युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन
मैंने पृथ्वी पर बहुत अधिक कार्य किया है और मैं बहुत वर्षों तक मानव-जाति के बीच चला हूँ, फिर भी लोगों को मेरी छवि और स्वभाव का शायद ही ज्ञान है और कुछ ही लोग उस कार्य के बारे में पूरी तरह से बता सकते हैं जो मैं करता हूँ। लोगों में बहुत सी चीजों की कमी है, उनमें इस समझ की कमी हमेशा रहती है कि मैं क्या करता हूँ, और उनके दिल हमेशा सतर्क रहते हैं, मानो वे बहुत डरते हों कि मैं उन्हें किसी दूसरी स्थिति में डाल दूँगा और फिर उन पर कोई ध्यान नहीं दूँगा। इस प्रकार, मेरे प्रति लोगों का रवैया हमेशा अत्यंत सतर्कता के साथ बहुत उदासीन रहता है। इसका कारण यह है कि मैं जो कार्य करता हूँ, लोग उसे समझे बिना वर्तमान तक आए हैं, और विशेषकर, वे उन वचनों से चकित हैं, जो मैं उनसे कहता हूँ। वे मेरे वचनों को यह जाने बिना अपने हाथों में रखते हैं कि उन्हें इन पर अटल विश्वास करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए या अनिर्णय का विकल्प चुनते हुए उन्हें भूल जाना चाहिए। वे नहीं जानते कि उन्हें इन शब्दों को अभ्यास में लाना चाहिए या इंतजार करना और देखना चाहिए; उन्हें सब-कुछ छोड़कर बहादुरी से अनुसरण करना चाहिए, या पहले की तरह दुनिया के साथ मित्रता जारी रखनी चाहिए। लोगों की आंतरिक दुनिया बहुत जटिल है और वे बहुत धूर्त हैं। चूँकि लोग मेरे वचनों को स्पष्ट या पूर्ण रूप से देख नहीं पाते, इसलिए उनमें से बहुतों को अभ्यास करने में कष्ट होता है और अपना दिल मेरे सामने रखने में कठिनाई होती है। मैं तुम लोगों की कठिनाइयों को गहराई से समझता हूँ। देह में रहते हुए कई कमजोरियाँ अपरिहार्य होती हैं और कई वस्तुगत कारक तुम्हारे लिए कठिनाइयाँ पैदा करते हैं। तुम लोग अपने परिवार का पालन-पोषण करते हो, अपने दिन कड़ी मेहनत करते हुए बिताते हो, और तुम्हारे साल-दर-साल तुम्हारा समय कष्ट में बीतता है। देह में रहने में कई कठिनाइयाँ हैं—मैं इससे इनकार नहीं करता, और तुम लोगों से मेरी अपेक्षाएँ निश्चित रूप से तुम्हारी कठिनाइयों के अनुसार हैं। मेरे कार्य की सभी अपेक्षाएँ तुम्हारे वास्तविक आध्यात्मिक कद पर आधारित हैं। शायद अतीत में लोगों द्वारा अपने कार्य में तुम लोगों से की गई अपेक्षाएँ अत्यधिकता के तत्त्वों से युक्त थीं, लेकिन तुम लोगों को यह जान लेना चाहिए कि मैंने कभी भी अपने कहने और करने में तुम लोगों से अत्यधिक अपेक्षाएँ नहीं की। मेरी समस्त अपेक्षाएँ लोगों की प्रकृति, देह और उनकी जरूरतों पर आधारित हैं। तुम लोगों को पता होना चाहिए और मैं तुम लोगों को बहुत स्पष्ट रूप से बता सकता हूँ कि मैं लोगों के सोचने के कुछ तर्कसंगत तरीकों का विरोध नहीं करता, और न मैं मनुष्य की अंतर्निहित प्रकृति का विरोध करता हूँ। ऐसा केवल इसलिए है, क्योंकि लोग नहीं समझते कि मेरे द्वारा उनके लिए निर्धारित मानक वास्तव में क्या हैं, न वे मेरे वचनों का मूल अर्थ ही समझते हैं; लोग अभी तक मेरे