12. राज्य के युग के संविधान, प्रशासनिक नियमों और धर्मादेशों पर वचन
595. मेरा योजनाबद्ध कार्य पल भर भी रुके बिना आगे बढ़ता रहता है। राज्य के युग में रहने लगने के बाद, और तुम लोगों को अपने लोगों के रूप में अपने राज्य में ले जाने के बाद, मेरी तुम लोगों से अन्य माँगें होंगी; अर्थात्, मैं तुम लोगों के सामने उस संविधान को लागू करना आरंभ करूँगा जिसके साथ मैं इस युग पर शासन करूँगा :
चूँकि तुम सभी मेरे लोग कहलाते हो, इसलिए तुम्हें इस योग्य होना चाहिए कि मेरे नाम को महिमामंडित कर सको; अर्थात्, परीक्षण के बीच गवाही दे सको। यदि कोई मुझे मनाने की कोशिश करता है और मुझसे सच छुपाता है, या मेरी पीठ पीछे अपकीर्तिकर व्यवहार करता है, तो ऐसे लोगों को, बिना किसी छूट के मेरे घर से खदेड़ और बाहर निकाल दिया जाएगा ताकि वे इस बात के लिए मेरा इंतज़ार करें कि मैं उनसे कैसे निपटूँगा। अतीत में जो लोग मेरे प्रति विश्वासघाती रहे हैं और संतान की भांति नहीं रहे हैं, और आज फिर से खुलकर मेरी आलोचना करने के लिए उठ खड़े हुए हैं, उन्हें भी मेरे घर से खदेड़ दिया जाएगा। जो मेरे लोग हैं उन्हें लगातार मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शानी चाहिए और साथ ही मेरे वचनों को जानने की खोज करते रहना चाहिए। केवल इस तरह के लोगों को ही मैं प्रबुद्ध करूँगा, और वे निश्चित रूप से, कभी भी ताड़ना को प्राप्त न करते हुए, मेरे मार्गदर्शन और प्रबुद्धता के अधीन रहेंगे। जो मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शाने में असफल रहते हुए, अपने खुद के भविष्य की योजना बनाने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं—अर्थात वे जो अपने कार्यों के द्वारा मेरे हृदय को संतुष्ट करने का लक्ष्य नहीं रखते हैं, बल्कि इसके बजाय भोजन, धन, आदि सामान की तलाश में रहते हैं, मैं इन भिखारी-जैसे प्राणियों का उपयोग करने से पूरी तरह इनकार करता हूँ, क्योंकि वे जब से पैदा हुए हैं, वे बिलकुल नहीं जानते कि मेरी ज़िम्मेदारियों के प्रति चिंता दर्शाने के मायने क्या हैं। वे ऐसे लोग हैं जिनमें सामान्य समझ का अभाव है; ऐसे लोग मस्तिष्क के "कुपोषण" से पीड़ित हैं, और उन्हें कुछ "पोषण" पाने के लिए घर जाने की आवश्यकता है। मेरे लिए ऐसे लोग किसी काम के नहीं हैं। जो मेरे लोग हैं उनमें से प्रत्येक को, मुझे अंत तक वैसे अनिवार्य कर्तव्य के रूप में जानना जरूरी होगा जैसे कि खाना, पहनना, सोना, जिसे कोई एक पल के लिए भी भूलता नहीं, ताकि अंत में, मुझे जानना खाना खाने जितनी जानी-पहचानी चीज़ बन जाए, जिसे तुम सहजतापूर्वक अभ्यस्त हाथों से करते हो। जहाँ तक उन वचनों की बात है जो मैं बोलता हूँ, तो प्रत्येक शब्द को अत्यधिक निष्ठा और पूरी तरह से आत्मसात करते हुए ग्रहण करना चाहिए; इसमें अन्यमनस्क ढंग से किए गए आधे-अधूरे प्रयास नहीं हो सकते हैं। जो कोई भी मेरे वचनों पर ध्यान नहीं देता है, उसे सीधे मेरा विरोध करने वाला माना जाएगा; जो कोई भी मेरे वचनों को नहीं खाता, या उन्हें जानने की इच्छा नहीं करता है, उसे मुझ पर ध्यान नहीं देने वाला माना जाएगा, और उसे मेरे घर के द्वार से सीधे बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा इसलिए है, जैसा कि मैंने अतीत में कहा है, कि मैं जो चाहता हूँ, वह यह नहीं है कि बड़ी संख्या में लोग हों, बल्कि उत्कृष्टता हो। सौ लोगों में से, यदि कोई एक भी मेरे वचनों के द्वारा मुझे जानने में सक्षम है, तो मैं इस एक व्यक्ति को प्रबुद्ध और रोशन करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अन्य सभी को स्वेछा से छोड़ दूँगा। इससे तुम देख सकते हो कि यह अनिवार्य रूप से सत्य नहीं है कि बड़ी संख्या ही मुझे अभिव्यक्त कर सकती है, और मुझे जी सकती है। मैं गेहूँ (चाहे दाने पूरे भरे न हों) चाहता हूँ, न कि जंगली दाने (चाहे उसमें दाने इतने भरे हों कि मन प्रसन्न हो जाए)। उन लोगों के लिए जो तलाश करने की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि इसके बजाय शिथिलता से व्यवहार करते हैं, उन्हें स्वेच्छा से चले जाना चाहिए; मैं उन्हें अब और देखना नहीं चाहता हूँ, अन्यथा वे मेरे नाम को अपमानित करते रहेंगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 5' से उद्धृत
