665 इम्तहान में परमेश्वर को इंसान का सच्चा दिल चाहिए

1

नए अनुयायी के तौर पर, तेरा भरोसा कम होता है,

परमेश्वर की ख़ुशी के लिये तू नहीं जानता क्या करना है,

जब तू सच के लिये नया होता है।

जब तू इम्तहान में हो, तो पूरी सच्चाई से दुआ कर,

अपने दिल पे परमेश्वर को राज करने दे,

जो कुछ प्यारा है तुझे, सब परमेश्वर के हवाले कर दे।

तू जितना अधिक उपदेश सुनेगा, उतना अधिक सच को समझेगा,

तू जितना उठेगा, उतनी बढ़ेंगी उम्मीदें उसकी,

तेरे साथ ही उसकी उम्मीदों का दर्जा बढ़ेगा।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

तेरा दिल उसके, तेरे जिस्म के, या शैतान के साथ है।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

उसके मन के अनुरूप, तू क्या उसकी तरफ़ होगा?


2

तू जितना सुनेगा, उतना जानेगा,

जब तेरे अंदर उतरेगी, परमेश्वर की सच्चाई, तेरा कद बढ़ता जाएगा।

तू जितना जानेगा, उतनी उम्मीद बढ़ेगी उसकी,

हाँ, तेरे साथ ही उसकी उम्मीदों का दर्जा बढ़ेगा।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

तेरा दिल उसके, तेरे जिस्म के, या शैतान के साथ है।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

उसके मन के अनुरूप, तू क्या उसकी तरफ़ होगा?


3

जब इंसान अपना दिल, रफ़्ता-रफ़्ता परमेश्वर को देता है,

तो वो उसके करीब और करीब होता जाता है।

जब इंसान सच में परमेश्वर के करीब आता है,

तो दिल में उसका भय बढ़ता ही जाता है,

जो दिल परमेश्वर का भय माने, वही पसंदीदा दिल है।

परमेश्वर को ऐसे ही दिल की चाहत है।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

तेरा दिल उसके, तेरे जिस्म के, या शैतान के साथ है।

परमेश्वर जब तेरा इम्तहान लेगा, तो देखेगा तू कहां खड़ा है,

उसके मन के अनुरूप, तू क्या उसकी तरफ़ होगा?

उसके मन के अनुरूप, तू क्या उसकी तरफ़ होगा?

जो दिल परमेश्वर का भय माने, परमेश्वर को ऐसे ही दिल की चाहत है।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें से रूपांतरित

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