851 मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है
1 बाइबल में "आदम के लिए परमेश्वर की आज्ञा" का जो वर्णन किया गया है, वह एक मार्मिक और हृदयस्पर्शी दृश्य है। यद्यपि इसमें केवल परमेश्वर एवं मनुष्य ही हैं, फिर भी उनके बीच की घनिष्ठता तुम्हें हसरत से भर देती है।
2 परमेश्वर का प्रचुर प्रेम मनुष्य को खुलकर प्रदान किया गया है और यह मनुष्य को घेरे रहता है; मनुष्य भोला-भाला एवं निर्दोष, भारमुक्त एवं लापरवाह है, आनंदपूर्वक परमेश्वर की दृष्टि के अधीन जीवन बिताता है; परमेश्वर मनुष्य के लिए चिंता करता है, जबकि मनुष्य परमेश्वर की सुरक्षा एवं आशीष के अधीन जीवन बिताता है; हर एक चीज़ जिसे मनुष्य करता एवं कहता है वह परमेश्वर से घनिष्ठता से जुड़ी है और अभिन्न है।
3 परमेश्वर ने जिस घड़ी मनुष्य को बनाया, तभी से उसने उसके प्रति जिम्मेदारी महसूस की है। उसकी जिम्मेदारी क्या है? उसे मनुष्य की रक्षा करनी है, मनुष्य की देखभाल करनी है। उसे उम्मीद है कि मनुष्य उसके वचनों का यकीन और आज्ञापालन कर सकता है। मनुष्य से परमेश्वर की पहली उम्मीद भी यही है।
4 इसी उम्मीद से परमेश्वर यह कहता है : "तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।" ये साधारण वचन परमेश्वर का इरादा दर्शाते हैं। वे यह भी प्रकट करते हैं कि परमेश्वर ने अपने हृदय में मनुष्य के लिए चिंता प्रकट करना शुरू कर दिया है।
5 इन कुछ साधारण वचनों में हम परमेश्वर का हृदय देखते हैं। क्या परमेश्वर के हृदय में प्रेम है? क्या इसमें कोई चिंता है? परमेश्वर के प्रेम और चिंता को न केवल समझा जा सकता है, बल्कि इन्हें करीब से महसूस भी किया जा सकता है। एक अंतरात्मा युक्त और मानवता की भावना वाले इंसान के रूप में तुम गर्माहट महसूस करोगे, तुम महसूस करोगे कि तुम्हारी परवाह की जाती है और तुम्हें प्रेम किया जाता है, और तुम्हें सुख की अनुभूति होगी।
6 जब तुम इन चीज़ों को महसूस करते हो, तो तुम परमेश्वर के प्रति कैसे पेश आओगे? क्या तुम परमेश्वर से जुड़ाव महसूस करोगे? क्या तुम अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर से प्रेम और उसका सम्मान करोगे? क्या तुम्हारा हृदय परमेश्वर के और करीब जाएगा? तुम इससे देख सकते हो कि मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम कितना महत्वपूर्ण है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि मनुष्य परमेश्वर के प्रेम की थाह ले सकता है और इसे समझ सकता है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर I