प्रश्न 5: ऐसा क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानवजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा बचाया जाना चाहिये? यह ऐसी बात है जिसे ज़्यादातर लोग नहीं समझते—कृपया इसके बारे में सहभागिता करें।

उत्तर:

परमेश्वर के देहधारण द्वारा भ्रष्ट मानवजाति को बचाए जाने का कारण यह है कि मनुष्य की देह को शैतान ने पूरी तरह से छला और भ्रष्ट कर दिया है। पूरी मानवजाति शैतान के क्षेत्र में रहती है, वे अच्छे और बुरे, सुंदरता और कुरूपता के बीच अंतर नहीं कर सकते। वे सकारात्मक और नकारात्मक के बीच अंतर नहीं बता सकते। वे शैतान के सिद्धांत, नियम और स्वभाव के अनुसार जीते हैं, वे घमंडी, आत्म-अभिमानी, लापरवाह और स्वेच्छाचारी हैं। वे सभी शैतान के प्रतिरूप हैं और परमेश्वर का विरोध करने के लिए शैतान के साथ साजिश करते हुए भ्रष्ट हो गए हैं, फिर भी वे इस बात को नहीं समझते हैं। परमेश्वर सृष्टि के रचयिता हैं, केवल परमेश्वर ही मनुष्य के सही स्वभाव को अच्छी तरह से जानते हैं कि वह किस हद तक भ्रष्ट हो गया है। और केवल परमेश्वर ही मनुष्य की शैतानी प्रकृति और भ्रष्ट स्वभाव को उजागर कर उसकी काट-छांट कर सकते हैं, मनुष्य को मनुष्य की तरह रहने और काम करने का तरीका बता सकते हैं, और मानवजाति को पूरी तरह से जीतने, शुद्ध करने और बचाने का काम कर सकते हैं। परमेश्वर के अलावा, कोई भी सृजित मनुष्य, मानव के भ्रष्टाचार के सार को नहीं समझ सकता है और निश्चित रूप से मनुष्य को मनुष्य की तरह कार्य करने के तरीके का सत्य नहीं बता सकता है। इसलिए, अगर परमेश्वर पूरी तरह से भ्रष्ट मानवजाति को शैतान के चंगुल से निकालना चाहते हैं और उसे बचाना चाहते हैं, तो यह केवल तभी हो सकता है जब परमेश्वर का देहधारण व्यक्तिगत रूप से सत्य और परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करता है और मनुष्य को वह सारा सत्य बताता है जो उसके पास होना आवश्यक है, जिससे मनुष्य सत्य को, परमेश्वर को समझ सकता है, और शैतान के दुर्गुणों और विभिन्न अशुद्धियों को समझ सकता है, केवल तभी मनुष्य शैतान को त्याग और अस्वीकार कर सकता है और परमेश्वर के पास वापस लौट सकता है। इसके अलावा, परमेश्वर के देहधारण का कार्य सभी प्रकार के मनुष्यों को उजागर करता है। क्योंकि सारे मनुष्य घमंडी हैं और मानने से इनकार करते हैं इसलिए जब परमेश्वर सत्य को अभिव्यक्त करने के लिए देहधारण करते हैं, तो मनुष्य सदैव अपनी अवधारणाओं के साथ प्रतिक्रिया, प्रतिरोध और यहाँ तक कि लड़ाई करता है। इस तरह, परमेश्वर का प्रतिरोध करने और धोखा देने की भ्रष्ट मानवजाति की सच्चाई पूरी तरह से उजागर हो जाती है और परमेश्वर मनुष्य के भ्रष्टाचार और उनकी सही प्रकृति के आधार पर उसका न्याय करते हैं। केवल इसी तरीके से, परमेश्वर द्वारा मानवजाति के विजय, शुद्धिकरण और पूर्णता का कार्य सहजता से पूरा किया जा सकता है। परमेश्वर के वचनों के न्याय के माध्यम से, मनुष्य को धीरे-धीरे जीता और शुद्ध किया जाता है। जब मनुष्य को पूरी तरह से जीत लिया जाता है, तो वह देहधारी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने लगता है, वह परमेश्वर के न्याय और ताड़ना का पालन करने लगता है और परमेश्वर के कार्य का अनुभव करता है, वह सत्य की खोज करने के लिए तैयार होता है और फिर कभी शैतान के सिद्धांत और नियमों के अनुसार नहीं जीता है। जब मनुष्य पूरी तरह से परमेश्वर के वचन के अनुसार जीता है, तब परमेश्वर ने शैतान को पूरी तरह से पराजित कर दिया होता है और भ्रष्ट मनुष्य शैतान के विरुद्ध उनकी जीत का अवशिष्ट बन जाता है। वास्तव में, परमेश्वर भ्रष्ट मानवजाति को शैतान के चंगुल से निकालते हैं। ऐसा प्रभाव केवल देहधारी परमेश्वर के कार्य में हो सकता है। यह मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर के देहधारण की पूर्ण अनिवार्यता है, और केवल देहधारी परमेश्वर ही मानवजाति को पूरी तरह से जीत और बचा सकते हैं। परमेश्वर जिन लोगों का इस्तेमाल करते हैं, वे मानवजाति के छुटकारे और बचाव का कार्य करने में सक्षम होते हैं।

