2. पवित्र आत्मा के और दुष्ट आत्माओं के कार्य के बीच विभेदन
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :
परमेश्वर अपने कार्य को दोहराता नहीं है, वह ऐसा कार्य नहीं करता जो वास्तविक न हो, वह मनुष्य से अत्यधिक अपेक्षाएँ नहीं रखता, और वह ऐसा कार्य नहीं करता जो मनुष्यों की समझ से परे हो। वह जो भी कार्य करता है, वह सब मनुष्य की सामान्य समझ के दायरे के भीतर होता है, और सामान्य मानवता की समझ से परे नहीं होता, और उसका कार्य मनुष्य की सामान्य अपेक्षाओं के अनुसार किया जाता है। यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य होता है, तो लोग हमेशा से अधिक सामान्य बन जाते हैं, और उनकी मानवता हमेशा से अधिक सामान्य बन जाती है। लोग अपने शैतानी स्वभाव का, और मनुष्य के सार का बढ़ता हुआ ज्ञान प्राप्त करते हैं, और वे सत्य के लिए हमेशा से अधिक ललक भी प्राप्त करते हैं। अर्थात्, मनुष्य का जीवन अधिकाधिक बढ़ता जाता है और मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव बदलाव में अधिकाधिक सक्षम हो जाता है—जिस सबका अर्थ है परमेश्वर का मनुष्य का जीवन बनना। यदि कोई मार्ग उन चीजों को प्रकट करने में असमर्थ है जो मनुष्य का सार हैं, मनुष्य के स्वभाव को बदलने में असमर्थ है, और, इसके अलावा, लोगों को परमेश्वर के सामने लाने में असमर्थ है या उन्हें परमेश्वर की सच्ची समझ प्रदान करने में असमर्थ है, और यहाँ तक कि उसकी मानवता के हमेशा से अधिक निम्न होने और उसकी भावना के हमेशा से अधिक असामान्य होने का कारण बनता है, तो यह मार्ग सच्चा मार्ग नहीं होना चाहिए, और यह दुष्टात्मा का कार्य या पुराना मार्ग हो सकता है। संक्षेप में, यह पवित्र आत्मा का वर्तमान कार्य नहीं हो सकता।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं
तुम्हें यह समझना चाहिए कि वह क्या है, जो परमेश्वर से आता है और वह क्या है, जो शैतान से आता है। जो परमेश्वर से आता है, वह तुम लोगों को और ज्यादा स्पष्टता के साथ एक दूरदृष्टि देता है और तुम्हें ईश्वर के और ज्यादा निकट लाता है; तुम अपने भाइयों और बहनों के साथ सच्चा प्यार साझा करते हो, तुम परमेश्वर के दायित्व-भार को लेकर ज्यादा विचारशीलता दिखा पाते हो, और तुम्हारे पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल होता है, जो कभी भी मिटता नहीं है। तुम्हारे सामने चलने के लिए एक रास्ता होता है। जो कुछ शैतान से आता है, वह तुम्हारी दूरदृष्टि को खत्म कर देता है, और तुम वह सब खो बैठते हो जो तुम्हारे पास होता है; तुम परमेश्वर से विमुख हो जाते हो, तुम्हें अपने भाइयों और बहनों से भी प्यार नहीं रहता, और तुम्हारा दिल घृणा से भर जाता है। तुम बेवश हो जाते हो, तुम अब कलीसियाई जीवन को और नहीं जीना चाहते, और तुम्हारा दिल भी अब परमेश्वर-प्रेमी नहीं रहता। यह शैतान का काम होता है, और यह दुष्ट आत्माओं के काम का परिणाम होता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 22
पवित्र आत्मा का कार्य सक्रिय मार्गदर्शन और सकारात्मक प्रबोधन है। यह लोगों को निष्क्रिय नहीं बनने देता। यह उनको सांत्वना देता है, उन्हें विश्वास और संकल्प देता है और परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने का अनुसरण करने योग्य बनाता है। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग सक्रिय रूप से प्रवेश कर पाते हैं; वो निष्क्रिय या बाध्य नहीं होते, बल्कि अपनी पहल पर काम करते हैं। जब पवित्र आत्मा कार्य करता है, तो लोग प्रसन्न और सहर्ष प्रस्तुत होते हैं, आज्ञा मानने को तैयार होते हैं और स्वयं को विनम्र रखने में प्रसन्न होते हैं। यद्यपि वे भीतर से दुखी और दुर्बल होते हैं, उनमें सहयोग करने का संकल्प होता है; वे ख़ुशी-ख़ुशी दुःख सह लेते हैं, वे आज्ञा मानने में सक्षम होते हैं और मानवीय इच्छा से कलंकित नहीं होते हैं, मनुष्य की सोच से कलंकित नहीं होते हैं और निश्चित रूप से वे मनुष्य की आकांक्षाओं और प्रेरणाओं से कलंकित नहीं होते हैं। जब लोग पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं, तो भीतर