596. मैं किसी को दंडित करने में जल्दबाजी नहीं करता, न ही मैं किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करता हूँ—मैं सभी के प्रति धार्मिक हूँ। मैं निश्चित रूप से अपने पुत्रों से प्रेम करता हूँ और मैं निश्चित रूप से उन दुष्टों से नफ़रत करता हूँ, जो मेरी अवहेलना करते हैं; मेरे कार्यों के पीछे यह सिद्धांत है। तुम लोगों में से प्रत्येक को मेरे प्रशासनिक नियमों के बारे में कुछ अंतर्दृष्टि होनी चाहिए; यदि तुम ऐसा नहीं करते, तो तुम लोगों को ज़रा भी भय न होगा और तुम सब मेरे सामने लापरवाही से काम करोगे। तुम्हें यह भी पता नहीं होगा कि मैं क्या प्राप्त करना चाहता हूँ, मैं किसे सिद्ध करना चाहता हूँ, मैं क्या हासिल करना चाहता हूँ या किस तरह के व्यक्ति की मेरे राज्य को आवश्यकता है।
मेरे प्रशासनिक आदेश इस प्रकार हैं :
1) चाहे तुम कोई भी हो, यदि तुम अपने दिल में मेरा विरोध करते हो, तो तुम्हारा न्याय किया जाएगा।
2) जिन लोगों को मैंने चुना है, उन्हें किसी भी गलत सोच के लिए तुरंत अनुशासित किया जाएगा।
3) मैं उन लोगों को एक तरफ़ कर दूँगा, जो मुझ पर विश्वास नहीं करते। मैं उन्हें अंत तक लापरवाही से बोलने और काम करने दूँगा, जब मैं उन्हें पूरी तरह से दंडित करूँगा और उनसे निपटूंगा।
4) मैं उनकी देखभाल और हर समय उनकी रक्षा करूँगा, जो मुझ पर विश्वास करते हैं। सदा के लिए मैं उद्धार के मार्ग के जरिए उनके लिए जीवन की आपूर्ति करूँगा। इन लोगों के पास मेरा प्यार होगा और वे निश्चित रूप से न तो गिरेंगे, न ही अपनी राह से भटकेंगे। उनकी कोई भी कमज़ोरी केवल अस्थायी होगी और मैं निश्चित रूप से उनकी कमज़ोरियों को याद नहीं रखूँगा।
5) वे लोग जो विश्वास करते हुए प्रतीत होते हैं, लेकिन जो वास्तव में ऐसा नहीं करते—जो लोग विश्वास करते हैं कि एक परमेश्वर है, लेकिन जो मसीह की तलाश नहीं करते हैं, फिर भी जो विरोध भी नहीं करते—ये सबसे दयनीय किस्म के लोग होते हैं और मेरे कर्मों के माध्यम से मैं उन्हें स्पष्ट रूप से दिखाऊंगा। अपने कार्यों के माध्यम से, मैं ऐसे लोगों को बचाऊंगा और उन्हें वापस लाऊंगा।
6) ज्येष्ठ पुत्रों को, पहले मेरे नाम को स्वीकार करने वालों को, आशीष मिलेगी! मैं निश्चित रूप से तुम लोगों को सबसे अच्छी आशीषें प्रदान करूँगा और तुम लोगों को जी भर कर आनंद लेने की अनुमति दूँगा; कोई भी इसमें बाधा डालने की हिम्मत नहीं करेगा। यह सब तुम लोगों के लिए पूरी तरह से तैयार किया गया है, क्योंकि यह मेरा प्रशासनिक आदेश है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 56' से उद्धृत
597. अब मैं अपने राज्य की प्रशासनिक आज्ञाओं की घोषणा करता हूँ : सभी चीज़ें मेरे न्याय के अंतर्गत हैं, सभी चीज़ें मेरी धार्मिकता के अंतर्गत हैं, सभी चीज़ें मेरे प्रताप के अंतर्गत हैं, और मैं अपनी धार्मिकता सब पर लागू करता हूँ। जो यह कहते हैं कि वे मुझमें विश्वास रखते हैं परंतु गहराई में मेरा खंडन करते हैं, या जिनके हृदयों ने मेरा त्याग कर दिया है, वे निकाल बाहर किए जाएँगे—परंतु सब मेरे यथोचित समय पर। जो मेरे बारे में व्यंग्यात्मक ढंग से बात करते हैं, परंतु इस तरह से कि दूसरों के ध्यान में न आए, वे तुरंत मृत्यु को प्राप्त होंगे (वे आत्मा, देह और मन से नष्ट हो जाएँगे)। जो लोग मेरे प्रियजनों पर अत्याचार करते हैं अथवा उनसे रूखा व्यवहार करते हैं, मेरे कोप द्वारा उनका तत्काल न्याय किया जाएगा। इसका अर्थ है कि जो मेरे प्रियजनों के प्रति ईर्ष्यालु हैं, और जो मुझे अधार्मिक समझते हैं, उन्हें न्याय किए जाने के लिए मेरे प्रियजनों को सौंप दिया जाएगा। जो सभ्य, सरल और ईमानदार हैं (वे भी, जिनमें बुद्धिमत्ता की कमी है), और जो मेरे साथ एकचित्त होकर ईमानदारी से व्यवहार करते हैं, वे सभी मेरे राज्य में रहेंगे। जो लोग प्रशिक्षण से नहीं गुज़रे—यानी ऐसे ईमानदार लोग, जिनमें बुद्धिमत्ता और अंतर्दृष्टि का अभाव है—उन्हें मेरे राज्य में सामर्थ्य प्राप्त होगा। हालाँकि उन्हें भी निपटाया और तोड़ा गया है। वे प्रशिक्षण से नहीं गुज़रे, यह परम तथ्य नहीं है। बल्कि इन्हीं चीज़ों के माध्यम से मैं सभी को अपनी सर्वशक्तिमत्ता और अपनी