प्रश्न 6: अनुग्रह के युग में, परमेश्वर मानवजाति की पाप-बलि के रूप में सेवा करने के लिए देह बना, और पापों से उन्हें बचा लिया। अंतिम दिनों में परमेश्वर सत्य को प्रकट करने और न्याय के अपने कार्य को करने के लिए फिर से देह बन गया है, ताकि मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध किया जा सके और बचाया जा सके। तो मानव जाति को बचाने का कार्य करने के लिए परमेश्वर को दो बार देहधारण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? और परमेश्वर का दो बार देहधारण करने का वास्तविक महत्व क्या है?

उत्तर:

परमेश्वर को मानवजाति को बचाने का कार्य करने के लिए दो बार देह धारण करना क्यों आवश्यक है यह जानने के लिए हमें पहले यह बात स्पष्ट होनी चाहिए: मनुष्य के उद्धार के संबंध में, परमेश्वर के दो देहधारणों का गहरा और अगाध अर्थ है। क्योंकि, चाहे हम छुटकारे की बात करें या फिर अंत के दिनों के उद्धार, न्याय एवं शुद्धिकरण की, उद्धार का कार्य मनुष्य के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। इसके लिए परमेश्वर का देह धारण करना और अपना कार्य स्वयं पूरा करना आवश्यक है। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया था, यानी परमेश्वर के आत्मा ने अपने आपको एक पवित्र और पापरहित शरीर में प्रस्तुत किया था, और पाप बलि के रूप में काम करने के लिए उन्हें सूली पर लटका दिया गया था, जिसने मनुष्य को उसके पापों से छुटकारा दिलाया। हम सब इस बात को समझते हैं। लेकिन जहाँ तक अंत के दिनों में प्रभु यीशु की वापसी की बात है, उन्होंने प्रकट होकर कार्य करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में देह धारण क्यों किया? बहुत से लोगों को यह बात समझने में मुश्किल होती है। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य के इस पहलू को नहीं समझाया होता और इस रहस्य पर से पर्दा नहीं हटाया होता, तो कोई भी इस सत्य को नहीं समझ पाता।

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अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने सिर्फ़ छुटकारे का कार्य करने के लिए पहली बार देहधारण किया था, हम मनुष्य को हमारे पापों से छुटकारा दिलाने के लिए पापबलि के रूप में सूली पर चढ़ गये, उनका उद्देश्य अभिशापों और नियमों के दंडों से हमें राहत देना था। हमें सिर्फ़ अपने पापों को स्वीकार कर पश्चाताप करने की ज़रूरत थी और हमारे पापों को माफ़ कर दिया जाता। तब हम भरपूर अनुग्रह और सत्‍य का आनंद उठा सकते थे जो परमेश्वर ने हम पर बरसाया था। यह छुटकारे का कार्य है जो प्रभु यीशु ने किया था, और यही प्रभु में विश्वास के द्वारा बचाये जाने का सही अर्थ है। हालांकि प्रभु यीशु ने हमारे पापों को क्षमा कर दिया, परंतु हम अभी तक अपने आपको पाप के बंधन से मुक्त नहीं कर पाये हैं, क्योंकि हम अभी भी अपनी पापी प्रकृति और शैतानी स्वभाव में ग्रस्त हैं। हालांकि हमने प्रभु के समक्ष अपने पापों को स्वीकार कर लिया है और उनसे क्षमा पा चुके हैं, फिर भी हमें हमारी पापी प्रकृति का कोई ज्ञान नहीं है, और यहाँ तक कि हम हमारे भ्रष्ट स्वभाव के बारे में भी नहीं जानते, यह एक ऐसी स्थिति है जो पाप से कहीं ज़्यादा गंभीर है। हम सिर्फ़ अपने अंदर अराजकता के पाप को पहचान पाने में सक्षम हैं, और जिसके परिणाम स्वरूप