तुम लोगों को कार्य को समझना चाहिए—भ्रम में अनुसरण मत करो!
आज ऐसे बहुत से लोग हैं जो भ्रमित तरीके से आस्था रखते हैं। तुम लोगों के अंदर जिज्ञासा बहुत अधिक है, आशीषों को प्राप्त करने की इच्छा बहुत अधिक है, और जीवन खोजने की आकांक्षा बहुत कम है। आजकल, लोग यीशु में अपने विश्वास को लेकर उत्साह से भरे हुए हैं। यीशु उन्हें वापस स्वर्गिक घर में ले जाने वाला है, तो वे विश्वास कैसे न करें? कुछ लोग जीवन भर विश्वासी रहे हैं; चालीस या पचास वर्षों तक विश्वास रखने के बाद भी वे बाइबल पढ़ते हुए कभी थकते नहीं। इसका कारण यह है कि उनका मानना है[क] कि चाहे कुछ भी हो जाए, जब तक उनमें आस्था है, तब तक वे स्वर्ग जा पाएंगे। तुम लोग केवल कुछ ही सालों से इस पथ पर परमेश्वर के पीछे चल रहे हो, लेकिन तुम्हारे कदम पहले ही लड़खड़ा गए हैं; तुम लोगों ने सहनशीलता खो दी है, क्योंकि आशीष प्राप्त करने की तुम लोगों की इच्छा कुछ ज़्यादा ही मजबूत है। तुम लोगों का इस सच्ची राह पर चलना, आशीष प्राप्त करने की तुम्हारी इच्छा और तुम्हारी जिज्ञासा द्वारा संचालित है। तुम लोगों को कार्य के इस चरण के विषय में बहुत समझ नहीं है। आज जो कुछ मैं कह रहा हूँ वह अधिकतर उन लोगों पर लक्षित नहीं है जो यीशु में विश्वास रखते हैं, न ही मैं यह उनकी धारणाओं का विरोध करने के लिए कह रहा हूँ। वास्तव में, जिन धारणाओं का खुलासा किया गया है ये वही हैं जो तुम लोगों के अंदर मौजूद हैं, क्योंकि तुम लोग समझते नहीं कि बाइबल को क्यों त्याग दिया गया है, मैं क्यों कहता हूँ कि यहोवा का कार्य पुराना हो गया है, या मैं क्यों कहता हूँ कि यीशु का कार्य पुराना हो गया है। बात यह है कि तुम लोग कई धारणाएं पाले हुए हो जिन्हें तुम लोगों ने अब तक खुलकर कहा नहीं है, साथ ही तुम लोगों के दिल की गहराई में कई विचार बंद हैं, और तुम लोग बस भीड़ के पीछे चलते हो। क्या तुम लोगों को सच में लगता है कि तुम लोगों ने कई धारणाएं नहीं पाल रखी हैं? बात बस इतनी-सी है कि तुम लोग उनके बारे में बोलते नहीं हो! दरअसल, तुम लोग केवल बेमन से परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और सही राह की खोज करने की कोशिश नहीं करते, तुम जीवन को प्राप्त करने के इरादे से नहीं आए हो। तुम लोगों का रवैया बस ये है कि देखें क्या होता है। क्योंकि तुम लोगों ने अपनी कई पुरानी धारणाओं को छोड़ा नहीं है, तुम लोगों में से ऐसा कोई भी नहीं है जो स्वयं को पूरी तरह से अर्पित करने में सक्षम हो। इस बिंदु पर पहुंचने के बाद भी, दिन और रात तुम्हारे अंदर विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं, तुम लोग अभी भी अपनी नियति के बारे में चिंतित बने रहते हो और कभी भी इसे छोड़ नहीं पाते। क्या तुम्हें लगता है कि जब मैं फ़रीसियों के बारे में बात करता हूँ, तो मैं धर्म के “पुरनियों” का उल्लेख कर रहा होता हूँ? क्या तुम लोग वर्तमान युग के सबसे अग्रिम फ़रीसियों के प्रतिनिधि नहीं हो? क्या तुम्हें लगता है कि जब मैं उन लोगों का उल्लेख करता हूँ, जो मुझे बाइबल की कसौटी पर जांचते हैं, तो मैं वे केवल धार्मिक मंडलियों के उन बाइबल विशेषज्ञों के बारे में ही बात कर रहा होता हूँ? क्या तुम मानते हो कि जब मैं उन लोगों के बारे में बात करता हूँ जो एक बार