596 तुम्हें दृढ़ता से अपना कर्तव्य निभाना चाहिए
1
अगर आस्था न हो तो मुश्किल है, आगे बढ़ना इस मार्ग पर।
अब ये साफ़ है सबको,
ईश-कार्य और इंसानी धारणाएँ अनुरूप नहीं एक-दूजे के।
इतने वचन बोले ईश्वर ने, इतना कार्य किया ईश्वर ने,
पर अलग हैं वो इंसानी धारणाओं से।
इसके लिए इंसान में आस्था और संकल्प होना चाहिए,
ताकि कायम रह सके वो
उस पर, जो देखा और पाया अपने अनुभव से उसने।
जो भी कार्य करे ईश्वर इंसान में
इंसान कायम रहे उस पर जो उसके पास है,
ईमानदार रहे ईश्वर के सामने, और अंत तक समर्पित रहे उसके प्रति।
यही फर्ज़ है इंसान का। इंसान को उस पर कायम रहना चाहिए।
2
ईश-आस्था में आज्ञापालन और उसके कार्य का अनुभव ज़रूरी है।
ईश्वर ने इतना कार्य किया है, कहा जा सकता है,
ये सब पूर्णता, शुद्धिकरण, और ताड़ना है इंसान के लिए।
ईश-कार्य का एक भी कदम, अनुरूप नहीं इंसानी धारणाओं के।
इंसान ने कठोर ईश-वचनों का आनंद लिया है।
उसके रोष और प्रताप का आनंद लेना चाहिए इंसान को
कितने ही कठोर हों उसके वचन, वो आए इंसान को बचाने और पूर्ण करने।
जो भी कार्य करे ईश्वर इंसान में इंसान कायम रहे उस पर जो उसके पास है,
ईमानदार रहे ईश्वर के सामने, और अंत तक समर्पित रहे उसके प्रति।
यही फर्ज़ है इंसान का। इंसान को उस पर कायम रहना चाहिए।
एक प्राणी के नाते जो ज़रूरी है, इंसान को
वो फर्ज़ निभाना चाहिए, शुद्धिकरण के बीच,
ईश्वर की गवाही देनी चाहिए, गवाही पर कायम रहना चाहिए,
और हर इम्तहान में ये गवाही शानदार होनी चाहिए।
यही एक विजेता होना है, विजेता होना है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए से रूपांतरित