723 परमेश्वर के प्रति मनुष्य की आज्ञाकारिता का मानदंड
1
लगातार ईश्वर से माँगने के मायने हैं,
तुम उसकी आज्ञा नहीं मानते, सौदेबाज़ी का प्रयास कर रहे हो,
अपने विचार ख़ुद चुन रहे हो, उसके अनुसार चल रहे हो।
ये धोखा और अवज्ञा है। ईश्वर से माँगना अनुचित है।
अगर तुम ईश्वर मानते हो उसे, तो तुम माँग नहीं रखोगे।
कारण कुछ भी हो, तुम योग्य नहीं।
अगर उसे ईश्वर मानते हो, उसमें तुम्हारी आस्था है,
तो तुम उसे अवश्य पूजोगे, आज्ञा मानोगे।
जब जाँचना हो कि क्या लोग ईश्वर की आज्ञा मान सकें,
तो देखो क्या वे ईश्वर से हद से ज़्यादा चाहें,
या है उनकी छुपी मंशा कोई जिसे ध्यान में रखा जाए।
2
इंसान के पास न आज सिर्फ़ विकल्प है,
बल्कि वो ईश्वर पर अपनी इच्छा भी थोपे।
वो ईश्वर की इच्छा पर चलने के बजाय,
ईश्वर को अपनी मर्ज़ी से चलाना चाहे।
ईश्वर में उनकी न तो सच्ची आस्था है,
न ही वो सार है जो आस्था में निहित होता है।
मांगें कम होंगी तो बढ़ेगा आज्ञापालन, बढ़ेगी आस्था,
तुम्हारी समझ भी सही होगी।
अगर उसे ईश्वर मानते हो, उसमें तुम्हारी आस्था है,
तो तुम उसे अवश्य पूजोगे, आज्ञा मानोगे।
जब जाँचना हो कि क्या लोग ईश्वर की आज्ञा मान सकें,
तो देखो क्या वे ईश्वर से हद से ज़्यादा चाहें,
या है उनकी छुपी मंशा कोई जिसे ध्यान में रखा जाए।
3
जब तुम सच में ईश्वर की आज्ञा मानोगे,
तो तुम एक दिल, एक मन से अनुसरण करोगे उसका,
भले ही वो तुम्हारा इस्तेमाल करे;
या तुम्हारा रुतबा कुछ भी हो, तुम उसके लिए ख़ुद को खपाओगे।
तभी तुममें विवेक होगा, तुम सच में ईश्वर की आज्ञा मानोगे।
जब जाँचना हो कि क्या लोग ईश्वर की आज्ञा मान सकें,
तो देखो क्या वे ईश्वर से हद से ज़्यादा चाहें,
या है उनकी छुपी मंशा कोई जिसे ध्यान में रखा जाए।
—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, लोग परमेश्वर से बहुत अधिक माँगें करते हैं से रूपांतरित