कार्य और प्रवेश (3)

परमेश्वर ने मनुष्यों को बहुत-कुछ सौंपा है और अनगिनत प्रकार से उनके प्रवेश के बारे में भी संबोधित किया है। परंतु चूँकि लोगों की क्षमता बहुत ख़राब है, इसलिए परमेश्वर के बहुत सारे वचन जड़ पकड़ने में असफल रहे हैं। इस ख़राब क्षमता के विभिन्न कारण हैं, जैसे कि मनुष्य के विचार और नैतिकता का भ्रष्ट होना, और उचित पालन-पोषण की कमी; सामंती अंधविश्वास, जिन्होंने मनुष्य के हृदय को बुरी तरह से जकड़ लिया है; दूषित और पतनशील जीवन-शैलियाँ, जिन्होंने मनुष्य के हृदय के गहनतम कोनों में कई बुराइयाँ स्थापित कर दी हैं; सांस्कृतिक ज्ञान की सतही समझ, लगभग अठानवे प्रतिशत लोगों में सांस्कृतिक ज्ञान की शिक्षा की कमी है और इतना ही नहीं, बहुत कम लोग उच्च स्तर की सांस्कृतिक शिक्षा प्राप्त करते हैं। इसलिए, मूल रूप से लोगों को पता नहीं है कि परमेश्वर या पवित्रात्मा का क्या अर्थ है, उनके पास परमेश्वर की सामंती अंधविश्वासों से प्राप्त केवल एक धुँधली और अस्पष्ट तसवीर है। वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की “राष्ट्रवाद की बुलंद भावना” ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि नकारात्मक और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और लाभ की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लंबे अरसे से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानव-प्रकृति बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना काफी कठिन हो गया है, यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने लोगों को आज सौंपा है, उस पर वे ध्यान भी देना नहीं चाहते। कुछ भी हो, मैं विश्वास करता हूँ कि मेरे द्वारा ये वचन बोलने का लोग बुरा नहीं मानेंगे, क्योंकि मैं हज़ारों वर्षों के इतिहास के बारे में बात कर रहा हूँ। इतिहास के बारे में बात करने का अर्थ है तथ्य, और इससे भी अधिक, घोटाले, जो सबके सामने प्रत्यक्ष हैं, इसलिए तथ्य के विपरीत बात कहने का क्या अर्थ है? परंतु मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि इन शब्दों को देख-सुनकर समझदार लोग जागृत होंगे और प्रगति करने का प्रयास करेंगे। परमेश्वर आशा करता है कि मनुष्य शांति और संतोष के साथ जीने और कार्य करने तथा परमेश्वर से प्रेम करने का कार्य एक-साथ कर सकते हैं। यह परमेश्वर की इच्छा है कि सारी मनुष्यजाति विश्राम में प्रवेश करे; इससे भी अधिक, परमेश्वर की इच्छा यह है कि संपूर्ण भूमि परमेश्वर की महिमा से भर जाए। यह शर्म की बात है कि मनुष्य विस्मरण की स्थिति में डूबे और प्रसुप्त रहते हैं, उन्हें शैतान द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट किया गया है कि अब वे मनुष्य जैसे रहे ही नहीं। इसलिए मनुष्य के विचार, नैतिकता और शिक्षा एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाते हैं, और सांस्कृतिक ज्ञान के प्रशिक्षण से दूसरी कड़ी बनती है, जो मनुष्यों की सांस्कृतिक क्षमता बढ़ाने और उनका आध्यात्मिक दृष्टिकोण बदलने के लिए बेहतर है।

वास्तव में, मनुष्यजाति से परमेश्वर की अपेक्षाएँ उतनी बड़ी नहीं हैं, परंतु चूँकि लोगों की योग्यता और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित स्तर के बीच बहुत बड़ा अंतर है, इसलिए अधिकांश लोग बस अपने सिर उठाकर परमेश्वर की अपेक्षाओं की दिशा में देखते हैं, परंतु उनमें उन्हें पूर्ण करने की योग्यता की कमी होती है। लोगों की जन्मजात वृत्ति और जन्म के बाद उन्हें जो कुछ मिलता है वह, परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। परंतु मात्र इस बात को पहचान लेना ही अचूक समाधान नहीं है। दूर मौजूद पानी तत्काल लगी प्यास नहीं मिटा सकता। भले ही लोगों को यह ज्ञात हो कि वे धूल से भी अधिक हीन हैं, पर यदि उनके पास परमेश्वर के हृदय को संतुष्ट करने का संकल्प नहीं है, और वे परमेश्वर की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिए उन्नत तरीकों का भी प्रयोग नहीं करते, तो उस प्रकार के ज्ञान का क्या मूल्य है? क्या यह छलनी से पानी निकालने के समान—पूरी तरह से व्यर्थ नहीं है? मैं जो कह रहा हूँ, उसका मूल बिंदु प्रवेश है; यही मुख्य विषय है।

मनुष्य के प्रवेश करने के समय के दौरान जीवन सदा उबाऊ होता है, आध्यात्मिक जीवन के नीरस तत्त्वों से भरा, जैसे कि प्रार्थना करना, परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना या सभाएँ आयोजित करना, इसलिए लोगों को हमेशा यह लगता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने में कोई आनंद नहीं आता। ऐसी आध्यात्मिक क्रियाएँ हमेशा मनुष्यजाति के मूल स्वभाव के आधार पर की जाती हैं, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है। यद्यपि कभी-कभी लोगों को पवित्र आत्मा का प्रबोधन प्राप्त हो सकता है, परंतु उनकी मूल सोच, स्वभाव, जीवन-शैली और आदतें अभी भी उनके भीतर जड़ पकड़े हुए हैं, और इसलिए उनका स्वभाव अपरिवर्तित रहता है। जिन अंधविश्वासी गतिविधियों में लोग संलग्न रहते हैं, परमेश्वर उनसे सबसे ज्यादा घृणा करता है, परंतु बहुत-से लोग अभी भी यह सोचकर उन्हें त्यागने में असमर्थ हैं कि अंधविश्वास की इन गतिविधियों की आज्ञा परमेश्वर द्वारा दी गई है, और आज भी उन्हें पूरी तरह से त्यागा जाना बाकी है। ऐसी चीज़ें, जैसे कि युवा लोगों द्वारा विवाह के भोज और दुल्हन के साज-सामान का प्रबंध; नकद उपहार, प्रीतिभोज, और ऐसे ही अन्य तरीके, जिनसे आनंद के अवसर मनाए जाते हैं; प्राचीन फार्मूले, जो पूर्वजों से मिले हैं; अंधविश्वास की वे सारी गतिविधियाँ, जो मृतकों तथा उनके अंतिम संस्कार के लिए की जाती हैं : ये परमेश्वर के लिए और भी ज्यादा घृणास्पद हैं। यहाँ तक कि आराधना का दिन (धार्मिक जगत द्वारा मनाए जाने वाले सब्त समेत) भी उसके लिए घृणास्पद है; और मनुष्यों के बीच के सामाजिक संबंधों और सांसारिक मेलजोल का परमेश्वर और भी अधिक तिरस्कार करता है। यहाँ तक कि वसंतोत्सव और क्रिसमस भी, जिनके बारे में सब जानते हैं, परमेश्वर की आज्ञा से नहीं मनाए जाते, इन त्योहारों की छुट्टियों के लिए खिलौनों और सजावट, जैसे कि गीत, पटाखे, लालटेनें, पवित्र समागम, क्रिसमस के उपहार और क्रिसमस के उत्सव, और परम समागम की तो बात ही छोड़ो—क्या वे मनुष्यों के मन की मूर्तियाँ नहीं हैं? सब्त के दिन रोटी तोड़ना, शराब और बढ़िया लिनन और भी अधिक प्रभावी मूर्तियाँ हैं। चीन में लोकप्रिय सभी पारंपरिक पर्व-दिवस, जैसे ड्रैगन के सिर उठाने का दिन, ड्रैगन नौका महोत्सव, मध्य-शरद महोत्सव, लाबा महोत्सव और नव वर्ष उत्सव, और धार्मिक जगत के त्योहार जैसे ईस्टर, बपतिस्मा दिवस और क्रिसमस, ये सभी अनुचित त्योहार प्राचीन काल से बहुत लोगों द्वारा मनाए जा रहे हैं और आगे सौंपे