अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे
अंधकार का प्रभाव क्या है? यह तथाकथित “अंधकार का प्रभाव”, शैतान के लोगों को गुमराह करने, भ्रष्ट करने, बांधने और नियंत्रित करने का प्रभाव है; शैतान का प्रभाव एक ऐसा प्रभाव है जिसमें मृत्यु का साया है। शैतान की सत्ता में रहने वाले सभी लोग नष्ट हो जाने के लिए अभिशप्त हैं। परमेश्वर में आस्था पाने के बाद, तुम अंधकार के प्रभाव से कैसे बच सकते हो? एक बार जब तुम ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना कर लेते हो तो, तुम अपना हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर मोड़ देते हो, और उस समय परमेश्वर का आत्मा तुम्हारे हृदय को प्रेरित करता है। तुम पूरी तरह से उसे समर्पित होने को तैयार हो जाते हो, और उस समय, तुम अंधकार के प्रभाव से निकल चुके होगे। यदि इंसान के सारे काम परमेश्वर को प्रसन्न करें और उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप हुआ करें, तो वह परमेश्वर के वचनों में और उसकी निगरानी एवं सुरक्षा में रहने वाला बन जाता है। यदि लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास न कर पाते, अगर वे हमेशा परमेश्वर को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं, उसके प्रति लापरवाह तरीके से काम करते हैं और उसके अस्तित्व में विश्वास नहीं करते, तो ऐसे सभी लोग अंधकार के प्रभाव में रहते हैं। जिन लोगों ने परमेश्वर द्वारा उद्धार प्राप्त नहीं किया है, वे सभी शैतान की सत्ता में जी रहे हैं; अर्थात्, वे सभी अंधकार के प्रभाव में रहते हैं। जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते, वे शैतान की सत्ता में रह रहे हैं। यहाँ तक कि जो लोग परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं, जरूरी नहीं कि वे परमेश्वर के प्रकाश में रह रहे हों, क्योंकि जो लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, जरूरी नहीं कि परमेश्वर के वचनों में जी रहे हों, और यह भी जरूरी नहीं कि वे परमेश्वर के प्रति समर्पित करने में समर्थ हों। मनुष्य केवल परमेश्वर में विश्वास रखने तक सीमित है, और चूँकि उसे परमेश्वर का ज्ञान नहीं है, इसलिए वह अभी भी पुराने नियमों और निर्जीव वचनों के बीच जीवनयापन कर रहा है, वो एक ऐसा जीवन जी रहा है जो अंधकारमय और अनिश्चित है, जिसे न तो परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से शुद्ध किया गया है, न ही पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया गया है। इसलिए, कहने की आवश्यकता नहीं कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, वे अंधकार के प्रभाव में जी रहे हैं, जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, वे भी शायद अभी तक अंधकार के प्रभाव में ही हैं, क्योंकि उनमें पवित्र आत्मा का काम नहीं है। जिन लोगों ने परमेश्वर का अनुग्रह या दया नहीं प्राप्त की है, जो पवित्र आत्मा द्वारा किए गये कार्य को नहीं देख सकते, वे सभी अंधकार के प्रभाव में जी रहे हैं; और अधिकांशतः, ऐसे ही लोग होते हैं जो महज परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेते हैं फिर भी परमेश्वर को नहीं जानते हैं। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर पर विश्वास करता है मगर अपना अधिकांश जीवन अंधकार के प्रभाव में जीते हुए बिताता है, तो उस व्यक्ति का अस्तित्व अपना अर्थ खो चुका होता है, उन लोगों का उल्लेख करने की क्या आवश्यकता है जो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास ही नहीं रखते?