हमारी अंतरात्मा पर दोष लगता है। लेकिन हम गहरे पापों, जैसे परमेश्वर के विरोध के पाप को पहचान पाने में विफल रहते हैं। उदाहरण के लिए, हमें परमेश्वर के प्रति हमारे प्रतिरोध की जड़ का कोई पता नहीं है या हम यह भी नहीं जानते कि हमारे शैतानी स्वभाव का स्वरूप क्या है, शैतानी स्वभाव कैसे अस्तित्व में आया, शैतान के कौन से विष हमारे स्वभाव के अंदर समाहित हैं, मनुष्य का शैतानी दर्शन और शैतानी तर्क एवं नियम कहाँ से उत्पन्न होते हैं। तो ऐसा क्यों है कि मनुष्य को इन शैतानी चीज़ों का कोई ज्ञान नहीं है? यह देखते हुए कि मनुष्य के पापों को प्रभु यीशु ने क्षमा कर दिया है, तो वह अपने आपको पाप के बंधन से मुक्त क्यों नहीं कर सकता, और क्यों वह उन्हीं पापों को दोहराता रहता है? क्या अपने पापों को क्षमा कर दिए जाने के बाद वह सचमुच शुद्ध कर दिया गया है? यह सचमुच एक व्यावहारिक विषय है जिसे अनुग्रह के युग में कोई भी समझ नहीं पाया। हालांकि प्रभु पर हमारे विश्वास में, हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, फिर भी हम अनजाने में परमेश्वर का विरोध करते हुए उनको धोखा देते हैं और पाप करते हैं। हम सभी विश्वासियों को पहली बार इसका ज्ञान हुआ है। उदाहरण के लिए, प्रभु में विश्वास करने के बाद भी हम झूठ बोलते रहते हैं, अहंकारी हो जाते हैं, सत्य को तुच्छ मानते हैं और बुराई को कायम रखते हैं। हम अभी भी अभिमानी, विश्वासघाती, स्वार्थी और लालची हैं; हम असहाय होकर शैतानी स्वभाव के चंगुल में फंस गये हैं। हम प्रभु के लिए बिना थके काम करते हैं, लेकिन हम पुरस्कार पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने की उम्मीद में ऐसा करते हैं। जब हम प्रभु की कृपा का आनंद उठाते हैं तो खुश होते हैं और प्रभु में अपने विश्वास को दृढ़ बनाये रखते हैं; लेकिन जैसे ही हमें आपदाओं का सामना करना पड़ता है या परिवार में कोई विपदा आती है, तो हम गलतफ़हमी के शिकार हो जाते हैं, वे प्रभु पर आरोप लगाते हैं और यहाँ तक कि उनको अस्वीकार करते हैं और धोखा भी देते हैं। जैसे ही परमेश्वर का कार्य हमारी अवधारणाओं और भ्रांतियों के अनुरूप नहीं होता है, हम पाखंडी फरीसियों की तरह व्यवहार करने लगते हैं, परमेश्वर का विरोध और उनकी निंदा करते हैं। हमने इसका स्वयं अनुभव किया है। इन सब से क्या साबित होता है? इससे यह पता चलता है कि भले ही हमने प्रभु यीशु के उद्धार को स्वीकार कर लिया और हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपने आपको पूरी तरह से पाप से मुक्त कर चुके हैं और अब शूद्ध कर दिए गये हैं, इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम परमेश्वर के हो गये हैं और परमेश्वर ने हमें जीत लिया है। इसलिए, जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए फिर से आते हैं, तो धार्मिक संसार के कई लोग परमेश्वर को परखने, उनकी निंदा और तिरस्कार करने के लिए आगे आते हैं, वे सार्वजनिक तौर पर उनको अपना विरोधी बताते हैं और एक बार फिर उनको सूली पर चढ़ा देते हैं। क्या जो सार्वजनिक तौर पर परमेश्वर की निंदा और विरोध करते हैं, उन लोगों को सिर्फ़ पापों को क्षमा कर दिये जाने के आधार पर स्वर्ग के राज्य में आरोहित किया जा सकेगा? क्या परमेश्वर इन शैतानी ताकतों को स्वर्ग के राज्य में आने की अनुमति दे सकते