तुम सभी कितने नीच चरित्र के हो!
तुम सभी शानदार कुर्सियों पर बैठते हो और युवा पीढ़ी के अपनी किस्म के लोगों को अपने पास बैठाकर भाषण देते हो। तुम लोग नहीं जानते कि तुम्हारे इन “वंशजों” की साँस बहुत पहले ही उखड़ चुकी है और वे मेरा कार्य खो चुके हैं। मेरी महिमा पूरब की भूमि से लेकर पश्चिम की भूमि तक चमकती है, लेकिन जब वह पृथ्वी के छोर तक फैलकर, उठने और चमकने लगेगी, तो मैं उसे पूरब से हटाकर पश्चिम में ले आऊँगा, ताकि तब से अँधेरे के लोग, जिन्होंने पूरब में मुझे त्याग दिया है, प्रकाश से वंचित हो जाएँ। जब ऐसा होगा, तब तुम लोग परछाई की घाटी में रहोगे। भले ही आज के लोग पहले से सौ गुना बेहतर हों, फिर भी वे मेरी अपेक्षाएँ पूरी नहीं कर सकते, और वे अभी भी मेरी महिमा के गवाह नहीं हैं। यह जो तुम लोग पहले से सौ गुना बेहतर हो पाए हो, यह पूरी तरह से मेरे कार्य का परिणाम है; यह पृथ्वी पर मेरे कार्य का फल है। लेकिन मुझे फिर भी तुम लोगों के वचनों और कर्मों के साथ-साथ तुम्हारे चरित्र से घृणा महसूस होती है, और जिस तरह से तुम मेरे सामने कार्य करते हो, उसके प्रति मुझे अत्यधिक आक्रोश महसूस होता है, क्योंकि तुम्हें मेरे बारे में कोई समझ नहीं है। तो फिर तुम मेरी महिमा को कैसे जी सकते हो, और मेरे भविष्य के कार्य के प्रति पूरी तरह से कैसे निष्ठावान रह सकते हो? तुम लोगों का विश्वास बहुत सुंदर है; तुम्हारा कहना है कि तुम अपना सारा जीवन-काल मेरे कार्य के लिए खपाने को तैयार हो, और तुम इसके लिए अपने प्राणों का बलिदान करने को तैयार हो, लेकिन तुम्हारे स्वभाव में अधिक बदलाव नहीं आया है। तुम लोग बस हेकड़ी से बोलते हो, बावजूद इस तथ्य के कि तुम्हारा वास्तविक व्यवहार बहुत घिनौना है। यह ऐसा है जैसे कि लोगों की जीभ और होंठ तो स्वर्ग में हों, लेकिन उनके पैर बहुत नीचे पृथ्वी पर हों, परिणामस्वरूप उनके वचन और कर्म तथा उनकी प्रतिष्ठा अभी भी चिथड़ा-चिथड़ा और विध्वस्त हैं। तुम लोगों की प्रतिष्ठा नष्ट हो गई है, तुम्हारा ढंग खराब है, तुम्हारे बोलने का तरीका निम्न कोटि का है, तुम्हारा जीवन घृणित है; यहाँ तक कि तुम्हारी सारी मनुष्यता डूबकर नीच अधमता में पहुँच गई है। तुम दूसरों के प्रति संकीर्ण सोच रखते हो और छोटी-छोटी बात पर बखेड़ा करते हो। तुम अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को लेकर इस हद तक झगड़ते हो कि नरक और आग की झील में उतरने तक को तैयार रहते हो। तुम लोगों के वर्तमान वचन और कर्म मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी हैं कि तुम लोग पापी हो। मेरे कार्य के प्रति तुम लोगों का रवैया मेरे लिए यह तय करने के लिए काफी है कि तुम लोग अधर्मी हो, और तुम लोगों के समस्त स्वभाव यह इंगित करने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम लोग घृणित आत्माएँ हो, जो गंदगी से भरी हैं। तुम लोगों की अभिव्यक्तियाँ और जो कुछ भी तुम प्रकट करते हो, वह यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि तुम वे लोग हो, जिन्होंने अशुद्ध आत्माओं का पेट भरकर रक्त पी लिया है। जब राज्य में प्रवेश करने का जिक्र होता है, तो तुम लोग अपनी भावनाएँ जाहिर नहीं करते। क्या तुम लोग मानते हो कि तुम्हारा मौजूदा ढंग तुम्हें मेरे स्वर्ग के राज्य के द्वार में प्रवेश कराने के लिए पर्याप्त है? क्या तुम लोग मानते हो कि तुम मेरे कार्य और वचनों की पवित्र भूमि में प्रवेश पा सकते हो, इससे पहले कि मैं तुम लोगों के वचनों और कर्मों का परीक्षण करूँ? कौन है, जो मेरी आँखों में धूल झोंक सकता है? तुम लोगों का घृणित, नीच व्यवहार और बातचीत मेरी दृष्टि से कैसे छिपे रह सकते हैं? तुम लोगों के जीवन मेरे द्वारा उन अशुद्ध आत्माओं का रक्त और मांस पीने और खाने वालों के जीवन के रूप में तय किए गए हैं, क्योंकि तुम लोग रोज़ाना मेरे सामने उनका अनुकरण करते हो। मेरे सामने तुम्हारा व्यवहार विशेष रूप से ख़राब रहा है, तो मैं तुम्हें घृणित कैसे न समझता? तुम्हारे शब्दों में अशुद्ध आत्माओं की अपवित्रताएँ है : तुम फुसलाते हो, भेद छिपाते हो चापलूसी करते हो, ठीक उन लोगों की तरह जो टोने-टोटकों में संलग्न रहते हैं और उनकी तरह भी जो कपट करते हैं और अधर्मियों का खून पीते हैं। मनुष्य के समस्त भाव बेहद अधार्मिक हैं, तो फिर सभी लोगों को पवित्र भूमि में कैसे रखा जा सकता है, जहाँ धर्मी रहते हैं? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारा यह घिनौना व्यवहार तुम्हें उन अधर्मी लोगों की तुलना में पवित्र होने की पहचान दिला सकता है? तुम्हारी साँप जैसी जीभ अंततः तुम्हारी इस देह का नाश कर देगी, जो तबाही बरपाती है और घृणा ढोती है, और तुम्हारे वे हाथ भी, जो अशुद्ध आत्माओं के रक्त से सने हैं, अंततः तुम्हारी आत्मा को नरक में खींच लेंगे। तो फिर तुम मैल से सने अपने हाथों को साफ़ करने का यह मौका क्यों नहीं लपकते? और तुम अधर्मी शब्द बोलने वाली अपनी इस जीभ को काटकर फेंकने के लिए इस अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाते? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने हाथों, जीभ और होंठों के लिए नरक की आग में जलने के लिए तैयार हो? मैं अपनी दोनों आँखों से हरेक व्यक्ति के दिल पर नज़र रखता हूँ, क्योंकि मानव-जाति के निर्माण से बहुत पहले मैंने उनके दिलों को अपने हाथों में पकड़ा था। मैंने बहुत पहले लोगों के दिलों के भीतर झाँककर देख लिया था, इसलिए उनके विचार मेरी दृष्टि से कैसे बच सकते थे? मेरे आत्मा द्वारा जलाए जाने से बचने में उन्हें ज्यादा देर कैसे नहीं हो सकती थी?
