अध्याय 102
मैंने एक हद तक बात की है और मेरा कार्य एक खास बिंदु पर पहुंचा है; तुम सभी लोगों को मेरी इच्छा को समझना चाहिए और अलग-अलग स्तरों पर मेरी ज़िम्मेदारी के प्रति विचारशील होने में सक्षम होना चाहिए। यह एक ऐसा मोड़ है जहां से देह आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करती है, तुम लोग एक युग से दूसरे युग में जा रहे अग्रदूत हो, सार्वभौमिक लोग जो ब्रह्मांड और पृथ्वी के छोरों के आरपार जाते हैं। तुम मुझे सबसे प्यारे हो; तुम्हीं लोग हो जिनसे मैं प्रेम करता हूँ। कहा जा सकता है कि तुम लोगों के अलावा मुझे किसी और से प्रेम नहीं है, क्योंकि मेरा समस्त श्रमसाध्य प्रयास तुम लोगों के लिए रहा है—क्या ऐसा हो सकता है कि इसे तुम लोग न जानो? मैं सारी चीजों की सृष्टि क्यों करता? मैं तुम लोगों की सेवा करने के लिए सारी चीजों का प्रबंध क्यों करता? ये सारी क्रियाएं तुम लोगों के लिए मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थीं। पर्वत और पर्वतों की सभी चीज़ें, पृथ्वी और पृथ्वी की सभी चीज़ें मेरी स्तुति और मेरा महिमामंडन करती हैं, क्योंकि मैंने तुम लोगों को प्राप्त कर लिया है। वास्तव में, सब कुछ किया जा चुका है; और इसके अलावा, सब कुछ अच्छी तरह से पूर्ण कर लिया गया है। तुम लोगों ने मेरी शानदार गवाही दी है, मेरे लिए दानवों और शैतान को अपमानित किया है। मुझ से बाहर के सभी लोग, मामले और चीज़ें मेरे अधिकार को समर्पित होती हैं, और सभी, मेरी प्रबंधन योजना की पूर्णता के कारण, अपनी किस्म का अनुसरण करती हैं (मेरे लोग मेरे हैं, और शैतान की किस्म के सभी लोग आग की नदी के हैं—वे अथाह गड्ढे में गिरते हैं, जहाँ वे शाश्वत रूप से विलाप करते हुए सदा के लिए नष्ट हो जाएँगे)। जब मैं “नष्ट होने” और “उस समय से उनके प्राण, आत्मा और शरीर को ले जाने” के बारे में बोलता हूँ, तो मैं उन्हें शैतान को सौंपने और उसके द्वारा उन्हें कुचलने देने की बात कर रहा हूँ। दूसरे शब्दों में, जो लोग मेरे घर के नहीं हैं वे विनाश की वस्तु होंगे तथा उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यह ऐसा नहीं है, जैसा कि लोग कल्पना करते हैं, कि वे चले जाएँगे। यह भी कहा जा सकता है कि, मेरी राय में, मुझ से बाहर की सारी चीजें, अस्तित्व में नहीं रहतीं, यही तबाही का सही अर्थ है। इंसान की नज़र में उनका अस्तित्व प्रतीत होता है, किन्तु मेरी नज़र में उनका अस्तित्व समाप्त हो चुका होता है और वे हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं। (मेरा जोर इस बात पर है कि जिन पर मैं अब कार्य नहीं करता, वे मुझ से बाहर के लोग हैं।) मनुष्य, चाहे वे कैसे भी क्यों न सोचें, इसे समझ नहीं सकते, और चाहे इसे कैसे भी क्यों न देखें, वे इसे भेद नहीं सकते। लोग इसे तब तक