जाते रहे हैं। यह मनुष्यजाति की समृद्ध कल्पना और प्रवीण धारणा ही है, जिसने उन्हें तब से लेकर आज तक आगे बढ़ाया है। ये निर्दोष प्रतीत होते हैं, परंतु वास्तव में ये शैतान द्वारा मनुष्यजाति के साथ खेली जाने वाली चालें हैं। जो स्थान शैतानों से जितना ज्यादा भरा होगा, और जितना वह पुराने ढंग का और पिछड़ा हुआ होगा, उतनी ही गहराई से वह सामंती रीति-रिवाजों से घिरा होगा। ये चीज़ें लोगों को कसकर बाँध देती हैं और उनके हिलने-डुलने की भी गुंजाइश नहीं छोड़तीं। धार्मिक जगत के कई त्योहार बड़ी मौलिकता प्रदर्शित करते हैं और परमेश्वर के कार्य के लिए एक सेतु का निर्माण करते प्रतीत होते हैं; किंतु वास्तव में वे शैतान के अदृश्य बंधन हैं, जिनसे वह लोगों को बाँध देता है और परमेश्वर को जानने से रोक देता है—वे सब शैतान की धूर्त चालें हैं। वास्तव में, जब परमेश्वर के कार्य का एक चरण समाप्त हो जाता है, तो वह उस समय के साधन और शैली नष्ट कर चुका होता है और उनका कोई निशान नहीं छोड़ता। परंतु “सच्चे विश्वासी” उन मूर्त भौतिक वस्तुओं की आराधना करना जारी रखते हैं; इस बीच वे परमेश्वर की सत्ता को अपने मस्तिष्क के पिछले हिस्से में खिसका देते हैं और उसके बारे में आगे कोई अध्ययन नहीं करते, और यह समझते हैं कि वे परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरे हुए हैं, जबकि वास्तव में वे उसे बहुत पहले ही घर के बाहर धकेल चुके होते हैं और शैतान को आराधना के लिए मेज पर रख चुके होते हैं। यीशु, क्रूस, मरियम, यीशु का बपतिस्मा, अंतिम भोज के चित्र—लोग इन्हें स्वर्ग के प्रभु के रूप में आदर देते हैं, जबकि पूरे समय बार-बार “प्रभु, स्वर्गिक पिता” पुकारते हैं। क्या यह सब मज़ाक नहीं है? आज तक पूर्वजों द्वारा मनुष्यजाति को सौंपी गई ऐसी कई बातों और प्रथाओं से परमेश्वर को घृणा है; वे गंभीरता से परमेश्वर के लिए आगे के मार्ग में बाधा डालती हैं और, इतना ही नहीं, वे मनुष्यजाति के प्रवेश में भारी अड़चन पैदा करती हैं। यह बात तो रही एक तरफ कि शैतान ने मनुष्यजाति को किस सीमा तक भ्रष्ट किया है, लोगों के अंतर्मन विटनेस ली के नियम, लॉरेंस के अनुभवों, वॉचमैन नी के सर्वेक्षणों और पौलुस के कार्य जैसी चीज़ों से पूर्णतः भरे हुए हैं। परमेश्वर के पास मनुष्यों पर कार्य करने के लिए कोई मार्ग ही नहीं है, क्योंकि उनके भीतर व्यक्तिवाद, विधियाँ, नियम, विनियम, प्रणालियाँ और ऐसी ही अनेक चीज़ें बहुत ज्यादा भरी पड़ी हैं; लोगों के सामंती अंधविश्वास की प्रवृत्तियों के अतिरिक्त इन चीज़ों ने मनुष्यजाति को बंदी बनाकर उसे निगल लिया है। यह ऐसा है, मानो लोगों के विचार एक रोचक चलचित्र हों, जो बादलों की सवारी करने वाले विलक्षण प्राणियों के साथ पूरे रंग में एक परि-कथा का वर्णन कर रहा है, जो इतना कल्पनाशील है कि लोगों को विस्मित कर देता है और उन्हें चकित और अवाक छोड़ देता है। सच कहा जाए, तो आज परमेश्वर जो काम करने के लिए आया है, वह मुख्यतः मनुष्यों के अंधविश्वासी लक्षणों की काट-छाँट और उन्हें दूर करना तथा उनके मानसिक दृष्टिकोण पूर्ण रूप से रूपांतरित करना है। परमेश्वर का कार्य उस विरासत के कारण आज तक पूरा नहीं हुआ है, जो मनुष्यजाति द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे सौंपी गई है; यह वह कार्य है, जो किसी महान आध्यात्मिक व्यक्ति की धरोहर को आगे बढ़ाने, या