाई से बोलो या तुम्हारी गवाही को व्यक्तिगत रूप से सत्यापित करने वाले कितने भी लोग हों, मसीह-विरोधी उस पर विश्वास नहीं करेंगे। वे कहेंगे, “जब तक मैं इसे स्वयं अनुभव नहीं करता, अगर मैंने इसे नहीं देखा है, तो इसका अस्तित्व नहीं है। तुम लोगों ने जिसका सामना और अनुभव किया है, वह सिर्फ एक संयोग था, एक आकस्मिक घटना थी। क्या हर कोई अपने जीवन में खतरनाक या संयोगवश घटित होने वाली घटनाओं का अनुभव नहीं करता? क्या इन संयोगों और आकस्मिक घटनाओं का घटित होना यह साबित करता है कि ये परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य हैं? क्या यह साबित करता है कि इन चीजों को करने वाला परमेश्वर है? हो सकता है कि यह सिर्फ तुम्हारी कल्पना हो, हो सकता है कि तुम भाग्यशाली थे कि कोई मददगार तुम्हारी मदद करने के लिए वहाँ था, या हो सकता है कि यह तुम्हारे मरने का समय नहीं था और तुम भाग्य से बच गए।” देखो, क्या वे उन चीजों को स्वीकारते हैं, जो परमेश्वर ने इन लोगों पर की हैं? (वे नहीं स्वीकारते।) वे उन चीजों को नहीं स्वीकारते या उन पर विश्वास नहीं करते जो परमेश्वर ने भाई-बहनों पर की हैं, न ही वे मानते हैं कि परमेश्वर ऐसे कर्म कर सकता है, या भाई-बहनों ने जो चीजें अनुभव कीं, वे वास्तव में घटित हुई हैं। वे सोचते हैं, “ऐसी चीजें दुनिया में कैसे हो सकती हैं? अगर वे हैं, तो वे सिर्फ इंसानी कल्पना की उपज हैं। जैसी कि कहावत है, ‘दिन में तुम जिस बारे में सोचते हो, रात को तुम उसके सपने देखोगे।’ ये सारी चीजें सिर्फ भ्रम हैं।” जब मसीह-विरोधी सुनते हैं कि कैसे भाई-बहनों ने कुछ संकेतों और चमत्कारों, परमेश्वर के कुछ विशेष अनुग्रह और आशीषों और कुछ ऐसी चीजों का अनुभव किया, जो आम लोगों की पहुँच से परे हैं, तो वे इस पर विश्वास नहीं करते। तो, क्या मसीह-विरोधी उस प्रबुद्धता और मार्गदर्शन में विश्वास कर सकते हैं जो भाई-बहन परमेश्वर के वचनों का अनुभव करते हुए प्राप्त करते हैं? वे उसमें भी विश्वास नहीं करते। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर लोगों को प्रबुद्ध और रोशन कर उनका मार्गदर्शन करता है। उन्हें लगता है कि यह सब मानव-मन से, मनुष्य के ज्ञान-आधारित विश्लेषण और समझ से आता है, और वह इन अनुभवजन्य गवाहियों को जन्म देता है। वे मानते हैं, “अगर लोग इस दिशा में कठोर चिंतन और कठोर प्रयास करें, तो क्या उन्हें कुछ ज्ञान प्राप्त नहीं होगा? अगर मैं भी प्रयास करूँ, और इस बारे में कड़ी मेहनत और कठोर चिंतन करूँ, तो एक लेख लिखने की तरह, मैं भी कुछ अनुभवजन्य गवाही दे सकता हूँ।” इसलिए, जब भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियों की बात आती है, जहाँ वे गवाही देते हैं कि परमेश्वर ने कैसे उनकी अगुआई की, कैसे उन्हें प्रबुद्ध और रोशन किया, कैसे उनका न्याय किया, उन्हें ताड़ना दी, उनकी काट-छाँट की और उन्हें अनुशासित किया, और कैसे परमेश्वर ने उन्हें परखने और उनका शोधन करने के लिए परिस्थितियों का आयोजन किया, और साथ ही कैसे उन्होंने इससे परमेश्वर के इरादे समझे, इत्यादि, तब मसीह-विरोधी परमेश्वर के इन कर्मों में से किसी को भी नहीं स्वीकारते या इनमें से किसी पर विश्वास नहीं करते। उन्हें लगता है कि ये सारी चीजें असंभव हैं। मसीह-विरोधी भाई-बहनों के बीच होने वाली इन घटनाओं को नहीं स्वीकारते या इन पर विश्वास नहीं करते। क्या यह मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान को स्वीकारने से पूरी तरह इनकार करने के सार की पुष्टि करता है? असल में यह मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान को स्वीकारने से इनकार करने के सार को साबित करने का सबसे शक्तिशाली सबूत नहीं है।
आओ, थोड़ी देर के लिए कलीसिया और भाई-बहनों के दायरे से बाहर जाकर लोगों के समूहों के बीच और वास्तविक जीवन में विभिन्न मामलों के प्रति मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोणों की जाँच करें। ये कौन-से मामले हैं? (लोगों का जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु, और साथ ही सामाजिक परिवर्तन, राजनीतिक बदलाव और आपदाएँ घटित होना। मसीह-विरोधी इनमें से किसी भी चीज में परमेश्वर की संप्रभुता जानने में विफल रहते हैं।) (मसीह-विरोधी नहीं मानते कि लोगों की नियति परमेश्वर के हाथों में है, इसके बजाय, वे अपने ही दो हाथों से रहने की एक सुंदर जगह बनाना चाहते हैं।) ये विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं, जो मुद्दे के सार से संबंधित हैं। क्या मसीह-विरोधी यह देख सकते हैं कि मानव-नियति, जीवन और मृत्यु, और वे तमाम अनुभव जिनसे प्रत्येक व्यक्ति जीवन में गुजरता है, परमेश्वर की संप्रभुता के अधीन हैं? वे इसे नहीं देख सकते। उदाहरण के लिए, समाज में एक लोकप्रिय कहावत है : “पुल बनाना और सड़कों की मरम्मत करना अंधेपन की ओर ले जाता है, जबकि हत्यारे और आगजनी करने वाले यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी संतानें कई गुना बढ़ें।” क्या यह कहावत किसी चीज के लिए एक ठोस नियम है? क्या यह सत्य है? क्या यह एक दार्शनिक सिद्धांत है? (नहीं।) तो फिर, यह कहावत कहाँ से आती है? निश्चित रूप से उन लोगों से नहीं आती जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं; यह मानव-विकास की प्रक्रिया में विभिन्न लोगों की जीवन-स्थितियों में एक सतही घटना है। लोग मानते हैं कि दुनिया में निष्पक्षता का अभाव है, कि व्यक्ति जितने ज्यादा अच्छे कर्म करता है, उतनी ही ज्यादा उसके अंधे होने की संभावना होती है और उतना ही ज्यादा वह प्रतिदंड का सामना करता है, जबकि व्यक्ति जितनी ज्यादा बुराई करता है, उतना ही ज्यादा वह दुनिया में फलता-फूलता और सफलता पाता है। क्या मानवजाति के बीच विभिन्न चीजों के विकास संबंधी नियम किसी भी तरह से इस कहावत के अनुरूप हैं? एक कहावत यह भी है, “अच्छे लोग कम उम्र में ही मर जाते हैं, जबकि बुरे लोग लंबी उम्र तक जीते हैं।” किस तरह के लोगों ने यह कहावत बनाई? ऐसी कहावतों को लोग लोकोक्तियों के रूप में जानते हैं; किस तरह के लोग इन कहावतों को बोलने में सक्षम होते हैं? क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? क्या वे वो लोग हैं, जो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं? (नहीं।) कुछ निंदक किस्म के लोग होते हैं जो समाज में और लोगों के बीच असफल रहते हैं, जो हर जगह बाधाओं का सामना करते हैं, कठिन नियति और अधूरी आकांक्षाओं वाले, जो कहीं भी जाएँ सफल नहीं होते। उन्हें लगता है कि वे कुछ हद तक सक्षम और योग्य हैं, फिर भी वे नाम कमाने, फलने-फूलने, दूसरों से आगे निकलने या अपने पूर्वजों की इज्जत बढ़ाने में असमर्थ रहे हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, उन्हें बहिष्कृत किया जाता है, धमकाया और सताया जाता है, और उनमें इन सबसे मुक्त होने की क्षमता नहीं होती। अंततः, वे निष्कर्ष निकालते हैं : “समाज या मानवजाति में निष्पक्षता नहीं है, अच्छे को पुरस्कृत करने और बुरे को दंडित करने या प्रतिदंड देने जैसी कोई चीज नहीं है। बुरे लोग बिना सजा पाए बुरे काम करते हैं, जबकि अच्छे लोग जिन्होंने बहुत सारे अच्छे काम किए हैं, जैसे दान देना और गरीबों की मदद करना, अंत में पुरस्कार नहीं पाते। इसलिए, अच्छे मत बनो; यह बेकार है। अच्छे लोग अंधे होकर रह जाते हैं—इसके बजाय बुरा व्यक्ति बनना चाहिए।” चूँकि वे दुनिया में और लोगों के समूहों के बीच असफल रहते हैं, इसलिए वे दुनिया में निष्पक्षता और न्याय की कमी और दुनिया में उद्धारकर्ता की अनुपस्थिति की शिकायत करते हैं। उन्हें लगता है कि सभी ने उनके साथ गलत किया है, क्योंकि कोई उनकी खूबियाँ या विशेषज्ञता नहीं देखता और कोई उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नहीं रखता। इसलिए वे मानवजाति और दुनिया के बारे में शिकायत करने के लिए इस तरह के विकृत सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं। वास्तव में, क्या इन विभिन्न चीजों के घटित होने के पीछे कोई कारण हैं? क्या कोई कारण-कार्य संबंध हैं? बिल्कुल! मसीह-विरोधी इन लोगों जैसा ही दृष्टिकोण रखते हैं; वे नहीं मानते कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, न ही वे यह मानते हैं कि परमेश्वर—जिसके पास परमेश्वर की पहचान है—जिस चीज पर भी संप्रभुता रखता है, वह सही है। इसलिए मसीह-विरोधी न सिर्फ यह स्वीकारने में विफल रहते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह उसकी पहचान दर्शाता है, बल्कि वे समाज में फैले विकृत सिद्धांतों और भ्रांतियों पर भी विश्वास करते हैं। वे मानते हैं कि वे विकृत सिद्धांत और भ्रांतियाँ सत्य हैं, और जो इस दुनिया में समृद्ध होने में सक्षम हैं, जिनकी आराधना की जाती है और जिनका अनुसरण किया जाता है, उन्हें ही अपने दिलों के परमेश्वर, और अपने दिलों में परमेश्वरों की पहचान रखने वाले, कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए, चीनी किंवदंतियों में पश्चिम की रानी माँ, सम्राट जेड, आठ अमर, गुआनिन और बुद्ध जैसी हस्तियाँ हैं—ये ही हैं जिनकी मसीह-विरोधी अपने दिलों में वास्तव में आराधना करते हैं। इन किंवदंतियों में सम्राट जेड सबसे महान है; उसके पास स्वर्गलोक में पापियों को मृत्युलोक में डालकर दंडित करने की शक्ति है। जब मसीह-विरोधी यह सुनते हैं तो उसके लिए बहुत आदर का भाव रखते हैं और सोचते हैं, “सम्राट जेड वास्तव में परमेश्वर है! उसमें परमेश्वर जैसा आचरण, व्यवहार और क्षमताएँ हैं!” इन किंवदंतियों के साथ-साथ तथाकथित अमर लोगों ने, जिन पर आम जनता चढ़ावा चढ़ाती है, लोगों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है। वे मानते हैं, “इन तथाकथित अमर लोगों के पास महान कौशल और शक्तियाँ हैं। वे परमेश्वर की उपाधि के हकदार हैं। वे दुनिया में होने वाली सभी अनुचित और असंतोषजनक चीजों के बारे में स्वर्गलोक में संकल्प-पत्र देने में सक्षम हैं, और अगर कोई न्याय चाहता है, तो उनसे उत्तर पा सकता है। उदाहरण के लिए, बाओ गोंग और गुआन गोंग जैसी ऐतिहासिक हस्तियाँ आध्यात्मिक क्षेत्र में मानवजाति के लिए न्याय कायम रखती हैं। जब किसी व्यक्ति के साथ अन्याय होता है और अदालतें न्याय नहीं करतीं, तो अगर वे अपना मामला बाओ गोंग या गुआन गोंग के समक्ष लाते हैं तो उन्हें न्याय मिलने की गारंटी होती है।” लोग मानते हैं कि लोक-कथाओं के ये पात्र मानवजाति को न्याय दे सकते हैं, बुरे लोगों को दंडित कर सकते हैं, और दुनिया में समस्त अन्याय सुधार सकते हैं, जिससे पीड़ित और संघर्षरत लोग आँसू बहाना बंद कर सकते हैं। उन्हें लगता है कि समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले गरीब लोगों, अक्षम और प्रताड़ित लोगों को अपने तमाम दुखों से बचने और अपने साथ होने वाले तमाम दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का समाधान पाने के लिए सिर्फ इन हस्तियों को चढ़ावा चढ़ाने, उनमें विश्वास करने और उनका अनुसरण करने की आवश्यकता है। इसी तरह, अपने दिलो-दिमाग में मसीह-विरोधी मानते हैं कि परमेश्वरों को तथाकथित बोधिसत्व और बुद्ध की तरह होना चाहिए, जो सभी इंसानी दुखों का समाधान करें और लोगों को दुख के सागर से उबारें। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति, जिसकी माँ लाइलाज बीमारी की वजह से मरणासन्न और चिकित्सा सहायता से परे थी, बहुत ही निष्ठावान पुत्र था और नहीं चाहता था कि उसकी माँ मर जाए, इसलिए वह प्रतिदिन गुआनिन बोधिसत्व की मूर्ति के आगे तीन धूपबत्तियाँ जलाता था और स्वादिष्ट भोजन और पेय चढ़ाता था। फिर उसने एक प्रतिज्ञा की : अगर उसकी माँ की बीमारी ठीक हो जाए और वह 30 साल और जी सके, तो वह बदले में अपने जीवन के 30 साल स्वेच्छा से त्याग देगा, अपने शेष जीवन के लिए शाकाहारी बन जाएगा, और कभी किसी जीवित प्राणी की जान नहीं लेगा। धूपबत्ती जलाने, बंदगी करने और यह प्रतिज्ञा करने, और अपना सच्चा दिल अर्पित करने के बाद, उसकी माँ की बीमारी ठीक हो गई। क्या इसका मतलब यह हुआ कि उसकी प्रतिज्ञा बोधिसत्व ने सुन ली? क्या इसका मतलब यह हुआ कि उसकी माँ 30 साल और जीएगी और वह 30 साल कम जीएगा? नहीं। लेकिन चूँकि उसने विश्वास किया था, इसलिए उसे यकीन हो गया कि यह सच है। तब उसने शाकाहारी बनकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करनी शुरू कर दी। एक दिन उसने सोचा : “मेरी माँ ठीक हो गई है और उसकी लंबी उम्र अब कोई समस्या नहीं है, तो क्या मैं भविष्य में अपनी प्रतिज्ञा तोड़ सकता हूँ? क्या मैं मुर्गे की टाँग खा सकता हूँ? अगर मैं खाना चाहूँ, तो खा सकता हूँ।” मुर्गे की टाँग खाने के तुरंत बाद उसे अच्छा लगा और उसके दिल को चैन आया, लेकिन अगले दिन उसे उलटी और दस्त होने लगे, और वह कई दिनों तक बीमार रहा और कोई सुधार नहीं हुआ। चौथे दिन उसने सोचा : “क्या यह दंड बोधिसत्व की ओर से है? क्या वह मुझे मांस खाने की अनुमति नहीं दे रही? ऐसा लगता है कि मैंने पहले जो शब्द कहे थे, वे वास्तव में मायने रखते हैं—मैं मांस नहीं खा सकता!” यह सोचकर उसने जल्दी से तीन धूपबत्तियाँ और जलाईं, ढेर सारा स्वादिष्ट भोजन चढ़ाया और अपना पाप कबूला। अगले दिन उसकी बीमारी ठीक हो गई। यह देखकर कि बोधिसत्व इतनी प्रभावी है, उसे और भी दृढ़ता से विश्वास हो गया कि : “जब लोग कार्य करते हैं, तो बोधिसत्व देख रही होती है। मुझे उसे धोखा देने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, मुझे अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहना चाहिए, या फिर उसकी सजा भुगतनी चाहिए!” तब से उसे और भी ज्यादा लगने लगा कि “बोधिसत्व” की उपाधि पवित्र और अनुल्लंघनीय है। वह रोज तीन अगरबत्तियाँ जलाता और त्योहारों और छुट्टियों के दौरान चढ़ावा चढ़ाता। समय के साथ यह विश्वास कि सम्राट जेड, गुआनिन बोधिसत्व, गुआन गोंग जैसी मूर्तियाँ, जिन्हें लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, परमेश्वर हैं, उस व्यक्ति में मजबूत हो गया। बिना किसी संदेह या शंका के, उसके दिल में उनका दर्जा और ज्यादा अडिग हो गया। भले ही मसीह-विरोधियों ने इन चीजों का अनुभव न किया हो या घर पर इन मूर्तियों या मिट्टी की आकृतियों को चढ़ावा न चढ़ाया हो, फिर भी वे कभी-कभी अपने सामाजिक दायरे में ऐसी चीजों के बारे में सुनते हैं या उनका सामना करते हैं। उदाहरण के लिए, वे सुनते हैं कि कैसे बुद्ध ने किसी की बीमारी ठीक कर दी या बुरे लोगों को दंडित करके न्याय किया, या कैसे कोई व्यक्ति फेंग शुई गुरु द्वारा अपने घर में कुछ चीजें पुनः व्यवस्थित किए जाने के बाद अमीर बन गया, या कैसे किसी व्यक्ति द्वारा मकबरों और कब्रों के चुनाव के बारे में फेंग शुई गुरु या यिन यांग गुरु से परामर्श करने से उसके वंशज उच्च अधिकारी बन गए या उन्होंने अपने करियर में बड़ी सफलता प्राप्त की, इत्यादि। ये बातें मसीह-विरोधियों के मन में यह छाप छोड़ती हैं कि परमेश्वर के पास इन तथाकथित बुद्धों और सम्राटों जैसी क्षमताएँ और शक्तियाँ होनी चाहिए, जिनका लोग अपने दैनिक जीवन में सामना करें और जिन्हें देखें। वे यहाँ तक सोचते हैं कि परमेश्वर को उन मूर्तियों की तरह होना चाहिए जिन्हें लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, और लोगों के बीच भय और आश्चर्य पैदा करने के लिए उसे कुछ संकेत और चमत्कार दिखाने चाहिए। और अगर कोई परमेश्वर ऐसा नहीं करता, तो उन्हें लगता है कि उसे परमेश्वर नहीं माना जाना चाहिए। ऐसे विचारों और परमेश्वर की ऐसी समझ के साथ मसीह-विरोधियों के लिए परमेश्वर की क्या अवधारणा बनती है? उनके मन में, सम्राट जेड जैसा प्राणी, जो किसी भी समय और स्थान पर स्वर्ग के कानूनों का उल्लंघन करने वालों को मृत्युलोक में डालने के लिए स्वर्ग के सैनिकों को भेज सकता है, वही वास्तव में परमेश्वर है और वही है जिसके पास परमेश्वर की पहचान है। या एक मूर्ति, जिसे लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, जो उन्हें अमीर और उच्च अधिकारी बनने में सक्षम बना सकती है—मसीह-विरोधियों की नजर में ऐसे प्राणी भी परमेश्वर की पहचान रखने योग्य माने जाते हैं। यह परमेश्वर की पहचान के बारे में मसीह-विरोधियों की आंतरिक धारणा और समझ है। इसलिए, जब परमेश्वर उस भूमि पर काम करता है जहाँ बड़ा लाल अजगर रहता है, और कुछ भाई-बहन गिरफ्तार कर लिए जाते हैं, कलीसिया को नुकसान पहुँचाया जाता है और परमेश्वर के कार्य को बाधित किया जाता है और उसमें विघ्न डाले जाते हैं, तो मसीह-विरोधी क्या सोचते हैं? “अगर यह परमेश्वर है, तो कलीसिया के साथ ऐसी चीजें क्यों होंगी? जब भाई-बहनों को गिरफ्तार किया जा रहा हो, तो परमेश्वर को आकाश में दर्शन देना चाहिए, और गड़गड़ाहट और क्रोध करना चाहिए, जिससे भाई-बहनों को गिरफ्तार करने वाली दुष्ट पुलिस भयभीत चूहों की तरह आतंकित होकर भाग जाए। मैंने ऐसी घटनाएँ होने के बारे में कभी क्यों नहीं सुना? चूँकि ये लोग परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, तो परमेश्वर इन्हें बचाता क्यों नहीं और इनकी रक्षा क्यों नहीं करता? बड़ा लाल अजगर उन लोगों को जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, इतने पागलपन और क्रूरता से सताता है। परमेश्वर मानवजाति को न्याय प्रदान करने के लिए पृथ्वी पर क्यों नहीं आता? परमेश्वर बड़े लाल अजगर को रोकता क्यों नहीं? वह बड़े लाल अजगर को दंडित क्यों नहीं करता? निश्चित रूप से ऐसा नहीं हो सकता कि परमेश्वर की पहचान वाला परमेश्वर सिर्फ बोलकर सत्य की आपूर्ति ही कर सकता है? लगता नहीं कि सम्राट जेड, गुआनिन बोधिसत्व और बुद्ध की तुलना में परमेश्वर के पास महान क्षमताएँ और कौशल हैं। लोग कहते हैं कि परमेश्वर के पास शक्ति और अधिकार है, लेकिन वह शक्ति और अधिकार कहाँ है? जो सिर्फ सत्य की आपूर्ति कर सकता है और जिसके पास परमेश्वर की शक्ति और अधिकार नहीं है, क्या वह वास्तव में परमेश्वर है? जब भाई-बहन गिरफ्तार किए जाने वाले हों, तो परमेश्वर को दुष्ट पुलिस के सामने एक दीवार खड़ी कर देनी चाहिए, या उन्हें अंधा और लँगड़ा बना देना चाहिए, और उन्हें पागल कर देना चाहिए या उन्हें मूर्ख बना देना चाहिए। खतरा करीब आने से पहले, परमेश्वर को हर किसी को आसन्न जोखिम के बारे में स्पष्ट रूप से बता देना चाहिए, उन्हें एक आवाज आनी चाहिए, जोरदार सनसनी महसूस होनी चाहिए और उनमें एक स्पष्ट विचार आना चाहिए। परमेश्वर ऐसी चीजें क्यों नहीं करता? जब ऐसी परिस्थिति आती है, तो वह कोई संकेत क्यों नहीं देता? जब लोग गिरफ्तारी, यातनाएँ और उत्पीड़न झेलते हैं, तो परमेश्वर इन शैतानों और दुष्ट पुलिस को क्यों नहीं रोकता या दंडित करता? जब वे भाई-बहनों को हथकड़ी लगाते हैं, जब उनके डंडे इन पर बरसते हैं, तो परमेश्वर कुछ क्यों नहीं करता? अगर सम्राट जेड या गुआनिन बोधिसत्व होते, तो वे अपने अनुयायियों को इस तरह से पीड़ित नहीं होने देते। वे निश्चित रूप से हस्तक्षेप करके मदद करते, दुष्ट पुलिसवालों को अंधा कर देते, उनके चेहरे बिगाड़ देते, उन्हें पागल कर देते, उनके हाथ-पैर सड़ा देते, उन्हें जानलेवा बीमारियाँ दे देते और उन्हें एक-दूसरे को मारने के लिए मजबूर कर देते। परमेश्वर ऐसा क्यों नहीं करता? परमेश्वर असल में है कहाँ? क्या वह मौजूद भी है? जब मुसीबतें आती हैं, तो परमेश्वर लोगों को नहीं बचाता, भले ही वे उससे प्रार्थना करें, न ही वह उनके लिए खतरे से बचने की परिस्थितियाँ व्यवस्थित करता है। जब दुष्ट पुलिस इन असहाय लोगों पर अत्याचार करती है, तो सामान्य समझ कहती है कि परमेश्वर को हस्तक्षेप करना चाहिए, मदद करनी चाहिए, सिर्फ मूक दर्शक बनकर खड़े नहीं रहना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर दुनिया में अन्याय देखना पसंद नहीं करता, और परमेश्वर से लोगों को दुख से बचाने और सभी प्राणियों को पीड़ा से मुक्ति दिलाने की अपेक्षा की जाती है। क्यों यह परमेश्वर जिस पर मैं अब विश्वास करता हूँ, ऐसी चीजें बिल्कुल नहीं करता? क्या वह परमेश्वर जिस पर मैं विश्वास करता हूँ, वास्तव में मौजूद है?” कई चीजों का अनुभव करने के बाद मसीह-विरोधी लगातार भ्रमित और संदेहग्रस्त रहते हैं। यहाँ तक कि वे परमेश्वर में अपने विश्वास के दौरान भविष्य पढ़वाने के लिए भाग्य बताने वालों और यिन यांग गुरुओं के पास भी जाते हैं, ताकि यह देख सकें कि उनका भविष्य कैसा है, और यह जाँच सकें कि क्या उन्हें जेल होगी, क्या उनका काम सुचारु रूप से चलेगा, क्या कोई बदमाश उनसे बदला लेने की कोशिश करेगा, या अगर जेल उनके भाग्य में है तो क्या उससे बचने का कोई रास्ता है।
परमेश्वर पर विश्वास करने और उसका अनुसरण करने की प्रक्रिया में मसीह-विरोधियों में हमेशा परमेश्वर की पहचान और सार के बारे में धारणाएँ पैदा होती हैं, और वे हमेशा सवाल करते हैं कि परमेश्वर सिर्फ बोलता क्यों है और कोई संकेत और चमत्कार क्यों नहीं दिखाता। हालाँकि मसीह-विरोधी भी परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, लेकिन उनका इरादा सत्य खोजकर उसे स्वीकारना नहीं होता, बल्कि वे उन्हें अध्ययन और विवेचन की मानसिकता से पढ़ते हैं। नतीजतन, वे न सिर्फ वास्तविक आस्था विकसित करने में विफल रहते हैं, बल्कि और ज्यादा शंकालु हो जाते हैं, और जितनी ज्यादा वे पड़ताल करते हैं, देहधारी परमेश्वर के बारे में उतनी ही ज्यादा धारणाएँ पाल लेते हैं। उनकी मुख्य धारणा यह है कि वे मानते हैं कि मसीह में अलौकिक मानवता होनी चाहिए। वे सोचते हैं : “अगर मसीह में सामान्य मानवता है और वह कोई संकेत या चमत्कार नहीं दिखाता, तो यह कैसे साबित किया जा सकता है कि वह परमेश्वर है?” मसीह-विरोधियों के दिलों में सिर्फ परमेश्वर का आत्मा ही परमेश्वर है, और सिर्फ वह देह ही परमेश्वर है जो संकेत और चमत्कार दिखा सकता है। अगर किसी देह में सिर्फ सामान्य मानवता है और वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता, तो भले ही वह सत्य व्यक्त कर सकता हो, उसे परमेश्वर नहीं माना जाता। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं कि मसीह-विरोधी हमेशा देहधारी परमेश्वर के सार पर संदेह करते हैं। चाहे उसके साथ कितनी भी चीजें घटित हो जाएँ, मसीह-विरोधी जैसा व्यक्ति कभी परमेश्वर के वचनों में सत्य खोजकर उन्हें हल करने की कोशिश नहीं करता, चीजें परमेश्वर के वचनों के माध्यम से देखने की कोशिश तो वह बिल्कुल भी नहीं करता—जो पूरी तरह से इसलिए है, क्योंकि वह इस पर विश्वास नहीं करता कि परमेश्वर के वचनों की प्रत्येक पंक्ति सत्य है। परमेश्वर का घर सत्य पर चाहे जिस भी तरह संगति करे, मसीह-विरोधी उसे ग्रहण नहीं करते, जिसका नतीजा यह होता है कि चाहे उन्हें किसी भी स्थिति का सामना करना पड़े, उनमें सही रवैये का अभाव रहता है; विशेष रूप से, जब यह बात आती है कि वे परमेश्वर और सत्य को कैसे लेते हैं, तो मसीह-विरोधी हठपूर्वक अपनी धारणाएँ अलग रखने से इनकार कर देते हैं। जिस परमेश्वर में वे विश्वास करते हैं, वह एक ऐसा परमेश्वर है जो चिह्न और चमत्कार दिखाता है, यानी एक अलौकिक परमेश्वर। जो कोई भी संकेत और चमत्कार दिखा सकता है—चाहे वह गुआनयिन बोधिसत्व हो, बुद्ध हो या माजू हो—वे उसे परमेश्वर कहते हैं। वे मानते हैं कि जो संकेत और चमत्कार दिखा सकते हैं, सिर्फ वे ही परमेश्वरों की पहचान रखने वाले परमेश्वर हैं, और जो संकेत और चमत्कार नहीं दिखा सकते, वे चाहे कितने भी सत्य व्यक्त करें, आवश्यक नहीं कि वे परमेश्वर हों। वे यह नहीं समझते कि सत्य व्यक्त करना परमेश्वर की महान शक्ति और सर्वशक्तिमत्ता है; इसके बजाय, उन्हें लगता है कि सिर्फ संकेत और चमत्कार दिखाना ही परमेश्वरों की महान शक्ति और सर्वशक्तिमत्ता है। इसलिए, लोगों को जीतने और बचाने, उनका सिंचन करने, उनकी चरवाही करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करने, उन्हें वास्तव में परमेश्वर के न्याय, ताड़ना, परीक्षणों और शोधन का अनुभव करने और सत्य समझने, अपने भ्रष्ट स्वभावों को त्यागने, और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उसकी आराधना करने वाले लोग बनने में सक्षम बनाने, आदि के लिए सत्य व्यक्त करने के देहधारी परमेश्वर के व्यावहारिक कार्य की बात करें तो—मसीह-विरोधी इन सबको मनुष्य का कार्य मानते हैं, परमेश्वर का नहीं। मसीह-विरोधियों के विचार में, परमेश्वरों को वेदी के पीछे छिपा होना चाहिए, लोगों से चढ़ावे चढ़वाने चाहिए, लोगों द्वारा चढ़ाए गए खाद्य पदार्थ खाने चाहिए, उनकी जलाई गई धूपबत्ती का धुआँ सूँघना चाहिए, उनके मुसीबत में होने पर मदद के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए, खुद को बहुत शक्तिशाली दिखाना चाहिए और लोगों की समझ के दायरे में उन्हें तत्काल सहायता प्रदान करनी चाहिए, और जब लोग मदद माँगें और उनकी विनती में ईमानदारी हो तो उनकी जरूरतें पूरी करनी चाहिए। मसीह-विरोधियों के अनुसार सिर्फ ऐसा परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है। इस बीच, आज परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उसमें उसे मसीह-विरोधियों का तिरस्कार झेलना पड़ता है। और ऐसा क्यों है? मसीह-विरोधियों के प्रकृति सार को देखते हुए, उन्हें जिस चीज की जरूरत है, वह सिंचन, चरवाही और उद्धार का वह कार्य नहीं है जो सृष्टिकर्ता सृजित प्राणियों पर करता है, बल्कि सभी चीजों में समृद्धि और उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति करना, इस दुनिया में दंडित न किया जाना और आने वाली दुनिया में स्वर्ग जाना है। उनका दृष्टिकोण और जरूरतें सत्य के प्रति उनकी घृणा के उनके सार की पुष्टि करती हैं। मसीह-विरोधी दुष्टता, अलौकिकता और चमत्कारों से प्रेम करते हैं, यहाँ तक कि वे शैतान और दुष्टात्माओं के कार्यों और शैतानी शब्दों की—जो नकारात्मक और दुष्ट चीजें हैं—दिव्य और सत्य के रूप में पूजा भी करते हैं। वे इन्हें अपने लिए आजीवन पूजा और अनुसरण की वस्तु मानते हैं और ऐसी चीजें समझते हैं, जिन्हें दुनिया में सम्मानित और प्रचारित किया जाना चाहिए। नतीजतन, परमेश्वर का अनुसरण करते हुए परमेश्वर की पहचान के बारे में उनकी धारणाएँ और विचार कभी नहीं बदलेंगे। अगर ऐसे लोग परमेश्वर के घर में अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते, अगर उन्हें पदोन्नत नहीं किया जाता या उनका उपयोग नहीं किया जाता और वे त्वरित और बड़ी सफलता प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो वे कभी भी कहीं भी परमेश्वर को धोखा देने के लिए तैयार रहेंगे। इनमें से कुछ लोग 10 वर्षों से विश्वास करते आए हैं, कुछ 20 वर्षों से, और तुम्हें लगेगा कि उनके पास एक नींव है और वे परमेश्वर को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन वास्तव में वे कभी भी परमेश्वर को धोखा देकर बाहरी दुनिया में लौटने के लिए तैयार हैं। भले ही वे कलीसिया न छोड़ें, लेकिन उनके दिल पहले से ही परमेश्वर से भटककर उसे धोखा दे चुके होते हैं। जब भी परिस्थितियाँ अनुकूल होंगी या अवसर आएँगे, वे जाकर नकली परमेश्वरों और दुष्टात्माओं पर विश्वास करने लगेंगे। अगर उन्हें त्वरित सफलता पाने, उच्च अधिकारी बनने, प्रसिद्ध होने, और महिमा और धन-दौलत का आनंद लेने का मौका मिले, तो वे कलीसिया छोड़कर बाहरी दुनिया की प्रवृत्ति का पालन करने में संकोच नहीं करेंगे। कुछ मसीह-विरोधी सवाल करते हैं, “अगर वह परमेश्वर है, तो वह बड़े लाल अजगर का उत्पीड़न और धर-पकड़ क्यों सहता है? अगर वह परमेश्वर है, तो वह बड़े लाल अजगर को नेस्तनाबूद करने के लिए संकेत और चमत्कार क्यों नहीं दिखाता? परमेश्वर के चुने हुए बहुत-से लोगों को बड़े लाल अजगर ने पकड़कर सताया है। परमेश्वर शैतान के उत्पीड़न से उनकी रक्षा कर उन्हें बचाता क्यों नहीं?” यह वैसा ही है, जैसा कि यहूदी धर्म के फरीसी सोचते थे, “अगर यीशु परमेश्वर है, तो उसे सलीब पर क्यों चढ़ाया गया? वह खुद को बचा क्यों नहीं सका?” मसीह-विरोधी इसे कभी नहीं समझते क्योंकि वे सत्य नहीं स्वीकारते, न ही वे यह मानते हैं कि परमेश्वर के वचन सब-कुछ साकार कर देंगे। वे सिर्फ वही मानते हैं जो वे देखते हैं, और उन्हें परमेश्वर के किए समस्त कार्य से प्रदर्शित मूल्य या महत्व पर आस्था नहीं है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त किया गया हर वचन सत्य है और उसका हर वचन पूरा और साकार होगा; वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर की बुद्धि शैतान की चालों के आधार पर काम करती है, या कि परमेश्वर अपनी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि प्रकट करने वाली विषमता के रूप में सेवा प्रदान करने के लिए बड़े लाल अजगर का उपयोग करता है। वे यह नहीं मानते कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और परमेश्वर के वचन हर चीज साकार करते हैं, तो क्या मसीह-विरोधी अभी भी परमेश्वर के विश्वासी हैं? वे परमेश्वर के विश्वासी नहीं हैं। मसीह-विरोधी वे लोग हैं, जो परमेश्वर को नकारते हैं और उसका विरोध करते हैं; वे शुद्ध छद्म-विश्वासी हैं।
मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान स्वीकारने से मना करने के पीछे कौन-से मुख्य कारण हैं? एक तो यह है कि परमेश्वर दुनिया में समस्त अन्याय दूर नहीं करता, मानवजाति को न्याय प्रदान नहीं करता, या बुराई करने वालों को तुरंत दंडित नहीं करता, जबकि मसीह-विरोधी अपनी धारणाओं में कल्पना करते हैं कि परमेश्वर को यह सब करना चाहिए; परमेश्वर जिन चीजों पर संप्रभुता रखता है उन सभी के बीच रोज कई अनुचित घटनाएँ घटती हैं, फिर भी परमेश्वर इससे उदासीन प्रतीत होता है और प्रतिक्रिया में एक भी शब्द नहीं बोलता या कुछ भी नहीं करता। मसीह-विरोधियों की नजर में, वे दुनिया में जो कुछ भी देखते हैं, जो उनके सामने आने वाली चीजों के दायरे में होता है, वह उनकी धारणाओं में फिट नहीं बैठता, और वह नहीं होना चाहिए। उन्हें क्यों लगता है कि ये चीजें नहीं होनी चाहिए? वे सोचते हैं : “अगर परमेश्वर है, तो वह इन चीजों पर ध्यान क्यों नहीं देता? अगर परमेश्वर है, तो इतने सारे बुरे लोग अभी भी अच्छी तरह से क्यों जीते हैं? अमीर लोग और ज्यादा अमीर और गरीब लोग और ज्यादा गरीब क्यों होते जा रहे हैं? अमीर लोग रोज शानदार भोजन क्यों खाते हैं और इतना आनंद क्यों लेते हैं, जबकि इतने सारे लोगों को अभी भी भोजन के लिए भीख माँगनी पड़ती है? भोले-भाले लोगों को धौंस क्यों दी जाती है, उन पर अत्याचार क्यों किया जाता है और उनका शोषण क्यों किया जाता है? कुछ लोग इतने कम वेतन पर दिन में आठ घंटे से ज्यादा काम करते हुए श्रम क्यों करते हैं और पसीना क्यों बहाते हैं, जबकि दूसरे लोग एक घंटे में इतना कमा लेते हैं जितना कोई व्यक्ति पूरे जीवन में नहीं कमा सकता? परमेश्वर ये सामाजिक और सांसारिक अन्याय दूर क्यों नहीं करता? कुछ लोग अपने मुँह में चाँदी का चम्मच लेकर क्यों पैदा होते हैं, जबकि दूसरे लोग गरीबी और अभावों में पैदा होते हैं? कुछ लोग अपने पूरे जीवन में वैभव और धन-दौलत और अपने परिवारों के स्नेहपूर्ण प्रेम का आनंद क्यों ले पाते हैं, जबकि दूसरे लोग नहीं ले पाते, हालांकि वे उसी सामाजिक परिवेश में पैदा हुए होते हैं?” ये मसीह-विरोधियों के दिलों में हमेशा के लिए अनसुलझी पहेलियाँ हैं। उन्हें लगता है कि चूँकि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, इसलिए उन्हें वे सभी चीजें जिन्हें वे देख और समझ नहीं पाते और वे सभी पहेलियाँ जिन्हें वे हल नहीं कर पाते, परमेश्वर को सौंप देनी चाहिए और उसे समाधान प्रदान करने देना चाहिए, और उन्हें उनके समाधान परमेश्वर के वचनों में खोजने चाहिए। लेकिन तीन से पाँच वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद वे ये उत्तर खोजने में सक्षम नहीं होते, और आठ से 10 वर्षों तक विश्वास करने के बाद भी वे उन्हें नहीं पा सकते। 20 वर्षों तक विश्वास करने के बाद वे सोचते हैं, “मुझे अभी तक कोई जवाब क्यों नहीं मिला है? परमेश्वर ने इन मुद्दों को क्यों नहीं सुलझाया है? परमेश्वर गुआनिन बोधिसत्व या सम्राट जेड की तरह कार्य क्यों नहीं करता? परमेश्वर के पास अधिकार और शक्ति है और परमेश्वर की पहचान है, इसलिए उसे ये काम करने चाहिए! खासकर कलीसिया में दुष्ट लोग अक्सर क्यों दिखाई देते हैं जो व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं, कुछ तो चढ़ावे भी चुरा लेते हैं और कोई परिणाम नहीं भुगतते? कुछ लोग अक्सर झूठ बोलते हैं और कुछ लोग धारणाएँ और अफवाहें फैलाते हैं लेकिन उन्हें परमेश्वर का अनुशासन या दंड नहीं झेलना पड़ता; अन्य लोग अचानक परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर देते हैं और जाकर समाज में काम करने लगते हैं, और कुछ वर्षों के बाद वे अमीर बन जाते हैं और कभी कठिन समय का सामना नहीं करते। कुछ विश्वासी उन लोगों की तुलना में बदतर जीवन जीते हैं जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते। वास्तव में, परमेश्वर के विश्वासी कष्ट उठा रहे हैं और उनमें से कई सताए जा रहे हैं, वे अपने घर लौटने में असमर्थ हैं और गरीबी और दुख में जी रहे हैं। निश्चित रूप से परमेश्वर में विश्वास करने का यह अर्थ नहीं है? निश्चित रूप से परमेश्वर का अनुसरण करने का यह मूल्य नहीं है? निश्चित रूप से यह वह रोजमर्रा का जीवन नहीं है जो परमेश्वर लोगों को देना चाहता है? जब लोग ऐसी चीजों का सामना करते हैं जिन्हें वे पूरा नहीं कर सकते, तो परमेश्वर उन्हें तुरंत समझाने-बुझाने के लिए कुछ असाधारण क्यों नहीं करता? ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें लोग नहीं समझते, और नहीं जानते कि परमेश्वर उस तरह से कार्य क्यों करता है जिस तरह से वह करता है। परमेश्वर लोगों के दिलों को रोशन करने के लिए एक दीपक क्यों नहीं जला देता? वह लोगों को प्रेरणा क्यों नहीं देता? जब लोग बुराई करते हैं, और व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं, तो परमेश्वर सीधे खड़े होकर उन बुरे लोगों को शाप नहीं देता, और उनका प्रतिदंड से सामना नहीं करवाता। मैंने परमेश्वर द्वारा ऐसे कार्य करने के ज्यादा उदाहरण नहीं देखे हैं। कभी-कभी लोगों को परमेश्वर की प्रबुद्धता, रोशनी और पोषण की आवश्यकता होती है, तो वे परमेश्वर को महसूस क्यों नहीं कर सकते या उसे देख क्यों नहीं सकते? परमेश्वर कहाँ है?” मसीह-विरोधियों के दिलों में इस तरह के सभी “क्यों” अनुत्तरित रहते हैं। वे नहीं समझते कि ये चीजें और घटनाएँ कभी बदलती क्यों नहीं, पलटती क्यों नहीं, उनका सुधरना तो दूर की बात है। उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास करने से लोग पूरी तरह से बदल जाने चाहिए, और उनका पूरा जीवन, चाल-ढाल, विचार और खासकर उनके जीवन की गुणवत्ता, और उनकी योग्यताएँ और प्रतिभाएँ, सभी को सकारात्मक दिशा में विकसित होना चाहिए। 10 या 20 वर्षों के अवलोकन के बाद वे ये बदलाव क्यों नहीं देख सकते? लोग जिन चीजों के बारे में कल्पना करते हैं या जिनका अपनी धारणाओं में सपना देखते हैं, वे परमेश्वर में विश्वास करने के बाद कभी हल या साकार नहीं होतीं। तो, परमेश्वर में विश्वास करने का मतलब क्या है? परमेश्वर में विश्वास करने और उसका अनुसरण करने का मूल्य क्या है? ये प्रश्न मसीह-विरोधियों के दिलों में अनसुलझे और अनुत्तरित रहते हैं, और वे उस तरह साकार या पूरे नहीं होते जैसा होने की मसीह-विरोधी कल्पना करते हैं, इसलिए मसीह-विरोधियों के मन में जो परमेश्वर है, वह कभी अस्तित्व में नहीं होता। और स्वाभाविक रूप से, जिसके पास परमेश्वर की पहचान है उसे मसीह-विरोधी अपने मन में हमेशा के लिए नकार देते हैं।
