7. जाग गयी पैसे की गुलाम

शिंगवु, चीन

जब मैं छोटी थी, मेरा परिवार ग़रीब था, मेरे माता-पिता मेरी शिक्षा का खर्च नहीं उठा पा रहे थे, तो मैंने स्कूल की फीस देने के लिए बाड़ बनाना और बेचना शुरू किया। एक दिन, मैं खेत में काम कर रही थी, यहाँ मेरी छोटी उंगली कट गयी। इलाज के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए घाव पूरी तरह भर नहीं पाया। मैं अभी भी उंगली को सीधा नहीं कर पाती हूँ। शादी के बाद, मैं और मेरे पति गरीब ही रहे। मेरे मित्र और परिवार के लोग हमें नीची नज़र से देखते और हमसे दूर रहते। जब मैं देखती कि दौलतमंद लोगों को कितना आदर मिलता है, वे बेफ़िक्र होकर कैसा बढ़िया खाते और पहनते हैं, तो मुझे उनसे ईर्ष्या होती। लोग हमेशा कहते हैं : "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है," "पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं," और "पैसा जिसका, ताकत और रुतबा उसका।" उस वक्त, मैं सोचती कि यह सब सच है। पैसा हो, तो आप रोटी-कपड़े का इंतज़ाम कर सकते हैं, यह आपको आदर और प्रशंसा भी दिलाता है। मुझे लगता कि पैसा ही सब-कुछ है। तब मैंने कड़ी मेहनत करने और ज़्यादा पैसा कमाने की कसम खायी। मैं गरीबी से बाहर निकल कर एक दौलतमंद इंसान की तरह जीना चाहती थी।

बाद में, मुझे और मेरे पति को एक स्कूल की कैफेटीरिया चलाने का काम मिला। वहां हर दिन सैकड़ों लोग खाना खाते। पैसा बचाने के लिए, हमने सिर्फ़ एक कर्मचारी को नौकरी पर रखा। हर दिन मेरे पति और मैं सुबह 4 बजे से लेकर आधी रात तक काम करते। नज़ला ज़ुकाम होने के बावजूद मैं काम करती रहती। ज़्यादा कमाने के लिए हमने खेतों का भी बहुत-सा काम ले लिया। खेती के व्यस्त मौसम में, फसल की रोपाई और कटाई का सारा काम रात में करने के लिए हम ओवरटाइम करते। दिन-रात काम करने के कारण अक्सर मेरा सिर चकराता। कभी-कभी मैं सब्जियां काटते समय झपकी लेने लगती और अपनी उंगलियाँ काट लेती। घावों पर नमक और पानी पड़ा रहता। बहुत दर्द होता था। बेहद थकी हुई होने के बावजूद, जब भी मैं अपनी आमदनी को बढ़ता देखती, तो खुश होती। मुझे लगता यह सब जायज़ है। जब मैं दौलतमंद लोगों को शानदार कपड़ों में, खाते-पीते और हंसते देखती, तो खुद से कहती, "मुझे और पैसा कमाना होगा!" लगता कि अगर मैं मेहनत करूंगी, तो देर-सवेर मैं दौलतमंद लोगों में शुमार हो जाऊंगी।

हर दिन ठंडा पानी इस्तेमाल करने के कारण, मुझे गंभीर रूमेटॉयड गठिया हो गया। मेरे जोड़ खराब होने लगे। बरसों से थकाऊ काम करने की वजह से मेरी रीढ़ की हड्डी का एक डिस्क भी सरक गया, जिसके कारण हड्डियों का हाइपरप्लेसिया और सायटिका हो गया। डॉक्टर ने ऑपरेशन करवाने और तीन महीने तक अस्पताल में रहने को कहा, लेकिन मैं पैसा कमाना बंद नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने मना कर दिया। तीन दिन भी बहुत होते। इसलिए, मैं दिन-रात काम करती रही। आखिरकार समय पर न खाने और नींद पूरी न होने के कारण, मुझे गैस्ट्रोस्टोसिस और गैस्ट्रोएंटराइटिस हो गया। जल्दी ही, मुझे गर्भाशय का मायोमा, ओवेरियन प्रोलैप्स (अंडाशय खिसक कर नीचे आना), दिल की बीमारी, मायोकार्डाइटिस, और गंभीर एनीमिया (खून की कमी) हो गया। एक के बाद एक कई बीमारियों ने मुझे जकड़ लिया। दर्द बर्दाश्त से