फिर क्रूस पर परमेश्वर को चढ़ा रहे हैं, तो मैं धार्मिक मंडलियों के अगुआओं के बारे में बात कर रहा हूँ? क्या तुम लोग उन सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक नहीं हो जो यह भूमिका निभाने के एकदम योग्य हैं? क्या तुम्हें लगता है कि लोगों की धारणाओं के विरुद्ध मैं जो वचन कहता हूँ वो बस मजहबी पादरियों और एल्डरों का मजाक उड़ाना है? क्या तुम लोगों ने भी इन सभी चीजों में अपनी भूमिका नहीं निभाई है? क्या तुम लोग आश्वस्त हो कि तुम लोगों ने बस कुछ ही धारणाएं पाल रखी हैं? बात बस इतनी-सी है कि अब तुम सबने चालाक बनना सीख लिया है। तुम लोग उन चीजों के बारे में बात नहीं करते या उनके बारे में अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं करते जिन्हें तुम लोग समझते नहीं हो, लेकिन तुम्हारे भीतर ऐसा दिल नहीं है जिसमें भय और समर्पण हो। जैसा कि तुम लोग देख सकते हो, पढ़ना, देखना, और प्रतीक्षा करना, आज तुम लोगों के अभ्यास के सर्वोत्तम तरीके हैं। तुम लोगों ने ज़्यादा ही चालाक होना सीख लिया है। परंतु, क्या तुम लोगों को इसका एहसास है कि यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक कपट है? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की कुछ पल की चतुराई तुम लोगों को अनन्त ताड़ना से बचने में मदद करेगी? तुम लोगों ने इतना “बुद्धिमान” होना सीख लिया है! और तो और, कुछ लोग तो मुझसे ऐसे प्रश्न करते हैं : “किसी दिन, जब धार्मिक जगत के लोग मुझसे पूछेंगे, तुम लोगों के परमेश्वर ने एक भी चमत्कार ‘क्यों नहीं किया है?’ मैं उन्हें कैसे समझाऊँ?” आजकल, यह ऐसा कुछ नहीं जो केवल धर्म जगत के लोग पूछेंगे; बात ये भी है कि तुम आज के कार्य को समझते नहीं हो, और तुम बहुत सी धारणाओं के तहत जीते हो। क्या तुम्हें अब भी नहीं पता है कि जब मैं धार्मिक अधिकारियों का उल्लेख करता हूँ, तो मैं किसके बारे में बात कर रहा होता हूँ? क्या तुम नहीं जानते कि मैं किसके लिए बाइबल समझा रहा हूँ? क्या तुम नहीं जानते कि जब मैं परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों को स्पष्ट करता हूँ, तो मैं किसके लिए बोल रहा हूँ? अगर मैं इन बातों को न कहता, तो क्या तुम लोग इतनी आसानी से आश्वस्त हो जाते? क्या तुम लोग इतनी आसानी से सर झुकाते? क्या तुम लोग इतनी आसानी से उन पुरानी धारणाओं को छोड़ देते? विशेषकर वे “मर्दाने पुरुष” जिन्होंने कभी किसी की आज्ञा का पालन नहीं किया—क्या वे इतनी आसानी से समर्पित हो जाते? मुझे पता है कि तुम लोगों की मानवता निचली कोटि की है, तुम बहुत कम योग्य हो, तुम्हारे पास कम विकसित मस्तिष्क है, और परमेश्वर में विश्वास करने का लंबा इतिहास नहीं है, वास्तव में तुम लोगों में कई धारणाएं हैं, और तुम लोगों की अंतर्निहित प्रकृति यह नहीं है कि तुम आसानी से किसी की आज्ञापालन कर लो। परंतु, आज तुम इसलिए समर्पण कर पा रहे हो क्योंकि तुम मजबूर और असहाय हो; तुम एक लोहे के पिंजरे में बंद बाघ की तरह हो, जो अपने कौशल का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं कर पा रहा है। अगर तुम लोगों के पास पंख भी होते, तो भी तुम्हें उड़ान भरना मुश्किल लगता। भले ही तुम लोगों को आशीष नहीं दी गयी है, फिर भी तुम लोग पीछे चलने के लिए तैयार