648 सत्य का अभ्यास करो तो तुम बदल सकते हो

1 सत्य के सहारे किसी भी समस्या या स्थिति का समाधान संभव है, अगर तुम सत्य को स्वीकार कर लो और उसे सिद्धांत से अपनी वास्तविकता में बदल दो तथा इसका अभ्यास करो और इसमें प्रविष्ट हो जाओ, तो तुम कैसे भी व्यक्ति क्यों न हो, तुम्हारा रूपांतरण और विकास होगा। यहाँ ज़ोर लोगों के हृदय और उनकी पसंद पर है, और इस पर है कि जब उनका सामना किसी समस्या से होता है, तो क्या वे परमेश्वर से अपना मुँह मोड़ लेते हैं या उसकी आज्ञा का पालन करते हैं और उसके वचन को स्वीकार करते हैं। यह इस बारे में भी है कि किसी बात से सामना होने पर क्या लोग अपनी देह की लालसा को तृप्त करना पसंद करते हैं, या ऐसा करने के बजाय, वे परमेश्वर के वचनों के अनुरूप कर्म करते हुए अपनी दैहिक-इच्छाओं को त्याग देते हैं और सत्य का अभ्यास करते हैं।

2 जहाँ तक ऐसे लोगों की बात है जो हर परिस्थिति में अपनी शारीरिक पसंद और इच्छाओं को पूरा करते हैं, अपनी वासनाओं और लालसा का अनुसरण करते हैं, वे कभी भी सत्य के अभ्यास का अर्थ और महत्व का अनुभव नहीं कर पाएंगे। ऐसे लोग जो शारीरिक वासना का त्याग कर सकते हैं, अपनी योजनाओं और इच्छाओं को छोड़ सकते हैं, सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और सत्य की वास्तविकता में प्रविष्ट हो सकते हैं, वे धीरे-धीरे अनुभव कर सकते हैं कि सत्य का अभ्यास करने का अर्थ क्या है, उन्हें सत्य का अभ्यास करने के मज़े और आनंद का अहसास हो सकता है, वे क्रमशः परमेश्वर के वचनों के महत्व को समझ सकते हैं, परमेश्वर की मनुष्य से इसी तरह व्यवहार करने की जो अपेक्षा है उसका अर्थ और मूल्य समझ सकते हैं।

3 अगर वे ऐसा अभ्यास अक्सर करें, तो उनमें अपनी प्रकृति सार के प्रति घृणा, बैर-भाव, और नफ़रत के भाव पैदा हो जाएंगे। इस बीच अपने संपर्क में आने वाली आसपास की सभी नकारात्मक चीजों के प्रति भी उनमें नापसंदगी का भाव पैदा हो जाएगा। उनके अंदर आध्यात्मिक कद और पर्याप्त इच्छाशक्ति प्राप्त करने की तड़प पैदा होती है, और वे उम्मीद करते हैं कि वे सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने लायक हो जाएं, परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट कर पाएं, और ऐसे इंसान बन जाएँ जिसमें विवेक, समझदारी, और सत्य की वास्तविकता हो। वे परमेश्वर के प्रति तथा परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित समस्त वातावरण के प्रति समर्पित होने, और परमेश्वर का विरोध करने से बचने के लिए भी लालायित रहते हैं; वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में सक्षम होना चाहते हैं।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन से रूपांतरित

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