वचनों के बारे में संदेह से ग्रस्त हैं, यहाँ तक कि आधे से भी कम लोग मेरे वचनों पर विश्वास करते हैं। शेष लोग अविश्वासी हैं, और ज्यादातर ऐसे हैं जो मुझे “कहानियाँ कहते” सुनना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, कई लोग ऐसे भी हैं जो इसे तमाशा समझकर इसका मजा लेते हैं। मैं तुम लोगों को सावधान करता हूँ : मेरे बहुत-से वचन उन लोगों के लिए प्रकट कर दिए गए हैं जो मुझ पर विश्वास करते हैं, और जो लोग राज्य के सुंदर दृश्य का आनंद तो लेते हैं लेकिन उसके दरवाजों के बाहर बंद हैं, वे मेरे द्वारा पहले ही बाहर निकाल गए हैं। क्या तुम लोग मेरे द्वारा तिरस्कृत मोठ घास भर नहीं हो? तुम लोग कैसे मुझे जाते देख सकते हो और फिर खुशी से मेरी वापसी का स्वागत कर सकते हो? मैं तुम लोगों से कहता हूँ, नीनवे के लोगों ने यहोवा के क्रोध भरे शब्दों को सुनने के बाद तुरंत टाट के वस्त्र और राख में पश्चात्ताप किया था। चूँकि उन्होंने उसके वचनों पर विश्वास किया, इसलिए वे आतंक और खौफ से भर गए और इसलिए उन्होंने तुरंत टाट और राख में पश्चात्ताप किया। जहाँ तक आज के लोगों का संबंध है, हालाँकि तुम लोग भी मेरे वचनों पर विश्वास करते हो, बल्कि इससे भी बढ़कर यह मानते हो कि आज एक बार फिर यहोवा तुम लोगों के बीच आ गया है; लेकिन तुम लोगों का रवैया सरासर श्रद्धाहीन है, मानो तुम लोग बस उस यीशु को देख रहे हो, जो हजारों साल पहले यहूदिया में पैदा हुआ था और अब तुम्हारे बीच उतर आया है। मैं गहराई से उस धोखेबाजी को समझता हूँ, जो तुम लोगों के दिल में मौजूद है; तुममें से अधिकतर लोग केवल जिज्ञासावश मेरा अनुसरण करते हैं और अपने खालीपन के कारण मेरी खोज में आए हैं। जब तुम लोगों की तीसरी इच्छा—एक शांतिपूर्ण और सुखी जीवन जीने की इच्छा—टूट जाती है, तो तुम लोगों की जिज्ञासा भी गायब हो जाती है। तुम लोगों में से प्रत्येक के दिल के भीतर मौजूद धोखाधड़ी तुम्हारे शब्दों और कर्मों के माध्यम से उजागर होती है। स्पष्ट कहूँ तो, तुम लोग मेरे बारे में केवल उत्सुक हो, मुझसे भयभीत नहीं हो; तुम लोग अपनी जीभ पर काबू नहीं रखते और अपने व्यवहार को तो और भी कम नियंत्रित करते हो। तो तुम लोगों का विश्वास आखिर कैसा है? क्या यह वास्तविक है? तुम लोग सिर्फ अपनी चिंताएँ दूर करने और अपनी ऊब मिटाने के लिए, अपने जीवन में मौजूद खालीपन को भरने के लिए मेरे वचनों का उपयोग करते हो। तुम लोगों में से किसने मेरे वचनों को अभ्यास में ढाला है? वास्तविक विश्वास किसे है? तुम लोग चिल्लाते रहते हो कि परमेश्वर ऐसा परमेश्वर है, जो लोगों के दिलों में गहराई से देखता है, परंतु जिस परमेश्वर के बारे में तुम अपने दिलों में चिल्लाते रहते हो, उसकी मेरे साथ क्या अनुरूपता है? जब तुम लोग इस तरह से चिल्ला रहे हो, तो फिर वैसे कार्य क्यों करते हो? क्या इसलिए कि यही वह प्रेम है जो तुम लोग मुझे प्रतिफल में चुकाना चाहते हो? तुम्हारे होंठों पर समर्पण की थोड़ी भी बात नहीं है, लेकिन तुम