जो लोग परमेश्वर के काम को स्वीकार नहीं कर सकते हैं या जो परमेश्वर के कार्य को स्वीकार तो करते हैं लेकिन परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते, वे लोग अंधकार के प्रभाव में रह रहे हैं। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं और परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हैं, वे ही परमेश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करेंगे, और वही लोग अंधकार के प्रभाव से बच पाएँगे। जो लोग मुक्त नहीं किए गए हैं, जो हमेशा किसी वस्तु-विशेष के द्वारा बेबस होते हैं, और जो अपना हृदय परमेश्वर को नहीं दे पाते, वे लोग शैतान के बंधन में हैं और वे मौत के साये में जी रहे हैं। जो लोग अपने कर्तव्यों के प्रति वफादार नहीं हैं, जो परमेश्वर के आदेश के प्रति वफादार नहीं हैं, जो कलीसिया में अपना कार्य नहीं कर रहे हैं, वे ऐसे लोग हैं जो अंधकार के प्रभाव में रह रहे हैं। जो जानबूझकर कलीसिया के जीवन में बाधा डालते हैं, जो जानबूझकर अपने भाई-बहनों के बीच झगड़े के बीज बो रहे हैं, या अपने गुट बना रहे हैं, वे अभी भी गहरे अंधकार के प्रभाव में रहते हैं, शैतान के बंधन में रहते हैं। जिनका परमेश्वर के साथ एक असामान्य रिश्ता है, जिनकी हमेशा अनावश्यक अभिलाषाएं होती हैं, जो हमेशा लाभ लेना चाहते हैं, जो कभी अपने स्वभाव में परिवर्तन नहीं लाना चाहते, वे ऐसे लोग होते हैं जो अंधकार के प्रभाव में रहते हैं। जो लोग हमेशा लापरवाह होते हैं, सत्य के अपने अभ्यास में गंभीर नहीं होते, परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने के इच्छुक नहीं होते, जो केवल अपने ही शरीर को संतुष्ट करने में लगे रहते हैं, ऐसे लोग भी अंधकार के प्रभाव में जी रहे हैं, और मृत्यु से घिरे हुए हैं। जो लोग परमेश्वर के लिए काम करते समय चालबाजी और धूर्तता करते हैं, परमेश्वर के साथ लापरवाही से व्यवहार करते हैं, जो परमेश्वर को धोखा देते हैं, हमेशा स्वयं के लिए सोचते रहते हैं, ऐसे लोग अंधकार के प्रभाव में रह रहे हैं। जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर से प्यार नहीं कर सकते हैं, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, और जो अपने स्वभाव को बदलने पर ध्यान नहीं देते, वे लोग अंधकार के प्रभाव में रह रहे हैं।
यदि तुम परमेश्वर की प्रशंसा पाना चाहते हो, तो सबसे पहले तुम्हें शैतान के अंधकारमय प्रभाव से निकलना चाहिए, अपना हृदय परमेश्वर के लिए खोलना चाहिए, और इसे पूरी तरह से परमेश्वर की ओर मोड़ देना चाहिए। क्या जिन कामों को तुम अब कर रहे हो उनकी परमेश्वर द्वारा प्रशंसा की जाएगी? क्या तुमने अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ दिया है? तुमने जो काम किये हैं, क्या वे वही हैं जिनकी परमेश्वर तुमसे अपेक्षा करता है? क्या वे सत्य के अनुरूप हैं? तुम्हें हमेशा अपनी जाँच करनी चाहिए, परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने पर ध्यान देना चाहिए; अपना हृदय परमेश्वर के सामने रख देना चाहिए, ईमानदारी से परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, और निष्ठा के साथ परमेश्वर के लिए खुद को खपाना चाहिए। ऐसे लोगों को निश्चित रूप से परमेश्वर की प्रशंसा मिलेगी। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं लेकिन फिर भी सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे शैतान के प्रभाव से किसी भी तरह नहीं बच सकते। जो लोग ईमानदारी से अपना जीवन नहीं जीते, जो लोगों के सामने एक तरह से और उनकी पीठ पीछे दूसरी तरह से व्यवहार करते हैं, जो नम्रता, धैर्य और प्रेम का दिखावा करते हैं, जबकि मूलतः उनका सार कपटी और धूर्त होता है और परमेश्वर के प्रति उनकी कोई निष्ठा नहीं होती, ऐसे लोग अंधकार के प्रभाव में रहने वाले लोगों के विशिष्ट नमूने हैं; वे सर्प के किस्म के लोग हैं। जो लोग हमेशा अपने ही लाभ के लिए परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, जो अभिमानी और घमंडी हैं, जो दिखावा करते हैं, और जो हमेशा अपनी हैसियत की रक्षा करते हैं, वे ऐसे लोग होते हैं जो शैतान से प्यार करते हैं और सत्य का विरोध करते हैं। वे लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और पूरी तरह से शैतान के होते हैं। जो लोग परमेश्वर के बोझ के प्रति सजग नहीं हैं, जो पूरे दिल से परमेश्वर की सेवा नहीं करते, जो हमेशा अपने और अपने परिवार के हितों के लिए चिंतित रहते हैं, जो खुद को परमेश्वर की खातिर खपाने के लिए हर चीज़ का परित्याग करने में सक्षम नहीं हैं, और जो परमेश्वर के वचनों के अनुसार अपनी ज़िंदगी नहीं जीते, वे परमेश्वर के वचनों के बाहर जी रहे हैं। ऐसे लोगों को परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त नहीं हो सकती।
जब परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, तो उसका उद्देश्य था कि मनुष्य परमेश्वर की समृद्धि का आनंद ले और मनुष्य वास्तव में उससे प्यार करे; इस तरह, मनुष्य उसके प्रकाश में रहेगा। आज, जो लोग परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, वे परमेश्वर के भार के प्रति सजग नहीं हैं, वे पूरी तरह से अपना हृदय परमेश्वर को नहीं दे पाते, परमेश्वर के हृदय को अपने हृदय की तरह नहीं मान पाते, परमेश्वर के बोझ को अपना मानकर उसे अपने ऊपर नहीं ले पाते, ऐसे लोगों पर परमेश्वर का प्रकाश नहीं चमकता, इसलिए ऐसे सभी लोग अंधकार के प्रभाव में जी रहे हैं। इस प्रकार के लोग ऐसे रास्ते पर हैं जो ठीक परमेश्वर की इच्छा के विपरीत जाता है, उनके किसी भी काम में लेशमात्र भी सत्य नहीं होता। वे शैतान के साथ दलदल में लोट रहे हैं और अंधकार के प्रभाव में जी रहे हैं। यदि तुम अक्सर परमेश्वर के वचनों को खा और पी सको, साथ ही परमेश्वर की इच्छाओं के प्रति सजग रह सको और परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर सको, तो तुम परमेश्वर के हो, तुम ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर के वचनों में जी रहा है। क्या तुम शैतान की सत्ता से निकलने और परमेश्वर के प्रकाश में रहने के लिए तैयार हो? यदि तुम परमेश्वर के वचनों में रहते हो, तो पवित्र आत्मा को अपना काम करने का अवसर मिलेगा; यदि तुम शैतान के प्रभाव में रहते हो, तो तुम पवित्र आत्मा को काम करने का ऐसा कोई अवसर नहीं दोगे। पवित्र आत्मा मनुष्यों पर जो काम करता है, वह जो प्रकाश उन पर डालता है, और वह जो विश्वास उन्हें देता है, वह केवल एक ही पल तक रहता है; यदि लोग सावधान न रहें और ध्यान न दें, तो पवित्र आत्मा द्वारा किया गया कार्य उन्हें छुए बिना ही निकल जाएगा। यदि मनुष्य परमेश्वर के वचनों में रहता है, तो पवित्र आत्मा उनके साथ रहेगा और उन पर काम करेगा; अगर मनुष्य परमेश्वर के वचनों में नहीं रहता, तो वह शैतान के बंधन में रहता है। यदि इंसान भ्रष्ट स्वभाव के साथ जीता है, तो उसमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति या पवित्र आत्मा का काम नहीं होता। यदि तुम