मद ग्यारह : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं
आज हम मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों के मद ग्यारह पर संगति करेंगे : वे काट-छाँट करना स्वीकार नहीं करते और न ही गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया होता है, बल्कि वे धारणाएँ फैलाते हैं और परमेश्वर के बारे में सार्वजनिक रूप से आलोचना करते हैं। इस मद में विशिष्ट रूप से इस विषय पर बात की गई है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं; अर्थात्, जब वे इस स्थिति का सामना करते हैं तो उनका रवैया कैसा होता है, वे फिर आगे क्या करते हैं और इस रवैये को अपनाते समय वे कौन सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं। क्या हमने पहले ही इस विषय पर संगति कर ली है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं? (हाँ, इस विषय पर तब चर्चा की गई थी जब हम इस बारे में संगति कर रहे थे कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति को किस प्रकार लेते हैं।) तो फिर, मसीह-विरोधी का काट-छाँट किए जाने के प्रति क्या रवैया होता है? क्या हमने उस समय उन प्रसिद्ध कहावतों पर संगति नहीं की थी जो मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने के समय कहते हैं? (हाँ।) उनके पास इस तरह की स्थिति के लिए दो प्रसिद्ध कहावतें हैं। एक तो यह है कि “परमेश्वर धार्मिक है, और मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, किसी व्यक्ति पर नहीं!” और दूसरा यह है कि “तुम अभी मेरी काट-छाँट करने के लिए अभी बहुत नौसिखिया हो। अगर मुझे परमेश्वर पर विश्वास नहीं होता, तो मुझे किसी की कोई परवाह नहीं होती!” इसके अलावा, वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं और जैसे ही उनकी काट-छाँट की जाती है, उन्हें संदेह हो जाता है कि उन्हें हटा दिया जाएगा। अंत में, हमने इस बारे में भी संगति की कि वे कैसे न केवल काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, बल्कि हर जगह अपनी धारणाएँ भी फैलाते रहते हैं। क्या हमने इसी बारे में बात नहीं की थी? (हाँ।)
I. मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के कारण
मैंने अभी-अभी हमारी पिछली संगति की एक त्वरित समीक्षा पेश की है जो इस बारे में थी कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को किस प्रकार लेते हैं, जब यह उनके व्यक्तिगत हितों से जुड़ी होती है। आज हम एक दूसरे दृष्टिकोण से इस पर संगति करने और इसका विश्लेषण करने जा रहे हैं और हम इस बात पर नजर डालने जा रहे हैं कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे कौन से विशिष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं और वे किस प्रकार का रवैया अपनाते हैं, साथ ही यह भी कि इस बारे में उनके विशिष्ट विचार क्या होते हैं, हम इन विचारों के आधार पर उनके स्वभाव का विश्लेषण करेंगे। चूंकि इसमें काट-छाँट किए जाने का विषय शामिल है, इसलिए चलिए पहले मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के कारणों के बारे में संगति करते हैं। काट-छाँट की प्रक्रिया बिना किसी आधार के नहीं की जाती है, तो फिर एक मसीह-विरोधी के साथ किस संदर्भ में और किन परिस्थितियों में यह प्रक्रिया घटित होगी? क्या यह प्रक्रिया सिर्फ इसलिए होगी कि वह व्यक्ति एक मसीह-विरोधी है? कुछ लोग कहते हैं : “जो भी हैसियत रखता है, जो सुर्खियों में रहता है, उसके साथ अंततः काट-छाँट की जाएगी।” क्या यह सच है? (नहीं।) तो फिर, मसीह-विरोधी ऐसा क्या करते हैं जिसके कारण उनकी काट-छाँट की जाती है? अगर वे कोई साधारण सी गलती करते हैं तो क्या उनकी कठोरता से काट-छाँट की जाएगी? क्या इस पर संगति नहीं की जानी चाहिए? (हाँ।) मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है? अगर हम इस चीज को सैद्धांतिक रूप से देखें तो, मसीह-विरोधी घमंडी स्वभाव के होते हैं, वे सत्य के प्रति समर्पण नहीं करते, वे परमेश्वर के वचनों या सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करते, वे सत्य से उलट चलते हैं, वे सत्य से घृणा करते हैं और वे परमेश्वर के दुश्मन होते हैं, इसलिए उनकी काट-छाँट की चाहिए या उन्हें निर्दयतापूर्वक उजागर किया जाना चाहिए। क्या यह कथन सही है? उनकी अभिव्यक्तियों और प्रकाशनों के आधार पर, उन्हें मसीह-विरोधियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, इसलिए वे काट-छाँट किए जाने और यहाँ तक कि निर्दयतापूर्वक उजागर किए जाने के लायक होते हैं; चाहे उनकी कैसे भी काट-छाँट की जाए, वे दया किए जाने के लायक नहीं होते हैं, उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए और किसी को भी उनकी काट-छाँट करने का अधिकार है। क्या ऐसा ही होता है? (ऐसा नहीं है।) क्या यह पक्की बात है? मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है? मैंने अभी इसके कई कारण बताए हैं। तुम में से कुछ लोगों को लग सकता है कि वे कारण सही नहीं हैं, लेकिन तुम इसके बारे में निश्चित नहीं हो; ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोग केवल सिद्धांत समझते हो और इसके सार को नहीं देख सकते। यह तथ्य कि तुम लोगों ने इसे नहीं पहचाना है, यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने अभी तक इस बात को नहीं समझा है कि मसीह-विरोधियों की काट-छाँट क्यों की जाती है। अधिकांश लोग इस मामले के बारे में केवल सिद्धांतों को समझते हैं और वे अपने दिलों में जानते हैं कि एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जानी चाहिए और उसे निर्दयतापूर्वक उजागर किया जाना चाहिए, लेकिन उनमें मसीह-विरोधी के वास्तविक व्यवहार के बारे में विवेक की कमी होती है; इससे पता चलता है कि वे इस मुद्दे के सार या मसीह-विरोधियों के सार को नहीं देख सकते। जिन लोगों के पास सत्य वास्तविकता नहीं होती है वे केवल सिद्धांत ही समझते हैं, वे नियमों को अंधाधुंध लागू करते हैं, इसलिए अगर वास्तव में कोई मसीह-विरोधी कुछ कर रहा होता, तो वे कभी भी इसे समझने में सक्षम नहीं होते।
एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट क्यों की जा सकती है? इसका कारण बहुत ही सरल है—यह उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों और उनके सार से प्रकट होने वाली विभिन्न प्रथाओं और व्यवहारों के कारण है। और ये प्रथाएं, व्यवहार और अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? सबसे पहले तो, मसीह-विरोधी अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं। अपने मसीह-विरोधी सार के कारण, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए उसके साथ होड़ करते हैं, क्षेत्रों और लोगों के दिलों के लिए होड़ करते हैं—यह सब कुछ वे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए करते हैं। जब कोई अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा होता है, क्या वह अपना कर्तव्य निभा रहा होता है? (नहीं।) वे अपना कारोबार चला रहे होते हैं, अपने प्रभाव क्षेत्र और अपने अधिकार का प्रबंधन कर रहे होते हैं, अपने क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण पाने, अपना अलग गुट बनाने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे होते हैं ताकि वे परमेश्वर को नकारकर मसीह-विरोधियों का अनुसरण करें। इसे अपना कर्तव्य निभाना नहीं कहते, बल्कि इसे परमेश्वर से मुकाबला करना कहते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी इन अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करता है, जब वह ये कार्य करता है, तो क्या उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए? (हाँ।) क्या यह एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट किए जाने का एक कारण है? क्या यह उसकी एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है? (हाँ बिल्कुल ऐसा ही है।) तो फिर तुम लोगों ने अभी यह क्यों नहीं कहा? क्या ये शब्द तुम लोगों के होठों पर और तुम्हारे मन में नहीं हैं? (हाँ।) क्या यह अभिव्यक्ति उन सैद्धांतिक कारणों के विपरीत है जिनका मैंने अभी उल्लेख किया है? उनके बीच क्या अंतर है? (वे कारण तो सामान्य थे, जबकि परमेश्वर ने अभी जिस अभिव्यक्ति का उल्लेख किया है वह विस्तृत है—यह एक मसीह-विरोधी की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।) पहले जिन कारणों का उल्लेख किया गया था वे सामान्य थे, वे केवल कुछ सिद्धांत थे; ये मसीह-विरोधियों की काट-छाँट किए जाने के विशिष्ट कारण नहीं थे। यह अभिव्यक्ति वास्तविक कारणों में से एक है। पहली अभिव्यक्ति यह है कि वे अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी अभिव्यक्ति उनकी छलपूर्ण चालाकी है। इसकी प्रकृति वैसी ही है जैसे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास करना, लेकिन इसकी कुछ विशिष्ट प्रथाएं अलग हैं। तो छलपूर्ण चालाकी का क्या मतलब होता है? क्या यह एक सकारात्मक शब्द है या नकारात्मक? इसका मतलब प्रशंसात्मक है या निंदात्मक? (इसका मतलब निंदात्मक है।) छलपूर्ण चालाकी का आमतौर पर क्या मतलब होता है? इसमें किस प्रकार की अभिव्यक्तियाँ शामिल होती हैं? (इसमें मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी हैसियत को मजबूत करने के लिए परदे के पीछे से काम करना शामिल है। उदाहरण के लिए, कलीसिया के चुनाव के दौरान, वे गुप्त रूप से परदे के पीछे वोट मांगते हैं।) यह उन चीजों में से एक है जो इसमें शामिल हैं। संक्षेप में कहें तो, इस प्रकार की अभिव्यक्ति का मतलब होता है कुछ चीजों को गुप्त रूप से, दूसरों के साथ चर्चा किए बिना, पारदर्शिता के बिना, सबकी पीठ पीछे परिस्थितियों से छेड़छाड़ करके करना, विशेष रूप से उपरोक्त या ऊपरी अगुआओं को इसके बारे में पता न चलने देना। मसीह-विरोधी कुछ चीजें गुप्त रूप से करते हैं हालाँकि वे पूरी तरह से जानते हैं कि ये चीजें सिद्धांतों के खिलाफ हैं और सत्य के अनुरूप नहीं हैं, ये चीजें परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाती हैं और परमेश्वर उन चीजों से घृणा करता है। वे फिर भी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए शैतान की चालों और मानवीय रणनीतियों का उपयोग करके इन चीजों को करने पर अड़े रहते हैं और फिर वे गुप्त रूप से कार्य करते हैं। गुप्त रूप से चीजें करने के पीछे उनके क्या लक्ष्य होते हैं? एक लक्ष्य तो सत्ता पर कब्जा करना होता है और दूसरा लक्ष्य होता है जो भी हित वे चाहते हैं उसे प्राप्त करना। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, वे ऐसी चीजें करते हैं जो सत्य सिद्धांतों, कलीसिया के नियमों, परमेश्वर के इरादों, यहाँ तक कि उनकी अपनी अंतरात्मा के खिलाफ होती हैं। उनके कार्यों में कोई पारदर्शिता नहीं होती—वे सबसे चीजों को छुपा कर रखते हैं या वे केवल अपने प्रभाव के क्षेत्र के कुछ सहयोगियों को ही अपनी बातें बताते हैं, ताकि वे स्थिति को नियंत्रित करने, ऊपरी अगुआओं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों की आँखों में धूल झोंकने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। छलपूर्ण चालाकी का मतलब होता है कि वे कुछ ऐसे निर्णय लेते हैं और कुछ चीजों की साजिश रचते हैं जबकि ज्यादातर लोग इससे पूरी तरह से अनजान होते हैं और इन चीजों के घटित होने के बाद, ज्यादातर लोग नहीं जानते कि उनका स्रोत क्या है या इन्हें किसने शुरू किया या वास्तव में क्या हुआ था। ज्यादातर लोग अंधेरे में क्यों होते हैं? यह एक मसीह-विरोधी की दुष्टता और क्रूरता है। वे जानबूझकर अपने कार्यों के बारे में भाइयों और बहनों, ऊपरी अगुआओं और ऊपर वाले को धोखे में रखते हैं। चाहे तुम इन चीजों को जानने की कितनी भी कोशिश करो या किसी से भी पूछो, कोई नहीं जानता कि इन चीजों के पीछे क्या उद्देश्य है और विशेष रूप से बहुत सी चीजें जो बहुत पहले घटित हुई थीं, ज्यादातर लोग तब भी नहीं जानते कि उस समय क्या हो रहा था। इसे कहते हैं छलपूर्ण चालाकी। यह मसीह-विरोधियों द्वारा उपयोग की जाने वाली एक सामान्य रणनीति है—जब वे कुछ करना चाहते हैं, तो वे किसी और के साथ इस पर चर्चा किए बिना निजी रूप से षड्यंत्र रचते हैं और इसकी योजना बनाते हैं। अगर उनके पास कोई भरोसे का व्यक्ति न हो तो वे अपने दिमाग में ही अपनी सारी योजनाएँ बनाते हैं; अगर उनके पास कोई साथी है, तो वे गुप्त रूप से उसके साथ षड्यंत्र रचते हैं और योजना बनाते हैं और उनके प्रभाव क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति उनकी चालाकियों और साजिशों का निशाना बन सकता है। इस प्रकार की प्रथा की प्रमुख विशेषता क्या होती है? इसकी प्रमुख विशेषता पारदर्शिता की कमी है, जहां अधिकांश लोगों को यह जानने का अधिकार ही नहीं होता कि क्या हो रहा है और मसीह-विरोधी उनके साथ खिलवाड़ करते हैं, उन्हें बहकाते हैं और उन्हें गुमराह करते हैं जबकि वे पूरी तरह से उलझन में पड़े होते हैं। ऐसा क्यों होता है कि मसीह-विरोधी छलपूर्ण चालाकी से काम लेते हैं और खुलकर या पारदर्शी तरीके से कार्य क्यों नहीं करते या सभी को यह जानने का अधिकार क्यों नहीं देते कि क्या हो रहा है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पूरी तरह से और स्पष्ट रूप से जानते हैं कि वे जो कर रहे हैं वह परमेश्वर के घर के सिद्धांतों या नियमों के अनुरूप नहीं है और बेतहाशा बुरा काम कर रहे हैं। वे जानते हैं कि अगर ज्यादातर लोगों को पता चल जाए कि वे क्या कर रहे हैं, तो उनमें से कुछ उठ खड़े होंगे और उनका विरोध करेंगे और अगर ऊपरी अगुआओं को पता चलेगा, तो उन्हें काट-छाँट दिया जाएगा और बर्खास्त कर दिया जाएगा और फिर उनकी हैसियत खतरे में पड़ जाएगी। यही कारण है कि वे अपने कुछ कार्यों में छलपूर्ण चालाकी का तरीका अपनाते हैं और अन्य लोगों को इसके बारे में नहीं जानने देते। क्या उनकी छलपूर्ण चालाकी के नतीजे कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए फायदेमंद होते हैं? क्या वे सभी के लिए शिक्षाप्रद होते हैं? बिल्कुल भी नहीं। ज्यादातर लोग गुमराह होते हैं और धोखा खा जाते हैं और उन्हें इससे कोई फायदा नहीं होता। क्या मसीह-विरोधियों द्वारा अपनाया गया छलपूर्ण चालाकी का यह तरीका सत्य सिद्धांतों के अनुसार होता है? क्या यह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करना होता है? (नहीं।) तो क्या जब छलपूर्ण चालाकी में लिप्त मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियाँ का पता चलता है, तो क्या मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जानी चाहिए? क्या उन्हें उजागर कर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए? (हाँ।) छलपूर्ण चालाकी में लिप्त होना मसीह-विरोधियों की एक ठोस अभिव्यक्ति है।
जब मसीह-विरोधी काम करते हैं तो और कौन सी अभिव्यक्तियाँ आम होती हैं? (मसीह-विरोधी अपनी हैसियत के लिए लोगों को दबाते हैं और उन्हें सताते हैं।) मसीह-विरोधियों के लिए दूसरों को परेशान करना सबसे आम बात है और यह उनकी ठोस अभिव्यक्तियों में से एक है। अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए, मसीह-विरोधी हमेशा माँग करते हैं कि हर कोई उनका आज्ञापालन करे और उनकी बात माने। अगर वे पाते हैं कि कोई व्यक्ति उनके प्रति द्वेषपूर्ण और प्रतिरोधी है, तो वे उस व्यक्ति को दबाने और उसे सताने की रणनीति अपनाते हैं, ताकि वे उसे अपने वश में कर सकें। मसीह-विरोधी अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जिनकी राय उनकी राय से भिन्न होती है। वे अक्सर उन लोगों को दबा देते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। वे अक्सर उन अपेक्षाकृत शालीन और ईमानदार लोगों को दबा देते हैं, जो उनके सामने झुकते नहीं और उनकी चापलूसी नहीं करते या चाटुकार नहीं होते। वे उन लोगों को दबा देते हैं, जिनके साथ उनकी नहीं बनती या जो उनके आगे झुकते नहीं। मसीह-विरोधी दूसरों के साथ सत्य सिद्धांतों के अनुसार व्यवहार नहीं करते। वे लोगों के साथ उचित व्यवहार नहीं कर सकते। जब वे किसी को नापसंद करने लगते हैं, जब उन्हें ऐसा लगने लगता है कि कोई व्यक्ति दिल से उनके प्रति समर्पित नहीं है, तो वे उस व्यक्ति पर हमला करने और उसे सताने के मौके और बहाने ढूँढ़ते हैं और झूठे दिखावे तक करते हैं, यहाँ तक कि उन्हें दबाने के लिए परमेश्वर के घर का झंडा भी उठा लेते हैं। वे तब तक नहीं मानते, जब तक लोग उनके सामने नतमस्तक नहीं हो जाते और उन्हें मना करने की उनकी हिम्मत टूट नहीं जाती; वे तब तक नहीं मानते, जब तक कि लोग उनकी हैसियत और अधिकार को स्वीकार नहीं कर लेते, और उनके बारे में कोई अनुमान लगाने की हिम्मत किए बिना, उनके प्रति समर्थन और आज्ञाकारिता व्यक्त करते हुए, मुस्कुराहट के साथ उनका अभिवादन नहीं करते। किसी भी स्थिति में, किसी भी समूह में, दूसरों के साथ मसीह-विरोधी के व्यवहार में “निष्पक्षता” शब्द मौजूद नहीं होता और परमेश्वर पर विश्वास करने वाले भाइयों और बहनों के साथ उनके व्यवहार में “प्रेम” शब्द मौजूद नहीं होता। जिस किसी से भी उनकी हैसियत को खतरा होता है वे उसे अपनी आँख की कील और अपने रास्ते का काँटा समझते हैं और वे उसे सताने के अवसर और बहाने ढूँढ़ते हैं। अगर वह व्यक्ति नहीं झुकता, तो वे उसे सताते हैं और तब तक नहीं रुकते जब तक वह उस व्यक्ति को अपने वश में नहीं कर लेते। मसीह-विरोधियों का ऐसा करना सत्य सिद्धांतों के बिल्कुल विपरीत होता है और सत्य के साथ उनकी शत्रुता को दर्शाता है। तो क्या उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए? इतना ही पर्याप्त नहीं है—उन्हें उजागर किया जाना चाहिए, उनकी पहचान की जानी चाहिए और उन्हें वर्गीकृत किया जाना चाहिए। एक मसीह-विरोधी सभी के साथ अपनी प्राथमिकताओं, अपने खुद के इरादों और उद्देश्यों के अनुसार व्यवहार करता है। उसके अधिकार के तहत, जो कोई न्याय की भावना रखता है, जो कोई भी निष्पक्षता से बोल सकता है, जो कोई अन्याय से लड़ने का साहस करता है, जो कोई सत्य सिद्धांतों को बनाए रखता है, जो कोई भी वास्तव में प्रतिभाशाली और विद्वान है, जो कोई परमेश्वर के लिए गवाही दे सकता है—ऐसे सभी लोगों को मसीह-विरोधी की ईर्ष्या का सामना करना पड़ेगा, और उन्हें दबा दिया जाएगा, अलग कर दिया जाएगा, यहाँ तक कि मसीह-विरोधी के पैरों तले इस हद तक रौंद दिया जाएगा कि वे फिर उठ नहीं सकेंगे। ऐसी ही घृणा के साथ मसीह-विरोधी अच्छे लोगों, सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों के साथ व्यवहार करता है। यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी जिन लोगों से ईर्ष्या करता है और जिनका दमन करता है, उनमें से ज्यादातर लोग सकारात्मक और अच्छे लोग होते हैं। उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका परमेश्वर उपयोग कर सकता है, जिन्हें परमेश्वर पूर्ण करेगा। जिन्हें परमेश्वर बचाएगा, जिनका उपयोग करेगा और जिन्हें पूर्ण करेगा, उन लोगों के खिलाफ दमन और बहिष्कार की ऐसी चालें चलकर, क्या मसीह-विरोधी परमेश्वर के विरोधी नहीं हो जाते? क्या ये वे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं? जब वे इस तरह से सत्य का अनुसरण करने वालों से ईर्ष्या करते हैं, उन पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं, तो वे सीधे तौर पर कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बाधा डाल रहे होते हैं। इस प्रकार का मसीह-विरोधी न केवल देहधारी परमेश्वर के प्रति विरोधी होता है, बल्कि उन लोगों के प्रति भी विरोधी होता है जो परमेश्वर और सत्य का अनुसरण करते हैं। यह एक प्रामाणिक मसीह-विरोधी होता है। क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मसीह-विरोधियों की इस तरह की अभिव्यक्ति को पहचानने में सक्षम होना चाहिए? क्या उन्हें मसीह-विरोधियों को उजागर कर उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए? क्या सत्य के बारे में संगति करके मसीह-विरोधियों के स्वभाव का समाधान हो सकता है? उनका स्वभाव सत्य और परमेश्वर से घृणा करने वाला है और वे बिल्कुल भी सत्य को स्वीकार या उसके प्रति समर्पण नहीं करेंगे। इसलिए, ऐसे प्रामाणिक मसीह-विरोधियों से निपटने का एकमात्र तरीका ऐसे लोगों को उजागर करना, उन्हें पहचानना और फिर उन्हें अस्वीकार करना है। ऐसा करना पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों और परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। मसीह-विरोधियों द्वारा परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इस प्रकार से सताना स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि वे खुद को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर के साथ होड़ करते हैं। वे उन लोगों से ईर्ष्या और नफरत करते हैं जिन्हें वे गुमराह और नियंत्रित नहीं कर सकते। वे इन लोगों को प्राप्त नहीं कर पाते, लेकिन वे परमेश्वर को भी उन्हें प्राप्त करने की अनुमति नहीं देते। इस प्रकार, क्या वे कलीसिया में शैतान की भूमिका नहीं निभा रहे हैं, जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए परमेश्वर से होड़ करता है और उन्हें नुकसान पहुँचाता है और उनका विनाश करता है? मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं ताकि परमेश्वर उन्हें प्राप्त न कर सके और वे उन सभी लोगों को भी गुमराह करना चाहते हैं जो परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उन्हें अपना अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं जिससे उद्धार प्राप्त करने की उनकी सम्भावनाएं नष्ट हो जाती हैं। केवल तभी वे अपना लक्ष्य हासिल कर पाते हैं। क्या मसीह-विरोधी जो लोगों को गंभीर नुकसान पहुँचाते हैं, परमेश्वर के कट्टर दुश्मन नहीं हैं? तुम लोगों को उन्हें पहचानने में सक्षम होना चाहिए।