हैं, जो उनका विरोध करते हैं? क्या परमेश्वर इन मसीह विरोधियों, इन सत्य से घृणा करने वालों को स्वर्ग के राज्य में आरोहित करेंगे? जैसा कि हम देख सकते हैं, भले ही प्रभु में हमारे विश्वास के माध्यम से, हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, फिर भी हम अपने आपको पूरी तरह से पाप से मुक्त नहीं कर पाये हैं, हम अपने आपको शैतानी प्रभाव से छुटकारा नहीं दिला पाये हैं, और ना तो परमेश्वर द्वारा हमें जीता गया है और ना ही हम परमेश्वर के हुए हैं। इसलिए, अगर हम अपने पापों से मुक्त होना चाहते हैं और शुद्धता प्राप्त करना चाहते हैं, परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से जीता जाना चाहते हैं, तो हमें परमेश्वर के दूसरे देहधारण के कार्य के द्वारा पूरी तरह से शुद्ध किया जाना और बचाया जाना आवश्यक है।

हम परमेश्वर के उद्धार कार्य को अत्‍यधिक सरलता से देखते हैं, मानो जैसे ही हमारे पाप क्षमा होंगे, सभी समस्‍यायें समाप्‍त हो जायेंगी, और सिर्फ प्रभु के द्वारा स्वर्ग के राज्य में आरोहित किये जाने की प्रतीक्षा के अलावा और कुछ न रहेगा। हम भ्रष्ट मनुष्य कितने भोले और बचकाने हैं! मनुष्य की अवधारणाएं और भ्रांतियां कितनी हास्यास्पद हैं! क्या शैतान के द्वारा भ्रष्ट किये जाने के बाद, पाप मानवजाति के कष्टों का एकमात्र कारण था? मनुष्य के पाप की जड़ क्या है? पाप क्या है? क्यों परमेश्वर इससे घृणा करते हैं? आज तक, किसी को भी इसकी सही समझ नहीं है। मनुष्य को शैतान ने पूरी से भ्रष्ट कर दिया है, उसका भ्रष्टाचार किस स्तर तक है? किसी को भी स्पष्ट नहीं है। मनुष्य के संपूर्ण भ्रष्टाचार की वास्तविकता प्रभु यीशु के सूली पर चढ़ने के दौरान स्पष्ट हो गई थी। यह तथ्य कि मनुष्य इतने सत्‍य व्‍यक्‍त करने वाले दयालु प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा सकता है, सही मायनों में दिखाता है कि मनुष्य शैतान का वंशज, शैतान का किस्म बन गया है, और उसने अपनी मानवता को पूरी तरह से खो दिया है, उसके पास तर्क या विवेक का ज़रा सा भी अंश नहीं बचा है। मनुष्यों के बीच किसके पास अभी भी सामान्य मानवता है? क्या परमेश्वर के प्रति मनुष्य के प्रतिरोध और शत्रुता से यह पता नहीं चलता है कि मनुष्य उस जगह पर आ पहुंचा है जहां या तो परमेश्‍वर हों या मनुष्‍य, जहां परमेश्वर से मेल-मिलाप संभव नहीं है? क्या यह समस्या वास्तव में उसके पापों को क्षमा करने से हल हो सकती है? कौन इस बात का भरोसा दे सकता है कि हमारे पापों को क्षमा कर दिये जाने के बाद, हम परमेश्वर का विरोध नहीं करेंगे या उनको अपना शत्रु नहीं मानेंगे? कोई इसका भरोसा नहीं दे सकता! हमारे पापों को क्षमा किया जा सकता है, लेकिन क्या परमेश्वर हमारे स्वभाव को क्षमा कर सकते हैं, एक ऐसा स्वभाव जो परमेश्वर का प्रतिरोधी है? क्या परमेश्वर हमारे अंदर भरे शैतानी स्वभाव को क्षमा कर सकते हैं? परमेश्वर इन चीज़ों के शैतान से जुड़े होने का समाधान कैसे करते हैं? बेशक, परमेश्वर न्याय और ताड़ना का उपयोग करते हैं। और जो कभी पछतावा नहीं करते, परमेश्वर उन्हें आपदाओं से नष्ट कर देंगे। यह कहना सही है कि परमेश्वर के धार्मिक न्याय और ताड़ना के बिना, भ्रष्ट मनुष्य को जीता नहीं जा सकेगा, गहरे अफ़सोस में जमीन में गड़ जाने की तो बात ही दूर है। यही मुख्य कारण है कि