1. हम मानते हैं कि महान श्वेत सिंहासन के न्याय का तात्पर्य स्वर्ग में परमेश्वर द्वारा स्थापित एक महान मेज से है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन भर में किए गए पापों को स्वीकार करने के लिए जमीन पर घुटने टेकता है, जिसके बाद परमेश्वर इसका निर्धारण करता है कि वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें, या नरक में उतरें। बहरहाल, आप गवाही देते हैं कि परमेश्वर पृथ्वी पर देह में आ गया है और यह कि वह सत्य को व्यक्त कर रहा और अंतिम दिनों के न्याय का कार्य कर रहा है। यह हमारी अपनी समझ से भिन्न क्यों है? परमेश्वर का अंतिम दिनों का न्याय आखिर किस बारे में है?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद :
"क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)।
"यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा" (यूहन्ना 12:47-48)।
"पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है" (यूहन्ना 5:22)।
"वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिये कि वह मनुष्य का पुत्र है" (यूहन्ना 5:27)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :
बीते समय में जो यह कहा गया था कि न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होगा, उन वचनों में "न्याय" उस फैसले को संदर्भित करता है, जो परमेश्वर आज उन लोगों के बारे में देता है, जो अंत के दिनों में उसके सिंहासन के सामने आते हैं। शायद कुछ लोग ऐसे हैं, जो ऐसी अलौकिक कल्पनाओं पर विश्वास करते हैं, जैसे कि, जब अंत के दिन आ चुके होंगे, तो परमेश्वर स्वर्ग में एक बड़ी मेज़ स्थापित करेगा, जिस पर एक सफेद मेज़पोश बिछा होगा, और फिर एक बड़े सिंहासन पर बैठकर, जिसके सामने सभी मनुष्य ज़मीन पर घुटने टेके होंगे, वह प्रत्येक मनुष्य के पाप उजागर करेगा और इसके द्वारा यह निर्धारित करेगा कि उन्हें स्वर्ग में आरोहण करना है या नीचे आग और गंधक की झील में डाला जाना है। मनुष्य किसी भी प्रकार की कल्पना क्यों न करे, उससे परमेश्वर के कार्य का सार नहीं बदल सकता। मनुष्य की कल्पनाएँ मनुष्य के विचारों की रचनाओं के सिवा कुछ नहीं हैं; वे उसकी देखी-सुनी बातों के जुड़ने और एकत्र होने पर उसके दिमाग़ से निकलती हैं। इसलिए मैं कहता हूँ, कल्पित तस्वीरें कितनी भी शानदार क्यों न हों, हैं वे कार्टून आरेख ही, और वे परमेश्वर के कार्य की योजना की स्थानापन्न बनने में अक्षम हैं। मनुष्य आख़िरकार शैतान द्वारा भ्रष्ट किया जा चुका है, इसलिए वह परमेश्वर के विचारों की थाह कैसे पा सकता है? मनुष्य परमेश्वर के न्याय के कार्य के विलक्षण होने की कल्पना करता है। वह मानता है कि चूँकि यह स्वयं परमेश्वर है, जो न्याय का कार्य करता है, इसलिए यह कार्य अवश्य ही बहुत ज़बरदस्त पैमाने का, और मनुष्यों की समझ से बाहर होना चाहिए, और इसे स्वर्ग भर में गूँजना और पृथ्वी को हिला देना चाहिए; वरना यह परमेश्वर द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य कैसे हो सकता है? वह मानता है कि, चूँकि यह न्याय का कार्य है, अत: कार्य करते समय परमेश्वर को विशेष रूप से रोबीला और प्रतापी अवश्य होना चाहिए, और जिनका न्याय किया जा रहा है, उन्हें आँसू बहाते हुए आर्तनाद करना चाहिए और घुटने टेककर दया की भीख माँगनी चाहिए। इस तरह के दृश्य भव्य और उत्तेजक होंगे...। हर कोई परमेश्वर के न्याय के कार्य के चमत्कारी होने की कल्पना करता है। लेकिन क्या तुम जानते हो कि काफी समय पहले जबसे परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच न्याय