263 तुम्हारे दिल का रहस्य
1 तुम्हारे हृदय में एक बहुत बड़ा रहस्य है। तुम कभी नहीं जान पाते कि वो वहाँ है क्योंकि तुम एक ऐसे संसार में जीवन बिता रहे हो जहां चमकती रोशनी नहीं है। तुम्हारा हृदय और तुम्हारी आत्मा दुष्ट शक्ति द्वारा दबोच ली गई है। तुम्हारी आंखों को अंधकार ने ढक लिया है, तुम सूर्य को आकाश में नहीं देख सकते, न ही रात में टिमटिमाते तारों को। तुम्हारे कान धोखा देने वाले शब्दों से जाम हो गए हैं। तुम यहोवा की गर्जन वाली आवाज को सुन नहीं पाते हो, न ही सिंहासन से तेज बहते जल की आवाज को।
2 जो अधिकारपूर्वक तुम्हारा होना चाहिये था और सर्वशक्तिमान ने जो तुम्हें दिया था, वह सब कुछ तुमने खो दिया है। तुम कष्टों के एक अथाह सागर में प्रवेश कर चुके हो, जहां से बच निकलने की सामर्थ तुम्हारे अंदर नहीं है, जीवित बचकर वापस आने की आशा नहीं है, तुम बस संघर्ष करते रहते हो और लगातार चलते रहते हो...। उस घड़ी से तुम्हारी नियति यह बन गई कि दुष्ट के हाथों तुम्हारा विनाश हो, तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आशीषों से बहुत दूर हो गए हो, सर्वशक्तिमान के पोषण की पहुँच से दूर हो गये, और एक ऐसी राह पर चले गये जहाँ से लौटना संभव नहीं। लाखों पुकार भी तुम्हारे दिल और आत्मा को जगा नहीं सकतीं। तुम दुष्ट के हाथों में गहरी नींद में सो जाते हो, जो तुम्हें लालच देकर बिना किसी दिशा और मार्ग संकेतों के, अंतहीन क्षेत्र में ले गया।
3 अब से तुमने अपनी मूल पवित्रता को, मासूमियत को खो दिया है, और सर्वशक्तिमान की देखभाल से छिपने लगे हो। वह दुष्ट तुम्हारे हृदय को चलाता है और तुम्हारा जीवन बन जाता है। अब तुम उससे डरते नहीं हो, उसे नजरअंदाज नहीं करते, उस पर संदेह नहीं करते; बल्कि उसे तो तुम अपने हृदय में ईश्वर समझने लगते हो। तुम उसका आदर-सम्मान करने लगे, तुम उसकी आराधना करते हो, उसकी परछाई की तरह सदैव साथ रहते हो, और जीवन और मृत्यु में एक-दूसरे के लिए वचनबद्ध हो जाते हो। तुम्हें कोई अंदाज़ा नहीं कि तुम कहाँ से आये हो, तुम क्यों पैदा हुए हो, या तुम क्यों मरोगे?
4 तुम्हारे लिए सर्वशक्तिमान एक अजनबी-सा हो गया है, तुम उसकी उत्पत्ति को नहीं जानते हो, उसने तुम्हारे लिए जो कुछ किया है, उसको भी भुला बैठे हो। उसका प्रत्येक कार्य तुम्हें घृणित लगने लगा है। न तो तुम उन्हें संजोते हो और न ही उनकी कीमत जानते हो। जब से तुमने सर्वशक्तिमान से पोषण प्राप्त करना शुरू किया है, तभी से तुम उस दुष्ट शक्ति के साथ चलते आ रहे हो। हजारों वर्षों से तुम उस दुष्ट शक्ति के साथ आंधी-तूफान में से होकर चलते रहे हो। उससे मिलकर तुमने परमेश्वर का विरोध किया, जो तुम्हारे जीवन का स्त्रोत था। तुम पश्चाताप करना नहीं जानते, अब तुम जान लो कि तुम विनाश के चरम बिंदु पर जा पहुंचे हो।
5 तुम भूल बैठे कि दुष्ट शक्ति ने तुम्हें प्रलोभित किया, तुम्हें सताया; तुम अपने मूल को भूल गए। ठीक इसी तरह दुष्ट शक्ति तुम्हें प्रत्येक कदम पर अभी भी हानि पहुंचा रही है। तुम्हारा हृदय और तुम्हारी आत्मा संवेदनाशून्य और विगलित हो गई है। तुम अब संसार की व्याकुलता को लेकर शिकायत नहीं करते, ऐसा विश्वास ही नहीं करते कि संसार अधर्म से भरा है। तुम तो सर्वशक्तिमान के अस्तित्व की परवाह तक नहीं करते। यह इसलिए है क्योंकि तुमने बहुत पहले ही दुष्ट शक्ति को अपना सच्चा पिता मान लिया है, और तुम अब उससे अलग नहीं हो सकते। यह तुम्हारे हृदय का एक राज़ है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "सर्वशक्तिमान का आह भरना" से रूपांतरित