बुद्धिमत्ता दिखाऊँगा। मैं उन सभी को निकाल बाहर करूँगा, जो अभी भी मुझ पर संदेह करते हैं; मैं उनमें से किसी एक को भी नहीं चाहता (मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ, जो ऐसे समय में भी मुझ पर संदेह करते हैं)। उन कर्मों के माध्यम से, जो मैं पूरे ब्रह्मांड में करता हूँ, मैं ईमानदार लोगों को अपने कार्य की अद्भुतता दिखाऊँगा, जिससे उनकी बुद्धिमत्ता, अंतर्दृष्टि और विवेक में वृद्धि होगी। मैं अपने अद्भुत कर्मों के परिणामस्वरूप धोखेबाज लोगों को एक ही पल में नष्ट कर दूँगा। मेरा नाम सबसे पहले स्वीकार करने वाले सभी ज्येष्ठ पुत्र (यानी वे पवित्र और निष्कलंक, ईमानदार लोग) ही सबसे पहले राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे साथ सभी राष्ट्रों और सभी लोगों पर शासन करेंगे, और राज्य में राजाओं की तरह राज करेंगे तथा सभी राष्ट्रों और सभी लोगों का न्याय करेंगे (यह राज्य में सभी ज्येष्ठ पुत्रों को संदर्भित करता है, किसी और को नहीं)। सभी राष्ट्रों और सभी लोगों में से जिनका न्याय हो चुका है और जो पश्चात्ताप कर चुके हैं, वे मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे लोग बन जाएँगे, जबकि जो जिद्दी हैं और जिन्हें पछतावा नहीं है, वे अथाह गड्ढे में फेंक दिए जाएँगे (हमेशा के लिए नष्ट होने हेतु)। राज्य में न्याय अंतिम होगा, और यह दुनिया की मेरी ओर से पूरी सफ़ाई होगी। उसके पश्चात् कोई अन्याय, दुःख, आँसू या आहें नहीं होंगी, और यहाँ तक कि कोई दुनिया भी नहीं रहेगी। सब-कुछ मसीह की अभिव्यक्ति होगा, और सब मसीह का राज्य होंगे। ऐसी महिमा होगी! ऐसी महिमा होगी!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 79' से उद्धृत
598. अब मैं तुम लोगों के लिए अपने प्रशासनिक आदेशों की घोषणा करता हूँ (जो घोषणा के दिन से प्रभावी होंगे और भिन्न-भिन्न लोगों को भिन्न-भिन्न ताड़नाएँ देंगे) :
मैं अपने वादे पूरे करता हूँ, और सब-कुछ मेरे हाथों में है : जो कोई भी संदेह करेगा, वह निश्चित रूप से मारा जाएगा। किसी भी लिहाज के लिए कोई जगह नहीं है; वे तुरंत नष्ट कर दिए जाएँगे, जिससे मेरे हृदय को नफ़रत से छुटकारा मिलेगा। (अब से यह पुष्टि की जाती है कि जो कोई भी मारा जाता है, वह मेरे राज्य का सदस्य बिलकुल नहीं होगा, और वह अवश्य ही शैतान का वंशज होगा।)
ज्येष्ठ पुत्रों के रूप में तुम लोगों को अपनी खुद की स्थिति को बनाए रखना चाहिए और अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरे करने चाहिए, और दखलंदाज नहीं बनना चाहिए। तुम लोगों को मेरी प्रबंधन योजना के लिए खुद को अर्पित कर देना चाहिए, हर जगह जहाँ भी तुम जाओ, तुम्हें मेरी अच्छी गवाही देनी चाहिए और मेरे नाम को महिमा-मंडित करना चाहिए। शर्मनाक कृत्य मत करो; मेरे सभी पुत्रों और मेरे लोगों के लिए उदाहरण बनो। एक पल के लिए भी पथभ्रष्ट मत होओ : तुम्हें सभी के सामने हमेशा मेरे ज्येष्ठ पुत्रों की पहचान के साथ दिखाई देना चाहिए, और गुलाम न बनो; बल्कि तुम्हें सिर ऊँचा करके आगे बढ़ना चाहिए। मैं तुम लोगों से अपने नाम को महिमा-मंडित करने के लिए कह रहा हूँ, उसे अपमानित करने के लिए नहीं। जो लोग मेरे ज्येष्ठ पुत्र हैं, उनमें से प्रत्येक का अपना व्यक्तिगत कार्य है, और वे हर चीज़ नहीं कर सकते। यह वह ज़िम्मेदारी है, जो मैंने तुम लोगों को दी है, और इससे जी नहीं चुराना है। तुम लोगों को स्वयं को अपने पूरे हृदय से, अपने पूरे मन से और अपनी पूरी शक्ति से उस काम को पूरा करने के लिए समर्पित करना चाहिए, जो मैंने तुम्हें सौंपा है।
इस दिन से आगे, समस्त ब्रह्मांडीय दुनिया में मेरे सभी पुत्रों और मेरे सभी लोगों की चरवाही करने का कर्तव्य पूरा करने के लिए मेरे ज्येष्ठ पुत्रों को सौंपा जाएगा, और जो कोई भी अपने पूरे हृदय और पूरे मन से उसे पूरा नहीं कर सकेगा, मैं उसे ताड़ना दूँगा। यह मेरी धार्मिकता है। मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को क्षमा नहीं करूँगा, न ही उनके साथ नरमी बरतूँगा।
