664 जब परमेश्वर मानवजाति के विश्वास की परीक्षा लेता है
1 जब मैंने मानवजाति के विश्वास को परखा, तो पाया कि किसी भी मनुष्य के पास सच्ची गवाही देने की क्षमता नहीं है, कोई भी अपना सब कुछ अर्पित करने में समर्थ नहीं है; बल्कि, मनुष्य छिपता फिरता है और अपने आपको खुलकर प्रकट करने से इन्कार करता है, मानो कि मैं उसके हृदय को मंत्रमुग्ध कर लूँगा। यहाँ तक कि अय्यूब भी परीक्षा के समय कभी भी स्थिरता से खड़ा नहीं रहा, और न ही उसने पीड़ा के बीच में मधुरता उत्पन्न की। मानवता जो करने में समर्थ है वह है बसंत ऋतु की गर्माहट में हरियाली का एक धुँधला सा संकेत उत्पन्न करना; वह शरद ऋतु की कड़कड़ाती हुई ठण्ड में कभी सदाबहार नहीं रहा है। डील-डौल में अस्थिमय और क्षीण मनुष्य, मेरे इरादों को पूरा नहीं कर सकता है।
2 समस्त मानवता में, ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो दूसरों के लिए एक आदर्श बन सकता है, क्योंकि एक दूसरे में बस थोड़े से ही अन्तर के साथ, सभी मनुष्य मुख्य रूप से एक जैसे हैं और एक दूसरे से भिन्न नहीं हैं। इस कारण, यहाँ तक कि मनुष्य आज भी मेरे कार्यों को पूरी तरह जानने में असमर्थ हैं। जब मेरी ताड़ना समस्त मानवजाति के ऊपर उतरती है केवल तभी मनुष्य, अपने आप के लिए अनजान, मेरे कार्यों के बारे में जान लेगा, और मेरे द्वारा कुछ किए बिना अथवा किसी को बाध्य किए बिना, मनुष्य मुझे जान लेगा, और इस प्रकार वह मेरे कार्यों को देखना शुरू करेगा। यह मेरी योजना है, यह मेरे कार्य का वह पहलू है जो प्रकट होता है, और यह वह है जिसे मनुष्य को जानना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों के रहस्य की व्याख्या के "अध्याय 26" से रूपांतरित