बाहर होता, मैं रात भर सो नहीं पाती। बेहिसाब रोती रहती। मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मैंने सोचा : ऐसी ज़िंदगी जीने का क्या फायदा? क्या पैसा कमाने के लिए संघर्ष करते हुए ज़िंदगी गुजारना जायज है? मेरे पास जवाब नहीं था। मैंने बस महसूस किया कि समाज में कुछ भी हासिल करने के लिए पास में पैसा होना चाहिए। इसलिए मैंने खुद को समझाया : "अगर तुम ईमानदार हो, तो काम करती रह सकती हो।" उसी तरह, मैं फिर पैसे के पीछे भागने लगी। लेकिन एक दिन, अस्पताल जाने पर, मुझे दो प्रकार के कैंसर होने की बात पता चली—शुरुआती चरण का फेफड़ा कैंसर और स्तन कैंसर। उनके अचानक ये बताते ही मैं कमज़ोर पड़ गयी। अपने बिस्तर पर पड़ी घंटों रोती रही। मैंने इलाज के लिए तरह-तरह के अस्पतालों के चक्कर काटे, पूरी बचत फुंक गयी। मगर काम नहीं बना, जो दवा मैंने खाई उससे मेरे पूरे शरीर में सूजन हो गयी। हर रात, जब खामोशी पसरी होती, मैं अपने बिस्तर पर पड़ी मायूसी से खिड़की से बाहर देखती रहती। मैंने पैसा कमाने में अपनी ज़िंदगी खपा दी, पर धनवान तो हो नहीं पायी, मेरा स्वास्थ्य चौपट हो गया, मेरी ज़िंदगी तकलीफ़देह हो गयी। ऐसे में जीने का क्या फायदा? अब मैं पैसा कमाने के फेर में अपनी जान नहीं लेना चाहती थी। मगर मेरे पति को पैसे से प्यार था। उसने कहा : "जब तक ज़िंदा हो, काम करती रहो!" उनकी बेरुख़ी ने मुझे परेशान और निराश कर दिया, लगने लगा मैं बहुत बेसहारा हूँ। मेरी उम्र अभी चालीसवें दशक में थी। अपनी ज़िंदगी में मैं कभी खुशहाल नहीं रही। मेरे बेटे की शादी नहीं हुई थी। मैं इस तरह मरने को तैयार नहीं थी। मैं जीना चाहती थी। लेकिन बिना पैसे के मेरा इलाज कैसे होता, मैं ज़िंदा कैसे रहती? पैसा कमाते रहना ही एकमात्र तरीका था। इसलिए, मैं दवा लेते हुए काम करने लगी।

एक साल बाद, मेरे पति ने बचत के बाकी पैसों से एक कोयला ब्रिकेट का कारखाना लगाया। अगले साल, उसने एक ऑयल एक्स्ट्रैक्शन (तेल निष्कर्षण) का कारखाना लगाया। हर दिन, बीमारी के बावजूद दोनों कारखानों में जाकर मैं कुछ छोटे-मोटे काम करती। बरसों की कड़ी मेहनत के बाद, हमने थोड़ा पैसा कमाया। हमने शहर में एक घर ख़रीदा, कार खरीदी, और अच्छी खाती-पीती ज़िंदगी बसर करने लगे। हमारे मित्र और रिश्तेदार हमारी खुशामद और प्रशंसा करने लगे। समाज में हमारी जगह बदल गयी। हमें एक नयी पहचान मिल गयी। हम खुद से बहुत खुश थे। इतने बरसों के झेले हुए दुख-दर्द आखिरकार जायज लगे। लेकिन अच्छा वक्त लंबा नहीं चलता। इतने वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद, मेरा शरीर जवाब देने लगा। डॉक्टर ने मुझे बताया : "आपकी बीमारियाँ बहुत जटिल हैं। कोई भी अंग ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है। हम कुछ भी नहीं कर सकते।" उनकी बातों ने मृत्यु दंड जैसा झटका दिया। मैं इस ख़बर को स्वीकार नहीं कर पायी। क्या इसका मतलब है कि मैं घर जाकर मरने का इंतज़ार करूं? मेरे पास पैसा था, मैं सांसारिक जीवन का आनंद ले रही थी। लेकिन इसका क्या फ़ायदा? कितना भी पैसा हो, अब यह मुझे नहीं बचा सकता। बीमारी के दर्द से मैं करीब-करीब मरने की चाह करने लगी। मैं और कर भी क्या सकती थी? न चाह कर भी, मैं ऊपर देखकर रो पड़ी : "हे परमेश्वर! मुझे बचा लो!"