यदि मेरे पुत्रों या मेरे लोगों में से कोई मेरे ज्येष्ठ पुत्रों में से किसी का उपहास और अपमान करता है, तो मैं उसे कठोर दंड दूँगा, क्योंकि मेरे ज्येष्ठ पुत्र स्वयं मेरा प्रतिनिधित्व करते हैं; कोई उनके साथ जो करता है, वह मेरे साथ भी करता है। यह मेरे प्रशासनिक आदेशों में से सबसे गंभीर आदेश है। मेरे पुत्रों और मेरे लोगों में से जो कोई भी इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसके विरुद्ध मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को उनकी इच्छाओं के अनुसार अपनी धार्मिकता लागू करने दूँगा।
मैं धीरे-धीरे उस व्यक्ति का परित्याग कर कर दूँगा, जो मेरे साथ ओछेपन से पेश आता है और केवल मेरे भोजन, कपड़े और नींद पर ध्यान केंद्रित करता है; केवल मेरे बाह्य मामलों पर ध्यान देता है और मेरे बोझ का विचार नहीं करता; और अपने स्वयं के कार्य सही ढंग से पूरे करने पर ध्यान नहीं देता। यह निर्देश उन सभी के लिए है, जिनके कान हैं।
जो कोई भी मेरे लिए सेवा करने का काम समाप्त कर लेता है, उसे बिना किसी उपद्रव के, आज्ञाकारी ढंग से अलग हो जाना चाहिए। सावधान रहो, मैं तुम्हें बाहर कर दूँगा। (यह एक पूरक आदेश है।)
अब से मेरे ज्येष्ठ पुत्र लोहे की छड़ी उठाएँगे और सभी राष्ट्रों और लोगों पर शासन करने के लिए, सभी राष्ट्रों और लोगों के बीच चलने के लिए, और सभी राष्ट्रों और लोगों के बीच मेरे न्याय, धार्मिकता और प्रताप को कार्यान्वित करने के लिए मेरे अधिकार को निष्पादित करना शुरू करेंगे। मेरे पुत्र और मेरे लोग मुझसे डरेंगे, बिना रुके मेरी स्तुति, मेरी जयजयकार और मेरा महिमा-मंडन करेंगे, क्योंकि मेरी प्रबंधन योजना पूरी हो गई है और मेरे ज्येष्ठ पुत्र मेरे साथ शासन कर सकते हैं।
यह मेरे प्रशासनिक आदेशों का एक हिस्सा है; इसके बाद जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, मैं तुम लोगों को उनके बारे में बताऊँगा। उपर्युक्त प्रशासनिक आदेशों से तुम लोग उस गति को देखोगे, जिससे मैं अपना कार्य करता हूँ, और उस कदम को देखोगे, जहाँ तक मेरा कार्य पहुँच चुका है। यह एक पुष्टि होगी।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 88' से उद्धृत
599. दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए
(परमेश्वर के वचनों का चुनिंदा अध्याय)
1) मनुष्य को स्वयं को बड़ा नहीं दिखाना चाहिए, न अपनी बड़ाई करनी चाहिए। उसे परमेश्वर की आराधना और बड़ाई करनी चाहिए।
2) वह सब कुछ करो जो परमेश्वर के कार्य के लिए लाभदायक है और ऐसा कुछ भी न करो जो परमेश्वर के कार्य के हितों के लिए हानिकर हो। परमेश्वर के नाम, परमेश्वर की गवाही और परमेश्वर के कार्य की रक्षा करो।
3) परमेश्वर के घर में धन, भौतिक पदार्थ और समस्त संपत्ति ऐसी भेंट हैं, जो मनुष्य द्वारा दी जानी चाहिए। इन भेंटों का आनंद याजक और परमेश्वर के अलावा अन्य कोई नहीं ले सकता, क्योंकि मनुष्य की भेंटें परमेश्वर के आनंद के लिए हैं। परमेश्वर इन भेंटों को केवल याजकों के साथ साझा करता है; और उनके किसी भी अंश का आनंद उठाने के लिए अन्य कोई योग्य और पात्र नहीं है। मनुष्य की समस्त भेंटें (धन और आनंद लिए जा सकने योग्य भौतिक चीज़ों सहित) परमेश्वर को दी जाती हैं, मनुष्य को नहीं और इसलिए, इन चीज़ों का मनुष्य द्वारा आनंद नहीं लिया जाना चाहिए; यदि मनुष्य उनका आनंद उठाता है, तो वह इन भेंटों को चुरा रहा होगा। जो कोई भी ऐसा करता है वह यहूदा है, क्योंकि, एक ग़द्दार होने के अलावा, यहूदा ने बिना इजाज़त थैली में रखा धन भी लिया था।
4) मनुष्य का स्वभाव भ्रष्ट है और इसके अतिरिक्त, उसमें भावनाएँ हैं। इसलिए, परमेश्वर की सेवा के समय विपरीत लिंग के दो सदस्यों को अकेले एक साथ मिलकर काम करना पूरी तरह निषिद्ध है। जो भी ऐसा करते पाए जाते हैं, उन्हें बिना किसी अपवाद के निष्कासित कर दिया जाएगा।
5) परमेश्वर की आलोचना न करो और न परमेश्वर से संबंधित बातों पर यूँ ही चर्चा करो। वैसा करो, जैसा मनुष्य को करना चाहिए और वैसे बोलो जैसे मनुष्य को बोलना चाहिए, तुम्हें अपनी सीमाओं को पार नहीं करनी चाहिए और न अपनी सीमाओं का उल्लंघन करना चाहिए। अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाओ और ध्यान दो कि कहाँ कदम रख रहे हो, ताकि परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न कर बैठो।