हो। लेकिन, यह तुम लोगों का “अच्छे इंसानों” वाला मिजाज नहीं है, बल्कि बात यह है कि तुम लोगों को पूरी तरह चित्त कर दिया गया है, और तुम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। बात यह है कि इस सारे कार्य ने तुम लोगों को चारों खाने चित्त कर दिया है। यदि कोई ऐसी चीज होती जिसे तुम लोग प्राप्त कर सकते, तो तुम लोग जितने समर्पित आज हो उतने नहीं होते, क्योंकि पहले, तुम लोग जंगल में घूमते जंगली गधों की तरह थे। इस प्रकार, आज जो कहा जा रहा है, वह केवल विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के लिए नहीं है, न ही यह सिर्फ उनकी धारणाओं का विरोध करने के लिए है; बल्कि यह तुम लोगों की धारणाओं का विरोध करने के लिए है।
धार्मिकता का न्याय शुरू हो चुका है। क्या अब भी परमेश्वर लोगों के लिए एक पाप-बलि होगा? क्या वह एक बार फिर उनके लिए एक उत्कृष्ट चिकित्सक के रूप में कार्य करेगा? क्या परमेश्वर का इससे बड़ा कोई अधिकार नहीं है? लोगों के एक समूह को पहले ही पूरा किया जा चुका है, और उन्हें सिंहासन के सामने लाया जा चुका है; क्या वह अभी भी दुष्टात्माओं को निकालेगा और बीमारों के रोगों को दूर करेगा? क्या यह कुछ ज़्यादा ही पुराना नहीं है? अगर इसी तरह से चलता रहा तो क्या गवाही संभव होगी? एक बार क्रूस पर लटकाये जाने से क्या परमेश्वर हमेशा के लिए क्रूस पर चढ़ा दिया जाएगा? क्या एक बार दुष्टात्माओं को बाहर निकालने के बाद, वह उन्हें हमेशा ही बाहर निकालता रहेगा? क्या यह अपमान के तुल्य नहीं होगा? जब कार्य का यह चरण पहले की तुलना में अधिक उत्कृष्ट होगा, तब ही युग प्रगति की ओर आगे बढ़ेगा, और तब अंत के दिन आ चुके होंगे, और यह इस युग की समाप्ति का समय होगा। इसलिए जो लोग सत्य के पीछे चलते हैं, उन्हें दर्शनों की थाह पाने पर ध्यान देना चाहिए; यही नींव है। हर बार जब दर्शनों के बारे में मैं तुम लोगों के साथ सहभागिता करता हूँ, तो मैं हमेशा देखता हूँ कि कुछ लोगों की पलकें झपक जाती हैं और वे सो जाते हैं, सुनना नहीं चाहते। दूसरे लोग पूछते हैं : “तुम सुन क्यों नहीं रहे हो?” वे कहते हैं, “यह मेरे जीवन या वास्तविकता में मेरे प्रवेश की मदद नहीं करता। हमें अभ्यास की राहों की आवश्यकता है।” जब भी मैं अभ्यास के मार्गों की बजाय कार्य की बात करता हूँ, तो वे कहते हैं, “जैसे ही तुम कार्य के बारे में बात करते हो, मुझे नींद आने लगती है।” जब मैं अभ्यास के मार्गों के बारे में बात करना शुरू करता हूँ, वे नोट लिखने लगते हैं, जब मैं फिर से कार्य समझाने की बात करना शुरू करता हूँ, तो वे वापस सुनना बंद कर देते हैं। क्या तुम लोगों को पता है कि फिलहाल तुम्हारे अंदर कौन-सी बातें होनी चाहिए? इसके एक पहलू में कार्य के बारे में दर्शन शामिल है, और दूसरा पहलू है तुम्हारा अभ्यास। तुम्हें इन दोनों पहलुओं को समझना होगा। यदि जीवन में प्रगति करने की तुम्हारी खोज में दर्शनों की कमी है, तो तुम्हारी कोई नींव नहीं होगी। यदि तुम्हारे पास केवल अभ्यास के मार्ग हैं और दर्शन बिल्कुल भी नहीं है, और पूरी प्रबंधन योजना के कार्य की कोई भी समझ नहीं है, तो तुम बेकार हो। तुम्हें उन सत्यों को समझना होगा जिसमें दर्शन शामिल हैं, और जहाँ तक अभ्यास से संबंधित सत्यों का प्रश्न