557 क्या तुम अपनी प्रकृति जानते हो?
1 कोई भी अपना सच्चा चेहरा दर्शाने के लिए अपने स्वयं के शब्दों और क्रियाओं का उपयोग कर सकता है। यह सच्चा चेहरा निश्चित रूप से उसकी प्रकृति है। यदि तुम बहुत कुटिल ढंग से बोलने वाले व्यक्ति हो, तो तुम कुटिल प्रकृति के हो। यदि तुम्हारी प्रकृति धूर्त है, तो तुम कपटी ढंग से काम करते हो, और इससे तुम बहुत आसानी से लोगों को धोखा दे देते हो। यदि तुम्हारी प्रकृति अत्यंत कुटिल है, तो हो सकता है कि तुम्हारे वचन सुनने में सुखद हों, लेकिन तुम्हारे कार्य तुम्हारी कुटिल चालों को छिपा नहीं सकते हैं। यदि तुम्हारी प्रकृति आलसी है, तो तुम जो कुछ भी कहते हो, उस सबका उद्देश्य तुम्हारी लापरवाही और अकर्मण्यता के लिए उत्तरदायित्व से बचना है, और तुम्हारे कार्य बहुत धीमे और लापरवाह होंगे, और सच्चाई को छिपाने में बहुत माहिर होंगे।
2 यदि तुम्हारी प्रकृति सहानुभूतिपूर्ण है, तो तुम्हारे वचन तर्कसंगत होंगे और तुम्हारे कार्य भी सत्य के अत्यधिक अनुरूप होंगे। यदि तुम्हारी प्रकृति निष्ठावान है, तो तुम्हारे वचन निश्चय ही खरे होंगे और जिस तरीके से तुम कार्य करते हो, वह भी व्यावहारिक और यथार्थवादी होगा, जिसमें ऐसा कुछ न होगा जिससे तुम्हारे मालिक को असहजता महसूस हो। यदि तुम्हारी प्रकृति कामुक या धन लोलुप है, तो तुम्हारा हृदय प्रायः इन चीजों से भरा होगा और तुम बेइरादा कुछ विकृत, अनैतिक काम करोगे, जिन्हें भूलना लोगों के लिए कठिन होगा और वे काम उनमें घृणा पैदा करेंगे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1)' से रूपांतरित