ऐसी भयंकर मायूसी की हालत में, मेरी सहेली ने मेरे साथ सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का सुसमाचार साझा किया। उसने कहा कि परमेश्वर इंसान को बचाने, सत्य व्यक्त करने और जीवन के रहस्यों पर से परदा उठाने के लिए अंत के दिनों में देहधारी हो गया है। वह प्रकट करता है कि दुनिया में बुराई और अंधकार का स्रोत क्या है, हमारा जीवन इतना खोखला और दुख-भरा क्यों है, रोग कहाँ से आते हैं, हमारी नियति किसके हाथ में है, हमारे जीवन को सही मायनों में सार्थकता कैसे मिल सकती है, आदि-आदि। यही नहीं, उसने कहा कि परमेश्वर के वचनों को पढ़ कर और सत्य को समझ कर, हम इन चीज़ों को समझ सकते हैं, फिर हमारे दुख दूर हो जाएंगे। मेरी सहेली ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ कर सुनाया : "मनुष्य जीवन-भर जन्म, मृत्यु, बीमारी और वृद्धावस्था के कारण जो सहता है उसका स्त्रोत क्या है? किस कारण लोगों को ये चीज़े झेलनी पड़ीं? जब मनुष्य को पहली बार सृजित किया गया था तब ये चीजें नहीं थीं। है ना? तो फिर, ये चीज़ें कहाँ से आईं? वे तब अस्तित्व में आयीं जब शैतान ने इंसान को प्रलोभन दिया और उनकी देह पतित हो गयी। मानवीय देह की पीड़ा, उसकी यंत्रणा और उसका खोखलापन साथ ही मानवीय दुनिया की दयनीय दशा, ये सब तभी आए जब शैतान ने मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। जब मनुष्य शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया, तब वह उसे यंत्रणा देने लगा। परिणामस्वरूप, मनुष्य अधिकाधिक अपभ्रष्ट हो गया। मनुष्य की बीमारियाँ अधिकाधिक गंभीर होती गईं, और उसका कष्ट अधिकाधिक घोर होता गया। मनुष्य, मानवीय दुनिया के खोखलेपन, त्रासदी और साथ ही वहाँ जीवित रहने में अपनी असमर्थता को ज़्यादा से ज़्यादा महसूस करने लगा, और दुनिया के लिए कम से कमतर आशा महसूस करने लगा। इस प्रकार, यह दुःख मनुष्य पर शैतान द्वारा लाया गया था"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'परमेश्वर द्वारा जगत की पीड़ा का अनुभव करने का अर्थ')

फिर मेरी सहेली ने संगति में कहा : "जब परमेश्वर ने हमें बनाया, तो हम सभी उसके संरक्षण में रहते थे, मृत्यु, रोग या चिंताओं के बिना, अदन की वाटिका में आज़ादी से रहते थे। लेकिन जब से शैतान ने इंसान को ललचा कर भ्रष्ट कर दिया, तब से हम परमेश्वर को धोखा देने लगे, हमने उसकी देखभाल और संरक्षण खो दिया। हम शैतान के सिद्धांतों के अनुसार शैतान के अधिकार-क्षेत्र में रहते हैं, एक-दूसरे से होड़ लगाते हैं, शोहरत, दौलत और रुतबे के लिए झूठ बोलते, धोखा देते और लड़ते हैं। इसी से हमारी आत्मा को दुख-दर्द और रोग मिलते हैं। यही दुख-दर्द, यही चिंताएं सबको यह महसूस कराती हैं कि जीवन बहुत दर्दनाक, बुरी तरह थकाने वाला और बहुत कठिन है। यह सब शैतान द्वारा हमारे भ्रष्ट होने के कारण हुआ है। यह शैतान का हमें यातना देना है। लेकिन हमें बचाने के लिए परमेश्वर देहधारी होकर दुनिया में आया है। वह हमें उद्धार प्राप्त करने और शुद्ध होने योग्य बनाने के लिए संपूर्ण सत्य व्यक्त करता है। अगर हम परमेश्वर के वचन पढ़ें और उन्हें जीवन में उतारें, तो हम उसका संरक्षण और मार्गदर्शन पा सकते हैं, खुद को भ्रष्टता से मुक्त कर सकते हैं, परमेश्वर का उद्धार पा सकते हैं और वह हमें हमारी आख़िरी मंज़िल तक पहुंचा सकता है।" उसकी बातें सुनकर मुझमें एक प्रकार की आशा जागी। मुझे लगा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझे दुख-दर्द से बचा सकता है, इसलिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य पर गौर करने को राज़ी हो गयी। मेरी सहेली ने मुझे वचन देह में प्रकट होता है की एक प्रति दी। उसके बाद, मैं हर दिन परमेश्वर के वचन पढ़ती और भाई-बहनों से मिलती।