से वे विशेष रूप से पवित्र हो जाते हैं। जो पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन हैं, वे परमेश्वर के प्रेम और अपने भाइयों और बहनों के प्रेम को जीते हैं; वे ऐसी चीज़ों से आनंदित होते हैं, जो परमेश्वर को आनंदित करती हैं और उन चीज़ों से घृणा करते हैं, जिनसे परमेश्वर घृणा करता है। ऐसे लोग जो पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, उनमें सामान्य मानवता होती है और वे निरंतर सत्य का अनुसरण करते हैं और मानवता के अधीन होते हैं। जब पवित्र आत्मा लोगों के भीतर कार्य करता है, उनकी स्थिति और भी बेहतर हो जाती है और उनकी मानवता और अधिक सामान्य हो जाती है और यद्यपि उनका कुछ सहयोग मूर्खतापूर्ण हो सकता है, परंतु फिर भी उनकी प्रेरणाएं सही होती हैं, उनका प्रवेश सकारात्मक होता है, वे रुकावट बनने का प्रयास नहीं करते और उनमें दुर्भाव नहीं होता। पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और वास्तविक होता है, पवित्र आत्मा मनुष्य के भीतर मनुष्य के सामान्य जीवन के नियमों के अनुसार कार्य करता है और वह सामान्य लोगों के वास्तविक अनुसरण के अनुसार लोगों में प्रबोधन और मार्गदर्शन को कार्यान्वित करता है। जब पवित्र आत्मा लोगों में कार्य करता है, तो वह सामान्य लोगों की आवश्यकता के अनुसार उनका मार्गदर्शन करता और उन्हें प्रबुद्ध करता है। वह उनकी आवश्यकताओं के अनुसार उनकी ज़रूरतें पूरी करता है और वह सकारात्मक रूप से उनकी कमियों और अभावों के आधार पर उनका मार्गदर्शन करता है और उन्हें प्रबुद्ध करता है। पवित्र आत्मा का कार्य वास्तविक जीवन में लोगों को प्रबुद्ध करने और उनका मार्गदर्शन करने का है; अगर वे अपने वास्तविक जीवन में परमेश्वर के वचनों का अनुभव करते हैं, तभी वे पवित्र आत्मा का कार्य देख सकते हैं। यदि अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में लोग सकारात्मक अवस्था में हों और उनका जीवन सामान्य आध्यात्मिक हो, तो वे पवित्र आत्मा के कार्य के अधीन होते हैं। ऐसी स्थिति में, जब वे परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, तो उनमें विश्वास आता है; जब वे प्रार्थना करते हैं, तो वे प्रेरित होते हैं, जब उनके साथ कुछ घटितहोता है, तो वे निष्क्रिय नहीं होते; और घटित होती हुई चीज़ों से सबक़ लेने में समर्थ होते हैं, जो परमेश्वर चाहता है कि वो सीखें। वे निष्क्रिय या कमज़ोर नहीं होते और यद्यपि उनके जीवन में वास्तविक कठिनाइयाँ होती हैं, वे परमेश्वर के सभी प्रबंधनों की आज्ञा मानने के लिए तैयार रहते हैं।
पवित्र आत्मा के कार्य से क्या प्रभाव प्राप्त होते हैं? तुम मूर्ख हो सकते हो और तुम विवेकहीन हो सकते हो, परंतु पवित्र आत्मा को बस तुम्हारे भीतर कार्य करना है और तुम्हारे भीतर विश्वास उत्पन्न हो जाएगा और तुम हमेशा महसूस करोगे कि तुम परमेश्वर से जितना भी प्रेम करो कम ही होगा। चाहे सामने कितनी ही मुश्किलें हों, तुम सहयोग के लिए तैयार होगे। तुम्हारे साथ घटनाएँ होंगी और यह स्पष्ट नहीं होगा कि वे परमेश्वर की ओर से हैं या शैतान की ओर से, परंतु तुम प्रतीक्षा कर पाओगे और न तो निष्क्रिय होगे और न ही बेपरवाह। यह पवित्र आत्मा का सामान्य कार्य है। जब पवित्र आत्मा तुम्हारे अंदर कार्य करता है, तब भी तुम वास्तविक कठिनाइयों का सामना करते हो : कभी-कभी तुम्हारे आँसू निकल आएंगे और कभी-कभी ऐसी बातें होंगी, जिन पर तुम काबू नहीं पा सकते, परंतु यह सब पवित्र आत्मा के साधारण कार्य का एक चरण है। हालाँकि तुमने उन कठिनाइयों पर काबू नहीं पाया और उस समय तुम कमज़ोर थे और शिकायतों से भरे थे, फिर भी बाद में तुम पूरे विश्वास के साथ परमेश्वर से प्रेम कर पाये। तुम्हारी निष्क्रियता तुम्हें सामान्य अनुभव प्राप्त करने से नहीं रोक सकती और इसकी परवाह किए बिना कि लोग क्या कहते हैं और कैसे हमला करते हैं, तुम परमेश्वर से प्रेम कर पाते हो। प्रार्थना के दौरान तुम हमेशा महसूस करते हो कि अतीत में तुम परमेश्वर के बहुत ऋणी थे और जब भी तुम इस तरह की चीज़ों का फिर सामना करते हो, तुम परमेश्वर को संतुष्ट करने और देह-सुख का त्याग करने का संकल्प लेते हो। यह सामर्थ्य दिखाता है कि तुम्हारे भीतर पवित्र आत्मा का कार्य है। यह पवित्र आत्मा के कार्य की सामान्य अवस्था है।