मसीह-विरोधियों के परमेश्वर में विश्वास में बहुत ज्यादा मिलावट है। असल में मसीह-विरोधी परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं करते; यह सब दिखावा है। वे परमेश्वर में वैसे ही विश्वास करते हैं, जैसे गैर-विश्वासी शैतानों और मूर्तियों की आराधना करते हैं। उन्हें परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला हर कार्य स्वीकारना कठिन लगता है और वे मन में हमेशा संदेह और प्रश्न पालते रहते हैं। वे इन संदेहों और प्रश्नों को अपने दिलों में छिपाते हैं और उन्हें व्यक्त करने की हिम्मत नहीं करते, और वे दिखावा करने में भी माहिर होते हैं, इसलिए चाहे वे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करें, वे पूरी तरह से अविश्वासी ही रहते हैं। वे परमेश्वर और उसके तमाम क्रियाकलापों को अपनी फंतासियों, परमेश्वर के बारे में अपनी विभिन्न कल्पनाओं और धारणाओं, और साथ ही कुछ परंपरागत इंसानी ज्ञान और नैतिकता की धारणाओं के आधार पर मापते हैं। वे इन चीजों का उपयोग परमेश्वर की पहचान को मापने के लिए करते हैं और इस बात को मापने के लिए करते हैं कि उसका अस्तित्व है या नहीं। और अंतिम नतीजा क्या होता है? वे परमेश्वर के अस्तित्व को नकार देते हैं और देहधारी परमेश्वर की पहचान और सार को नहीं स्वीकारते। क्या वह मानक, जिसके द्वारा मसीह-विरोधी यह मापते हैं कि देहधारी परमेश्वर में परमेश्वर की पहचान और सार है या नहीं, गलत नहीं है? साफ-साफ कहें तो, मसीह-विरोधी ज्ञान और प्रसिद्ध महान हस्तियों का आदर करते हैं, इसलिए उन्हें इन प्रसिद्ध महान हस्तियों से आने वाली चीजों के प्रति कभी कोई आपत्ति या विमुखता नहीं होती। तो, जब वे देखते हैं कि मसीह एक सामान्य और आम इंसान है, तो वे उसका तिरस्कार क्यों करते हैं और मसीह को इतने सारे सत्य व्यक्त करते देख विमुखता और घृणा महसूस क्यों करने लगते हैं? ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे जिसका आदर और सम्मान करते हैं, वह बिल्कुल भी सकारात्मक नहीं है, उसका एक भी अंश सकारात्मक नहीं है। मसीह-विरोधी क्या पसंद करते हैं? उन्हें विचित्रता, दुष्टता, चमत्कार और अलौकिक चीजें पसंद हैं, जबकि परमेश्वर की सामान्यता और व्यावहारिकता, मनुष्य के लिए परमेश्वर का सच्चा प्रेम, परमेश्वर की बुद्धि, निष्ठा, पवित्रता और धार्मिकता, ये सब मसीह-विरोधियों की नजर में निंदनीय हैं। उदाहरण के लिए, भाई-बहन विवेक विकसित करें और व्यावहारिक रूप से सबक सीखें, इसके लिए परमेश्वर ने एक परिस्थिति का आयोजन किया। क्या थी वह परिस्थिति? उसने उनके बीच किसी ऐसे व्यक्ति के रहने की व्यवस्था की, जो दानव के कब्जे में रहा था। शुरुआत में इस व्यक्ति का बोलने और काम करने का तरीका सामान्य था, उसका विवेक भी सामान्य था; वह बिल्कुल भी समस्यात्मक दिखाई नहीं देता था। लेकिन संपर्क की एक अवधि के बाद भाई-बहनों ने पाया कि जो कुछ भी वह कहता है, वह बेतुका है और उसमें उचित संरचना और क्रम का अभाव है। बाद में कुछ “अलौकिक” चीज़ें हुईं : वह हमेशा भाई-बहनों को बताता कि उसने यह या वह दृश्य देखा है और फलाँ-फलाँ प्रकाशन प्राप्त किया है। उदाहरण के लिए, एक दिन उस पर यह प्रकट हुआ कि उसे भाप से पकी रोटियाँ बनानी चाहिए—उसे बनानी ही थीं—और उसके अगले दिन हुआ यह कि उसे बाहर जाना पड़ा, इसलिए वह रोटियाँ अपने साथ ले गया। बाद में उसके सपने में आया कि उसे दक्षिण की ओर जाना चाहिए; वहाँ छह मील दूर कोई उसका इंतज़ार कर रहा है। वह देखने गया, और ठीक वहाँ एक व्यक्ति था, जो खो गया था; उसने इस व्यक्ति के सामने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की गवाही दी और उसने उसे स्वीकार लिया। वह हमेशा प्रकाशन प्राप्त करता रहता, उसे हमेशा एक वाणी सुनाई देती, उसके साथ हमेशा अलौकिक चीज़ें हो रही थीं। हर दिन जब यह बात आती कि क्या खाना है, कहाँ जाना है, क्या करना है, किसके साथ बातचीत करनी है, तो वह सामान्य मानव-जीवन के नियमों का पालन न करता, न ही वह आधार या सिद्धांत के रूप में परमेश्वर के वचन खोजता, या संगति करने के लिए लोगों को खोजता। वह हमेशा अपनी भावनाओं पर निर्भर रहता और किसी आवाज़ या प्रकाशन या सपने का इंतजार करता। क्या यह व्यक्ति सामान्य था? (नहीं।) ऐसा लगता था कि उसकी दिनचर्या नियमित रूप से चल रही है, वह नियमित रूप से दिन में तीन बार भोजन करता था, लेकिन वह हमेशा आवाजें सुनता था। कुछ लोगों ने उसे पहचाना और कहा कि ये किसी दुष्ट आत्मा के कब्जे की अभिव्यक्तियाँ हैं। भाई-बहन धीरे-धीरे उसे पहचानने लगे, फिर एक दिन उसे मानसिक बीमारी का दौरा पड़ा, वह पागलपन भरी बातें करने लगा और नग्न अवस्था में बाल बिखेरे दौड़ गया, वह मनोरोगी हो गया था। इसके साथ ही, मामला आखिरकार निष्कर्ष पर पहुँच गया। क्या अब भाई-बहनों को दुष्ट आत्मा के काम करने और दानवी कब्जे की विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में अंतर्दृष्टि और पहचान नहीं है? बेशक, उनमें से कुछ ने पहले भी ऐसी चीजों का सामना किया था और उन्हें पहले से उनकी पहचान थी, जबकि दूसरों ने लंबे समय से परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया था और वे ऐसी चीजों से नहीं गुजरे थे, इसलिए उनके गुमराह होने की संभावना थी। लेकिन चाहे वे गुमराह हुए हों या उनमें पहचान रही हो, अगर परमेश्वर ने इस परिवेश की व्यवस्था न की होती, तो क्या उन्हें दुष्ट आत्मा के काम या कब्जे की सही पहचान होती? (नहीं।) तो परमेश्वर द्वारा इस परिवेश की व्यवस्था करने और ये चीजें करने का क्या उद्देश्य और महत्व था? यह उन्हें व्यावहारिक रूप से विवेक प्राप्त करने और एक सबक सीखने में सक्षम बनाने के लिए था, और यह जानने में सक्षम बनाने के लिए था कि उन लोगों को कैसे पहचाना जाए जिनमें दुष्ट आत्माओं का काम है या जो दानवों के कब्जे में हैं। अगर लोगों को सिर्फ यह बताया जाता कि दुष्ट आत्मा का काम क्या है—जैसे जब कोई शिक्षक किसी किताब से पढ़ाता है और अपने छात्रों को कोई वास्तविक अभ्यास कराए या प्रशिक्षण दिए बिना सिर्फ पाठ्यपुस्तक के सिद्धांतों के बारे में बताता है—तो लोग सिर्फ कुछ धर्म-सिद्धांत और कथन ही समझते। तुम सिर्फ तभी स्पष्ट रूप से समझा सकते हो कि दुष्ट आत्मा का काम क्या है और उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ क्या हैं जब तुमने उसे व्यक्तिगत रूप से देखा हो, अपनी आँखों से देखा हो और अपने कानों से सुना हो। और फिर जब तुम दोबारा ऐसे लोगों का सामना करते हो, तो तुम उन्हें पहचानकर अस्वीकार कर पाओगे; तुम ऐसे मामले ठीक से निपटा और सँभाल पाओगे। तो, क्या ऐसे परिवेश में तुम लोग जो प्राप्त करते हो वह उससे कहीं ज्यादा व्यावहारिक नहीं है जो तुम पूरे दिन सभाओं में भाग लेकर धर्मोपदेश सुनकर प्राप्त करते हो? जिन लोगों में सामान्य सोच और विवेक होता है और जो सत्य का अनुसरण करते हैं, उन्हें इन चीजों को करने के परमेश्वर के तरीकों की सही समझ होगी। वे यह कहते हुए शिकायत नहीं करेंगे, “परमेश्वर बुरी आत्माओं को कलीसिया में क्यों आने देता है? परमेश्वर ने मुझे पहले से आगाह क्यों नहीं किया? वह बुरी आत्माओं को दूर क्यों नहीं करता?” वे इन चीजों के बारे में शिकायत नहीं करेंगे, उलटे वे परमेश्वर के उत्कृष्ट और बुद्धिमानी भरे कार्य के लिए उसकी स्तुति करते हुए आभारी होंगे, और कहेंगे कि परमेश्वर मनुष्य से बहुत प्यार करता है! लेकिन मसीह-विरोधी सत्य नहीं स्वीकारते, और साथ ही उनके दिल परमेश्वर के बारे में धारणाओं और कल्पनाओं से भरे होते हैं, वे वास्तव में अपने दिलों में शैतानों और मूर्तियों की आराधना करते हैं, और सच्चे परमेश्वर के हर कार्य की तुलना और माप अपनी मूर्तियों से करते हैं। इसलिए जब वे ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं, तो पहले सोचते हैं, “क्या यह परमेश्वर का कार्य है? तुम लोग इतने मूर्ख कैसे हो सकते हो? परमेश्वर बुरी आत्माओं को कलीसिया में कैसे आने दे सकता है?” क्या यह गलत समझ नहीं है? पहला, वे इस बात से इनकार करते हैं कि यह परमेश्वर का कार्य है और यह भी सोचते हैं कि, “कोई परमेश्वर निश्चित रूप से ऐसा नहीं करेगा। परमेश्वर नहीं चाहते कि लोग पीड़ित हों। जब गुआनिन बोधिसत्व लोगों को पीड़ित देखती है तो उसकी मूर्तियाँ आँसू बहाती हैं; वह सभी प्राणियों को पीड़ा से मुक्ति दिलाना चाहती है, हर व्यक्ति को बुद्ध के नाम के तहत लाना चाहती है, और उन्हें इंसानी दुनिया के तमाम दुखों से निजात दिलाना चाहती है। परमेश्वरों को दयालु होना चाहिए, उन्हें अपने चुने हुए लोगों की देखभाल करनी चाहिए और बुरी आत्माओं को कलीसिया में नहीं आने देना चाहिए। यह निश्चित रूप से परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता।” जब ऐसी चीजें होती हैं, तो मसीह-विरोधी अपने दिलों में पहले तो परमेश्वर की पहचान पर और भी ज्यादा संदेह करते हैं, और साथ ही वे परमेश्वर के कर्मों को स्वीकारने के लिए सैकड़ों-हजारों बार अनिच्छुक होते हैं, यहाँ तक कि उनकी आलोचना और निंदा भी करते हैं। वे यह कहते हुए उन भाई-बहनों का मजाक भी उड़ाते हैं, जो इस मामले को परमेश्वर से आया स्वीकारते हैं, “तुम मूर्ख लोग अभी भी मानते हो कि सब-कुछ परमेश्वर का कार्य है। कोई परमेश्वर ऐसा नहीं करेगा! परमेश्वर को अपने मेमनों की रक्षा और देखभाल करनी चाहिए, और उन्हें अपने हाथों से बचाना चाहिए। परमेश्वर लोगों के लिए शरण-स्थल हैं; लोगों को ये तमाम कष्ट नहीं सहने चाहिए। लोगों के साथ तमाम नकारात्मक और बुरी चीजें नहीं होनी चाहिए, परमेश्वर इसी तरह कार्य करते हैं।” मसीह-विरोधियों के दिल संदेह, इनकार, धारणाओं और परमेश्वर की निंदा से भरे रहते हैं। नतीजतन, उनकी नजर में परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह गलत होता है और वह नहीं होता जो परमेश्वर को करना चाहिए, और यह उनके लिए परमेश्वर की निंदा करने और उसे नकारने का सबूत और बल है। इससे परमेश्वर का विरोध करने का मसीह-विरोधियों का प्रकृति-सार पूरी तरह से प्रकट होता है। उदाहरण के लिए, जब भाई-बहन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की यातना और उत्पीड़न सहते हैं, तो पुलिस बिजली के दागने वाले डंडे तब तक गर्म करती है जब तक कि वे लाल नहीं हो जाते और उन्हें उनके शरीर पर दागती है, जिससे उन्हें इतना दर्द होता है कि वे बेहोश हो जाते हैं, और वहाँ मौजूद सभी लोगों का खून जम जाता है। यह दृश्य देखकर मसीह-विरोधी क्या सोचते हैं? “ये शैतान और राक्षस बहुत क्रूर हैं! इनमें कोई इंसानियत नहीं है, कोई दया या करुणा नहीं है। इनके तरीके बहुत बर्बर हैं, मैं इन्हें देखना बर्दाश्त नहीं कर सकता! अगर मैं वहाँ होता, तो मैं इन दागने वाले डंडों को ठंडा कर देता, उन्हें रूई में बदल देता, और उन्हें लोगों के शरीर से नरमी, गर्मजोशी और कोमलता से छुआता, जैसे कोई परमेश्वर अपने मेमनों को सहलाता है, लोगों को अपने दयालु हृदय, अपने प्रेम और गर्मजोशी का एहसास कराता है, और अपना अनुसरण करने के लिए उनमें ज्यादा आस्था और दृढ़ संकल्प पैदा करता है। लेकिन मनुष्य तो बस मनुष्य हैं—हम अपने भाई-बहनों और साथी मनुष्यों को इतना कष्ट सहते देखकर कुछ भी करने में असमर्थ हैं। और परमेश्वर कहाँ है? परमेश्वर अभी इन शैतानों और दानवों के हाथ क्यों नहीं रोकता? वह दागने वाले बेहद गर्म डंडों को ठंडा क्यों नहीं कर देता? जब दागने वाले डंडे भाई-बहनों को छूते हैं, तो परमेश्वर ऐसा क्यों नहीं करता कि उन्हें दर्द महसूस न हो? अगर गुआनिन बोधिसत्व होती, तो वह निश्चित रूप से ऐसा करती; वह जीवों को एक-दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करते और एक-दूसरे को मारते हुए नहीं देखना चाहती, वह उनमें से किसी को भी जरा-सी भी धौंस या दर्द सहते नहीं देखना चाहती। वह सभी प्राणियों का ध्यान रखती है, उसका हृदय आकाश से भी बड़ा है और उसका प्रेम असीम है। वह वास्तव में एक परमेश्वर है! परमेश्वर इस तरह से कार्य क्यों नहीं करता? मैं परमेश्वर नहीं हूँ, मुझमें यह क्षमता नहीं है। अगर मैं परमेश्वर होता, तो अपने लोगों को इस तरह से पीड़ित न होने देता।” चाहे उन पर कुछ भी बीते, मसीह-विरोधियों के अपने विचार, दावे, मत, यहाँ तक कि “शानदार विचार” भी होते हैं। चाहे उनके साथ कुछ भी हो, वे उसे कभी परमेश्वर के वचनों से नहीं जोड़ते, वे परमेश्वर को समझने, परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर की पहचान की पुष्टि करने और इस बात की पुष्टि करने के लिए कभी सत्य नहीं खोजते कि परमेश्वर की पहचान रखने वाले परमेश्वर का सार कहाँ और कैसे व्यक्त होता है—मसीह-विरोधी इस तरह से अभ्यास नहीं करते। इसके बजाय, हर मोड़ पर वे शैतान, विभिन्न दुष्ट आत्माओं या गुआनिन बोधिसत्व और बुद्ध के परिप्रेक्ष्यों का उपयोग करके परमेश्वर को मापते हैं और उससे प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसका अंतिम परिणाम क्या होता है? मसीह-विरोधी हर मोड़ पर परमेश्वर को नकारते हैं, उसके क्रियाकलापों और सार को, वह जो कुछ भी करता है उसके अर्थ और मूल्य को और इस बात को नकारते हैं कि वह कैसे लोगों को शिक्षित करता है। वे लोगों पर इस तरह से कार्य करके परमेश्वर जो प्रभाव हासिल करना चाहता है उस प्रभाव को और परमेश्वर के इरादों के अस्तित्व को नकारते हैं। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उसके महत्व और मूल्य को नकारकर क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर की पहचान को नहीं नकारते? (बिल्कुल नकारते हैं।) मसीह-विरोधियों की ये अभिव्यक्तियाँ और सार, विचार जो वे प्रकट करते हैं, और कोई घटना उनके साथ घटती है तो उनके मन में परमेश्वर के प्रति जो क्रोध, माँगें, असंतोष और प्रश्न आदि होते हैं, ये सब मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान न स्वीकारने की ठोस अभिव्यक्तियाँ हैं। ये तथ्य हैं।
