602 परमेश्वर में सफल विश्वास का मार्ग

1

मंज़िल पौलुस और पतरस की मापी गई इस आधार पर कि

निभा सकें वो ईश प्राणी का कर्त्तव्य या नहीं

उनके योगदान की मात्रा पर नहीं।

मंज़िल उनकी नियत की गई उससे जो खोजते थे वे शुरू से,

इससे नहीं कि वे कितना काम करते थे या लोग क्या सोचते थे।


दिल से फ़र्ज़ निभाओ अगर तुम ईश-प्राणी के नाते तुम्हें सफलता मिले।

परमेश्वर से प्रेम करने की राह खोजना

ईश-प्राणियों के लिए सबसे सही राह है।

अपने स्वभाव में बदलाव की कोशिश करना,

ईश्वर से प्रेम करना, सफलता दिलाता है।


सफलता की ये राह, है मूल कर्तव्य और

ईश्वर के प्राणी का स्वरूप फिर पाने की।

शुरुआत से अंत तक परमेश्वर के सारे काम का लक्ष्य है यही।


दिल से फ़र्ज़ निभाओ अगर तुम ईश-प्राणी के नाते तुम्हें सफलता मिले।

परमेश्वर से प्रेम करने की राह खोजना

ईश-प्राणियों के लिए सबसे सही राह है।

अपने स्वभाव में बदलाव की कोशिश करना,

ईश्वर से प्रेम करना, सफलता दिलाता है।


2

अगर इंसान के अनुसरण में मिली हुई हैं, फिज़ूल की मागें, लालसाएँ,

तो उसका स्वभाव नहीं बदलेगा; यह पुन: प्राप्ति के काम के विपरीत है।

ये पवित्र आत्मा द्वारा किया नहीं जाता।

ये दर्शाता कि नहीं है इसे ईश्वर की मंज़ूरी।

जो न हो इसे ईश्वर की मंज़ूरी तो इसके कोई मायने नहीं।


दिल से फ़र्ज़ निभाओ अगर तुम ईश-प्राणी के नाते तुम्हें सफलता मिले।

परमेश्वर से प्रेम करने की राह खोजना

ईश-प्राणियों के लिए सबसे सही राह है।

अपने स्वभाव में बदलाव की कोशिश करना,

ईश्वर से प्रेम करना, सफलता दिलाता है।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है से रूपांतरित

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