6) वह करो जो मनुष्य द्वारा किया जाना चाहिए और अपने दायित्वों का पालन करो, अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करो और अपने कर्तव्य को धारण करो। चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के कार्य में अपना योगदान देना चाहिए; यदि तुम नहीं देते हो, तो तुम परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के योग्य नहीं हो और परमेश्वर के घर में रहने के योग्य नहीं हो।
7) कलीसिया के कार्यों और मामलों में, परमेश्वर की आज्ञाकारिता के अलावा, उस व्यक्ति के निर्देशों का पालन करो, जिसे पवित्र आत्मा हर चीज़ में उपयोग करता है। ज़रा-सा भी उल्लंघन अस्वीकार्य है। अपने अनुपालन में एकदम सही रहो और सही या ग़लत का विश्लेषण न करो; क्या सही या ग़लत है, इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं। तुम्हें ख़ुद केवल संपूर्ण आज्ञाकारिता की चिंता करनी चाहिए।
8) जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और उसकी आराधना करनी चाहिए। किसी व्यक्ति को ऊँचा न ठहराओ, न किसी पर श्रद्धा रखो; परमेश्वर को पहले, जिनका आदर करते हो उन्हें दूसरे और ख़ुद को तीसरे स्थान पर मत रखो। किसी भी व्यक्ति का तुम्हारे हृदय में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और तुम्हें लोगों को—विशेषकर उन्हें जिनका तुम सम्मान करते हो—परमेश्वर के समतुल्य या उसके बराबर नहीं मानना चाहिए। यह परमेश्वर के लिए असहनीय है।
9) अपने विचार कलीसिया के कार्य पर लगाए रखो। अपनी देह की इच्छाओं को एक तरफ़ रखो, पारिवारिक मामलों के बारे में निर्णायक रहो, स्वयं को पूरे हृदय से परमेश्वर के कार्य में समर्पित करो और परमेश्वर के कार्य को पहले और अपने जीवन को दूसरे स्थान पर रखो। यह एक संत की शालीनता है।
10) सगे-संबंधी जो विश्वास नहीं रखते (तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे पति या पत्नी, तुम्हारी बहनें या तुम्हारे माता-पिता इत्यादि) उन्हें कलीसिया में आने को बाध्य नहीं करना चाहिए। परमेश्वर के घर में सदस्यों की कमी नहीं है और ऐसे लोगों से इसकी संख्या बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं, जिनका कोई उपयोग नहीं है। वे सभी जो ख़ुशी-ख़ुशी विश्वास नहीं करते, उन्हें कलीसिया में बिल्कुल नहीं ले जाना चाहिए। यह आदेश सब लोगों पर निर्देशित है। इस मामले में तुम लोगों को एक दूसरे की जाँच, निगरानी करनी चाहिए और याद दिलाना चाहिए; कोई भी इसका उल्लंघन नहीं कर सकता। यहाँ तक कि जब ऐसे सगे-संबंधी जो विश्वास नहीं करते, अनिच्छा से कलीसिया में प्रवेश करते हैं, उन्हें किताबें जारी नहीं की जानी चाहिए या नया नाम नहीं देना चाहिए; ऐसे लोग परमेश्वर के घर के नहीं हैं और कलीसिया में उनके प्रवेश पर जैसे भी ज़रूरी हो, रोक लगाई जानी चाहिए। यदि दुष्टात्माओं के आक्रमण के कारण कलीसिया पर समस्या आती है, तो तुम निर्वासित कर दिए जाओगे या तुम पर प्रतिबंध लगा दिये जाएँगे। संक्षेप में, इस मामले में हरेक का उत्तरदायित्व है, हालांकि तुम्हें असावधान नहीं होना चाहिए, न ही इसका इस्तेमाल निजी बदला लेने के लिए करना चाहिए।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से
600. लोगों को उन अनेक कर्तव्यों का पालन करना होगा, जो उन्हें अवश्य संपन्न करने चाहिए। यही वह चीज है, जिसका लोगों द्वारा दृढ़ता से पालन किया जाना चाहिए, और यही वह चीज है, जिसे उन्हें अवश्य संपन्न करना चाहिए। पवित्र आत्मा को वह करने दो, जो पवित्र आत्मा द्वारा किया जाना चाहिए; मनुष्य इसमें कोई भूमिका नहीं निभा सकता। मनुष्य को वह करना चाहिए, जो उसके द्वारा किया जाना आवश्यक है, जिसका पवित्र आत्मा से कोई संबंध नहीं है। यह उसके अतिरिक्त कुछ नहीं है, जो मनुष्य द्वारा किया जाना चाहिए, और जिसका आज्ञा के रूप में पालन किया जाना चाहिए, ठीक उसी तरह, जैसे पुराने विधान की व्यवस्था का पालन किया जाता है। यद्यपि अब व्यवस्था का युग नहीं है, फिर भी ऐसे कई वचन हैं, जो व्यवस्था के युग में बोले गए वचनों जैसे हैं, और जिनका पालन किया जाना चाहिए। इन वचनों का पालन केवल पवित्र आत्मा के स्पर्श पर भरोसा करके नहीं किया जाता, बल्कि वे ऐसी चीज हैं, जिनका मनुष्य द्वारा निर्वाह किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए : तुम