मसीह-विरोधियों की और कौन सी अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (वे कार्य व्यवस्था के खिलाफ जाते हैं और बस अपने तरीके से कार्य करते हैं।) इसके और अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने और छलपूर्ण चालाकी करने के बीच कुछ समानताएं हैं, लेकिन यह भी एक और विशिष्ट अभिव्यक्ति है। मसीह-विरोधी अपने तरीके से कार्य कैसे करते हैं? (ऊपरवाला ऐसी कार्य व्यवस्था जारी करता है जिसके लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों को झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों को पहचानने की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ मसीह-विरोधी इन कार्य व्यवस्थाओं को लागू नहीं करते, इसके बजाय वे “तुम केवल तभी दूसरे लोगों को पहचान सकते हो जब तुम खुद को पहचानने में सक्षम होते हो” के बहाने का उपयोग करते हैं, ताकि हर कोई खुद को जान सके और यह भाइयों और बहनों को झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने से रोकता है।) ऐसा करना ऊपरवाले की कार्य व्यवस्था का विरोध करने के साथ-साथ अपने तरीके से काम करने के बराबर है। और कुछ? (मसीह-विरोधियों की ऊपरवाले के कार्य प्रबंधों के बारे में अपनी ही धारणाएँ होती हैं। बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि वे इन व्यवस्थाओं को लागू करने में सक्षम हैं और वे भाइयों और बहनों के साथ संगति कर रहे हैं, लेकिन वे कभी भी बाद में इन चीजों का पता नहीं करते या इनके बारे में नहीं पूछते और उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं।) मसीह-विरोधियों द्वारा अपने तरीके से कार्य करने का मुख्य रूप से यह मतलब होता है कि चाहे ऊपरवाला कोई भी कार्य आयोजित कर रहा हो या ऊपरवाला नीचे रहने वाले लोगों से कोई भी कार्य लागू करने की अपेक्षा करता हो, मसीह-विरोधी उसे दरकिनार कर देंगे, उसे अनदेखा कर देंगे, उसे आगे नहीं पहुँचाएंगे, उसे लागू नहीं करेंगे और फिर वे वही करेंगे जो वे करना चाहते हैं, जो वे करने को तैयार हैं और जिससे उन्हें कुछ लाभ होता होगा। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को जारी करना, पुस्तक वितरण के संबंध में कलीसिया के सिद्धांतों के अनुसार, सामान्य कलीसिया जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास एक पुस्तक जरूर होनी चाहिए। लेकिन जब एक मसीह-विरोधी यह देखता है, तो वह सोचता है, “सबके लिए एक-एक किताब? क्या यह मेरे लिए घाटे का सौदा नहीं होगा? एक व्यक्ति के लिए एक किताब नहीं हो सकती—मुझे इस कार्य को इस आधार पर अभ्यास में लाना और लागू करना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति विशेष रूप से मेरे बारे में क्या सोचता है। यह सिर्फ एक सामान्य कलीसिया का जीवन जीने पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि इस पर आधारित होना चाहिए कि आम तौर पर कौन अधिक चढ़ावा देता है। जो लोग कोई चढ़ावा नहीं देते या जो गरीब हैं उन्हें बिना किसी अपवाद के किताब नहीं मिलनी चाहिए। अगर वे मुझसे एक किताब देने की भीख मांगें और कुछ पैसे भी दें, तो उनके पेश आने के आधार पर, मैं उनके व्यवहार के आधार पर तय करूँगा कि उन्हें किताब देनी है या नहीं।” क्या यह सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का तरीका है? वे क्या कर रहे हैं? वे अपने तरीके से कार्य कर रहे हैं। अपने तरीके से कार्य करने का मतलब है मौजूदा कार्य व्यवस्थाओं से हट कर अपनी ही नीतियाँ स्थापित करना, अपनी स्थानीय कलीसिया में उन नीतियों के अनुसार कार्य करना, परमेश्वर के घर के लिए आवश्यक कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों को बिल्कुल भी लागू न करना और इसके बजाय अपने ही उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुसार कार्य करना। ऊपरी तौर पर तो वे किताबें भी बाँट रहे होते हैं और ऐसा लगता है कि कार्य पूरा हो गया है। लेकिन ऐसा करने के पीछे उनका आधार क्या था? यह परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं या कलीसिया के नियमों पर आधारित नहीं था, बल्कि यह उनकी अपनी नीतियों और अपने तरीके पर आधारित था। यह अपने तरीके से कार्य करना होता है। वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के प्रति किसी भी प्रकार का समर्पण नहीं दिखाते हैं; वे इन्हें सख्ती से लागू या पालन करने में असमर्थ होते हैं और इसके बजाय गुप्त रूप से अपने कई नियम और विनियम स्थापित करते हैं जिन्हें वे अपनी स्थानीय कलीसिया के भीतर लागू करते हैं और इसका अभ्यास करते हैं। यह न केवल अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना है, बल्कि इससे भी अधिक यह अपने तरीके से कार्य करना है। दूसरे शब्दों में, जब वे अपनी स्थानीय कलीसिया में कार्य व्यवस्थाओं को लागू करते हैं, तो वे अपने तरीके से व्यवस्थाएँ कर रहे होते हैं, जो ऊपरवाले द्वारा जारी किए गए और अन्य कलीसियाओं में लागू की गई कार्य व्यवस्थाओं से कुछ अलग होता है। बाहर-बाहर से तो उन्होंने बेमन से कामकाज को पूरा किया होता है, उन्हें कार्य व्यवस्थाएँमिली होती हैं और उन्होंने इसे पढ़ा होता है, लेकिन उनके पास इन्हें लागू करने के लिए अपने ही तरीके होते हैं। वे बस परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं की अवहेलना करते हैं और खुले तौर पर उनका उल्लंघन करते हैं। इसे अपने तरीके से कार्य करना कहते हैं। मसीह-विरोधी अपने तरीके से कार्य क्यों करते हैं? (वे कलीसिया के भीतर सत्ता स्थापित करना चाहते हैं और हर चीज पर अंतिम निर्णय का अधिकार चाहते हैं।) बिल्कुल सही। वे सिर्फ अपनी सत्ता बनाए रखना चाहते हैं; वे सत्ता हासिल करने और दूसरों को नियंत्रित करने, दूसरों को अपनी बात मानने, अपनी आज्ञा मनवाने और डरने पर विवश करने के लिए किसी भी और सभी अवसरों की तलाश करते हैं और उनका लाभ उठाते हैं। वे अपनी विभिन्न प्रथाओं का उपयोग करना चाहते हैं ताकि वे दूसरों को नियंत्रित कर सकें और सभी को यह बता सकें कि इस जगह केवल उनके पास ही सत्ता है, किसी और के पास नहीं, कि दूसरों के लिए उनकी अनुमति के बिना कार्य करना या उन्हें दरकिनार करना असंभव है और कोई भी उनसे आगे नहीं निकल सकता। वे मुख्य रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना और सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं। यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि मसीह-विरोधियों का इस तरह से व्यवहार करना सत्य सिद्धांतों या परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार मामलों को संभालने के अनुरूप नहीं है। किसी भी अगुआ या किसी ऐसे व्यक्ति को जो अपना कर्तव्य सामान्य रूप से निभा रहा हो, ऐसा काम नहीं करना चाहिए। तो, जब मसीह-विरोधी इस प्रकार की अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं, तो क्या उनकी काट-छाँट की जानी चाहिए? क्या उन्हें उजागर कर अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए? (हाँ।)
मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (मसीह-विरोधी चढ़ावा चुराते हैं, अपने आनंद के लिए परमेश्वर के घर का पैसा खर्च करते हैं, और विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं।) विशेषाधिकारों का आनंद उठाना एक विशेष अभिव्यक्ति है। एक बार जब मसीह-विरोधियों को थोड़ी सी भी हैसियत मिल जाती है, तो फिर उन्हें रोकना मुश्किल हो जाता है—वे दूसरों को अपने पैरों तले रौंदने योग्य चीजें समझते हैं और वे जो कुछ भी करते हैं उसमें सुर्खियाँ बटोरना चाहते हैं, उसका पूरा लाभ उठाना चाहते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं और जब भी बोलते हैं, तो केवल अपना दबदबा बनाने का प्रयास करते हैं। वे जिस भी सीट पर बैठते हैं, उसे विशेष बनाना चाहते हैं। परमेश्वर के घर में उन्हें जो भी सुविधाएँ मिलती हैं, वे चाहते हैं कि वे अन्य सभी को मिलने वाली सुविधाओं से बेहतर हों। वे चाहते हैं कि हर कोई उनके बारे में ऊंची राय रखे और उन्हें किसी और की तुलना में अधिक सम्मान दे। जब उनके पास हैसियत नहीं होती, तो वे उसे हथियाना चाहते हैं और जैसे ही उन्हें हैसियत मिल जाती है, तो वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं। वे चाहते हैं कि जो भी उनसे बात करे, वह उनकी ओर देखे, कोई भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर नहीं चल सकता, बल्कि उसे एक या दो कदम पीछे रहना चाहिए; कोई भी उनसे बहुत जोर से या बहुत कठोरता से बात नहीं कर सकता, गलत शब्दों का प्रयोग नहीं कर सकता या उन्हें गलत तरीके से नहीं देख सकता। वे सभी को बारीकी से देखेंगे और उन पर टिप्पणी करेंगे। कोई भी उन्हें अपमानित नहीं कर सकता या उनकी आलोचना नहीं कर सकता; बल्कि सभी को उनका सम्मान करना चाहिए, उनकी चापलूसी करनी चाहिए और उनकी तारीफ करनी चाहिए। एक बार जब कोई मसीह-विरोधी हैसियत प्राप्त कर लेता है, तो फिर वह जहाँ भी जाता है, वहाँ मनमाने ढंग से और स्वेच्छा से कार्य करता है और दिखावा करता है, ताकि लोग उसका सम्मान करें। वे न केवल अपनी हैसियत का आनंद लेते हैं और दूसरों की प्रशंसा को बहुत महत्व देते हैं, बल्कि भौतिक सुख भी उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। वे ऐसे मेजबानों के साथ रहना चाहते हैं जो सबसे अच्छी सेवा प्रदान करते हैं। चाहे उनका मेजबान कोई भी हो, अपने खाने-पीने को लेकर उनकी विशेष मांगें होती हैं और अगर खाना अच्छा नहीं है, तो फिर वे अपने मेजबान की काट-छाँट करने का मौका ढूंढ लेते हैं। वे किसी भी निम्न स्तर के सुख को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं—उनका भोजन, कपड़े, आवास और परिवहन सभी औसत से बेहतर होना चाहिए, उनका औसत से काम नहीं चलेगा। वे उन चीजों को स्वीकार नहीं कर सकते जो सामान्य भाइयों और बहनों को प्राप्त होती हैं। अगर अन्य लोग सुबह 5 या 6 बजे उठ रहे हैं, तो वे सुबह 7 या 8 बजे उठेंगे। उनके लिए सबसे अच्छा भोजन और वस्तुएँ आरक्षित होनी चाहिए। यहाँ तक कि लोग जो कुछ भी चढ़ावा देने हैं वे पहले उसकी छानबीन करते हैं और जो भी अच्छी या मूल्यवान चीज होगी या जो भी चीज उनकी नजर में आएगी, वे उसे रख लेंगे और फिर वे बची हुई चीजें कलीसिया के लिए छोड़ देते हैं। और एक और सबसे घिनौना काम है जो मसीह-विरोधी करते हैं। वह क्या है? जब उन्हें हैसियत मिल जाती है, तो फिर उनकी भूख बढ़ जाती है, उनका दृष्टिकोण विस्तृत हो जाता है और वे आनंद उठाना सीख जाते हैं, इसके बाद, उनमें पैसे खर्च करने, उपभोग करने की इच्छा विकसित होती है और परिणामस्वरूप वे अपने लिए वह सारा पैसा रखना चाहते हैं जो कलीसिया के कामों के लिए उपयोग होता है, उसे अपनी मर्ज़ी से आवंटित करना चाहते हैं, और अपनी इच्छाओं के अनुसार उसे नियंत्रित करना चाहते हैं। मसीह-विरोधी विशेष रूप से इस प्रकार की शक्ति और इस प्रकार की सुविधाओं का आनंद लेते हैं और जब उनके पास शक्ति आ जाती है, तो वे हर चीज पर अपने हस्ताक्षर करना चाहते हैं, जैसे सभी चेक और विभिन्न समझौतों पर। वे बार-बार कलम से हस्ताक्षर करने तथा पानी की तरह पैसा बर्बाद करने के उस एहसास का आनंद लेना चाहते हैं। जब एक मसीह-विरोधी के पास कोई हैसियत नहीं होती, तो कोई भी उनमें ये अभिव्यक्तियाँ नहीं देख सकता या यह भी नहीं देख सकता कि वे इस प्रकार के व्यक्ति हैं, कि उनका स्वभाव इस प्रकार का है, कि वे ऐसे काम करेंगे। लेकिन जैसे ही वे हैसियत प्राप्त कर लेते हैं, यह सब चीजें प्रकट हो जाती हैं। अगर उन्हें सुबह चुना जाए, तो उसी दोपहर तक वे अत्यधिक घमंडी हो जाते हैं, खुद को दूसरों से बेहतर समझते हैं, उनकी गर्दन घमंड से अकड़ जाती है और उन्हें आम लोगों की कोई परवाह नहीं होती। उनमें यह बदलाव बहुत जल्द आता है। लेकिन वास्तव में, वे बदले नहीं हैं—वे बस बेनकाब हुए हैं। वे ऐसे घमंडी बन जाते हैं और वे क्या करेंगे? वे कलीसिया पर निर्भर रहना चाहते हैं और हैसियत के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं। जब भी कोई व्यक्ति स्वादिष्ट भोजन का आयोजन करता है, वे उसे चट कर जाते हैं और साथ ही अपने बदबूदार शरीर को बनाए रखने के लिए स्वास्थ्य सप्लीमेंट की मांग करते हैं। सभी मसीह-विरोधी अक्सर विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं और इसमें अंतर केवल गंभीरता के स्तर में होता है। जब कोई ऐसा व्यक्ति अगुआ बनता है जो भौतिक सुख-सुविधाओं सुखों से चिपका रहता है, तो वह विशेषाधिकार का आनंद उठाना चाहता है। यही मसीह-विरोधियों का स्वभाव है। जैसे ही वे हैसियत प्राप्त करते हैं, वे पूरी तरह से बदल जाते हैं। वे हैसियत के साथ मिलने वाले सभी सुखों और विशेष सुविधाओं को दृढ़तापूर्वक और सुरक्षित रूप से अपनी निगाहों में और अपनी मुट्ठी में रखते हैं और वे उनका एक कण भी नहीं छोड़ते, न तो अपनी पकड़ ढीली होने देते हैं और न ही किसी भी हिस्से को अपने हाथों से फिसलने देते हैं। मसीह-विरोधियों की इनमें से कौन सी अभिव्यक्तियाँ और अभ्यास सत्य सिद्धांतों के अनुसार हैं? एक भी नहीं। इनमें से हर एक घृणा पैदा करने वाला और घिनौना है; न केवल उनके अभ्यास और अभिव्यक्तियाँ सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं, बल्कि उनमें निश्चित रूप से बिल्कुल भी विवेक, सूझ-बूझ या शर्म की भावना नहीं होती। जब मसीह-विरोधियों के पास हैसियत होती है, तो लापरवाही से बुरे काम करने और अपनी सत्ता और हैसियत के लिए काम करने के अलावा, वे न केवल ऐसा कुछ भी करने में विफल रहते हैं जिससे कलीसिया के कार्य या भाइयों और बहनों के जीवन में प्रवेश को लाभ हो, बल्कि वे हैसियत, दैहिक सुखों के लाभों और लोगों द्वारा उनकी प्रशंसा करने और आदर करने का आनंद भी उठाते हैं। कुछ मसीह-विरोधियों को अपनी सेवा करवाने के लिए लोग भी मिल जाते हैं, वे जो चाय पीते हैं वह दूसरे लोग लेकर आते हैं, वे जो कपड़े पहनते हैं उन्हें दूसरे लोग धोते हैं, यहाँ तक कि वे एक व्यक्ति ऐसा भी रखते हैं जो नहाते समय उनकी पीठ रगड़े और एक ऐसा व्यक्ति जो खाते समय एक वेटर का काम करे। इससे भी बदतर यह है कि कुछ लोगों ने अपने रोज के तीन वक्त के खाने का मेन्यू भी निर्धारित किया होता है और इसके अलावा वे स्वास्थ्य-पूरक लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि उनके लिए सभी प्रकार के विभिन्न सूप तैयार किए जाएँ। क्या मसीह-विरोधियों को कुछ शर्म आती है? नहीं, उन्हें कोई शर्म नहीं आती! क्या तुम लोग कहोगे कि इस प्रकार के व्यक्तियों से केवल निपटना और उनकी काट-छाँट करना उदारता है? क्या उनकी काट-छाँट करने से उन्हें कुछ शर्मिंदगी महसूस होगी? (ऐसा नहीं होगा।) तो इस मुद्दे को कैसे हल किया जा सकता है? यह बिल्कुल आसान है। काट-छाँट करने के बाद, उन्हें उजागर करो और उन्हें बताओ कि वे क्या हैं। चाहे वे इसके लिए समर्पण करें या न करें, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और सभी को उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए। जब तुम लोग किसी मसीह-विरोधी का पता लगा लेते हो, तो क्या तुम उन्हें अस्वीकार कर सकते हो? क्या तुम उनकी शिकायत करने और उन्हें उजागर करने के लिए खड़े होने की हिम्मत रखते हो? (हाँ।) क्या तुम सच में हिम्मत रखते हो या नहीं? जब तुम्हारे पास अभी दूसरों का समर्थन है, तो तुम उठकर खड़े होने और उन्हें उजागर करने की हिम्मत करोगे, लेकिन क्या बिना समर्थन के भी तुममें इतनी हिम्मत होगी? अभी तुम जहाँ हो, वह सुरक्षित है, वहाँ बड़े लाल अजगर का शासन नहीं है, इसलिए तुम सोचते हो, “मुझे डरने की क्या जरूरत है? क्या वे बस मसीह-विरोधी नहीं हैं? हमें परमेश्वर का समर्थन प्राप्त है इसलिए मेरे पास मसीह-विरोधी को उजागर करने का साहस है और मैं डरता नहीं हूँ!” लेकिन बड़े लाल अजगर के देश में स्थिति अलग है। अगर तुम मसीह-विरोधियों को उजागर करते हो और वे अपनी हैसियत खो बैठते हैं, फिर वे तुम्हें यातना देने, तुम्हें बेचने और तुम्हें अधिकारियों के हाथों में सौंपने का साहस करेंगे। क्या तुम अभी भी उन्हें उजागर करने की हिम्मत करोगे? (शायद नहीं करोगे।) शायद नहीं करोगे। तुम्हारा रवैया तुरंत बदल जाएगा; उस माहौल में, तुम उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करोगे। तो, क्या उन्हें उजागर करने की हिम्मत करना सही नहीं है? यह सही नहीं है, तुम्हारे पास कोई गवाही नहीं है और इसका मतलब है कि तुम एक विजेता नहीं हो; यह कोई ऐसी बात नहीं है जो परमेश्वर के अनुयायी को कहनी चाहिए। मान लो कि तुम चुप रहते हो, लेकिन तुम्हारा दिल बार-बार चिल्लाता है : “तुम मसीह-विरोधी, तुम दानव और शैतान, मैं तुम्हें उजागर कर दूँगा। मैं तुम्हें अस्वीकार करने और तुम्हें कलीसिया से दूर करने के लिए बुद्धि का उपयोग करूँगा! तुम परमेश्वर के घर में रहने के योग्य नहीं हो, तुम दानव हो, तुम शैतान हो! भले ही मैं अपने शब्दों से तुम्हें सार्वजनिक रूप से उजागर न करूँ, फिर भी मैं तुम्हें अपने दिल की गहराई से अस्वीकार करता हूँ। मैं ऐसे और कई भाई-बहनों की तलाश करूँगा, जो सत्य को समझते हैं और हम मिलकर तुम्हें अस्वीकार कर देंगे। हम तुम्हारी अगुआई या चालाकी स्वीकार नहीं करेंगे!” क्या यह कार्रवाई करने का सही तरीका है? (हाँ।) परिवेश प्रतिकूल हो सकता है और सार्वजनिक रूप से मसीह-विरोधी को उजागर करना तुम्हें खतरे में डाल सकता है, लेकिन परमेश्वर के आदेश, सत्य-सिद्धांतों और अपने कर्तव्य को छोड़ा या त्यागा नहीं जा सकता। जहाँ तक उन मसीह-विरोधियों की बात है, जो विशेषाधिकारों का आनंद उठाते हैं, जो बिना किसी शर्मिंदगी के हैसियत के लाभों का आनंद उठाते हैं, हमें उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए और उन्हें परमेश्वर के घर में परजीवी बनने या किसी और भाई और बहन को नुकसान पहुँचाने या गुमराह करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। हमें उन्हें दूर कर देना चाहिए। परमेश्वर के घर के संसाधन इन परजीवियों की मदद करने के लिए नहीं हैं। वे परमेश्वर के घर में खाने के योग्य नहीं हैं, न ही वे परमेश्वर के घर में किसी भी चीज का आनंद लेने के योग्य हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि वे शैतान हैं और वे अस्वीकार किए जाने के लायक हैं। यह मसीह-विरोधियों की एक और अभिव्यक्ति है—विशेषाधिकार का आनंद उठाना, विशेषाधिकारों का आनंद लेने वाले बेशर्म। जैसे ही वे कोई अगुआई का पद प्राप्त करते हैं, वे सत्ता पर भी कब्जा कर लेते हैं, अपनी हैसियत के लाभों का आनंद उठाने लगते हैं और भाई-बहनों को अपने लिए स्वादिष्ट भोजन पकाने और खरीदने के लिए मजबूर करते हैं, उनकी कड़ी मेहनत से कमाई गई संपत्ति को लूट लेते हैं, और उनके पैसों और वस्तुओं को जबरन हड़प लेते हैं। उनके लिए यह एक स्वाभाविक बात है, एक अमूल्य अवसर है, एक ऐसा मौका है जो फिर नहीं आएगा। क्या यह शैतान की सोच नहीं है? कैसी बेशर्म सोच है यह। भाई-बहनों को इस प्रकार के व्यक्तियों की काट-छाँट करनी चाहिए, उन्हें उजागर करना चाहिए और उन्हें अस्वीकार कर देना चाहिए।
मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? क्या अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना एक विशेष अभिव्यक्ति है? (हाँ।) मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ही दुष्ट होते हैं; उनके दिल में न तो ईमानदारी होती है, न सत्य के प्रति प्रेम होता है और न ही सकारात्मक चीजों के प्रति प्रेम होता है। वे अक्सर अंधेरे कोनों में रहते हैं—वे ईमानदारी के रवैये से कार्य नहीं करते, न ही उनकी बातें स्पष्ट होती हैं, वे लोगों और परमेश्वर के प्रति दुष्ट और धोखेबाज होते हैं। वे दूसरों को धोखा देना चाहते हैं और परमेश्वर को भी धोखा देना चाहते हैं। वे दूसरों की निगरानी स्वीकार नहीं करते, परमेश्वर की जाँच-पड़ताल का तो सवाल ही नहीं उठता। जब वे लोगों के बीच होते हैं, तो कभी नहीं चाहते कि कोई यह जाने कि वे अंदर ही अंदर क्या सोच रहे हैं और क्या योजना बना रहे हैं, वे किस प्रकार के व्यक्ति हैं और सत्य के प्रति उनका रवैया कैसा है, इत्यादि; वे नहीं चाहते कि लोग इसके बारे में कुछ भी जानें और वे परमेश्वर को भी अपने जाल में फंसाना चाहते हैं, उसे अंधेरे में रखना चाहते हैं। इसीलिए, जब एक मसीह-विरोधी के पास कोई हैसियत नहीं होती है, जब उसे लोगों के समूह में स्थिति में हेरा फेरी करने का अवसर नहीं मिलता है, तो फिर कोई भी वास्तव में यह नहीं जान सकता कि उसके शब्दों और कार्यों के पीछे क्या मकसद छिपा है। लोग आश्चर्य करेंगे : “वे हर दिन किस बारे में सोचते हैं? क्या उनके द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करने के पीछे कोई मंशा छिपी है? क्या वे भ्रष्टता प्रकट कर रहे हैं? क्या वे दूसरों के प्रति कोई ईर्ष्या या घृणा महसूस करते हैं? क्या उनके दिल में अन्य लोगों के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह होते हैं? दूसरों की बातों के बारे में उनकी क्या राय होती है? जब उनका सामना किसी चीज-विशेष से होता है तो वे क्या सोचते हैं?” मसीह-विरोधी कभी भी दूसरों को यह नहीं बताते कि उनके साथ वास्तव में क्या हो रहा है। अगर वे किसी विषय पर अपनी राय व्यक्त भी करते हैं, तो वे अस्पष्ट और गोलमोल शब्दों का प्रयोग करते हैं, वे इस तरह से बात करते हैं कि लोग यह समझ नहीं पाते कि वे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं और न ही यह जान पाएँ कि वे क्या कहना चाहते हैं या क्या व्यक्त करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे हर कोई असमंजस में पड़ जाता है। जब ऐसे किसी व्यक्ति को कोई हैसियत प्राप्त होती है, तो वह अन्य लोगों के सामने अपने व्यवहार में और भी अधिक गुप्त बन जाता है। वह अपनी महत्वाकांक्षाओं, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी छवि और अपने नाम, अपनी हैसियत और गरिमा आदि की रक्षा करना चाहता है। यही कारण है कि वे इस बारे में खुलकर नहीं बताना चाहते कि वे कैसे काम करते हैं या कोई काम करने के पीछे उनका क्या उद्देश्य होता है। यहाँ तक कि जब वे कोई गलती भी करते हैं, भ्रष्ट स्वभाव भी प्रकट करते हैं या जब उनके कार्यों के पीछे की मंशा और उद्देश्य गलत होते हैं, तब भी वे दूसरों के सामने खुलना नहीं चाहते और दूसरों को इसके बारे में पता नहीं चलने देना चाहते और वे अक्सर भाइयों और बहनों को धोखा देने के लिए मासूमियत और पूर्णता का दिखावा करते हैं। और ऊपरवाले और परमेश्वर के साथ वे केवल अच्छी-अच्छी बातें करते हैं और अक्सर ऊपर वाले के साथ अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए भ्रामक रणनीति और झूठ का उपयोग करते हैं। जब वे ऊपरवाले को अपने काम के बारे में बताते हैं और ऊपरवाले से बात करते हैं, तो वे कभी भी कोई अप्रिय बात नहीं कहते, ताकि कोई भी उनकी कमजोरी का पता न लगा सके। वे कभी भी यह नहीं बताएँगे कि उन्होंने नीचे क्या कुछ किया है, कलीसिया में कौन से मुद्दे उत्पन्न हुए हैं, उनके काम में कौन सी समस्याएँ या खामियाँ पैदा हुई हैं या वे कौन सी चीजें हैं जिन्हें वे समझ नहीं पाते या पहचान नहीं पाते। वे इन चीजों के बारे में ऊपरवाले से कभी नहीं पूछते न ही मार्गदर्शन मांगते हैं, बल्कि वे सिर्फ अपने काम में सक्षमता और अपने काम को पूरी तरह से करने में सक्षम होने की छवि प्रस्तुत करते हैं और इसका दिखावा करते हैं। वे कलीसिया में मौजूद किसी भी समस्या के बारे में ऊपरवाले को नहीं बताते और चाहे कलीसिया में कितनी भी अव्यवस्था क्यों न हो, उनके काम में कितनी भी खामियाँ क्यों न हों या वे नीचे कुछ भी कर रहे हों, वे बार-बार इन सब बातों को छुपाते हैं, वे कोशिश करते हैं कि ऊपर वाले को कभी भी इन बातों की भनक न लगे या कभी पता न चले, यहाँ तक कि जो लोग इन मामलों से जुड़े हैं या जो उनके बारे में सच्चाई जानते हैं, उन्हें दूर-दराज के स्थानों पर स्थानांतरित कर देते हैं ताकि वे छुपा सकें कि असल में क्या हो रहा है। ये किस प्रकार के अभ्यास हैं? यह किस प्रकार का व्यवहार है? क्या इस प्रकार की अभिव्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति में होनी चाहिए जो सत्य का अनुसरण करता हो? स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं है। यह तो एक राक्षस का व्यवहार है। मसीह-विरोधी अपनी हैसियत या छवि पर असर डालने वाली ऐसी किसी भी चीज को छिपाने और ढँकने का पूरा प्रयास करते हैं, ताकि ये बातें दूसरों से और परमेश्वर से छुपी रहें। यह अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना है। वे अक्सर अपने से नीचे वालों से कहते हैं, “ऊपरवाला मेरे बारे में बहुत अच्छा सोचता है और मुझे बहुत महत्व देता है। ऊपरवाले ने मुझे फ्लाँ-फ्लाँ काम सौंपे हैं, इतना महत्वपूर्ण काम मेरे कंधों पर डाला है। वे मेरी बहुत अच्छी देखभाल करते हैं, मेरे काम के लिए मुझे मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और उन्होंने मेरे जीवन की जिम्मेदारी भी ले ली है। ऊपरवाले ने इन-इन मामलों के कारण मेरी काट-छाँट की और मैंने इस-इस तरह से इसे स्वीकार किया और इस बारे में मेरी समझ इस तरह की है। देखो परमेश्वर मुझसे कितना प्रेम करता है—उसने व्यक्तिगत रूप से मेरी काँट-छाँट की है और मेरे काम में व्यक्तिगत रूप से मेरा मार्गदर्शन किया है।” और ऊपरवाले के सामने, वे अपने काम को बहुत अधिक जिम्मेदारी के साथ करने, भाइयों और बहनों की बहुत ज्यादा परवाह करने और अपने दिल और शक्ति को पूरी तरह से समर्पित करने का दिखावा करते हैं, लेकिन वे कभी भी किसी भाई या बहन द्वारा उनसे भिन्न विचार या राय रखे जाने या अपने काम में किसी भी दोष या विचलन के बारे में एक शब्द भी नहीं कहते। वे अपने बारे में विभिन्न सच्चाइयों को परमेश्वर से छिपाने की पूरी कोशिश करते हुए अपने से नीचे के लोगों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं, क्योंकि वे इस बात से डरते हैं कि अगर ऊपरवाले को पता चल गया कि वे वास्तव में क्या कर रहे हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। क्या अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना नहीं है? जैसे ही एक मसीह-विरोधी सत्ता में आता है, वह अपने बारे में सच्चाई छिपाने की हर संभव कोशिश करता है ताकि कोई भी उसकी वास्तविक दशा, असली परिस्थिति या उसकी वास्तविक मानवता या कार्य क्षमताओं को समझ न सके। वे इन बातों को छिपाने के लिए सभी प्रकार की रणनीति और साधनों का उपयोग करते हैं, ताकि वे मजबूती से अपने पैर जमा सकें और हमेशा के लिए अपनी सत्ता और हैसियत के लाभों का आनंद ले सकें। अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देने का काम केवल मसीह-विरोधी ही करते हैं। क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या परमेश्वर की सेवा करने वाले किसी व्यक्ति में ऐसी अभिव्यक्ति होनी चाहिए? क्या यह एक ऐसी अभिव्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करने वाले किसी व्यक्ति में होनी चाहिए? (नहीं।) तो जब एक मसीह-विरोधी में इस प्रकार की अभिव्यक्ति, इस प्रकार का स्वभाव होता है, तो क्या उसकी काट-छाँट की जानी चाहिए? (हाँ।)
हमने अभी-अभी छह कारणों के बारे में बात की है कि क्यों मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है। पहला कारण, अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना; दूसरा कारण, छलपूर्ण चालाकी में शामिल होना; तीसरा, दूसरों को सताना, चौथा, अपने तरीके से काम करना; पाँचवाँ, विशेष विशेषाधिकारों का आनंद लेना; और छठा, अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देना। क्या कोई और भी कारण हैं? (भाइयों और बहनों को गुमराह करने के लिए विधर्म और झूठी धारणाएँ फैलाना।) (कभी भी परमेश्वर का उत्कर्ष न करना या उसकी गवाही न देना, बल्कि हमेशा अपनी गवाही देना और लोगों को गुमराह करने वाले शब्दों और सिद्धांत व्यक्त करना।) (पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए गए व्यक्ति की आलोचना करना, उस पर हमला करना और उससे घृणा करना।) इन तीन बातों में से कौन सी बात तुलनात्मक रूप से सार में उन छह कारणों के अधिक करीब है जिनकी चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं? (हमेशा खुद का उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना और कभी भी परमेश्वर की गवाही न देना।) यह वाली बात अपेक्षाकृत गंभीर प्रकृति की है। इसके बाद दूसरे स्थान पर पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए गए व्यक्ति पर हमला करना और उसकी आलोचना करना है और फिर इसके बाद लोगों को गुमराह करने के लिए झूठी धारणाएँ फैलाना है। मसीह-विरोधियों की कुछ अन्य विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ भी होनी चाहिए, लेकिन ये कमोबेश सभी का प्रतिनिधित्व करती हैं, इसलिए आज हमें उनमें से प्रत्येक के बारे में अनावश्यक विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। यह आज की संगति का विषय नहीं है; इसके बजाय, आज का विषय यह है कि कैसे एक मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं करता और कैसे जब वे कोई गलत काम करते हैं तो उनमें पश्चाताप के रवैये का अभाव होता है और इसके बजाय वे धारणाएँ फैलाते हैं और सार्वजनिक रूप से परमेश्वर की आलोचना करते हैं। दूसरे शब्दों में, काट-छाँट किए जाने के बाद मसीह-विरोधी का रवैया, इस रवैये की जड़ और उनका स्वभाव सार वास्तव में क्या है—यह वह मुख्य बिंदु है जिस पर हमें संगति करनी चाहिए। इसके अलावा हमने जिन अन्य बातों पर चर्चा की है वे ऐसे छोटे विषय हैं जो कुछ हद तक इससे संबंधित हैं। चूँकि हम पहले ही इन पर पर्याप्त विस्तार से चर्चा कर चुके हैं, इसलिए आज हमने उन पर केवल व्यापक और सामान्य तरीके से ही संगति की है और मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर हमारी पिछली संगति को सारांशित किया है। मसीह-विरोधियों में ये अभिव्यक्तियाँ, ये स्वभाव और सार होते हैं और उन्होंने इस प्रकार के कार्य किए हुए हैं, इसलिए उनकी काट-छाँट कर उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए। हालाँकि, क्या एक सत्य मसीह-विरोधी, अर्थात एक ऐसा व्यक्ति जिसमें मसीह-विरोधी का सार होता है, इन कार्यों को स्वीकार करेगा जो उसने किए हैं या यह स्वीकार करेगा कि उनकी ये अभिव्यक्तियाँ एक मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ हैं? (नहीं, वे ऐसा नहीं करेंगे।) क्या तुमने कभी शैतान और राक्षसों को यह स्वीकार करते हुए देखा है कि वे परमेश्वर का विरोध करते हैं? वे कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे कि वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और चाहे उन्होंने किसी भी प्रकार की गलतियाँ की हों, वे कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि वे गलत थे। तो, आओ हम मसीह-विरोधियों के इस सार के परिप्रेक्ष्य से आज की संगति के विषय पर चर्चा शुरू करते हैं।
II. मसीह-विरोधी काट-छाँट स्वीकार न करने पर कैसा व्यवहार करते हैं
क. यह मानने से इनकार करना कि उन्होंने गलत किया है
चाहे एक मसीह-विरोधी ने कितनी भी बड़ी गलती क्यों न की हो और चाहे उसने कितने भी बुरे कार्य क्यों न किए हों, जब उसकी काट-छाँट की जाती है, तो उसकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि वह पूरी तरह से इस बात से इनकार कर देता है कि उसने कुछ भी गलत किया है और खुद को निर्दोष साबित करने के लिए बेतहाशा कुतर्कों का सहारा लेता है। यह इस बात का प्रतीक है कि कोई भी गलत काम करने पर उनमें पश्चात्ताप का रवैया नहीं होता है, जिसका उल्लेख मसीह-विरोधियों की ग्यारहवीं अभिव्यक्ति में किया गया है। मसीह-विरोधियों में पश्चाताप का रवैया नहीं होता, फिर वे अंदर ही अंदर क्या सोच रहे होते हैं? उनमें पश्चाताप का रवैया क्यों नहीं होता है? (क्योंकि वे मानते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है।) सही है। मसीह-विरोधी बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने कुछ भी गलत किया है। तो क्या वे यह स्वीकार करने में सक्षम होते हैं कि वे मसीह-विरोधी हैं? यह तो और भी मुश्किल है। अगर तुम एक मसीह-विरोधी को उजागर करने के लिए तथ्यों की एक सूची बना पाओ, तो क्या वे इसे स्वीकार कर पाएँगे? इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे। इस प्रकार की अभिव्यक्तियों के माध्यम से, हम यह देख सकते हैं कि एक मसीह-विरोधी का सार परमेश्वर का विरोध करने और उसके साथ विश्वासघात करने का है, उनका स्वभाव ऐसा है जो सत्य से विमुख होता है, सत्य से घृणा करता है और सत्य के प्रति बिल्कुल भी प्रेम नहीं रखता है। इसलिए, जब मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है और उनकी काट-छाँट की जाती है, तो पहला काम वे यह करते हैं कि अपने बचाव के लिए विभिन्न कारण खोजते हैं, समस्या से बचने की कोशिश में सभी प्रकार के बहाने तलाशते हैंऔर इस प्रकार अपनी जिम्मेदारियों से बचने का अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैंऔर क्षमा किए जाने का अपना उद्देश्य प्राप्त कर लेते हैं। मसीह-विरोधी जिस बात से सबसे अधिक डरते हैं, वह यह है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग उनके स्वभाव, उनकी कमजोरियों और खामियों, उनकी घातक कमज़ोरी, उनकी वास्तविक काबिलियत और कार्य करने की योग्यता की असलियत देख लेंगे—और इसलिए वे अपनी कमियाँ, समस्याएँ और भ्रष्ट स्वभाव का भेस बदलने के लिए खुद को बेहतर बनाने की पूरी कोशिश करते हैं। जब उनके कुकर्म बेनकाब और उजागर हो जाते हैं, तो पहला काम वे यह करते हैं कि इस तथ्य को मानते या स्वीकारते नहीं, या अपनी गलतियों की भरपाई या क्षतिपूर्त करने का भरसक प्रयास नहीं करते, इसके बजाय वे उन्हें छुपाने, उनके कार्यों से अवगत लोगों को भ्रमित करने और उन्हें धोखा देने, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मामले की असलियत न देखने देने के लिए विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं और उन्हें यह न जानने देने की कोशिश करते हैं कि उनके कार्य परमेश्वर के घर के लिए कितने हानिकारक रहे हैं और कलीसिया के काम को उन्होंने कितना अस्त-व्यस्त किया है। बेशक, वे जिस चीज से सबसे ज्यादा डरते हैं, वह यह होती है कि कहीं ऊपरवाले को पता न लग जाए, क्योंकि ऊपरवाले को पता चलते ही उनके साथ सिद्धांतों के अनुसार निपटा जाएगा और उनके लिए सब-कुछ खत्म हो जाएगा और उन्हें बर्खास्त कर समाप्त कर दिया जाना निश्चित है। और इसलिए, जब मसीह-विरोधियों की बुराई उजागर होती है, तो पहला काम जो वे करते हैं, वह यह नहीं है कि वे इस पर विचार करें कि उनसे कहाँ गलती हुई है, उन्होंने कहाँ सिद्धांत का उल्लंघन किया है, उन्होंने जो किया वह क्यों किया, वे किस स्वभाव से नियंत्रित थे, उनके इरादे क्या थे, उस समय उनकी अवस्था क्या थी, क्या यह उनकी मनमानी के कारण था या उनके इरादों की मिलावटों के कारण। इन चीजों का विश्लेषण करने के बजायऔर इन पर चिंतन तो बिल्कुल भी न करके, वे असली तथ्यों को छिपाने के लिए हर संभव तरीके से अपना दिमाग खपाते हैं। साथ ही, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने अपनी बात समझाने और खुद को सही ठहराने की पूरी कोशिश करते हैं, ताकि उन्हें चकमा दे सकें, बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है और झांसा देकर इससे बच निकलते हैं, ताकि वे परमेश्वर के घर में रहकर लापरवाही से गलत काम करते रहें और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते रहें और लोगों को गुमराह और नियंत्रित करते रहें और अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए उन्हें अपने आदर की दृष्टि से देखने और उनके कहे अनुसार कार्य करने के लिए मजबूर करते रहें। शुरू से अंत तक, मसीह-विरोधी वास्तव में क्या कर रहे होते हैं? परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना करने, अपनी गलतियों और अपराधों को स्वीकार करने और अपने इरादों और भ्रष्ट स्वभावों को जानने के बजाय, मसीह-विरोधी बस यही करते हैं कि वे अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा की खातिर बातें करते हैं, कार्य करते हैं और खुद को व्यस्त रखने के लिए अपना दिमाग खपाते रहते हैं। वे यह भी स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने जो गलतियाँ की हैं, उनसे कलीसिया के कार्य और भाइयों और बहनों को कितना नुकसान हुआ है। इसके बजाय, वे पागलों की तरह बार-बार अपने दिल की गहराइयों में यही खोजते रहते हैं : “आखिर मैंने गलती कहाँ की है? मैंने कहाँ सावधानी नहीं बरती, जिससे किसी ने मेरे खिलाफ कोई फायदा उठाने का मौका पा लिया? मैंने कहाँ पर्याप्त प्रयास नहीं किया या चीजों पर पूरी तरह से विचार नहीं किया, जिसके कारण पूरी स्थिति ही गलत हो गई और यह मेरी आलोचना का एक स्रोत बन गई या मेरे खिलाफ इस्तेमाल होने वाला एक साधन बन गई?” वे इन चीजों के बारे में बार-बार सोचते रहते हैं और उन पर विचार करते रहते हैं जिससे वे न तो खा पाते हैं और न ही सो पाते हैं। लेकिन एक मसीह-विरोधी कभी भी खुद पर विचार नहीं करता या खुद को नहीं जानता और न ही वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है और यह तो बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता कि उसने कुछ गलत किया है और वह परमेश्वर के वचनों के आधार पर उत्तर नहीं खोजता, न ही वह उन सत्यों की खोज करता है जिनका उसे अभ्यास करना चाहिए या उन सत्य सिद्धांतों की खोज नहीं करता जिनका उसेपालन करना चाहिए और वह ऐसे भाइयों या बहनों को तो बिल्कुल भी नहीं खोजता जो सत्य समझते हों, ताकि वह उनके साथ खुलकर संगति कर सकें और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य की खोज कर सके। जब मसीह-विरोधियों को किसी मामले का सामना करना पड़ता है, तो वे न तो खोज करते हैं और न ही समर्पण करते हैं, बल्कि वे हर संभव तरीके से अपनी समस्याओं को छिपाने की कोशिश करते हैं और सोचते हैं कि जितने कम लोग उनके बारे में जानेंगे, उतना ही अच्छा होगा और यह कि अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को बनाए रखना सबसे अच्छी नीति है। मसीह-विरोधियों के दिल ऐसे अंधकार से भरे होते हैं और उनमें विद्रोह और दुष्टता भरी होती है, जिसमें परमेश्वर के प्रति समर्पण का थोड़ा सा भी इरादा नहीं होता है। मसीह-विरोधी हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को नुकसान से बचाने के तरीके खोजते रहते हैं। चाहे उनका समर्थन करने और उनकी मदद करने के लिए कोई भी उनके साथ सत्य के बारे में संगति क्यों न करे, वे उसे स्वीकार नहीं करते और सोचते हैं : “मुझे सब कुछ समझ आता है, मुझे तुम लोगों की मदद की जरूरत नहीं है! यहाँ तक कि जब मुझे समस्याएँ होती हैं, तब भी मैं तुम लोगों से बेहतर होता हूँ। तुम्हें लगता है कि तुम लोग अपनी थोड़ी सी समझ से मेरी मदद कर सकते हो? तुम सच में अपनी क्षमताओं को कुछ ज्यादा ही आंक रहे हो!” मसीह-विरोधी इतने ज्यादा घमंडी और आत्मतुष्ट होते हैं। वे बहुत सारे बुरे कार्य करते हैं और फिर भी यह मानने से इनकार करते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत किया है या यह कि उनमें कोई समस्या है। अपने दिलों में, वे अत्यधिक दुराग्रही होते हैं और किसी की भी बात सुनने को तैयार नहीं होते। वे अपने मन से केवल एकमात्र बात नहीं निकाल पाते और वह यह है कि उनके कार्यों का उनके सम्मान और हैसियत पर बाद में क्या असर पड़ेगा। यही वह बात है जो उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करती है और जिसके बारे में वे सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं।
कोई मसीह-विरोधी चाहे कितने भी और किसी भी तरह के गलत काम करे, चाहे वह गबन करना हो, अपव्यय करना हो, परमेश्वर की भेंटों का दुरुपयोग करना हो, या चाहे वह कलीसिया के काम को बाधित कर रहा और बिगाड़ रहा हो और उसमें भारी गड़बड़ी करके परमेश्वर का क्रोध भड़का रहा हो, वह हमेशा शांत, संयमित और पूरी तरह से बेफिक्र रहता है। मसीह-विरोधी चाहे किसी भी तरह की बुराई करे या उसके जो भी परिणाम हों, वह अपने पाप स्वीकारने और पश्चात्ताप करने के लिए कभी यथाशीघ्र परमेश्वर के सामने नहीं आता या वह कभी अपनी गलतियाँ मानने, अपने अपराध जानने और अपनी भ्रष्टता पहचानने और अपने बुरे कर्मों पर पछतावा करने के लिए खुद को उजागर करने और अपना दिल खोलने के रवैये के साथ भाई-बहनों के सामने नहीं आता। इसके बजाय, वह जिम्मेदारी से बचने के लिए तमाम बहाने खोजने को अपना दिमाग चलाता है और अपनी इज्जत और हैसियत बहाल करने के लिए दोष दूसरों पर मढ़ देता है। वह कलीसिया के काम की नहीं, बल्कि इस बात की परवाह करता है कि उसकी प्रतिष्ठा और हैसियत किसी भी तरह से क्षतिग्रस्त या प्रभावित तो नहीं हो रही। वह अपने अपराधों के कारण परमेश्वर के घर को हुए नुकसान पर विचार नहीं करता या इसकी भरपाई करने के तरीकों के बारे में नहीं सोचता और न ही वह परमेश्वर का ऋण चुकाने का प्रयास करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह कभी यह स्वीकार नहीं करता कि वह कुछ गलत कर सकता है या उससे कोई भूल हो गई है। मसीह-विरोधियों के दिलों में, सक्रिय रूप से गलतियाँ स्वीकार करना और तथ्यों का ईमानदार लेखा-जोखा देना अक्षमता और मूर्खता है। अगर उनके बुरे कर्मों का पता चल जाता है और उनका पर्दाफाश हो जाता है, तो मसीह-विरोधी केवल असावधानी से हुई कोई क्षणिक गलती ही स्वीकार करेंगे, कर्तव्य में अपनी चूक और गैर-जिम्मेदारी कभी स्वीकार नहीं करेंगेऔर वे अपने ऊपर से दाग हटाने के लिए जिम्मेदारी किसी और पर डालने का प्रयास करेंगे। ऐसे समय, मसीह-विरोधी इस बात की चिंता नहीं करते कि परमेश्वर के घर को हुए नुकसान की भरपाई कैसे करें, खुलकर बात कैसे करें, अपनी गलतियों को कैसे स्वीकार करें या परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इसका हिसाब कैसे दें। वे ऐसे तरीके खोजने में लगे रहते हैं जिससे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखा सकें और छोटी समस्याओं को ऐसे दिखा सकें जैसे वे कोई समस्या ही न हों। वे दूसरों को समझाने और उनकी सहानुभूति पाने के लिए वस्तुनिष्ठ कारण देते हैं। वे दूसरे लोगों के मन में अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने, खुद पर अपने अपराधों के पड़ने वाले अत्यंत नकारात्मक प्रभाव को कम से कम करने और यह सुनिश्चित करने की भरसक कोशिश करते हैं कि ऊपरवाले पर उनके बारे में कोई गलत प्रभाव न पड़े और ऊपरवाला कभी भी उन्हें जवाबदेह न ठहराए, उन्हें बर्खास्त न करे, स्थिति की जाँच न करे या उनसे निपट न ले। अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बहाल करने के लिए, ताकि उनके हितों को नुकसान न पहुँचे, मसीह-विरोधी कितनी भी पीड़ा सहने के लिए तैयार रहते हैं और वे कोई भी कठिनाई हल करने के लिए हर संभव तरीका सोचते हैं। अपने अपराध या गलती की शुरुआत से ही मसीह-विरोधियों का कभी भी अपने द्वारा किए गए गलत कामों की जिम्मेदारी लेने का कोई इरादा नहीं होता, अपने गलत कामों के पीछे के उद्देश्य, इरादे और भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकार करने, उनके बारे में संगति करने, उन्हें उजागर करने या उनका विश्लेषण करने का उनका कोई इरादा नहीं होता और स्वयं द्वारा कलीसिया के काम को पहुँचाई गई क्षति और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को पहुँचाए गए नुकसान की भरपाई करने का उनका कोई इरादा तो निश्चित रूप से नहीं होता। इसलिए, चाहे तुम इस मामले को किसी भी दृष्टिकोण से देखो, मसीह-विरोधी वे लोग होते हैं, जो हठपूर्वक अपने गलत कार्यों को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और पश्चाताप करने की अपेक्षा मरना पसंद करते हैं। छुटकारे की आशा से रहित, मसीह-विरोधी बेशर्म और मोटी चमड़ी वाले होते हैं और वे जीवित शैतानों से कम नहीं होते। चाहे वे कलीसिया के भीतर कितनी भी बड़ी गलतियाँ क्यों न कर दें, वे अपनी छाती फुलाए और सिर ऊँचा किए रहते हैं और इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन होते हैं, वे यह मानते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया और पश्चाताप करने का उनका थोड़ा सा भी इरादा नहीं होता। वे कभी भी अपने द्वारा की गई गलतियों पर कोई आंसू नहीं बहाते और न ही इन चीजों के कारण कोई उदासी या पछतावा महसूस करते हैं। इसके विपरीत, अगर वे अनजाने में खुद को उजागर करते हैं, तो वे दर्द या दुख महसूस करते हैं, जिससे अधिकांश लोग उनका असली चेहरा देख लेते हैं और उन्हें अस्वीकार कर देते हैं। इतनी सारी गलतियाँ करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों और कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाने के बाद, वे जो कुछ भी कहते और करते हैं, उसका उद्देश्य इन गलतियों या नुकसानों की भरपाई करना नहीं होता, बल्कि वे अपने इरादे पाल रहे होते हैं और अपना बचाव करने, दिखावा और तमाशा करने के लिए हर संभव साधन तैयार कर रहे होते हैं। उनका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को यह दिखाना होता है कि उन्होंने जो कुछ भी किया वह अनजाने में किया था, कि वे बस एक पल के लिए लापरवाह हो गए थे, ताकि वे उनकी माफी प्राप्त कर सकें, उन्हें इसके लिए राजी कर सकें कि वे उनकी ओर से बात करें जिससे कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भरोसा और तरफदारी प्राप्त कर सकें और इस प्रकार वे पूरी तरह से वापसी करने का अपना लक्ष्य हासिल कर सकें।
काट-छाँट किए जाने के बाद भी कुछ मसीह-विरोधी इस बात को समझने के लिए विचार नहीं करते कि उनके साथ काट-छाँट क्यों की गई, ताकि वे यह पता लगा सकें कि उजागर होने वाले मामले में आखिर उनकी गलती कहाँ थी और आगे चलकर उन्हें इसकी भरपाई कैसे करनी चाहिए। इसके बजाय, वे काट-छाँट किए जाने का फायदा उठाते हैं, वे दूसरों के साथ इस बारे में संगति करते हैं कि उन्होंने कैसे काट-छाँट किए जाने को स्वीकार किया, इससे कैसे उन्होंने सबक सीखा, वे कैसे समर्पण कर पाए और कैसे उन्होंने ऊपरवाले के साथ निकट संपर्क करने के बाद ऊपरवाले की सराहना प्राप्त की। इसके साथ ही, ये मसीह-विरोधी ऊपरवाले के बारे में अपने असंतोष और धारणाओं को प्रसारित करने के लिए इस बात पर संगति करके भी दिखावा करते हैं कि उन्होंने कैसे काट-छाँट किए जाने को स्वीकार किया, जिससे लोगों में यह धारणा बन जाए कि ऊपरवाले के पास लोगों की काँट-छाँट करने के लिए कोई सिद्धांत नहीं हैं, कि ऊपरवाला बेतरतीब ढंग से ऐसे ही किसी की भी काट-छाँट करता है और वह सहानुभूतिहीन है, लोगों की भावनाओं और मानवीय कमजोरियों का लिहाज नहीं करता और यह कि इन सबके बावजूद, उन्होंने फिर भी उसके प्रति पूरी तरह से समर्पण कर दिया और जो भी कार्य उन्हें सौंपा गया था, उसमें उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया, वे नकारात्मक, कमजोर या प्रतिरोधी नहीं बने और न ही उन्होंने हार मानी। जब एक मसीह-विरोधी ये सब बातें कहता है, तो ये बातें न केवल लोगों को सत्य के प्रति समर्पण करने और स्वेच्छा से काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने के लिए राजी करने में विफल रहती हैं, बल्कि इसके विपरीत, ये बातें लोगों में परमेश्वर के बारे में धारणाएँ और राय पैदा करने और परमेश्वर के प्रति सावधान रहने के लिए उकसाती हैं, जबकि दूसरी तरफ उनके दिल में मसीह-विरोधी के प्रति ईर्ष्या, प्रशंसा और सम्मान की भावना पैदा होती है। एक बार जब ये दो परिणाम प्राप्त हो जाते हैं, तो फिर सबसे बड़ी भूल जो लोग करते हैं वह यह कि वे भूल जाते हैं कि मसीह-विरोधियों ने क्या अपराध किया है, उन्होंने क्या गलत किया है और यह तथ्य कि उन्होंने कलीसिया के कार्य के लिए, परमेश्वर के घर का क्या नुकसान किया है क्योंकि वे अपने कार्य में सक्षम नहीं थे और लापरवाही से गलत कार्य कर रहे थे। यह मसीह-विरोधियों की एक रणनीति होती है—अर्थात झूठे आरोप लगाना और इस तरह दूसरों को गुमराह करना। वे कभी भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं करते कि वे परमेश्वर के घर के कार्य में बहुत सारी परेशानियों का कारण बने और उन्होंने भाइयों और बहनों के जीवन को भारी नुकसान पहुंचाया क्योंकि वे अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह थे, क्योंकि वे मूर्ख और अज्ञानी थे, क्योंकि उन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास किया था। वे कभी भी इन चीजों को स्वीकार नहीं करते या इनका विश्लेषण नहीं करते, वे कभी भी इन मामलों की सच्चाई का उल्लेख नहीं करते, वे कभी भी अपनी बर्खास्तगी का कारण नहीं बताते या यह कि उनकी काट-छाँट क्यों की गई। वे केवल इस बारे में बात करते हैं कि ऊपरवाले ने कैसे उनकी काट-छाँट की, ऊपरवाले की काट-छाँट कितनी क्रूर थी, ऊपरवाले ने उनसे कितनी कठोरता से बात की, वे कितना रोए थे, कैसे उन्हें बलि का बकरा बनाया गया और उन्होंने कितना कष्ट सहा, फिर भी वे हमेशा की तरह डटे रहे और बिना चूके अपना कर्तव्य निभाते रहे। शुरू से लेकर अंत तक, क्या मसीह-विरोधी में कभी भी अपने गलत कामों को स्वीकार करने की थोड़ी सी भी प्रवृत्ति होती है? नहीं दिखाता। जब मूर्ख और अज्ञानी लोग जो असली स्थिति नहीं जानते, जो सत्य नहीं समझते, इसके बारे में सुनते हैं, तो वे सोचते हैं, “ऊपरवाले के पास लोगों की काट-छाँट करने का कोई सिद्धांत नहीं है। चाहे कोई व्यक्ति अपने कार्य में कितना ही अच्छा प्रदर्शन क्यों न करे या वो कितनी भी कीमत क्यों न चुकाए, उन सबकी एक जैसी काट-छाँट की जाती है और उसके बाद वे कोई कमजोरी नहीं दिखा सकते, उन्हें बस समर्पण करना होता है।” एक मसीह-विरोधी द्वारा संगति करने और गुमराह करने के एक दौर के बाद और उनके द्वारा अपने कार्य करने में काफी प्रयास करने के बाद, परिणाम यह निकल कर आता है कि लोगों के दिलों में परमेश्वर के प्रति गलतफहमियाँ और सतर्कता पैदा हो जाती हैं, ताकि जब लोगों की काट-छाँट की जाए, तो वे अधिक शत्रुता और प्रतिरोध महसूस करें, बजाय इसके कि वे परमेश्वर के दिल को बेहतर ढंग से समझें या काट-छाँट किए जाने के प्रति समर्पण करने और इसे स्वीकार करने में सक्षम हों और इसके बाद अपने भ्रष्ट स्वभाव, अपनी मूर्खता और अज्ञानता को जानें और यह जानें कि वे वास्तव में कौन हैं। मसीह-विरोधी की इस पूरी संगति के दौरान, क्या वे कभी इस बात का उल्लेख करते हैं कि उन्होंने क्या गलत किया था? क्या वे कभी भी अपने गलत कामों को स्वीकार करने का थोड़ा सा भी रवैया अपनाते हैं? जरा सा भी नहीं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, वे कभी भी अपनी गलती स्वीकार नहीं करते। क्या तुम लोगों ने कभी सुना है कि किसी मसीह-विरोधी ने अपनी बर्खास्तगी के बाद यह स्वीकार किया हो कि उसकी गलती ने परमेश्वर के घर को नुकसान पहुँचाया है? (नहीं।) अगर वह व्यक्ति मसीह-विरोधी होगा, तो इसे कभी भी स्वीकार नहीं करेगा। हमने पहले भी कुछ मसीह-विरोधियों के बारे में बात की है, जैसे उस “महिला अगुआ” और कुछ अन्य प्रसिद्ध मसीह-विरोधियों के बारे में, जिनके कार्यों के परिणामस्वरूप परमेश्वर की भेंटों में हजारों की हानि हुई थी, लेकिन आखिरकार उन्होंने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने कुछ गलत किया था। उन्होंने अपनी गलतियों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा बल्कि दूसरों को यह दोष देने के अलावा कुछ नहीं किया कि उनके साथ कार्य करना कठिन है। उन्होंने सारी जिम्मेदारी, गलतियाँ, दोष दूसरे लोगों के कंधों पर डाल दिया, जबकि सभी अच्छी चीजों, सही कार्यों और सही निर्णयों का श्रेय खुद ले लिया। इस पूरे घटनाक्रम में, हालांकि वे लोग ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थे, लेकिन उन्होंने दावा किया कि सारी गलतियाँ दूसरे लोगों द्वारा की गई थीं। अगर ऐसा ही है, तो वे क्या कर रहे थे? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं और इसकी जिम्मेदारी अन्य लोगों पर डालते हैं। और फिर भी जब कोई छोटी सी भी उपलब्धि प्राप्त होती है, तो मसीह-विरोधी तुरन्त सामने आ जाते हैं और कहते हैं कि यह कार्य उन्होंने किया है और वे कलीसिया में सभी को इसके बारे में बताने के लिए उत्सुक रहते हैं, यहाँ तक कि गैर-विश्वासियों को भी। जब वे कोई छोटी सी भी गलती करते हैं, तो अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए तुरंत कोई बलि का बकरा ढूंढने लगते हैं। वे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है, ताकि अगर कोई मुद्दा हो तो इसे शुरुआत में ही खत्म कर सकें। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि कोई भी इसके बारे में न जान सके, हर कोई इसे जल्द से जल्द भूल जाए और कोई यह न जान सके कि वास्तव में क्या हुआ था, ताकि वे दूसरों का सम्मान फिर से प्राप्त कर सकें और जल्दी से अपनी मूल हैसियत और सत्ता फिर से पा सकें। जब एक मसीह-विरोधी कुछ गलत करता है, तो चाहे लोग व्यवहारिक रूप से कितनी भी उसकी काट-छाँट क्यों न करें या सही बात क्यों न कहें, वह इसका मुकाबला करेगा, विरोध करेगा और इसे पूरी तरह से अस्वीकार कर देगा, यहाँ तक कि अगर कोई गवाह या सबूत भी हों, तो वह हठपूर्वक अपनी गलतियों को स्वीकार करने से इंकार कर देगा और इसे दिल से स्वीकार नहीं करेगा या नहीं मानेगा। मसीह-विरोधी कहेगा, “भले ही इस मामले में मैं गलत था, लेकिन इसमें और भी कई लोग शामिल थे। उनकी काट-छाँट क्यों नहीं की जा रही है, केवल मेरी ही क्यों? जवाबदेही के लिए केवल मेरी ही जांच क्यों की जा रही है, किसी और की क्यों नहीं?” भले ही काट-छाँट सत्य और वास्तविकता के कितने भी अनुरूप क्यों न हो, उन्हें यही लगेगा कि उन पर गलत आरोप लगाया गया है, कि उनके साथ अन्याय हो रहा है, कि इतना कष्ट सहने और इतनी कीमतें चुकाने के बाद भी उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें एक छोटी सी गलती के लिए इस तरह बार-बार निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। उनका मानना है कि उन्हें इस तरह की काट-छाँट को स्वीकार नहीं करना चाहिए। अगर कोई साधारण भाई या बहन उनकी काट-छाँट करता है, तो वे तुरंत ही उस पर पलटवार करते हैं और उसका विरोध करते हैं, वे अपना गुस्सा और अपनी चिड़चिड़ाहट दिखाते हैं या शायद उन पर हाथ भी उठा दें। अगर उनकी काट-छाँट ऊपरवाला करता है, तो वे न चाहते हुए भी चुप रह जाते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर उन्हें बहुत बुरा लगता है। वे बहुत नाखुश और अनिच्छुक होते हैं और अक्सर टेढ़े-मेढ़े तर्क देते हुए कहते हैं, “मुझे लगता है यह मेरी बदकिस्मती ही है कि तुम लोगों को इसके बारे में पता चल गया। वास्तव में, सभी रैंकों के कई अगुआों, भाइयों और बहनों ने ऐसे भयानक कार्य किए हैं जिनके बारे में तुम लोग नहीं जानते और केवल मैं ही पकड़ा गया हूँ। मेरी किस्मत बहुत खराब है!” चाहे ऊपरवाला या भाई और बहन उनकी कितनी भी काट-छाँट क्यों न करें, वे इसे वैसे का वैसे स्वीकार नहीं कर पाते, वे मामले के सत्य को स्वीकार कर जिम्मेदारी नहीं ले पाते। ऐसा लगता है जैसे जिम्मेदारी स्वीकार करना और जो वास्तव में हुआ उसे स्वीकार करना उन्हें मार ही डालेगा। वे कभी यह स्वीकार नहीं करते कि उन्होंने कोई गलती की है, कि वे उस मामले के लिए जिम्मेदार हैं और न ही यह कि इससे परमेश्वर के घर को बहुत नुकसान हुआ है। क्या यह एक मसीह-विरोधी का स्वभाव नहीं है? (हाँ है।) यह एक मसीह-विरोधी का ही स्वभाव है।
