733 मनुष्य में विवेक का बहुत अभाव है
1 लोग स्वयं से तो बहुत ज़्यादा अपेक्षा नहीं करते हैं, लेकिन उन्हें परमेश्वर से बहुत अपेक्षा होती है। वे परमेश्वर से उन पर विशेष कृपा दर्शाने और उनके प्रति धैर्यवान और सहनशील होने, उन्हें दुलारने, उनका भरण पोषण करने, उन पर मुस्कुराने, और कई तरीकों से उनकी देखभाल करने के लिए कहते हैं। वे अपेक्षा करते हैं की वो उनके प्रति बिल्कुल भी सख़्त न हो या ऐसा कुछ भी न करे जिससे उन्हें ज़रा सा भी परेशानी हो, और वे केवल तभी संतुष्ट होते हैं यदि वह हर एक दिन उनकी खुशामद करता है। मनुष्य में विवेक की कितनी कमी है! लोगों को यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें कहाँ रहना चाहिए, उन्हें क्या करना चाहिए, उन्हें क्या हासिल करना चाहिए, उनके दृष्टिकोण क्या होने चाहिए, परमेश्वर की सेवा में उन्हें किस स्थिति या पद में खड़े होना चाहिए, और किस स्थान पर उन्हें स्थित होना चाहिए। थोड़ी-सी पदवी पाकर लोग खुद को बहुत बड़ा मानने लगते हैं, और वैसे पद के बिना भी लोग खुद को काफी उच्च मानते हैं। लोग खुद को कभी नहीं समझते हैं।
2 वर्तमान में आप लोगों की बहुत अधिक आवश्यकताएँ हैं और वे बहुत ज्यादा हैं। आपके कई इरादे साबित करते हैं कि आप सही स्थिति में खड़े नहीं हैं, आपका पद बहुत ऊँचा है, और आपने खुद को अत्यधिक आदरणीय मान लिया है मानो कि आप परमेश्वर से बहुत कम न हों। इसलिए आप से व्यवहार करना मुश्किल है, और यह वास्तव में शैतान की प्रकृति है। यदि आप लोग अपने-अपने विश्वास को जारी रख सकते हैं, कभी भी शिकायत नहीं करते, और सामान्य रूप से अपने कर्तव्यों को पूरा करते हैं, चाहे आपसे कुछ भी कहा जाए, चाहे आपके साथ कितनी भी कड़ाई से व्यवहार किया जाए और आपको कितना भी अनदेखा किया जाए, तो आप एक परिपक्व और अनुभवी व्यक्ति होंगे, और आप के पास वास्तव में कुछ कद और सामान्य विवेक होगा। आप परमेश्वर से चीजों की अपेक्षा नहीं करेंगे, आपके पास अत्यधिक इच्छा नहीं होगी, और आप उन चीज़ों के आधार पर जिन्हें आप पसंद करते हैं, दूसरों से या परमेश्वर से उनके लिए अनुरोध नहीं करेंगे। इससे पता चलता है कि आपके पास एक हद तक एक व्यक्ति की अनुरूपता है।
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'परमेश्वर से लगातार माँगते रहने वाले लोग सबसे कम विवेकी होते हैं' से रूपांतरित