शैतान की ओर से कौन-सा कार्य आता है? शैतान से आने वाले काम में, लोगों के भीतर के दृश्य अस्पष्ट होते हैं; लोगों में सामान्य मानवता नहीं होती है, उनके कार्यों के पीछे की प्रेरणाएं गलत होती हैं, और यद्यपि वे परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हैं, फिर भी उनके भीतर सदैव आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं और ये दोषारोपण और विचार उनमें निरंतर व्यवधान का कारण बनते हैं, उनके जीवन के विकास को सीमित कर देते हैं और सामान्य स्थिति में परमेश्वर के समक्ष आने से रोक देते हैं। कहने का अर्थ है कि जैसे ही लोगों में शैतान का कार्य आरंभ होता है, तो उनके हृदय परमेश्वर के समक्ष शांत नहीं रह सकते। ऐसे लोगों को पता नहीं होता कि वे स्वयं के साथ क्या करें—जब वे लोगों को इकट्ठा होते देखते हैं, वे भाग जाना चाहते हैं और जब दूसरे प्रार्थना करते हैं तो वे अपनी आँखें बंद नहीं रख पाते। दुष्ट आत्माओं का कार्य मनुष्य और परमेश्वर के बीच का सामान्य संबंध बर्बाद कर देता है और लोगों के पिछले दर्शनों या उनके जीवन प्रवेश के पिछले मार्ग को उलट देता है; अपने हृदयों में वे कभी परमेश्वर के क़रीब नहीं आ सकते, ऐसी बातें हमेशा होती रहती हैं, जो उनमें बाधा पैदा करती हैं और उन्हें बंधन में बांध देती हैं। उनके हृदय शांति प्राप्त नहीं कर पाते और उनमें परमेश्वर से प्रेम करने की शक्ति नहीं बचती, और उनकी आत्माएं पतन की ओर जाने लगती हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण ऐसे हैं। शैतान के कार्य के प्रकटीकरण हैं : अपने स्थान पर डटे रह पाने और गवाही दे पाने में असमर्थ होना, यह तुम्हें ऐसा व्यक्ति बना देता है जो परमेश्वर के समक्ष दोषी है और जो परमेश्वर के प्रति निष्ठा नहीं रखता। जब शैतान हस्तक्षेप करता है, तुम अपने भीतर परमेश्वर के प्रति प्रेम और वफ़ादारी खो देते हो, तुम्हारा परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध खत्म हो जाता है, तुम सत्य या स्वयं के सुधार का अनुसरण नहीं करते, तुम पीछे हटने लगते हो और निष्क्रिय बन जाते हो, तुम स्वयं को आसक्त कर लेते हो, तुम पाप के फैलाव को खुली छूट दे देते हो और पाप से घृणा नहीं करते; इससे बढ़कर, शैतान का हस्तक्षेप तुम्हें स्वच्छंद बना देता है, इसकी वजह से तुम्हारे भीतर से परमेश्वर का स्पर्श हट जाता है और तुम्हें परमेश्वर के बारे में शिकायत करने और उसका विरोध करने को प्रेरित करता है, जिससे तुम परमेश्वर पर सवाल उठाते हो; तुम्हारे द्वारा परमेश्वर को त्याग देने का खतरा भी होता है। यह सब शैतान की ओर से आता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पवित्र आत्मा का कार्य और शैतान का कार्य
परमेश्वर सौम्य, कोमल, प्यारे और परवाह करने के तरीके से कार्य करता है, जो असाधारण रूप से नपा-तुला और उचित होता है। उसका तरीका तुम्हारे भीतर तीव्र भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न नहीं करता, जैसे कि : "परमेश्वर को मुझे यह करने देना चाहिए" या "परमेश्वर को मुझे वह करने देना चाहिए।" परमेश्वर कभी तुम्हें उस किस्म की मानसिक या भावनात्मक तीव्रता नहीं देता, जो चीज़ों को असहनीय बना देती है। क्या ऐसा नहीं है? यहाँ तक कि जब तुम परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के वचनों को स्वीकार करते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? जब तुम परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य को समझते हो, तब तुम कैसा महसूस करते हो? क्या तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर दिव्य और अनुल्लंघनीय है? (हाँ।) क्या उस समय तुम अपने और परमेश्वर के बीच दूरी महसूस करते हो? क्या तुम्हें परमेश्वर से डर लगता है? नहीं—बल्कि तुम परमेश्वर के लिए भयपूर्ण श्रद्धा महसूस करते हो। क्या लोग ये चीज़ें परमेश्वर के कार्य के कारण महसूस नहीं करते? ...