जब किसी मसीह-विरोधी के साथ कुछ गलत करने के कारण उसकी काट-छाँट की जाती है तो वह इसे स्वीकार नहीं करता और अपने दिल की गहराई से समर्पण नहीं करता, न ही वह सत्य और उन सत्य सिद्धांतों को समझता है जिनका उसे पालन करना चाहिए, न ही वह यह स्वीकार करता है कि वह कुछ गलत भी कर सकता है। मसीह-विरोधियों की प्राथमिक विशेषताएँ—आश्वस्त न होना, स्वीकार न करना और कबूल न करना है। मसीह-विरोधी मुख्य रूप से ऐसा व्यवहार इसलिए करते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि वे पूर्ण लोग हैं, वे कुछ भी गलत नहीं कर सकते उनके लिए जो कोई भी उन पर गलती करने का आरोप लगाता है, वही गलत है—उसी व्यक्ति का दृष्टिकोण गलत है, जो इस मामले में एक अलग दृष्टिकोण और रुख रखता है। मसीह-विरोधी सोचते हैं कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है, वह इसलिए ऐसा करता है क्योंकि उसने अभी उनकी ताकत नहीं देखी है, इसलिए वह उनके लिए चीजें कठिन बना रहा है, उनमें दोष ढूंढ रहा है और जानबूझकर उन्हें निशाना बना रहा है। क्या यह एक मसीह-विरोधी वाला स्वभाव नहीं है? (हाँ।) एक मसीह-विरोधी यह स्वीकार नहीं करेगा कि इसके लिए उसकी काट-छाँट की जाए, न ही उसमें कोई पश्चाताप होगा, इसका मुख्य कारण यह है कि उन्होंने कभी भी खुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में नहीं देखा है जो गलतियाँ कर सकता है—उनका मानना है कि वे पूर्ण हैं और केवल वे ही हैं जो गलतियाँ नहीं कर सकते। इसका मतलब यह है कि वे निश्चित रूप से मानते हैं कि वे धार्मिक हैं, संत हैं। अगर वे स्वीकार कर लें कि वे एक भ्रष्ट व्यक्ति हैं, तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, कि वे गलतियाँ कर सकते हैं और चूँकि वे इंसान हैं, इसलिए उनसे गलतियाँ होना स्वाभाविक है। कुछ लोग दिखने में काफी निष्कपट लगते हैं, लेकिन उनकी मानवता के भीतर एक ऐसा गुण होता है जिसे लोग अपनी धारणाओं के अनुसार ताकत मानते हैं और वह है प्रतिस्पर्धा और दूसरों से आगे निकलने की अत्यधिक उत्सुकता। इन लोगों में काफी आत्म-नियंत्रण होता है और उनकी अपने प्रति बहुत अधिक अपेक्षाएँ होती हैं। वे खुद के प्रति बहुत कठोर होते हैं; वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे पूर्णता और श्रेष्ठता की मांग करते हैं और छोटी से छोटी गलती या चूक को भी सहन नहीं करते। साथ ही, वे अवचेतन रूप से मानते हैं कि वे कभी भी कोई गलती नहीं कर सकते, क्योंकि वे जो कुछ भी करते हैं, उसमें वे अत्यंत सावधान होते हैं, वे विभिन्न चीजों के बारे में सोचने में माहिर होते हैं और वे पूरी समग्रता से ऐसा करते हैं; वे हर मामले पर गहनता से और पूरी तरह से विचार करते हुए सब कुछ बिना किसी दोष के करते हैं। इस प्रकार, वे मानते हैं कि वे कभी कोई गलती नहीं कर सकते। जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो उनके लिए यह स्वीकार करना सबसे मुश्किल होता है कि वे गलती भी कर सकते हैं। इसीलिए ऐसे लोग खुद पर विचार करना नहीं जानते और न ही वे कभी ऐसा करते हैं। वे अपनी मानवीय सोच में दूसरों से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा और उत्सुकता को एक सकारात्मक चीज के रूप में देखते हैं और उनका ऐसे पालन करते हैं जैसे मानो ये सत्य सिद्धांत हों; उन्हें लगता है कि अगर वे इन सिद्धांतों के आधार पर कार्य करेंगे और अपना कर्तव्य निभाएँगे, तो वे कभी भी कोई गलती नहीं करेंगे और अगर गलतियाँ होती भी हैं, तो वे इसे एक नजरिए का मामला मानते हैं, जैसे लोगों की अलग-अलग राय होती है और सोचते हैं कि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि जो कुछ उन्होंने किया वह गलत था। इसलिए, चाहे उनकी कोई भी काट-छाँट करे, चाहे यह काट-छाँट या जो उजागर किया गया है वह तथ्यों के अनुरूप हो या न हो—वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते। अगर उन्हें पता चले कि उन्होंने सच में कुछ गलत किया है, तो क्या वे इसे स्वीकार करेंगे? (नहीं करेंगे।) वे इसे कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे, वे तुरंत चुप हो जाएँगे और कभी इसका उल्लेख तक नहीं करेंगे। कभी इस बात की चर्चा नहीं करेंगे। अगर एक मसीह-विरोधी का सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो उनके कार्य में कुछ गलतियों या खामियों को उजागर करता है और अगर वह देखता है कि वह इससे बच नहीं सकता, तो वह यह खोजने का ढोंग रचता रहेगा कि आखिर यह गलती किसने की है और अप्रत्याशित रूप से इतनी खोजबीन करने के बाद पता चला कि वह ही इसके लिए जिम्मेदार था। अगर कोई कहता है कि, “तुम ने ही तो यह किया था, किसी और ने नहीं; तुम बस इसे भूल गए हो,” तो फिर एक मसीह-विरोधी इसका जवाब कैसे देगा? इन परिस्थितियों में एक सामान्य व्यक्ति को क्या करना चाहिए? एक सामान्य व्यक्ति जिसमें शर्म है, उसका चेहरा लाल हो जाएगा, वह शर्मिंदा और अजीब महसूस करेगा और तुरंत स्वीकार कर लेगा और कहेगा, “मैं इस बारे में भूल गया था। यह मैंने किया था, यह मेरी गलती थी। चलो अब जल्दी से पता लगाते हैं कि इसकी भरपाई कैसे की जाए ताकि यह गड़बड़ आगे भी जारी न रहे।” जिस व्यक्ति में शर्म, अंतरात्मा और सूझ-बूझ होगी, वह तुरंत अपनी गलती स्वीकार कर लेगा, फिर उसका समाधान करेगा और उसे ठीक करेगा। इसके विपरीत, एक मसीह-विरोधी बेशर्म होता है; जिस क्षण किसी को पता चलता है कि उसने ही गलती की थी, जिस क्षण कोई उसे उजागर करता है और किसी को इसके बारे में पता चलता है, वह तुरंत अपनी धुन बदल लेता है और अपनी गलती को स्वीकार करने से बचने के लिए तरह-तरह के तरीके सोचता है, यह स्वीकार करने से बचने के लिए कि गलती उसी ने की थी—मसीह-विरोधी बिना झिझक झूठ बोलते हैं और अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। उनके आस-पास के सभी लोगों को यह बात शर्मनाक और अजीब लगेगी, लेकिन मसीह-विरोधियों को कुछ भी महसूस नहीं होगा। वे बड़ी समस्याओं को छोटी दिखाने की कोशिश करते हैं और छोटी समस्याओं के बारे में कहते हैं कि यह तो कोई समस्या ही नहीं है, फिर वे कभी भी इस मामले को सामने नहीं लाएँगे। इस मामले में उनकी मूर्खता प्रकट हो चुकी है, इसलिए वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते हुए खुलेआम अपनी गलती से इनकार कर देंगे और बहुत सारे लोगों के सामने झूठ बोल देंगे और उनका चेहरा शर्म से लाल भी नहीं होगा और उनके दिल की धड़कन बिल्कुल नहीं रुकेगी। क्या मसीह-विरोधियों में कोई शर्म होती है? (नहीं।)
जब कुछ मसीह-विरोधियों को हाल ही में बर्खास्त किया गया हो, तो वे काफी शिकायतें करते हैं; वे एक तरह की हानि महसूस करते हैं, कि अब उनके पास कोई हैसियत नहीं रही, अब कोई उनका सम्मान नहीं करता या उनकी सेवा नहीं करता और अब वे अपनी हैसियत के लाभों का आनंद नहीं ले सकते। उन्हें लगता है कि उन्होंने जो भी कीमतें चुकाईं हैं और अतीत में जो भी कष्ट उन्होंने सहन किए हैं, वे सब व्यर्थ हो गए हैं और उनके दिलों में अन्याय का गहरा अहसास होता है। हालाँकि काट-छाँट किए जाने के दौरान उन्होंने जो भी अभिव्यक्तियाँ दिखाईं थीं या जो गलतियाँ की थीं, उनके लिए उन्हें थोड़ा सा भी पश्चाताप नहीं होता है। वे इसे अन्यायपूर्ण मानते हैं, उनके दिल शिकायतों और आक्रोश और साथ ही परमेश्वर के प्रति गलतफहमियों से भरे होते हैं। वे न केवल अपनी गलती को स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं और उनके पास अपनी गलती की भरपाई करने या काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने और इस बर्खास्तगी को स्वीकार करने की कोई योजना नहीं होती है, बल्कि, वे सोचते हैं : “परमेश्वर धार्मिक नहीं है। चाहे किसी ने कितने भी कष्ट क्यों न सहन किए हों या उनके साथ कितना भी बड़ा अन्याय क्यों न हुआ हो, उनके पास इसे बताने के लिए कोई जगह नहीं होती। यह बहुत पीड़ादायक बात है! अब तो परमेश्वर पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता, मेरे पास तो कोई सहारा ही नहीं है। भविष्य में अगर मैं परमेश्वर के घर में कोई कर्तव्य निभाना जारी रखता हूँ, तो मुझे अत्यधिक सावधानी से आगे बढ़ना होगा और किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।” वे परमेश्वर के प्रति सतर्क रहते हैं और गलतफहमियों से भरे होते हैं। यह किस तरह का स्वभाव है? चाहे उन्होंने कितने भी गलत कार्य किए हों, कलीसिया के कार्य को कितना भी बड़ा नुकसान पहुंचाया हो या कलीसिया के कार्य को कितना भी खतरे में डाला हो, वे सोचते हैं कि इन बातों को आसानी से नजरअंदाज किया जा सकता है। वे कोई जिम्मेदारी नहीं लेते या अपनी कोई गलती स्वीकार नहीं करते। इसके बजाय, वे अपनी किसी भी शिकायत को लेंगे और जो भी छोटी मोटी, महत्वहीन कीमत उन्होंने चुकाई होगी उसे लेंगे और इसे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करेंगे और वे यह मानेंगे कि परमेश्वर के घर ने उन्हें नीचा दिखाया है, परमेश्वर ने उन पर गलत तरीके से आरोप लगाए हैं। उनकी गलती से परमेश्वर के घर को जो नुकसान हुआ है, वह उनके मन में पूरी तरह से महत्वहीन होता है। वे सोचते हैं, “उसका हिसाब लगाने या उसके बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। कौन इसे नुकसान कहेगा? वैसे भी, कौन सा अगुआ है जो भेंट का कुछ हिस्सा अपव्यय नहीं करता? क्या मैं ऐसा अकेला ही हूँ? कौन सा अगुआ कभी परमेश्वर के घर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता? परमेश्वर की भेंट क्या हैं? वह पैसा सबका है, इसलिए अगर अन्य लोगों को इसे खर्च करने की अनुमति है, तो फिर मुझे क्यों नहीं? अन्य लोगों को इसका अपव्यय करने की अनुमति है, लेकिन मुझे नहीं है? अगर हम परमेश्वर के घर को हुए नुकसानों के बारे में बात करते हैं, तो दूसरे लोग मुझसे कहीं अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। केवल मुझे ही क्यों इतनी गंभीर काट-छाँट और बर्खास्तगी का सामना करना पड़ रहा है? जहाँ तक सिद्धांतों के अनुरूप कार्य न करने और लापरवाही से गलत कार्य करने का सवाल है, इस मामले में कुछ लोग तो मुझसे भी ज्यादा बुरे हैं, जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता? जहाँ तक कीमत चुकाने की बात है, मैंने अधिकांश लोगों से अधिक कीमत चुकाई है। ईमानदारी के मामले में, कौन मुझसे तुलना कर सकता है? उपदेशों का क्या? मैंने किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में अधिक उपदेश दिए हैं। और जहाँ तक सत्य समझने की बात है, तो कौन इसे मुझसे अधिक समझता है? जब ऊपरवाले द्वारा काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने की बात आती है, तो कौन इसे मुझसे अधिक स्वीकार करता है? त्याग करने की बात करें, तो मुझसे अधिक किसने त्याग किया है? और जहाँ तक भाइयों और बहनों की मदद करने और उनकी समस्याओं को सुलझाने की बात है, तो मुझसे अधिक कौन ऐसा करता है? जब कलीसिया के लिए दौड़-भाग करने और कार्य करने की बात आती है, तो कोई भी मेरी बराबरी नहीं कर सकता। जब यह बात आती है कि भाई और बहन किसे वोट देते हैं, किसकी सहायता करते हैं और किसका समर्थन करते हैं, तो मुझसे अधिक वोट किसे मिलते हैं?” देखो, मसीह-विरोधी इस तरह की तुलनाएँ करते हैं करते हैं। जब उनका सामना काट-छाँट किए जाने से होता है, तो मसीह-विरोधी केवल इसमें शामिल मामलों की ही बात करते हैं। अगर एक मसीह-विरोधी अपनी सारी गलतियाँ स्वीकार कर ले और उन सभी सत्य सिद्धांतों को स्वीकार कर ले जिनका उसने उल्लंघन किया है, अगर वह काट-छाँट को स्वीकार करे और उसके प्रति समर्पण करे, अगर वह आज के बाद से सिद्धांतों के आधार पर कार्य करे और अगर वह कलीसिया के कार्य को उसकी वजह से हुए नुकसान की भरपाई करने की पूरी कोशिश करे, तो क्या परमेश्वर का घर उसके मुद्दों पर गौर करेगा? क्या यह उसकी निंदा करेगा? क्या यह उसे नरक में डाल देगा? क्या उसके लिए खुद को समझाने और बहाने बनाने में इतनी मेहनत करने की कोई आवश्यकता है? क्या उसके लिए इस तरह से घुमा-फिराकर अपने कष्टों के बारे में शिकायत करते रहने की कोई आवश्यकता है? क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है कि उसमें भ्रष्ट स्वभाव न हो और वह गलतियाँ करने में असमर्थ हो? इतने सारे उपदेश सुनने के बाद भी, क्या उसे अब तक यह समझ नहीं आया कि वह वास्तव में किस प्रकार का व्यक्ति है? उसके साथ थोड़ी बहुत काट-छाँट क्या हो गई, उसे लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है—अगर उसनेकोई भी बुरा कार्य नहीं किया होता, तो फिर कौन उसकीकाट-छाँट करने के लिए तैयार होता या ऐसा चाहता? इसके अलावा, अगर वह एक अगुवा नहीं होताऔर जिम्मेदारी नहीं उठाता, तो फिर कौन उसकी काट-छाँट करने के लिए तैयार होता? परमेश्वर लोगों को स्वतंत्र रूप से चुनने का अधिकार देता है, जिससे वे कलीसिया का जीवन जी सकें और जहाँ तक यह सवाल है कि लोग किस मार्ग पर चलते हैं और वे किसका अनुसरण करते हैं, तो यह उनका अपना निजी मामला है। इसमें कोई भी दखल नहीं देगा। लेकिन फिलहाल, अगर वे परमेश्वर के घर में अगुवा या पर्यवेक्षक के रूप में कोई गलती करते हैं, तो इससे परमेश्वर के घर को जो नुकसान होगा वह कोई छोटी सी बात नहीं होगी और अगर वे कुछ गलत कह देते हैं, तो इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर जो असर पड़ेगा, वह भी छोटी बात नहीं होगी, क्योंकि उनके ऊपर जो जिम्मेदारी होती है वह एक सामान्य व्यक्ति से अलग होती है। यही कारण है कि ऊपरवाले के लिए उनकी काट-छाँट करना एक सामान्य बात है। अगर उनकी कोई हैसियत न होती या वे यह जिम्मेदारी नहीं लेते तो क्या उपरवाला ऐसा करता? ऊपरवाले ने कितने नियमित विश्वासियों की काट-छाँट की है? चूँकि उनके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है और उनका कार्यक्षेत्र भी बहुत बड़ा होता है, इसलिए जब भी वे कोई गलती करते हैं, तो उसका प्रभाव भी बहुत बड़ा होता है और इसलिए उनकी काट-छाँट होना निश्चित है। यह एक बहुत ही सामान्य बात है। अगर वे काट-छाँट किए जाने को भी स्वीकार नहीं कर सकते, तो क्या वे अगुआ बनने योग्य हैं? वे इसके लिए अयोग्य हैं, वे भाइयों और बहनों द्वारा चुने जाने योग्य नहीं हैं—वे इसके लायक नहीं हैं! जब वे कोई गलती करते हैं तो उनमें उसकी जिम्मेदारी लेने, उसे स्वीकार करने का साहस भी नहीं होता। उनके पास तो ऐसा कोई कारण भी नहीं होता, फिर वे अगुआ कैसे बन सकते हैं? वे तो अयोग्य और नालायक हैं!
असल में ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें मसीह-विरोधियों का सार होता है, अर्थात मसीह-विरोधी कभी भी यह स्वीकार नहीं कर सकते कि उन्होंने कोई गलती की है और इसलिए जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे जिम्मेदारी लेने या सत्य सिद्धांतों की खोज करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। यह देखते हुए कि वे ये सब करने के लिए तैयार नहीं होते और अपनी गलतियों को स्वीकार करने से इनकार करते हैं, क्या वे सत्य को अभ्यास में लाने में सक्षम हैं? क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को अभ्यास में लाने में सक्षम हैं? बिल्कुल भी नहीं। इसलिए, जब एक मसीह-विरोधी अगुआ बनता है, तो अपने निजी कारोबार चलाने के अलावा, वह ऐसा कुछ भी नहीं कर सकताजिससे परमेश्वर के घर के कार्य को कोई लाभ हो और वहकभी भी सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करेगा, न ही वह परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य कएगा। चाहे एक मसीह-विरोधी की किसी छोटी सी गलती के लिए काट-छाँट की जाए या किसी ऐसी बड़ी भूल के लिए जिसके कारण कलीसिया के कार्य को बड़ा नुकसान पहुंचा हो, वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करता, वह कभी यह स्वीकार नहीं कर सकताकि उसने कोई अपराध किया है और इस मामले में वह परमेश्वर के प्रति ऋणी हैं। इसके विपरीत, चाहे जब भी हो, वह इस नुकसान से अपने किसी भी संबंध को स्वीकार करने के बजाय मरना पसंद करेगा। वह यह स्वीकार नहीं करेगा कि इस मामले में उसकी मुख्य जिम्मेदारी है, कि उसके कार्य गलत थे, कि उसने गलत रास्ता चुना, या यह गलती मानी कि उसने सत्य को जानते हुए जानबूझकर बुराई की। और तो और, वह यह भी स्वीकार नहीं करेगा कि इस मामले में उसकी अपरिहार्य जिम्मेदारी है। वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि कार्य करते समय उसके इरादे गलत थे, वह किसी के साथ भी सहयोग नहीं कर सकता, उसने मनमाने तरीके से और स्वेच्छापूर्वक कार्य किया, उसने अपनी हैसियत के लाभों का खूब आनंद लिया, वह अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह था और उसने परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाया। इसके बजाय, गलती करने के बाद, वह हर मोड़ पर यह समझाता रहता है कि उसने कितना कष्ट सहा है, कि वह जेल गया लेकिन कभी यहूदा नहीं बना, उसने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है और उसने परमेश्वर के घर के कार्य में कितना महान योगदान दिया है। वह इन बातों को हर जगह फैलाता और प्रचार करता रहता है। अपने योगदान और उनके द्वारा चुकाई गई कीमत का प्रचार करने के अलावा, वह यह बात भी फैलाता है कि परमेश्वर के घर ने उसकी काट-छाँट करने के तरीके में और उसके साथ व्यवहार करने में एक गलत और अनुचित कार्य किया है। पश्चाताप के रवैये की कमी के अलावा, वह हर जगह परमेश्वर और परमेश्वर के घर द्वारा उसके साथ किए गए व्यवहार पर अपना फैसला सुनाता है। अगर और अधिक लोग उसकी बातों पर विश्वास करते हैं, अगर और अधिक लोग उसका बचाव करने की कोशिश करते हैं, उसके द्वारा परमेश्वर के घर के लिए चुकाई गई कीमत को स्वीकार करते हैं और यह मानते हैं कि परमेश्वर के घर ने अन्याय किया है और मसीह-विरोधी के साथ गलत व्यवहार किया है तो फिर मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेगा। वे इन कामों को करने में कभी भी संकोच नहीं करेंगे और न ही खुद पर संयम रखेंगे। उनके पास ऐसा दिल नहीं होता जो परमेश्वर का भय मानेर न ही उनका पश्चाताप करने का कोई इरादा होता है। कुछ भी गलत करने के बाद, न केवल वे इसे स्वीकार करने से इनकार कर देते हैं, बल्कि वे जिम्मेदारी से बचने की कोशिश भी करते हैं और साथ ही, वे अपनी भविष्य की मंजिल के बारे में अधिक चिंतित रहते हैं। जब कोई मसीह-विरोधी देखता है कि उसकी मंज़िल खतरे में है, या सुनता है कि परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को विकसित करना बंद कर देगा, तो वह मन ही मन उन लोगों से और भी अधिक घृणा करने लगता है जिन्होंने उसकी काट-छाँट की थी और उसे उजागर किया था और जिनके कारण उसे बेइज्जत होना पड़ा था। काट-छाँट किए जाने की पूरी प्रक्रिया के दौरान, एक मसीह-विरोधी कभी भी पश्चात्ताप नहीं करता। अगर उसेसचमुच पता चल जाए कि उसकी हैसियत और मंजिल सुरक्षित नहीं है, उसकी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं होंगी, तो उसका मुखौटा उतर जाता है वह गुप्त रूप से अपनी धारणाएँ और नकारात्मकता फैलाना शुरू कर देता है। वह उन भाइयों और बहनों या उच्च-स्तरीय अगुआओं पर फैसला सुनाने लगता हैजिन्होंने उसकी काट-छाँट की और वह पवित्रात्मा द्वारा उपयोग किए जाने वाले व्यक्ति पर भी फैसला सुनाने लगता हैऔर यह कहते हुए उस पर हमला करता है कि उसके पास उनकी काट-छाँट करने का कोई कारण नहीं था, कि उसने उसे अपनी प्रतिष्ठा को बचाने का कोई अवसर ही नहीं दिया। वह बस अनुचित होता है। इस प्रकार का व्यक्ति सत्य नहीं समझ सकता या उसके पास परमेश्वर का थोड़ा सा भी भय मानने वाला दिल नहीं होता, चाहे वह कितने भी उपदेश क्यों न सुन ले; उसमें अंतरात्मा या सूझ-बूझ भी नहीं आ सकती, चाहे वह कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों न कर ले। वह सचमुच बहुत दयनीय और घिनौना होता है! जिस क्षण से एक मसीह-विरोधी की लापरवाही से गलत कार्य करने के कारण गंभीर रूप से काट-छाँट की जाती है, तब से आखिर तक वह कभी भी यह स्वीकार नहीं करता कि उसने कुछ भी गलत किया है और दूसरी तरफ वह एक अन्याय की भावना से भरा होता है और साथ ही परमेश्वर के घर के बारे में शिकायत करता है और फैसला सुनाता है कि इसमें उसके साथ अन्याय किया जाता है और आखिरकार वह खुले तौर पर अपनी धारणाएँ फैलाने लगता है, उसका मुखौटा उतर जाता है और परमेश्वर के घर के खिलाफ आवाज उठाता है और आखिरकार उसे निष्कासित कर दिया जाता है। क्या इनमें से किसी भी चरण में मसीह-विरोधी के व्यवहार में सामान्य मानवता का एक भी अंश होता है? क्या अंतरात्मा और सूझ-बूझ होती है? क्या उसके अंदर सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करने की कोई भी अभिव्यक्ति होती है? क्या उसके पास थोड़ा सा भी परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? नहीं, इनमें से कोई भी चीज उसमें नहीं होती। एक मसीह-विरोधी अत्यधिक घिनौना, शर्म से रहित और पूरी तरह से अनुचित होता है! जब वह अपनी हैसियत का लुत्फ नहीं उठा पाता, तो वह खुद को निकम्मा मान लेता है और लापरवाही से कार्य करने लगता है। चाहे वह अपने कार्य में कितना भी अयोग्य क्यों न होऔर उसकी कार्यक्षमता कितनी भी कम क्यों न हो, फिर भी वे अपनी हैसियत और दूसरों के सम्मान का लुत्फ उठाना चाहता है। वह हैसियत और प्रतिष्ठा को अपने जीवन से अधिक महत्वपूर्ण मानता हैऔर चाहे वह कितनी भी बड़ी गलती क्यों न करे, उसमें किसी भी प्रकार का कोई अपराधबोध नहीं होता। क्या वह सच में इंसान है? वह भेड़ की खाल में भेड़िया है। बाहर से वह इंसान की चमड़ी पहनता है और एक इंसान की तरह दिखता, लेकिन अंदर से वह इंसान नहीं होता। वह सचमुच बहुत घृणास्पद होता—हैवह घिनौना और घृणास्पद होता है!
