364 तुम बहुत ही विद्रोही हो
1 तुम बहुत विद्रोही हो, तुम्हारा प्रतिरोध बहुत गंभीर है, और तुम मुझे बहुत तुच्छ समझते हो, तुम मेरे लिए बहुत भावनारहित हो, मुझसे बहुत कम प्रेम करते हो, और बहुत ज्यादा नफरत। तुम मेरे कार्य का तिरस्कार करते हो और मेरे कार्यों से बहुत घृणा करते हो। तुम्हारा समर्पण कहाँ है? तुम्हारा चरित्र कहाँ है? तुम्हारा प्रेम कहाँ है? तुमने कब अपने में प्रेम का तत्व दिखाया है? कब तुमने मेरे कार्य को गंभीरता से लिया है?
2 क्या तुम लोगों ने कभी भी उसका एहसास किया है जो तुम आज कर रहे हो—दुनिया भर में उपद्रव करना, एक दूसरे के खिलाफ षडयंत्र करना, एक दूसरे को धोखा देना, विश्वासघात, गोपनशीलता और बेशर्मी का व्यवहार करना, सच्चाई को न जानना, कुटिल और धोखेबाज बनना, चापलूसी करना, खुद को हमेशा सही और दूसरों से बेहतर मानना, घमंडी बनना, और पहाड़ों में जंगली जानवरों की तरह जंगलीपन करना और जानवरों के राजा की तरह कठोर बनना—क्या यही किसी मानव की सदृशता है? तुम लोग असभ्य और अनुचित हो। तुमने कभी मेरे वचन को कीमती नहीं माना है, बल्कि इसके बजाय तुम लोगों ने एक तिरस्कारपूर्ण रवैया अपनाया है।
3 इस तरह कहाँ से उपलब्धि, एक सच्चा मानव-जीवन, और सुंदर आसरे आएंगे? क्या तुम्हारी असंयत कल्पना वास्तव में तुम्हें बाघ के मुँह से बचा पाएगी? क्या यह वास्तव में तुम्हें जलती हुई आग से बचा पाएगी? क्या तुम इतने गिर गए होते अगर तुमने वास्तव में मेरे कार्य को अमूल्य खजाने के रूप में माना होता? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हारे नसीब को वास्तव में बदला नहीं जा सकता है? क्या तुम इस तरह के अफसोस के साथ मरने के लिए तैयार हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "मनुष्य का सार और उसकी पहचान" से रूपांतरित