हमने अभी-अभी मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान नकारने की अभिव्यक्तियों और स्रोतों के बारे में जो संगति और गहन विश्लेषण किया, उसके माध्यम से तुमने मसीह-विरोधियों का कौन-सा सार देखा? क्या तुम देख सकते हो कि मसीह-विरोधी इस दुनिया के प्रति निंदा का भाव रखते हैं और निष्पक्षता और धार्मिकता से प्रेम करते हैं? क्या मसीह-विरोधी वे लोग हैं, जिनमें दयालु मानवता, करुणा, दया और महान प्रेम होता है, और जो दुष्टता से घृणा करते हैं? (नहीं।) तो फिर मसीह-विरोधी कैसे लोग हैं? (वे बुरे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं और उससे विमुख हैं, जो हर मोड़ पर परमेश्वर का विरोध करते हैं।) यह एक पहलू हुआ। और कुछ? क्या मसीह-विरोधी इस सामाजिक कहावत का काफी अनुमोदन नहीं करते, “पुल बनाना और सड़कों की मरम्मत करना अंधेपन की ओर ले जाता है, जबकि हत्यारे और आगजनी करने वाले यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी संतानें कई गुना बढ़ें”? क्या इसका मतलब यह नहीं कि वे दुनिया की स्थिति पर रंज कर रहे हैं और मानवजाति पर तरस खा रहे हैं? इस कहावत से सहमत होने की उनकी क्या प्रकृति है? क्या इस कहावत में स्वर्ग के अन्याय के बारे में शिकायत जैसी चीज नहीं है? हालाँकि वे इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते, लेकिन मसीह-विरोधी इस तरह की नाराजगी और भावनाएँ पालते हैं और शिकायत करते हैं कि स्वर्ग में अन्याय है : “क्या यह नहीं कहा जाता कि स्वर्ग निष्पक्ष है और स्वर्ग की आँखें हैं? तो फिर ऐसा क्यों है कि इस दुनिया में अच्छा काम करने वाले लोग पुरस्कार नहीं पाते, जबकि बुरे लोग फलते-फूलते हैं? इस दुनिया में निष्पक्षता कहाँ है? इस दुनिया में अन्याय के मामले आए कैसे? वह इसलिए कि स्वर्ग अंधा और अन्यायी है!” इसका निहितार्थ यह है कि परमेश्वर में कोई निष्पक्षता नहीं है, और सिर्फ बुद्ध और गुआनिन ही निष्पक्ष हैं। इसलिए मसीह-विरोधियों के दिल वास्तविक परमेश्वर द्वारा की जाने वाली चीजों के बारे में नाराजगी, शिकायत, इनकार और निंदा से भरे हैं। यह सब किस वजह से होता है? इसका क्या कारण है? यह मसीह-विरोधियों के सार के कारण होता है। वह सार क्या है? इसे विशिष्ट शब्दों में कहें तो, मसीह-विरोधियों के दिलों में परमेश्वर की परिभाषा के बारे में धारणाएँ और कल्पनाएँ भरी हुई हैं; वे नहीं जानते-समझते कि वास्तविक परमेश्वर वास्तव में कैसे काम करता है और कैसे लोगों को बचाता है। परमेश्वर द्वारा की जाने वाली हर चीज का उनका मूल्यांकन उनकी धारणाओं और कल्पनाओं पर आधारित होता है। और, वे किस पर आधारित होती हैं? ये पूरी तरह से दानवराज शैतान द्वारा मानवजाति में डाले गए विभिन्न पाखंडों और भ्रांतियों पर आधारित होती हैं। ये पाखंड और भ्रांतियाँ चाहे कितनी भी दुष्ट या पक्षपाती क्यों न हों, ये लोगों की धारणाओं, मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं और भावनात्मक जरूरतों के अनुरूप होती हैं, और ठीक यही चीजें हैं जो मसीह-विरोधियों के लिए आचरण करने और सभी चीजों को मापने के मानकों के साथ-साथ परमेश्वर को मापने के मानक भी बन जाती हैं; मसीह-विरोधी अपने मूल में ही गलत हैं। दूसरा और ज्यादा महत्वपूर्ण कारण यह है कि मसीह-विरोधी शक्ति और भव्य चीजें पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो एक व्यक्ति महल में पैदा हुआ है और हर रोज बेहतरीन व्यवहार का आनंद लेता है, सबसे अच्छा खाना खाता है और सबसे अच्छे कपड़े पहनता है, उसे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती और वह जो चाहता है उसे मिल जाता है। क्या परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोग ऐसे जीवन का अनुसरण करते हैं? सामान्य व्यक्ति इससे थोड़ी ईर्ष्या या जलन महसूस करेगा, लेकिन फिर वह सोचेगा, “यह सब परमेश्वर द्वारा नियत है। जहाँ भी परमेश्वर हमें रखता है, हम वहीं रहते हैं। जरूरी नहीं कि इस तरह का जीवन हमें माफिक आए। क्या कोई ऐसे परिवेश में परमेश्वर पर विश्वास कर सकता है? क्या कोई सत्य समझ सकता है और बचाया जा सकता है? यह मुश्किल होगा। परमेश्वर ने हमें जो दिया है, वह पर्याप्त है; अगर हम परमेश्वर पर विश्वास कर सकते हैं और परमेश्वर के वचन पढ़ने, अपना कर्तव्य निभाने और अंततः उद्धार प्राप्त करने के लिए सही परिस्थितियों में हैं, तो यही सबसे ज्यादा खुशी की बात है।” लेकिन क्या मसीह-विरोधी इस तरह सोचेंगे? (नहीं।) वे सोचेंगे, “मेरे पिता सम्राट क्यों नहीं थे? अगर मेरे पिता एक अमीर आदमी या सम्राट होते, तो मेरा जीवन वास्तव में जीने लायक होता। उसके पिता सम्राट क्यों हैं? वह मस्त जीवन क्यों जीता है, जिसमें उसे भोजन या कपड़ों की चिंता नहीं करनी पड़ती, जो चाहता है पा लेता है, धन और शक्ति हमेशा उसे उपलब्ध रहती है? स्वर्ग अन्यायपूर्ण है! वह उतना सक्षम नहीं है और उसमें कोई प्रतिभा, शिक्षा या दिमाग नहीं है। उसे ये सारी चीजें किस आधार पर मिलीं? मैं उन्हें क्यों नहीं पा सकता? अगर मैं वे चीजें नहीं पा सकता और दूसरे पा सकते हैं, तो मैं उनसे नफरत करूँगा! और अगर मैं उनसे नफरत नहीं कर सकता, तो मैं अन्यायी होने और मेरे लिए एक खराब भाग्य व्यवस्थित करने के लिए स्वर्ग से नफरत करूँगा, और मैं अपने खराब भाग्य से नफरत करूँगा, अपने रास्ते में बाधा डालने वाले नीच व्यक्ति से नफरत करूँगा, और अपने घर के बुरे फेंग शुई से नफरत करूँगा!” उनके दिमाग में क्या चल रहा है? जब मसीह-विरोधियों के दिलों में नफरत पैदा हो जाती है, तो उनके मुँह से तमाम तरह के भ्रामक तर्क निकल सकते हैं।
ऊपरी तौर पर मसीह-विरोधी बहुत दयालु प्रतीत होते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि वे जिन भी चीजों की आराधना और अनुसरण करते हैं, उनमें से कोई भी सकारात्मक नहीं है। वे जो मुहावरे और कहावतें सुनाते हैं, उनसे ऐसा लग सकता है जैसे वे दुनिया की हालत पर रंज कर रहे हों और मानवजाति पर तरस खा रहे हों, और जैसे वे अपने दिलों में सद्भावना रखते हों, लेकिन असल में वे पूरी तरह से दानव और शैतान होते हैं। अगर वे सत्ता हासिल कर लेते हैं और इस दुनिया में उभर जाते हैं, तो क्या वे बुराई करने में सक्षम होते हैं? क्या वे अच्छे लोग बनने में सक्षम हैं? वे जघन्य पापों से भरे बदमाश हैं। चूँकि वे दुनिया में सत्ता हासिल नहीं कर सकते और ज्यादा फलते-फूलते नहीं, इसलिए उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है और तब वे परमेश्वर पर विश्वास और उसका अनुसरण करने लगते हैं। लेकिन सार में वे सत्य का अनुसरण बिल्कुल नहीं करना चाहते, और वे खास तौर से सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते; इसके बजाय, वे सकारात्मक चीजों से विमुख होते हैं और बुरी ताकतों, शक्ति, विलासी जीवन और दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों से प्रेम करते हैं। इसलिए, वे परमेश्वर की पहचान और सार रखने वाले परमेश्वर द्वारा व्यक्त और संपन्न की गई हर चीज से घृणा करते हैं और इन चीजों की निंदा, आलोचना और बदनामी करते हैं। चाहे परमेश्वर का कार्य लोगों के लिए कितना भी मूल्यवान या अर्थपूर्ण क्यों न हो, वे न तो उसे मानते हैं और न ही स्वीकारते हैं। न सिर्फ वे परमेश्वर की पहचान और सार नहीं स्वीकारते, बल्कि परमेश्वर का रूप भी धारण करना चाहते हैं और ऐसे उद्धारकर्ता होने का ढोंग रचते हैं, जो सभी प्राणियों को पीड़ा से मुक्ति दिला सकता है, जो यह सुनिश्चित कर सकता है कि पुल बनाने वाले और सड़कों की मरम्मत करने वाले अंधे न हो जाएँ, कि हत्यारे और आगजनी करने वाले दंडित हों और उनकी संतानें न बढ़ें, और समाज के सबसे निचले पायदान पर रहने वाले और पीड़ा सहने वाले लोग अब और पीड़ा न सहें और उनके पास अपनी शिकायतों का निवारण करने के लिए कोई जगह हो। वे दुनिया में तमाम दर्द खत्म करना चाहते हैं और लोगों को दुख से बचाना चाहते हैं। मसीह-विरोधी वास्तव में अपने दिल की गहराइयों में “सार्वभौमिक प्रेम” और एक अनंत “महान प्रेम” रखते हैं! सभी चीजों पर विचार करने के बाद, मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर की पहचान और सार को स्वीकारने से इनकार करने के पीछे वास्तव में क्या कारण है? वे कहते हैं : “परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, वह परमेश्वर जैसा नहीं है। मैं सबसे ज्यादा परमेश्वर जैसा हूँ; मैं परमेश्वर होने के लिए सबसे ज्यादा योग्य हूँ। वह इसलिए, क्योंकि परमेश्वर जो कुछ करता है, वह मेरी पसंद के अनुरूप नहीं है या जनता की पसंद और जरूरतों के अनुरूप नहीं है; सिर्फ मैं ही जनता की जरूरतें और मन समझ सकता हूँ, सिर्फ मैं ही सभी प्राणियों को पीड़ा से निजात दिला सकता हूँ, और सिर्फ मैं ही मानवजाति का उद्धारकर्ता हो सकता हूँ।” उनकी महत्वाकांक्षाएँ और सार उजागर हो गए हैं, है न? ऐसी महत्वाकांक्षाएँ और सार रखने वाले मसीह-विरोधियों का असली रूप वास्तव में क्या है? यह प्रधान दूत, दानव शैतान है। वे परमेश्वर की पहचान नकारते हैं और परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, क्योंकि वे खुद परमेश्वर बनना चाहते हैं। वे मानते हैं कि उनके विचार वैसे हैं जैसा परमेश्वर को सोचना चाहिए, और उनकी अभिव्यक्तियाँ, स्वभाव और महान प्रेम का सार वैसा है जैसा परमेश्वर का होना चाहिए। उन्हें लगता है, जिसके पास दुनिया की स्थिति पर रंज करने और दुनिया में तमाम अन्याय देखकर मानवजाति पर तरस खाने की मानसिकता है, सिर्फ वही परमेश्वर है। उन्हें लगता है कि जिस परमेश्वर में वे विश्वास करते हैं, उसमें ये गुण नहीं हैं, सिर्फ वे ही ऐसे मन और इतने बड़े दिल वाले हैं, उन्हीं में इस तरह का गुण और महान प्रेम है। यह मसीह-विरोधियों का सार है, ये परमेश्वर की पहचान स्वीकारने से मना करने की उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियाँ और सार हैं। इसलिए, अगर तुम मसीह-विरोधियों का परमेश्वर के रूप में सम्मान करते हो और उनकी आराधना करते हो, तो वे तुम्हारे प्रति नाराजगी महसूस नहीं करेंगे। अगर तुम यह कहते हुए उनका अनुसरण करते हो कि उनकी पहचान और सार परमेश्वर के समान है, कि उनमें बुद्ध जैसा ही मन और महान प्रेम है और वे परमेश्वर हैं, तो वे तुमसे खुश और पूरी तरह से संतुष्ट होंगे। यह मसीह-विरोधियों का सार है। क्या मसीह-विरोधियों द्वारा प्रदर्शित यह सार दुष्टतापूर्ण नहीं है? चाहे तुम परमेश्वर के नाम और उसके अद्भुत कर्मों की कितनी भी बड़ाई करो, और मनुष्य के उद्धार के लिए परमेश्वर ने जो कुछ भी किया है और जो भी कीमत उसने चुकाई है, उसकी कितनी भी गवाही दो, वे दिल से विद्रोही रहेंगे और कहेंगे, “मैं इसकी प्रशंसा नहीं कर सकता। मैं इसे उस तरह से नहीं देखता; यह सब मनुष्य का खयाली पुलाव और कल्पना है।” जब तुम परमेश्वर, उसकी बुद्धि, उसकी सर्वशक्तिमत्ता, मानवता को बचाने के उसके श्रमसाध्य इरादे और उसके द्वारा चुकाई गई कीमतों की गवाही देते हो और उसके सार, उसकी पहचान और सृष्टिकर्ता द्वारा मानवजाति पर किए गए हर काम की गवाही देते हो, तो सिर्फ एक ही तरह के व्यक्ति असहज महसूस करते हैं, और वे हैं मसीह-विरोधी। और वे क्या सोचते हैं? “तुम हमेशा परमेश्वर के बारे में बात क्यों करते हो? मैंने भी तुम्हारा खूब सिंचन किया है और तुम्हें खूब सहारा दिया है। मैंने तुमसे प्रेम किया है, तुम्हारी मदद की है, तुम्हारे बीमार होने पर तुम्हारे लिए दवा खरीदी है, और तुम्हारा साथ दिया है, तुम्हारे साथ संगति की है, और जब दूसरों ने तुम्हें त्याग दिया था तब मैं तुम्हारे साथ रहा हूँ। तुम मेरी प्रशंसा क्यों नहीं करते?” जैसे ही कोई परमेश्वर की गवाही देता है या उसकी प्रशंसा करता है, मसीह-विरोधी परेशान हो जाते हैं और ईर्ष्यावश उससे घृणा करते हैं। परमेश्वर के सामान्य विश्वासी किसी को परमेश्वर की प्रशंसा करते सुनकर क्या महसूस करते हैं? पहले, वे उस व्यक्ति ने जो कहा और जिस अनुभवजन्य गवाही पर उसने संगति की, उस पर “आमीन” कहेंगे। इसके अलावा, वे ध्यान से सुनेंगे और सोचेंगे, “परमेश्वर ने इस पर इस तरह से कार्य किया—परमेश्वर बहुत महान है, वह सचमुच मनुष्य से प्रेम करता है! भविष्य में ऐसी ही परिस्थितियों का सामना करने पर मैं भी सत्य खोजूँगा। उसने इस तरह से कार्य करके परमेश्वर को आहत किया है; मैंने भी अतीत में इस तरह से कार्य किया है, मैं बस इससे अनजान था। मैं परमेश्वर का ऋणी हूँ! परमेश्वर का इस तरह से कार्य करना लोगों के लिए लाभदायक है, और मुझे इसका एहसास नहीं था। लगता है, मेरा आध्यात्मिक कद इस व्यक्ति से छोटा है, मेरी समझ शुद्ध नहीं है, और मेरी काबिलियत कम है। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे, छोटे आध्यात्मिक कद के व्यक्ति को, प्रबुद्ध करे और मेरा मार्गदर्शन करे। परीक्षणों का सामना करते समय वे कमजोर कैसे नहीं हुए? उनके पास परमेश्वर के वचनों का मार्गदर्शन था। अगर मैं ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहा होता, तो कमजोर पड़ जाता और लड़खड़ा भी सकता था। परमेश्वर ने मेरे छोटे कद को देखकर और मुझे अभी तक उस तरह की स्थिति का सामना न करने देकर मुझ पर दया दिखाई है। परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह अच्छा होता है!” लेकिन मसीह-विरोधी यह सुनकर नाखुश हो जाते हैं : “क्या? परमेश्वर जो कुछ भी करता है, वह अच्छा होता है? यह अच्छाई कहाँ है? अगर परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह इतना ही अच्छा है, तो लोग नकारात्मक और कमजोर क्यों हैं? अगर परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा होता है, तो कुछ लोगों को निकाला क्यों जाता है? अगर परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा होता है, तो सुसमाचार फैलाने और कर्तव्य निभाने के दौरान हमेशा विघ्न-बाधाएँ क्यों आती है? मैंने बहुत सारे अच्छे काम किए हैं; मैंने मेहनत की है, चढ़ावा चढ़ाया है और सुसमाचार का प्रचार करते हुए लोगों को प्राप्त किया है। कोई मेरी प्रशंसा क्यों नहीं करता? परमेश्वर ने मुझे बदले में कुछ, कोई इनाम, क्यों नहीं दिया? अगर लोग मेरे सामने मेरी प्रशंसा करने में शर्मिंदा महसूस करते हैं, तो यह ठीक है अगर वे मेरी पीठ पीछे ऐसा करते हैं। कोई मेरी प्रशंसा या सराहना क्यों नहीं करता? क्या मुझमें कोई गुण नहीं है?” वे परेशान हो जाते हैं। अगर कोई किसी साधारण व्यक्ति की प्रशंसा करता है, तो मसीह-विरोधी ज्यादा बुरा महसूस नहीं करेंगे। लेकिन जैसे ही कोई परमेश्वर की महान शक्ति, महान प्रेम और बुद्धि, या परमेश्वर की पहचान की गवाही देता है, तो मसीह-विरोधी घृणा और ईर्ष्या महसूस करते हैं। जब भी कोई परमेश्वर के प्रति समर्पित होने, एक सही सृजित प्राणी बनने और ऐसा व्यक्ति बनने के लिए तैयार होता है जो अपनी सीमाएँ पार नहीं करता और सृष्टिकर्ता के प्रभुत्व के प्रति समर्पण करता है, तो मसीह-विरोधी इसे पसंद नहीं करते और कहते हैं, “तुम इतनी स्वेच्छा से और सक्रिय रूप से परमेश्वर के प्रति समर्पित क्यों होते हो? मेरे द्वारा कही गई किसी भी बात को सुनना तुम्हारे लिए इतना कठिन क्यों है? मैं जो कहता हूँ, वह गलत नहीं है!” वे चाहते हैं कि लोग उनके अनुयायी बनें, हर मोड़ पर उनकी प्रशंसा करें, उनके नाम अपने होठों पर रखें, उन्हें अपने दिलों में रखें, यहाँ तक कि उनकी अच्छाई और खूबियों के बारे में सपने देखें, और मिलने वाले हर व्यक्ति से उनकी प्रशंसा करें। अगर वे बीमार पड़ जाएँ और अपना चेहरा नहीं दिखाएँ, तो लोग कहें, “तुम्हारे बिना हम क्या करेंगे? तुम्हारे बिना हम अस्त-व्यस्त हैं; हम विश्वास करना या जीना जारी नहीं रख सकते!” अगर मसीह-विरोधी यह सुनते हैं तो बहुत खुश होते हैं, और इसे सुनने के लिए वे कोई भी कष्ट सहने या कई दिन बिना खाए या बिना सोए रहने को तैयार हो जाते हैं। लेकिन अगर कोई उनकी प्रशंसा नहीं करता, उन्हें आदर्श नहीं मानता, उनकी आराधना नहीं करता, या उन्हें गंभीरता से नहीं लेता, तो वे परेशान हो जाते हैं और अपने दिलों में नफरत पाल लेते हैं—यह एक ठेठ मसीह-विरोधी है। संक्षेप में, मसीह-विरोधी परमेश्वर की पहचान कभी नहीं स्वीकारेंगे। वे परमेश्वर की पहचान और सार नहीं स्वीकारते, परमेश्वर की पहचान और सार धारण करने वाले द्वारा उन पर किए गए कार्य को तो बिल्कुल नहीं स्वीकारते, न ही वे परमेश्वर द्वारा मानवजाति के बीच किए गए समस्त कार्य को मानते या स्वीकारते हैं।
ख. परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करना
इसके बाद आओ, “वे परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते और वे मसीह के सार को नकारते हैं” की दूसरी अभिव्यक्ति पर संगति करते हैं : मसीह-विरोधियों का परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता को स्वीकारने से इनकार करना। मसीह-विरोधियों के लिए, परमेश्वर की पहचान रखने वाला सृष्टिकर्ता अस्तित्व में ही नहीं है, वह सिर्फ एक मिथक है। तो क्या मसीह-विरोधी यह तथ्य स्वीकार सकते हैं कि सृष्टिकर्ता सभी चीजों पर संप्रभुता रखता है? कहने की आवश्यकता नहीं है कि वे इस तथ्य को नहीं स्वीकारते। वे इसे नहीं स्वीकारते, और यह भी तथ्यों पर आधारित है। परमेश्वर के बारे में मसीह-विरोधियों का विश्वास, ज्ञान और समझ इंसानी धारणाओं और कल्पनाओं, आराध्य-जनों के बारे में कुछ इंसानी संकल्पनाओं और समझ, और उन पाखंडों और भ्रांतियों पर आधारित है, जिनका उपयोग वे आराध्य-जन लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं। मसीह-विरोधियों के दिलों में मौजूद धारणाएँ, कल्पनाएँ, पाखंड, भ्रांतियाँ और अन्य चीजें इस तथ्य के अनुरूप हैं या विपरीत कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? बेशक वे इस तथ्य के विपरीत हैं। वे आराध्य-जन, जिनको लोग चढ़ावा चढाते हैं, मानवजाति के बीच मजबूती से पैर जमाने के लिए कुछ ऐसे पाखंड और भ्रांतियाँ सामने रखकर उन्हें गुमराह करते हैं, जो इंसानी धारणाओं, कल्पनाओं और रुचियों के अनुरूप होती हैं, जैसे कि “बुद्ध परोपकारी है,” “स्वर्ग जीवित चीजों को सँजोता है,” “एक सात-मंजिला पगोड़ा बनाने से बेहतर है एक जीवन को बचाना,” और “जो भाग्य में लिखा है वह अवश्य होगा, जो भाग्य में नहीं लिखा उसके होने पर जोर नहीं देना चाहिए।” और कुछ? (तुम्हारे तीन फीट ऊपर एक परमेश्वर है।) तुम्हारे तीन फीट ऊपर कहाँ है? वह अधर में है, जहाँ शैतान रहता है। यह “परमेश्वर” क्या है? (यह शैतान है।) और वह कौन-सी कहावत है, जिसका बौद्ध लोग अक्सर उपयोग करते हैं? (भलाई के बदले भलाई और बुराई के बदला बुराई मिलती है; इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है।) लोग दुनिया में अक्सर कही जाने वाली इन अपेक्षाकृत सकारात्मक कहावतों और दार्शनिक सिद्धांतों को सत्य मानते हैं, लेकिन वास्तव में, क्या ये शब्द सत्य हैं? क्या इनके और सत्य के बीच कोई संबंध है? (नहीं।) जैसे “भलाई के बदले भलाई मिलती है और बुराई के बदले बुराई मिलती है; इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है”—इसमें “भलाई के बदले भलाई मिलती है” का क्या अर्थ है? “भलाई” का क्या अर्थ है? यह न्याय है, सत्य है या मनुष्य की थोड़ी-सी सद्भावना है? (यह मनुष्य की सद्भावना है।) क्या मनुष्य की थोड़ी-सी सद्भावना का बदला वास्तव में अच्छाई से मिलता है? जरूरी नहीं। “पुल बनाना और सड़कों की मरम्मत करना अंधेपन की ओर ले जाता है”—पुल बनाना और सड़कों की मरम्मत करना दयालुता के कार्य हैं, तो वे अंधेपन की ओर क्यों ले जाते हैं? क्या इन कार्यों के लिए कोई पुरस्कार है? (नहीं।) “बुराई के बदला बुराई मिलती है”—हत्या और आगजनी बुराई है, तो क्या उनका बदला बुराई से मिलता है? (नहीं।) क्यों नहीं? “जबकि हत्यारे और आगजनी करने वाले यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी संतानें कई गुना बढ़ें”—ये शब्द “बुराई के बदला बुराई मिलती है” का खंडन करते हैं। “इन चीजों का बदला चुकाया जाएगा, बस अभी इसका समय नहीं आया है”—इसमें “अभी इसका समय नहीं आया है” का क्या अर्थ है? उसके आने का क्या अर्थ है? जब लोग सत्य नहीं समझते, तो वे इन शब्दों और कहावतों को सकारात्मक चीजें और सत्य मानते हैं। खोखले दिल वाले और आध्यात्मिक पोषण के स्रोत से रहित लोग खुद को सांत्वना देने के लिए इन तथाकथित सही शब्दों को अपने आध्यात्मिक पोषण के रूप में, एक तरह के आध्यात्मिक सुख के रूप में, लेते हैं, “यह ठीक है, जीवन में आशा है, इस दुनिया में अभी भी निष्पक्षता और धार्मिकता है, और अभी भी कोई है जो न्याय कायम रखेगा। निष्पक्ष परिणाम प्राप्त करना अभी भी संभव है, और अंततः इस सब पर एक संकल्प-वक्तव्य पारित किया जाएगा।” क्या वे कहावतें सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की सच्ची समझ हैं? क्या वे लोगों द्वारा इस तथ्य की स्वीकृति की सच्ची अभिव्यक्तियाँ हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) क्या लोग जो कहावतें या मुहावरे कहते हैं, वे इस तथ्य से संबंधित हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) क्यों नहीं? (ये शब्द सत्य नहीं हैं।) तुम्हारा उत्तर इसे सैद्धांतिक स्तर पर साबित करता है, लेकिन मूल कारण क्या है? मूल कारण इस सिद्धांत जितना सरल नहीं है, इसे सिर्फ इस एक वाक्य में समझा पाना संभव नहीं है। चूँकि परमेश्वर के सभी चीजों पर संप्रभु होने का मामला इतना सरल नहीं है, तो इसे कैसे समझा जाए? जैसा कि हमने पहले संगति की थी, मसीह-विरोधी यह नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी क्यों न देख रहे हों, वे उसकी पड़ताल और विश्लेषण हमेशा एक दर्शक के और एक भौतिकवादी के परिप्रेक्ष्य से करते हैं जो धन और शक्ति को जीवन मानता है। अगर कोई व्यक्ति किसी भी चीज को ऐसे परिप्रेक्ष्य और दृष्टिकोण से देखता है, तो क्या समस्या का सार बदल नहीं जाएगा? क्या यह अलग नहीं होगा? अगर कोई व्यक्ति सभी चीजों के विकास के नियम-कानूनों को एक भौतिकवादी के परिप्रेक्ष्य से देखता है, तो अंतिम नतीजा क्या होगा? क्या दुनिया के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण सांसारिक आचरण के इंसानी फलसफे, रणनीतियाँ, तरीके और दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं करेगा? क्या यह खेल के नियम प्रस्तुत नहीं करेगा? (हाँ।) यह नतीजा है, और मुद्दे का सार यहीं है।
एक भौतिकवादी सत्ता को किस तरह से देखता है? वह मानता है कि अगर कोई व्यक्ति सत्ता हासिल करना चाहता है, तो पहले, उसके पास रणनीतियाँ होनी आवश्यक हैं, दूसरे, उसे सभी तरह के लोगों को नियंत्रित करने में सक्षम होना चाहिए, तीसरे, उसे क्रूर होने की आवश्यकता है, और चौथे, उसे परिवर्तनीय होना चाहिए। क्या यह एक भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं है? क्या इसमें परमेश्वर की संप्रभुता के प्रति समर्पण का कोई संकेत है? (नहीं।) भौतिकवादियों को सत्ता के बारे में ये विचार कैसे आए? क्या ये विचार मसीह-विरोधियों के सार से उत्पन्न नहीं हुए थे? (बिल्कुल।) मसीह-विरोधियों के किस सार से? मुझे बताओ, अगर मसीह-विरोधियों में दुष्ट सार नहीं होता, तो क्या वे “लोगों को नियंत्रित करने में सक्षम” जैसे शब्द सोचते? क्या वे सोचते कि उनके पास “रणनीतियाँ होनी आवश्यक हैं”? क्या वे कहते कि उन्हें “परिवर्तनीय होना चाहिए”? अगर उनमें दुष्ट सार न होता तो क्या वे कहते कि उन्हें “क्रूर होने की आवश्यकता है”? (नहीं।) यह मसीह-विरोधियों के सार से निर्धारित होता है। क्या उनके सार से उत्पन्न विभिन्न विचार सिर्फ उनके मन में विद्यमान विचार हैं, या सांसारिक आचरण के उनके सिद्धांत और रोजमर्रा की जिंदगी में उनका आचरण एकसमान हैं? (सांसारिक आचरण के उनके सिद्धांत एकसमान हैं।) वे अपने दैनिक जीवन में और समूहों के बीच लगातार सारांश बना रहे हैं ताकि उनकी रणनीतियाँ ज्यादा से ज्यादा परिपक्व और अनुभवी होती जाएँ और अंत में शैतानी बन जाएँ। शैतानी का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है काफी क्रूर, काफी निर्दयी और काफी भयावह होना। क्या उनकी क्रूरता, निर्दयता और भयावहता की अभिव्यक्तियाँ उन्हें परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए बाध्य कर सकती हैं? बिल्कुल नहीं। इसलिए, चाहे वे युवा हों या बूढ़े, मसीह-विरोधी सब-कुछ अपने फलसफों, कानूनों, खेल के नियमों, रणनीतियों और अनुभव के आधार पर करते हैं। यह सब इस तथ्य के अनुरूप है या विपरीत कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (विपरीत।) जब मसीह-विरोधी अपने सारांशों से उत्पन्न ये तमाम कानून लागू करते हैं, तो उनका सिद्धांत और लक्ष्य क्या होता है? उनकी प्रेरणा क्या होती है? वे कहते हैं, “अगर तुम जो चाहते हो उसे पाना चाहते हो, तो तुम्हें कुछ भी करना और किसी भी हद तक जाना सीखना चाहिए, काफी क्रूर, काफी निर्दयी और काफी भयावह होना चाहिए, जैसी कि कहावत है, ‘एक छोटे मन से कोई सज्जन व्यक्ति नहीं बनता है; वैसे ही वास्तविक मनुष्य को क्रूर होना चाहिए।’” इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है : “परमेश्वर की संप्रभुता क्या है? स्वर्ग की व्यवस्थाओं की प्रतीक्षा क्या है? ऐसा कुछ नहीं है! कौन-सा अधिकारी या सम्राट कठोर और क्रूर तरीकों से उस स्थान पर नहीं पहुँचा है जहाँ वह अभी है? क्या ये पद लड़ाइयों और हत्याओं के जरिये प्राप्त नहीं किए जाते?” उनके इस