व्यवहारिक परमेश्वर के कार्य पर निर्णय पारित नहीं करोगे। तुम उस मनुष्य का विरोध नहीं करोगे, जिसकी परमेश्वर द्वारा गवाही दी गई है। परमेश्वर के सामने तुम लोग अपने स्थान पर रहोगे और स्वच्छंद नहीं होगे। तुम्हें वाणी में संयत होना चाहिए, और तुम्हारे शब्द और काम उस व्यक्ति की व्यवस्थाओं के अनुसार होने चाहिए, जिसकी परमेश्वर द्वारा गवाही दी गई है। तुम्हें परमेश्वर की गवाही का आदर करना चाहिए। तुम परमेश्वर के कार्य और उसके मुँह से निकले वचनों की उपेक्षा नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के कथनों के लहजे और लक्ष्यों की नकल नहीं करोगे। बाहरी तौर से तुम लोग ऐसा कुछ नहीं करोगे, जो परमेश्वर द्वारा गवाही दिए गए व्यक्ति का प्रत्यक्ष रूप से विरोध करता हो। इत्यादि-इत्यादि। ये वे चीजें हैं, जिनका प्रत्येक व्यक्ति को पालन करना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'नये युग की आज्ञाएँ' से उद्धृत
601. आज मनुष्य के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करने से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है : तुम्हें उस परमेश्वर को फुसलाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो तुम्हारी आँखों के सामने खड़ा है, न ही तुम्हें उससे कुछ छिपाना चाहिए। तुम अपने सामने खड़े परमेश्वर के सम्मुख कोई गंदी या अहंकार से भरी बात नहीं कहोगे। तुम परमेश्वर के भरोसे को जीतने के लिए अपनी मीठी और साफ़-सुथरी बातों से अपनी आँखों के सामने खड़े परमेश्वर को धोखा नहीं दोगे। तुम परमेश्वर के सामने अनादर से व्यवहार नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के मुख से बोले जाने वाले समस्त वचनों का पालन करोगे, और उनका प्रतिरोध, विरोध या प्रतिवाद नहीं करोगे। तुम परमेश्वर के मुख से बोले गए वचनों की अपने हिसाब से व्याख्या नहीं करोगे। तुम्हें अपनी जीभ को काबू में रखना चाहिए, ताकि इसके कारण तुम दुष्टों की कपटपूर्ण योजनाओं के शिकार न हो जाओ। तुम्हें अपने क़दमों के प्रति सचेत रहना चाहिए, ताकि तुम परमेश्वर द्वारा तुम्हारे लिए निर्दिष्ट की गई सीमा का अतिक्रमण करने से बच सको। अगर तुम अतिक्रमण करते हो, तो यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर की स्थिति में खड़े होने और अहंकार भरे और आडंबरपूर्ण शब्द कहने का कारण बनेगा, जिसके लिए परमेश्वर तुमसे घृणा करने लगेगा। तुम परमेश्वर के मुँह से निकले वचनों को लापरवाही से प्रसारित नहीं करोगे, ताकि कहीं ऐसा न हो कि दूसरे तुम्हारी हँसी उड़ाएँ और हैवान तुम्हें मूर्ख बनाएँ। तुम आज के परमेश्वर के समस्त कार्य का पालन करोगे। भले ही तुम उसे समझ न पाओ, तो भी तुम उस पर निर्णय पारित नहीं करोगे; तुम केवल खोज और संगति कर सकते हो। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के मूल स्थान का अतिक्रमण नहीं करेगा। तुम एक मनुष्य की हैसियत से आज के परमेश्वर की सेवा करने से अधिक कुछ नहीं कर सकते। तुम एक मनुष्य की हैसियत से आज के परमेश्वर को सिखा नहीं सकते—ऐसा करना मार्ग से भटकना है। कोई भी व्यक्ति परमेश्वर द्वारा गवाही दिए गए व्यक्ति के स्थान पर खड़ा नहीं हो सकता; अपने शब्दों, कार्यों, और अंतर्तम विचारों में तुम मनुष्य की हैसियत में खड़े हो। इसका पालन किया जाना आवश्यक है, यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है, और इसे कोई बदल नहीं सकता; ऐसा करना प्रशासनिक आदेशों का उल्लंघन होगा। यह सभी को स्मरण रखना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'नये युग की आज्ञाएँ' से उद्धृत