... परमेश्वर मनुष्य पर कार्य करता है और उसे अपने दृष्टिकोण और हृदय दोनों में पोषित करता है। इसके विपरीत, क्या शैतान मनुष्य को पोषित करता है? नहीं, वह मनुष्य को पोषित नहीं करता। उलटे वह मनुष्य को हानि पहुँचाने के बारे में सोचने में बहुत समय बिताता है। क्या ऐसा नहीं है? जब वह मनुष्य को हानि पहुँचाने के बारे में सोच रहा होता है, तो क्या उसकी मन:स्थिति अत्यावश्यकता की होती है? (हाँ।) तो जहाँ तक मनुष्य पर शैतान के कार्य का संबंध है, मेरे पास दो वाक्यांश हैं, जो शैतान की दुर्भावना और दुष्ट प्रकृति की व्याख्या अच्छी तरह से कर सकते हैं, जिससे सच में तुम लोग शैतान की घृणा को जान सकते हो : मनुष्य के प्रति अपने नज़रिये में शैतान हमेशा हर मनुष्य पर इस सीमा तक बलपूर्वक कब्ज़ा करना और उस पर काबू करना चाहता है, जहाँ वह मनुष्य पर पूरा नियंत्रण हासिल कर ले और उसे कष्टप्रद तरीके से नुकसान पहुँचाए, ताकि वह अपना उद्देश्य और वहशी महत्वाकांक्षा पूरी कर सके। "बलपूर्वक कब्जा" करने का क्या अर्थ है? क्या यह तुम्हारी सहमति से होता है, या बिना तुम्हारी सहमति के? क्या यह तुम्हारी जानकारी से होता है, या बिना तुम्हारी जानकारी के? उत्तर है कि यह पूरी तरह से बिना तुम्हारी जानकारी के होता है! यह ऐसी स्थितियों में होता है, जब तुम अनजान रहते हो, संभवतः उसके तुमसे बिना कुछ कहे या तुम्हारे साथ बिना कुछ किए, बिना किसी प्रस्तावना के, बिना प्रसंग के—शैतान वहाँ होता है, तुम्हारे इर्द-गिर्द, तुम्हें घेरे हुए। वह तुम्हारा शोषण करने के लिए एक अवसर तलाशता है और फिर बलपूर्वक तुम पर कब्ज़ा कर लेता है, तुम पर काबू कर लेता है और तुम पर पूरा नियंत्रण प्राप्त करने और तुम्हें नुकसान पहुँचाने के अपने उद्देश्य को हासिल कर लेता है। मानव-जाति को परमेश्वर से छीनने की लड़ाई में शैतान का यह एक सबसे विशिष्ट इरादा और व्यवहार है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV
कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थपरक होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य रहता है, तो यह भी यथार्थपरक होता और दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वे हर पल परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध और पवित्र आत्मा द्वारा द्रवित किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह किसी भी तरह से सामान्य नहीं है। यह पूर्णत: अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब भी ऐसे समय होते हैं जब उसे भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्यों की तो बात ही छोड़ दो। जो लोग बुरी आत्माओं से ग्रस्त हो गए हैं, वे देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब-कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम होते हैं, वे भावनाओं से रहित होते हैं, यातना सहने में सक्षम होते हैं और जरा-सी भी थकान महसूस नहीं करते, मानो वे देहातीत हो चुके हों। क्या यह नितांत अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्माओं का कार्य अलौकिक है और कोई मनुष्य ऐसी चीजें प्राप्त नहीं कर सकता। जिन लोगों में विवेक की कमी होती है, वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं : वे कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, उनकी आस्था बहुत बड़ी है, और वे कमज़ोरी का मामूली-सा भी चिह्न प्रदर्शित नहीं करते! वास्तव में, ये सब दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्तियाँ है। क्योंकि सामान्य लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है, जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (4)
संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण :
पवित्र आत्मा का मुख्य कार्य प्रबोधन और प्रकाशन है, जिससे कि व्यक्ति परमेश्वर के वचनों को समझ सके और परमेश्वर के वचनों में प्रवेश कर सके; अर्थात, यह लोगों का, सत्य को समझने और सत्य में प्रवेश करने में, मार्गदर्शन करता है, सभी प्रकार के परीक्षणों और परिवेशों के बीच लोगों को प्रबुद्ध और रोशन करता है ताकि वे परमेश्वर की इच्छा को समझ सकें। बेशक, विभिन्न लोगों, चीज़ों और वस्तुओं के माध्यम से पवित्र आत्मा लोगों को उजागर करता है, उन्हें काटता-छांटता है, उन्हें अनुशासित करता है, और उनको सज़ा देता है, और इन सभी में उन्हें उद्धार तक ले आना ही उसका लक्ष्य होता है। पवित्र आत्मा सभी पर शासन करता है, सभी प्रकार की स्थितियों