281 इंसान अपनी किस्मत पर काबू नहीं कर सकता
I
हर नया दिन कहाँ ले जाएगा तुम्हें?
कल तुम क्या कहोगे या करोगे?
कल किससे हो जायेगा सामना?
क्या जान सकते हो तुम पहले से?
क्या देख सकोगे होने वाली बातों को?
क्या बस है इन पर तुम्हारा कोई?
नहीं, नहीं नहीं, नहीं।
अपेक्षा नहीं होती जिनकी,
हो जाती हैं ऐसी चीज़ें कई।
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
II
रोज़ाना की छोटी बातें,
जैसे आती हैं सामने,
घटित होती हैं जिस स्वरूप में,
सदा इंसान को याद दिलाती हैं,
कुछ भी बस यूं ही होता नहीं,
धीरे-धीरे आकार लेती हैं ये बातें,
होना है जो तो वो होकर रहेगा,
इंसान की मर्ज़ी से ये न टलेगा।
उसकी काबिलियत के परे है ये,
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
छोटी बातों से लेकर,
इंसान के पूरे जीवन की नियति तक।
सब प्रकट करते हैं योजना और
प्रभुता सृष्टिकर्ता की,
उसका अधिकार सर्वोच्च है,
उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।
यह सत्य है चिरस्थायी।
इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है
योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
III
जो कुछ भी होता है, देता है इंसान को
परमेश्वर की ओर से चेतावनी।
बताता है कि इंसान अपनी किस्मत को
बस में कर सकता नहीं।
होती है जो भी घटना,
करती है खंडन इंसान की आकांक्षाओं का,
जो हैं जीवन-कमान अपने हाथों मे लेने की
व्यर्थ, निरंकुश लालसाओं से भरीं।
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
छोटी बातों से लेकर,
इंसान के पूरे जीवन की नियति तक।
सब प्रकट करते हैं योजना और
प्रभुता सृष्टिकर्ता की,
उसका अधिकार सर्वोच्च है,
उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।
यह सत्य है चिरस्थायी।
इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है,
योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
एक के बाद एक, इंसान के गालों पे
पड़े तेज़ थप्पड़ हैं ये।
इंसान के गालों पे पड़े तेज़ थप्पड़ ये,
मजबूर करते इंसान को सोचने पे,
उनकी किस्मत लिखने वाला कौन है,
उसे चलाने वाला अंत में कौन है।
उसकी लालसाएँ बार-बार टूटती हैं।
सारे लक्ष्य धरे रह जाते हैं।
अंत में किस्मत का लिखा मानना ही पड़ता है,
सच्चाई को स्वीकारना ही पड़ता है।
स्वर्ग की इच्छा, सृष्टिकर्ता की प्रभुता के आगे
सिर झुकाना ही पड़ता है।
सब प्रकट करते हैं योजना और
प्रभुता सृष्टिकर्ता की,
उसका अधिकार सर्वोच्च है,
उसके अधिकार से बढ़कर कुछ नहीं।
यह सत्य है चिरस्थायी।
इस संसार में सब कुछ प्रकट करता है
योजना और प्रभुता सृष्टिकर्ता की।
इंसान अपनी किस्मत को बस में कर सकता नहीं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से रूपांतरित