602. हर एक वाक्य जो मैं कहता हूँ, उसमें अधिकार और न्याय होता है, और कोई मेरे वचनों को बदल नहीं सकता। एक बार जब मेरे वचन निर्गत हो जाते हैं, तो चीज़ें मेरे वचनों के अनुसार संपन्न होनी निश्चित हैं; यह मेरा स्वभाव है। मेरे वचन अधिकार हैं और जो कोई उन्हें संशोधित करता है, वह मेरी ताड़ना को अपमानित करता है, और मुझे उन्हें मार गिराना होगा। गंभीर मामलों में वे अपने जीवन पर बरबादी लाते हैं और वे अधोलोक में या अथाह गड्ढे में जाते हैं। यही एकमात्र तरीका है, जिससे मैं मानवजाति से निपटता हूँ, और मनुष्य के पास इसे बदलने का कोई तरीका नहीं है—यह मेरा प्रशासनिक आदेश है। इसे याद रखना! किसी को भी मेरे आदेश का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं है; चीज़ें मेरी इच्छा के अनुसार की जानी चाहिए! अतीत में, मैं तुम लोगों के प्रति बहुत नरम था और तुमने केवल मेरे वचनों का सामना किया था। लोगों को मार गिराने के बारे में मैंने जो वचन बोले थे, वे अभी तक घटित नहीं हुए हैं। किंतु आज से, उन सभी लोगों पर सभी आपदाएँ (मेरे प्रशासनिक आदेशों से संबंधित) एक-एक करके पड़ेंगी, जो मेरी इच्छा के अनुरूप नहीं हैं। तथ्यों का आगमन अवश्य होना चाहिए—अन्यथा लोग मेरे कोप को देखने में सक्षम नहीं होंगे, बल्कि बार-बार व्यभिचार में लिप्त होंगे। यह मेरी प्रबंधन योजना का एक चरण है, और यह वह तरीका है, जिससे मैं अपने कार्य का अगला चरण करता हूँ। मैं तुम लोगों से यह अग्रिम रूप से कहता हूँ, ताकि तुम लोग सदैव के लिए अपराध करने और नरक-यंत्रणा भुगतने से बच सको। अर्थात्, आज से मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को छोड़कर सभी लोगों को मेरी इच्छा के अनुसार अपनी उचित जगह लेने के लिए मजबूर कर दूँगा, और मैं उन्हें एक-एक करके ताड़ना दूँगा। मैं उनमें से एक को भी दोषमुक्त नहीं करूँगा। तुम लोग ज़रा फिर से लंपट होने की हिम्मत तो करो! तुम लोग ज़रा फिर से विद्रोही होने की हिम्मत तो करो! मैं पहले कह चुका हूँ कि मैं सभी के लिए धार्मिक हूँ, कि मुझमें भावना का लेशमात्र भी नहीं है, जो यह दिखाता है कि मेरे स्वभाव को ठेस नहीं पहुँचाई जानी चाहिए। यह मेरा व्यक्तित्व है। इसे कोई नहीं बदल सकता। सभी लोग मेरे वचनों को सुनते हैं और सभी लोग मेरे गौरवशाली चेहरे को देखते हैं। सभी लोगों को पूर्णतया और सर्वथा मेरा आज्ञापालन करना चाहिए—यह मेरा प्रशासनिक आदेश है। पूरे ब्रह्मांड में और पृथ्वी के छोरों तक सभी लोगों को मेरी प्रशंसा करनी चाहिए और मुझे गौरवान्वित करना चाहिए, क्योंकि मैं स्वयं अद्वितीय परमेश्वर हूँ, क्योंकि मैं परमेश्वर का व्यक्तित्व हूँ। कोई मेरे वचनों और कथनों को, मेरे भाषण और तौर-तरीकों को नहीं बदल सकता, क्योंकि ये केवल मेरे अपने मामले हैं, और ये वे चीज़ें हैं, जो मुझमें प्राचीनतम काल से हैं और हमेशा रहेंगी।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 100' से उद्धृत
603. मेरा न्याय हरेक तक पहुँचता है, मेरी प्रशासनिक आज्ञाएँ हरेक को स्पर्श करती हैं, और मेरे वचन तथा मेरा व्यक्तित्व हरेक पर प्रकट किया जाता है। यह मेरे आत्मा के महान कार्य का समय है (इस समय वे जिन्हें धन्य किया जाएगा और वे जो दुर्भाग्य झेलेंगे, एक दूसरे से अलग किए जाते हैं)। मेरे वचनों के निकलते ही, मैंने उन लोगों को अलग कर दिया जिन्हें धन्य किया जाएगा और साथ ही उन्हें भी जो दुर्भाग्य झेलेंगे। यह सब शीशे की तरह साफ़ है, और मैं एक नज़र में यह सब देख सकता हूँ। (मैं यह अपनी मानवता के संबंध में कह रहा हूँ; इसलिए ये वचन मेरे प्रारब्ध और चयन का खंडन नहीं करते।) मैं पहाड़ों और नदियों और सारी चीज़ों के बीच फिरता हूँ, ब्रह्माण्ड के अंतरिक्षों में चारों ओर, प्रत्येक स्थान को ध्यान से देखता और स्वच्छकरता हूँ, जिससे मेरे वचनों के परिणामस्वरूप उन सब अस्वच्छ ठिकानों और कामुक भूमियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और वे भस्म होकर शून्यता में विलीन हो जाएँगी। मेरे लिए, सब कुछ आसान है। यदि अभी वह समय होता जो मैंने दुनिया को नष्ट करने के लिए पूर्वनिर्धारित किया था, तो मैं मात्र एक वचन के कथन के साथ इसे निगल सकता था। लेकिन अभी वह समय नहीं है। इससे पहले कि मैं यह कार्य करूँ, सब-कुछ तैयार होना चाहिए, ताकि मेरी योजना बाधित न हो और मेरे प्रबंधन में खलल न पड़े। मैं जानता हूँ कि इसे यथोचित ढंग से कैसे करना है : मेरे पास मेरी बुद्धि है, और मेरे पास मेरी अपनी व्यवस्थाएँ हैं। लोगों को एक अंगुली भी नहीं हिलानी चाहिए; उन्हें सावधान रहना चाहिए कि मेरे हाथों मारे न जाएँ। यह मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं का पहले ही ज़िक्र कर चुका है। इसमें मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं की कठोरता, और साथ ही उनके पीछे निहित सिद्धांतों को देखा जा