का प्रबंधन कर लोगों को बदलता, उन्हें पूर्ण करता है। परमेश्वर के उद्धार-कार्य में, हालांकि पवित्र आत्मा का कार्य बहुआयामी है, बिना किसी अपवाद के उद्धार से जुड़ा होता है। भले ही पवित्र आत्मा का कार्य छिपा होता है, और बाहर से बिल्कुल भी अलौकिक प्रतीत नहीं होता है, जिन्होंने इसका अनुभव किया है वे अपने हृदय में इसे स्पष्ट रूप से समझते हैं। इसके विपरीत, दुष्ट आत्माओं का कार्य असाधारण रूप से अन्य संसार का होता है, यह दिखाई देता है, महसूस किया जा सकता है, और बहुत असामान्य होता है। दुष्ट आत्माओं के कार्यों से यह देखा जा सकता है कि दुष्ट आत्माओं को खुद को प्रकट करना विशेष रूप से पसंद होता है, वे अविश्वसनीय रूप से बुरी होती हैं, उनमें लेशमात्र भी सच्चाई नहीं होती है। भले ही कितने सालों से दुष्ट आत्माएँ किसी व्यक्ति पर काम करें, उनके भ्रष्ट स्वभाव में थोड़ा-सा भी बदलाव नहीं आता। बल्कि वे और भी कम सामान्य हो जाते हैं, यहाँ तक कि वे सामान्य मानवीय विवेक को भी खो देते हैं। यह बुरी आत्माओं के काम का नतीजा है। इसी प्रकार शैतान और विभिन्न दुष्ट आत्माएँ लोगों को भ्रष्ट करती, उन्हें बांधती और उन्हें धोखा देती हैं। अंत में, लोग भूत बन जाते हैं, और उन लोगों को जो दुष्ट आत्माओं से धोखा खा चुके हैं, शैतान द्वारा ज़ब्त कर लिया जाता है और निगल लिया जाता है। पवित्र आत्मा का सारा कार्य मानवता के उद्धार के बारे में है, और किसी व्यक्ति के पास पवित्र आत्मा का कार्य जितना अधिक होता है, उतना ही अधिक वह सत्य को समझ सकता है; उसकी मानवता अधिक से अधिक सामान्य हो जाती है, और वह अधिक से अधिक मानवीय हो जाता है। अंत में वह परमेश्वर का उद्धार हासिल करेगा, और एक ऐसा व्यक्ति बन जाएगा जिसमें सच्चाई और पूर्ण मानवता होगी। पवित्र आत्मा के कार्यों और दुष्ट आत्माओं के कामों के बीच ये मुख्य भेद हैं: दुष्ट आत्माएँ केवल लोगों को भ्रष्ट कर सकती हैं, बांध सकती हैं और अंततः उन्हें भूतों में बदल देती हैं; पवित्र आत्मा का कार्य भ्रष्ट लोगों को शुद्ध करके उनका उद्धार करता है, उन्हें सत्य और पूर्ण मानवता प्रदान करता है। पवित्र आत्मा का कार्य शैतान द्वारा भ्रष्ट किये गए और अशुद्ध आत्माओं में गिने जाने वाले लोगों को वास्तव में पवित्र बना सकता है और कोई भी यह कह सकता है कि पवित्र आत्मा उन लोगों को लेता है जो शैतान द्वारा भ्रष्ट किये गए और दुष्ट बनाए गए हैं और वह उन्हें फिर से इंसानों में बदल देता है। यही पवित्र आत्मा के कार्य और बुरी आत्माओं के काम के बीच का अंतर है।
—ऊपर से संगति
दुष्ट आत्माओं के विभिन्न कार्यों और पवित्र आत्मा के कार्य के बीच के स्पष्ट अंतर निम्न पहलुओं में विषेश रूप से व्यक्त होते हैं। पवित्र आत्मा उन ईमानदार लोगों का चुनाव करता है जो सत्य को खोजते हैं, जिनके पास अंत:करण और विवेक है। वे ऐसे लोग हैं जिनमें वह कार्य करता है। दुष्ट आत्माएँ उन लोगों का चुनाव करती हैं जो कपटी और बेहूदे होते हैं, जिन्हें सत्य से कोई प्रेम नहीं होता है, और जो अंत:करण या विवेक रहित होते हैं। ये ऐसे लोग हैं जिनमें दुष्ट आत्माएँ कार्य करती हैं। जब हम पवित्र आत्मा के कार्य के लिए चुने जाने वालों की तुलना उनसे करते हैं जो दुष्ट आत्माओं के कार्य के लिए चुने जाते हैं तो हम देख सकते हैं कि परमेश्वर पवित्र, और धार्मिक है, जो परमेश्वर के द्वारा चुने जाते हैं वे सत्य को खोजते हैं, और अंत:करण और विवेक से संपन्न होते हैं, वे तुलनात्मक रूप से अधिक ईमानदार होते हैं, और न्यायोचित चीज़ों से प्रेम करते हैं। जो दुष्ट आत्माओं के द्वारा चुने जाते हैं वे कपटी होते हैं, वे स्वार्थी और नीच होते हैं, उन्हें सत्य से कोई प्रेम नहीं होता है, वे अंत:करण और विवेक रहित होते हैं, और वे सत्य को नहीं खोजते हैं और वे सच्चे मानव नहीं होते हैं। दुष्ट आत्माएँ सिर्फ नकारात्मक चीज़ों को चुनती हैं, जिससे हम देखते हैं कि दुष्ट आत्माएँ दुष्टता और अंधकार को पसंद करती हैं, और वे उनसे एक मीलों दूर भागती हैं जो सत्य को खोजते हैं, और जो अधार्मिकता से आसक्त होते हैं, और आसानी से मोहित किए जा सकते हैं उन पर शीघ्रता से काबू पा लेती हैं। जिनमें दुष्ट आत्माएँ कार्य करना चुनती हैं वे बचाये नहीं जा सकते हैं, और वे परमेश्वर के द्वारा निकाल दिए गए जाते हैं। दुष्ट आत्माएँ कब, और किस पृष्ठभूमि के विरोध में कार्य करती हैं? वे तब कार्य करती हैं जब लोग परमेश्वर से दूर भटक जाते हैं और परमेश्वर के प्रति विद्रोह कर देते हैं। दुष्ट