लोगों के बलिदान और अच्छे कर्म कहाँ हैं? अगर तुम्हारे शब्द मेरे कानों तक न पहुँचते, तो मैं तुम लोगों से इतनी नफरत कैसे कर पाता? यदि तुम लोग वास्तव में मुझ पर विश्वास करते, तो तुम इस तरह के संकट में कैसे पड़ सकते थे? तुम लोगों के चेहरों पर ऐसे उदासी छा रही है, मानो तुम अधोलोक में खड़े परीक्षण दे रहे हो। तुम लोगों के पास जीवन-शक्ति का एक कण भी नहीं है, और तुम अपने अंदर की आवाज के बारे में क्षीणता से बात करते हो; यहाँ तक कि तुम शिकायत और धिक्कार से भी भरे हुए हो। मैं जो करता हूँ, उसमें तुम लोगों ने बहुत पहले ही अपना विश्वास खो दिया था, यहाँ तक कि तुम्हारा मूल विश्वास भी गायब हो गया है, इसलिए तुम अंत तक संभवतः कैसे अनुसरण कर सकते हो? ऐसी स्थिति में तुम लोगों को कैसे बचाया जा सकता है?
यद्यपि मेरा कार्य तुम लोगों के लिए बहुत सहायक है, किंतु मेरे वचन तुम लोगों पर हमेशा खो जाते हैं और बेकार हो जाते हैं। मेरे द्वारा पूर्ण बनाए जाने के लिए किसी को ढूँढ़ पाना मुश्किल है, और आज मैं तुम लोगों को लेकर आशा लगभग खो ही चुका हूँ। मैंने तुम्हारे बीच कई सालों तक खोज की है, लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ पाना मुश्किल है, जो मेरा विश्वासपात्र बन सकता हो। मुझे लगता है कि मुझमें तुम लोगों के अंदर कार्य जारी रखने का भरोसा नहीं है, और न कोई प्रेम है जिससे मैं तुमसे प्रेम करना जारी रखूँ। इसका कारण यह है कि मैं बहुत पहले ही तुम लोगों की उन तुच्छ, दयनीय उपलब्धियों से निराश हो गया था; ऐसा लगता है जैसे मैंने कभी तुम लोगों के बीच बात नहीं की और कभी तुम लोगों में कार्य नहीं किया। तुम्हारी उपलब्धियाँ कितनी घृणास्पद हैं। तुम लोग अपने लिए हमेशा बरबादी और शर्मिंदगी लाते हो और तुम्हारा लगभग कोई मूल्य नहीं है। मैं शायद ही तुम लोगों में इंसान से समानता खोज पाऊँ, न ही मैं तुम्हारे अंदर इंसान होने का चिह्न भाँप सकता हूँ। तुम्हारी ताज़ी सुगंध कहाँ है? वह कीमत कहाँ है, जो तुम लोगों ने कई वर्षों में चुकाई है और उसके परिणाम कहाँ हैं? क्या तुम लोगों को कभी कोई परिणाम नहीं मिला? मेरे कार्य में अब एक नई शुरुआत है, एक नया प्रारंभ। मैं भव्य योजनाएँ पूरी करने जा रहा हूँ तथा मैं और भी बड़ा कार्य संपन्न करना चाहता हूँ, फिर भी तुम लोग पहले की तरह कीचड़ में लोट रहे हो, अतीत के गंदे पानी में रहते हुए और व्यावहारिक रूप से तुम अपनी मूल दुर्दशा से खुद को मुक्त करने में असफल रहे हो। इसलिए तुम लोगों ने अभी तक मेरे वचनों से कुछ हासिल नहीं किया है। तुम लोगों ने अब तक खुद को कीचड़ और गंदे पानी के अपने मूल स्थान से नहीं छुड़ाया है, और तुम लोग केवल मेरे वचनों को जानते हो, लेकिन तुमने वास्तव में मेरे वचनों की मुक्ति के दायरे में प्रवेश नहीं किया है, इसलिए मेरे वचन कभी भी तुम लोगों के लिए प्रकट नहीं किए गए हैं; वे भविष्यवाणी की एक किताब की तरह हैं, जो हजारों वर्षों से मुहरबंद रही है। मैं तुम लोगों के जीवन