अगर भ्रष्ट मनुष्य बचाया जाना चाहता है तो, उसे सचमुच अपने न्याय और शुद्धिकरण के लिए परमेश्वर के व्यक्तिगत रूप से देहधारण की जरूरत है। मनुष्य के साथ देहधारी परमेश्वर के परस्पर संवाद के दौरान, वे मनुष्य को आमने-सामने परमेश्वर को समझने और जानने का मौक़ा देते हैं। क्योंकि असली सत्य की खोज करने वाले अंत के दिनों के मसीह के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकार करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर की आज्ञा पालन करने में सक्षम होते हैं और अपने दिल में परमेश्वर के लिए प्रेम रखते हैं और उन्हें शैतान के कार्यक्षेत्र से पूरी तरह बचा लिया जाता है। क्या यह परमेश्वर के लिए मानवजाति को बचाने और पूर्ण करने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है? क्योंकि परमेश्वर ने देहधारण की है, हमें परमेश्वर के साथ आमने-सामने आने और उनके असली कार्य का अनुभव करने का अवसर मिला, और हमें परमेश्वर के सटीक वचन की आपूर्ति प्राप्त करने तथा सीधे उनके द्वारा मार्गदर्शित होने और सिंचित किये जाने का मौक़ा मिला ताकि हम परमेश्वर पर भरोसा करना, परमेश्वर की आज्ञा मानना और उनको सचमुच प्रेम करना शुरू कर सकें। अगर परमेश्वर ने मानवजाति के उद्धार का कार्य करने के लिए देहधारण नहीं किया होता, तो यह व्यावहारिक प्रभाव हासिल नहीं किया जा सकता था। ...