तुम्हारे होंठ कबूतरों से अधिक दयालु हैं, लेकिन तुम्हारा दिल पुराने साँप से ज्यादा भयानक है। तुम्हारे होंठ लेबनानी महिलाओं जितने सुंदर हैं, लेकिन तुम्हारा दिल उनकी तरह दयालु नहीं है, और कनानी लोगों की सुंदरता से तुलना तो वह निश्चित रूप से नहीं कर सकता। तुम्हारा दिल बहुत कपटी है! जिन चीज़ों से मुझे घृणा है, वे केवल अधर्मी के होंठ और उनके दिल हैं, और लोगों से मेरी अपेक्षाएँ, संतों से मेरी अपेक्षा से जरा भी अधिक नहीं हैं; बात बस इतनी है कि मुझे अधर्मियों के बुरे कर्मों से घृणा महसूस होती है, और मुझे उम्मीद है कि वे अपनी मलिनता दूर कर पाएँगे और अपनी मौजूदा दुर्दशा से बच सकेंगे, ताकि वे उन अधर्मी लोगों से अलग खड़े हो सकें और उन लोगों के साथ रह सकें और पवित्र हो सकें, जो धर्मी हैं। तुम लोग उन्हीं परिस्थितियों में हो जिनमें मैं हूँ, लेकिन तुम लोग मैल से ढके हो; तुम्हारे पास उन मनुष्यों की मूल समानता का छोटे से छोटा अंश भी नहीं है, जिन्हें शुरुआत में बनाया गया था। इतना ही नहीं, चूँकि तुम लोग रोज़ाना उन अशुद्ध आत्माओं की नकल करते हो, और वही करते हो जो वे करती हैं और वही कहते हो जो वे कहती हैं, इसलिए तुम लोगों के समस्त अंग—यहाँ तक कि तुम लोगों की जीभ और होंठ भी—उनके गंदे पानी से इस क़दर भीगे हुए हैं कि तुम लोग पूरी तरह से दाग़ों से ढँके हुए हो, और तुम्हारा एक भी अंग ऐसा नहीं है जिसका उपयोग मेरे कार्य के लिए किया जा सके। यह बहुत हृदय-विदारक है! तुम लोग घोड़ों और मवेशियों की ऐसी दुनिया में रहते हो, और फिर भी तुम लोगों को वास्तव में परेशानी नहीं होती; तुम लोग आनंद से भरे हुए हो और आज़ादी तथा आसानी से जीते हो। तुम लोग उस गंदे पानी में तैर रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का एहसास नहीं है कि तुम इस तरह की दुर्दशा में गिर चुके हो। हर दिन तुम अशुद्ध आत्माओं के साहचर्य में रहते हो और “मल-मूत्र” के साथ व्यवहार करते हो। तुम्हारा जीवन बहुत भद्दा है, फिर भी तुम इस बात से अवगत नहीं हो कि तुम बिल्कुल भी मनुष्यों की दुनिया में नहीं रहते और तुम अपने नियंत्रण में नहीं हो। क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारा जीवन बहुत पहले ही अशुद्ध आत्माओं द्वारा रौंद दिया गया था, या कि तुम्हारा चरित्र बहुत पहले ही गंदे पानी से मैला कर दिया गया था? क्या तुम्हें लगता है कि तुम एक सांसारिक स्वर्ग में रह रहे हो, और तुम खुशियों के बीच में हो? क्या तुम नहीं जानते कि तुमने अपना जीवन अशुद्ध आत्माओं के साथ बिताया है, और तुम हर उस चीज़ के साथ सह-अस्तित्व में रहे हो जो उन्होंने तुम्हारे लिए तैयार की है? तुम्हारे जीने के ढंग का कोई अर्थ कैसे हो सकता है? तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य कैसे हो सकता है? तुम अपने माता-पिता के लिए, अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता के लिए, दौड़-भाग करते रहे हो, फिर भी तुम्हें वास्तव में इस बात का अंदाज़ा नहीं है कि तुम्हें फँसाने वाले वे अशुद्ध आत्माओं के माता-पिता हैं, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया और पाल-पोसकर बड़ा किया। इसके अलावा, तुम नहीं जानते कि तुम्हारी सारी गंदगी वास्तव में उन्होंने