एक दिन अपने धार्मिक कार्य में, मैंने परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक वीडियो देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जैसी भी हो, कोई भी स्वर्ग के आयोजनों और व्यवस्थाओं से बच नहीं सकता, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही, जो सभी चीज़ों पर शासन करता है, ऐसा करने में सक्षम है। जिस दिन से मनुष्य अस्तित्व में आया है, परमेश्वर ने ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हुए, सभी चीज़ों के लिए परिवर्तन के नियमों और उनकी गतिविधियों के पथ को निर्देशित करते हुए हमेशा ऐसे ही काम किया है। सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी चुपचाप और अनजाने में परमेश्वर से मिठास और बारिश तथा ओस द्वारा पोषित होता है; सभी चीज़ों की तरह मनुष्य भी अनजाने में परमेश्वर के हाथ के आयोजन के अधीन रहता है। मनुष्य का हृदय और आत्मा परमेश्वर के हाथ में हैं, उसके जीवन की हर चीज़ परमेश्वर की दृष्टि में रहती है। चाहे तुम यह मानो या न मानो, कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। यह वीडियो देख कर मैं समझ पायी कि परमेश्वर हमारा सृजनकर्ता है और वह सभी चीज़ों पर शासन करता है। परमेश्वर तमाम इंसानों को आपूर्ति और पोषण देता है। हमारी नियति, हमारा जीवन और मृत्यु, हमारी खुशहाली सब उसकी हथेली में हैं। सिर्फ़ व्यस्त रह कर और भाग दौड़ करके हम इन्हें नहीं बदल सकते। मगर मैं परमेश्वर की संप्रभुता को नहीं समझ पायी। मैंने अपनी शक्तियों के भरोसे अपनी नियति को बदलने की कोशिश की, धनवान बनने की कोशिश की। मगर थोड़ा पैसा कमा लेने के बावजूद, मैं कभी खुशी महसूस न कर सकी। मेरी आत्मा पीड़ा में थी, मेरा स्वास्थ्य खराब हो चुका था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ : अगर लोग परमेश्वर में विश्वास रख कर उसकी आराधना नहीं करेंगे, अगर वे उसकी संप्रभुता को नहीं मानेंगे, अपनी इच्छा से अपने भाग्य का प्रतिरोध करेंगे, तो वे बेकार में दुख-दर्द सहेंगे, और मरने के बाद नरक में जाएंगे। तब मैं जान गयी कि परमेश्वर ही मेरा एकमात्र सच्चा सहारा है, मैंने उससे प्रार्थना करके अपना स्वास्थ्य उसके सुपुर्द कर दिया। मैं ज़िंदा रहूँ या मर जाऊं, मैं परमेश्वर की संप्रभुता के सामने समर्पण करूंगी।

इसके बाद, मैं अक्सर कलीसिया जीवन में शामिल होने लगी। मैं भाई-बहनों को परमेश्वर के वचन पढ़ते और सत्य का अनुसरण करते देखती, वे अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयास करते, मैं वाकई उनकी प्रशंसा करती। मैं अपनी पुरानी ज़िंदगी को पीछे छोड़ कर नयी ज़िंदगी जीना चाहती थी। इसलिए मैं परमेश्वर से अक्सर प्रार्थना करती, परमेश्वर से रास्ता दिखाने की विनती करती ताकि मेरे पास सभाओं में शामिल होने और अपना कर्तव्य निभाने का अधिक समय हो। बाद में, एक नयी सड़क बनाने के लिए हमारे तेल निष्कर्षण कारखाने का अधिग्रहण कर लिया गया। मुझे पहले की तरह दो कारखानों के बीच कभी यहाँ कभी वहां आने-जाने की ज़रूरत नहीं थी। मेरे पास अब दूसरों से मिलने, परमेश्वर के वचनों पर संगति करने, उसके वचनों पर सोच-विचार करने और उसके करीब आने का अधिक समय था। मैं हर दिन समृद्ध महसूस करने लगी। कुछ समय बाद, मेरे स्वास्थ्य में तेज़ी से सुधार होने लगा। मैंने नया जोश महसूस किया, मेरे शरीर में पहले से ज़्यादा ताकत आ गयी। मैं काफ़ी आराम और सुकून महसूस करने लगी। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी थी।