परमेश्वर के वचनों की सीमाओं में रह रहे हो, यदि तुम परमेश्वर द्वारा अपेक्षित परिस्थिति में जी रहे हो, तो तुम परमेश्वर के हो, और उसका काम तुम पर किया जाएगा; अगर तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं के दायरे में नहीं जी रहे, बल्कि शैतान की सत्ता के अधीन रह रहे हो, तो निश्चित रूप से तुम शैतान के भ्रष्टाचार के अधीन जी रहे हो। केवल परमेश्वर के वचनों में रहकर अपना हृदय परमेश्वर को समर्पित करके, तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हो; तुम्हें वैसा ही करना चाहिए जैसा परमेश्वर कहता है, तुम्हें परमेश्वर के वचनों को अपने अस्तित्व की बुनियाद और अपने जीवन की वास्तविकता बनाना चाहिए; तभी तुम परमेश्वर के होगे। यदि तुम सचमुच परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ईमानदारी से अभ्यास करते हो, तो परमेश्वर तुम में काम करेगा, और फिर तुम उसके आशीष में रहोगे, उसके मुखमंडल की रोशनी में रहोगे; तुम पवित्र आत्मा द्वारा किए जाने वाले कार्य को समझोगे, और तुम परमेश्वर की उपस्थिति का आनंद महसूस करोगे।
अंधकार के प्रभाव से बचने के लिए, पहले तुम्हें परमेश्वर के प्रति वफादार होना चाहिए और तुम्हारे अंदर सत्य का अनुसरण करने की उत्सुकता होनी चाहिए, तभी तुम्हारी अवस्था सही हो सकती है। अंधकार के प्रभाव से बचने के लिए सही अवस्था में रहना पहली जरूरत है। सही अवस्था के न होने का मतलब है कि तुम परमेश्वर के प्रति वफादार नहीं हो और तुममें सत्य की खोज करने की उत्सुकता नहीं है; और अंधकार के प्रभाव से बचने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। मेरे वचन इंसान के अंधकार के प्रभावों से बचने का आधार हैं, और जो लोग मेरे वचनों के अनुसार अभ्यास नहीं कर सकते, वे अंधकार के प्रभाव के बंधन से बच नहीं सकते। सही अवस्था में जीने का अर्थ है परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में जीना, परमेश्वर के प्रति वफादार होने की अवस्था में जीना, सत्य खोजने की अवस्था में जीना, ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की वास्तविकता में जीना, और वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करने की अवस्था में जीना। जो लोग इन अवस्थाओं में और इस वास्तविकता में जीते हैं, वे जैसे-जैसे सत्य में अधिक गहराई से प्रवेश करेंगे, वैसे-वैसे वे रूपांतरित होते जाएँगे, और जैसे-जैसे काम गहन होता जाएगा, वे रूपांतरित हो जाएँगे; और अंत में, वे ऐसे इंसान बन जाएँगे जो यकीनन परमेश्वर को प्राप्त हो जाएँगे और उससे प्रेम करेंगे। जो लोग अंधकार के प्रभाव से बच निकले हैं, वे धीरे-धीरे परमेश्वर की इच्छा को सुनिश्चित कर सकते हैं, इसे समझ सकते हैं, और अंततः परमेश्वर के विश्वासपात्र बन जाते हैं। उनके अंदर न केवल परमेश्वर के बारे में कोई धारणा नहीं होती, वे लोग परमेश्वर के खिलाफ कोई विद्रोह भी नहीं करते, बल्कि वे लोग उन धारणाओं और विद्रोह से और भी अधिक घृणा करने लगते हैं जो उनमें पहले थे, और उनके हृदय में परमेश्वर के लिए सच्चा प्यार पैदा हो जाता है। जो लोग अंधकार के प्रभाव से बच निकलने में असमर्थ हैं, वे अपनी देह में लिप्त रहते हैं, और विद्रोह से भरे होते हैं; जीवनयापन के लिए उनका हृदय मानव धारणाओं और सांसारिक आचरण के फलसफों से, और साथ ही अपने इरादों और विचार-विमर्शों से भरा रहता है। परमेश्वर मनुष्य से एकनिष्ठ प्रेम की अपेक्षा करता है; परमेश्वर अपेक्षा करता है कि मनुष्य उसके वचनों से