स्पष्ट रूप से नहीं समझ सकते, जब तक कि मैं उन्हें प्रबुद्ध नहीं कर देता, उन्हें रोशन नहीं कर देता, और स्पष्ट रूप से इसके बारे में उन्हें बता नहीं देता। इसके अलावा, वे इसके बारे में अधिक से अधिक अस्पष्ट होते जाएंगे, और अधिक खाली महसूस करेंगे, और उत्तरोत्तर महसूस करेंगे कि अनुसरण करने का कोई मार्ग नहीं है—वे लगभग मृत लोगों की तरह हैं। अभी अधिकांश लोग (मतलब ज्येष्ठ पुत्रों को छोड़कर सभी लोग) इसी स्थिति में हैं। मैं इन चीज़ों को बहुत स्पष्ट रूप से कहता हूँ, फिर भी इन लोगों की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती और ये लोग अपने शारीरिक सुख में ही लगे रहते हैं—खाते हैं और सो जाते हैं; सोते हैं और फिर खाते हैं, मेरे वचनों पर विचार नहीं करते। जब वे उत्साहित भी होते हैं, तो ऐसा केवल थोड़ी देर के लिए होता है, और बाद में वे वैसे ही बन जाते हैं जैसे थे, पूरी तरह से अपरिवर्तित, मानो उन्होंने मुझे सुना ही नहीं। ये अजीब से, बेकार इंसान हैं जिनके पास कोई ज़िम्मेदारी नहीं है—ये साफ तौर पर बेहद मुफ़्तखोर लोग होते हैं। बाद में, मैं उन्हें एक-एक कर त्याग दूँगा। चिंता मत करो! एक-एक कर, मैं उन्हें वापस अथाह-कुंड में भेज दूँगा। पवित्र आत्मा ने ऐसे लोगों पर कभी कार्य नहीं किया, और वे जो कुछ भी करते हैं, वह उन उपहारों से आता है जो उन्होंने प्राप्त किये हैं। जब मैं उपहारों की बात करता हूँ, तो मेरा मतलब है कि ये निष्प्राण लोग हैं, जो मेरे सेवादार हैं। मैं उनमें से किसी को भी नहीं चाहता, मैं उन्हें बाहर निकाल दूँगा (किन्तु फिलहाल वे थोड़े उपयोगी हैं)। तू जो सेवादार है, मेरी बात सुन! यह मत सोच कि तेरा उपयोग करने से मेरा मतलब है कि मैं तेरा पक्ष लेता हूँ। यह इतना आसान नहीं है। यदि तू चाहता है कि मैं तेरा पक्ष लूँ, तो तुझे ऐसा व्यक्ति बनना होगा जिसका मैं अनुमोदन करूँ और जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से पूर्ण बनाऊँ। मैं ऐसे ही व्यक्ति से प्रेम करता हूँ। भले ही लोग कहें कि मैंने ग़लती की है, मैं कभी इनकार नहीं करूँगा। क्या तू जानता है? जो लोग सेवा प्रदान करते हैं वे मवेशी और घोड़े हैं। वे मेरे ज्येष्ठ पुत्र कैसे हो सकते हैं? क्या यह बेवकूफी नहीं होगी? क्या यह प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं होगा? जिनके पास भी मेरा जीवन है, मेरी गुणवत्ता है, वे मेरे ज्येष्ठ पुत्र हैं। यह एक तर्कसंगत बात है—कोई भी इसका खंडन नहीं कर सकता। ऐसा ही होना चाहिए, अन्यथा ऐसा कोई भी नहीं होगा जो यह भूमिका निभा सके, कोई भी नहीं होगा जो इसका विकल्प बन सके। यह कोई भावनाओं में की गई बात नहीं है, क्योंकि मैं स्वयं ही धार्मिक परमेश्वर हूँ; मैं स्वयं ही पवित्र परमेश्वर हूँ; मैं प्रतापी, अनुलंघनीय परमेश्वर हूँ!
हर वह चीज जो इंसान के लिए असंभव है, मेरे लिए सहज और सुलभ है। कोई भी इसे रोक नहीं सकता, न ही कोई इसे बदल सकता है। इतनी बड़ी दुनिया मेरे हाथों में है, तुच्छ दुष्ट शैतान की तो औकात की क्या है। यदि मेरी प्रबंधन योजना, और मेरे ज्येष्ठ पुत्रों की बात नहीं होती, तो मैंने बहुत पहले ही इस पुरानी बुराई के साथ ही इस स्वच्छंद भोगी युग को भी नष्ट कर दिया होता जिसमें मृत्यु की इतनी दुर्गंध व्याप्त है। किन्तु मैं औचित्य को ध्यान में रख कर कार्य करता हूँ और बिना सोचे-समझे बात नहीं करता। जैसे ही मैं कोई बात बोलूँगा, वह पूरी हो जाएगी; यदि ऐसा नहीं भी हुआ, तो भी हमेशा मेरी बुद्धि का पहलू है, जो मेरे लिए सब कुछ सम्पन्न करेगा और मेरे कार्यों के लिए रास्ता खोल देगा। क्योंकि मेरे वचन मेरी बुद्धि हैं; मेरे वचन सब कुछ हैं। लोग मूल रूप से उन्हें समझ नहीं पाते। मैं प्रायः “आग की नदी” की बात करता हूँ। इसका क्या अर्थ है? यह आग और गंधक की नदी से भिन्न कैसे है? आग और गंधक की नदी का अर्थ है शैतान की सत्ता और आग की नदी का मतलब शैतान के अधिकार क्षेत्र में पूरी दुनिया से है। दुनिया में हर किसी को आग की नदी में आहुति देनी पड़ सकती है (अर्थात्, वे उत्तरोत्तर भ्रष्ट होते जाते हैं और, जब उनकी भ्रष्टता एक निश्चित स्तर तक पहुँच जाएगी, तो वे मेरे द्वारा एक-एक करके नष्ट कर दिए जाएँगे, जो काम मैं केवल एक शब्द बोल कर संपन्न कर सकता हूँ)। जितना अधिक मेरा कोप होगा, उतनी ही अधिक धधकती हुई लपटें पूरी आग की नदी में होंगी। यह उन लोगों के संदर्भ में है जो अधिकाधिक दुष्ट होते जा रहे हैं। जिस समय मेरा कोप फूटेगा उसी समय आग की नदी में विस्फोट होगा; अर्थात्, यही वह समय होगा जब संपूर्ण ब्रह्मांड नष्ट हो जाएगा। उस दिन पृथ्वी पर मेरा राज्य पूरी तरह से साकार हो जाएगा और एक नया जीवन शुरू होगा। ऐसा शीघ्र ही पूरा होगा। मेरे बोलने के बाद, देखते ही देखते सब-कुछ पूरा हो जाएगा। यह इस मामले का मानवीय दृष्टिकोण है, किन्तु मेरी दृष्टि में चीज़ें पहले ही पूरी हो चुकी हैं, क्योंकि मेरे लिए सब कुछ आसान है। मैं बोलता हूँ और यह हो जाता है; मैं बोलता हूँ और यह स्थापित हो जाता है।
हर दिन तुम लोग मेरे वचनों को खाते हो; तुम लोग मेरे मंदिर में मोटापे का आनंद लेते हो; तुम लोग मेरी जीवन की नदी से जल पीते हो; तुम लोग मेरे जीवन के वृक्ष से फल तोड़ते हो। तो फिर, मेरे मंदिर में मोटापा क्या है? मेरी जीवन की नदी का पानी क्या है? जीवन का वृक्ष क्या है? जीवन के वृक्ष का फल क्या है? हो सकता है ये वाक्यांश सामान्य हों, इसके बावजूद ये सभी मनुष्य की समझ से बाहर हैं, वे सभी लोग उलझन में हैं। वे उन्हें गैर-ज़िम्मेदाराना ढंग से बोलते हैं, उनका लापरवाही