326 परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास की सबसे दुखद बात

1

आस्था में इंसान की सबसे बड़ी विफलता है,

ईश-आज्ञा मानने, आराधना करने की कोशिश के साथ

आशीष और सबसे अच्छी मंज़िल

पाने की साजिश करना।

भले ही लोग जानते हों वे दयनीय

और घिनौने हैं, पर अपने आदर्श कौन छोड़े?

कौन अपने कदम रोके

और खुद के बारे में सोचना छोड़ दे?


इंसान के विश्वास के बारे में सबसे दुखद है

कि इंसान अपना ही प्रबंधन करे,

ईश्वर के कार्य पर, उसके प्रबंधन पर

कोई ध्यान ना दे, ध्यान ना दे।


2

ईश्वर को अपना प्रबंधन पूरा करने के लिए

जरूरत है सहयोग करने वालों की,

जो उसकी आज्ञा मानें और उसके

प्रबंधन के लिए अपना सब दे देते।

उसे नहीं जरूरत भिखारियों की

न उनकी जो काम के बदले इनाम चाहें,

उसे नफरत है थोड़ा करके बैठ जाने वालों से।


इंसान के विश्वास के बारे में सबसे दुखद है

कि इंसान अपना ही प्रबंधन करे,

ईश्वर के कार्य पर, उसके प्रबंधन पर

कोई ध्यान ना दे, ध्यान ना दे।


3

ईश्वर उन निष्ठुर लोगों से नफरत करे,

जो उसका काम पसंद न करें

और बस स्वर्ग और आशीष की बातें करें।

वो उनसे और भी नफरत करे,

जो इंसान को बचाने के उसके काम

से मिले मौके का फायदा उठाते।

क्योंकि वे न करें परवाह कि ईश्वर अपने काम से

क्या हासिल करना, क्या पाना चाहे

आशीषों के लिए वे उसके काम का लाभ उठाते।

वे ईश्वर के दिल की परवाह करते नहीं,

अपने भविष्य और भाग्य में ही उलझे रहते हैं।


इंसान के विश्वास के बारे में सबसे दुखद है

कि इंसान अपना ही प्रबंधन करे,

ईश्वर के कार्य पर, उसके प्रबंधन पर

कोई ध्यान ना दे, ध्यान ना दे।


4

जिन्हें ईश्वर का प्रबंधन पसंद नहीं

और परवाह नहीं ईश्वर इंसान को कैसे बचाए

ईश-प्रबंधन से दूर वे अपनी मर्जी से चल रहे हैं।

ईश्वर उनके बर्ताव को याद न रखे न स्वीकृति दे,

न ही उसे देखे कृपा की दृष्टि से।


इंसान के विश्वास के बारे में सबसे दुखद है

कि इंसान अपना ही प्रबंधन करे,

ईश्वर के कार्य पर, उसके प्रबंधन पर

कोई ध्यान ना दे, ध्यान ना दे।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है से रूपांतरित

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