आत्माओं का कार्य लोगों को मोहित कर लेता है। जब लोग पाप करते हैं, जब वे सबसे अधिक निर्बल होते हैं, विशेष रूप से जब उनके हृदय में बहुत पीड़ा होती है, जब वे व्याकुल और भ्रमित महसूस कर रहे होते हैं, तब दुष्ट आत्माएं उन्हें मोहित और भ्रष्ट करने, उनमें और परमेश्वर के बीच में कलह बोने के लिए इस अवसर का उपयोग करतीं हैं। जब लोग परमेश्वर को पुकारते हैं, जब उनके हृदय परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं, जब उन्हें परमेश्वर की आवश्यकता होती है, जब वे परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हैं, या जब वे सत्य को खोजते हैं, तब पवित्र आत्मा उनमें कार्य करना शुरू करता है। पवित्र आत्मा के सारे कार्य मनुष्य को बचाने के लिए होते हैं, और वह मनुष्य को बचाने के लिए अवसर ढूँढ़ता है, जबकि दुष्ट आत्माएँ लोगों को भ्रष्ट करने और उनके साथ छल करने के अवसरों की खोज में रहती हैं। परमेश्वर प्रेम है, और दुष्ट आत्माएं लोगों से नफरत करतीं हैं। दुष्ट आत्माएँ नीच और दुष्ट होती हैं, वे घातक और भयावह होती हैं। दुष्ट आत्माएँ जो कुछ भी करती हैं वह मनुष्य को निगलने, भ्रष्ट करने के लिए होता है, और पवित्र आत्मा जो कुछ भी करता है वह मनुष्य के लिए प्रेम और उद्धार के लिए होता है। पवित्र आत्मा के कार्य के प्रभाव लोगों को शुद्ध करने, उन्हें उनकी भ्रष्टता से बचाने, उन्हें अपने-आप को जानने और शैतान को जानने की अनुमति देने, शैतान के विरुद्ध विद्रोह करने में समर्थ होने, सत्य की खोज करने, और अंततः मनुष्य की सदृशता में जीने में समर्थ बनाने के लिए होते हैं। दुष्ट आत्माएँ लोगों को भ्रष्ट करती हैं, दूषित करती हैं, और जकड़ती हैं, वे उन्हें हमेशा पाप में और गहरा डुबा देती हैं, और हमेशा उनके जीवन में बहुत दर्द लाती हैं, और इसलिए जब दुष्ट आत्माएँ लोगों में कार्य करती हैं, तो वे ख़त्म हो जाते हैं; अंततः, वे शैतान के द्वारा निगल लिए जाते हैं, जो कि दुष्ट आत्माओं के कार्य का परिणाम होता है। पवित्र आत्मा के कार्य का प्रभाव अंततः लोगों को बचाना, उन्हें एक वास्तविक जीवन जीने के योग्य बनाना, पूरी तरह से मुक्त और स्वतंत्र बनाना और परमेश्वर के आशीषों को प्राप्त करना है। दुष्ट आत्माएँ मनुष्य को अंधकार में ले जाती हैं, वे उसे रसातल में ले जाती हैं; पवित्र आत्मा मनुष्य को अंधकार से प्रकाश में, स्वतंत्रता में ले जाता है। पवित्र आत्मा का कार्य लोगों को प्रबुद्ध करता है और उनका मार्गदर्शन करता है, वह उन्हें अवसर देता है, और जब वे निर्बल होते और पाप करते हैं तब वह उनके लिए सांत्वना लाता है। वह लोगों को अपने-आप को जानने देता है, उन्हें सत्य को खोजने देता है, और वह लोगों को चीज़ों को करने के लिए विवश नहीं करता है, बल्कि उन्हें अपना खुद का मार्ग अपने आप चुनने देता है, और अंततः उन्हें प्रकाश में ले जाता है। दुष्ट आत्माएँ चीज़ों को करने के लिए लोगों को विवश करती हैं और उन पर आदेश चलाती हैं। वे जो कुछ भी कहती हैं वह झूठ होता है और लोगों को मोहित करता हैं, उन्हें धोखा देता है, और उन्हें जकड़ता है; दुष्ट आत्माएँ लोगों को स्वतंत्रता नहीं देती हैं, वे उन्हें चुनने की आजादी नहीं देती हैं, वे उन्हें विनाश के मार्ग पर विवश करती हैं, और अंततः उन्हें पाप में बहुत गहरा डुबो देती हैं, उन्हें मृत्यु तक ले जाती हैं।
—जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति
बुरी आत्माओं के काम की सबसे स्पष्ट विशेषता यह है कि यह अलौकिक है, जो शब्द वे बोलतीं हैं या जो लोगों से वे करने को कहतीं हैं वो बातें असामान्य, बेतुकी और सामान्य मानवता और मानवीय संबंधों की मूल नैतिकता से भी विश्वासघात करने वाली होती हैं, और वे केवल लोगों को धोखा देने, उन्हें परेशान करने और भ्रष्ट करने के लिए होतीं हैं। जब दुष्ट आत्माएं लोगों को अपने वश में कर लेतीं हैं, तो कुछ लोग बहुत डर महसूस करते हैं, कुछ असामान्य हो जाते हैं, जबकि अन्य लोग एक धुंध में पड़ जाते हैं, और कुछ खुद को अत्यधिक चिंतित और शांत बैठने में असमर्थ पाते हैं। किसी भी हाल में, जब दुष्ट आत्माएं लोगों को अपने वश में कर लेतीं हैं, तो वे बदल जाते हैं, कुछ ऐसा बन जाते हैं जो न तो मानव है और न ही राक्षस, और अपनी सामान्य मानवता खो देते हैं। यह इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि दुष्ट आत्माओं का सार दुष्ट और बदसूरत है, जो कि बिल्कुल शैतान का सार है। दुष्ट आत्माएं लोगों से घृणा करवातीं हैं और उन्हें तुच्छ बनाती हैं, और लोगों को उनसे बिल्कुल कोई लाभ या मदद नहीं मिलती है। केवल एक चीज़ जो शैतान और सभी प्रकार की बुरी आत्माएं करने में सक्षम हैं, वो है लोगों को भ्रष्ट करना, उन्हें हानि पहुँचाना और निगल जाना।