ही तुम्हें दी है; तुम बस यही जानते हो कि वे तुम्हें “आनंद” दे सकते हैं, वे तुम्हें ताड़ना नहीं देते, न ही वे तुम्हारी आलोचना करते हैं, और विशेष रूप से वे तुम्हें शाप नहीं देते। वे कभी तुम पर गुस्से से भड़के नहीं, बल्कि तुम्हारे साथ स्नेह और दया का व्यवहार करते हैं। उनके शब्द तुम्हारे दिल को पोषण देते हैं और तुम्हें लुभाते हैं, ताकि तुम गुमराह हो जाओ, और बिना एहसास किए, तुम फँसालिए जाते हो और उनकी सेवा करने के इच्छुक हो जाते हो, उनके निकास और नौकर बन जाते हो। तुम्हें कोई शिकायत नहीं होती है, बल्कि तुम उनके लिए कुत्तों और घोड़ों की तरह कार्य करने के लिए तैयार रहते हो; वे तुम्हें गुमराह करते हैं। यही कारण है कि मेरे कार्य के प्रति तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मेरे हाथों से चुपके से निकल जाना चाहते हो, और कोई आश्चर्य नहीं कि तुम हमेशा मीठे शब्दों का प्रयोग करके छल से मेरी सहायता चाहते हो। इससे पता चलता है कि तुम्हारे पास पहले से एक दूसरी योजना थी, एक दूसरी व्यवस्था थी। तुम मेरे कुछ कार्यों को सर्वशक्तिमान के कार्य के रूप में देख सकते हो, पर तुम्हें मेरे न्याय और ताड़ना की जरा-सी भी जानकारी नहीं है। तुम्हें कोई अंदाज़ा नहीं है कि मेरी ताड़ना कब शुरू हुई; तुम केवल मुझे धोखा देना जानते हो—लेकिन तुम यह नहीं जानते कि मैं मनुष्य का कोई उल्लंघन बरदाश्त नहीं करूँगा। चूँकि तुम पहले ही मेरी सेवा करने का संकल्प ले चुके हो, इसलिए मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा। मैं ईर्ष्यालु परमेश्वर हूँ, और मैं वह परमेश्वर हूँ, जो मनुष्य के प्रति ईर्ष्या रखता है। चूँकि तुमने पहले ही अपने शब्दों को वेदी पर रख दिया है, इसलिए मैं यह बरदाश्त नहीं करूँगा कि तुम मेरी ही आँखों के सामने से भाग जाओ, न ही मैं यह बरदाश्त करूँगा कि तुम दो स्वामियों की सेवा करो। क्या तुम्हें लगता है कि मेरी वेदी पर और मेरी आँखों के सामने अपने शब्दों को रखने के बाद तुम किसी दूसरे से प्रेम कर सकते हो? मैं लोगों को इस तरह से मुझे मूर्ख कैसे बनाने दे सकता हूँ? क्या तुम्हें लगता था कि तुम अपनी जीभ से यूँ ही मेरे लिए प्रतिज्ञा और शपथ ले सकते हो? तुम मेरे सिंहासन की शपथ कैसे ले सकते हो, मेरा सिंहासन, मैं जो सबसे ऊँचा हूँ? क्या तुम्हें लगा कि तुम्हारी शपथ पहले ही खत्म हो चुकी है? मैं तुम लोगों को बता दूँ : तुम्हारी देह भले ही खत्म हो जाए, पर तुम्हारी शपथ खत्म नहीं हो सकती। अंत में, मैं तुम लोगों की शपथ के आधार पर तुम्हें दंड दूंगा। हालाँकि तुम लोगों को लगता है कि अपने शब्द मेरे सामने रखकर लापरवाही से मेरा सामना कर लोगे, और तुम लोगों के दिल अशुद्ध और बुरी आत्माओं की सेवा कर सकते हैं। मेरा क्रोध उन कुत्ते और सुअर जैसे लोगों को कैसे सहन कर सकता है, जो मुझे धोखा देते हैं? मुझे अपने प्रशासनिक आदेश कार्यान्वित करने होंगे, और अशुद्ध आत्माओं के हाथों