197 पतरस की मिसाल का अनुसरण करके परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करो
1
मुझे ऐसा लगता था कि सब-कुछ छोड़कर परमेश्वर के लिए काम करने का अर्थ है कि मैं परमेश्वर से प्यार करता हूँ। हालाँकि सीसीपी ने मेरा पीछा किया लेकिन मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
मेरे परिवार ने मुझे नकार दिया, दुनिया ने मेरी निंदा की, लेकिन मैं बिना किसी शिकायत या पछतावे के अपनी जवानी के वर्ष परमेश्वर को समर्पित करने को तैयार था।
अगर मैं स्वर्ग के राज्य में उन्नत और पुरस्कृत किया जा सकूँ, तो मैं कितने भी दुख और आँसू सहने के लिए तैयार हूँ।
जब परीक्षणों ने मेरी कुरूपता को उजागर किया, तो मैं नकारात्मक और कमज़ोर हो गया और फूट-फूटकर रोया।
परमेश्वर में अपनी आस्था के जिस मार्ग पर मैं चला, उस पर विचार करते हुए, मुझे एहसास हुआ कि सत्य का अनुसरण किए बिना, अंत में मेरा पतन हो जाएगा।
2
परमेश्वर के वचनों ने जब इंसान के भ्रष्ट सार को उजागर किया, तब मुझे पता चला कि मैं कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुका हूँ।
मैं कहता था कि मुझे परमेश्वर से प्यार है, लेकिन ऐसा कहना मात्र आशीष और पुरस्कार पाने के लिए था, मेरी कड़ी मेहनत और अथक परिश्रम भी परमेश्वर से बदले में कुछ न कुछ हासिल करने के लिए ही था।
मैंने सचमुच अपनी अंतरात्मा, अपनी तर्क-बुद्धि, अपनी इंसानियत गँवा दी थी, लेकिन उसके बावजूद परमेश्वर ने मेरे न्याय और शुद्धिकरण के लिए अपने वचनों का प्रयोग किया।
मैंने जो कुछ किया है उसके प्रायश्चित स्वरूप मैं परमेश्वर के चरणों में गिरता हूँ, मैं परमेश्वर के प्रेम को पाने योग्य नहीं हूँ।
मैंने परमेश्वर को प्रेम करने और उसे संतुष्ट करने का संकल्प किया है, अब मैं अपने भविष्य या भाग्य को लेकर न तो कोई योजना बनाऊँगा, न ही उस पर विचार करूँगा।
3
परीक्षणों और मुश्किलों को सहने से मेरी आस्था पूर्ण होती है। मैंने इस बात को समझा कि परीक्षणों का आना सचमुच परमेश्वर का आशीष है।
भले ही देह को कष्ट उठाने पड़ें, लेकिन मैं इनसे परमेश्वर के प्रेम की अनुभूति कर सकता हूँ। सत्य के अभ्यास से, मेरा भ्रष्ट स्वभाव बदल रहा है।
मैं परमेश्वर से सबसे ज़्यादा प्यार करने और मृत्यु तक उसका आज्ञापालन करने की पतरस की मिसाल का अनुकरण करूँगा। मैं इतना धन्य हूँ कि आज मैं परमेश्वर को प्यार कर सकता हूँ और उसकी गवाही दे सकता हूँ।
मुझे यकीन है कि मसीह सत्य, मार्ग और जीवन है। सत्य को समझ लिया और परमेश्वर को जान लिया, तो जीवन व्यर्थ नहीं गया।
परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पालन करना कभी भी गलत नहीं हो सकता। परमेश्वर से शाश्वत प्रेम और उसका आज्ञापालन मेरा कर्तव्य है।