परमेश्वर को न्याय का कार्य करने के लिए देहधारण करना आवश्‍यक है। ऐसे कई लोग हैं जो अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए परमेश्वर के देहधारी होने के संबंध में सवाल करते हैं और धारणाएं रखते हैं। ऐसा क्यों है? इसका कारण यह है कि हम मनुष्य के संपूर्ण भ्रष्टाचार की वास्तविकता को देखने में असमर्थ हैं। इसलिए, इसके परिणाम स्वरूप, हमें अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के अर्थ की ज़रा सी भी समझ नहीं है। हम सही मार्ग की खोज और जाँच करने में नाकाम होते हैं। इस तरह, हम परमेश्वर के कार्य को कैसे स्वीकार कर सकते हैं और कैसे उनका आज्ञापालन कर सकते हैं?

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देहधारण का मतलब परमेश्वर के आत्मा का शरीर रूप धारण करना और स्वयं परमेश्वर का कार्य करने के लिए एक साधारण एवं सामान्य मनुष्य में बदल जाना है। देहधारी परमेश्वर में सामान्य मानवता होनी चाहिए, उन्हें सामान्य मानवता के भीतर कार्य करना और बोलना चाहिए। यहाँ तक कि जब वे चमत्कार करते हैं, तो ऐसा सामान्य मानवता के भीतर रहकर किया जाना चाहिए। बाहरी स्वरूप में, देहधारी परमेश्वर सामान्य दिखाई देते हैं। वे एक सामान्य, औसत मनुष्य की तरह कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं। अगर उनमें सामान्य मानवता नहीं होती और वे अपनी सामान्य मानवता में कार्य नहीं करते, वे देहधारी परमेश्वर नहीं होते। देहधारण का मतलब है कि परमेश्वर का आत्मा का देह में साकार होता है। वे सामान्य मानवता में सत्य को व्यक्त करते हैं और स्वयं परमेश्वर का कार्य करते हैं, मानवजाति को छुटकारा दिलाते और बचाते हैं। यही देहधारण का महत्व है। अब परमेश्वर के दो देहधारणों का क्या महत्व है? मुख्य रूप से इसका मतलब यह है कि परमेश्वर के दो देहधारणों ने देहधारण के महत्व को पूरा कर दिया है, "वचन देह में प्रकट होता है" के कार्य को पूरा कर दिया है और मानवजाति को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना को पूरा कर दिया है। यही परमेश्वर के दो देहधारणों का महत्व है। हम सभी को यह स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर के पहले देहधारण का उद्देश्य छुटकारे का कार्य करना और अंत के दिनों में न्याय के कार्य का मार्ग प्रशस्त करना था। तो, परमेश्वर के पहले देहधारण ने देह धारण के महत्व को पूरा नहीं किया था। परमेश्वर के दूसरे देह धारण का उद्देश्य अंत के दिनों में न्याय का कार्य करना और मानवजाति को शैतान के प्रभुत्व से पूरी तरह से बचाना है, ताकि मानवजाति को उसके शैतानी स्वभाव से मुक्त किया जा सके, शैतान के प्रभाव से आज़ाद किया जा सके जिससे कि वह परमेश्वर के पास लौट सके और परमेश्वर द्वारा जीता जा सके। अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए संपूर्ण सत्य व्यक्त किया है, देहधारी परमेश्वर के सभी कार्यों को पूरा किया है, और उन सभी वचनों को व्यक्त किया है जिन्हें परमेश्वर को अपने देहधारी स्वरूप में व्यक्त करना चाहिए। केवल ऐसा करके ही उन्होंने "वचन देह में प्रकट होता है" का कार्य पूरा किया है। …परमेश्वर के दो देहधारण देहधारी परमेश्वर के सभी कार्यों को पूरा करते हैं, यानी, मनुष्य का पूर्ण उद्धार करने का परमेश्वर का कार्य। इसलिए, भविष्य में परमेश्वर फिर से देहधारण नहीं करेंगे। तीसरी या चौथी बार कोई देहधारण नहीं होगा। क्योंकि परमेश्वर का देहधारी रुप में कार्य पहले ही पूरी तरह से पूर्ण हो गया है। इस कथन का यही मतलब है कि परमेश्वर देहधारण के महत्व को पूरा करने के लिए दो बार देहधारण कर चुके हैं।