में प्रकट होता हूँ, लेकिन तुम लोग इससे हमेशा अनजान रहते हो। यहाँ तक कि तुम लोग मुझे पहचानते भी नहीं। मेरे द्वारा कहे गए वचनों में से लगभग आधे वचन तुम लोगों का न्याय करते हैं, और वे उससे आधा प्रभाव ही हासिल कर पाते हैं, जितना कि उन्हें करना चाहिए, जो तुम्हारे भीतर गहरा भय पैदा करना है। शेष आधे वचन तुम लोगों को जीवन के बारे में सिखाने के लिए और स्वयं को संचालित कैसे करें, इस बारे में बताने के लिए हैं। लेकिन जहाँ तक तुम्हारा संबंध है, ऐसा लगता है, जैसे ये वचन तुम लोगों के लिए मौजूद ही नहीं हैं, या जैसे कि तुम लोग बच्चों की बातें सुन रहे थे, ऐसी बातें जिन्हें सुनकर तुम हमेशा दबे-ढके ढंग से मुसकरा देते हो, लेकिन उन पर कार्रवाई कुछ नहीं करते। तुम लोग इन चीज़ों के बारे में कभी चिंतित नहीं रहे हो; तुम लोगों ने हमेशा मेरे कार्यों को मुख्यतः जिज्ञासा के नाम पर ही देखा है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि अब तुम लोग अँधेरों में घिर गए हो और प्रकाश को देख नहीं सकते, और इसलिए तुम लोग अँधेरे में दयनीय ढंग से रोते हो। मैं बस तुम लोगों का समर्पण चाहता हूँ, तुम्हारा बेशर्त समर्पण, और इससे भी बढ़कर मेरी अपेक्षा है कि तुम लोग मेरी कही हर चीज़ के बारे में पूरी तरह से निश्चित रहो। तुम लोगों को उपेक्षा का रवैया नहीं अपनाना चाहिए और खास तौर से मेरी कही चीज़ों के बारे में चयनात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए, न ही मेरे वचनों और कार्य के प्रति उदासीन रहना चाहिए, जिसके कि तुम आदी हो। मेरा कार्य तुम लोगों के बीच किया जाता है और मैंने तुम लोगों के लिए बहुत सारे वचन प्रदान किए हैं, लेकिन यदि तुम लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगे, तो जो कुछ तुमने न तो हासिल किया और न ही जिसे अभ्यास में लाए हो, उसे मैं केवल गैर-यहूदी परिवारों को दे सकता हूँ। समस्त सृजित प्राणियों में से कौन है, जिसे मैंने अपने हाथों में नहीं रखा हुआ है? तुम लोगों में से अधिकांश “पके बुढ़ापे” की उम्र के हो और तुम लोगों के पास इस तरह के कार्य को स्वीकार करने की ऊर्जा नहीं है, जो मेरे पास है। तुम लोग मुश्किल से गुज़ारा करने वाले हानहाओ पक्षी[क] की तरह हो और तुम ने कभी भी मेरे वचनों को गंभीरता से नहीं लिया है। युवा लोग अत्यंत व्यर्थ और अति-आसक्त हैं और मेरे कार्य पर और भी कम ध्यान देते हैं। वे मेरे भोज के व्यंजनों का आनंद लेने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते; वे उस छोटे-से पक्षी की तरह हैं, जो अपने पिंजरे से बाहर निकलकर बहुत दूर जाने के लिए उड़ गया है। इस तरह के युवा और वृद्ध लोग मेरे लिए कैसे उपयोगी हो सकते हैं? पकी उम्र के लोग मेरे वचनों को तब तक पेंशन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं, जब तक वे अपनी कब्र में नहीं पहुँच जाते, ताकि मरने के बाद उनकी आत्माएँ स्वर्ग तक जा सकें; उनके लिए यही पर्याप्त है। ये बूढ़े लोग अब