से उपयोग करते हैं, और उन्हें बेतरतीब ढंग से लागू करते हैं। मंदिर में मोटापे का मतलब न तो मेरे द्वारा बोले गए वचनों से है और न ही उस अनुग्रह से जो मैंने तुम लोगों पर किया है। तो, इसका अर्थ वास्तव में है क्या? प्राचीन काल से ही कोई भी इतना भाग्यशाली नहीं रहा है जो मेरे मंदिर में मोटापे का आनंद ले सके। केवल अंत के दिनों में, मेरे ज्येष्ठ पुत्रों में से ही, लोग देख सकते हैं कि मेरे मंदिर में मोटापा क्या है। इस वाक्यांश में “मंदिर” का मतलब है मेरा व्यक्तित्व है; इसका अर्थ है सिय्योन पर्वत, मेरा धाम। मेरी अनुमति के बिना कोई भी इसमें न प्रवेश कर सकता है और न इससे बाहर निकल सकता है। “मोटापा” का क्या अर्थ है? मोटापा का अर्थ मेरे शरीर में मेरे साथ शासन कर पाने के आशीष से है। साधारण तौर पर बोलें तो, इसका मतलब शरीर में मेरे साथ शासन करने योग्य बनने के लिए ज्येष्ठ पुत्रों को मिले आशीष से है, और इसे समझना मुश्किल नहीं है। जीवन की नदी के जल के दो अर्थ हैं : एक तरफ यह जीवित जल का उल्लेख करता है जो मेरे अंतर्तम अस्तित्व से प्रवाहित होता है, अर्थात्, मेरे मुँह से निकलने वाला हर वचन। दूसरी ओर, यह मेरे कार्य-विवेक व कार्यनीति का और साथ ही मेरे स्वरूप का उल्लेख करता है। मेरे वचनों में अंतहीन, छुपे हुए रहस्य हैं (कि रहस्य अब छुपे हुए नहीं हैं यह बात अतीत के संदर्भ में कही जाती है, किन्तु भविष्य में होने वाले सार्वजनिक प्रकाशन की तुलना में, वे अभी भी छुपे हुए हैं। यहाँ “छुपे हुए हैं” निरपेक्ष नहीं, बल्कि सापेक्ष है)। दूसरे शब्दों में, जीवन की नदी का जल सदा से बह रहा है। मुझमें अनंत बुद्धि है, और लोग पूरी तरह से नहीं समझ पाते कि मेरा स्वरूप क्या है; अर्थात, जीवन की नदी का जल सदा से बह रहा है। इंसान की नज़र में कई प्रकार के भौतिक वृक्ष हैं, किन्तु किसी ने कभी भी जीवन के वृक्ष पर दृष्टि नहीं डाली है। हालाँकि, आज इसे देखने के बावजूद, लोग इसे पहचानते नहीं, और फिर भी, वे जीवन के वृक्ष से खाने की बात भी करते हैं। यह वास्तव में हास्यास्पद है! वे इसे अंधाधुंध तरीके से खाएँगे! मैं क्यों कहता हूँ कि आज लोग इसे देखते हैं किन्तु यह उनकी समझ में नहीं आता? मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्या तू मेरे वचनों के अर्थ समझता है? आज का व्यावहारिक परमेश्वर वह व्यक्ति है जो मैं स्वयं हूँ, और वो जीवन का वृक्ष है। मुझे मापने के लिए मानव अवधारणाओं का उपयोग मत कर—बाहर से मैं किसी वृक्ष की तरह नहीं दिखता, किन्तु क्या तू जानता है मैं वास्तव में जीवन का वृक्ष हूँ? मेरी हर क्रिया, मेरा भाषण और मेरा तरीका, जीवन के वृक्ष के फल हैं, और वे मेरा व्यक्तित्व हैं—ये वे चीजें हैं जो मेरे ज्येष्ठ पुत्रों द्वारा खाए जाने चाहिए, इसलिए अंततः केवल मेरे ज्येष्ठ पुत्र और मैं बिल्कुल एक ही होंगे। वे मुझे जी पाएँगे और मेरी गवाही दे पाएँगे। (ये चीज़ें आध्यात्मिक क्षेत्र में हमारे प्रवेश करने के बाद घटित होंगी। केवल शरीर में हम बिल्कुल एकरूप हो सकते हैं; देह में हम केवल मोटे तौर पर ही एक समान हो सकते हैं, किन्तु फिर भी हमारी पसंद अलग-अलग है।)