परमेश्वर देहधारण के महत्व को पूरा करने के लिए दो बार देहधारण कर चुके हैं। जिन लोगों ने अभी तक अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को अनुभव नहीं किया है, उनके लिए यह समझना मुश्किल है। जिन लोगों ने अनुग्रह के युग में सिर्फ़ छुटकारे के कार्य को अनुभव किया है, वे यह जानते हैं कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर हैं। लेकिन कुछ लोग यह समझते हैं कि प्रभु यीशु का कार्य सिर्फ़ छुटकारे तक ही सीमित था और उन्होंने "वचन देह में प्रकट होता है" का कार्य पूरा नहीं किया। जिसका मतलब है कि, प्रभु यीशु ने देहधारी परमेश्वर के मानवजाति का पूर्ण उद्धार करने के पूर्ण सत्य को व्यक्त नहीं किया था। इसलिए प्रभु यीशु ने कहा था, "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। अब प्रभु यीशु मनुष्य के पुत्र के रूप में शरीर में लौट चुके हैं। वे अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं। वे यहाँ परमेश्वर के आवास से शुरू होने वाला न्याय का कार्य कर रहे हैं, वे यहाँ पूर्ण सत्य को व्यक्त कर रहे हैं जो मानवजाति को शुद्ध करेगा और बचाएगा, यही सत्य वचन देह में प्रकट होता है में निहित है। परमेश्वर का देहधारण पहली बार परमेश्वर की पहचान के साथ पूरे ब्रह्मांड से, अपने वचनों की घोषणा करते हुए बोल रहा है। वे मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर की प्रबंधन योजना के विवरण की घोषणा करते हैं, वे परमेश्वर की इच्छा को, पूरी मानवजाति के प्रति उनकी माँगों को और मनुष्य के गंतव्य को व्यक्त करते हैं।

आइये देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर इसे कैसे समझाते हैं: "यह कहना उचित है कि दुनिया के सृजन के बाद यह पहली बार है कि परमेश्वर ने समस्त मानवजाति को संबोधित किया है। इससे पहले परमेश्वर ने कभी भी इतने विस्तार से और इतने व्यवस्थित तरीके से सृजित मानवजाति से बात नहीं की है। निस्संदेह, यह भी पहली बार ही है कि उसने इतनी अधिक और इतने लंबे समय तक समस्त मानवजाति से बात की है। यह अभूतपूर्व है। इसके अलावा, ये कथन मानवता के बीच परमेश्वर द्वारा व्यक्त किया गया पहला पाठ हैं जिसमें वह लोगों को उजागर करता है, उनका मार्गदर्शन करता, उनका न्याय करता, उनसे खुलकर बात करता है और वे ऐसे पहले कथन भी हैं जिनमें परमेश्वर अपने पदचिह्नों को, उस स्थान को जिसमें वह रहता है, परमेश्वर के स्वभाव को, परमेश्वर के स्वरूप को, परमेश्वर के विचारों को और मानवता के लिए अपनी चिंता से लोगों को रूबरू कराता है। यह कहा जा सकता है कि ये ही पहले कथन हैं जो परमेश्वर ने सृजन के बाद तीसरे स्वर्ग से मानवजाति के लिए बोले हैं और पहली बार ऐसा हुआ है कि परमेश्वर ने मानवजाति हेतु वचनों के बीच अपने हृदय की वाणी प्रकट करने और व्यक्त करने के लिए अपनी अंतर्निहित पहचान का उपयोग किया है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, परिचय)।

"ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं संसार में मनुष्यों का अंत करता हूँ, और इस समय से, मैं मनुष्यों के सामने अपने सम्पूर्ण स्वभाव को प्रकट करता हूँ, ताकि वे सभी लोग जो मुझे जानते हैं, और जो नहीं जानते, अपनी आँखों को तृप्त कर सकें और देखें कि मैं वास्तव में मनुष्यों के संसार में आ गया हूँ, पृथ्वी पर आ गया हूँ, जहाँ सभी चीज़ें गुणात्मक रूप से बढ़ती रहती हैं। मनुष्यों के सृजन के समय से यह मेरी योजना है, तथा मेरी एकमात्र 'स्वीकारोक्ति' है। तुम लोग अपना अखण्ड ध्यान मेरी प्रत्येक गतिविधि पर दो, क्योंकि मेरी छड़ी एक बार फिर मनुष्यों के, मेरा विरोध करने वालों के पास आती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)।

देहधारण के महत्व को पूरा करने के लिए परमेश्वर के दो देहधारणों के संबंध में, ऐसे लोग भी हैं जो इसे बिलकुल नहीं समझते, क्योंकि उनके पास अनुभव की कमी है। जब वे इसके बारे में सुनते हैं, तो वे बिलकुल समझ ही नहीं पाते। अब हम परमेश्वर के दो देहधारणों के दौरान किए गए कार्य को विस्तार से जानते हैं। परमेश्वर के पहले देहधारण के दौरान, उन्होंने छुटकारे का कार्य किया, कई चमत्कार दिखाए। उन्होंने सिर्फ़ रोटी के पाँच टुकड़ों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया। उन्होंने सिर्फ़ एक वचन से हवा और लहरों को शांत कर दिया। उन्होंने लाज़र को पुनर्जीवित किया। इसके अलावा, प्रभु यीशु ने उपवास किया और चालीस दिनों तक जंगल में परीक्षा दी। वे समुद्र पर चले, आदि। क्योंकि प्रभु यीशु के शरीर ने चमत्कार किए थे, और हम मनुष्यों की नज़रों में उन्हें सर्वोच्च स्थान दिया गया था, हालांकि प्रभु यीशु ने देहधारण किया था, तब भी उनमें अलौकिक तत्व मौजूद थे। वे औसत मनुष्य की तुलना में अलग थे, वे जहाँ भी दिखते वहां चमत्कार होते थे। इसके अलावा, प्रभु यीशु ने कार्य का सिर्फ़ एक चरण, छुटकारे का कार्य पूरा किया। उन्होंने सिर्फ़ छुटकारे के कार्य के सत्य को व्यक्त किया, मुख्य रूप से परमेश्वर के करुणा और प्रेम भरे स्वभाव को प्रकट करते हुए किया। उन्होंने न्याय और उद्धार के कार्य से सभी सत्यों को व्यक्त नहीं किया, और उन्होंने परमेश्वर के धार्मिक, पवित्र और निर्दोष स्वभाव के बारे में मनुष्यों को नहीं बताया। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि पहले देहधारण ने देहधारण के अर्थ को पूरा किया था। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "कार्य का जो चरण यीशु ने संपन्न किया, उसने केवल 'वचन परमेश्वर के साथ था' का सार ही पूरा किया : परमेश्वर का सत्य परमेश्वर के साथ था, और परमेश्वर का आत्मा देह के साथ था और उस देह से अभिन्न था। अर्थात, देहधारी परमेश्वर का देह परमेश्वर के आत्मा के साथ था, जो इस बात अधिक बड़ा प्रमाण है कि देहधारी यीशु परमेश्वर का प्रथम देहधारण था" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (4))।। अंत के दिनों में परमेश्वर का देहधारण उनके पहले देहधारण से अलग है। दूसरे देहधारण में, परमेश्वर ने चमत्कार नहीं किये हैं, वे बिलकुल भी अलौकिक नहीं हैं। बाहरी स्वरूप में, वे लोगों के बीच व्यावहारिक तरीके से और वास्तविक रूप में अपना कार्य करते और अपने वचन बोलते हुए, एक सामान्य और साधारण मनुष्य की तरह दिखते हैं। उन्होंने मनुष्य के न्याय, शुद्धिकरण और उसे पूर्ण करने के सत्य को व्यक्त किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने परमेश्वर की प्रबंधन योजना के सभी रहस्यों को उजागर किया है, और परमेश्वर के अंतर्निहित धार्मिक एवं पवित्र स्वभाव, परमेश्वर के अस्तित्व, परमेश्वर की इच्छा, और मनुष्य से उनकी अपेक्षाओं को प्रकट किया है। इसके अलावा, उन्होंने परमेश्वर का विरोध करने वाली मनुष्य की शैतानी प्रकृति तथा भ्रष्ट स्वभावों को परखा और उसे उजागर किया है, और ऐसा करने में, उन्होंने प्रत्येक मनुष्य को उसकी अपनी श्रेणी में जीता, पूर्ण किया, उजागर किया और हटाया है। वह सारा सत्य जो अंत के दिनों में परमेश्वर मनुष्य को प्रदान करते हैं, उनके शरीर की सामान्य मानवता के अंदर व्यक्त किया गया है, इसके बारे में कुछ भी अलौकिक नहीं है। हम सिर्फ़ यही देखते हैं कि एक सामान्य और साधारण मनुष्य अपनी बात बोल रहा है और अपना कार्य कर रहा है, लेकिन मसीह जो वचन बोलते हैं, वे सब सत्य हैं। उनमें अधिकार और सामर्थ्य है, वे मनुष्य को शुद्ध कर सकते और उसे बचा सकते हैं। मसीह के वचनों से, जो मनुष्य के भ्रष्टाचार के सत्य और सार को परखते और उजागर करते हैं, हम देखते हैं कि कैसे परमेश्वर अपनी समझ में मनुष्‍य को बिलकुल गहराई तक बेध देते हैं, कैसे परमेश्वर को मनुष्य की पूरी समझ है। हमें परमेश्वर के धार्मिक, पवित्र और अपमान न किये जा सकने वाले स्वभाव का भी पता चलता है। मसीह की फटकार और सत्योपदेश से, हम मनुष्य के प्रति परमेश्वर की करुणा और चिंता को समझते हैं। मसीह के बोलने और कार्य करने के कई तरीकों से, हम परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता की सराहना करते हैं, हम मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के कार्य के ईमानदार इरादों और मनुष्य के प्रति परमेश्वर के सच्चे प्रेम एवं उद्धार की सराहना करते हैं। उस तरीके से जिससे मसीह सभी लोगों, मामलों, चीज़ों से व्यवहार करते हैं, हम यह समझ पाते हैं कि कैसे परमेश्वर का आनंद, क्रोध, दुःख और खुशी सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकताएं हैं, और कैसे ये सभी परमेश्वर के स्वभाव की अभिव्यक्ति और परमेश्वर के जीवन के सार का प्राकृतिक स्वरूप हैं। मसीह के वचन और कार्य से, हम यह देखते हैं कि कैसे परमेश्वर सर्वश्रेष्ठ और महान हैं और कैसे वे विनम्रता से स्वयं को छिपाते हैं, हमें परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव और सही चेहरे की सही समझ और ज्ञान होता है, जिसकी वजह से हमारे दिलों में सत्य की प्यास जन्म लेती है और परमेश्वर के लिए सम्मान उत्पन्न होता है, जिससे हम सही अर्थों में परमेश्वर को प्रेम करते हैं और उनका आज्ञापालन करते हैं। यही हमारे ऊपर परमेश्वर के दूसरे देहधारण के वचन और कार्य का प्रभाव है। परमेश्वर के दूसरे देहधारण के वचन और कार्य न केवल हमें यह समझने में मदद करते हैं कि परमेश्वर देहधारी होते हैं बल्कि हमें परमेश्वर का "वचन देह में प्रकट होता है" का सत्य भी समझ में आता है। परमेश्वर के वचन सभी चीज़ों को पूर्ण करते हैं। यह सामान्य, औसत शरीर सत्य के आत्मा का साकार रूप है। देहधारी परमेश्वर ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं! वे एकमात्र सच्चे परमेश्वर का प्रकटन हैं! सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के साथ देहधारण का महत्व पूरा हुआ है!