हमेशा “महान आकांक्षाएँ” और “अटूट आत्मविश्वास” पालते हैं। हालाँकि उनमें मेरे कार्य के लिए बहुत धैर्य है, और उनमें वे गुण हैं जो बूढ़े लोगों में पाए जाते हैं, जैसे कि ईमानदार होना, अडिग रहना, किसी भी व्यक्ति या वस्तु द्वारा दूर खींचे जाने या हारने से इनकार करना—सचमुच वे एक अभेद्य किले की तरह हैं—पर क्या इन लोगों का विश्वास किसी लाश की अंधविश्वासी गंध से नहीं भरा है? उनका मार्ग कहाँ है? क्या उन लोगों के लिए उनका मार्ग बहुत लंबा, बहुत दूर नहीं है? वे लोग मेरी इच्छा कैसे जान सकते हैं? भले ही उनका आत्मविश्वास प्रशंसनीय है, फिर भी इन बुजुर्गों में से कितने वास्तव में एक भ्रांत तरीके से चलते हुए जीवन की खोज नहीं कर रहे? सही मायने में कितने लोग मेरे कार्य का वास्तविक महत्व समझते हैं? आज इस संसार में मेरा अनुसरण करने का किसका प्रयोजन निकट भविष्य में नरक में उतरने के बजाय मेरे द्वारा किसी दूसरे राज्य में ले जाया जाना नहीं है? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम्हारा गंतव्य इतना आसान मामला है? यद्यपि तुम युवा लोग जवान शेरों के समान हो, पर तुम्हारे दिलों में शायद ही सच्चा मार्ग है। तुम्हारा यौवन तुम लोगों को मेरे अधिक कार्य का हकदार नहीं बनाता; उलटे तुम हमेशा अपने प्रति मेरी घृणा को भड़काते हो। यद्यपि तुम लोग युवा हो, लेकिन तुम लोगों में या तो जीवन-शक्ति या फिर महत्वाकांक्षा की कमी है, और तुम लोग अपने भविष्य के बारे में हमेशा अप्रतिबद्ध रहते हो; ऐसा लगता है, मानो तुम लोग उदासीन और चिंताग्रस्त हो। यह कहा जा सकता है कि युवा लोगों में जो जीवन-शक्ति, आदर्श और उद्देश्य पाए जाने चाहिए, वे तुम लोगों में बिल्कुल नहीं मिल सकते; इस तरह के तुम युवा लोग उद्देश्यहीन हो और सही और गलत, अच्छे और बुरे, सुंदरता और कुरूपता के बीच भेद करने की कोई योग्यता नहीं रखते। तुम लोगों में कोई भी ऐसे तत्त्व खोज पाना असंभव है, जो ताज़ा हों। तुम लोग लगभग पूरी तरह से पुराने ढंग के हो, और इस तरह के तुम युवा लोगों ने भीड़ का अनुसरण करना, तर्कहीन होना भी सीख लिया है। तुम लोग स्पष्ट रूप से सही को गलत से अलग नहीं कर सकते, सच और झूठ में भेद नहीं कर सकते, उत्कृष्टता के लिए कभी प्रयास नहीं कर सकते, न ही तुम लोग यह बता सकते हो कि सही क्या है और गलत क्या है, सत्य क्या है और ढोंग क्या है। तुम लोगों में धर्म की सड़ांध बूढ़े लोगों से भी अधिक भारी और गंभीर है। तुम लोग अभिमानी और अविवेकी भी हो, तुम प्रतिस्पर्धी हो, और तुम लोगों में आक्रामकता का शौक बहुत मजबूत है—इस तरह के युवा व्यक्ति के पास सत्य कैसे हो सकता है? इस तरह का युवा व्यक्ति, जिसका कोई रुख ही न हो, गवाही कैसे दे सकता है? जिस व्यक्ति में सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता न हो, उसे युवा कैसे कहा जा सकता है? जिस व्यक्ति में एक युवा व्यक्ति की जीवन-शक्ति, जोश, ताज़गी, शांति और स्थिरता नहीं है, उसे मेरा अनुयायी कैसे कहा जा सकता