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक और वीडियो देखा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "'दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है' यह शैतान का एक फ़लसफ़ा है और यह संपूर्ण मानवजाति में, हर मानव-समाज में प्रचलित है। तुम कह सकते हो कि यह एक रुझान है, क्योंकि यह हर एक व्यक्ति के हृदय में बैठा दिया गया है। बिल्कुल शुरू से ही, लोगों ने इस कहावत को स्वीकार नहीं किया, किन्तु फिर जब वे जीवन की वास्तविकताओं के संपर्क में आए, तो उन्होंने इसे मूक सहमति दी, और महसूस करना शुरू किया कि वे वचन वास्तव में सत्य हैं। क्या यह शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने की प्रक्रिया नहीं है? ... तो शैतान द्वारा मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए इस रुझान का उपयोग किए जाने के बाद, यह उनमें कैसे अभिव्यक्त होता है? क्या तुम लोगों को लगता है कि बिना पैसे के तुम लोग इस दुनिया में जीवित नहीं रह सकते, कि पैसे के बिना एक दिन जीना भी असंभव होगा? लोगों की हैसियत इस बात पर निर्भर करती है कि उनके पास कितना पैसा है, और वे उतना ही सम्मान पाते हैं। गरीबों की कमर शर्म से झुक जाती है, जबकि धनी अपनी ऊँची हैसियत का मज़ा लेते हैं। वे ऊँचे और गर्व से खड़े होते हैं, ज़ोर से बोलते हैं और अंहकार से जीते हैं। यह कहावत और रुझान लोगों के लिए क्या लाता है? क्या यह सच नहीं है कि पैसे की खोज में लोग कुछ भी बलिदान कर सकते हैं? क्या अधिक पैसे की खोज में कई लोग अपनी गरिमा और ईमान का बलिदान नहीं कर देते? इतना ही नहीं, क्या कई लोग पैसे की खातिर अपना कर्तव्य निभाने और परमेश्वर का अनुसरण करने का अवसर नहीं गँवा देते? क्या यह लोगों का नुकसान नहीं है? (हाँ, है।) क्या मनुष्य को इस हद तक भ्रष्ट करने के लिए इस विधि और इस कहावत का उपयोग करने के कारण शैतान कुटिल नहीं है? क्या यह दुर्भावनापूर्ण चाल नहीं है?" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। इसे देखने के बाद, मैं समझ पायी कि मैंने दर्द और थकान में दसियों साल इसलिए बिताये थे, क्योंकि शैतान की भ्रष्टता और समाज के प्रभाव की वजह से मैं सांसारिक तौर-तरीकों के पीछे भागते हुए पैसे की पूजा कर रही थी। बचपन में, गरीबी की हालत में, मुझे अलग-थलग रख कर नीची नज़र से देखा जाता था। जब मैंने दौलतमंद लोगों को बढ़िया ज़िंदगी जीते और आदर पाते हुए देखा, तो मेरे मन में पक्का हो गया कि इस दुनिया में जीने के लिए पैसा ज़रूरी है। "पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं," "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है," "पैसा जिसका, ताकत और रुतबा उसका," "पैसा सबसे पहले है," और "अमीर बनने के लिए इंसान कुछ भी कर सकता है।" इन शैतानी भ्रांतियों ने मेरे दिल में जड़ें जमा लीं और मेरी सोच को काबू में कर लिया। मेरा ख़याल था कि पैसा ही सब-कुछ है, यह मुझे प्रशंसा, आदर और खुशी दे सकता है। मैंने पैसे के पीछे भागने को अपना एकमात्र लक्ष्य बना लिया था और सिर्फ़ ज़्यादा कमाने की ही परवाह करने लगी थी। मुझे कोई परवाह नहीं थी कि मुझे चक्कर आ रहा है, मैं थकी हुई या बीमार हूँ, और मेरा शरीर जवाब दे रहा है। दौलतमंद होकर एक संपन्न ज़िंदगी बसर करने की बात सोच कर, मैं दांत भीँच कर काम करती रहती। मुझे कैंसर हो जाने की बाद भी कुछ नहीं बदला। दरअसल, इससे पैसे की अहमियत बढ़ गयी, क्योंकि मुझे इलाज करवाने और ज़िंदा रहने के लिए इसकी ज़रूरत थी। मैंने पैसा कमाने की कोशिश बंद नहीं की। मैं शैतान के बंधन में कस कर जकड़ी हुई थी, बस पैसे की गुलाम बन कर रह