जिन लोगों में दुष्ट आत्माओं का काम है (जो राक्षसों के वश में हैं) उनकी मुख्य अभिव्यक्तियां इस प्रकार हैं:
पहला प्रकार यह है कि बुरी आत्माएं लोगों को अक्सर ऐसे-वैसे काम करने के लिए कहतीं हैं, या किसी को कुछ बताने को कहतीं हैं, या उन्हें झूठी भविष्यवाणियाँ करने के लिए निर्देशित करती हैं।
दूसरा प्रकार है कि लोग अक्सर प्रार्थना में तथाकथित "भाषाएँ" बोलते हैं जो कोई नहीं समझता है, खुद बोलने वाला भी इसे नहीं समझता है। कुछ वक्ता स्वयं "भाषाओँ की व्याख्या" भी कर सकते हैं। दूसरा प्रकार है कि लोग अक्सर प्रार्थना में तथाकथित "भाषाएँ" बोलते हैं जो कोई नहीं समझता है, खुद बोलने वाला भी इसे नहीं समझता है। कुछ वक्ता स्वयं "भाषाओँ की व्याख्या" भी कर सकते हैं।
तीसरा प्रकार यह है एक व्यक्ति अक्सर अत्यधिक बारम्बारता से प्रकाशन ग्रहण करता है, एक क्षण में बुरी आत्माओं द्वारा एक दिशा में तो दूसरे क्षण में दूसरी दिशा में संचालित होता है। वह हर वक्त एक व्याकुलता की स्थिति में रहता है।
चौथा प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है, वे बड़ी तत्परता से कुछ करना चाहते हैं, उनमें इंतजार कर पाने का धीरज नहीं होता है, वे आधी रात में भी दौड़ पड़ते हैं और उनका व्यवहार विशेष रूप से असामान्य होता है।
पांचवां प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है वे निरंकुश रूप से घमंडी होते हैं, उनमें विवेक नहीं होता है, उनके सभी कथन दूसरों को नीचा दिखाने वाले होते हैं और आदेश देने वाले पद से आते हैं। वे लोगों को उलझाते हैं और दुष्टात्माओं की तरह उन्हें चीज़ें करने को बाध्य करते हैं।
छटवाँ प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है वे सत्य के बारे में सहभागिता करने में असमर्थ होते हैं, परमेश्वर के कार्य पर ध्यान देना तो दूर की बात है, वे परमेश्वर के खिलाफ होते हैं और मनमाने ढंग से काम करते हैं, कलीसिया की सामान्य व्यवस्था को भंग करने के लिए सभी प्रकार के उपद्रव करते हैं।
सातवाँ प्रकार यह है कि जिस व्यक्ति में बुरी आत्माओं का काम होता है वह बिना कारण अपने आपको किसी और के रूप में दिखाता है या दावा करता है कि उसे किसी ने भेजा है और लोगों को उसकी बात सुननी चाहिए। कोई नहीं समझ पाता है कि वह कहाँ से आया है।
आँठवा प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है उनके पास आम तौर पर कोई सामान्य समझ नहीं होती है, न ही वे सत्य समझते हैं; उनमें चीज़ें ग्रहण करने की कोई क्षमता नहीं होती और वे पवित्र आत्मा द्वारा प्रबुद्ध भी नहीं किये गये होते हैं, हम देखते हैं कि चीज़ें ग्रहण करने में ये लोग असाधारण रूप से बेढंगे होते हैं और बिल्कुल भी सही नहीं होते हैं।
नौंवा प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है वे काम के दौरान दूसरों को उपदेश देने पर विशेष ध्यान देते हैं, वे हमेशा निरंकुश ढंग से व्यवहार करते हैं, वे हमेशा बाधा या खलल उत्पन्न करते हैं; हर चीज़ जो वो कहते और करते हैं वो लोगों पर हमला करती है, उन्हें बांधती है और दूसरे लोगों को भ्रष्ट करती है, वे लोगों के संकल्प तोड़ने के हद तक जाते हैं और उन्हें नकरात्मक बनाते हैं जिसकी वजह से लोग अपने आपको फिर उठा नहीं पाते हैं। वे सिर्फ शुद्ध रूप से शैतान हैं, जो दूसरों को हानि पहुंचाते हैं, उनसे खिलवाड़ करते हैं और उन्हें निगल जाते हैं, और अपनी मनमानी कर पाने में वे मन ही मन खुश होते हैं। यह दुष्ट आत्माओं के काम का प्राथमिक उद्देश्य है।
दसवाँ प्रकार यह है कि जिन लोगों में बुरी आत्माओं का काम होता है वे एक बिल्कुल ही असामान्य जीवन जीते हैं। उनकी आँखों में एक हिंसक चमक होती है और उनके कहे शब्द बहुत ही भयानक होते हैं मानो कि एक दुष्टात्मा धरती पर उतर आई हो। इस प्रकार के व्यक्ति के जीवन में कोई ढंग नहीं होता, वो बहुत अस्थिर होते हैं और बिना प्रशिक्षण के एक जंगली जानवर के समान ही उनका भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता। वे दूसरों के लिए अत्यंत घिनौने और अप्रिय होते हैं। एक ऐसा वुक्ति जिसे दुष्टात्माओं ने बांध रखा है, ठीक ऐसा ही दिखता है।
