56 न्याय-कार्य इंसान की भ्रष्टता साफ करने के लिए है
1
इंसान के छुटकारे से पहले,
उसमें भरे थे शैतान के विष बहुत सारे।
बीत गए हज़ारों साल,
अशुद्ध हो गया इंसान, प्रकृति हो गई उसकी ऐसी
जो उससे ईश्वर का विरोध करवाये।
इसलिए उसे जब छुटकारा मिले, तो
उसे बड़ी कीमत पर फिर से खरीदा गया है,
लेकिन उसकी प्रकृति में समाया विष हटाया न जाये।
इंसान है बहुत अशुद्ध, उसे बदलना होगा,
ताकि वो ईश्वर की सेवा-योग्य हो सके।
न्याय और ताड़ना के काम से,
इंसान पूरी तरह जान जाएगा
उस गंदे सार और भ्रष्टता को जो है उसके भीतर,
खुद को पूरी तरह बदल सकेगा इंसान,
शुद्ध हो सकेगा।
इस तरह वो योग्य हो सकेगा
ईश्वर के सिंहासन के सामने आने के, सिंहासन के सामने आने के।
2
न्याय, ताड़ना और शोधन के आज के काम से,
इंसान बदल सकता है,
अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है,
इस तरह वो शुद्ध हो जाएगा।
काम का मौजूदा चरण
नहीं बस उद्धार का, है ये शुद्धिकरण का।
ये जीतने का काम भी है,
इंसान के उद्धार के काम का दूसरा चरण,
जहाँ ईश्वर इंसान को न्याय से प्राप्त करे।
शोधन करने, न्याय और उजागर करने के लिए वचन के इस्तेमाल द्वारा
इंसान के दिल के भीतर की सारी गंदगी, धारणाओं, इरादों
और आकांक्षाओं को प्रकट किया गया है।
न्याय और ताड़ना के काम से,
इंसान पूरी तरह जान जाएगा
उस गंदे सार और भ्रष्टता को जो है उसके भीतर,
खुद को पूरी तरह बदल सकेगा इंसान,
शुद्ध हो सकेगा।
इस तरह वो योग्य हो सकेगा
ईश्वर के सिंहासन के सामने आने के, सिंहासन के सामने आने के।
3
इंसान को मिला छुटकारा
क्षमा हुए उसके पाप, इसे बस माना जा सके
ईश्वर का पापों को अनदेखा करना,
पर इंसान देह में जिये, पाप में फंसा रहे,
इसलिए पाप करना न छोड़ पाये।
बार-बार इंसान अपना भ्रष्ट,
शैतानी स्वभाव दिखाता रहेगा।
ज़्यादातर लोग दिन में पाप करें,
और रात में उन्हें स्वीकार करें।
भले ही पापबलि हमेशा इंसान के काम आए,
ये कभी इंसान को पाप से बचा न पाये।
इसलिए बस आधा ही उद्धार हुआ है,
क्योंकि इंसान अभी भी भ्रष्ट है।
न्याय और ताड़ना के काम से,
इंसान पूरी तरह जान जाएगा
उस गंदे सार और भ्रष्टता को जो है उसके भीतर,
खुद को पूरी तरह बदल सकेगा इंसान,
शुद्ध हो सकेगा।
इस तरह वो योग्य हो सकेगा
ईश्वर के सिंहासन के सामने आने के, सिंहासन के सामने आने के।
4
इंसान के लिए अपने पापों का
एहसास कर पाना मुश्किल है;
वो अपनी प्रकृति के गहरे मूल को न देख सके।
उसे निर्भर होना होगा वचनों द्वारा न्याय पर
ताकि वो इस नतीजे को पा सके।
यहाँ से आगे केवल इसी तरह इंसान बदल सकता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'देहधारण का रहस्य (4)' से रूपांतरित