से उन सभी पाखंडी, “पवित्र” लोगों को वापस खींचना होगा जिनका मुझमें विश्वास है, ताकि वे एक अनुशासित प्रकार से मेरे लिए “सेवारत” हो सकें, मेरे बैल बन सकें, मेरे घोड़े बन सकें, मेरे संहार की दया पर रह सकें। मैं तुमसे तुम्हारा पिछला संकल्प फिर से उठवाऊँगा और एक बार फिर से अपनी सेवा करवाऊँगा। मैं ऐसे किसी भी सृजित प्राणी को बरदाश्त नहीं करूँगा, जो मुझे धोखा दे। तुम्हें क्या लगा कि तुम बस बेहूदगी से अनुरोध कर सकते हो और मेरे सामने झूठ बोल सकते हो? क्या तुम्हें लगा कि मैंने तुम्हारे वचन और कर्म सुने या देखे नहीं? तुम्हारे वचन और कर्म मेरी दृष्टि में कैसे नहीं आ सकते? मैं लोगों को इस तरह अपने को धोखा कैसे देने दे सकता हूँ?
मैं तुम लोगों के बीच में रहा हूँ, कई वसंत और पतझड़ तुम्हारे साथ जुड़ा रहा हूँ; मैं लंबे समय तक तुम लोगों के बीच जीया हूँ, और तुम लोगों के साथ जीया हूँ। तुम लोगों का कितना घृणित व्यवहार मेरी आँखों के सामने से फिसला है? तुम्हारे वे हृदयस्पर्शी शब्द लगातार मेरे कानों में गूँजते हैं; तुम लोगों की हज़ारों-करोड़ों आकांक्षाएँ मेरी वेदी पर रखी गई हैं—इतनी ज्यादा कि उन्हें गिना भी नहीं जा सकता। लेकिन तुम लोगों का जो समर्पण है और जितना तुम अपने आपको खपाते हो, वह रंचमात्र भी नहीं है। मेरी वेदी पर तुम लोग ईमानदारी की एक नन्ही बूँद भी नहीं रखते। मुझ पर तुम लोगों के विश्वास के फल कहाँ हैं? तुम लोगों ने मुझसे अनंत अनुग्रह प्राप्त किया है और तुमने स्वर्ग के अनंत रहस्य देखे हैं; यहाँ तक कि मैंने तुम लोगों को स्वर्ग की लपटें भी दिखाई हैं, लेकिन तुम लोगों को जला देने को मेरा दिल नहीं माना। फिर भी, बदले में तुम लोगों ने मुझे कितना दिया है? तुम लोग मुझे कितना देने के लिए तैयार हो? जो भोजन मैंने तुम्हारे हाथ में दिया है, पलटकर उसी को तुम मुझे पेश कर देते हो, बल्कि यह कहते हो कि वह तुम्हें अपनी कड़ी मेहनत के पसीने के बदले मिला है और तुम अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर रहे हो। तुम यह कैसे नहीं जानते कि मेरे लिए तुम्हारा “योगदान” बस वे सभी चीज़ें हैं, जो मेरी ही वेदी से चुराई गई हैं? इतना ही नहीं, अब तुम वे चीज़ें मुझे चढ़ा रहे हो, क्या तुम मुझे धोखा नहीं दे रहे? तुम यह कैसे नहीं जान पाते कि आज जिन भेंटों का आनंद मैं उठा रहा हूँ, वे मेरी वेदी पर चढ़ाई गई सभी भेंटें हैं, न कि जो तुमने अपनी कड़ी मेहनत से कमाई हैं और फिर मुझे प्रदान की हैं। तुम लोग वास्तव में मुझे इस तरह धोखा देने की हिम्मत करते हो, इसलिए मैं तुम लोगों को कैसे माफ़ कर सकता हूँ? तुम लोग मुझसे इसे और सहने की अपेक्षा कैसे कर सकते हो? मैंने तुम लोगों को सब-कुछ दे दिया है। मैंने तुम लोगों के लिए सब-कुछ खोलकर रख दिया है, तुम्हारी ज़रूरतें पूरी की हैं, और तुम लोगों की आँखें खोली हैं, फिर भी तुम लोग अपनी अंतरात्मा की अनदेखी कर इस तरह मुझे धोखा देते हो। मैंने