327 अपने गंतव्य की खातिर मनुष्य द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने की कुरूपता
1 जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग उसे विशेष गंभीरता से लेते हो; इतना ही नहीं, यह एक ऐसी चीज़ है, जिसके बारे में तुम सभी विशेष रूप से संवेदनशील हो। कुछ लोग तो एक अच्छा गंतव्य पाने के लिए परमेश्वर के सामने दंडवत करते हुए अपने सिर जमीन से लगने का भी इंतज़ार नहीं करते। मैं तुम्हारी उत्सुकता समझता हूँ, जिसे शब्दों में व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। यह इससे अधिक कुछ नहीं है कि तुम लोग अपनी देह विपत्ति में नहीं डालना चाहते, और भविष्य में चिरस्थायी सजा तो बिलकुल भी नहीं भुगतना चाहते। तुम लोग केवल स्वयं को थोड़ा और उन्मुक्त, थोड़ा और आसान जीवन जीने देने की आशा करते हो।
2 इसलिए जब भी गंतव्य का जिक्र होता है, तुम लोग खास तौर से बेचैन महसूस करते हो और अत्यधिक डर जाते हो कि अगर तुम लोग पर्याप्त सतर्क नहीं रहे, तो तुम परमेश्वर को नाराज़ कर सकते हो और इस प्रकार उस दंड के भागी हो सकते हो, जिसके तुम पात्र हो। अपने गंतव्य की खातिर तुम लोग समझौते करने से भी नहीं हिचकेहो, यहाँ तक कि तुममें से कई लोग, जो कभी कुटिल और चंचल थे, अचानक विशेष रूप से विनम्र और ईमानदार बन गए हैं; तुम्हारी ईमानदारी का दिखावा लोगों की मज्जा तक को कँपा देता है।
3 फिर भी, तुम सभी के पास "ईमानदार" दिल हैं, और तुम लोगों ने लगातार बिना कोई बात छिपाए अपने दिलों के राज़ मेरे सामने खोले हैं, चाहे वह शिकायत हो, धोखा हो या भक्ति हो। कुल मिलाकर, तुम लोगों ने अपने अस्तित्व के गहनतम कोनों में पड़ी महत्वपूर्ण चीज़ें मेरे सामने खुलकर "कबूल" की हैं। बेशक, मैंने कभी इन चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे सब मेरे लिए बहुत आम हो गई हैं। लेकिन अपने अंतिम गंतव्य के लिए तुम लोग परमेश्वर का अनुमोदन पाने के लिए अपने सिर के बाल का एक रेशा भी गँवाने के बजाय आग के दरिया में कूद जाओगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में से रूपांतरित