सकता है, जिनके दो पहलू हैं : एक ओर, मैं उन सभी को मार देता हूँ जो मेरी इच्छा के अनुरूप नहीं होते और मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं; दूसरी ओर, अपने कोप में मैं उन सभी को शाप देता हूँ जो मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं। ये दोनों पहलू अपरिहार्य हैं और मेरी प्रशासनिक आज्ञाओं के पीछे के कार्यकारी सिद्धांत हैं। चाहे कोई कितना भी वफ़ादार क्यों न हो, प्रत्येक को भावना से रहित होकर, इन्हीं दो सिद्धांतों के अनुसार, संभाला जाता है। यह मेरी धार्मिकता, मेरा प्रताप, और मेरा कोप दिखाने के लिए पर्याप्त है, जो सभी पार्थिव चीज़ों, सभी सांसारिक चीज़ों और उन सभी चीज़ों को भस्म कर देगा जो मेरी इच्छा के अनुरूप नहीं हैं। मेरे वचनों में रहस्य हैं जो छिपे रहते हैं, और मेरे वचनों में ऐसे रहस्य भी हैं जो प्रकट कर दिए गए हैं। इस तरह, मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, और मानव मन में, मेरे वचन सदा के लिए अबूझ हैं, और मेरा हृदय सदा के लिए अज्ञेय है। अर्थात, मुझे मनुष्यों को उनकी धारणाओं और सोच से बाहर निकालना ही होगा। यह मेरी प्रबंधन योजना का सबसे महत्वपूर्ण अंश है। मुझे अपने ज्येष्ठ पुत्रों को प्राप्त करने और उन कामों को पूरा करने के लिए जिन्हें मैं करना चाहता हूँ, इसे इस तरह से करना होगा।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'आरंभ में मसीह के कथन' के 'अध्याय 103' से उद्धृत
604. जब तक पुराने संसार का अस्तित्व बना रहता है, मैं अपना प्रचण्ड रोष इसके राष्ट्रों के ऊपर पूरी ज़ोर से बरसाऊंगा, समूचे ब्रह्माण्ड में खुलेआम अपनी प्रशासनिक आज्ञाएँ लागू करूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करेगा, उनको ताड़ना दूँगा:
जैसे ही मैं बोलने के लिए ब्रह्माण्ड की तरफ अपना चेहरा घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ सुनती है, और उसके उपरांत उन सभी कार्यों को देखती है जिन्हें मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध खड़े होते हैं, अर्थात् जो मनुष्य के कर्मों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन आएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और, मेरी बदौलत, सूर्य और चन्द्रमा नये हो जाएँगे—आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था और पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। ब्रह्माण्ड के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से बाँटा जाएगा और उनका स्थान मेरा राज्य लेगा, जिससे पृथ्वी पर विद्यमान राष्ट्र हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राज्य बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता है; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ब्रह्माण्ड के भीतर मनुष्यों में से उन सभी का, जो शैतान से संबंध रखते हैं, सर्वनाश कर दिया जाएगा, और वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें मेरी जलती हुई आग के द्वारा धराशायी कर दिया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी धारा के अन्तर्गत हैं, शेष सभी को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत-से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीते जाने के उपरांत, भिन्न-भिन्न अंशों में, मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। सभी लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग किया जाएगा, और वे अपने-अपने कार्यों के अनुरूप ताड़नाएँ प्राप्त करेंगे। वे सब जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए हैं, नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कर्मों में मुझे शामिल नहीं किया है, उन्होंने जिस तरह अपने आपको दोषमुक्त किया है, उसके कारण वे पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर अस्तित्व में बने रहेंगे। मैं अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, और अपनी वाणी से, पृथ्वी पर ज़ोर-ज़ोर से और ऊंचे तथा स्पष्ट स्वर में, अपने महा कार्य के पूरे होने की उद्घोषणा करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन' के 'अध्याय 26' से उद्धृत