निःस्वार्थ भाव से अपना सब-कुछ तुम लोगों पर न्योछावर कर दिया है, ताकि तुम लोग अगर पीड़ित भी होते हो, तो भी तुम लोगों को मुझसे वह सब मिल जाए, जो मैं स्वर्ग से लाया हूँ। इसके बावजूद तुम लोगों में बिल्कुल भी समर्पण नहीं है, और अगर तुमने कोई छोटा-मोटा योगदान किया भी हो, तो बाद में तुम मुझसे उसका “हिसाब बराबर” करने की कोशिश करते हो। क्या तुम्हारा योगदान शून्य नहीं माना जाएगा? तुमने मुझे मात्र रेत का एक कण दिया है, जबकि माँगा एक टन सोना है। क्या तुम सर्वथा विवेकहीन नहीं बन रहे हो? मैं तुम लोगों के बीच काम करता हूँ। बदले में जो कुछ मुझे मिलना चाहिए, उसके दस प्रतिशत का भी कोई नामोनिशान नहीं है, अतिरिक्त बलिदानों की तो बात ही छोड़ दो। इसके अलावा, धर्मपरायण लोगों द्वारा दिए जाने वाले उस दस प्रतिशत को भी दुष्टों द्वारा छीन लिया जाता है। क्या तुम लोग मुझसे तितर-बितर नहीं हो गए हो? क्या तुम सब मेरे विरोधी नहीं हो? क्या तुम सब मेरी वेदी को नष्ट नहीं कर रहे हो? ऐसे लोगों को मेरी आँखें एक खज़ाने के रूप में कैसे देख सकती हैं? क्या वे सुअर और कुत्ते नहीं हैं, जिनसे मैं घृणा करता हूँ? मैं तुम लोगों के दुष्कर्मों को खज़ाना कैसे कह सकता हूँ? मेरा कार्य वास्तव में किसके लिए किया जाता है? क्या इसका प्रयोजन केवल मेरे द्वारा तुम लोगों को मार गिराकर अपना अधिकार प्रकट करना हो सकता है? क्या तुम लोगों के जीवन मेरे एक ही वचन पर नहीं टिके हैं? ऐसा क्यों है कि मैं तुम लोगों को निर्देश देने के लिए केवल वचनों का प्रयोग कर रहा हूँ, और मैंने जितनी जल्दी हो सके, तुम लोगों को मार गिराने के लिए अपने वचनों को तथ्यों में नहीं बदला है? क्या मेरे वचनों और कार्य का उद्देश्य केवल मानवजाति को समाप्त करना ही है? क्या मैं ऐसा परमेश्वर हूँ, जो अंधाधुंध निर्दोषों को मार डालता है? इस समय तुम लोगों में से कितने मानव-जीवन का सही मार्ग खोजने के लिए अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ मेरे सामने आ रहे हैं? मेरे सामने केवल तुम लोगों के शरीर हैं, तुम्हारे दिल अभी भी स्वतंत्र और मुझसे बहुत, बहुत दूर हैं। चूँकि तुम लोग नहीं जानते कि मेरा कार्य वास्तव में क्या है, इसलिए तुम लोगों में से कई ऐसे हैं, जो मुझे छोड़ जाना और मुझसे दूरी बनाना चाहते हैं, और इसके बजाय ऐसे स्वर्ग में रहने की आशा करते हैं, जहाँ कोई ताड़ना या न्याय नहीं है। क्या लोग अपने दिलों में इसी की कामना नहीं करते? मैं निश्चित रूप से तुम्हें बाध्य करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। तुम जो भी मार्ग अपनाते हो, वह तुम्हारी अपनी पसंद है। आज का मार्ग न्याय और शाप से युक्त है, लेकिन तुम सबको पता होना चाहिए कि जो कुछ भी मैंने तुम लोगों को दिया है—चाहे वह न्याय हो या ताड़ना—वे सर्वोत्तम उपहार हैं जो मैं तुम लोगों को दे सकता हूँ, और वे सब वे चीज़ें हैं जिनकी तुम लोगों को तत्काल आवश्यकता है।