ख. यह मानने से इनकार करना कि उसका भ्रष्ट स्वभाव है
जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो वे न केवल पश्चाताप नहीं करते, बल्कि वे अपनी धारणाएँ भी फैलाते हैं और खुलेआम आलोचना करते हैं। इसका पहला मुख्य कारण यह है कि वे यह मानने से इनकार करते हैं कि उन्होंने गलत किया है। इसका दूसरा कारण क्या है? दूसरा कारण यह है कि एक मसीह-विरोधी यह स्वीकार नहीं करता कि उसका भ्रष्ट स्वभाव है। क्या यह कारण इस बात से अधिक गंभीर और ठोस नहीं है कि वे इस बात को स्वीकार करने से इनकार करते हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है? जो कोई भी परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करता है, जो परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करता है, उसके पास जो न्यूनतम ज्ञान होना चाहिए, वह यह है कि सबसे पहले यह स्वीकार किया जाए कि मनुष्य भ्रष्ट होते हैं, कि वे शैतान द्वारा भ्रष्ट किये जा चुके हैं, कि उनमें सूझ-बूझ और मानवता का अभाव है, उनके पास सत्य नहीं है या वे परमेश्वर को नहीं जानते और ये वे लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं। केवल मसीह-विरोधी ही कभी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि वे अत्यधिक भ्रष्ट हो चुके हैं और सारे भ्रष्ट लोगों का संबंध शैतान से होता है। वे यह भी कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि वे खुद ही राक्षस और शैतान हैं। विशेष रूप से, जब अधिकांश लोग खुद पर विचार करने, खुद को जानने और काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने को तैयार होते हैं, तो मसीहविरोधी यह भी स्वीकार नहीं कर सकते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है—यह एक गंभीर समस्या है। मैं इसे गंभीर समस्या क्यों कहता हूँ? चूँकि मसीह-विरोधी सत्य स्वीकार नहीं करते और यह नहीं मानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इसलिए वे अपने दिल की गहराइयों से परमेश्वर के वचनों में कही गई किसी भी बात को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “तुम कैसे कह सकते हो कि वे इसे स्वीकार नहीं करते? उन्होंने तो इस बात को स्वीकार किया है कि वे राक्षस और शैतान हैं, कि वे परमेश्वर के शत्रु हैं।” आखिर इसे स्वीकार करना कैसे माना जा सकता है? यह तो कोई गैर विश्वासी भी कह सकता है कि वह एक अच्छा व्यक्ति नहीं है, लेकिन क्या इसे अपने भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकार करना माना जाएगा? नहीं माना जाएगा। भ्रष्ट स्वभाव होने की बात को सच्चे दिल से स्वीकार करने का मतलब पहले यह जानना है कि तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो। इसका मतलब यह भी है कि विभिन्न परिस्थितियों में प्रकट होने वाले अलग-अलग भ्रष्ट स्वभावों को परमेश्वर द्वारा वर्णित विभिन्न स्तरों पर खुद से जोड़ने में सक्षम होना और फिर यह भी स्वीकार करना कि तुम विभिन्न अवस्थाओं में कौन से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हो। क्या ये कुछ ठोस अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? (हाँ।) लेकिन मसीह-विरोधियों के पास ये चीजें नहीं होतीं, क्योंकि वे परमेश्वर के वचनों को स्वीकार नहीं करते—बल्कि वे उनसे घृणा करते हैं। यही कारण है कि वे केवल परमेश्वर के उन वचनों को सुनते हैं जो मानवजाति के भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करते हैं और बस इतना ही; वे कभी भी खुद पर विचार नहीं करते, खुद का विश्लेषण नहीं करते या अपने दिल की गहराई में इन वचनों से अपनी तुलना नहीं करते। दूसरे शब्दों में, वे परमेश्वर के इन वचनों के अनुसार अपनी विभिन्न अभिव्यक्तियों, मंशाओं विचारों और दृष्टिकोणों का विश्लेषण और तुलना नहीं करते हैं; वे ये काम बिल्कुल नहीं करते हैं। उनके द्वारा इन ये न करने का क्या मतलब है? यह दर्शाता है कि उनके लिए, परमेश्वर द्वारा बोले गए ये वचन बस बातों को कहने का एक और तरीका हैं, एक अलग दृष्टिकोण है—वे बस मनुष्य के स्वभाव, व्यक्तित्व, अभ्यास और सार का वर्णन करने का एक अलग तरीका हैं और किसी भी तरह मनुष्य के स्वभाव को परिभाषित करने के मानदंड नहीं हैं। यह इस बात को व्यक्त करने का सटीक तरीका है कि कैसे मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते हैं। मसीह-विरोधियों के मन में परमेश्वर द्वारा मानवजाति के विभिन्न भ्रष्ट स्वभावों के प्रकटीकरण के बारे में एक अनुमानित समझ होती है, लेकिन अपने दिल की गहराई में वे इसे कभी स्वीकार नहीं करते। चूँकि वे इसे स्वीकार नहीं करते, तो जब उनके साथ कुछ होता है, तो क्या वे अपने स्वभाव को नियंत्रित करने, अपने अभ्यास को बदलने और अपने गलत दृष्टिकोणों को ठीक करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग करने में सक्षम होते हैं? बिल्कुल भी नहीं। मसीह-विरोधी सत्य स्वीकार नहीं करते, जिसका मतलब है कि वे यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है। उदाहरण के रूप में अहंकार को ही लेते हैं—इस स्वभाव को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचन कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बात करते हैं जिनसे यह मनुष्य में व्यक्त और प्रकट होता है। जो व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और यह मानता है कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वह परमेश्वर के इन वचनों के मुकाबले में अपने व्यवहार और स्वभाव को तोलेगा। वह बार-बार इन बातों को तोलेगा और फिर स्वीकार करेगा : “मेरा स्वभाव घमंडी है। यही वह स्वभाव है जिसे मैंने इस कार्य को करते समय प्रकट किया था। मेरे ये विचार, कार्य और रवैया घमंडी है। दूसरों के साथ पेश आने, अपना कार्य करने और अपना कर्तव्य निभाने के मेरे ये सारे तरीके घमंड से भरे हुए हैं।” क्या यह इस बात को स्वीकार करना नहीं है कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं? (हाँ।) वे परमेश्वर के वचनों को मानक के रूप में देखते हैं और अपने व्यवहार से तुलना करने के लिए इसका उपयोग करते हैं और जब उन्हें इनमें कोई संबंध मिलता है, तो वे अनजाने में स्वीकार कर लेते हैं कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, परमेश्वर जो कुछ कहता है वह सत्य है और बिल्कुल झूठ नहीं है। फिलहाल, हम इस बारे में बात नहीं करेंगे कि क्या लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकार करने के बाद इसे हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों का उपयोग कर सकते हैं या नहीं। सबसे पहले, चलो इस बारे में बात करते हैं कि क्या लोग यह स्वीकार करते हैं कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है या नहीं। जब स्वीकार करने की बात आती है, तो अधिकांश लोग जिनके पास तर्क-शक्ति, अंतरात्मा और सामान्य सोच-समझ होती है, वे परमेश्वर के वचन से प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त कर सकते हैं और फिर, वे अनजाने में परमेश्वर के वचनों को स्वीकार कर लेते हैं और “आमीन” कहते हैं और स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। इस प्रकार वे यह भी स्वीकार करते हैं कि वे भ्रष्ट स्वभाव वाले भ्रष्ट मनुष्य हैं और परमेश्वर के सामने झुकते हैं। एक बार जब वे यह स्वीकार कर लेते हैं कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, तो वे परमेश्वर, सत्य और विशेष रूप से काट-छाँट किए जाने के प्रति एक सही, उचित रवैया रखेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि यह स्वीकार करते हुए कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे अनजाने में और अवचेतन रूप से इस काट-छाँट के प्रति दिल से समर्पित हो जाते हैं और इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो चाहते हैं कि दूसरे लोग काट-छाँट के माध्यम से उन्हें नियंत्रित करें और अनुशासित करें और बहुत स्वाभाविक रूप से काट-छाँट के प्रति सकारात्मक भावनाएँ पैदा करते हैं और उनका इसके प्रति बहुत सकारात्मक, सक्रिय रवैया होता है। ये सामान्य लोग होते हैं। केवल मसीह-विरोधी ही असामान्य लोग होते हैं; ऐसे लोग परमेश्वर के वचनों को स्वीकार नहीं करते, अक्सर उन्हें तिरस्कार के साथ नकार देते हैं और अपने दिल में उनका विरोध करते हैं, उनकी आलोचना और उनकी निंदा करते हैं। इसलिए, उनका परमेश्वर द्वारा मनुष्यों के भ्रष्ट स्वभाव के प्रकटीकरण और निरूपण के प्रति भी वही रवैया होता है। यह रवैया कैसा होता है? उदाहरण के लिए हम इस बात को लेते हैं कि परमेश्वर कहता है कि लोगों का स्वभाव घमंडी होता है और वह इसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में बात करता है। जब मसीह-विरोधी इन विशिष्ट अभिव्यक्तियों के बारे में सुनते हैं, तो वे केवल इसे स्वीकार करने से सहमत ही नहीं होते, बल्कि परमेश्वर द्वारा बताई गई इन विशिष्ट अभिव्यक्तियों का तिरस्कार करने तक पहुँच जाते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि वे शैतान के तर्क के पीछे चलते हैं, अर्थात सत्य और सकारात्मक चीजों के प्रति शैतान के रवैये का अनुसरण करते हैं। वे कहते हैं, “तुम इसे अहंकार कहते हो, लेकिन जो लोग सक्षम होते हैं, उनमें से कौन ऐसा है जो दिखावा नहीं करता है? जिन लोगों में अगुआई की प्रतिभा होती है, उनमें से कौन ऐसा है जो रौब जमाते हुए बात नहीं करता है? जिन लोगों की कोई हैसियत है, उनमें से कौन है जो थोड़ा बहुत दिखावटी नहीं है? इनमें से कोई भी बड़ी बात नहीं है। ये सभी चीजें गैर-विश्वासियों की दुनिया में पूरी तरह से सामान्य मानी जाती हैं, लेकिन यहाँ तुम लोग राई का पहाड़ बना रहे हो। इसके अलावा, क्या दूसरों से चर्चा किए बिना कोई कदम उठाने को वास्तव में घमंड माना जाता है? क्या यह सचमुच खुद के कानून के अनुसार चलने जैसा है? जो लोग सक्षम होते हैं, उन्हें ही फैसले लेने चाहिए, और शक्ति को एकाधिकार में रखने की क्षमता होना योग्यता कहलाता है। तुम जैसे आम लोगों के साथ इन बातों पर चर्चा करने का क्या फायदा है? तुम लोगों को क्या पता है? इसलिए, मैं कोई घमंडी नहीं हूँ, मैं तो सिर्फ सक्षम और योग्य हूँ। इसे अगुआई की क्षमता होना कहते हैं और यह एक पैदाइशी प्रतिभा है। मेरे पास इतनी योग्यता है कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ। चाहे जैसे भी हालात हों या चाहे मैं किसी भी समूह में हूँ, मैं जिम्मेदारी ले सकता हूँ—यह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति होने की निशानी है! प्रतिभाशाली व्यक्तियों को दबाया नहीं जाना चाहिए और न ही उन्हें उजागर किया जाना चाहिए। इसके बजाय, चाहे वे किसी भी समूह में क्यों न हों, उनकी सिफारिश की जानी चाहिए, उनका उन्नयन किया जाना चाहिए और उन्हें महत्वपूर्ण भूमिकाएँ दी जानी चाहिए! चूँकि वे अगुआई की क्षमता वाले सक्षम, प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं, इसलिए उनमें एक अगुआ, एक प्रमुख वाला आचरण होना चाहिए। अगर वे इन चीजों को दफना देते हैं, तो क्या यह दिखावा करना नहीं होगा?” वे इस विकृत सूझ-बूझ और पाखंडों का उपयोग परमेश्वर द्वारा उजागर किए गए घमंडी स्वभाव का न्याय और निंदा करने के लिए करते हैं, इसलिए चाहे तुम कुछ भी कहो, वे कभी भी परमेश्वर द्वारा वर्णित और परिभाषित भ्रष्ट स्वभावों की विभिन्न अभिव्यक्तियों को स्वीकार नहीं करेंगे। वे सोचते हैं, “परमेश्वर ने जो कुछ कहा है, वह बस इन मामलों के बारे में बात करने का एक तरीका है। यह काफी सकारात्मक, रूढ़िवादी और पारंपरिक है, लेकिन इसे सत्य के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। यह केवल कुछ लोगों के लिए ही उपयुक्त है। उदाहरण के लिए, कुछ लोग काफी निष्कपट होते हैं और उनके पास कोई प्रतिभा नहीं होती, न ही वे बहुत सक्षम या चालाक होते हैं और न ही उनमें अगुआई की कोई क्षमता होती है। अगर उनके पास कोई उपयुक्त साथी न हो, तो उन्हें कोई भी कार्य करते समय दूसरों से परामर्श करना पड़ता है और अगर वे ऐसा न करें, तो अपने कार्य की जिम्मेदारी नहीं उठा पाते—यही वह व्यक्ति है जिस के लिए परमेश्वर के वचन उपयुक्त होते हैं।” इस तरह के सभी तर्क शैतानी विधर्म और झूठी धारणाएँ होते हैं।
मसीह-विरोधी कभी भी यह नहीं मानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इसलिए जब भी वे इन्हें सुनते हैं, तो वे बस बेमन से ऐसा कर रहे होते हैं; वे फरीसियों की तरह परमेश्वर के वचनों का उपयोग दिखावे के लिए करते हैं। वे इन्हें अपने दिल की गहराई से स्वीकार नहीं करते हैं, न ही परमेश्वर के वचनों को अपना जीवन और अपने अभ्यास का लक्ष्य बनाते हैं। यही कारण है कि जब मसीह-विरोधी कोई गलती करते हैं और तुम इसके लिए उनकी काट-छाँट कर उन्हें उजागर करते हो, तो वे कभी भी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि उन्होंने कुछ गलत किया है और न ही जब तुम उस मामले में उनके द्वारा प्रकट किए गए स्वभाव और सार के कारण उनकी काट-छाँट करोगे तो वे इसे स्वीकार करेंगे। जिस तरह वे यह स्वीकार करने से इंकार करते हैं कि उन्होंने कुछ गलत किया है, उसी तरह जब मसीह-विरोधी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, तो उनके पास हमेशा कोई न कोई कारण, कोई बहाना, कोई स्पष्टीकरण जरूर होता है जिससे वे इस बात को नकार सकें कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है। उदाहरण के लिए, जब वे किसी निश्चित मामले में अहंकारी स्वभाव प्रकट करते हैं, तो वे कह देते हैं कि वे जल्दी में थे, उनके शब्दों का चयन सही नहीं था और उन्होंने थोड़ी ऊँची आवाज में बात की थी। जब उन्हें कोई कहता है कि वे किसी अन्य मामले में धोखेबाजी कर रहे थे और खुल कर बात नहीं कर रहे थे, तो वे कहते हैं कि ज्यादातर लोगों में काबिलियत ही नहीं होती, इसलिए अगर वे बता भी देते कि असल में क्या चल रहा है तो तब भी दूसरे लोग उन्हें समझ ही नहीं पाते और उनकी बातों का गलत मतलब निकालते और यही कारण था कि वे खुल कर बात नहीं कर रहे थे। चाहे वे कोई भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करें, उनके पास हमेशा ही बहाने और स्पष्टीकरण जरूर होते हैं। कुल मिलाकर, चाहे वे कोई भी भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करें, चाहे वह कितना भी स्पष्ट या गंभीर क्यों न हो, वे कभी भी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि यह एक भ्रष्ट स्वभाव है। मसीह-विरोधी अक्सर झूठ बोलते हैं, लोगों के सामने कुछ कहते हैं और उनकी पीठ पीछे कुछ और कहते हैं, कोई भी यह बता नहीं सकता और कोई नहीं जानता कि वे कब सच बोल रहे हैं और कब झूठ। हालाँकि, वे कभी यह स्वीकार नहीं करेंगे कि वे एक छलपूर्ण व्यक्ति हैं, और वे यह भी कभी नहीं मानेंगे कि वे ईमानदार नहीं हैं। इसके विपरीत, वे अक्सर खुद को सही ठहराते हैं और यह समझाते हैं कि वे कितने निष्कपट हैं, कि वे दूसरों के साथ कितने ईमानदार हैं और जब किसी दूसरे व्यक्ति पर कोई मुसीबत आती है, तो वे अपने दयालुता के कारण उनकी मदद करने की इच्छा रखते हैं। मसीह-विरोधी न केवल यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, बल्कि वे हमेशा खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करते रहते हैं और इस बारे में शेखी बघारते हैं कि वे एक बहुत अच्छे और दयालु व्यक्ति हैं। वे न केवल यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, बल्कि साथ ही वे यह भी शेखी बघारते हैं कि वे लोगों पर कार्य करने में कितने महान हैं, वे लोगों का अनुग्रह प्राप्त करने और लोगों के दिलों को जीतने में कितने अच्छे हैं। वे इस बारे में शेखी बघारते हैं कि जब लोगों के बीच काम करने और बोलने की बात आती है तो वे कितने रणनीतिक और सक्षम हैं और इस बारे में कि कोई भी कोई भी उनसे अच्छा नहीं बन सकता और उनसे आगे नहीं निकल सकता और इस बारे में भी कि उनके इस कार्य के लिए कोई भी उनसे अधिक सक्षम नहीं है। जब एक मसीह-विरोधी थोड़ी बहुत कीमत चुकाता है, थोड़े बहुत उच्च सिद्धांतों और विचारों का प्रचार करने में सक्षम होता है और थोड़े समय के लिए कुछ ऐसा कुछ करता है जिससे लोग गुमराह हो जाते हैं और अधिकांश लोग उसका सम्मान करने लगते हैं, तो वह सोचने लगता है कि उसने सफलतापूर्वक अपने भ्रष्ट स्वभाव को छुपा लिया है और वह लोगों को अपने भ्रष्ट स्वभाव को नजरअंदाज करने पर मजबूर करने में कामयाब हो गया है। इसलिए मसीह-विरोधियों की इन अभिव्यक्तियों और इस प्रकार की समझ और रवैये के आधार पर, वे अपने भ्रष्ट स्वभाव को आश्रय देते हैं जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इसका विरोध और प्रतिरोध करना और अपनी छवि को साफ करने के लिए हर संभव प्रयास करना होती है। कलीसिया के कार्य को जो नुकसान उन्होंने पहुँचाया है, उसे अस्वीकारने करने के अलावा, वे इस मामले में उनके द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभाव और अपने उस भ्रष्ट स्वभाव के कारण मजबूर होकर की गई गलती को भी अस्वीकार कर देते हैं। मसीह-विरोधियों की इस अभिव्यक्ति और सार को ध्यान में रखते हुए, क्या उनके लिए स्वभावगत परिवर्तन प्राप्त करना संभव है? (संभव नहीं है।)