का अपना कार्य आरंभ किया था, तबसे तुम सुस्ती भरी नींद में आश्रय लिए हुए हो? कि जिस समय तुम सोचते हो कि परमेश्वर के न्याय का कार्य औपचारिक रूप से आरंभ हुआ, तब तक परमेश्वर ने पहले ही स्वर्ग और पृथ्वी को नए सिरे से बना लिया होगा? उस समय शायद तुमने केवल जीवन का अर्थ समझा ही होगा, परंतु परमेश्वर के न्याय का निष्ठुर कार्य तुम्हें नरक में और भी गहरी नींद में ले जाएगा। केवल तभी तुम अचानक महसूस करोगे कि परमेश्वर के न्याय का कार्य पहले ही संपन्न हो चुका है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
कुछ लोग मानते हैं कि परमेश्वर किसी अनजान समय पृथ्वी पर आकर लोगों को दिखाई दे सकता है, जिसके बाद वह व्यक्तिगत रूप से संपूर्ण मनुष्यजाति का न्याय करेगा, एक-एक करके सबकी परीक्षा लेगा, कोई भी नहीं छूटेगा। जो लोग इस ढंग से सोचते हैं, वे देहधारण के इस चरण के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर एक-एक करके मनुष्य का न्याय नहीं करता, एक-एक करके उनकी परीक्षा नहीं लेता; ऐसा करना न्याय का कार्य नहीं होगा। क्या समस्त मनुष्यजाति की भ्रष्टता एक समान नहीं है? क्या पूरी मनुष्यजाति का सार समान नहीं है? न्याय किया जाता है इंसान के भ्रष्ट सार का, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए इंसानी सार का, और इंसान के सारे पापों का। परमेश्वर मनुष्य के छोटे-मोटे और मामूली दोषों का न्याय नहीं करता। न्याय का कार्य निरूपक है, और किसी व्यक्ति-विशेष के लिए कार्यान्वित नहीं किया जाता। बल्कि यह ऐसा कार्य है जिसमें समस्त मनुष्यजाति के न्याय का प्रतिनिधित्व करने के लिए लोगों के एक समूह का न्याय किया जाता है। देहधारी परमेश्वर लोगों के एक समूह पर व्यक्तिगत रूप से अपने कार्य को कार्यान्वित करके, इस कार्य का उपयोग संपूर्ण मनुष्यजाति के कार्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए करता है, जिसके बाद यह धीरे-धीरे फैलता जाता है। न्याय का कार्य ऐसा ही है। परमेश्वर किसी व्यक्ति-विशेष या लोगों के किसी समूह-विशेष का न्याय नहीं करता, बल्कि संपूर्ण मनुष्यजाति की अधार्मिकता का न्याय करता है—उदाहरण के लिए, परमेश्वर के प्रति मनुष्य का विरोध, या उसके प्रति मनुष्य का अनादर, या परमेश्वर के कार्य में व्यवधान इत्यादि। जिसका न्याय किया जाता है वो है इंसान का परमेश्वर-विरोधी सार, और यह कार्य अंत के दिनों का विजय-कार्य है। देहधारी परमेश्वर का कार्य और वचन जिनकी गवाही इंसान देता है, वे अंत के दिनों के दौरान बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय के कार्य हैं, जिसकी कल्पना इंसान के द्वारा अतीत में की गई थी। देहधारी परमेश्वर द्वारा वर्तमान में किया जा रहा कार्य वास्तव में बड़े श्वेत सिंहासन के सामने न्याय है। आज का देहधारी परमेश्वर वह परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान संपूर्ण मनुष्यजाति का न्याय करता है। यह देह और उसका कार्य, उसका वचन और उसका समस्त स्वभाव उसकी समग्रता हैं। यद्यपि उसके कार्य का दायरा सीमित है, और उसमें सीधे तौर पर संपूर्ण विश्व शामिल नहीं है, फिर भी न्याय के कार्य का सार संपूर्ण मनुष्यजाति का प्रत्यक्ष न्याय है—यह कार्य केवल चीन के चुने हुए लोगों के लिए नहीं, न ही यह थोड़े-से लोगों के लिए है। देह में परमेश्वर के कार्य के दौरान, यद्यपि इस कार्य के दायरे में संपूर्ण ब्रह्माण्ड नहीं है, फिर भी यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है, जब वह अपनी देह के कार्य के दायरे में उस कार्य को समाप्त कर लेगा