परमेश्वर द्वारा किसी अन्य युग में किए गए किसी प्रतिनिधि प्रकृति के कार्य को विरासत में प्राप्त करने की आवश्यकता के बिना उसके द्वारा व्यक्तिगत रूप से आरंभ और पूर्ण किया गया है। मनुष्यों को इनमें से किसी चीज़ की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आज परमेश्वर के बोलने और कार्य करने की भिन्न शैली है, फिर मनुष्यों को कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता है? यदि मनुष्य अपने “पूर्वजों” की विरासत को जारी रखते हुए वर्तमान धारा के अंतर्गत आज के मार्ग पर चलते हैं, तो वे अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पाएँगे। परमेश्वर मानव-व्यवहार के इस विशेष ढंग से बहुत घृणा करता है, वैसे ही जैसे वह मानव-जगत के वर्षों, महीनों और दिनों से घृणा करता है।

मनुष्य के स्वभाव को बदलने का सबसे अच्छा तरीका लोगों के अंतर्मन के उन हिस्सों को ठीक करना है, जिन्हें गहराई से विषैला कर दिया गया है, ताकि लोग अपनी सोच और नैतिकता को बदल सकें। सबसे पहले, लोगों को स्पष्ट रूप से यह देखने की ज़रूरत है कि परमेश्वर के लिए धार्मिक संस्कार, धार्मिक गतिविधियाँ, वर्ष और महीने, और त्योहार घृणास्पद हैं। उन्हें सामंती विचारधारा के इन बंधनों से मुक्त होना चाहिए और अंधविश्वास की गहरी जमी बैठी प्रवृत्ति के हर निशान को जड़ से उखाड़ देना चाहिए। ये सब मनुष्यजाति के प्रवेश में सम्मिलित हैं। तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि क्यों परमेश्वर मनुष्यजाति को सांसारिक जगत से बाहर ले जाता है, और फिर क्यों वह मनुष्यजाति को नियमों और विनियमों से दूर ले जाता है। यही वह द्वार है, जिससे तुम लोग प्रवेश करोगे, और यद्यपि इन चीज़ों का तुम्हारे आध्यात्मिक अनुभव के साथ कोई संबंध नहीं है, फिर भी ये तुम लोगों का प्रवेश और परमेश्वर को जानने का मार्ग अवरुद्ध करने वाली सबसे बड़ी अड़चनें हैं। वे एक जाल बुनती हैं, जो लोगों को फँसा लेता है। कई लोग बाइबल को बहुत अधिक पढ़ते हैं, यहाँ तक कि अपनी स्मृति से बाइबल के अनेक अंश सुना भी सकते हैं। आज अपने प्रवेश में लोग परमेश्वर के कार्य को मापने के लिए अनजाने में बाइबल का प्रयोग करते हैं, मानो परमेश्वर के कार्य में इस चरण का आधार बाइबल हो और उसका स्रोत भी बाइबल हो। जब परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुरूप होता है, तब लोग परमेश्वर के कार्य का दृढ़ता से समर्थन करते हैं और नई श्रद्धा के साथ उसका आदर करते हैं; जब परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुरूप नहीं होता, तब लोग इतने व्याकुल हो जाते हैं कि बाइबल में परमेश्वर के कार्य का आधार खोजते-खोजते उनके पसीने छूटने लगते हैं; यदि बाइबल में परमेश्वर के कार्य का कोई उल्लेख न मिले, तो लोग परमेश्वर को अनदेखा कर देंगे। यह कहा जा सकता है कि जहाँ तक परमेश्वर के आज के कार्य का संबंध है, ज्यादातर लोग उसे बहुत सतर्कतापूर्वक स्वीकार करते हैं, उसके प्रति चुनिंदा समर्पण करते हैं, और उसे जानने के बारे में उदासीन अनुभव करते हैं; जहाँ तक अतीत की बातों का प्रश्न है, वे उनके आधे भाग को पकड़े रहते हैं और बाकी आधे को त्याग देते हैं। क्या इसे प्रवेश कहा जा सकता है? दूसरों की पुस्तकें किसी खज़ाने की तरह थामकर और उन्हें स्वर्ग के द्वार की सुनहरी कुंजी समझकर लोग साफ़-साफ़ उस चीज़ में रुचि