मेरा सामना कुछ ऐसे मसीह-विरोधियों से हुआ है जो अपने कार्य में गलतियाँ करते हैं, जो आलसी हैं, जो अपना कार्य नहीं करते और कुछ विशिष्ट कार्यों की अनदेखी करते हैं, जबकि वे अभी भी लोगों पर हुक्म चलाते हैं, लापरवाही से गलत कार्य करते हैं और अपने तरीके से कार्य करते हैं। जब ऐसे मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो बाहर-बाहर से तो वे बहुत आज्ञाकारी दिखाई देते हैं, लेकिन परदे के पीछे वे बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं करते हैं। उनके पश्चाताप न करने वाले रवैये को देखकर, उन्होंने काट-छाँट किए जाने को जरा भी स्वीकार नहीं किया है। उनके द्वारा काट-छाँट किए जाने को स्वीकार न करने से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने कभी भी इस बात की जाँच नहीं की है कि उनके अंदर कौन-कौन से भ्रष्ट स्वभाव उजागर हुए हैं। इसके बजाय, काट-छाँट किए जाने के बाद भी वे अपनी मर्जी से कार्य करना जारी रखते हैं, अपने तरीके से कार्य करते हैं, छलपूर्ण चालाकी करते हैं, अपने से ऊपर और नीचे वाले लोगों को धोखा देते हैं, खुद के स्वतंत्र राज्य स्थापित करते हैं और विशेष विशेषाधिकारों का आनंद लेते हैं और बिल्कुल नहीं बदलते। वे बिल्कुल भी क्यों नहीं बदलते? दरअसल इसका कारण यह है कि मसीह-विरोधी जरा भी यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, न ही वे सत्य को स्वीकार करते हैं; इसलिए, वे सत्ता पाने के अवसर को अपने हाथ से जाने नहीं देते, उस सत्ता का अधिक से अधिक लाभ उठाते हैं और फिर उस समय का लाभ उठाकर अपनी मर्जी से जो चाहे करते हैं, पूरी कोशिश करते हैंकि बुरे कार्य करते हैं, परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालते हैं और परमेश्वर के घर की सामान्य व्यवस्था को कमजोर बनाते हैं। परमेश्वर के घर से सभी प्रकार की भौतिक सुविधाओं का आनंद लेते हुए, वे कोई भी अच्छा कार्य नहीं करते हैं। कुछ सतही कार्य करने के अलावा वे चोरी-छिपे क्या करते हैं? वे सभाएँ आयोजित करते हैं, शब्दों और सिद्धांतों का प्रचार करते हैं, यहाँ तक कि उन मामलों में भी दखल देते हैं जिनका उनसे कोई संबंध नहीं होता—इसके अलावा, वे बस लोगों को आदेश देते फिरते हैं। वे ऊपरवाले द्वारा उन्हें सौंपे गए किसी भी विशिष्ट कार्य को अंजाम नहीं देते और न ही वे विस्तृत दिशा-निर्देश, निगरानी या मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होते हैं। वे बस ऊपरवाले की तरफ से लोगों को आदेश देते रहते हैं और कभी-कभार, जब उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता, तो वे कुछ कार्य करवाने के लिए खुद कार्य स्थल पर आ जाते हैं और कुछ दिशा-निर्देश देते हैं। यह सिर्फ एक अस्थायी उत्साह का प्रदर्शन होता है और इसके बाद वे कहीं भी नजर नहीं आते। जब वे किसी को पदोन्नत करते हैं या किसी को पद पर नियुक्त करते हैं, तो कोई भी यह नहीं कह सकता कि वह व्यक्ति अच्छा नहीं है या उसका विरोध नहीं कर सकता। मसीह-विरोधी कभी भी उस व्यक्ति के कार्य की जाँच या निगरानी नहीं करते। जिस व्यक्ति को उन्होंने तरक्की दी है या नियुक्त किया है, चाहे वह कितने भी बुरे कार्य क्यों न करे, वे किसी और को उन्हें उजागर करने की अनुमति नहीं देते, कोई उसे बर्खास्त नहीं कर सकता और किसी को भी उसकी रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं होती। जो कोई भी उस व्यक्ति की रिपोर्ट करता है वह उनका विरोधी बन जाता है। जिस व्यक्ति का वे उपयोग कर रहे हैं चाहे वह कलीसिया के कार्य को कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न पहुँचाए, चाहे वह उसमें कितनी भी बड़ी गड़बड़ी क्यों न पैदा करे, मसीह-विरोधी उसे बचाने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे और अगर वे ऐसा करने में असफल रहते हैं, तो वे जल्दी से उस व्यक्ति से अलग हो जाएँगे और तुरंत खुद को जिम्मेदारी से मुक्त कर लेंगे। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, चाहे वह दूसरों के सामने हो या उनके पीठ पीछे, उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता। वे छद्म-विश्वासी, राक्षस और जिंदा शैतान हैं और फिर भी वे बेशर्मी के साथ अपने लिए कोई पद चाहते हैं और उस पद के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं; वे परमेश्वर के घर से मुफ्त में लाभ उठाने वाले परजीवी हैं। उनमें से कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं कि जब उनकी काट-छाँट की जाती है और वे देखते हैं कि वे अपनी हैसियत को बरकरार नहीं रख पाएँगे, तो वे हतोत्साहित, निराश और उदास हो जाते हैं। वे उदास क्यों हो जाते हैं? वे हतोत्साहित क्यों हो जाते हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे अपनी हैसियत को बरकरार नहीं रख पाते, विशेषाधिकारों और विशेष सुविधाओं का आनंद लेने के उनके अवसर समाप्त हो चुके होते हैं, अब कोई उनका सम्मान नहीं करता और सत्ता के साथ खेलने के उनके दिन खत्म हो चुके होते हैं। उन्हें अपने लिए सब कुछ खुद करना शुरू करना पड़ेगा—उन्हें अब बस वहाँ खड़े रहकर आदेश जारी करने का मौका नहीं मिलेगा। वे अपने भ्रष्ट स्वभाव के कारण उत्पन्न हुए बुरे परिणामों के लिए न तो पछताते हैं और न ही परेशान होते हैं। बल्कि वे परेशान होते हैं, आँसू बहाते हैं और उन्हें नुकसान का एहसास होता है क्योंकि वे अब अपनी हैसियत के लाभों का आनंद नहीं ले पाते। कुछ लोग तो ऐसे भी होते हैं जो बर्खास्त किए जाने के बाद बेशर्मी से बार-बार दूसरा मौका मांगते रहते हैं। मुझे बताओ कि क्या ऐसे लोगों को एक और मौका दिया जा सकता है? वे उस मौके का क्या करना चाहते हैं? कलीसिया पर निर्भर रहना, मुफ्त में लाभ उठाना और लापरवाही से कार्य करना। अगर उन्हें एक और मौका दे भी दिया जाए तो क्या वे अपने भ्रष्ट स्वभाव को जान पाएँगे? क्या वे खुद को जान पाएँगे? (नहीं।) अगर उन्हें एक और मौका मिले तो क्या उन्हें थोड़ी बहुत शर्मिंदगी महसूस होगी? क्या उनका चरित्र कुछ बदलेगा? अगर उन्हें एक और मौका मिले तो क्या वे सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना शुरू कर देंगे और वे अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास नहीं करेंगे? (ऐसा नहीं होगा।) वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे—क्या वे बर्बाद नहीं हो गए हैं? अगर तुम लोगों की काट-छाँट की गई होती और यह इतना गंभीर मामला होता कि ऊपरवाले के पास तुम्हें बर्खास्त करने के अलावा कोई और विकल्प न होता, तो तुम लोग क्या सोचते? (यह कि मुझे वास्तव में बर्खास्त किया जाना चाहिए, क्योंकि मेरी प्रकृति बहुत दुष्ट है, मैंने बहुत सारे ऐसे कार्य किए हैं जो सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं, मैंने बहुत बुराई की है और मैंने कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचाया है। मुझे बर्खास्त किया जाना चाहिए।) एक ऐसा व्यक्ति जिसमें सूझ-बूझ है वह पहले विचार करेगा, “आखिर मैंने इस बार क्या किया? मेरी काट-छाँट क्यों की गई? क्या इन कार्यों को करने की वजह से मेरी काट-छाँट करनी सही थी और उस व्यक्ति ने मेरी काट-छाँट करते समय जो बातें कहीं वे सचमुच सही थीं? मुझे उन्हें कैसे स्वीकार करना चाहिए? मुझे इस काट-छाँट के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए?” इसके बाद वे इस बात की जाँच करेंगे कि उन्होंने वास्तव में क्या किया था, क्या उनके कार्यों में मानव इच्छा की कोई मिलावट थी, क्या उनमें अंतरात्मा और सूझ-बूझ थी, क्या उन्होंने जो कुछ भी किया वह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप था, उन्होंने जो कुछ भी किया वह किस हद तक परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप था और उन्होंने कितने कार्य अपनी इच्छा के अनुसार किए थे। एक सूझ-बूझ रखने वाले व्यक्ति को इन पहलुओं की जाँच करनी चाहिए, न कि इस बात पर हंगामा करना चाहिए कि क्या उसने अपनी हैसियत खो दी है, क्या परमेश्वर का घर उसके प्रति निष्पक्ष रहा है या नहीं, अगर उसके पास कोई हैसियत नहीं होगी तो लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे या उसके लिए किस प्रकार की संभावनाएँ और मंजिलें उपलब्ध होंगी। एक सूझ-बूझ रखने वाला व्यक्ति कभी भी ऐसी बातों को लेकर हंगामा नहीं करेगा।
कुछ मसीह-विरोधी कितने बेशर्म होते हैं? अगर, इन मसीह-विरोधियों को बर्खास्त किए जाने के बाद सभी भाई और बहन अब उनके प्रति उतना आदरभाव नहीं रखते और अगर वे उनके प्रति उतने नरम या दयालु नहीं होते और इसके बजाय ठंडे होते हैं और उन्हें अनदेखा करने लगते हैं तो ये मसीह-विरोधी इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते। वे इन बातों को लेकर इतने संवेदनशील क्यों होते हैं, जबकि अपने भ्रष्ट स्वभाव के प्रति वे इतने संवेदनशील नहीं होते हैं? क्या यह उनकी प्रकृति का हिस्सा है? क्या उनमें थोड़ी सी भी गरिमा है? क्या उन्हें शर्म आती है? (नहीं।) मानवता की दो सबसे अनमोल चीजें शर्म और ईमानदारी हैं। मसीह-विरोधियों में इनमें से किसी एक का भी कोई अंश नहीं होता। मसीह-विरोधी बेशर्म होते हैं और चाहे वे कितने भी भ्रष्ट स्वभाव उजागर करें या कितने भी बुरे कार्य करें, उन्हें बिल्कुल भी कोई एहसास नहीं होता है, उन्हें कोई अपराधबोध महसूस नहीं होता है, फिर भी वे परमेश्वर के घर में टिके रहना चाहते हैं और वहाँ मुफ़्तखोरी करना चाहते हैं। जब उनकी काट-छाँट की जाती है और उन्हें उजागर किया जाता है, जब उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है और उनकी कोई भी हैसियत नहीं रहती, तब भी वे चाहते हैं कि भाई और बहन उनका आदरपूर्वक और विनम्रतापूर्वक सम्मान करें। क्या यह अनुचित नहीं है? क्या मसीह-विरोधियों की यह अभिव्यक्ति तुम लोगों को घृणास्पद लगती है? (हाँ।) जब भी किसी वयक्ति की काट-छाँट की जाती है तो उन्हें अपने लिए नुकसान का एहसास होता है, विशेषकर तब जब उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए और उनकी हैसियत छीन ली जाए। उन्हें लगता है कि उन्हें एक अजीब स्थिति में डाल दिया गया है और दूसरों के सामने उन्हें शर्मिंदा किया गया है और उन्हें किसी का भी सामना करने में बहुत शर्म आती है। हालाँकि, जो व्यक्ति शर्म करना जानता है, वह कभी भी टेढ़े-मेढ़े तर्क नहीं देगा। टेढ़े-मेढ़े तर्क नहीं देने का क्या मतलब है? इसका मतलब किसी चीज के बारे में गलत तरीके से सोचे-समझे और बात किए बिना और इसके बजाय ईमानदारी से अपनी गलतियों को स्वीकार करके और मामले का उचित और तर्कसंगत तरीके से सामना करके हर चीज का सही तरीके से सामना करने में सक्षम होना है। उचित और तर्कसंगत का क्या मतलब है? इसका यह मतलब है कि, चूँकि किसी चीज के कारण तुम्हारी काट-छाँट की गई है, इसलिए तुमने जो कुछ भी किया है उसमें जरूर कोई समस्या होगी—तुम्हारे भ्रष्ट स्वभाव को एक तरफ रखते हुए, चलो बस इतना ही मान लेते हैं कि अगर तुमने इस मामले में कोई गड़बड़ी की है, तो इसके लिए निश्चित रूप से तुम्हारी कुछ जिम्मेदारी है; चूँकि अब तुम्हारी भी जिम्मेदारी है, तो तुम्हें यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेनी चाहिए और स्वीकार करना चाहिए कि तुमने ही यह किया है। एक बार जब तुम इसे स्वीकार कर लो, तो फिर तुम्हें अपने खुद की जाँच करनी चाहिए और पूछना चाहिए : “मैंने इसमें कौन सा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया था? अगर मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव से प्रेरित नहीं था, तो क्या मेरे कार्य मानवीय इच्छा से मिश्रित थे? क्या यह मूर्खता का परिणाम था? क्या इसका मेरे लक्ष्य, मेरे द्वारा अपनाए गए मार्ग से कोई संबंध था?” अगर तुम इस प्रकार से खुद की जाँच करने में सक्षम हो तो इसका यह मतलब है कि तुम्हारे अंदर तर्क शक्ति है, तुम्हें पता हैं कि शर्म क्या होती है, तुम चीजों को उचित, वस्तुपरक रूप से और ऐसे तरीके से देखते हो जो तथ्यों के अनुरूप है। यही तो वो चीज है जिसकी मसीह-विरोधियों में कमी होती है। जब उनकी काट-छाँट की जा रही होती है, तो उनके मन में सबसे पहला ख्याल यह आता है कि, “तुम इतने सारे लोगों के सामने मेरे जैसे एक सम्मानित अगुआ की इतनी बेरहमी से काट-छाँट कैसे कर सकते हो और यहाँ तक कि तुमने मेरे शर्मनाक रहस्य को भी उजागर कर दिया? एक अगुआ के रूप में मेरी प्रतिष्ठा कहाँ गई? मेरी काट-छाँट करके क्या तुमने इसे नष्ट नहीं कर दिया है? अब से कौन मेरी बातें सुनेगा? अगर कोई मेरी बात ही नहीं सुनेगा, तो एक अगुआ के रूप में मेरी कोई हैसियत कैसे हो सकती है? क्या इससे मैं सिर्फ एक दिखावटी व्यक्ति बन कर नहीं रह जाऊँगा? फिर मैं अपनी हैसियत के लाभों का आनंद कैसे उठाऊँगा? क्या मैं अब भाइयों और बहनों द्वारा प्रदान की गई वस्तुओं का आनंद नहीं ले पाऊँगा?” क्या यह विचार सही है? क्या यह सत्य के अनुरूप है? क्या यह उचित है? (नहीं।) इसे सूझ-बूझ से रहित होना और टेढ़े-मेढ़े तर्क देना कहते हैं। प्रतिष्ठा से तुम्हारा क्या मतलब है? एक अगुआ क्या होता है? निश्चित रूप से तुम भ्रष्टाचार से रहित तो नहीं हो? “तुम्हारे शर्मनाक रहस्य को उजागर करने” से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हारा यह शर्मनाक रहस्य क्या है? यह तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव है। तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव दूसरों जैसा ही है—यही तुम्हारा शर्मनाक रहस्य है। तुम में कुछ भी अलग नहीं है, तुम दूसरों से श्रेष्ठ नहीं हो। परमेश्वर के घर ने तुम में बस यह देखा कि तुम्हारे अंदर थोड़ी बहुत काबिलियत है और तुम कुछ कार्य कर सकते हो, इसलिए उसने तुम्हें तरक्की दी और तुम्हारा पालन-पोषण किया और तुम्हें कोई विशेष बोझ दिया, जिसे उठाना तुम्हारे लिए थोड़ा अधिक था। लेकिन इसका बिल्कुल भी यह मतलब नहीं है कि एक बार जब तुम्हें हैसियत मिल जाती है, तो फिर तुम्हारा भ्रष्ट स्वभाव समाप्त हो जाता है। और फिर भी मसीह-विरोधी इस बात पर अड़े रहते हैं और कहते हैं कि, “अब जबकि मेरी भी कुछ हैसियत है, तो इसलिए तुम्हें मेरी काट-छाँट नहीं करनी चाहिए, विशेष रूप से इतने सारे लोगों के सामने नहीं, क्योंकि इससे अधिकांश लोगों को मेरी वास्तविक स्थिति के बारे में पता चल जाएगा।” क्या यह एक टेढ़ा-मेढ़ा तर्क नहीं है? इस दृष्टिकोण को कहाँ लागू किया जा सकता है? समाज में, जब तुम किसी को उभारते हो, तो तुम्हें उनकी अत्यधिक प्रशंसा करनी होती है, जैसे मानो वे पूर्ण हों और उनके लिए एक पूर्णता की छवि स्थापित करनी होती है, जिसमें थोड़ी सी भी खामी न हो। क्या यह धोखा नहीं है? क्या परमेश्वर का घर ऐसा करेगा? (नहीं।) यह तो शैतान करता है और यही मसीह-विरोधी भी मांगते हैं। शैतान तर्कहीन होता है और मसीह-विरोधी भी इस मामले में तर्कहीन होते हैं। केवल इतना ही नहीं, बल्कि वे टेढ़े-मेढ़े तर्क भी देते हैं और अत्यधिक मांगें करते हैं। अपनी हैसियत की रक्षा करने के लिए, वे ऊपरवाले से अनुरोध करते हैं कि वह इस बात का ध्यान रखे कि उनकी किस प्रकार काट-छाँट की जाती है, किन अवसरों पर उनकी काट-छाँट की जाती है और उनके साथ किस प्रकार के लहजे का प्रयोग किया जाता है। क्या यह जरूरी है? वे भ्रष्ट लोग हैं और वे किसी वास्तविक और सत्य कारण के लिए ही काट-छाँट की जा रही है—ऐसे में किसी विशेष तरीके से इसे करने की क्या जरूरत है? क्या उन्हें उभारने से भाइयों और बहनों को नुकसान नहीं पहुँचेगा? जितने वे बुरे लोग हैं, उसे देखते हुए क्या उन्हें ऊपर उठाया जाना चाहिए और उनकी हैसियत की रक्षा की जानी चाहिए, ताकि वे अपने से नीचे के लोगों के साथ लापरवाही से गलत कार्य कर सकें और अपना खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकें? क्या यह भाइयों और बहनों के साथ उचित होगा? क्या यह उनके प्रति जिम्मेदारी दिखाना है? यह उनके प्रति जिम्मेदारी वाला रवैया नहीं है। इसलिए एक मसीह-विरोधी द्वारा बिना किसी शर्म के इस तरह से व्यवहार करना, इस तरह से सोचना और ऐसी मांगें करना उनके द्वारा विशुद्ध रूप से टेढ़े-मेढ़े तर्क देना और जानबूझकर परेशानी पैदा करना होता है। जब किसी मसीह-विरोधी की उसके द्वारा किए गए किसी गलत कार्य के लिए काट-छाँट की जाती है, तो वह यह स्वीकार नहीं करता कि उसका स्वभाव भ्रष्ट है, न ही वह इस बात की जाँच करता है कि किस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव ने उन्हें ऐसी चीज करने के लिए प्रेरित किया। ढ़ेर सारे टेढ़े-मेढ़े तर्क देने के बाद, वे न केवल खुद की जाँच करने से इनकार करते हैं, बल्कि जवाबी उपायों के बारे में भी सोचते हैं। “इसकी सूचना किसने दी? उपरवाले को किसने बताया? किसने अगुआओं को बताया कि मैंने ऐसा किया है? मुझे यह पता करना होगा कि वह कौन था और उसे सबक सिखाना होगा। मुझे उन्हें सभाओं के दौरान फटकारना होगा और दिखाना होगा कि मैं कितना प्रभावशाली हूँ।” जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो मसीह-विरोधी अपने बचाव के लिए, कोई रास्ता खोजने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे और यह सोचेंगे कि, “मैं इस बार लापरवाह था और मैंने अपना राज उजागर होने दिया, इसलिए मुझे अपनी पूरी कोशिश करनी होगी ताकि अगली बार ऐसा दोबारा न हो और मुझे ऊपरवाले और मेरे नीचे के भाइयों और बहनों को चकमा देने के लिए एक अलग तरीका अपनाना होगा, ताकि उनमें से कोई भी इसके बारे में न जान सके। जब मैं कोई सही कार्य करता हूँ, तो मुझे जल्दी से आगे बढ़कर उसका श्रेय लेना चाहिए, लेकिन जब मैं कोई गलती करता हूँ, तो मुझे जल्दी से इसकी जिम्मेदारी किसी और पर डालनी चाहिए।” क्या यह शर्मनाक बात नहीं है? यह बेहद शर्मनाक बात है! जब एक सामान्य व्यक्ति की काट-छाँट की जाती है, तो अंदर ही अंदर वे खुद से स्वीकार कर लेते हैं कि, “मैं अच्छा नहीं हूँ—मेरा भ्रष्ट स्वभाव है। अब कहने के लिए और कुछ नहीं बचा। मुझे आत्मचिंतन करना चाहिए।” वे चुपचाप यह संकल्प लेते हैं कि अगर वे इस प्रकार की स्थिति का फिर से सामना करेंगे तो वे परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार कार्य करेंगे। चाहे वे इसे हासिल कर सकें या न कर सकें, किसी भी स्थिति में, जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे इसे अपने दिल में तर्कसंगत तरीके से स्वीकार कर लेते हैं और उनकी तर्क शक्ति उन्हें बताती है कि उन्होंने सचमुच कुछ गलत किया है और यह कि चूँकि उनका स्वभाव भ्रष्ट है, इसलिए उन्हें इसे स्वीकार करना चाहिए। वे बिना किसी प्रतिरोध के दिल से समर्पण करते हैं और भले ही उन्हें थोड़ा-बहुत अन्याय महसूस हो, लेकिन उनका मुख्य रवैया सकारात्मक होता है। वे आत्मचिंतन कर सकते हैं, पछतावा महसूस कर सकते हैं और भविष्य में इस मामले में वही गलती न करने का संकल्प ले सकते हैं। दूसरी ओर, न केवल मसीह-विरोधी को कोई पश्चाताप महसूस नहीं होता है, बल्कि वे अपने दिल में प्रतिरोध भी दिखाते हैं और न केवल वे अपनी बुराई को छोड़ने में असमर्थ होते हैं, बल्कि वे आगे बढ़ने का कोई दूसरा रास्ता ढूँढ़ने की कोशिश भी करते हैं ताकि वे लापरवाही से गलत कार्य करते रहें और अपना दुष्ट व्यवहार जारी रख सकें। जब उनकी काट-छाँट की जाती है, तो वे अपने भ्रष्ट स्वभाव, अपने गलत कार्यों के स्रोत, अपने इरादों या उन विभिन्न दशाओं और दृष्टिकोणों की जाँच नहीं करते जो उनके भ्रष्ट स्वभाव के प्रकट होने पर उनके भीतर पैदा हुए थे। वे कभी भी इन चीजों की जाँच नहीं करते या इन पर विचार नहीं करते, न ही जब कोई अन्य उन्हें सुझाव, सलाह देता है या उन्हें उजागर करता है तो वे इसे स्वीकार करते हैं। इसके बजाय, वे अपने से ऊपर और नीचे के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न तरीकों, साधनों और रणनीतियों की तलाश में अपने प्रयासों को तेज़ कर देते हैं, ताकि वे अपनी हैसियत की रक्षा कर सकें। वे परमेश्वर के घर में गड़बड़ियाँ पैदा करने के अपने प्रयासों को तेज़ कर देते हैं और बुराई करने के लिए अपनी हैसियत का उपयोग करते हैं। उनकी हालत सचमुच पूरी तरह से निराशाजनक हैं!