गयी थी। कार, घर, थोड़ा पैसा, लोगों की प्रशंसा और आदर पाने के बावजूद, मैं बिल्कुल भी खुश नहीं थी। मुझे बहुत-सी बीमारियों, यहाँ तक कि कैंसर ने भी घेर रखा था। पैसा मेरा दर्द नहीं मिटा पा रहा था, यह मेरी ज़िंदगी नहीं बचा पा रहा था। मैंने भयंकर दर्द महसूस किया, मायूस हो गयी। ज़्यादा पैसा भी किसी काम का नहीं होता। पहले, मैंने पैसे के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दी। अब मैं उससे अपनी ज़िंदगी खरीद रही थी। मैं पैसा कमाने के लिए जी रही थी, मगर मेरे हाथ खाली थे। तब मैंने साफ़ तौर पर समझा कि पैसा कमाने के पीछे भागना ज़िंदगी जीने का ग़लत तरीका है। पैसा एक चाल है, जो शैतान हमें नुकसान पहुंचाने और भ्रष्ट करने के लिए इस्तेमाल करता है। यह एक सांकल है, जो शैतान हमारी गर्दन में डाल देता है। परमेश्वर के वचन न होते, तो मैं अब भी नहीं समझ पाती कि शैतान हमें जकड़ने, काबू में करने और नुकसान पहुँचाने के लिए किस तरह पैसे का इस्तेमाल करता है, शैतान अब भी मुझे नाक की सीध में चलायेगा, दुख देगा और मेरे साथ खिलवाड़ करेगा। मैं समझ सकी कि लोग सत्य को न समझने के कारण ज़िंदगी जीने का तरीका नहीं जानते। वे भीड़ के पीछे चलते हैं, पैसे को आगे रखते हैं। कैसी शर्मनाक बात है। मैं बड़ी सौभाग्यशाली हूँ कि परमेश्वर की वाणी सुन उसके सामने आ सकी हूँ और शैतान के गलत इस्तेमाल से बच कर निकल सकी हूँ। यह परमेश्वर का उद्धार है और मेरा दिल उसके प्रति आभार से सराबोर है।

बाद में, जब मेरे पति सामान की सप्लाई के लिए बाहर जाते, तो मुझे कारखाने में काम करना पड़ता। कभी-कभी, हमारी बैठकों का समय होता। मैं इनमें भाग तो लेती, पर मन में हलचल मची रहती। मैं दिल से दोषी महसूस करती। मैं सोचती कि पैसा कमाने के फेर में मैंने किस तरह खुद को बीमार कर लिया था। डॉक्टर ने मुझे मृत्यु दंड दे दिया था। जब मैं मौत के कगार पर थी, तो परमेश्वर ने ही मुझे बचा कर जीने का एक और मौक़ा दिया। लेकिन मैं अपना कर्तव्य निभा कर उसके प्रेम का मूल्य नहीं चुका पा रही थी। मुझे लगा मैं परमेश्वर की ऋणी हूँ। मैंने प्रभु यीशु के इन वचनों को याद किया : "यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्‍त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा? या मनुष्य अपने प्राण के बदले क्या देगा?" (मत्ती 16:26)। और 1 तीमुथियुस 6:8 में कहा गया है : "यदि हमारे पास खाने और पहिनने को हो, तो इन्हीं पर सन्तोष करना चाहिए।" अगर तुम अपनी ज़िंदगी से हाथ धो बैठो, तो ज़्यादा पैसा कमाने का क्या मतलब? मैंने कोयले के कारखाने को किराये पर देने के बारे में सोचा। मैं कम पैसा कमाऊंगी, मगर ज़िंदगी जीने के लिए यह काफ़ी होगा, फिर मैं परमेश्वर की आराधना कर अपना कर्तव्य निभा पाऊँगी। लेकिन फिर मन बदल गया। कोयले का कारखाना अच्छा चल रहा था, बहुत मुश्किल से यह व्यवसाय शुरू किया था। इसे यूं ही छोड़ देना शर्मनाक लग रहा था। मैं झिझक गयी। नहीं समझ पायी कि क्या किया जाए, इसलिए मैंने परमेश्वर से मदद के लिए प्रार्थना की।

एक दिन, मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "अपने आपको इस स्थिति से मुक्त करने का एक बहुत ही आसान तरीका है जो है जीवन जीने के अपने पुराने तरीके को विदा कहना; जीवन में अपने पुराने लक्ष्यों को अलविदा कहना; अपनी पुरानी जीवनशैली, जीवन को देखने के दृष्टिकोण, लक्ष्यों, इच्छाओं एवं आदर्शों को सारांशित करना, उनका विश्लेषण करना, और उसके बाद मनुष्य के लिए परमेश्वर की इच्छा और माँग के साथ उनकी तुलना करना, और देखना कि उनमें से कोई परमेश्वर की इच्छा और माँग के अनुकूल है या नहीं, उनमें