जब परमेश्वर भ्रष्ट मानवजाति को बचाने के लिए देहधारण करते हैं, वे मानवजाति को परमेश्वर की मांगों, उनकी इच्छा, उनके स्वभाव और उनके अस्तित्‍व के बारे में स्पष्ट रूप से बताने के लिए मनुष्य की भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरीके से, जांच-पड़ताल और खोज करने की जरूरत के बिना, मनुष्य परमेश्वर की इच्छा को स्पष्ट रूप से समझ सकता है, परमेश्वर की मांगों को और उनको पूरा किये जाने के तरीकों को जान सकता है। इस तरीके से, वह परमेश्वर की व्यावहारिक समझ और ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। जिस तरह अनुग्रह के युग में, पतरस ने प्रभु यीशु से पूछा था, "हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूँ? क्या सात बार तक?" (मत्ती 18:21)। यीशु ने पतरस से सीधे कहा था: "मैं तुझ से यह नहीं कहता कि सात बार तक वरन् सात बार के सत्तर गुने तक" (मत्ती 18:22)। इससे हम यह देख सकते हैं कि देहधारी प्रभु यीशु जब कभी भी और जहां कहीं भी गए, उन्होंने मनुष्य का पोषण और सहयोग दिया, जिससे मनुष्य को सबसे व्यावहारिक और स्पष्ट आपूर्ति मिली। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लोगों के बीच देहधारी हुए, मनुष्य की वास्तविक परिस्थिति का समाधान करने के लिए सत्य को अभिव्यक्त किया, परमेश्वर के स्वभाव और वह सब जो परमेश्वर के पास है और उनके अस्तित्‍व, को अभिव्यक्त किया, ताकि मानवजाति को सहयोग और आपूर्ति की जा सके, परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास के भीतर की सभी अशुद्धियों और दुर्गुणों की ओर ध्यान दिलाया, मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा और उनकी मांगों की जानकारी दी, जिससे मनुष्य को जीवन की सबसे व्यावहारिक और स्पष्ट आपूर्ति और पोषण मिला। उदाहरण के लिए, जब हम परमेश्वर के बारे में जाने बिना उनसे विद्रोह और उनका प्रतिरोध करते हुए जीते हैं, परमेश्वर का वचन हमें सीधे उजागर कर हमारा न्याय करता है, जिससे हम परमेश्वर के वचन में यह देख पाते हैं कि कैसे हमारी शैतानी प्रकृति परमेश्वर के विरुद्ध है। जब हम अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और ऐसा करने में आत्म-संतुष्ट होते हैं, परमेश्वर हमारी कमियों को उजागर करते हैं और हमें बताते हैं कि परमेश्वर के अनुयायियों के रूप में हमारी धारणाएं क्या होनी चाहियें। जब हम परमेश्वर के न्याय के हमारे अनुभव में परमेश्वर को गलत समझ लेते हैं, परमेश्वर के वचन हमें उन सच्चे इरादों की याद दिलाते हैं जिसके जरिए परमेश्वर मानवजाति को बचाते और उसका न्याय करते हैं, परमेश्वर को लेकर हमारी गलतफहमियों को दूर करते हैं। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों ने इस बात का गहराई से अनुभव किया कि किस तरह देहधारी परमेश्वर लगातार हमारी मदद करते हैं और आपूर्ति करते हैं ताकि हमें जांच-पड़ताल और खोज करने की जरूरत ना पड़े। परमेश्वर के सबसे व्यावहारिक पोषण और जल को प्राप्त करने के लिए, हमें बस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन को अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए। परमेश्वर द्वारा अभिव्यक्त किये गए वचन के माध्यम से, हमें परमेश्वर की इच्छा, उनके स्वभाव और वह सब जो उनके पास है और उनके अस्तित्‍व, की कुछ सही समझ मिलती है और इस समझ के जरिए, हम यह जान पाते हैं कि इस तरह से खोज कैसे की जाए कि हम एक सही जीवन जी सकें और शैतान के नीचतापूर्ण कार्यों के बारे में जान सकें, साफ़ तौर पर यह देख सकें कि कैसे हमने अपने आपको शैतान के द्वारा पूरी तरह से भ्रष्ट कर लिया है, और ऐसा करने में, धीरे-धीरे अपने पाप और शैतान के काले प्रभाव को ख़त्म कर सकें। इसके परिणाम स्वरूप, हमारा जीवन स्वभाव बदल जाता है और हम सही दिशा में आगे बढ़ने लगते हैं, सत्य की वास्तविकता के साथ जीने लगते हैं। परमेश्वर के देहधारण ने यह सब संभव कर दिया है।