ऊपर बताये गये दस प्रकार दुष्ट आत्माओं के काम की मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं। कोई भी व्यक्ति जो इन अभिव्यक्तियों में से किसी एक को भी प्रदर्शित करता है, उसमें निश्चित रूप से दुष्ट आत्माओं का काम होगा। साफ़ तौर पर कहें तो, जो लोग दुष्ट आत्माओं के काम की उपरोक्त अभिव्यक्तियों में से चाहे कोई भी प्रकार प्रदर्शित करते हों, उनके पास बुरी आत्माओं का काम है। एक व्यक्ति जिसमें बुरी आत्माओं का काम होता है वह अक्सर ऐसे लोगों से दूर रहता है और उनसे नफ़रत करता है, जिनमें पवित्रात्मा काम कर रहा होता है और जो सत्य के बारे में संगति कर सकते हैं। अक्सर, कोई जितना अधिक बेहतर होता है, वो उस पर उतना ही हमला करना और उसकी निंदा करना चाहता है। कोई जितना अधिक मूर्ख होता है, वह उतना ही उसे मक्खन लगाता है, वो खासकर ऐसे लोगों के सम्पर्क में आना चाहता है। जब दुष्ट आत्माएं काम करती हैं, वे हमेशा सच और झूठ में भ्रम पैदा करती हैं, सकरात्मक को नकरात्मक बताती हैं और नकरात्मक को सकरात्मक। यह सटीक रूप से दुष्टात्माओं का काम है।
—कार्य व्यवस्था
कोई भी आत्मा जिस का कार्य प्रकट रूप से अलौकिक है वह एक दुष्ट आत्मा है, और किसी भी आत्मा का अलौकिक कार्य और कथन जो लोगों में किया जाता है एक दुष्ट आत्मा का कार्य है; सभी साधन जिनके द्वारा दुष्ट आत्माएँ कार्य करती हैं असामान्य और अलौकिक होते हैं, और मुख्य रूप से निम्नलिखित छह तरीकों से व्यक्त होते हैं:
1. लोगों की बोली पर सीधा नियंत्रण, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि दुष्ट आत्मा बात कर रही है, न कि लोग स्वयं सामान्य रूप से बोल रहे हैं;
2. यह भावना कि दुष्ट आत्मा लोगों को निर्देश दे रही है और उन्हें फलां-फलां काम करने का आदेश दे रही है;
3. लोग जो, जब वे किसी कमरे में होते हैं, बता सकते हैं कि कब कोई व्यक्ति अंदर आने ही वाला है;
4. लोग जो प्रायः खुद से बात करती हुई आवाज़ें सुनते हैं जिसे दूसरे नहीं सुन सकते हैं;
5. लोग जो ऐसी चीजों को देखने और सुनने में समर्थ हैं जो कि दूसरे नहीं देख और सुन सकते हैं;
6. लोग जो हमेशा उत्तेजित रहते हैं, और अपने-आप से बात करते रहते हैं, और लोगों के साथ सामान्य वार्तालाप या बातचीत करने में असमर्थ होते हैं।
जिन सभी में दुष्ट आत्मा कार्य कर रही होती है उनमें अनिवार्य रूप से ये छह अभिव्यक्तियाँ पायी जाती हैं। वे अविवेकी होते हैं, असमंजस में रहते हैं, लोगों के साथ सामान्य बातचीत करने में अक्षम होते हैं, ऐसा लगता है मानो कि वे तर्क द्वारा सुधारे नहीं जा सकते हैं, और उनके बारे में कुछ अनासक्त और पारलौकिक होता है। ऐसे लोग दुष्ट आत्मा के द्वारा ग्रस्त होते हैं या उनमें दुष्ट आत्मा कार्य कर रही होती है, दुष्ट आत्माओं का समस्त कार्य प्रत्यक्ष और अलौकिक होता है। दुष्ट आत्माओं का यह सबसे अधिक आसानी से पहचाना जाने वाला कार्य होता है। जब कोई दुष्ट आत्मा किसी पर कब्जा करती है, तो यह उनके साथ खेलती है ताकि वे पूरी तरह से उलझ जाएँ। वे, एक प्रेत के जैसे, अविवेकी बन जाते हैं, जो साबित करता है कि सार रूप में, दुष्ट आत्माएँ बुरी आत्माएँ होती हैं जो लोगों को भ्रष्ट करती है और निगल जाती हैं। दुष्ट आत्माओं के कथनों को पहचानना आसान है: उनके कथन पूरी तरह से उनके बुरे सार का प्रतीक हैं, वे निष्क्रिय, गंदे और बदबूदार होते हैं, उनसे मृत्यु की दुर्गन्ध टपकती है। उन लोगों के लिए जो अच्छी योग्यता के होते हैं, दुष्ट आत्माओं के वचन खोखले, अरुचिकर और अशोभनीय होते हैं, बस केवल झूठ और खोखली बातें होते हैं, वे निरर्थक वचनो के ढेर के समान अव्यवस्थित और पेचीदा महसूस होते हैं। यह दुष्ट आत्माओं की बकवास में से कुछ सबसे आसानी से पहचाने जाने लायक बकवास है। लोगों को भरमाने के लिए, कुछ अधिक "ऊँचे स्तर" की दुष्ट आत्माएँ जब बोलती हैं तो परमेश्वर या मसीह होने का दिखावा करती हैं, जबकि कुछ अन्य स्वर्गदूत या प्रसिद्ध व्यक्ति होने का दिखावा करती हैं। जब वे बोलती हैं, तो ये दुष्ट आत्माएँ परमेश्वर के कई वचनों और वाक्यांशों की या परमेश्वर की आवाज़ की नकल करने में निपुण होती हैं, और जो लोग सत्य को नहीं समझते हैं वे आसानी से "ऊँचे स्तर" की दुष्ट आत्माओं के झाँसे में आ जाते हैं। परमेश्वर के चुने लोगों को स्पष्ट होना चाहिए कि, सार रूप में, दुष्ट आत्माएँ बुरी और बेशर्म होती हैं, और कि भले ही वे "ऊँचे स्तर" की दुष्ट आत्माएँ हों, वे सत्य से सर्वथा विहीन होती हैं। दुष्ट आत्माएँ, आखिरकार दुष्ट आत्माएँ ही होती हैं, दुष्ट आत्माओं का सार बुरा होता है और शैतान के जैसा होता है।
—कार्य व्यवस्था