है? जिस व्यक्ति में कोई सच्चाई, कोई न्याय की भावना न हो, बल्कि जिसे खेलना और लड़ना पसंद हो, वह मेरा गवाह बनने के योग्य कैसे हो सकता है? युवा लोगों की आँखें दूसरों के लिए धोखे और पूर्वाग्रह से भरी हुई नहीं होनी चाहिए, और उन्हें विनाशकारी, घृणित कृत्य नहीं करने चाहिए। उन्हें आदर्शों, आकांक्षाओं और खुद को बेहतर बनाने की उत्साहपूर्ण इच्छा से रहित नहीं होना चाहिए; उन्हें अपनी संभावनाओं को लेकर निराश नहीं होना चाहिए और न ही उन्हें जीवन में आशा और भविष्य में भरोसा खोना चाहिए, उनमें उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। उन्हें सत्य से रहित नहीं होना चाहिए, न ही उन्हें ढोंग और अधर्म को छिपाना चाहिए—उन्हें उचित रुख पर दृढ़ रहना चाहिए। उन्हें सिर्फ यूँ ही धारा के साथ बह नहीं जाना चाहिए, बल्कि उनमें न्याय और सत्य के लिए बलिदान और संघर्ष करने की हिम्मत होनी चाहिए। युवा लोगों में अँधेरे की शक्तियों के दमन के सामने समर्पण न करने और अपने अस्तित्व के महत्व को रूपांतरित करने का साहस होना चाहिए। युवा लोगों को प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने नतमस्तक नहीं हो जाना चाहिए, बल्कि अपने भाइयों और बहनों के लिए माफ़ी की भावना के साथ खुला और स्पष्ट होना चाहिए। बेशक, मेरी ये अपेक्षाएँ सभी से हैं, और सभी को मेरी यह सलाह है। लेकिन इससे भी बढ़कर, ये सभी युवा लोगों के लिए मेरे सुखदायक वचन हैं। तुम लोगों को मेरे वचनों के अनुसार आचरण करना चाहिए। विशेष रूप से, युवा लोगों को मुद्दों में विवेक का उपयोग करने और न्याय और सत्य की तलाश करने के संकल्प से रहित नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को सभी सुंदर और अच्छी चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए, और तुम्हें सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता प्राप्त करनी चाहिए। तुम्हें अपने जीवन के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए और उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। लोग पृथ्वी पर आते हैं और मेरे सामने आ पाना दुर्लभ है, और सत्य को खोजने और प्राप्त करने का अवसर पाना भी दुर्लभ है। तुम लोग इस खूबसूरत समय को इस जीवन में अनुसरण करने का सही मार्ग मानकर महत्त्व क्यों नहीं दोगे? और तुम लोग हमेशा सत्य और न्याय के प्रति इतने तिरस्कारपूर्ण क्यों बने रहते हो? तुम लोग क्यों हमेशा उस अधार्मिकता और गंदगी के लिए स्वयं को रौंदते और बरबाद करते रहते हो, जो लोगों के साथ खिलवाड़ करती है? और तुम लोग क्यों उन बूढ़े लोगों की तरह वैसे काम करते हो जो अधर्मी करते हैं? तुम लोग पुरानी चीज़ों के पुराने तरीकों का अनुकरण क्यों करते हो? तुम लोगों का जीवन न्याय, सत्य और पवित्रता से भरा होना चाहिए; उसे इतनी कम उम्र में इतना भ्रष्ट नहीं होना चाहिए, जो तुम्हें नरक में गिराने की ओर अग्रसर करे। क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि यह एक भयानक दुर्भाग्य होगा? क्या तुम लोगों को नहीं लगता कि यह बहुत अन्यायपूर्ण होगा?