से कोई जीवन के सही मूल्य प्रदान करता है या नहीं, यह व्यक्ति को सत्य को अच्छी तरह से समझने की दिशा में ले जाता है या नहीं, और उसे मानवता और मनुष्य की सदृशता के साथ जीवन जीने देता है या नहीं। जब तुम जीवन के उन विभिन्न लक्ष्यों की, जिनकी लोग खोज करते हैं और जीवन जीने के उनके अनेक अलग-अलग तरीकों की बार-बार जाँच-पड़ताल करोगे और सावधानीपूर्वक उनका विश्लेषण करोगे, तो तुम यह पाओगे कि उनमें से एक भी सृजनकर्ता के उस मूल इरादे के अनुरूप नहीं है जिसके साथ उसने मानवजाति का सृजन किया था। वे सभी, लोगों को सृजनकर्ता की संप्रभुता और उसकी देखभाल से दूर करते हैं; ये सभी ऐसे जाल हैं जो लोगों को भ्रष्ट बनने पर मजबूर करते हैं, और जो उन्हें नरक की ओर ले जाते हैं। जब तुम इस बात को समझ लेते हो, उसके पश्चात्, तुम्हारा काम है जीवन के अपने पुराने दृष्टिकोण को अपने से अलग करना, अलग-अलग तरह के जालों से दूर रहना, परमेश्वर को तुम्हारे जीवन को अपने हाथ में लेने देना और तुम्हारे लिए व्यवस्थाएं करने देना; तुम्हारा काम है केवल परमेश्वर के आयोजनों और मार्गदर्शन के प्रति समर्पण करने का प्रयास करना, अपनी कोई निजी पसंद मत रखना, और एक ऐसा इंसान बनना जो परमेश्वर की आराधना करता है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचन पढ़ते हुए, मैंने जीवन के उन शैतानी नियमों के बारे में सोचा, जिन पर मैं पहले दौलतमंद बनने के लिए भरोसा करती थी। मेरा मानना था कि "दुनिया पैसों के इशारों पर नाचती है" और "पैसा ही सब कुछ नहीं है, किन्तु इसके बिना, आप कुछ नहीं कर सकते हैं।" धनवान बनने और लोगों का आदर पाने के लिए मुझे पैसा कमाने का संघर्ष करना ही था। वे दिन बहुत दर्दनाक और तकलीफ़देह थे। क्या पैसा इतना महत्वपूर्ण है? यह वाकई मुझे क्या दे सकता है? इससे मैं घर, कार खरीद सकती हूँ, इससे मैं अच्छी सांसारिक ज़िंदगी जी सकती हूँ, आदर पा सकती हूँ, यह मुझे थोड़े समय तक देह-सुख दे सकता है। लेकिन यह मेरे दिल के खालीपन को नहीं भर सकता, मेरा दर्द दूर नहीं कर सकता, मुझे सुकून और आनंद नहीं दे सकता, यह बीमारियों से मेरे कष्ट ख़त्म नहीं कर सकता और मेरी ज़िंदगी नहीं बचा सकता। मैंने अपने स्थानीय स्कूल के प्रिंसिपल को याद किया। उनके पास पैसा और रुतबा था, लेकिन वे बेचारे कैंसर से मर गये। पैसा और रुतबा उनको पीड़ा और मौत से बचाने में मदद नहीं कर सके। मैंने उन दौलतमंद लोगों के बारे में सुना है, जिन्होंने ज़िंदगी के दुख-दर्द और खालीपन से बचने के लिए खुदकशी कर ली, मैंने ऐसे लोगों के बारे में भी सुना है, जिन्होंने सिर्फ़ पैसे के लिए झूठ बोलकर, धोखा देकर, लड़-झगड़ कर, दूसरों को धोखा देकर पूरी इंसानियत और अंतरात्मा खो दी है। इन सब आपबीतियों और अपने निजी अनुभव से मैं यह समझ पायी कि पैसा कमाने के पीछे भागने से लोग ज़्यादा भ्रष्ट और ज़्यादा अनैतिक बन जाते हैं। यह उन्हें परमेश्वर से दूर करके पाप की ओर ले जाता है। मैंने अय्यूब को याद किया, जिसने धन या सांसारिक सुख-सुविधाएं पाने की कोशिश नहीं की। अय्यूब ने परमेश्वर की संप्रभुता के सामने समर्पण किया और हर चीज़ में उसके कार्यों को जानने का प्रयास किया, और अंत में उसे परमेश्वर का आशीष मिला। मैंने याद किया कि यीशु के बुलाने पर किस तरह पतरस ने परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब-कुछ छोड़ दिया। उसने परमेश्वर को जानने और उसे प्रेम करने का प्रयास किया, फिर परमेश्वर ने उसे पूर्ण किया और उसने एक सार्थक जीवन बिताया। इससे मुझे एहसास हुआ, कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है परमेश्वर को जानना, उसकी आराधना