दृष्टिकोण को देखते हुए, क्या मसीह-विरोधी इस तथ्य को स्वीकारते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है? (नहीं।) गैर-विश्वासियों की दुनिया में मसीह-विरोधी अस्तित्व के इस नियम पर ऐसा परिप्रेक्ष्य रखते हैं। तो जब वे कलीसिया में होते हैं, तब क्या वे कार्य करते समय उन्हीं रणनीतियों का उपयोग करेंगे? क्या वे उन्हीं जीवन-नियमों का पालन करेंगे? यह जरा भी नहीं बदलेगा। यहाँ तक कि जब मसीह-विरोधी कलीसिया में आते हैं, तो वे कभी खुद को संयमित नहीं करते या खुद को सुधारते नहीं, वे ऐसा बिल्कुल नहीं करते। वे कहते हैं, “अगर तुम दूसरों से श्रेष्ठ होना चाहते हो, तो तुम्हें रणनीतियों से युक्त होना सीखना चाहिए। जब हर कोई तुम्हारे आसपास हो, खासकर प्रतिष्ठित लोग तुम्हारे आसपास हों, तो तुम्हें दिखावा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, और प्रभारी लोगों, अगुआओं और ऊपरवाले को इसे दिखाना चाहिए। तब तुम्हें पदोन्नत होने और महत्वपूर्ण पदों पर रखे जाने का मौका मिलेगा, और दूसरों से श्रेष्ठ होने का अवसर मिलेगा। इसके अलावा, जब तुम लोगों के आसपास होते हो, तब और जब तुम लोगों के आस-पास नहीं होते हो तब, तुम्हें अलग-अलग तरह से व्यवहार करना सीखना चाहिए, तुम्हें धोखेबाजी में लिप्त रहना सीखना चाहिए। लोगों के सामने अच्छी चीजें करो, और भयानक, बुरी, अंधकारपूर्ण चीजें, और ऐसी चीजें जो लोगों को पसंद न हों, छिपकर करो। कभी किसी को अपनी असलियत मत देखने दो। तुम्हें लोगों को अपना सर्वोत्तम पक्ष दिखाना चाहिए और खुद को अच्छी तरह से छिपाना चाहिए। चाहे तुम वास्तव में कितने भी बुरे क्यों न हो, तुम्हें इसे अच्छी तरह से छिपाना चाहिए। लोगों का समर्थन मत खोओ। अगर तुमने उनका समर्थन खो दिया, तो बहुत देर हो चुकी होगी—तब तुम्हारे पास कोई मौका नहीं होगा।” मसीह-विरोधी भी कलीसिया में ऐसी ही रणनीतियों और अस्तित्व के नियमों के अनुसार जीते हैं।
मसीह-विरोधी उन सभी भाई-बहनों की गवाहियों को किस तरह देखते हैं, जिन्होंने सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का अनुभव कर उसे जाना है? मसीह-विरोधी कहते हैं, “लोगों के पास दिमाग, विचार और शिक्षा है, और संपादन और लेखन के जरिये उन्होंने ये अनुभवजन्य गवाहियाँ तैयार की हैं। वास्तव में, ये तमाम अनुभवजन्य गवाहियाँ लोगों द्वारा कल्पित हैं, ये सब नकली हैं, और ये सब असंभव हैं। मैं भी अनुभवजन्य गवाही पेश कर सकता हूँ, अगर मुझे उसे गढ़ना हो तो। मैं अनुभवजन्य गवाही के 10-20 लेख पेश कर सकता हूँ। मैं ऐसा करने की जहमत नहीं उठा सकता। क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम लोगों की छोटी-छोटी साजिशें नहीं देख सकता? क्या तुम सिर्फ दिखावा करने के लिए ऐसा नहीं कर रहे? तुम इसे परमेश्वर की गवाही देने, परमेश्वर के नाम की गवाही देने और सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की गवाही देने के सुंदर नाम से पुकारते हो, और कहते हो कि तुम परमेश्वर के लिए गवाही दे रहे हो, लेकिन वास्तव में, तुम इसे सिर्फ अपने लिए गवाही देने और दूसरों से श्रेष्ठ होने के लिए कर रहे हो।” वे परमेश्वर द्वारा लोगों पर किए गए कार्य के बारे में सभी गवाहियों की सच्चाई नहीं स्वीकारते। जब बाहरी दुनिया में विभिन्न परिवेशों और परिस्थितियों और प्रत्येक देश की स्थितियों की बात आती है, तो मसीह-विरोधी यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर कैसे काम कर रहा है, और जब परमेश्वर द्वारा बाहरी दुनिया के परिवेशों को बनाए रखने, बदलने या व्यवस्थित करने की बात आती है, तो वे यह नहीं समझ पाते कि उसके द्वारा यह सब करने का क्या अर्थ है। वे मानते हैं कि “‘परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है’ यह सिर्फ एक खोखला, बड़बोला बयान है। वास्तव में, चाहे तुम जिस भी देश में जाओ, तुम्हें उस देश की सरकार की आज्ञाओं का पालन करना होगा, है न? तुम उस देश की सरकार और कानूनों के प्रतिबंधों के अधीन रहते हो, है न? क्या इसका मतलब यह नहीं कि यह कथन कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, गलत साबित होता है? चाहे वह अपनी संप्रभुता का प्रयोग कैसे भी करे, क्या वह किसी देश की सरकार और कानूनों से बढ़कर हो सकता है?” इसलिए, जैसे ही बाहरी दुनिया में परिवेश और परिस्थिति कलीसिया और उसके कार्य के लिए प्रतिकूल होती है, मसीह-विरोधी अपने राक्षसी चेहरे प्रकट करते हुए गुप्त रूप से खुश होते हैं और इस पर हँसते हैं। जब कलीसिया का काम सुचारु रूप से चल रहा होता है, और परमेश्वर उसे आशीष दे रहा होता है और उसकी अगुआई कर रहा होता है, और सब-कुछ सही रास्ते पर होता है, जब बाहरी दुनिया के परिवेश से कोई हस्तक्षेप नहीं होता और भाई-बहनों की अवस्था बेहतर से बेहतर होती जाती है, तो मसीह-विरोधियों के दिल बेचैन और अधीर हो जाते हैं, वे बेहद ईर्ष्यालु, असहज और घिनौना महसूस करते हैं। वे घिनौना क्यों महसूस करते हैं? वे नहीं मानते कि परमेश्वर इस सब पर संप्रभु हो सकता है। कलीसिया परमेश्वर का घर है, यह वह स्थान है जहाँ परमेश्वर अपना प्रबंधन-कार्य करता है, जहाँ परमेश्वर मानवजाति को बचाता है, जहाँ परमेश्वर की इच्छा बेरोकटोक चलती है और जहाँ परमेश्वर के वचन लोगों में साकार किए जा सकते हैं और उनकी पुष्टि की जा सकती है। जब कलीसिया अच्छा कर रही होती है, तो वह परमेश्वर के अधिकार की वास्तविकता प्रदर्शित करती है, साथ ही यह पुष्टि करती है कि सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य विद्यमान है और वह सत्य है। जब यह तथ्य विद्यमान होता है और सत्यापित हो जाता है, तो यह मसीह-विरोधियों के चेहरों पर एक तमाचा होता है। चेहरे पर तमाचा खाने के बाद मसीह-विरोधी अपने दिलों में खुशी, शांति और आराम महसूस करते हैं या वे विद्रोही और रुष्ट महसूस करते हैं? (वे विद्रोही और रुष्ट महसूस करते हैं।) वे अपने दिलों में क्या सोच रहे होते हैं? वे परमेश्वर से घृणा करते हैं और परमेश्वर को नकारते हैं। अगर ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि कलीसिया और भाई-बहनों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, उन लोगों को सताया जा रहा है, दबाया जा रहा है, बहिष्कृत किया जा रहा है और समाज में उनका रुतबा नहीं है, तो मसीह-विरोधी अपने दिलों में काफी खुश और प्रसन्न होते हैं, लेकिन जब परमेश्वर का कार्य और कलीसियाई जीवन सब फल-फूल रहे होते हैं और लगातार विकसित हो रहे होते हैं, तो मसीह-विरोधी खुश नहीं होते। वे खुश क्यों नहीं होते? क्योंकि यह उनकी धारणाओं से बहुत असंगत है, यह ऐसी चीज है जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की होती। उनके विचारों के उलट परमेश्वर की संप्रभुता और परमेश्वर के वचन पूरे और साकार हो चुके हैं, इसलिए वे दुखी होते हैं। मसीह-विरोधी जो विचार और दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हैं, उसके आधार पर और साथ ही उनकी असंतोष की भावनाओं के आधार पर, क्या वे बड़े लाल अजगर जैसा ही परिप्रेक्ष्य नहीं रखते? क्या उनका प्रकृति-सार बड़े लाल अजगर के समान ही नहीं है? यह पूरी तरह से समान है।
संपूर्ण विश्व, सभी चीजों, और उन नियम-कानूनों के बारे में, जिनका तमाम सृजित प्राणी पालन करते हैं, मसीह-विरोधी सोचते हैं : “प्रकृति और मौसम बहुत पहले ही बन गए थे। अगर लंबे समय तक ठंड रहती है, तो गर्मी हो जाएगी; अगर लंबे समय तक गर्मी रहती है, तो ठंड हो जाएगी। जब पत्ते गिरने का समय होता है, तो हवा चलने पर वे गिर जाते हैं। क्या यह सब बहुत सामान्य नहीं है? यह परमेश्वर की संप्रभुता कैसे है? यह परमेश्वर द्वारा निर्धारित कानून कैसे है? परमेश्वर के कानून क्या कर सकते हैं? लोगों ने बिना कोई परिणाम भुगते इतने सारे जानवरों को मार डाला है; मानवजाति अभी भी पहले की तरह ही जी रही है, है न? वे कहते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, तो मैं कैसे नहीं देख पाता कि परमेश्वर उन पर संप्रभुता कैसे रखता है? वे कहते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, लेकिन बुरे लोग हमेशा फलते-फूलते क्यों हैं, जबकि अच्छे लोग कभी उन पर भारी नहीं पड़ते?” अंत में, वे निष्कर्ष निकालते हैं कि : “इस दुनिया में कोई उद्धारकर्ता नहीं है; यह मानवजाति है जो दुनिया को नियंत्रित करती है। ये दुनिया के देशों की महान हस्तियाँ और नेता हैं जो इस दुनिया पर शासन करते हैं, और ये ही वे लोग हैं जो इस दुनिया का परिदृश्य बदलते हैं। उन महान और सक्षम लोगों के बिना दुनिया नष्ट हो जाएगी। जहाँ तक परमेश्वर के सभी चीजों पर संप्रभु होने की बात है, मैं इसे नहीं देख पाता। परमेश्वर उनके ऊपर संप्रभु कैसे है? मैं इसे महसूस क्यों नहीं कर सकता? मैं इसे क्यों नहीं समझ सकता? सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता में बहुत-सी ऐसी चीजें क्यों हैं, जो इंसानी धारणाओं के विपरीत हैं?” वे इसे न तो मान सकते हैं, न ही स्वीकार सकते हैं। जब बात सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की, जिस तरह से परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है उसकी, उस स्वभाव की जिसे परमेश्वर सभी चीजों पर अपनी संप्रभुता में प्रकट करता है, परमेश्वर के कार्य के सिद्धांतों की, परमेश्वर के सार इत्यादि की आती है, तो जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं वे अपने जीवनकाल में उसका सिर्फ एक अंश ही समझ पाते हैं। फिर भी यह उनसे सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करवाने, सृष्टिकर्ता द्वारा बोले गए सभी वचनों के प्रति समर्पण करवाने और सृष्टिकर्ता को परमेश्वर के रूप में मनवाने के लिए पर्याप्त है। अगर कुछ लोग इसका एक अंश समझ भी लें, तो भी उनके लिए इसे पूरी तरह से समझना असंभव है, क्योंकि परमेश्वर के बहुत-से कार्य उसकी स्थिति और पहचान से किए जाते हैं, और इन कार्यों और सृजित मनुष्यों के विचार और संज्ञान के बीच हमेशा एक विसंगति रहेगी। और, जो थोड़ा-बहुत लोग अपने जीवनकाल में अनुभव की गई चीजों के जरिये समझ सकते हैं, उसे सिर्फ वे ही समझ सकते हैं जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जिनके पास अंतर्दृष्टि है और सत्य समझने की क्षमता है। कम काबिलियत वाले लोगों के लिए, जिनमें अंतर्दृष्टि नहीं होती और जो सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं करते, समझ का यह अंश भी अप्राप्य है। अक्सर कहा जाता है कि परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों से ऊँचे हैं। इसका मतलब यह है कि मनुष्य कभी सृष्टिकर्ता के विचारों तक नहीं पहुँच पाते, और उन्हें समझ का एक अंश प्राप्त होना भी परमेश्वर का अनुग्रह है। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं, उनमें से भी सिर्फ वे ही इसे प्राप्त कर सकते हैं जो परमेश्वर के बहुत-से वचन सुनने के बाद और बहुत-से सत्य समझने और अनुभव करने के बाद परमेश्वर के कार्य के अंतिम चरण को स्वीकारते हैं—इसके लिए जीवन भर के प्रयास की आवश्यकता होती है। मसीह-विरोधियों के लिए, जो मूल रूप से परमेश्वर की पहचान को नकारते हैं, अपने सार के अनुसार, वे सत्य या सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते, और परमेश्वर की पहचान और सार से संबंधित किसी चीज से प्रेम तो बिल्कुल नहीं करते, इसलिए वे सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को स्वीकारने के बिंदु तक कभी नहीं पहुँचेंगे। इस तथ्य को स्वीकारना सत्य को समझने और उसका अनुसरण करने के आधार पर निर्मित होता है, लेकिन मसीह-विरोधी सत्य को नकारते हैं, सत्य से विमुख होते हैं, परमेश्वर से घृणा करते हैं, और इससे भी बढ़कर, परमेश्वर की पहचान और सार से घृणा करते हैं। इसलिए, उनके लिए सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य हमेशा अस्तित्वहीन रहेगा। “अस्तित्वहीन” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि ये मूर्ख सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को कभी देख या समझ नहीं पाएँगे। इसलिए वे इसे समझ नहीं सकते। सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य में कई चीजें समाहित हैं, और यह कई सत्यों और साथ ही परमेश्वर की बुद्धि और परमेश्वर की पहचान और सार को छूता है। परमेश्वर उन सभी चीजों के बीच, जिन पर वह संप्रभु है, सभी चीजें कैसे आयोजित करता है? तरीकों, समय और इस मामले में परमेश्वर के विचारों के संदर्भ में, उसका मन इसकी योजना कैसे बनाता है और इसे कैसे लागू करता है? इन पहलुओं के आधार पर आकलन करते हुए, सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता सरल मामला नहीं है; इसमें काफी जटिल संबंध शामिल हैं। मसीह-विरोधियों जैसे मूर्ख, जिनमें आध्यात्मिक समझ नहीं है और जो सत्य नहीं स्वीकारते, कभी नहीं समझ पाएँगे कि परमेश्वर सभी चीजों पर किस तरह संप्रभुता रखता है। वे इसे कभी नहीं समझ पाएँगे, तो क्या वे इसे स्वीकार सकते हैं? (वे नहीं स्वीकार सकते।) कुछ लोग कहते हैं, “वे इसे इसलिए नहीं स्वीकारते, क्योंकि वे इसे समझ नहीं सकते। अगर वे इसे समझ सकते, तो क्या वे इसे नहीं स्वीकारते?” यह सिर्फ एक अनुमान है; अनुमान सिर्फ तर्क के अनुरूप होते हैं, जरूरी नहीं कि वे तथ्यों के अनुरूप हों। तो, तथ्यों की सच्चाई क्या है? मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य कभी नहीं स्वीकारेंगे। फिलहाल आओ, मसीह-विरोधियों के बारे में बात नहीं करते, बल्कि प्रधान दूत, शैतान व दानव बड़े लाल अजगर के बारे में बात करते हैं। वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सताता है, कलीसिया को नुकसान पहुँचाता है और परमेश्वर के कार्य में बाधा डालता है। जब परमेश्वर उस पर आपदाएँ लाता है, जिससे वह घबराकर इधर-उधर धक्का-मुक्की करने लगता है, उन्मत्त और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है, मुकाबला करने में असमर्थ हो जाता है, और अंत में दया की याचना करता है, “मैं फिर कभी स्वर्ग से नहीं लड़ूँगा।” इस कथन से क्या जानकारी प्राप्त की जा सकती है? बड़ा लाल अजगर स्वर्ग और परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारता है, लेकिन उसकी प्रकृति नहीं बदलती; भले ही वह परमेश्वर का अस्तित्व स्वीकारता है, फिर भी वह परमेश्वर के विरुद्ध चलता है और उसका विरोध करता है। जब वह परमेश्वर को हरा नहीं पाता, तब यह कहते हुए दया की भीख माँगता है कि वह अब स्वर्ग से नहीं लड़ेगा। लेकिन क्या वह वास्तव में अधीन होकर दया की याचना कर रहा होता है? नहीं, जब वह ठीक हो जाता है, तो लड़ना जारी रखता है; यह उसकी प्रकृति है, और उसकी प्रकृति नहीं बदलती। मसीह-विरोधियों की भी ऐसी ही प्रकृति होती है।
मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के भीतर मानवजाति के भाग्य पर उसकी संप्रभुता को कैसे देखते हैं? इसमें एक बहुत ही सूक्ष्म मामला शामिल है। जब सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता की बात आती है तो “सभी चीजों” की संकल्पना स्थूल और बहुत व्यापक है; मसीह-विरोधी इसे नहीं स्वीकार सकते, वे इसके प्रति अंधे हैं और इसे समझ नहीं सकते। तो, क्या मसीह-विरोधी इस बात के प्रति समर्पित होते हैं कि परमेश्वर उनके भाग्य पर किस तरह संप्रभुता रखता है? क्या वे इसे समझते हैं? क्या वे इसे बूझते हैं? क्या वे इसे स्वीकार सकते हैं? हरगिज नहीं। मसीह-विरोधी मानते हैं कि उन्होंने अपने वास्तविक जीवन में सभी अच्छी चीजें अपने ही प्रयासों से हासिल की हैं। उदाहरण के लिए, अगर वे किसी विश्वविद्यालय में प्रवेश पा लेते हैं तो वे इसका श्रेय अपनी पढ़ाई में अपने अच्छे प्रदर्शन को देते हैं और मानते हैं कि वे एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए ही पैदा हुए हैं। अगर वे एक अच्छा जीवन जी रहे हैं और उन्होंने पैसा कमाया है तो वे खुद को अमीर बनने के लिए उपयुक्त मानते हैं, जैसा कि ज्योतिषियों ने उन्हें बताया होता है कि उनका जीवन समृद्ध होगा, और वे इतने भाग्यशाली होंगे कि वे अधिकारी बनेंगे और आर्थिक रूप से भी सफल होंगे। जब चीजें गलत हो जाती हैं या उनकी उम्मीद के मुताबिक नहीं होतीं और वे पीड़ित होते हैं तो वे शिकायत करना शुरू कर देते हैं, “मेरे साथ चीजें इतनी बुरी क्यों होती हैं? मेरा भाग्य इतना बुरा क्यों है? मेरी किस्मत बहुत खराब है!” वे इंसानी परिप्रेक्ष्य से इन चीजों की व्याख्या करते हैं और इन्हें देखते हैं। अगर सब कुछ सुचारु रूप से चलता है तो वे दर्प से चूर हो जाते हैं, हर मोड़ पर दिखावा करते हैं, भयंकर और धमकी भरे तेवर दिखाते हैं, और ढीठ और अहंकारी हो जाते हैं; लेकिन जब चीजें उनके हिसाब से नहीं होतीं तो वे परमेश्वर और दूसरे लोगों को दोष देते हैं और चीजों को उलटने और स्थिति से बचने का उपाय खोजने की कोशिश करते हैं। वे कहते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी नियत या संपन्न करता है वह अच्छा होता है, लेकिन अकेले में वे अपना दिमाग दौड़ाकर चीजों को उलटने और स्थिति से बचने या उसे बदलने के लिए हर साधन इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं और कहते हैं, “मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि मेरा भाग्य इतना बुरा है, कि मेरी किस्मत इतनी भयानक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि दुनिया इतनी अन्यायी है, कि मेरे जैसे सक्षम व्यक्ति को अंततः दुनिया नहीं जान पाएगी, कि मेरे चमकने का वक्त कभी नहीं आएगा। असल में, भाग्य सिर्फ एक खोखला खोल है, यह सिर्फ एक कहावत है; सब-कुछ व्यक्ति के अपने प्रयासों और संघर्षों पर निर्भर करता है। जैसी कि कहावत है, ‘सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।’ यह सर्वोच्च सिद्धांत है; मुझे इसे कभी नहीं भूलना चाहिए, मुझे खुद को प्रेरित करने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए।” वे बार-बार कहते हैं कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है वह अच्छा है, कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और वे परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करते हैं, लेकिन अंत में वे कहते हैं, “सबसे महान इंसान बनने के लिए व्यक्ति को सबसे बड़ी कठिनाइयाँ सहनी होंगी।” ऊपरी तौर पर वे आध्यात्मिक शब्द बोलते हैं, लेकिन अकेले में वे जिन सिद्धांतों को लागू करते हैं, जिनका अभ्यास और पालन करते हैं, वे सांसारिक आचरण, तर्क और सोच के शैतानी फलसफे हैं। क्या इसमें कोई समर्पण है? (नहीं।) मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को इसी तरह देखते, समझते और उसका सामना करते हैं। इन अभिव्यक्तियों और उदाहरणों के आधार पर, क्या मसीह-विरोधी सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता का तथ्य स्वीकारते हैं और उस पर विश्वास करते हैं, या वे उस पर संदेह कर उसकी निंदा करते हैं? (वे उस पर संदेह कर उसकी निंदा करते हैं।) चाहे वे कुछ भी कहें, अपनी वास्तविक अभिव्यक्तियों के आधार पर मसीह-विरोधी मूल रूप से सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य से घृणा करते हैं और उस पर विश्वास नहीं करते। कुछ मसीह-विरोधी तो बेतुके बयान भी देते हैं : “तुम किसी भी चीज के लिए प्रयास किए बिना सिर्फ निष्क्रिय रूप से परमेश्वर की संप्रभुता की प्रतीक्षा कैसे कर सकते हो? क्या तुम्हें अपना खाना खुद नहीं पकाना पड़ता? क्या तुम बस मुँह खोलकर आसमान से उसमें कचौड़ी गिरने का इंतजार कर सकते हो? परमेश्वर चाहे कैसे भी संप्रभुता रखता हो, लोगों को फिर भी कड़ी मेहनत और कार्रवाई करने की जरूरत पड़ती है, है न?” मसीह-विरोधी न सिर्फ सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य को स्वीकारने से मना करते हैं, बल्कि वे इसे नकारते हैं और इसकी गलत व्याख्या भी करते हैं। इसकी गलत व्याख्या करने का उनका क्या उद्देश्य होता है? वे अपने इच्छित सभी लाभों के लिए बेईमानी से लड़ने का एक आधार और बहाना खोजते हैं। मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के आधार पर, सभी चीजों पर परमेश्वर की संप्रभुता के तथ्य पर उनका सच्चा परिप्रेक्ष्य क्या होता है? अविश्वास, इनकार और निंदा—यही उनका सच्चा परिप्रेक्ष्य होता है।
आज हमने जिन दो बिंदुओं पर संगति की, उनमें हमने मुख्य रूप से मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास न करने की अभिव्यक्ति का विश्लेषण किया। इस संगति को सुनने के बाद क्या तुम लोगों को कोई समझ मिली है? किन लोगों में ये समस्याएँ होती हैं? किस तरह के व्यक्ति में मसीह-विरोधियों का स्वभाव तो होता है, लेकिन उनमें मसीह-विरोधियों का सार नहीं होता, और वे बदल सकते हैं? किन लोगों में वही समस्याएँ होती हैं, लेकिन उनमें मसीह-विरोधियों का सार होता है, वे बदल नहीं सकते, वे हमेशा के लिए परमेश्वर के दुश्मन होते हैं, और उद्धार के पात्र नहीं होते बल्कि विनाश के पात्र होते हैं? क्या तुम लोग भी ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो? क्या तुम्हें लगता है कि तुम बदल सकते हो? क्या तुम सत्य स्वीकार सकते हो और उसका उपयोग ये विचार बदलकर इनके स्थान पर दूसरे विचार लाने के लिए कर सकते हो? (बिल्कुल।) कौन-से लोग नहीं बदल सकते? एक तरह का व्यक्ति होता है, जो उन गैर-विश्वासियों को देखकर जो विलासिता का जीवन जीते हैं, महलों की तरह अंदर से सजे हुए बड़े घरों में रहते हैं और जिनके पास कई आलीशान कारें होती हैं, प्रलोभन में आकर रंज करता है, “अमीर होना, अधिकारी होना, सक्षम होना बहुत अच्छी बात है! वह इतना सक्षम क्यों है? वह इतना भाग्यशाली क्यों है? उसने पैसा कैसे कमाया?” जब भी वे देखते हैं कि किसी के पास सामाजिक रुतबा है, तो वे खास तौर से उसकी चापलूसी और खुशामद करते हैं और उसकी ठकुरसुहाती करने की कोशिश करते हैं, उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, किसी भी हद तक गुलाम बनने को तैयार रहते हैं। वे समाज में व्याप्त बुरी प्रवृत्तियों से विशेष रूप से प्रेम करते हैं और अक्सर उनका हिस्सा बनना चाहते हैं, और जब परमेश्वर में उनकी आस्था उन्हें ऐसा करने से रोकती है, तो वे व्यथित हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें लगता है कि दुनिया ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है; वे अकेलापन, बेबसी महसूस करते हैं, उन्हें लगता है कि उनके सहारे के लिए कुछ नहीं है, उन्हें आराम नहीं मिल सकता, और वे अक्सर महसूस करते हैं कि उनका दिल टूट गया है। दूसरे प्रकार का व्यक्ति जब धनी और शक्तिशाली लोगों को समाज में अपने मामले सँभालते हुए सफलता का आनंद लेते देखता है, तो उनकी बहुत सराहना करता है और अक्सर यह कहते हुए उनकी प्रशंसा करता है, “उन्होंने एक व्यक्ति को मार डाला, लेकिन चूँकि उनके पास धन और ताल्लुकात हैं, इसलिए उन्होंने बस कुछ ही दिन जेल में बिताए और फिर बाहर आ गए। यही असली क्षमता है!” वे समाज में ऐसे लोगों का बहुत सम्मान करते हैं और उन्हें आदर देते हैं। एक और प्रकार का व्यक्ति समाज में संवेदनशील राजनीतिक विषयों पर विशेष ध्यान देता है और उनकी गहरी परवाह करता है, यहाँ तक कि राजनीति से संबंधित कुछ मामलों में वास्तव में शामिल होना और खुद को उनमें झोंक देना चाहता है। ऐसे और इसी तरह के अन्य लोग, दिल की गहराई में परमेश्वर के प्रति मसीह-विरोधियों जैसा ही रवैया रखते हैं : वे परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, वे परमेश्वर की पहचान को या इस तथ्य को नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता है। ये लोग मसीह-विरोधियों जैसे गिरोह से ही संबंधित हैं। वे कलीसिया या परमेश्वर के घर से संबंधित नहीं हैं और अंततः हटा दिए जाएँगे। वे उन लोगों से मेलजोल नहीं रख सकते जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और जिस मार्ग पर वे चलते हैं वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के विपरीत है। ये सभी लोग खतरनाक हैं; भले ही उन्होंने अभी तक कोई बुरा काम न किया हो और अभी तक खुले तौर पर परमेश्वर को न नकारा हो, उसकी आलोचना या निंदा न की हो, या खुले तौर पर लोगों को गुमराह न किया हो और कलीसिया में हैसियत के लिए होड़ न की हो, फिर भी उनमें मसीह-विरोधियों का सार है क्योंकि वे मूल रूप से परमेश्वर की पहचान को नहीं स्वीकारते, और इस तथ्य को तो बिल्कुल नहीं स्वीकारते कि परमेश्वर की सभी चीजों पर संप्रभुता है। वे दुष्ट शक्तियों का हिस्सा और शैतान के गिरोह के अंग हैं। वे दुष्टता का, दानवों और शैतान द्वारा प्रचारित किसी भी पाखंड या भ्रांति का और साथ ही दुनिया में उत्पन्न होने, लोकप्रिय होने या फैलने वाली किसी भी बुरी प्रवृत्ति का आदर करते हैं। वे परमेश्वर के घर से या कलीसिया से संबंधित नहीं हैं और परमेश्वर के उद्धार के पात्र नहीं हैं। ये लोग परमेश्वर के वास्तविक दुश्मन हैं, ये मसीह-विरोधी हैं।
14 नवंबर 2020