तुम सभी लोगों को अपना कार्य पूर्णरूपेण उत्तम ढंग से करना चाहिए और उसे मुझे अर्पित किए जाने वाले एक उत्कृष्ट और अद्वितीय बलिदान के रूप में मेरी वेदी पर बलिदान कर देना चाहिए। तुम लोगों को अपने रुख पर अडिग होना चाहिए और आकाश में बादलों की तरह हवा के हर झोंके के साथ उड़ नहीं जाना चाहिए। अपने आधे जीवन में तुम लोग कड़ी मेहनत करते हो, तो तुम उस गंतव्य की तलाश क्यों नहीं करोगे, जो तुम लोगों का होना चाहिए? तुम लोग आधे जीवन-काल में कठिन परिश्रम करते हो, फिर भी तुम लोग सुअर और कुत्ते जैसे अपने माता-पिताओं को अपने अस्तित्व की सच्चाई और उसके महत्व को कब्र में घसीटने देते हो। क्या तुम्हें यह अपने प्रति भारी अन्याय नहीं लगता? क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस तरह से जीवन जीना पूरी तरह से निरर्थक है? इस तरह से सत्य और उचित मार्ग की तलाश करने से अंततः समस्याएँ खड़ी हो जाएँगी, जिससे पड़ोसी बेचैन होंगे और पूरा परिवार नाखुश होगा, और इससे घातक विपत्तियाँ आएँगी। क्या तुम्हारा इस तरह से जीना सबसे ज्यादा अर्थहीन जीवन नहीं है? तुमसे ज्यादा भाग्यशाली जीवन किसका हो सकता है, और तुमसे ज्यादा हास्यास्पद जीवन भी किसका हो सकता है? क्या तुम मुझे अपने लिए मेरे आनंद और मेरे सुखद वचनों को पाने के लिए नहीं खोजते? लेकिन अपने आधे जीवन-काल तक दौड़-भाग कर चुकने के बाद, तुम मुझे इतना उत्तेजित कर देते हो कि मैं क्रोध से भर जाता हूँ और तुम्हारी ओर कोई ध्यान नहीं देता या तुम्हारी प्रशंसा नहीं करता—क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारा पूरा जीवन व्यर्थ चला गया है? किस मुँह से तुम युगों-युगों के उन संतों की आत्माओं को देखने के लिए जा सकोगे, जो पापशोधन-स्थल से मुक्त हो गए हैं? तुम मेरे प्रति उदासीन हो और अंत में तुम एक घातक आपदा को उकसाते हो—बेहतर होगा कि तुम इस मौके का लाभ उठाओ और विशाल समुद्र में एक सुहावनी यात्रा करो और फिर मेरे “सौंपे गए कार्य” को पूरा करो। मैंने तुम लोगों को बहुत पहले बताया था कि आज, चलने के प्रति इतने उदासीन और अनिच्छुक तुम लोग अंत में मेरे द्वारा उठाई गई लहरों द्वारा अपने में समा और निगल लिए जाओगे। क्या तुम लोग वाकई खुद को बचा सकते हो? क्या तुम वास्तव में आश्वस्त हो कि अनुसरण करने की तुम्हारी वर्तमान पद्धति यह सुनिश्चित करेगी कि तुम पूर्ण किए जाओगे? क्या तुम्हारा दिल बहुत कठोर नहीं है? इस तरह का अनुसरण, इस तरह का अनुगमन, इस तरह का जीवन और इस प्रकार का चरित्र—यह मेरी प्रशंसा कैसे प्राप्त कर सकता है?
फुटनोट :
क. हानहाओ पक्षी की कहानी ईसप की चींटी और टिड्डी की नीति-कथा से काफ़ी मिलती-जुलती है। जब मौसम गर्म होता है, तब हानहाओ पक्षी अपने पड़ोसी नीलकंठ द्वारा बार-बार चेताए जाने के बावजूद घोंसला बनाने के बजाय सोना पसंद करता है। जब सर्दी आती है, तो हानहाओ ठिठुरकर मर जाता है।