तो उसके बाद, वह तुरन्त ही इस कार्य को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उसी तरह से फैला देगा जैसे यीशु के पुनरूत्थान और आरोहण के बाद उसका सुसमाचार सारी दुनिया में फैल गया था। चाहे यह पवित्रात्मा का कार्य हो या देह का कार्य, यह ऐसा कार्य है जिसे एक सीमित दायरे में किया जाता है, परन्तु जो संपूर्ण ब्रह्माण्ड के कार्य का प्रतिनिधित्व करता है। अन्त के दिनों में, परमेश्वर देहधारी रूप में प्रकट होकर अपना कार्य करता है, और देहधारी परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो बड़े श्वेत सिंहासन के सामने मनुष्य का न्याय करता है। चाहे वह आत्मा हो या देह, जो न्याय का कार्य करता है वही ऐसा परमेश्वर है जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्य का न्याय करता है। इसे उसके कार्य के आधार पर परिभाषित किया जाता है, न कि उसके बाहरी रंग-रूप या दूसरी बातों के आधार पर। यद्यपि इन वचनों के बारे में मनुष्य की धारणाएँ हैं, लेकिन कोई भी देहधारी परमेश्वर के न्याय और संपूर्ण मनुष्यजाति पर विजय के तथ्य को नकार नहीं सकता। इंसान चाहे कुछ भी सोचे, मगर तथ्य आखिरकार तथ्य ही हैं। कोई यह नहीं कह सकता है कि "कार्य परमेश्वर द्वारा किया जाता है, परन्तु देह परमेश्वर नहीं है।" यह बकवास है, क्योंकि इस कार्य को देहधारी परमेश्वर के सिवाय और कोई नहीं कर सकता। चूँकि इस कार्य को पहले ही पूरा किया जा चुका है, इसलिए इस कार्य के बाद मनुष्य के लिए परमेश्वर के न्याय का कार्य दूसरी बार प्रकट नहीं होगा; अपने दूसरे देहधारण में परमेश्वर ने पहले ही संपूर्ण प्रबंधन के समस्त कार्य का समापन कर लिया है, इसलिए परमेश्वर के कार्य का चौथा चरण नहीं होगा। क्योंकि जिसका न्याय किया जाता है वह मनुष्य है, मनुष्य जो कि हाड़-माँस का है और भ्रष्ट किया जा चुका है, और यह शैतान की आत्मा नहीं है जिसका सीधे तौर पर न्याय किया जाता है, इसलिए न्याय का कार्य आध्यात्मिक संसार में कार्यान्वित नहीं किया जाता, बल्कि मनुष्यों के बीच किया जाता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है
अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
आज का विजय कार्य यह स्पष्ट करने के लिए अभीष्ट है कि मनुष्य का अन्त क्या होगा। ऐसा क्यों कहा जाता है कि आज की ताड़ना और न्याय, अंत के दिनों के महान श्वेत सिंहासन के सामने का न्याय है? क्या तुम यह नहीं देखते हो? विजय का कार्य अन्तिम चरण क्यों है? क्या यह इस बात को प्रकट करने के लिए नहीं है कि मनुष्य के प्रत्येक वर्ग का अन्त कैसा होगा? क्या यह प्रत्येक व्यक्ति को, ताड़ना और न्याय के विजय कार्य के दौरान, अपना असली रंग दिखाने और फिर उसके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करने के लिए नहीं है? यह कहने के बजाय कि यह मनुष्यजाति को जीतना है, यह कहना बेहतर होगा कि यह उस बात को दर्शाना है कि व्यक्ति के प्रत्येक वर्ग का अन्त किस प्रकार का होगा। यह लोगों के पापों का न्याय करने के बारे में है और फिर मनुष्यों के विभिन्न वर्गों को उजागर करना और इस प्रकार यह निर्णय करना है कि वे दुष्ट हैं या धार्मिक हैं। विजय-कार्य के पश्चात धार्मिक को पुरस्कृत करने और दुष्ट को दण्ड देने का कार्य आता है। जो लोग पूर्णत: आज्ञापालन करते हैं अर्थात जो पूर्ण रूप से जीत लिए गए हैं, उन्हें सम्पूर्ण कायनात में परमेश्वर के कार्य को फैलाने के अगले चरण में रखा जाएगा; जिन्हें जीता नहीं गया उनको अन्धकार में रखा जाएगा और उन पर महाविपत्ति आएगी। इस प्रकार मनुष्य को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, दुष्कर्म करने वालों को दुष्टों के साथ समूहित किया जाएगा और उन्हें फिर कभी सूर्य का प्रकाश नसीब नहीं होगा, और धर्मियों को रोशनी प्राप्त करने और सर्वदा रोशनी में रहने के लिए भले लोगों के साथ रखा जाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1)