जब मसीह-विरोधी किसी भी कार्य का कोई हिस्सा अपने हाथ में लेते हैं, तो वे बेपरवाह बन जाते हैं और वे बुरे लोगों और परमेश्वर के घर के कार्य में बाधा डालने वालों के प्रति अपनी आँखें मूंद लेते हैं या हो सकता है कि वे उनका संरक्षण भी करें उन्हें खुश भी करें और उनकी रक्षा भी करें। बर्खास्त होने के बाद, जब वे कोई दूसरा कर्तव्य निभाते हैं, तो क्या मसीह-विरोधी खुद को बदलता है? (नहीं।) ऐसा क्यों है? (उनके प्रकृति सार की समस्या के कारण।) इतनी बड़ी गलती करने के बाद भी वे पश्चाताप नहीं करते और उनके दिल में अभी भी धारणाएँ और शिकायतें होती हैं, तो उनके लिए क्या उनके लिए अपने किसी भी कर्तव्य के प्रति थोड़ा सा भी ईमानदार होना संभव है? वे अपने कर्तव्य में बिना किसी धारणा या शिकायतों के भी लापरवाही से गलतियाँ करते हैं, तो जब वे इन बातों को अपने मन में रख रहे होते हैं, तो क्या उनके लिए अपने कर्तव्य में ईमानदार होना संभव है? (नहीं।) और बिना ईमानदारी के, क्या वे लापरवाही करेंगे? क्या वे लापरवाही से गलत कार्य करेंगे? (हाँ करेंगे।) हो सकता है कि तुम में से कुछ लोग इससे सहमत न हों, इसलिए खुद देख लो और एक दिन आएगा जब तुम भी सहमत हो जाओगे। एक मसीह-विरोधी कभी नहीं बदल सकता, और चाहे उन्हें कहीं भी रखा जाए, वे हमेशा बुरे ही रहेंगे। जब सत्य का अनुसरण करने वाले किसी व्यक्ति की भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करने के कारण काट-छाँट की जाती है, तो उनमें कुछ परिवर्तन आते हैं। उनकी स्थिति बेहतर से बेहतर होती जाती है, उनका रवैया अधिक से अधिक सक्रिय हो जाता है, उनका दृष्टिकोण अधिक से अधिक सकारात्मक हो जाता है, उनके प्रयासों के लक्ष्य और दिशा अधिक से अधिक सही होते जाते हैं, उनका दिल परमेश्वर का भय मानने वाला बनता जाता है और उनकी मानवता अधिक से अधिक सम्माननीय लगने लगती है। इसके विपरीत, जितना अधिक एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है, उतना ही उनका आंतरिक आक्रोश बढ़ता जाता है, वे उतने ही अधिक सतर्क हो जाते हैं, वे अपने दिल में उतना ही अधिक अन्याय महसूस करते हैं और परमेश्वर के बारे में उनकी धारणाएँ, नफरत और शिकायतें उतनी ही बअधिक बढ़ती जाती हैं। जब उनकी काट-छाँट नहीं की जाती, तो उनका शरीर थोड़ा बहुत कीमत चुकाने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन जब उनकी अधिक काट-छाँट की जाती है, तो उनमें थोड़ी सी भी ईमानदारी नहीं होती है। वे सचमुच पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं! खुद ही देख लो—ऐसे लोग हमेशा दूसरों का समर्थन करने के लिए उपदेश देते रहते हैं, लेकिन वे खुद इस पर बिल्कुल भी अभ्यास नहीं करते या किसी प्रकार का प्रवेश नहीं करते—यह उनकी एक विशेषता है। उनकी एक और विशेषता यह है कि, चाहे वे कोई भी कार्य कर रहे हों, एक बार जब उनके पास हैसियत आ जाती है, तो वे कुछ पहल कर सकते हैं और कुछ उत्साह दिखा सकते हैं, लेकिन वे हमेशा बेपरवाह ही रहते हैं और अपने काम में लापरवाही से गलत कार्य करते रहते हैं। जब उनकी हैसियत छिन जाती है, तो उनके मुखौटे उतर जाते हैं, वे अपनी स्थिति को निराशाजनक मान लेते हैं और यहाँ तक कि निर्लज्जता और लापरवाही से कार्य करते हैं और किसी अराजक बर्बर की तरह कार्य करते हैं, जिसमें पूरी तरह से परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं होता। संपूर्ण मानवजाति में, इस प्रकार का व्यक्ति एक क्लासिक मसीह-विरोधी होता है। वे दूसरे लोगों की दशाओं का बहुत स्पष्ट और तार्किक विश्लेषण कर सकते हैं, वे यह ऐसे तरीके से कर सकते हैं जो समझने में आसान हो और तुम्हें यह एहसास कराते हैं कि उन्हें अपने बारे में इस प्रकार की समझ है। लेकिन जब वे कोई गलती करते हैं, जब वे एक भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करते हैं और तुम उन्हें उजागर करने और उनका विश्लेषण करने की कोशिश करते हो, तो देखना कि उनका रवैया कैसा होता है। वे इसे स्वीकार करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होंगे वे इसे अस्वीकार करने और अपना बचाव करने के लिए हरसंभव तरीके सोचेंगे, लेकिन इसे स्वीकार नहीं करेंगे। कोई भी उन्हें छू नहीं सकेगा और जो भी उन्हें छेड़ेगा या उनकी किसी समस्या को उजागर करेगा, उसे मुश्किल में डाल दिया जाएगा और उनके साथ एक दुश्मन जैसा व्यवहार किया जाएगा।
जब एक मसीह-विरोधी के पास हैसियत होती है, तो वे अपनी हैसियत की रक्षा करने के लिए थोड़ा बहुत कष्ट सहन कर लेते हैं और कुछ कीमत भी चुकाने के लिए तैयार हो जाते हैं। वे एक दिखावटी चेहरा भी लगा लेते हैं, जैसे मानो उनके दिल में दुनिया के हर व्यक्ति के लिए करुणा हो और वे सभी को बचाना चाहते हों—यह एक पाखंडी चेहरा होता है। हालाँकि, जैसे ही उनकी हैसियत चली जाती है, उनकी सारी कृपा और दया गायब हो जाती है, लेकिन फिर भी वे बीते समय में मिले समर्थन, सम्मान और विशेष ध्यान को बरकरार रखना चाहते हैं और उसका आनंद लेना चाहते हैं। वे तो बस हद से ज्यादा बेशर्म होते हैं! मसीह-विरोधी चाहे किसी भी समूह में हों, वे किसी को थोड़ी सी भी सहायता या नसीहत प्रदान नहीं करते हैं और फिर भी वे हर किसी के समर्थन और सम्मान का आनंद लेना चाहते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि और कौन स्वीकार करता है कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, एक मसीह-विरोधी कभी भी अपना मुँह नहीं खोलेगा और यह नहीं कहेगा कि उसका भी भ्रष्ट स्वभाव है या इस बारे में बात नहीं करेगा कि उसने अतीत में किस प्रकार का भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया है। वे कभी भी आत्म-विश्लेषण नहीं करते हैं और जब उन्हें मुश्किल स्थिति में डाला जाता है, तो वे केवल इतना ही कहते हैं कि, “हाँ, मैं एक राक्षस हूँ, मैं एक शैतान हूँ,” और बस। वे बस कुछ ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, खोखले शब्द कह देते हैं। अगर तुम उनसे पूछो, “तुम्हारे अंदर एक राक्षस और शैतान होने की कौन-कौन सी विशेष अभिव्यक्तियाँ और प्रकाशन हैं? जब तुम कोई कार्य करते हो, तो तुम्हारे कौन से मकसद और इरादे होते हैं?” तो फिर वे कुछ भी नहीं कहेंगे। क्या वे शैतान नहीं हैं? जब से बड़ा लाल अजगर सत्ता में आया है, उसने अनगिनत बुराइयाँ की हैं और अपने पूरे शासन के दौरान वह लगातार अपनी गलतियों को स्वीकार करता रहा है और उन्हें सुधारता रहा है, साथ ही साथ वह अपने लोगों के प्रति अपने दुर्व्यवहार को भी निरंतर बढ़ाता रहा है। जब तुम उसे अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए देखते हो, तो तुम्हें लग सकता है कि वह पश्चाताप करेगा और एक नई शुरुआत करेगा, कि वो अपनी गलती को स्वीकार करने का रवैया अपनाता है और शायद वह ऐसी गलतियाँ दोबारा नहीं करेगा। लेकिन इसके बाद जो कुछ घटित होता है और जिस प्रकार से मामले आगे बढ़ते हैं, उसे देखते हुए लगता है कि बड़े लाल अजगर द्वारा अपने गलत कार्यों को स्वीकार करना केवल अपनी छवि और हैसियत की रक्षा करने के लिए होता है, जिससे उसके लिए सत्ता पर काबिज रहने और अपने लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले और भी भयानक कार्य करने का मार्ग खुल जाता है। मसीह-विरोधी भी ऐसे ही होते हैं—उनका प्रकृति सार भी दुष्टात्मा, शैतान और बड़े लाल अजगर के समान ही होता है। वे अपना भेष बदलने में माहिर होते हैं और झूठ बोलने के आदी होते हैं; उनमें कोई शर्म नहीं होती, वे सत्य और सकारात्मक चीजों से विमुख होते हैं और सत्य को दूर से भी स्वीकार नहीं करते। इसके अलावा, वे सिर्फ अच्छी लगने वाली बातें ही करते हैं और हर तरह के बुरे कार्य करते हैं। भाइयों और बहनों के इर्द-गिर्द, मसीह-विरोधी अक्सर सही बातें ही करते हैं और ऐसे कार्य ही करते हैं जो सतही तौर पर सही लगते हैं, लेकिन जब उनसे परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार सख्ती से अभ्यास करने और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं को लागू करने के लिए कहा जाता है, तो वे ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे और इसके बजाय वे बिना किसी सुराग के गायब हो जाएँगे। अगर तुम उन्हें निगरानी, पर्यवेक्षण या प्रेरणा के बिना छोड़ दोगे, तो वे लापरवाही से गलत कार्य करेंगे और अपना खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित करेंगे। अपनी सत्ता पाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, वे किसी भी कठिनाई को सहन करेंगे और कोई भी कीमत चुकाएँगे। हम इससे देख सकते हैं कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार एक और प्रकार का होता है, जो यह है कि वे स्वार्थी और घृणित हैं। खुद के लिए कुछ करते समय थोड़ी सी कीमत चुकाने के अलावा, अगर उनसे बदले में कुछ भी लिए बिना भाइयों और बहनों, या परमेश्वर के घर के लिए कुछ करने या कहने को कहा जाए, तो क्या वे इतनी दयालुता दिखाएँगे? क्या वे इस बोझ को उठाएँगे? (नहीं।) तो जब उन चीजों की बात आती है जिन्हें ऊपरवाले ने उन्हें लागू करने के लिए कहा है, और जब उस कार्य की जाँच करने का समय आता है, तो उन्होंने उनमें से किसी को भी लागू नहीं किया होगा। ऐसा क्यों है? क्योंकि ऐसा करने के लिए उन्हें खुद को थकाना होगा और कष्ट उठाना पड़ेगा; उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी और वे शायद इससे ज्यादा लाभ नहीं उठा पाएँगे। इसलिए, वे ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे। अगर इससे अधिकांश लोगों को लाभ होगा, अगर अधिकांश लोग इससे फायदे उठाते, तो क्या एक मसीह-विरोधी इसके लिए कीमत चुकाने को तैयार होता? वे ऐसा नहीं करेंगे। अगर यह कोई ऐसा कार्य होता जिसे करने पर अधिकांश लोग उनका सम्मान करते और उन्हें याद करते और उनकी पूजा करते और उनकी प्रशंसा करते और अगर उन्हें इस अच्छे कार्य को करने के लिए आने वाली कई पीढ़ियों तक याद रखा जाता, तो फिर वे कैसा व्यवहार करेंगे? वे तुरंत इस कार्य को करना शुरू कर देते और किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में इसे अधिक खुशी से करते। क्या यह बेशर्मी नहीं है? यह दानव, शैतान सच में बेशर्म होता है। इसने अनगिनत बुराइयाँ की हुई हैं, फिर भी वो चाहता है कि हर कोई इसके प्रति गहराई से आभारी हो, लोग करीब से इसका अनुसरण करें और इसकी प्रशंसा करें। यह लोगों के साथ बहुत ज्यादा दुर्व्यवहार करता है, फिर भी उनसे अपनी प्रशंसा की उम्मीद रखता है। मसीह-विरोधी भी ऐसे ही होते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक मसीह-विरोधी ने कितने उपदेश सुने हैं या वे कितने सिद्धांतों को समझते हैं, अगर तुम उनसे बिना लापरवाही के कोई कार्य या कर्तव्य करने के लिए कहो, तो वे इसे नहीं कर पाएँगे। अगर तुम उनसे कहो कि वे अपना खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित न करें या लापरवाही से गलत कार्य न करें, तो वे ऐसा नहीं कर सकते। अगर तुम उनसे कहो कि वे अपनी हैसियत का लाभ न उठाएँ, आराम की लालसा न करें, हैसियत और विशेषाधिकारों का आनंद न लें, तो वे ऐसा नहीं कर सकते। अगर तुम उनसे कहो कि वे दूसरों को न सताएँ या झूठ न बोलें, तो वे ऐसा नहीं कर पाएँगे। अगर तुम उनसे कहो कि वे भेंटों का अपव्यय न करें और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करें, तो वे ऐसा नहीं कर पाएँगे। अगर तुम उनसे कहो कि वे खुद के लिए गवाही न दें, तो वे ऐसा कभी नहीं कर पाएँगे; अगर तुम उनसे कहो कि वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए बिना कुछ बदले में प्राप्त किए थोड़ी सी कीमत चुकाएँ या गुमनामी में थोड़ा बहुत कार्य करें, तो वे ऐसा कभी नहीं कर पाएँगे। वे फिर आखिर वे क्या कर सकते हैं? वे लापरवाही से गलत कार्य कर सकते हैं, अपना खुद का स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सकते हैं, खुद के लिए गवाही दे सकते हैं, भेंटों का अपव्यय कर सकते हैं, जीने के लिए कलीसिया पर निर्भर रह सकते हैं, दूसरों को सता सकते हैं, नारे लगा सकते हैं, सिद्धांत बता सकते हैं, लोगों को गुमराह करने के लिए विधर्म और झूठी धारणाएँ फैला सकते हैं और इसी तरह की अन्य चीजें कर सकते हैं—इन सब चीजों को करना उनके लिए आसान है। क्या तुम लोगों के आस-पास कोई ऐसा व्यक्ति है? जैसे ही उनके पास सत्ता आती है, जैसे ही उनके पास थोड़ी सी भी सत्ता आती है, वे परमेश्वर के घर के वित्तीय नियंत्रण को अपने हाथ में लेना चाहते हैं; चाहे वे कुछ भी खरीद रहे हों, वे उच्च गुणवत्ता वाली, महंगी और ब्रांडेड चीजें खरीदना चाहते हैं और वे इस बारे में किसी से चर्चा नहीं करते या किसी की कोई बात नहीं सुनते। जब उन्हें थोड़ी सी सत्ता मिलती है, वे इसका आनंद लेने लगते हैं। जब उन्हें थोड़ी सी सत्ता मिलती है, तो वे गुटबाजी करना चाहते हैं और अपने तरीके से सारे कार्य करना चाहते हैं और ऊपरवाले या किसी और को सुनने से इनकार कर देते हैं। जब उन्हें थोड़ी सी सत्ता मिलती है, तो वे खुद को परमेश्वर समझने लगते हैं और चाहते हैं कि लोग उनके हक में गवाही दें ताकि वे उनका समर्थन करें और वे अपना खुद का एक गुट, अपनी खुद की एक टोली बनाना चाहते हैं। जब उन्हें थोड़ी सी सत्ता मिलती है, तो वे भाइयों और बहनों को कसकर अपनी मुट्ठी में नियंत्रित रखना चाहते हैं। अगर परमेश्वर के घर के कार्य के लिए किसी को उनसे दूर स्थानांतरित करने की आवश्यकता हुई, तो ऐसा करना काफी कठिन होगा। इसके लिए उनकी मंजूरी चाहिए होगी और किसी को उनके साथ इस पर चर्चा करनी होगी और वे उस व्यक्ति से ऐसा रवैया स्वीकार नहीं करेंगे जिसे वे पसंद नहीं करते। वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया को पता चले कि उनके पास सत्ता और प्रभाव है और सबको उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें आदरपूर्वक मानना चाहिए। यह एक सामान्यतः मान्यता प्राप्त तथ्य है। एक मसीह-विरोधी कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि उसका भ्रष्ट स्वभाव है। तुम खुद यह चीज देख लो—देखो कि जो लोग यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है, क्या वे कुछ भी गलत कार्य करने और अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट करने के बाद पश्चाताप कर सकते हैं और वे किस दिशा में तरक्की करते हैं और अंत में किस प्रकार का मार्ग अपनाते हैं, अपने कर्तव्यों को निभाते समय और दूसरों से बातचीत करते समय वे कैसा व्यवहार करते हैं, वे रुतबे के प्रति कैसे कार्य करते हैं और उनके काम करने के तरीके और विधियाँ क्या हैं। क्या तुम लोग इसे पहचान पाओगे? अगर तुम इन बातों पर निष्कर्ष पर पहुँच सकते हो, तो तुम्हारे पास कुछ भेद पहचानने की क्षमता है।
ग. यह मानने से इनकार करना कि परमेश्वर के वचन सत्य और वह मानक हैं जिससे सभी चीजों को मापा जाता है
मसीह-विरोधियों द्वारा काट-छाँट किए जाने को अस्वीकार करने और कोई गलती करने पर पश्चाताप के रवैये की कमी के पीछे यह तीसरा कारण है : वह यह कि वे यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य और वह मानक हैं जिससे सभी चीजों को मापा जाता है। मैंने पिछले दो कारणों पर काफी विस्तार में संगति की है; यह वाला कारण अपने शाब्दिक अर्थ के संदर्भ में पहले दो कारणों से थोड़ा अलग है, लेकिन सार के आधार पर, वे मसीह-विरोधियों द्वारा यह मानने से इनकार करने से संबंधित हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इसीलिए हम इस पर छोटी और संक्षिप्त संगति कर सकते हैं। जब एक मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है, और तुम सत्य पर उनके साथ संगति करते हो, सत्य सिद्धांतों और कार्य करने के सिद्धांतों के बारे में बात करते हो, तो क्या वे इसे सुनने के बाद स्वीकार कर सकेंगे? (नहीं।) चाहे एक मसीह-विरोधी जब भी सत्य को सुने, उसके प्रति उनका रवैया हमेशा एक ही रहेगा—अर्थात उसकी निंदा और प्रतिरोध करना। सत्य सिद्धांत क्या हैं? वे इस बात को मापने का मानक हैं कि कोई कार्य कैसे किया जाए। जब कोई व्यक्ति कोई कार्य करता है और वह पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के सत्य के अनुरूप होता है, तो वह कार्य सिद्धांत पर आधारित होता है। इसी को सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना कहते हैं। अगर तुम्हारी संगति सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है, तो एक मसीह-विरोधी इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेगा; तुम्हारी संगति जितनी अधिक सकारात्मक, व्यावहारिक, उचित, सही और तथ्य पर आधारित होगी, वह एक मसीह-विरोधी के लिए उतनी ही अधिक अस्वीकार्य होगी। वे सत्य या तथ्यों को स्वीकार करने से इनकार करते हुए टेढ़े-मेढ़े तर्कों से तुम्हें जवाब देंगे। अगर तुम उनसे इस बारे में बात करोगे कि इस मामले में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए उन्हें किस प्रकार से कार्य करना चाहिए, तो वे इस पर बात करने की जगह तुम्हें बताएँगे कि उन्होंने कैसे कष्ट झेले हैं और कीमत चुकाई है; अगर तुम उनसे इस बारे में बात करोगे कि सत्य सिद्धांतों के अनुसार कैसे कार्य करना होता है, तो वे तुम्हें बताएँगे कि उन्होंने कितने रास्ते तय किए हैं, उन्होंने कितना कष्ट सहा है और उन्होंने कितनी बातें की हैं। अगर तुम उनसे इस बारे में बात करोगे कि एक ईमानदार व्यक्ति कैसे बनना है, एक ईमानदार और सच्चे दिल से कैसे कार्य करना है और अपना कर्तव्य निभाना है, तो वे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाएँगे और तुम्हें अनदेखा कर देंगे। जब भी वे कार्य करते हैं, तो वे सिर्फ रणनीतियों, योजनाओं और चालों पर ध्यान देते हैं। कुल मिलाकर, एक मसीह-विरोधी के पास अपने कार्यों के लिए अपने खुद के अनोखे सिद्धांत होते हैं और चाहे वे दूसरों की नजर में या ईश्वर की नजर में कितने भी गलत, निम्न, हास्यास्पद और बेतुके क्यों न हों, वे इन तरीकों और सिद्धांतों पर कभी थकान महसूस किए बिना अड़े रहते हैं। वे परमेश्वर के वचनों को सत्य सिद्धांतों के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे, न ही वे अपने सिद्धांतों को छोड़ेंगे, इसलिए चाहे तुम उनकी काट-छाँट करो, उन्हें उजागर करो या उन्हें बर्खास्त करो, उनके मापदंड, दृष्टिकोण और चीजों को मापने के नजरिए कभी भी नहीं बदलेंगे। इनमें से कुछ मानदंड मानव विज्ञान से आए हैं, कुछ ज्ञान से, कुछ पारंपरिक संस्कृति से और कुछ इस दुनिया के बुरे रुझानों से संबंधित हैं, लेकिन चाहे ये चीजें कितनी भी गलत क्यों न हों, एक मसीह-विरोधी उन्हें छोड़ नहीं सकता। समाज में जो भी बुरे रुझान और जो भी कहावतें और दृष्टिकोण लोकप्रिय हैं, वे उन्हें स्वीकार कर लेंगे लेकिन परमेश्वर के वचन या सत्य कभी भी सभी चीजों और घटनाओं को मापने के लिए, सब कुछ मापने के लिए उनके मानदंड नहीं होते हैं। जब वे परमेश्वर का अनुसरण कर रहे होते हैं और परमेश्वर के घर से मुफ्त में लाभ उठा रहे होते हैं, तब भी वे सत्य का इनकार और निंदा कर रहे होते हैं। सत्य का इनकार करते हुए और इसकी निंदा करते हुए, वे दुनिया भर के विधर्म और झूठी धारणाओं का आदर और प्रशंसा कर रहे होते हैं। वे केवल परमेश्वर के वचनों यानि सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते। मसीह-विरोधियों के इस सार को देखते हुए एक बात तो निश्चित है कि हालाँकि वे सभाओं में भाग लेते हैं, परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और अपनी आस्था के अनुसार कर्तव्य भी निभाते हैं लेकिन—उनका स्वभाव कभी भी नहीं बदलेगा, न ही उनका दृष्टिकोण बदलेगा, जो सांसारिक हैं और बुरे रुझानों वाले हैं। अगर तुम एक मसीह-विरोधी से जीवन प्रवेश या स्वभावगत परिवर्तन के बारे में बात करने के लिए कहोगे, तो तुम्हें आश्चर्य होगा कि उनके शब्द इतने विचित्र, घिनौने और अजीब क्यों लगते हैं। उनकी बातें किसी बाहरी व्यक्ति की तरह लगेंगी और वे बस एक उलझन भरे व्यक्ति हैं जिनमें आध्यात्मिक समझ का अभाव है, लेकिन वे आध्यात्मिक होने और जीवन को पाने का दिखावा करते हैं। यह वास्तव में बेहद घिनौना है! क्या कोई ऐसा व्यक्ति जिसने कभी भी परमेश्वर के वचनों को सत्य के रूप में स्वीकार नहीं किया या परमेश्वर के वचनों को अपना जीवन नहीं माना, वास्तविकता में जीवन को पा सकता है? यह एक मजाक है, है ना? तुम लोग अपने आसपास नजर डालो और देखो कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो बार-बार यह कहता रहता है कि : “फलाना मशहूर व्यक्ति ने यह कहा है; फलानी किताब में यह लिखा है; फलाना टीवी ड्रामा में यह दिखाया गया है; फलाने मास्टरपीस में यह कहा गया है” या यह कि “हमारी पारंपरिक संस्कृति यह है; जहाँ से मैं हूँ, वहाँ हम यही कहते हैं; हमारे परिवार में हमारा यही नियम है,” और इसी तरह की बातें। देखो कि कौन है जो हमेशा ऐसी बातों का ढेर लगाए रहता है, कौन है जो परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद भी प्रभावित नहीं होता और जब वे परमेश्वर के वचनों की समझ के बारे में संगति करते हैं, तो केवल अस्पष्ट, बेतुकी और आध्यात्मिक समझ से रहित बातें ही कहता है और कौन है जो चाहे उसे परमेश्वर के वचनों की कोई समझ या जानकारी न हो, फिर भी जबरदस्ती कुछ चीजों को एक साथ जोड़ने की कोशिश करता है और आध्यात्मिक होने का दिखावा करता है। यह पूरी तरह से घृणा पैदा करने वाली बात है! ये लोग कई वर्षों से परमेश्वर पर विश्वास करते आ रहे हैं और कई वर्षों से उपदेश सुनते आ रहे हैं और सभाओं में भाग लेते आ रहे हैं, फिर भी अविश्वसनीय रूप से वे अभी तक नहीं जानते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है और उन्हें अभी तक यह पता नहीं चला है कि उनके दृष्टिकोण गलत हैं या यह कि उनके भ्रामक दृष्टिकोण परमेश्वर के वचनों के पूरी तरह से विपरीत और विरोधाभासी हैं। इसका क्या कारण है? मसीह-विरोधियों द्वारा काट-छाँट किए जाने को अस्वीकार करने और कोई गलती करने पर पश्चाताप के रवैये की कमी के पीछे यह तीसरा कारण है : वे यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य और वह मानक हैं जिससे सभी चीजों को मापा जाता है। यही इस समस्या की जड़ है।
ऐसा क्यों है कि मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने से इनकार करते हैं? ऐसा क्यों है कि जब उन्हें किसी चीज का सामना करना पड़ता है, तो वे पश्चाताप नहीं करते और इसके बजाय विभिन्न धारणाएँ फैलाते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर के बारे में फैसला भी सुना देते हैं? इसके पीछे के कारण बहुत स्पष्ट हैं : पहला कारण यह है कि मसीह-विरोधी यह मानने से इनकार करते हैं कि उन्होंने गलत किया है; दूसरा यह है कि वे कभी यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है; तीसरा, यह है कि वे यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य और वह मानक हैं जिससे सभी चीजों को मापा जाता है। वे सभी लोग जो काट-छाँट किए जाने को स्वीकार नहीं करते हैं, वे सभी लोग जो गलतियाँ करते समय स्पष्ट रूप से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं, वे सभी लोग जो अक्सर परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं, जो परमेश्वर के चुने हुए अनगिनत लोगों के जीवन में प्रवेश में देरी का कारण बनते हैं और परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान पहुँचाते हैं, अगर इन लोगों की काट-छाँट किए जाने पर इनमें कोई पछतावा या पश्चात्ताप का रवैया नहीं है, तो फिर एक बात तो निश्चित है, कि उनमें मसीह-विरोधियों की ये तीनों अभिव्यक्तियाँ मौजूद हैं। सही है ना? (सही है।) कुल मिलाकर, तीन मुख्य कारण हैं कि क्यों मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाने को स्वीकार करने से इनकार करते हैं। उन्हें फिर से पढ़ें। (पहला कारण यह है कि मसीह-विरोधी कभी यह मानने से इनकार करते हैं कि उन्होंने गलत किया है; दूसरा यह है कि वे कभी यह स्वीकार नहीं करते कि उनका भ्रष्ट स्वभाव है और तीसरा यह है कि वे यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य और वह मानक हैं जिससे सभी चीजों को मापा जाता है।) यह कुल मिलाकर तीन कारण हैं। हमने पहले दो कारणों पर काफी विस्तार से संगति की है। अंतिम कारण शाब्दिक अर्थ के दृष्टिकोण से पहले दो से थोड़ा अलग है, लेकिन सार के संदर्भ में, पहले दो कारण मसीह-विरोधियों द्वारा यह मानने से इनकार करने से संबंधित हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इसलिए हम इस कारण पर और अधिक विस्तार से संगति नहीं करेंगे। ठीक है, चलो आज के लिए हमारी संगति बस यहीं समाप्त करते हैं। अलविदा! (अलविदा परमेश्वर!)
19 सितंबर 2020