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अब हम सभी को इस बात की थोड़ी और समझ हो गयी होगी कि कैसे परमेश्वर के दो देहधारण, असल में देहधारण के महत्व को पूरा करते हैं। अब हम सब इस सत्य से परिचित हैं कि मानवजाति के छुटकारे का परमेश्वर का कार्य देहधारण के कार्य के माध्यम से पूरा हुआ है। कार्य का जो चरण प्रभु यीशु ने पूरा किया, वह छुटकारे का कार्य था। उन्होंने जो सत्य व्यक्त किए, वे बहुत ही सीमित थे, इसलिए, प्रभु यीशु के कार्य का अनुभव करते हुए, परमेश्वर के बारे में हमारी जानकारी अब भी सीमित थी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए आये हैं, और उन्होंने मनुष्य के भ्रष्टाचार के लिए परमेश्वर के धार्मिक न्याय के पूर्ण सत्य को व्यक्त किया है। यह परमेश्वर के निहित स्वभाव को समझने और उनके धार्मिक एवं पवित्र सार को जानने में हमारी मदद करता है। इसलिए, अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर ने शरीर रूप में परमेश्वर के कार्य को पूरी तरह से संपन्न किया है। उन्होंने उस संपूर्ण सत्य को व्यक्त किया है जिसे परमेश्वर शरीर रूप में व्यक्त करना चाहते थे, जो "वचन देह में प्रकट होता है" के तथ्य को पूरा करता है। इसी तरह से परमेश्वर के दो देहधारण असल में देहधारण के अर्थ को पूरा करते हैं। परमेश्वर के दो देहधारण अपरिहार्य हैं, और एक-दूसरे के पूरक एवं समर्थक बनते हैं। इसलिए कोई भी यह नहीं कह सकता कि परमेश्वर सिर्फ एक बार देहधारण कर सकते हैं, या फिर यह कि वे तीन या चार बार देहधारण करेंगे। क्योंकि परमेश्वर के दो देहधारणों ने पहले ही मनुष्य को छुटकारा दिलाने के परमेश्वर के कार्य को पूरा कर दिया है, और मानवजाति को बचाने वाले संपूर्ण सत्य को व्यक्त किया है जिसे व्यक्त करना परमेश्वर के दो देहधारणों का उद्देश्य है। यानी, परमेश्वर के दो देहधारणों ने देहधारण के अर्थ को पूरा कर दिया है।

—राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर

पिछला: प्रश्न 5: ऐसा क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानवजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा बचाया जाना चाहिये? यह ऐसी बात है जिसे ज़्यादातर लोग नहीं समझते—कृपया इसके बारे में सहभागिता करें।

अगला: प्रश्न 7: परमेश्वर के दो देहधारण इस बात की गवाही देते हैं कि मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। मसीह के सत्य, मार्ग और जीवन होने को हम कैसे समझें?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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