करना, जीवन में उसके वचनों का पालन करना, और उसकी प्रशंसा प्राप्त करना। मेरे लिए आस्था और सही मार्ग को ढूंढना बहुत मुश्किल था। मैं जानती थी कि अगर मैं दौलत और सांसारिक सुखों के पीछे भागती रहूँ, सत्य और उद्धार की खोज करना छोड़ दूं तो यह बेवकूफी होगी। इस बारे में सोचने से मेरे दिल से शक निकल गया। अब मैं पैसे की गुलाम नहीं बनाना चाहती थी। मुझे बस सत्य का अनुसरण करने के लिए ज़्यादा समय और जोश चाहिए था। इसके बाद मैंने अपने पति से कारखाने को किराये पर देने के बारे में चर्चा की। परमेश्वर के अद्भुत आयोजनों की मदद से, हमने उसे किराये पर दे दिया। मैं नियमित रूप से सभाओं में जाने और अपना कर्तव्य निभाने में समर्थ हो गयी।

दो साल बाद, मेरे पति को अचानक एक बीमारी हुई और वे चल बसे। उनकी मृत्यु मेरे लिए बहुत दुखदायी थी, इससे मैं समझ सकी कि जीवन कितना क्षणभंगुर है। मेरे पति ने अपना ज़्यादातर जीवन भागदौड़ में, पैसा कमाने की कोशिश में बिताया था। उनका रक्तचाप 200 से ऊपर था, फिर भी वे काम करते रहते। जब उनके कमर के नीचे की हड्डी टूट गयी, तो भी वे पूरी तरह ठीक होने से पहले ही काम पर चले गये, मेरे समझाने के बावजूद आराम नहीं किया। वे भी पैसे के गुलाम थे। पूरी ज़िंदगी शैतान के नियंत्रण में रहे, उससे नुकसान सहते रहे। वे मौत के सामने होने पर भी अपना काम नहीं छोड़ते। वे पैसा कमा कर शानदार ज़िंदगी जीना चाहते थे, लेकिन ज़िंदगी से हाथ धो बैठे। शोहरत और दौलत उन्हें बचा नहीं सकी, उनका दर्द दूर नहीं कर सकी, मौत को धोखा देने में उनकी मदद नहीं कर सकी। जैसा कि परमेश्वर ने कहा है : "लोग अपना जीवन धन-दौलत और प्रसिद्धि का पीछा करते हुए बिता देते हैं; वे इन तिनकों को यह सोचकर कसकर पकड़े रहते हैं, कि केवल ये ही उनके जीवन का सहारा हैं, मानो कि उनके होने से वे निरंतर जीवित रह सकते हैं, और मृत्यु से बच सकते हैं। परन्तु जब मृत्यु उनके सामने खड़ी होती है, केवल तभी उन्हें समझ आता है कि ये चीज़ें उनकी पहुँच से कितनी दूर हैं, मृत्यु के सामने वे कितने कमज़ोर हैं, वे कितनी आसानी से बिखर जाते हैं, वे कितने एकाकी और असहाय हैं, और वे कहीं से सहायता नही माँग सकते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि जीवन को धन-दौलत और प्रसिद्धि से नहीं खरीदा जा सकता है, कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही धनी क्यों न हो, उसका पद कितना ही ऊँचा क्यों न हो, मृत्यु के सामने सभी समान रूप से कंगाल और महत्वहीन हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि धन-दौलत से जीवन नहीं खरीदा जा सकता है, प्रसिद्धि मृत्यु को नहीं मिटा सकती है, न तो धन-दौलत और न ही प्रसिद्धि किसी व्यक्ति के जीवन को एक मिनट, या एक पल के लिए भी बढ़ा सकती है" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। मैंने उस वक्त को याद किया जब मैं अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर समय भागदौड़ में, पैसा कमाने की कोशिश में बिता रही थी, तब मुझे आदर और प्रशंसा तो मिली, मगर शैतान मुझे मौत के क़रीब तक लाकर भी यातना देता रहा। लेकिन परमेश्वर ने मुझे बचा लिया। उसने मुझे पैसे के भंवर से बचा कर बाहर निकाला, मेरी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। अब, सत्य का अनुसरण करते हुए, अपना कर्तव्य निभाते हुए, मैं स्वतंत्र और शांत महसूस करती हूँ। ये ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें पैसा नहीं खरीद सकता। मुझे बचाने के लिए मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!

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