नहीं दर्शाते, जो परमेश्वर आज उनसे चाहता है। इतना ही नहीं, बहुत सारे “बुद्धिमान विशेषज्ञ” परमेश्वर के वचन अपने बाएँ हाथ में और दूसरों की “उत्कृष्ट कृतियाँ” अपने दाएँ हाथ में रखते हैं, मानो वे परमेश्वर के आज के वचनों का आधार इन उत्कृष्ट कृतियों में खोजना चाहते हों, ताकि पूर्ण रूप से यह सिद्ध कर सकें कि परमेश्वर के वचन सही हैं, यहाँ तक कि वे दूसरों के सामने परमेश्वर के वचनों की व्याख्या उत्कृष्ट कृतियों के साथ जोड़कर करते हैं, मानो बड़ा भारी काम कर रहे हों। सच कहा जाए, तो मनुष्यजाति में ऐसे बहुत सारे “वैज्ञानिक शोधकर्ता” हैं, जिन्होंने आज की वैज्ञानिक उपलब्धियों को कभी अधिक महत्व नहीं दिया, ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धियों को, जिनकी कोई मिसाल नहीं है (अर्थात् परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर के वचन, और जीवन में प्रवेश का मार्ग), इसलिए लोग पूरी तरह से “आत्मनिर्भर” हैं, अपनी वाक्पटुता के बल पर बड़े और व्यापक “उपदेश” देते हैं और “परमेश्वर के अच्छे नाम” पर अकड़ते हैं। इस बीच, उनका स्वयं का प्रवेश संकट में होता है और वे परमेश्वर की अपेक्षाओं से उतनी ही दूर दिखते हैं, जितनी दूर इस क्षण सृष्टि दिखती है। कितना सरल है परमेश्वर का कार्य करना? ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों ने पहले ही स्वयं को आधा बीते हुए कल में छोड़ देने और आधा आज में लाने, आधा शैतान को सौंपने और आधा परमेश्वर को प्रस्तुत करने का मन बना लिया है, मानो यही अपने अंतःकरण को शांत करने तथा कुछ सुख की भावना अनुभव करने का मार्ग हो। लोगों की भीतरी दुनिया इतनी कपट से भरी है कि वे न सिर्फ आने वाले कल को, बल्कि बीते हुए कल को भी खोने से डरते हैं, वे आज शैतान और परमेश्वर, जो लगता है कि है भी और नहीं भी, दोनों को अप्रसन्न करने से गहराई से डरते हैं। चूँकि लोग अपनी सोच और नैतिकता को सही तरीके से विकसित करने में विफल रहे हैं, इसलिए उनमें विवेक की विशेष कमी है, और वे यह बता ही नहीं सकते कि आज का कार्य परमेश्वर का कार्य है या नहीं है। शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि लोगों की सामंती और अंधविश्वासी सोच इतनी गहरी है कि उन्होंने बहुत पहले ही अंधविश्वास और सत्य, परमेश्वर और मूर्तियों में अंतर की परवाह न करते हुए उन्हें एक ही श्रेणी में रख दिया है और अपने दिमाग़ पर जोर देने के बावजूद वे उनमें स्पष्ट रूप से अंतर करने में असमर्थ प्रतीत होते हैं। इसलिए मनुष्य अपने मार्ग पर ठहर गए हैं और अब और आगे नहीं बढ़ते। यह सब समस्याएँ लोगों में सही वैचारिक शिक्षा की कमी के कारण उत्पन्न होती है, जो उनके प्रवेश में बहुत कठिनाइयाँ उत्पन्न करती है। परिणामस्वरूप, लोग सच्चे परमेश्वर के कार्य में कोई रुचि महसूस नहीं करते, बल्कि मनुष्य के (जैसे कि उनके, जिन्हें वे महापुरुष समझते हैं) कार्य से दृढ़ता से चिपके[1] रहते हैं, जैसे कि उन पर उसकी मुहर लग गई हो। क्या ये नवीनतम विषय नहीं हैं, जिनमें मनुष्यजाति को प्रवेश करना चाहिए?

फुटनोट :

1. “दृढ़ता से चिपके” का प्रयोग उपहास के रूप में किया गया है। यह वाक्यांश दर्शाता है कि लोग जिद्दी और अड़ियल हैं, जो पुरानी बातों को पकड़े रहते हैं और उन्हें त्यागने के लिए तैयार नहीं होते।

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