भरा रहे और उसके लिए प्यार से भरे हृदय से परिपूर्ण रहे। परमेश्वर के वचनों में रहना, उसके वचनों में ढूँढना जो उन्हें खोजना चाहिए, परमेश्वर को उसके वचनों के लिए प्यार करना, उसके वचनों के लिए भागना, उसके वचनों के लिए जीना—ये ऐसे लक्ष्य हैं जिन्हें पाने के लिए इंसान को प्रयास करने चाहिए। सबकुछ परमेश्वर के वचनों पर निर्मित किया जाना चाहिए; इंसान तभी परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगा। यदि मनुष्य में परमेश्वर के वचन नहीं होंगे, तो इंसान शैतान के चंगुल में फँसे भुनगे से ज़्यादा कुछ नहीं है! इसका आकलन करो : परमेश्वर के कितने वचनों ने तुम्हारे अंदर जड़ें जमाई हैं? किन चीज़ों में तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन जीते रहे हो? किन चीज़ों में तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीवन नहीं जीते रहे हो? यदि तुम पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों के प्रभाव में नहीं हो, तो तुम्हारे दिल पर किसने कब्ज़ा कर रखा है? अपने रोजमर्रा के जीवन में, क्या तुम शैतान द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हो, या परमेश्वर के वचनों ने तुम पर अधिकार कर रखा है? क्या तुम्हारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर के वचनों की बुनियाद पर आधारित हैं? क्या तुम परमेश्वर के वचनों के प्रबोधन से अपनी नकारात्मक अवस्था से बाहर आ गए हो? परमेश्वर के वचनों को अपने अस्तित्व की नींव की तरह लेना—यही वो है जिसमें सबको प्रवेश करना चाहिए। यदि तुम्हारे जीवन में परमेश्वर के वचन विद्यमान नहीं हैं, तो तुम अंधकार के प्रभाव में जी रहे हो, तुम परमेश्वर से विद्रोह कर रहे हो, तुम उसका विरोध कर रहे हो, और तुम परमेश्वर के नाम का अपमान कर रहे हो। इस तरह के मनुष्यों का परमेश्वर में विश्वास पूरी तरह से बदमाशी है, एक विघ्न है। तुम्हारा कितना जीवन परमेश्वर के वचनों के अनुसार रहा है? तुम्हारा कितना जीवन परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं रहा है? परमेश्वर के वचनों को तुमसे जो अपेक्षाएँ थीं, उनमें से तुमने कितनी पूरी की हैं? कितनी तुममें खो गई हैं? क्या तुमने ऐसी चीज़ों को बारीकी से देखा है?
अंधकार के प्रभाव से निकलने के लिए, पवित्र आत्मा का कार्य और इंसान का समर्पित सहयोग, दोनों की आवश्यकता होती है। मैं क्यों कहता हूँ कि इंसान सही रास्ते पर नहीं है? जो लोग सही रास्ते पर हैं, वे सबसे पहले, अपना हृदय ईश्वर को समर्पित कर सकते हैं। इस कार्य में प्रवेश करने में लंबा समय लगता है, क्योंकि मानवजाति हमेशा से अंधकार के प्रभाव में रहती आई है, हजारों सालों से शैतान की दासता में रह रही है, इसलिए यह प्रवेश एक या दो दिन में प्राप्त नहीं किया जा सकता। आज मैंने यह मुद्दा इसलिए उठाया है ताकि इंसान अपनी स्थिति को समझ सकें; एक बार जब इंसान इस बात को समझ जाएगा कि अंधकार का प्रभाव क्या होता है और प्रकाश में रहना क्या होता है, तो प्रवेश आसान हो जाता है। क्योंकि इससे पहले कि तुम शैतान के प्रभाव से निकलो, तुम्हें पता होना चाहिए कि ये क्या होता है; तभी तुम्हें इससे छुटकारा पाने का मार्ग मिल सकता है। जहाँ तक यह बात है कि उसके बाद क्या करना है, यह तो इंसान का खुद का मामला है। हर चीज़ में एक सकारात्मक पहलू से प्रवेश करो, और कभी निष्क्रिय होकर इंतजार मत करो। मात्र यही तरीका है जिससे तुम्हें परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।