557 क्या तुम अपनी प्रकृति जानते हो?
1
अगर तुम कुटिलता से बात करते हो,
तो तुम्हारी प्रकृति कुटिल है।
अगर प्रकृति कपटी है
तो तुम हर काम चालाकी से करोगे,
आसानी से दूसरों को धोखा दोगे।
किसी के भी शब्दों और कामों से,
शब्दों और कामों से
उसका सच्चा चेहरा सच में दिख जाए,
और वो चेहरा उसकी सच्ची प्रकृति दर्शाए।
2
कुटिल प्रकृति से, तुम्हारे शब्द सुखद लग सकते,
पर तुम्हारे कर्म तुम्हारी कपटी चालें न छिपा सकें।
अगर तुम्हारी प्रकृति आलसी है,
तो तुम हरदम बहाने बनाओगे,
धीमे और लापरवाह होगे,
सच्चाई छिपाने में माहिर होगे।
किसी के भी शब्दों और कामों से,
शब्दों और कामों से
उसका सच्चा चेहरा सच में दिख जाए,
और वो चेहरा उसकी सच्ची प्रकृति दर्शाए।
सहानुभूतिपूर्ण प्रकृति है तो
तुम्हारे शब्द उचित होंगे,
तुम्हारे काम सत्य के अनुरूप होंगे।
अगर तुम्हारी प्रकृति निष्ठापूर्ण है,
तो तुम्हारे शब्द ईमानदार होंगे,
तुम्हारे कार्य व्यावहारिक होंगे,
ऐसा कुछ ना करोगे जिससे
तुम्हारा स्वामी असहज हो।
3
प्रकृति अगर कामुक और धन-लोलुप हो तो,
तुम्हारा दिल इन्हीं बातों से भरा रहेगा।
अनजाने ही विकृत, अनैतिक काम करोगे
जिनसे लोग घृणा करेंगे, जिन्हें वे भूल नहीं पाएँगे।
किसी के भी शब्दों और कामों से,
शब्दों और कामों से
उसका सच्चा चेहरा सच में दिख जाए,
और वो चेहरा उसकी सच्ची प्रकृति दर्शाए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, एक बहुत गंभीर समस्या : विश्वासघात (1) से रूपांतरित