परमेश्वर ने कार्य करने और अपना वचन अभिव्यक्त करने के लिए देहधारण किया है, जिससे मनुष्य को सबसे व्यावहारिक जीवन सामग्री और पोषण मिलता है। इस तथ्य के बावजूद कि देहधारी परमेश्वर के न्याय के कार्य के संबंध में मनुष्य की कई अवधारणाएं हैं, परमेश्वर ने मनुष्य को जीवन का मार्ग और चिरस्थायी उद्धार दिया है, और मनुष्य उनके ऊपर निर्भर हो गया है! ... इस तथ्य के बावजूद कि परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने और पूर्ण करने के लिए, अंत के दिनों में अपने देहधारण में एक साधारण मनुष्य के पुत्र का रूप लिया है, इसके बावजूद कि उन्होंने न तो कोई संकेत दिया और न ही चमत्कार किये, और ना ही उनमें कोई महामानव का गुण या विशाल डील-डौल है और वे मनुष्य की अवधारणाओं का निशाना भी बने, उनके इनकार, प्रतिरोध और अस्वीकार के बावजूद, मसीह द्वारा व्यक्त किये गए सत्य और उनके द्वारा किये जाने वाले न्याय के कार्य ने मनुष्य को परमेश्वर के वचन की आपूर्ति दी है, और उन्हें सत्य को हासिल करने और परमेश्वर के प्रकटन को देखने में सक्षम बनाया है। हालांकि हमने परमेश्वर के असली व्यक्तित्व को नहीं देखा है, हमने उनके आंतरिक स्वभाव और उनके पवित्र सार को देखा है, जो बिल्कुल वैसा ही है मानो हमने उनके असली व्यक्तित्व को देखा हो। हमने सचमुच वास्तविकता में परमेश्वर को हमारे बीच रहते देखा है। हम सचमुच यह महसूस करते हैं कि सिंहासन के सामने हमारा स्वर्गारोहण किया गया है, हमने परमेश्वर के आमने-सामने होकर परमेश्वर के कार्य को अनुभव किया है और सिंहासन से प्रवाहित होने वाले जीवन के सजीव जल की आपूर्ति का आनंद उठाया है। अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य का अनुभव करने के बाद, हम धीरे-धीरे उन सच्चे इरादों को समझ पाए हैं जिनके साथ परमेश्वर मानवजाति को बचाते हैं, और देखा है कि मानवजाति को बचाने के लिए परमेश्वर जो कीमत चुकाते हैं और जिन यातनाओं को सहते हैं, वह सचमुच महान है। परमेश्वर हमारे लिए जो कुछ भी करते हैं वह उनके प्रेम की अभिव्यक्ति है और उसका लक्ष्य हमारा उद्धार करना है। हम हमारे पिछले विद्रोह और मूर्खता के लिए अपने आप से घृणा करते हैं और सचमुच परमेश्वर को प्रेम करने और उनकी आज्ञा मानने लगते हैं। अब तक परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लेने के बाद, हम सब यह समझ गए हैं कि हम जो बदलाव अपने आपमें देखते हैं वह पूरी तरह से देहधारी परमेश्वर के उद्धार का परिणाम है! अंत के दिनों के मसीह भ्रष्ट मानवजाति का सबसे बड़ा उद्धार हैं। वे परमेश्वर का ज्ञान और परमेश्वर की प्रशंसा पाने का एकमात्र मार्ग हैं!

—राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर

पिछला: प्रश्न 4: व्यवस्था के युग का कार्य करने के लिए परमेश्वर ने मूसा का उपयोग किया, तो अंतिम दिनों में परमेश्वर अपने न्याय के कार्य को करने के लिए लोगों का इस्तेमाल क्यों नहीं करता है, बल्कि इस कार्य को उसे खुद करने के लिए देह बनने की ज़रूरत क्यों है? और देहधारी परमेश्वर और परमेश्वर जिन लोगों का उपयोग करते हैं, उनमें क्या ख़ास अंतर है?

अगला: प्रश्न 6: अनुग्रह के युग में, परमेश्वर मानवजाति की पाप-बलि के रूप में सेवा करने के लिए देह बना, और पापों से उन्हें बचा लिया। अंतिम दिनों में परमेश्वर सत्य को प्रकट करने और न्याय के अपने कार्य को करने के लिए फिर से देह बन गया है, ताकि मनुष्य को पूरी तरह से शुद्ध किया जा सके और बचाया जा सके। तो मानव जाति को बचाने का कार्य करने के लिए परमेश्वर को दो बार देहधारण की आवश्यकता क्यों पड़ती है? और परमेश्वर का दो बार देहधारण करने का वास्तविक महत्व क्या है?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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