मैं न केवल अपने ज्येष्ठ पुत्रों में अपनी सामर्थ्य प्रकट करूँगा, बल्कि मैं सभी राष्ट्रों और सभी लोगों पर उनके शासन में भी इसे प्रकट करूँगा। यह मेरे कार्य का एक कदम है। यही समय मुख्य है, और यही नए मोड़ का समय है। जब सब कुछ सम्पन्न हो जाएगा, तो तुम लोग देखोगे कि मेरे हाथ क्या कर रहे हैं, मैं कैसे योजना बनाता हूँ और कैसे प्रबंधन करता हूँ, हालांकि यह कोई अस्पष्ट चीज़ नहीं है। दुनिया के हर देश की गतिशीलता के मद्देनज़र, यह बहुत दूर नहीं है; लोग न तो इसकी कल्पना कर सकते हैं, और न ही इसका पूर्वानुमान लगा सकते हैं। तुझे ज़रा-सा भी लापरवाह या असावधान नहीं होना चाहिए ताकि तू आशीष प्राप्त करने और पुरस्कृत होने के अवसर को गँवा न दे। राज्य की संभावना दिखाई पड़ रही है और पूरी दुनिया धीरे-धीरे मर रही है। अथाह गड्ढे तथा आग और गंधक की नदी से विलाप के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं, इससे लोग भयाक्रांत होते हैं, उन्हें डर लगता है, छुपने की कोई जगह नहीं मिलती। जिस किसी को भी मेरे नाम पर चुना जाता है और फिर बाहर निकाल दिया जाता है, वह अथाह गड्ढे में गिरता है। इसलिए, जैसा कि मैंने कई बार कहा है, मैं जिन्हें बाहर निकालूँगा, उन्हें अथाह गड्ढे में डाल दूँगा। जब पूरी दुनिया नष्ट हो जाएगी तो हर चीज़ जो नष्ट कर दी गई है, वह आग और गंधक की नदी में फेंक दी जाएगी—अर्थात्, इसे आग की नदी से आग और गंधक की नदी में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। उस समय हर कोई या तो अनन्त विनाश के लिए (जिसका मतलब है वे सभी जो मुझ से बाहर हैं) या अनंत जीवन के लिए (जिसका अर्थ है वे सभी जो मेरे भीतर हैं) निर्धारित किया जा चुका होगा। उस समय मैं और मेरे ज्येष्ठ पुत्र साम्राज्य से बाहर आएंगे और अनंत में प्रवेश करेंगे। यह बाद में पूरा होगा; अगर मैं अभी तुम लोगों को बता भी दूँ, तो भी तुम लोगों की समझ में नहीं आएगा। तुम लोग केवल मेरी अगुआई का अनुसरण कर सकते हो, मेरी रोशनी में चल सकते हो, मेरे प्रेम में मेरा साथ दे सकते हो, मेरे घर में मेरे साथ आनंद ले सकते हो, मेरे राज्य में मेरे साथ शासन कर सकते हो, और मेरे अधिकार में सभी राष्ट्रों और लोगों पर मेरे साथ शासन कर सकते हो। उपर्युक्त वर्णित सारी बातें अनंत आशीष हैं जो मैं तुम लोगों को दे रहा हूँ।