196 परमेश्वर से प्रेम करने में कोई पश्चाताप या शिकायत नहीं है
1 हे परमेश्वर! मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मैं इस जीवन में तुझसे मिली और फिर तेरे वचनों को अपने जीवन के रूप में स्वीकार किया। तेरा हर वचन, हर कथन मेरे दिल को छूता है। केवल तुझे ही मेरे जीवन की चिंता है, तेरे कहे वचनों से मुझे सत्य समझ में आ गया। तेरे वचन मेरी भ्रष्टता और विद्रोह का न्याय करते और उसे उजागर करते हैं, मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूँ और तुझे गिरकर नमन करती हूँ। परीक्षणों के ज़रिये, तू मेरे भ्रष्ट स्वभाव को उजागर और शुद्ध करता है, मैं तेरे ईमानदार इरादों को समझती हूँ। तू विश्वास के ज़रिये आशीष पाने की मेरी अभिप्रेरणा की काट-छाँट और निपटारा भी करता है; मैं आख़िरकार जान गई हूँ कि परमेश्वर में कैसे विश्वास करना है। मैंने तेरे वचनों से बहुत कुछ हासिल किया है, तेरे कार्य से गुज़रकर मेरे अंदर बदलाव आया है। मैं तेरे प्रेम का प्रतिदान देने के लिये अपना कर्तव्य निभाने की ख़ातिर सब-कुछ त्यागने और स्वयं को खपाने को तैयार हूँ।
2 हे परमेश्वर! तू दीन बनकर, छिपे रहते हुए धरती पर आया है, और ऐसे वचन व्यक्त कर रहा है जो इंसान को सत्य और जीवन प्रदान करते हैं। तू दुनियावी लोगों के द्वारा बदनामी सहता है, सीसीपी द्वारा पीछा किया जाना, और उसके उत्पीड़न को झेलता करता है, हमारी गलतफ़हमियों और शिकायतों तक को बर्दाश्त करता है। कौन है जो सचमुच तेरे दिल को समझ सके? कौन है जो तेरे ग़म और ख़ुशियाँ को बाँट सके? तूने ख़ामोशी से कितना अपमान सहा है, फिर भी तू बोल रहा है और काम कर रहा है, ये सब-कुछ इंसान को बचाने के लिये कर रहा है। तेरे प्रेम ने मेरे सुन्न पड़ चुके हृदय को पिघला दिया है। मैं फिर से विद्रोही या नकारात्मक कैसे हो सकती हूँ? हालाँकि मेरे अंदर अभी भी बहुत सारी कमियाँ हैं, फिर भी तेरे नाम की कीर्ति और गवाही देने के लिए मैं पूरी शक्ति लगा दूँगी। मैं तुझे प्रेम करूँगी और अपना पूरा जीवन तुझे समर्पित कर दूँगी, मैं तुझे गौरव देने के लिये तेरी इच्छा को पूरा करूँगी। तुझे आजीवन प्रेम करने पर मुझे कोई पश्चाताप या शिकायत नहीं होगी, मैं कामना करती हूँ कि तेरा हृदय सुकून पाये।