न्याय का कार्य परमेश्वर का अपना कार्य है, इसलिए स्वाभाविक रूप से इसे परमेश्वर द्वारा ही किया जाना चाहिए; उसकी जगह इसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। चूँकि न्याय सत्य के माध्यम से मानवजाति को जीतना है, इसलिए परमेश्वर निःसंदेह अभी भी मनुष्यों के बीच इस कार्य को करने के लिए देहधारी छवि के रूप में प्रकट होगा। अर्थात्, अंत के दिनों का मसीह दुनिया भर के लोगों को सिखाने के लिए और उन्हें सभी सच्चाइयों का ज्ञान कराने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। यह परमेश्वर के न्याय का कार्य है। कई लोगों में परमेश्वर के दूसरे देहधारण के बारे में बुरी भावना है, क्योंकि लोगों को यह बात मानने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर न्याय का कार्य करने के लिए देह धारण करेगा। फिर भी, मुझे तुम्हें यह अवश्य बताना होगा कि प्रायः परमेश्वर का कार्य मनुष्य की अपेक्षाओं से बहुत आगे तक जाता है, और मनुष्य के मन के लिए इसे स्वीकार करना कठिन होता है। क्योंकि लोग पृथ्वी पर मात्र कीड़े-मकौड़े हैं, जबकि परमेश्वर सर्वोच्च है जो ब्रह्मांड में समाया हुआ है; मनुष्य का मन गंदे पानी से भरे हुए एक गड्डे के सदृश है, जो केवल कीड़े-मकोड़ों को ही उत्पन्न करता है, जबकि परमेश्वर के विचारों द्वारा निर्देशित कार्य का प्रत्येक चरण परमेश्वर की बुद्धि का परिणाम है। लोग हमेशा परमेश्वर के साथ संघर्ष करने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में मैं कहता हूँ कि यह स्वत: स्पष्ट है कि अंत में कौन हारेगा। मैं तुम सबको समझा रहा हूँ कि अपने आपको स्वर्ण से अधिक मूल्यवान मत समझो। जब दूसरे लोग परमेश्वर का न्याय स्वीकार कर सकते हैं, तो तुम क्यों नहीं? तुम दूसरों से कितने ऊँचे हो? अगर दूसरे लोग सत्य के आगे सिर झुका सकते हैं, तो तुम भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर के कार्य का वेग अबाध है। वह सिर्फ़ तुम्हारे द्वारा दिए गए "सहयोग" के कारण न्याय के कार्य को फिर से नहीं दोहराएगा, और तुम इतने अच्छे अवसर के हाथ से निकल जाने पर पछतावे से भर जाओगे। अगर तुम्हें मेरे वचनों पर विश्वास नहीं है, तो फिर आकाश में स्थित उस महान श्वेत सिंहासन द्वारा खुद पर "न्याय पारित किए जाने" की प्रतीक्षा करो! तुम्हें अवश्य पता होना चाहिए कि सभी इजराइलियों ने यीशु को ठुकराया और अस्वीकार किया था, और फिर भी यीशु द्वारा मानवजाति के छुटकारे का तथ्य फिर भी पूरे ब्रह्मांड और पृथ्वी के के छोरों तक फैल गया। क्या यह परमेश्वर द्वारा बहुत पहले बनाई गई वास्तविकता नहीं है? अगर तुम अभी भी यीशु द्वारा स्वयं को स्वर्ग में ले जाए जाने का इंतज़ार कर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निर्जीव काष्ठ के बेकार टुकड़े हो।[क] यीशु तुम जैसे किसी भी झूठे विश्वासी को स्वीकार नहीं करेगा, जो सत्य के प्रति निष्ठाहीन है और केवल आशीष चाहता है। इसके विपरीत, वह तुम्हें हज़ारों वर्षों तक जलने देने के लिए आग की झील में फेंकने में कोई दया नहीं दिखाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है
फुटनोट :
क. निर्जीव काष्ठ का टुकड़ा : एक चीनी मुहावरा, जिसका अर्थ है—"सहायता से परे"।