है, तुम्हें उन्हें समझने के बाद अभ्यास के उचित मार्गों की खोज करनी होगी; तुम्हें वचनों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए, और अपनी स्थिति के अनुसार उसमें प्रवेश करना चाहिए। दर्शन नींव हैं, और यदि तुम इस तथ्य पर ध्यान नहीं देते, तो तुम अंत तक अनुसरण नहीं कर सकोगे। इस तरह अनुभव करना, या तो तुम्हें भटका देगा या तुम्हें नीचे गिराकर विफल कर देगा। तुम्हारे लिए सफल होने का कोई रास्ता नहीं होगा! जिन लोगों की नींव में महान दर्शन नहीं हैं, वे विफल ही होते हैं, सफल नहीं हो सकते। तुम मजबूती से खड़े नहीं रह सकते हो! क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर में विश्वास करने का अर्थ क्या है? क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर के अनुसरण में क्या शामिल होता है? दर्शनों के बिना, तुम किस मार्ग पर चलोगे? आज के कार्य में, यदि तुम्हारे पास दर्शन नहीं हैं तो तुम किसी भी हाल में पूरे नहीं किए जा सकोगे। तुम किस पर विश्वास करते हो? तुम उसमें आस्था क्यों रखते हो? तुम उसके पीछे क्यों चलते हो? क्या तुम्हें अपना विश्वास कोई खेल लगता है? क्या तुम अपने जीवन के साथ किसी खेल की तरह बर्ताव कर रहे हो? आज का परमेश्वर सबसे महान दर्शन है। उसके बारे में तुम्हें कितना पता है? तुमने उसे कितना देखा है? आज के परमेश्वर को देखने के बाद क्या परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की नींव मजबूत है? क्या तुम्हें लगता है कि जब तक तुम इस उलझन भरे रास्ते पर चलते रहोगे, तुम्हें उद्धार प्राप्त होगा? क्या तुम्हें लगता है कि तुम कीचड़ से भरे पानी में मछली पकड़ सकते हो? क्या यह इतना सरल है? परमेश्वर ने आज जो वचन कहे हैं, उनसे संबंधित कितनी धारणाएं तुमने दरकिनार की हैं? क्या तुम्हारे पास आज के परमेश्वर का कोई दर्शन है? आज के परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है? तुम हमेशा मानते हो कि उसके पीछे चलकर तुम उसे[ख] प्राप्त कर सकते हो, उसे देखकर तुम उसे प्राप्त कर सकते हो, और कोई भी तुम्हें हटा नहीं सकेगा। ऐसा न मान लो कि परमेश्वर के पीछे चलना इतनी आसान बात है। मुख्य बात यह है कि तुम्हें उसे जानना चाहिए, तुम्हें उसका कार्य पता होना चाहिए, और तुम में उसके वास्ते कठिनाई का सामना करने की इच्छा होनी चाहिए, उसके लिए अपने जीवन का त्याग करने और उसके द्वारा पूर्ण किए जाने की इच्छा होनी चाहिए। तुम्हारे पास यह दर्शन होना चाहिए। अगर तुम्हारे ख़्याल हमेशा अनुग्रह पाने की ओर झुके रहते हैं, तो यह नहीं चलेगा। यह मानकर न चलो कि परमेश्वर यहाँ केवल लोगों के आनंद और केवल उन पर अनुग्रह बरसाने के लिए है। अगर तुम ऐसा सोचते हो तुम गलत होगे! अगर कोई उसका अनुसरण करने के लिए अपने जीवन को जोखिम में नहीं डाल सकता, संसार की प्रत्येक संपत्ति को त्याग नहीं कर सकता, तो वह अंत तक कदापि अनुसरण नहीं कर पाएगा! तुम्हारे दर्शन तुम्हारी नींव होने चाहिए। अगर किसी दिन तुम पर दुर्भाग्य आ पड़े, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? क्या तुम तब भी उसका अनुसरण कर पाओगे? तुम अंत तक अनुसरण कर पाओगे या नहीं, इस बात को हल्के में न कहो। बेहतर होगा कि तुम पहले अपनी आँखों को अच्छे से खोलो और देखो कि अभी समय क्या है। भले ही तुम लोग वर्तमान में मंदिर के खंभों की तरह हो, परंतु एक समय आएगा जब ऐसे खंभे कीड़ों द्वारा कुतर दिये जाएंगे जिससे मंदिर ढह जाएगा, क्योंकि फिलहाल तुम लोगों में अनेक दर्शनों की बहुत कमी है। तुम लोग केवल अपने छोटे-से संसार पर ध्यान देते हो, तुम लोगों को नहीं पता कि खोजने का सबसे विश्वसनीय, सबसे उपयुक्त तरीका क्या है। तुम लोग आज के कार्य के दर्शन पर ध्यान नहीं देते, न ही तुम लोग इन बातों को अपने दिल में रखते हो। क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि एक दिन परमेश्वर तुम लोगों को एक बहुत अपरिचित जगह में रखेगा? क्या तुम लोग सोच सकते हो जब मैं तुम लोगों से सब कुछ छीन लूँगा, तो तुम लोगों का क्या होगा? क्या उस दिन तुम लोगों की ऊर्जा वैसी ही होगी जैसी आज है? क्या तुम लोगों की आस्था फिर से प्रकट होगी? परमेश्वर के अनुसरण में तुम्हें इस सबसे महान दर्शन को जानना चाहिए जो “परमेश्वर” है : यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके अलावा, यह न मान बैठो कि पवित्र होने के इरादे से सांसारिक मनुष्यों से मेलजोल छोड़कर तुम लोग परमेश्वर का परिवार बन ही जाओगे। इन दिनों परमेश्वर स्वयं सृजित प्राणियों के बीच कार्य कर रहा है; वही लोगों के बीच अपना कार्य करने के लिए आया है—वह अभियान चलाने नहीं आया। तुम लोगों के बीच में, मुट्ठीभर भी ऐसे नहीं हैं जो जानते हों कि आज का कार्य स्वर्ग के परमेश्वर का कार्य है, जिसने देहधारण किया है। यह तुम लोगों को प्रतिभा से भरपूर उत्कृष्ट व्यक्ति बनाने के लिए नहीं है; यह मानवीय जीवन के मायने को जानने में, मनुष्यों की मंज़िल जानने के लिए, और परमेश्वर और उसकी समग्रता को जानने में तुम लोगों की मदद के लिए है। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम सृष्टिकर्ता के हाथ में एक सृजित प्राणी हो। तुम्हें क्या समझना चाहिए, तुम्हें क्या करना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण कैसे करना चाहिए—क्या ये वे सत्य नहीं हैं जिन्हें तुम्हें समझना चाहिए? क्या ये वे दर्शन नहीं हैं जिन्हें तुम्हें देखना चाहिए?
एक बार जब लोगों को दर्शन हो जाते हैं, तो उन्हें एक आधार मिल जाता है। जब तुम इस आधार पर अभ्यास करोगे, तो प्रवेश करना बहुत आसान होगा। इस तरह, एक बार जब तुम्हारे पास प्रवेश करने का आधार होगा, तो तुम्हें कोई गलतफहमी नहीं होगी, और तुम्हारे लिए प्रवेश करना बहुत आसान होगा। दर्शनों को समझने का, परमेश्वर के कार्य को जानने का यह पहलू महत्वपूर्ण है; तुम लोगों के भंडार में यह होना ही चाहिए। यदि सत्य का यह पहलू तुम्हारे अंदर नहीं है, और तुम केवल अभ्यास के मार्गों के बारे में ही बात करना जानते हो, तो तुम्हारे अंदर बहुत से दोष होंगे। मुझे पता चला है कि तुम लोगों में से कई सत्य के इस पहलू पर बल नहीं देते, और जब तुम इसे सुनते हो तो ऐसा लगता है कि तुम लोग केवल सिद्धांतों और शब्दों को सुन रहे हो। एक दिन तुम हार जाओगे। इन दिनों कुछ ऐसे कुछ कथन हैं जो तुम्हें ठीक से समझ नहीं आते हैं और जिन्हें तुम स्वीकार नहीं करते हो; ऐसे मामलों में तुम्हें धैर्यपूर्वक खोज करनी चाहिए, और वह दिन आएगा जब तुम समझ जाओगे। थोड़ा-थोड़ा करके तुम अधिक से अधिक दर्शन-लाभ करो। अगर तुम केवल कुछ आध्यात्मिक सिद्धांतों को ही समझ लो, तो भी यह दर्शनों की ओर ध्यान न देने से बेहतर होगा, और यह किसी भी सिद्धांत को न समझने से बेहतर होगा। यह सभी तुम्हारे प्रवेश के लिए सहायक हैं, और तुम्हारे उन संदेहों को दूर कर देंगे। यह तुम्हारे धारणाओं से भरा होने से बेहतर है। नींव के रूप में इन दर्शनों को रखने से तुम कहीं बेहतर स्थिति में होगे। तुम्हें किसी प्रकार की कोई गलतफहमी नहीं होगी, और तुम सिर उठाकर और आत्मविश्वास के साथ प्रवेश कर पाओगे। हमेशा इतने भ्रमित और संदेहयुक्त होकर अनुसरण करने का क्या लाभ? क्या यह रेत में मुँह छिपाने जैसा नहीं है? विश्वास के साथ और सिर उठाकर राज्य में प्रवेश करना कितना अच्छा होगा! इतनी गलतफहमियाँ पालने से क्या लाभ? क्या तुम अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हो? एक बार जब तुम्हें यहोवा के कार्य, यीशु के कार्य और कार्य के इस चरण की समझ प्राप्त हो जायेगी, तो तुम्हारे पास एक आधार होगा। इस पल, तुम्हें यह बहुत सरल लग सकता है। कुछ लोग कहते हैं, “जब समय आएगा और पवित्र आत्मा महान कार्य शुरू करेगा, तो मैं इन सभी चीज़ों पर बात कर पाऊँगा। अभी मैं इसलिए समझ नहीं पा रहा हूँ क्योंकि पवित्र आत्मा ने अभी तक मुझे उतना अधिक प्रबुद्ध नहीं किया है।” यह इतना आसान नहीं है; ऐसा कुछ नहीं है कि अगर तुम अभी सत्य[ग] स्वीकार करने के लिए तैयार हो, तो समय आने पर तुम इसका कुशलतापूर्वक उपयोग करोगे। ऐसा होगा आवश्यक नहीं है! तुम मानते हो कि तुम वर्तमान में बहुत अच्छी तरह से तैयार हो, और तुम्हें उन धार्मिक लोगों और महानतम सिद्धांतकारों को जवाब देने में कोई समस्या नहीं होगी, यहां तक कि उन्हें खारिज करने में भी कोई दिक्कत नहीं आएगी। क्या तुम वास्तव में ऐसा कर पाओगे? अपने इस सतही अनुभव के साथ तुम किस समझ की बात कर सकते हो? सत्य से युक्त होकर, सत्य की लड़ाई लड़ते हुए, परमेश्वर के नाम की गवाही देना, ये सब वैसे नहीं हैं जैसा तुम सोचते हो—कि जब तक परमेश्वर कार्य कर रहा है, सब कुछ पूरा हो जाएगा। उस समय तक, शायद तुम कुछ प्रश्नों से स्तब्ध हो जाओ, और फिर तुम अचंभित रह जाओगे। मुख्य बात यह है कि कार्य के इस चरण के बारे में तुम्हारे पास स्पष्ट समझ है या नहीं, और तुम वास्तव में इस बारे में कितना समझते हो। यदि तुम शत्रु शक्तियों पर विजय नहीं पा सकते, या तुम धार्मिक शक्तियों को पराजित नहीं कर सकते, तो फिर क्या तुम बेकार की वस्तु नहीं होगे? तुमने आज के कार्य का अनुभव किया है, इसे अपनी आंखों से देखा है और इसे अपने कानों से सुना है, लेकिन अगर अंत में तुम गवाही न दे पाओ, तो क्या फिर भी तुम्हारी इतनी जुर्रत होगी कि तुम जीवित बने रह सको? तुम किसका सामना कर पाओगे? अभी ऐसा न सोचो कि यह इतना सरल होगा। भविष्य का कार्य उतना सरल नहीं होगा जितनी तुम कल्पना करते हो; सत्य की लड़ाई लड़ना इतना आसान नहीं है, इतना सीधा नहीं है। इस वक्त, तुम्हें तैयार रहने की आवश्यकता है; यदि तुम सत्य से युक्त नहीं हो तो जब समय आएगा और पवित्र आत्मा अलौकिक तरीके से काम नहीं कर रहा होगा, तो तुम भ्रमित हो जाओगे।
फुटनोट :
क. मूल पाठ में, “उनका मानना है” यह वाक्यांश नहीं है।
ख. मूल पाठ में “उसे” शब्द शामिल नहीं है।
ग. मूल पाठ में “सत्य” शब्द शामिल नहीं है।