365 तुम्हारी प्रकृति बहुत भ्रष्ट है
1 यदि तुम लोगों को इस मार्ग पर चलने का वास्तव में विश्वास है, तो इस मार्ग पर चलते रहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के विरोध से परहेज नहीं कर सकते हो, तो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, बेहतर है कि तुम लोग यह मार्ग छोड़कर चले जाओ। अन्यथा यह वास्तव में शुभ के बजाय अशुभ का शकुन है, क्योंकि तुम लोगों की प्रकृति अतिशय भ्रष्ट है। तुम लोगों में लेशमात्र भी स्वामिभक्ति या आज्ञाकारिता, या ऐसा हृदय नहीं है जिसमें धार्मिकता और सत्य की प्यास हो। और न ही तुम लोगों में परमेश्वर के प्रति लेशमात्र भी प्रेम है। ऐसा कहा जा सकता है कि परमेश्वर के सामने तुम्हारी दशा अति विध्वस्त है। तुम लोगों को जो पालन करना चाहिए वह करने में और जो बोलना चाहिए वह बोलने में तुम लोग सक्षम नहीं हो। तुम लोग उन चीजों का अभ्यास करने में सक्षम नहीं हो जिनका तुम लोगों को अभ्यास करना चाहिए। तुम लोग उस कार्य को करने में सक्षम नहीं हो जो तुम लोगों को करना चाहिए। तुम लोगों में वह स्वामिभक्ति, विवेक, आज्ञाकारिता और संकल्पशक्ति नहीं है जो तुममें होनी चाहिए। तुम लोगों ने उस तकलीफ़ को नहीं झेला है, जो तुम लोगों को झेलनी चाहिए, तुम लोगों में वह विश्वास नहीं है, जो तुम लोगों में होना चाहिए। तुम लोग सभी गुणों से विहीन हो, क्या तुम लोगों के पास जीते रहने के लिए आत्म-सम्मान है?
2 तुम लोग परमेश्वर में विश्वास करते हो मगर तुम उसकी इच्छा को नहीं जानते हो; तुम परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हो, मगर परमेश्वर की माँगों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो। तुम लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हो मगर परमेश्वर को जानते नहीं हो, और ऐसे जीते हो मानो प्रयत्न करने का कोई लक्ष्य नहीं है। तुम लोगों के कोई आदर्श और कोई उद्देश्य नहीं हैं। तुम लोग मनुष्य की तरह जीते हो मगर तुम लोगों के पास विवेक, सत्यनिष्ठा या लेशमात्र भी विश्वसनीयता नहीं है। तुम लोगों को मनुष्य कैसे समझा जा सकता है? तुम लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हो मगर उसे धोखा देते हो। ऊपर से, तुम लोग परमेश्वर का धन ले लेते हो और उसके चढ़ावों को खा जाते हो, मगर अंत में, परमेश्वर के लिए कोई आदर भाव अथवा परमेश्वर के प्रति विवेक का प्रदर्शन नहीं करते हो। यहाँ तक कि तुम लोग परमेश्वर की अत्यंत मामूली माँगों को भी पूरा नहीं कर सकते हो। तो तुम लोगों को मनुष्य कैसे माना जा सकता है? जो भोजन तुम लोग खाते हो और जो साँस तुम लोग लेते हो, वे परमेश्वर से आते हैं, तुम उसके अनुग्रह का आनंद लेते हो, मगर अंत में, तुम लोगों को परमेश्वर का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं होता है। इसके विपरीत, तुम लोग निकम्मे बन गए हो जो परमेश्वर का विरोध करते हो। क्या तब तुम लोग एक जंगली जानवर नहीं हो जो कुत्ते से भी बेहतर नहीं है? क्या जानवरों में कोई ऐसा है जो तुम लोगों की तुलना में अधिक द्वेषपूर्ण है?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं वे ही परमेश्वर का विरोध करते हैं" से रूपांतरित